पठन सामग्री और नोट्स (Notes)| पाठ 5 - खनिज तथा ऊर्जा संसाधन भूगोल (khanij tatha urja sansaadhan) Bhugol Class 10th

इस अध्याय में विषय

• खनिज
• खनिजों की उपलब्धता
• खनिजों का वर्गीकरण
→ धात्विक खनिज
→ लौह खनिज
→ अलौह खनिज
→ अधात्विक खनिज
• खनिजों का संरक्षण
• उर्जा संसाधन
• परम्परागत उर्जा के स्रोत
• गैर-परम्परागत उर्जा के स्रोत
• उर्जा संसाधनों का संरक्षण

खनिज

• खनिज एक प्राकृतिक रूप से विद्यमान समरूप तत्व है जिसकी एक निश्चित आंतरिक संरचना है।

• ये प्रकृति में अनेक रूपों में पाए जाते हैं जिसमें कठोर हीरा व नरम चूना तक शामिल है।

खनिजों की उपलब्धता

• सामान्यतः खनिज ‘अयस्कों’ में पाए जाते हैं।
→ किसी भी खनिज में अन्य अवयवों या तत्वों के मिश्रण या संचयन अयस्क कहलाता है।

• खनिज प्रायः निम्न शैल समूहों से प्राप्त होते हैं।

→ आग्नेय तथा कायांतरित चट्टानों में खनिज दरारों, जोड़ों, भ्रंशों व विदरों में मिलते हैं। छोटे जमाव शिराओं के रूप में और बृहत् जमाव परत के रूप में पाए जाते हैं। जैसे- जस्ता, ताँबा, जिंक और सीसा आदि।
→ अनेक खनिज अवसादी चट्टानों के अनेक खनिज संस्तरों में पाए जाते हैं। जैसे- कोयला, जिप्सम, पोटाश, नमक आदि।

→ धरातलीय चट्टानों के अपघटन से भी खनिजों का निर्माण होता है, और चट्टानों के घुलनशील तत्त्वों के अपरदन के पश्चात् अयस्क वाली अवशिष्ट चट्टानें रह जाती हैं। जैसे- बाक्साइट।

→ पहाड़ियों के आधार तथा घाटी तल की रेत में जलोढ़ जमाव के रूप में भी कुछ खनिज पाए जाते हैं, ये निक्षेप ‘प्लेसर निक्षेप’ के नाम से जाने जाते हैं| जैसे- सोना, चाँदी, टिन व प्लेटिनम प्रमुख हैं।

→ महासागरीय जल में भी विशाल मात्रा में खनिज पाए जाते हैं। जैसे- सामान्य नमक, मैग्नीशियम तथा ब्रोमाइन आदि।

• खनिजों का तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
→ धात्विक खनिज
→ अधात्विक खनिज
→ उर्जा खनिज

धात्विक खनिज

• इस खनिज में धातु होते हैं।

• ये तीन प्रकार के होते हैं-

→ लौह खनिज
♠ इनसे लोहा प्राप्त किया जाता है।
♠ लौह खनिज धात्विक खनिजों के कुल उत्पादन मूल्य के तीन-चौथाई भाग का योगदान करते हैं।
♠ ये धातु शोधन उद्योगों के विकास को मजबूत आधार प्रदान करते हैं।

लौह अयस्क

• लौह अयस्क एक आधारभूत खनिज है तथा औद्योगिक विकास की रीढ़ है।

• मैग्नेटाइट सर्वोत्तम प्रकार का लौह अयस्क है जिसमें 70 प्रतिशत लोहांश पाया जाता है।

• हेमेटाइट सर्वाधिक महत्वपूर्ण औद्योगिक लौह अयस्क है जिसका अधिकतम मात्रा में उपभोग हुआ है किन्तु इसमें लोहांश की मात्रा मैग्नेटाइट की अपेक्षा थोड़ी कम होती है। (इसमें लोहांश की मात्रा 50 से 60 प्रतिशत तक पाया जाता है।)

