पठन सामग्री और नोट्स (Notes)| पाठ 6 - जनसंख्या भूगोल (Jansankhya) Bhugol Class 9th
इस अध्याय में विषय• परिचय
• जनसंख्या का आकार एवं वितरण
→ घनत्व के आधार पर भारत के जनसंख्या वितरण
• जनसंख्या वृद्धि
→ जनसंख्या वृद्धि की प्रक्रिया
• आयु संरचना
• लिंग अनुपात
• साक्षरता दर
• व्यावसायिक संरचना
• स्वास्थ्य
• किशोर जनसंख्या
• राष्ट्रीय जनसंख्या नीति
• राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 और किशोर
परिचय
• मानव, संसाधनों का निर्माण एवं उपयोग तो करते हैं, वे स्वयं भी विभिन्न गुणों वाले संसाधन होते हैं।
• सामाजिक अध्ययन में जनसंख्या एक आधारी तत्त्व है। यह एक सन्दर्भ बिंदु है जिससे दुसरे तत्त्वों का अवलोकन किया जाता है तथा उसके अर्थ एवं महत्व ज्ञात किए जाते हैं।
• मानव पृथ्वी के संसाधनों का उत्पादन व उपभोग करता है इसलिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि एक देश की जनसंख्या, उसका आकार तथा वितरण कैसा है।
• एक निश्चित समयांतराल में जनसंख्या की आधिकारिक गणना, ‘जनगणना’ कहलाती है। भारत में सबसे पहले 1872 में जनगणना की गई थी।
• भारतीय जनगणना हमारे देश की जनसंख्या से संबंधित जानकारी हमें प्रदान करती है। जनगणना से प्राप्त आंकड़ों से जनसंख्या से संबंधित तीन प्रमुख प्रश्नों पर विचार किया जा सकता है :
→ जनसंख्या का आकार एवं वितरण
→ जनसंख्या वृद्धि एवं जनसंख्या परिवर्तन की प्रक्रिया
→ जनसंख्या के गुण या विशेषताएँ
जनसंख्या का आकार एवं वितरण
• मार्च 2001 तक भारत की जनसंख्या 10,280 लाख थी जो कि विश्व की कुल जनसंख्या का 16.7 प्रतिशत थी।
• 2001 की जनगणना के अनुसार देश की सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य उत्तर प्रदेश है जहाँ की कुल आबादी 1,660 लाख है।
• दूसरी ओर हिमालय क्षेत्र के राज्य, सिक्किम की आबादी केवल 5 लाख ही है तथा लक्षद्वीप में केवल 60 हजार लोग निवास करते हैं।
• भारत की लगभग आधी आबादी केवल पाँच राज्यों में निवास करती है, वे राज्य हैं- उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल एवं आन्ध्र प्रदेश।
घनत्व के आधार पर भारत में जनसंख्या वितरण
• प्रति इकाई क्षेत्रफल में रहने वाले लोगों की संख्या को जनसंख्या घनत्व कहते हैं।
• 2001 में भारत का जनसंख्या घनत्व 324 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी. था जो भारत को विश्व की घनी आबादी वाले देशों में से एक बनाता है।
• पश्चिम बंगाल का जनसंख्या घनत्व 904 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी. है वहीँ अरूणाचल प्रदेश में यह 13 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी. है।
• पर्वतीय क्षेत्र तथा प्रतिकूल जलवायवी अवस्थाएँ इन क्षेत्रों जैसे- मेघालय, उड़ीसा आदि की विरल जनसंख्या के लिए उत्तरदायी हैं।
• पहाड़ी, कटे-छंटे एवं पथरीले भू-भाग, मध्यम से कम वर्षा, छिछली एवं कम उपजाऊ मिट्टी के कारण असम एवं अधिकतर प्रायद्वीपीय राज्यों का जनसंख्या घनत्व मध्यम है।
• उत्तरी मैदानी भाग एवं दक्षिण में केरल का जनसंख्या घनत्व बहुत अधिक है क्योंकि यहाँ समतल मैदान एवं उपजाऊ मिट्टी पाई जाती है तथा पर्याप्त मात्रा में वर्षा होती है।
जनसंख्या वृद्धि
• जनसंख्या वृद्धि का अर्थ होता है, किसी विशेष समय अन्तराल में, जैसे 10 वर्षों के भीतर, किसी देश/राज्य के निवासियों की संख्या में परिवर्तन।
• इस प्रकार के परिवर्तन को दो प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है :
