NCERT Solutions for Class 8th: भारत की खोज पृष्ठ संख्या: 128 हिंदी

13. कौटिल्य के अर्थशास्त्र में अनेक विषयों की चर्चा है, जैसे, "व्यापार और वाणिज्य, कानून और न्यायालय, नगर-व्यवस्था, सामाजिक रीति-रिवाज, विवाह और तलाक, स्त्रियों के अधिकार, कर और लगान, कृषि, खानों और कारखानों को चलाना, दस्तकारी, मंडियाँ, बागवानी, उद्योग-धंधे, सिंचाई और जलमार्ग, जहाज़ और जहाज़रानी, निगमें, जन-गणना, मत्स्य-उद्योग, कसाई खाने, पासपोर्ट और जेल-सब शामिल हैं। इसमें विधवा विवाह को मान्यता दी गई है और विशेष परिस्थितियों में तलाक को भी।" वर्तमान में इन विषयों कि क्या स्थिति है? अपनी पसंद के किन्हीं दो-तीन विषयों पर लिखिए।

उत्तर

विवाह और तलाक
विवाह एक ऐसे रिश्ते का नाम है जिसमें दो परिवारों व दो व्यक्तियों का जीवन आपस में जुड़ता है। विवाह के द्वारा दो व्यक्ति अपनी युवावस्था की अल्हड़ता को छोड़कर दांपत्य जीवन में प्रवेश करते हैं और नई ज़िम्मेदारियों को उठाते हैं। विवाह में जहाँ दो व्यक्तियों के जीवन की डोर आपस में जुड़ जाती है उसी तरह दोनों परिवारों का समन्वय उनको नए रिश्तों में भी बाँधता है जिससे उनके कर्त्तव्य और ज़िम्मेदारियाँ दुगुनी हो जाती हैं। विवाह के पश्चात् एक लड़की एक नए घर में प्रवेश करती है, नए परिवेश में स्वयं को ढ़ालती है व उस परिवार के सदस्यों से नए सम्बन्ध स्थापित करती है। यह सब विवाह में संभव है। इसी तरह से एक लड़के को भी दूसरे परिवार के लिए नए सिरे से शुरूआत करनी होती है। पहले, विवाह में औरतों पर बहुत ज़िम्मेदारियों का दबाव बना रहता था क्योंकि ज़्यादातर औरतें अशिक्षित थीं इसलिए वह घर को संभालती थीं। उनके लिए उनका परिवार, उनके बच्चे, उनका भविष्य ही उनका लक्ष्य तथा उद्देश्य हुआ करता था। वह अपना सारा जीवन इसी में समर्पित कर देती थी क्योंकि भारतीय समाज पुरूष प्रधान समाज रहा है। उसकी स्थिति इसकी उलटी थी बाहर जाकर नौकरी करना व हर महीने अपनी आय से घर का खर्चा चलाना उनका कर्त्तव्य बस यहीं तक निहित था। परन्तु समय के साथ औरतों की स्थिति में भी बदलाव आने लगा। जहाँ घर-परिवार को अपना सर्वस्व सौंपकर वह इसमें आलौकिक सुख मानती थी। अब शिक्षित होने के कारण उनके उद्देश्य व सुखों में अंतर आना आरंभ हो गया। अब वो पुरूषों के बराबर चलकर उनकी ज़िम्मेदारियों में बराबर का साथ देने लगी इस कारण उनका उद्देश्य उनका करियर हो गया। अब उनके लिए अपनी माताओं की तरह घर-परिवार महत्वपूर्ण नहीं रहा। वह स्वयं के लिए एक नई मंज़िल चुन चुकी थीं इसी कारण समाज में तलाक की प्रवृति आरंभ होने लगी। जहाँ वह पहले पुरूष द्वारा की गई अवहेलना व प्रताड़ना को चुपचाप सहन कर जाती थीं, अब बुलंद आवाज़ में उसका विरोध करने लगी। समय की व्यस्तता ने भी घर पर समय ना देने के कारण समाज में तलाक की प्रवृति पर ज़ोर दिया है। व्यस्तता के कारण आपसी रिश्तों में खटास घुलने लगी है और शिकायतों के दौर बढ़ने लगे। पहले के दौर में तलाक बहुत ही बुरा माना जाता था और मुश्किल से ही लोग इसके लिए तैयार होते थे। परन्तु आज के प्रगतिशील समय में यह आम बात होती जा रही है। पहले तलाक लेने से पहले दस बार सोचा जाता था परन्तु आज छोटी-छोटी बातों में तलाक के लिए तैयार हो जाना विवाह जैसे रिस्ते के लिए बुरा दौर है। समाज में बढ़ती इस कुरीति ने विवाह के प्रति लोगों में भय उत्पन्न कर दिया है। हमें चाहिए कि हम सजग रहकर समान रूप से अपने रिश्तों का निर्वाह करें व तलाक जैसी कुरीति को समाज की जड़ से उखाड़ फेंके। तभी एक उज्जवल भविष्य और सभ्य समाज की ओर बढ़ा जा सकता है।