• भारत उच्च कोटि के लोहांशयुक्त लौह अयस्क में धनी है।

• भारत में प्रमुख लौह अयस्क की पेटियाँ हैं-
→ उड़ीसा-झारखण्ड पेटी
→ छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में दुर्गा-बस्तर-चंद्रपुर पेटी
→ कर्नाटक में बेलारी-चित्रदुर्ग, चिकमगलूर-तुमकुर पेटी
→ गोआ तथा महाराष्ट्र राज्य के रत्नागिरी जिले में महाराष्ट्र-गोआ पेटी

मैंगनीज

• इसका मुख्य रूप से इस्पात के विनिर्माण में प्रयोग किया जाता है।
• इसका उपयोग ब्लीचिंग पाउडर, कीटनाशक दवाएँ व पेंट बनाने में किया जाता है।
• भारत में उड़ीसा मैंगनीज का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य हैं।

→ अलौह खनिज

♠ इन खनिजों में लोहा शामिल नहीं होता है।
♠ इनका उपयोग धातु शोधन, इंजीनियरिंग व विद्युत् उद्योगों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
♠ अलौह खनिजों के उदहारण हैं- ताँबा, बाक्साइट, सीसा व सोना।

ताँबा

• घातवर्ध्य, तन्य और ताप सुचालक होने के कारण ताँबे का उपयोग मुख्यतः बिजली के तार बनाने, इलेक्ट्रॉनिक्स और रसायन उद्योगों में किया जाता है।

• मध्य प्रदेश की बालाघाट खदानें, झारखण्ड का सिंहभूम जिला और राजस्थान की खेतड़ी खदानें ताँबे की प्रमुख उत्पादक हैं।

बाक्साइट

• एल्यूमिना क्ले (clay) जैसे दिखने वाला पदार्थ बाक्साइट होता है, जिससे बाद में एल्यूमिनियम प्राप्त किया जाता है।

• एल्यूमिनियम एक महत्वपूर्ण धातु है क्योंकि यह लोहे जैसी शक्ति के साथ-साथ अत्यधिक हल्का एवं सुचालक भी होता है। इसमें अधिक घातवर्ध्यता भी पाई जाती है।

• भारत में बाक्साइट के निक्षेप मुख्यतः अमरकंटक पठार, मैकाल पहाड़ियों तथा विलासपुर-कटनी के पठारी प्रदेश में पाए जाते हैं।

अधात्विक खनिज

• इस खनिज में धातु नहीं होते हैं।

अभ्रक

• अभ्रक एक ऐसा खनिज है जो प्लेटों अथवा पत्रण क्रम में पाया जाता है।

• यह पारदर्शी, काले, हरे, लाल, पीले, अथवा भूरे रंग का होता है।

• इसकी सर्वोच्च परावैद्युत शक्ति, उर्जा ह्रास का निम्न गुणांक, विंसवाहन के गुण और उच्च वोल्टेज की प्रतिरोधिता के कारण अभ्रक विद्युत् व इलेक्ट्रॉनिक उद्योगों में प्रयुक्त होने वाले अपरिहार्य खनिजों में से एक है।

• छोटानागपुर पठार के उत्तरी पठारी किनारा, बिहार-झारखण्ड की कोडरमा-गया-हजारीबाग पेटी अभ्रक के अग्रणी उत्पादक हैं।

• राजस्थान के अजमेर और आंध्र प्रदेश के नेल्लोर अभ्रक पेटी भी देश की महत्वपूर्ण अभ्रक उत्पादक पेटी हैं।

चूना पत्थर

• चूना पत्थर कैल्शियम या कैल्शियम कार्बोनेट तथा मैगनीशियम कार्बोनेट से बनी चट्टानों में पाया जाता है।

• चूना पत्थर सीमेंट उद्योग का एक आधारभूत कच्चा माल होता है और लौह-प्रगलन की भट्टियों के लिए अनिवार्य है।

खनिजों का संरक्षण

खनिजों का संरक्षण क्यों हो?