→ सापेक्ष वृद्धि द्वारा
→ प्रति वर्ष होने वाले प्रतिशत परिवर्तन के द्वारा
• प्रत्येक वर्ष या एक दशक में बढ़ी जनसंख्या, कुल संख्या में वृद्धि का परिणाम है| पहले की जनसंख्या (जैसे 1991 की जनसंख्या) को बाद की जनसंख्या (जैसे 2001 की जनसंख्या) से घटा कर इसे प्राप्त किया जाता है, इसे निरपेक्ष वृद्धि कहा जाता है।
• जनसंख्या वृद्धि दर का अध्ययन प्रति वर्ष प्रतिशत में किया जाता है, जैसी प्रति वर्ष 2 प्रतिशत वृद्धि की दर का अर्थ है कि दिए हुए किसी वर्ष की मूल जनसंख्या में प्रत्येक 100 व्यक्तियों पर 2 व्यक्तियों की वृद्धि। इसे वार्षिक वृद्धि दर कहा जाता है।
• भारत की आबादी 1951 में 3,610 लाख से बढ़कर 2001 में 10,280 लाख हो गई है।
• किन्तु 1981 से वृद्धि दर धीरे-धीरे कम होने लगी। इस दौरान जन्म दर में तेजी से कमी आई। भारत की आबादी बहुत अधिक है, इसलिए जब विशाल जनसंख्या में कम वार्षिक दर लगाया जाता है तब इसमें सापेक्ष वृद्धि बहुत अधिक होती है।
• जनसंख्या की इस वृद्धि दर पर, 2045 तक भारत, चीन को पीछे छोड़ते हुए विश्व के सबसे अधिक आबादी वाला देश बन सकता है।
जनसंख्या वृद्धि/परिवर्तन की प्रक्रिया
• जनसंख्या में होने वाले परिवर्तन की तीन प्रमुख प्रक्रियाएँ हैं- जन्म दर, मृत्यु दर एवं प्रवास।
• एक वर्ष में प्रति हजार व्यक्तियों में जितने जीवित बच्चों का जन्म होता है, उसे जन्म दर कहते हैं। भारत में हमेशा जन्म दर, मृत्यु दर से अधिक होता है।
• एक वर्ष में प्रति हजार व्यक्तियों में मरने वालों की संख्या को ‘मृत्यु दर’ कहा जाता है। मृत्यु दर में तेज गिरावट
भारत की जनसंख्या में वृद्धि की दर का मुख्य कारण है।
• 1980 तक उच्च जन्म दर एवं मृत्यु दर में लगातार गिरावट के कारण जन्म दर तथा मृत्यु दर में काफी बड़ा अंतर आ गया एवं इसके कारण जनसंख्या वृद्धि दर अधिक हो गई। लेकिन 1981 से धीरे-धीरे जन्म दर में भी गिरावट आनी शुरू हुई जिसके परिणामस्वरूप जनसंख्या वृद्धि दर में भी गिरावट आई।
• लोगों का एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में चले जाने को प्रवास कहते हैं| प्रवास आन्तरिक (देश के भीतर) या अंतर्राष्ट्रीय (देशों के बीच) हो सकता है।
• आंतरिक प्रवास जनसंख्या के आकार में कोई परिवर्तन नहीं लाता है, लेकिन यह एक देश के भीतर जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करता है।
• भारत में अधिकतर प्रवास ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों की ओर होता है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में ‘अपकर्षण’ कारक प्रभावी होते हैं। ये ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी एवं बेरोजगारी की प्रतिकूल अवस्थाएँ हैं तथा नगर का अभिकर्षण’ प्रभाव रोजगार में वृद्धि एवं अच्छे जीवन स्तर को दर्शाता है।
• प्रवास का प्रभाव :
→ जनसंख्या के आकार को प्रभावित करता है।
→ उम्र एवं लिंग के दृष्टिकोण से नगरीय एवं ग्रामीण जनसंख्या की संरचना को प्रभावित करता है।
• भारत में ग्रामीण-नगरीय प्रवास के कारण शहरों तथा नगरों की जनसंख्या में नियमित वृद्धि हुई है।
आयु संरचना
• किसी देश में, जनसंख्या की आयु संरचना वहाँ के विभिन्न आयु समूहों के लोगों की संख्या को बतलाता है।
• बच्चे, व्यस्क एवं वृद्धों की संख्या एवं प्रतिशत, किसी भी क्षेत्र की आबादी के सामाजिक एवं आर्थिक ढाँचे की निर्धारक होती है।
• किसी राष्ट्र की आबादी को सामान्यतः तीन वर्गों में बाँटा जाता है :