विधवा विवाह
प्राचीन काल से हमारे समाज में विधवा विवाह को उचित नहीं माना गया है। उस समय के अनुसार एक स्त्री के पति की मृत्यु हो जाने के पश्चात् सादा जीवन व्यतीत करना, उस स्त्री के लिए सही माना जाता था। उसके पति की मृत्यु के पश्यात् या तो उसे सती होना पड़ता था या फिर उसे समाज का परित्याग करना पड़ता था। उनको हरिद्वार या वाराणसी आश्रमों में साध्वी का जीवन व्यतीत करने के लिए छोड़ दिया जाता था। उनको कैसा जीवन जीना चाहिए इसके लिए नियमों की पूरी सूची उन्हें थमा दी जाती थी। उस समय के समाज में विधवाएँ अधिक संख्याओं में होती थीं। इसका मुख्य कारण था- बालावस्था में उनका विवाह जिसके कारण अकस्मात् दुर्घटना या बीमारी से उनके पति की मृत्यु उन्हें बचपन में ही विधवा बना देती थी। बालपन से ही विधवा जीवन जीने के लिए उन्हें झोंक दिया जाता था। समाज में उनकी स्थिति दयनीय बनी हुई थी। उनके उत्थान के लिए कई महापुरूषों ने आगे बढ़कर कार्य किए हैं। यहाँ तक चाणक्य द्वारा रचित "चाणक्य शास्त्र" में भी विधवा विवाह की बात कही गई है। परन्तु राजाराम मोहन राय ने विधवा विवाह के विरुद्ध महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने सती प्रथा को रोका और विधवा विवाह पर ज़ोर दिया। इसमें उनका अंग्रेज़ों ने भी साथ दिया और सती प्रथा के उन्मूलन और पुन: विधवा विवाह को मान्यता दी। राजाराम मोहन राय के अथक प्रयास के कारण ही आज समाज में विधवा विवाह को मान्यता प्राप्त है, इसे बुरी नज़रों से नहीं देखा जाता। आज समाज में पहले की तुलना में विधवाएँ कम ही देखी जाती है। इसका मुख्य कारण समाज का शिक्षित होना है। अब समाज में बाल विवाह देखने को बहुत कम ही मिलते हैं। यह प्रथा किसी गाँव में ही देखने को मिलती है, सरकार द्वारा लड़की व लड़के की उम्र 18 से 19 वर्ष तक रखी गई है। इससे कम उम्र के विवाह को करने पर परिवार वालों को सरकार द्वारा दंडित किया जाता है। समाज का शिक्षित होना जैसे लड़कियों के लिए वरदान सिद्ध हुआ है। अब उनकी स्थिति मज़बूत हुई है, अब वे शिक्षित हैं और उन्हें अपनी स्वेच्छा से विवाह करने का अधिकार प्राप्त है। इन सबके कारण समाज में विधवाओं का स्तर कम हुआ है। यह सही कहा जाता है कि प्रगतिशील समाज सदैव सबके लिए कल्याणकारी होता है। हमें चाहिए हम अपने विचारों को इस प्रगति की गति के साथ मिलाएँ ताकि समाज की स्थिति मज़बूत बन जाए। उन महापुरूषों का भी धन्यवाद करना चाहिए जिनके भरसक प्रयास ने स्त्रियों की दशा सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