• खनन योग्य निक्षेप की कुल राशि असार्थक अंश है, अर्थात् भू-पर्पटी का एक प्रतिशत।

• खनिज निर्माण की भूगर्भिक प्रक्रियाएँ इतनी धीमी है कि उनके वर्तमान उपभोग दर की तुलना में उनके पुनर्भरण की दर अपरिमित रूप से थोड़ी है, इसीलिए खनिज संसाधन सीमित तथा अनवीकरणीय योग्य हैं।

• भविष्य में खनिजों की उपलब्धता बनी रहे, इसीलिए खनिजों का संरक्षण करना जरूरी है।

खनिजो का संरक्षण कैसे हो?

• खनिज संसाधनों को सुनियोजित एवं सतत् पोषनीय ढंग से प्रयोग करने के लिए एक तालमेल युक्त प्रयास करना पड़ेगा।

• निम्न कोटि के अयस्कों का कम लागतों पर प्रयोग करने के लिए उन्नत प्रौद्योगिकियों का सतत् विकास करते रहना होगा।

• धातुओं का पुनः चक्रण, रद्दी धातुओं का प्रयोग तथा अन्य प्रतिस्थापनों का उपयोग।

उर्जा संसाधन

• खाना पकाने में, रोशनी व ताप के लिए, गाड़ियों के सञ्चालन तथा उद्योगों में मशीनों के संचालन में उर्जा की आवश्यकता होती है।

• उर्जा का उत्पादन ईंधन खनिजों जैसे- कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम तथा विद्युत् से किया जाता है।

• उर्जा संसाधनों को वर्गीकृत किया जा सकता है :
→ परम्परागत साधन – परम्परागत साधनों में लकड़ी, उपले, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा विद्युत् सम्मिलित हैं।
→ गैर-परम्परागत साधन – गैर-परम्परागत साधनों में सौर, पवन, ज्वारीय, भू-तापीय, बायोगैस तथा परमाणु उर्जा शामिल किये जाते हैं।

उर्जा के परम्परागत साधन

कोयला

→ भारत में कोयला बहुतायात में पाया जाने वाला जीवाश्म ईंधन है।
→ इसका उपयोग उर्जा उत्पादन तथा उद्योगों और घरेलू जरूरतों के लिए उर्जा की आपूर्ति के लिए किया जाता है।
→ कोयले का निर्माण पादप पदार्थों के लाखों वर्षों तक संपीडन से हुआ है।

→ संपीडन की मात्रा, गहराई और दबने समय के आधार पर कोयला अनेक रूपों में पाया जाता है :
♠ पीट- दलदलों में क्षय होते पादपों से पीट उत्पन्न होता है, जिसमें कम कार्बन, नमी की उच्च मात्रा व निम्न ताप क्षमता होती है।
♠ लिग्नाइट- यह एक निम्न कोटि का भूरा कोयला होता है जो मुलायम होने के साथ अधिक नमीयुक्त होता है।
♠ बिटुमिनस- गहराई में दबे तथा अधिक तापमान से प्रभावित कोयले को विटुमिनस कोयले का निर्माण होता है जो वाणिज्यिक प्रयोग में अधिक लोकप्रिय है।
♠ एन्थ्रासाईट- यह सर्वोत्तम गुण वाला कठोर कोयला है।

→ भारत में कोयला गोंडवाना और टरशियरी निक्षेप में पाया जाता है।

→ गोंडवाना कोयले, जो धातुशोधन कोयला है, के प्रमुख संसाधन हैं-
♠ दामोदर घाटी (पश्चिम बंगाल तथा झारखण्ड)।
♠ झरिया, रानीगंज तथा बोकारो।
♠ गोदावरी, महानदी, सोन तथा वर्षा नदी घाटी।
♠ टरशियरी कोयला क्षेत्र उत्तर-पूर्वी राज्यों- मेघालय, असम, अरूणाचल प्रदेश व नागालैंड में पाया जाता है।