→ बच्चे (सामान्यतः 15 वर्ष से कम)- ये आर्थिक रूप से उत्पादनशील नहीं होते हैं तथा इनको भोजन, वस्त्र एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाएँ उपलब्ध कराने की आवश्यकता होती है। भारत की कुल आबादी में 34.4 प्रतिशत बच्चे हैं।
→ व्यस्क (15 से 59 वर्ष)- ये आर्थिक रूप से उत्पादनशील तथा जैविक रूप से प्रजननशील होते हैं। यह जनसंख्या का कार्यशील वर्ग है। कुल आबादी का 58.7प्रतिशत व्यस्क वर्ग है।
→ वृद्ध (59 वर्ष से अधिक)- ये आर्थिक रूप से उत्पादनशील या अवकाश प्राप्त हो सकते हैं। ये स्वैच्छिक रूप से कार्य कर सकते हैं, लेकिन भर्ती प्रक्रिया के द्वारा इनकी नियुक्ति नहीं होती है। कुल आबादी का 6.9 प्रतिशत वृद्ध वर्ग है।
लिंग अनुपात
• प्रति 1000 पुरूषों पर महिलाओं की संख्या को लिंग अनुपात कहा जाता है।
• महत्व- यह जानकारी किसी दिए गए समय में, समाज में पुरूषों एवं महिलाओं के बीच समानता की सीमा को मापने के लिए एक महत्वपूर्ण सामाजिक सूचक है।
• जनगणना वर्ष के साथ लिंग अनुपात :
जनगणना वर्ष
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लिंग अनुपात
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1951
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956
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1961
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951
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1971
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930
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1981
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934
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1991
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929
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2001
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93
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साक्षरता दर
• 2001 की जनगणना के अनुसार एक व्यक्ति जिसकी आयु 7 वर्ष या उससे अधिक है जो किसी भी भाषा को समझकर लिख या पढ़ सकता है उसे साक्षर की श्रेणी में रखा जाता है। साक्षरता स्तर में कमी आर्थिक प्रगति में एक गंभीर बाधा है।
• 2001 की जनगणना के अनुसार देश की साक्षरता दर 64.84 प्रतिशत है, जिसमें पुरूषों की साक्षरता दर 75.26 प्रतिशत एवं महिलाओं की 53.67 प्रतिशत है।
व्यावसायिक संरचना
• विभिन्न प्रकार के व्यवसायों के अनुसार किये गए जनसंख्या के वितरण को व्यावसायिक संरचना कहते हैं।
• व्यवसायों को सामान्यतः तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है :
→ प्राथमिक : इनमें कृषि, पशुपालन, वृक्षारोपण एवं मछली पालन तथा खनन आदि क्रियाएँ शामिल हैं।
→ द्वितीयक : इसमें उत्पादन करने वाले उद्योग, भवन एवं निर्माण कार्य आते हैं।
→ तृतीयक : इसमें परिवहन, संचार, वाणिज्य, प्रशासन तथा सेवाएँ शामिल हैं।
• विकसित देशों में द्वितीयक एवं तृतीयक क्रियाकलापों में कार्य करने वाले लोगों की संख्या का अनुपात अधिक होता है। जबकि विकासशील देशों में प्राथमिक क्रियाकलापों में कार्यरत लोगों का अनुपात अधिक होता है।
• भारत में, कुल जनसंख्या का 64 प्रतिशत भाग केवल कृषि कार्य करता है। द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में कार्यरत लोगों की संख्या का अनुपात क्रमशः 13 तथा 20 प्रतिशत है।