14. आज़ादी से पहले किसानों की समस्याएँ निम्नलिखित थीं-"गरीबी, कर्ज़, निहित स्वार्थ, ज़मींदार, महाजन, भारी लगान और कर, पुलिस के अत्याचार..." आपके विचार से आजकल किसानों की समस्याएँ कौन-कौन सी हैं?

उत्तर

आज़ादी से पहले जो समस्याएँ निहित थीं उनमें से कई समस्याओं का उन्मूलन हो गया है। पर परिस्थितियाँ आज भी नहीं बदली है। आज के किसानों को उसी प्रकार विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वो समस्याएँ इस प्रकार हैं -

→ कल की तुलना में किसान आज भी गरीब हैं, खेती करने के लिए आवश्यक चीजें कर पाना उसके बस में नहीं हैं। पहले हल से खेतों को जोता जाता था, परन्तु आज बोने, कटाई व सफ़ाई के लिए अत्य आधुनिक मशीनें आ गई हैं जिसके अभाव में पैदावार पर बुरा असर पड़ रहा है और उसकी स्थिति जस की तस है।
→ पहले की तुलना में जलवायु परिवर्तन से उसकी पैदावार को गहरा नुकसान हुआ है। सही समय पर वर्षा ना हो पाना जिसके कारण सूखा पड़ जाना या फिर अत्याधिक वर्षा के कारण खड़ी फसल खराब हो जाना जैसे कारणों से किसानों के लिए विकट समस्याएँ उत्पन्न होने लगी हैं।
→ सिंचाई के साधनों के अभाव के कारण किसानों की फसल के लिए पर्याप्त मात्रा में जल का प्रबन्ध न होने के कारण पैदावार को हानि पहुँचती है। मौसम पर निर्भर रहकर वह अपनी पैदावार नहीं बढ़ा सकता है।
→ अपनी पैदावार को बढ़ाने के लिए उसे उन्नत बीज नहीं मिल पा रहे हैं।
→ हर साल अपनी पैदावार को बढ़ाने के लिए किसानों को रूपयों की ज़रूरत पड़ती है। वह इसके लिए दिन-प्रतिदिन कर्ज़ लेता रहता है और धीरे-धीरे कर्ज़ का दबाव इतना बढ़ जाता है कि मजबूरन उन्हें कोई गलत फैसला भी लेना पड़ जाता है। कई बार तो यह भी देखा गया है कि किसान आत्महत्या भी कर लेते हैं। कर्ज़ का बोझ बढ़ते जाना और पैदावार का न के बराबर होना ये सबसे बड़ी समस्या के रूप में उभर कर सामने आया है।
→ सरकार द्वारा किसानों की स्थिति को उभारने के कई प्रयास हुए हैं। परन्तु वे सब प्रयास निरर्थक ही साबित हुए। हर बार जब नई सरकार बनती है वह किसानों से कई वादे करती है परन्तु सरकार बनने के पश्चात् उनके लिए कुछ नहीं करती जिससे उनके वादे मात्र थोथे वादे बनकर रह जाते हैं, किसानों की स्थिति और दयनीय हो जाती है।

15. "सार्वजनिक काम राजा की मर्ज़ी के मोहताज़ नहीं होते, उसे खुद हमेशा इनके लिए तैयार रहना चाहिए।" ऐसे कौन-कौन से सार्वजनिक कार्य हैं जिन्हें आप बिना किसी हिचकिचाहट के करने को तैयार हो जाते हैं?