पेट्रोलियम

→ यह ताप व प्रकाश के लिए ईंधन, मशीनों को स्नेहक और अनेक विनिर्माण उद्योगों को कच्चा माल प्रदान करता है।

→ तेल शोधन शालाएँ- संश्लेषित वस्त्र, उर्वरक तथा असंख्य रासायन उद्योगों में एक नोडीय बिंदु का काम करती है।
→ भारत में कुल पेट्रोलियम उत्पादन का 63 प्रतिशत भाग मुंबईहाई से, 18 प्रतिशत गुजरात से और 16 प्रतिशत असम से प्राप्त होता है।

प्राकृतिक गैस

→ इसे उर्जा के एक साधन के रूप में तथा पेट्रो रासायन के औद्योगिक कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है।

→ कार्बनडाई-ऑक्साइड के कम उत्सर्जन के कारण प्राकृतिक गैस को पर्यावरण-अनुकूल माना जाता है।

→ कृष्णा-गोदावरी नदी बेसिन, मुम्बईहाई और सान्निध्य क्षेत्र,खम्भात की खाड़ी, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, इन क्षेत्रों में प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार पाए जाते हैं।

विद्युत्

→ आधुनिक विश्व में विद्युत् के अनुप्रयोग बहुत ज्यादा विस्तृत हैं।

→ विद्युत् मुख्यतः दो प्रकार से उत्पन्न की जाती है-
♠ प्रवाही जल से जो हाइड्रो-टरबाइन चलाकर जल विद्युत् उत्पन्न करता है।
♠ अन्य ईंधन जैसे कोयला पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस को जलाने से टरबाइन चलाकर ताप विद्युत् उत्पन्न की जाती है।

→तेज बहते जल से जल विद्युत् उत्पन्न की जाती है।
♠ यह एक नाविकरणीय योग्य संसाधन है।
♠ भारत में अनेक बहुउद्देशीय परियोजनाएँ हैं जो विद्युत् उर्जा उत्पन्न करती हैं ; जैसे- भाखड़ा नांगल, दामोदर घाटी कारपोरेशन और कोपिली हाइडल परियोजना आदि।

→ताप-विद्युत्-कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस के प्रयोग से उत्पन्न की जाती है।
♠ ताप विद्युत् गृह अनवीकरण योग्य जीवाश्मी ईंधन का प्रयोग कर विद्युत् उत्पन्न करते हैं।

गैर-परम्परागत उर्जा के साधन

परमाणु अथवा आणविक उर्जा

→ यह उर्जा अणुओं की संरचना को बदलने से प्राप्त की जाती है।

→ इसका उपयोग विद्युत् उर्जा उत्पन्न करने में किया जाता है।

→ युरेनियम और थोरियम जो झारखण्ड और राजस्थान की अरावली पर्वत श्रृंखलाओं में पाए जाते हैं जिसका प्रयोग परमाणु अथवा आणविक उर्जा के उत्पादन में किया जाता है।

→ केरल में मिलने वाली मोनाजाइट रेत में भी थोरियम की मात्रा पाई जाती है।

सौर उर्जा

→ भारत एक उष्ण-कटिबंधीय देश है इसीलिए यहाँ सौर उर्जा के दोहन की असीम संभावनाएँ हैं।
→ फोटोवोल्टाइक प्रौद्योगिकी द्वारा धूप को सीधे विद्युत् में परिवर्तित किया जाता है।
→ भारत के ग्रामीण तथा सुदूर क्षेत्रों में सौर उर्जा तेजी से लोकप्रिय हो रही है जिसके प्रयोग से ग्रामीण घरों में उपलों तथा लकड़ी पर निर्भरता को न्यूनतम करने में सहायता मिलती है जो पर्यावरण संरक्षण में योगदान देगा और कृषि में भी खाद्य की आपूर्ति होगी।