• वर्तमान समय में बढ़ते हुए औद्योगीकरण एवं शहरीकरण में वृद्धि होने के कारण द्वितीय एवं तृतीय क्षेत्रों में व्यावसायिक परिवर्तन हुआ है।
स्वास्थ्य
• सवास्थ्य जनसंख्या की संरचना का एक प्रमुख घटक है जो कि विकास की प्रक्रिया को प्रभावित करता है।
• भारत की जनसंख्या के स्वास्थ्य स्तर में महत्वपूर्ण सुधार हुआ है। मृत्यु दर जो 1951 में (प्रति हजार) 25 थी, 2001 में घटकर (प्रति हजार) 8.1 रह गई है। औसत आयु जो कि 1951 में 36.7 वर्ष थी, बढ़कर 2001 में 64.6 वर्ष हो गई है।
• स्वास्थ्य स्तर में सुधार के कारण :
→ जन स्वास्थ्य में सुधार।
→ संक्रमण बीमारियों से बचाव।
→ रोगों के इलाज में आधुनिक तकनीकों का प्रयोग।
• भारत के लिए स्वास्थ्य का स्तर एक मुख्य चिंता का विषय है, क्योंकि :
→ प्रति व्यक्ति कैलोरी की खपत अनुशंसित स्तर से काफी कम है तथा हमारी जनसंख्या का एक बड़ा भाग कुपोषण से प्रभावित है।
→ शुद्ध पीने का पानी तथा मूल स्वास्थ्य रक्षा सुविधाएँ ग्रामीण जनसंख्या के केवल एक-तिहाई लोगों को उपलब्ध है।
किशोर जनसंख्या
• किशोर प्रायः 10 से 19 वर्ष की आयु वर्ग के होते हैं। यह भारत की कुल जनसंख्या का पाँचवाँ भाग है।
• ये भविष्य के सबसे महत्वपूर्ण मानव संसाधन हैं। किशोरों के लिए पोषक तत्त्वों की अवस्थाएँ बच्चों तथा वयस्कों से अधिक होती है।
• भारत में किशोरों को प्राप्त भोजन में पोषक तत्त्व अपर्याप्त होते हैं। बहुत-सी किशोर बालिकाएँ रक्तहीनता से पीड़ित होती हैं।
• शिक्षा के प्रसार तथा इसमें सुधार के द्वारा किशोर बालिकाओं में इन समस्याओं के प्रति जागरूकता बढ़ायी जा सकती है।
राष्ट्रीय जनसंख्या नीति
• परिवारों के आकार को सीमित रखकर एक व्यक्ति के स्वास्थ्य एवं कल्याण में सुधार लाने के लिए भारतीय सरकार ने 1952 में व्यापक परिवार नियोजन कार्यक्रम को प्रारंभ किया।
• परिवार कल्याण कार्यक्रम जिम्मेदार तथा सुनियोजित पितृत्व को बढ़ावा देने के लिए कार्यरत है।
• राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000, कई वर्षों के नियोजित प्रयासों का परिणाम है।
राष्ट्रीय जनसंख्या नीति के उद्देश्य :
• 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान करना।
• शिशु मृत्यु दर को प्रति 1000 में 30 से कम करना।
• व्यापक स्तर पर टीकारोधी बीमारियों से बच्चों को छुटकारा दिलाना।
• लड़कियों की शादी की उम्र को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना।
• परिवार नियोजन को एक जन केन्द्रित कार्यक्रम बनाना।
राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 और किशोर
• राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 ने किशोर/किशोरियों की पहचान जनसंख्या के उस प्रमुख भाग के रूप में की, जिस पर बहुत ध्यान देने की आवश्यकता है।
• पौषनिक आवश्यकताओं के अतिरिक्त इस नीति में अवांछित गर्भधारण और यौन-संबंधों से प्रसारित बीमारियों से किशोर/किशोरियों की संरक्षा जैसी अन्य महत्वपूर्ण आवश्यकताओं पर भी जोर दिया गया है।
• किशोरों के लिए राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 द्वारा शुरू किये गये कार्यक्रमों का उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
→ देर से विवाह और देर से संतानोत्पत्ति को प्रोत्साहित करना।
→ किशोर/किशोरियों को असुरक्षित यौन-संबंध के कुप्रभाव के बारे में शिक्षित करना।
→ गर्भ-निरोधक सेवाओं को पहुँच और खरीद के भीतर बनाना।
→ खाद्य संपूरक और पौषनिक सेवाएँ उपलब्ध करवाना।
→ बाल-विवाह को रोकने के कानूनों को सुदृढ़ करना।