उत्तर

ऐसे कई काम हैं जो हम बिना सरकार के कर सकते हैं वो इस प्रकार हैं -
→ किसी की मदद करने के लिए हमें सरकार की आवश्यकता की ज़रूरत नहीं होती फिर चाहे वह मनुष्य की हो या जानवर की इसे हम स्वयं कर सकते हैं।
→ समाज में गरीब-बच्चों को पढ़ाने के लिए हमें सरकार का मुँह ताँकने की आवश्यकता नहीं है। हम चाहे तो थोड़ा सा समय निकालकर उनको पढ़ाई के लिए प्रेरित कर उनमें शिक्षा का प्रसार कर सकते हैं।
→ सरकार के रवैये के प्रति सजगता- यदि हमें लगे कि हमने जो सरकार चुनी हैं वह सही तौर पर जनता के विकास के कार्यों को नहीं कर रही है तो हम इसके विरूद्ध आवाज़ उठा सकते हैं और एक नई सरकार बना सकते हैं चाणक्य ने भी लिखा है कि यदि कोई राजा अनीति करता है तो उसकी प्रजा को यह अधिकार है कि उसे हराकर किसी दूसरे को उसकी जगह बैठा दें। यह हमारा अधिकार व कर्तव्य है।
→ महिलाओं की दशा सुधारने का कार्य- ये ऐसा कार्य है जिसे समाज का हर व्यक्ति कर सकता है। यदि राजा राम मोहन राय जैसे लोग सती प्रथा व पुन: विधवा विवाह के लिए कदम नहीं उठाते तो आज समाज में स्त्रियों की दशा नहीं सुधरती। हमें चाहिए स्त्रियों की शिक्षा व अधिकार सम्बन्धी कार्यों के लिए हम स्वयं कुछ करें।
→ अपने देश, राज्य या मोहल्ले को स्वच्छ व सुंदर बनाए रखने के लिए हम साथ कार्य कर सकते हैं। जगह-जगह वृक्षों का रोपण कर सकते हैं, गली-मोहल्ले की सफ़ाई की व्यवस्था के लिए स्वयं कार्यरत हो सकते हैं। हमारे सहयोग से ही देश को स्वच्छ व सुंदर बनाया जा सकता है। इसमें सरकार के द्वारा कदम उठाने का इंतज़ार करना हमारा, हमारे देश के लिए कर्त्तव्यों की तरफ़ से आँख मूँदना होगा।
→ किसी अकस्मात् दुर्घटना पर मिलजुलकर हाथ बँटाना हमारा कर्त्तव्य है, ये कर्त्तव्य बिना किसी परेशानी के किया जा सकता है, जैसे- दुर्घटना स्थल पर घायलों की मदद करना, उनके लिए उपचार सम्बन्धी साधनों को जुटाना आदि।

16. महान सम्राट अशोक ने घोषणा की कि वह प्रजा के कार्य और हित के लिए 'हर स्थान पर और हर समय' हमेशा उपलब्ध हैं। हमारे समय के शासक/लोक-सेवक इस कसौटी पर कितना खरा उतरते हैं? तर्क सहित लिखिए।