पवन उर्जा

→ भारत को विश्व में ‘पवन महाशक्ति’ का दर्जा प्राप्त है।

→ भारत में पवन उर्जा फार्म के विशालतम पेटी तमिलनाडु में नागरकोइल से मदुरई तक अवस्थित है।

→ इसके अतिरिक्त आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र तथा लक्षद्वीप में भी महत्वपूर्ण पवन उर्जा फार्म हैं।

→ नागरकोइल और जैसलमेर देश में पवन उर्जा के प्रभावी प्रयोग के लिए किये जाते हैं।

बायोगैस

→ ग्रामीण इलाकों में झाड़ियों, कृषि अपशिष्ट, पशुओं और मानव जनित अपशिष्ट के उपयोग से घरेलू उपभोग हेतु बायोगैस उत्पन्न की जाती है।

→ पशुओं का गोबर प्रयोग करने वाले संयंत्र ग्रामीण भारत में ‘गोबर गैस प्लांट’ के नाम से जाने जाते हैं।

→ बायोगैस किसानों को दो प्रकार से लाभान्वित करते हैं- एक उर्जा के रूप में और दूसरा उन्नत प्रकार के उर्वरक के रूप में।

ज्वारीय उर्जा

→ महासागरीय तरंगों का प्रयोग विद्युत् उत्पादन के लिए किया जा सकता है।

→ भारत में खम्भात की खाड़ी, कच्छ की खाड़ी तथा पश्चिमी तट पर गुजरात में और पश्चिम बंगाल में सुन्दर वन क्षेत्र में गंगा के डेल्टा में ज्वारीय तरंगों द्वारा उर्जा उत्पन्न करने की आदर्श दशाएँ उपस्थित हैं।

भू-तापीय उर्जा

→ पृथ्वी के आन्तरिक भागों से ताप का प्रयोग कर उत्पन्न की जाने वाली विद्युत् को भू-तापीय ऊर्जा कहते हैं।

→जहाँ भी भू-तापीय प्रवणता अधिक होती है वहाँ उथली गहराइयों पर भी अधिक तापमान पाया जाता है।
♠ यह इतना तप्त हो जाता है कि यह पृथ्वी की सतह की ओर उठता है तो यह भाप में परिवर्तित हो जाता है।
♠ इसी भाप का उपयोग टरबाइन को चलने और विद्युत् उत्पन्न करने के लिए जाता है।

→ भू-तापीय ऊर्जा के दोहन के लिए भारत में दो प्रायोगिक परियोजनाओं शुरू की गई हैं-
♠ हिमाचल प्रदेश में मणिकरण के निकट पार्वती घाटी
♠ पूगा घाटी, लद्दाख में

ऊर्जा संसाधनों का संरक्षण

• आर्थिक विकास के लिए ऊर्जा एक आधारभूत आवश्यकता है।

• ऊर्जा के विकास के सतत् पोषनीय मार्ग के विकसित करने की तुरंत आवश्यकता है।

• ऊर्जा के विकास के सतत् पोषनीय मार्ग को विकसित करने के दो तरीके हैं-
→ उर्जा संरक्षण की प्रोन्नति।
→ नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों का बढ़ता प्रयोग।

• इस दिशा में उठाए गए कुछ कदम हैं-
→ यातायात के लिए निजी वाहन की अपेक्षा सार्वजनिक वाहन का उपयोग।
→ प्रयोग न होने पर बिजली बंद करके रखना।
→ बचत करने वाले विद्युत् उपकरणों का प्रयोग।
→ गैर पारम्परिक उर्जा साधनों का प्रयोग।

NCERT Solutons of पाठ 4 - खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

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