पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और सार - एक कुत्ता और एक मैना क्षितिज भाग - 1
पाठ का सारयह निबंध 'गुरुदेव' रवीन्द्रनाथ टैगोर जी की व्यक्तिव को उजागर करते हुए लिखा गया है। लेखक ने अपने और गुरुदेव के बीच के बातचीत द्वारा उनके स्वभाव में विद्यमान गुणों का परिचय दिया है। इसमें रवीन्द्रनाथ की कविताओं और उनसे जुड़ी स्मृतियों के ज़रिए गुरुदेव की संवेदनशीलता, आंतरिक विराटता और सहजता के चित्र तो उकेरे ही गए हैं तथा पशु-पक्षियों के संवेदनशील जीवन का भी बहुत सूक्ष्म निरीक्षण है। इस पाठ में न केवल पशु-पक्षियों के प्रति मानवीय प्रेम प्रदर्शित है, बल्कि पशु-पक्षियों से मिलने वाले प्रेम, भक्ति, विनोद और करुणा जैसे मानवीय भावों का भी विस्तार है।
यह निबंध हमें जीव-जंतुओं से प्रेम और स्नेह करने की प्रेरणा देता है।
लेखक परिचय
हजारीप्रसाद दिवेदी
इनका जन्म सन 1907 में गांव आरत दुबे का छपरा, जिला बलिया (उत्तर प्रदेश) में हुआ। उन्होंने उच्च शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविधालय से प्राप्त की तथा शान्ति निकेतन, काशी हिन्दू विश्वविधालय एवं पंजाब विश्वविधालय में अध्यापन कार्य किया।
प्रमुख कार्य
कृतियाँ - अशोक के फूल, कुटज, कल्पलता, बाणभट्ट की आत्मकथा, पुनर्नवा, हिंदी साहित्य के उद्भव और विकास, हिंदी साहित्य की भूमिका, कबीर।
पुरस्कार - साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्मभूषण।
कठिन शब्दों के अर्थ
• क्षीणवपु – कमजोर शरीर
• प्रगल्भ- वाचाल
• परितृप्ति – पूरी तरह संतोष प्राप्त करना
• प्राणपण – ज़ान की बाज़ी
• परितृप्ति – पूरी तरह संतोष प्राप्त करना
• प्राणपण – ज़ान की बाज़ी
• मर्मभेदी – दिल को लगने वाला
• तितल्ले – तीसरी मंज़िल पर
• अभियोग – आरोप
• ईषत – आंशिक रूप से
• ईषत – आंशिक रूप से
• निर्वास्न – देश निकाला
• बिडाल – बिलाव
• बिडाल – बिलाव
• मुखातिब – संबोधित होकर
• सर्वव्यापक – सब में रहने वाला
• सर्वव्यापक – सब में रहने वाला
• अपरिसीम – असीमित
• यूथभ्रष्ट – समुह से निकला हुआ
• यूथभ्रष्ट – समुह से निकला हुआ
• धृष्ट – लज्जा रहित
• उत्तरायण – शांतिनिकेतन में उत्तर दिशा की ओर बना रवींद्रनाथ टैगोर का एक निवास-स्थान
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