उत्तर

हमारे समय के शासक या लोकनेता पहले की तुलना में बिल्कुल नाकारा साबित हुए हैं। पहले के शासक प्रजा के हितों के लिए स्वयं के हित को नहीं मानते थे, उनके लिए जनता सर्वोपरि थी परन्तु आज का नेता इसके बिल्कुल विपरीत है। सत्ता में आना उसके लिए जैसे अपना स्वार्थहित है। वो कभी जनता की समस्याओं के लिए उपलब्ध नहीं होते। अपितु, उन्हें किसी उद्घाटन समारोह या चुनाव प्रचार के समय वोट माँगते देखा जा सकता है। वो जनता से तारीफें तो बटोरना चाहते हैं परन्तु उनकी समस्याओं को सुलझाने व सुनने के लिए उनके पास समय नहीं है। समाज में व्याप्त दो चार समस्योओं का बल निकालकर वह अपने कर्तव्यों को पूरा मान लेते हैं और जो महत्वपूर्ण जटिल समस्याएँ होती हैं, उसे ज्यों का त्यों छोड़ देते हैं। उनको चुनावी घोषणा-पत्र में तो गरीबी उन्मूलन, महिलाओं को आरक्षण, शिक्षा के बेहतर सुविधाए, बेरोजगारी उन्मूलन आदि समस्याओं को दर्शाया जाता है। परन्तु सरकार बनने पर यह सारी समस्याओं पर ध्यान न देना उनका स्वभाव बन गया है। सत्ता पाते ही देश को दीमक की तरह अंदर ही अंदर चाट डालते हैं और जनता के लिए केवल टूटी अर्थव्यवस्था छोड़ जाते हैं। आज के नेता जनता के लिए आदर्श के स्थान पर एक घृणा का पात्र बनकर रह गया है। वो समाज में एक आदर्श के रूप में स्वयं को स्थापित नहीं कर पा रहें। इसका परिणाम है कि लोग राजनीति व राजनेताओं से बचकर रहना चाहते हैं।

17. औरतों के परदे में अलग -थलग रहने से सामाजिक जीवन के विकास में रूकावट आई।' कैसे?

उत्तर

परदा प्रथा ने औरतों के विकास को पूर्णत: समाप्त ही कर दिया था। माना जाता है इस प्रथा का विकास मुगल-काल से आरंभ हुआ था। आरंभ में तो इसे सिर्फ़ आदर भाव के रूप में लिया गया था जो सिर्फ़ बड़े राजघरानों व मुगलघरानों तक सीमित था। परन्तु धीरे-धीरे इस प्रथा ने पूरे समाज में अपनी जड़ पकड़ ली। परिणामस्वरूप औरतों की स्थिति समाज में दयनीय हो गई। इससे उनके सामाजिक जीवन के विकास में रूकावटें आनी आरंभ हो गई।
औरतें जहाँ पहले सामाजिक कार्यों में सहजता पूर्वक भाग ले पाती थीं अब वह इस प्रथा पर दबकर रह गईं। उनका पुरूषों के आगे बिना पर्दे के आना बुरा माना जाने लगा जिसने उनकी स्वतंत्रता पर अंकुश लगा दिया और उसे समाज से काट कर अलग कर दिया गया। उनकी शिक्षा पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ा। अब उन्हें पर्दे में ही रहने की हिदायतें लागू हो गई, कारणवश वह शिक्षा प्राप्त करने के लिए बाहर जाने से रोक दी गई। इसके फलस्वरूप वह अशिक्षित रह गईं। समाज में सिर्फ़ पुरूषों को ही शिक्षा प्राप्त करने की आज़ादी प्राप्त थी। इससे उनके मानसिक विकास का भी ह्रास हुआ। अब उनकी प्रतिभा व्यंजनों को पकाने व घर के साजों-समान को बनाने तक सीमित रह गई। उनकी प्रतिभा का सही विकास नहीं हो पाया। फलस्वरूप उनके सामाजिक जीवन के विकास में पर्दा प्रथा सबसे बड़ी रूकावट बनी।

18. मध्यकाल के इन संत रचनाकारों की अनेक रचनाएँ अब तक आप पढ़ चुके होंगे। इन रचनाकारों की एक-एक रचना अपनी पसंद से लिखिए-
(क) अमीर खुसरो
(ख) कबीर
(ग) गुरू नानक
(घ) रहीम

उत्तर

(क) अमीर खुसरो - दीवान (काव्य संग्रह), अमीर खुसरो की पहेलियाँ
(ख) कबीर - बीजक
(ग) गुरू नानक - गुरू ग्रंथ साहिब
(घ) रहीम - रहीम के दोहे


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