NCERT Solutions for Class 11th: पाठ 2 - दोपहर का भोजन अंतरा भाग-1 हिंदी (Dophar ka Bhojan)
पृष्ठ संख्या: 33
प्रश्न - अभ्यास
1. सिद्धेश्वरी ने अपने बड़े बेटे रामचंद्र से मँझले बेटे मोहन के बारे में झूठ क्यों बोला?
उत्तर
सिद्धेश्वरी नहीं चाहती है कि मोहन को लेकर रामचंद्र चिंतित हो| वह उससे झूठ बोलती है कि मोहन किसी मित्र के यहाँ पढ़ने-लिखने गया है| वह यह भी कहती है कि मोहन उसकी बहुत प्रशंसा करता है जिससे रामचंद्र अपना दुःख भूलकर कुछ देर के लिए खुश हो जाए|
2. कहानी के सबसे जीवंत पात्र के चरित्र की दृढ़ता का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए|
उत्तर
कहानी की सबसे जीवंत पात्र है-सिद्धेश्वरी| वह घर की निर्धनता से अच्छी तरह परिचित है| इसके बावजूद भी वह अपना धैर्य नहीं खोती और अभाव में भी घर में शांति बनाए रखती है| वह घर के सभी सदस्यों के आवश्यकताओं का ध्यान रखती है| उसका जीवन परिवार के लिए पूरी तरह समर्पित है| वह परिवार के सदस्यों से उनकी मनचाही बातें करके उन्हें खुश रखने के लिए झूठ भी बोलती है| वह अपनी भूख की परवाह न करके परिवार के सभी सदस्यों को भोजन कराती है| वह किसी के सामने अपना दुःख व्यक्त नहीं करती है| इस प्रकार उसके चरित्र की दृढ़ता कहानी में उसकी भूमिका को जीवंत करता है|
3. कहानी के उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जिनसे गरीबी की विवशता झाँक रही हो|
उत्तर
‘दोपहर का भोजन’ कहानी गरीबी की विवशता को बयान करता है| गर्मियों की दोपहर में खाना बनाते समय सिद्धेश्वरी भूख से बेहाल है परंतु घर में इतना अनाज नहीं है कि वह अपने लिए दो चपातियाँ बना सके| वह पानी पीकर गुजारा करती है| टूटी खाट पर लेटा उसका छोटा बेटा कुपोषण का शिकार है| उसकी टाँगों और बाँहों की हड्डियाँ निकल आई हैं और पेट हाँडी की तरह फूल गया है|
4. ‘सिद्धेश्वरी का एक से दूसरे सदस्य के विषय में झूठ बोलना परिवार को जोड़ने का अनथक प्रयास था’- इस संबंध में आप अपने विचार लिखिए|
उत्तर
सिद्धेश्वरी परिवार को जोड़े रखने के लिए सभी सदस्यों के सामने बारी-बारी से एक दूसरे की झूठी प्रशंसा करती है| उसका मँझला लड़का बिलकुल नहीं पढ़ता और छोटा बेटा हमेशा रोता रहता है| अपने बड़े बेटे रामचंद्र को यह सब बताकर दुखी नही करना चाहती है| इसलिए वह उसके सामने दोनों भाइयों की प्रशंसा करती है, जिससे उन सब के बीच में मधुर संबंध बना रहे| अपने पति के सामने भी बड़े बेटे की प्रशंसा करते हुए कहती है कि वह उनकी हमेशा बड़ाई करता रहता है| वह पिता-पुत्र के बीच के संबंध में आत्मीयता बनाए रखना चाहती है| इस प्रकार सिद्धेश्वरी का एक से दूसरे सदस्य के विषय में झूठ बोलना परिवार को जोड़ने का अनथक प्रयास था|
5. ‘अमरकांत आम बोलचाल की ऐसी भाषा का प्रयोग करते हैं जिससे कहानी की संवेदना पूरी तरह उभरकर आ जाती है|’ कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए|
उत्तर
अमरकांत की कहानियों में आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया गया है| उनकी कहानियाँ भारतीय जीवन के अंतर्विरोधों का सजीव चित्रण करती है| प्रस्तुत कहानी में एक निम्नवर्गीय परिवार की अभावग्रस्तता को दर्शाया गया है| कहानी में परिवार के सभी सदस्य घर के अभाव से परिचित हैं इसलिए वे दोपहर के भोजन में एक या दो रोटी खाकर ही भूखे पेट उठ जाते हैं| कहानी में बोलचाल व सहज भाषा का प्रयोग किया गया है| ‘वह मतवाले की तरह उठी और गगरे से लोटा-भर पानी लेकर गट-गट चढ़ गई|’........‘मोहन कटोरे को मुँह में लगाकर सुड़-सुड़ पी रहा था|’.......‘तदुपरांत एक लोटा पानी लेकर खाने बैठ गई|’ अमरकांत की कथा शैली की सबसे बड़ी विशेषता है- चित्रात्मक का गुण| जैसे- सारा घर मक्खियों से भनभन कर रहा था| आँगन की अलगनी पर एक गंदी साड़ी टँगी थी, जिसमें कई पैबंद लगे हुए थे| दोनों बड़े लड़कों का कहीं पता नहीं था| बाहर की कोठरी में मुंशी जी औंधे मुँह होकर निश्चिन्तता के साथ सो रहे थे, जैसे डेढ़ महीने पूर्व मकान-किराया-नियंत्रण विभाग की क्लर्की से उनकी छंटनी न हुई हो और शाम को उन्हें काम की तलाश में कहीं जाना न हो|
6. रामचंद्र, मोहन और मुंशी जी खाते समय रोटी न लेने के लिए बहाने करते हैं, उसमें कैसी विवशता है? स्पष्ट कीजिए|
उत्तर
रामचंद्र, मोहन और मुंशी चंद्रिका प्रसाद परिवार की वास्तविकता से अच्छी तरह परिचित हैं| दोपहर के भोजन के समय सिद्धेश्वरी के बार-बार आग्रह करने पर भी वे रोटी लेने से मना कर देते हैं| उन्हें पता है कि यदि वे और रोटी ले लेंगे तो घर के दूसरे सदस्यों को भूखा रहना पड़ेगा| इसलिए जहाँ रामचंद्र ने कहा कि उसका पेट भर गया है वहीँ मोहन ने रोटी अच्छी न बनी होने का बहाना किया| मुंशी जी ने भी यह बहाना कर दिया कि नमकीन चीजों से उनका मन ऊब गया है| इस प्रकार तीनों ने कोई-न-कोई बहाना बनाकर रोटी लेने से मना कर दिया| इससे उनकी इस विवशता का पता चलता है कि भूख रहते हुए भी अभाव के कारण वे रोटी लेने से मना कर देते हैं|
7. मुंशी जी तथा सिद्धेश्वरी की असंबद्ध बातें कहानी से कैसे संबद्ध हैं?
उत्तर
दोपहर के भोजन के समय सिद्धेश्वरी तथा मुंशी जी के द्वारा की गई असंबद्ध बातें किसी-न-किसी तरह से कहानी से संबद्ध हैं| मुंशी जी चुपचाप दुबके हुए खा रहे थे, जैसे पिछले दो दिनों से मौन व्रत धारण कर रखा हो और उसको आज तोड़ने वाले हों| तभी सिद्धेश्वरी कहती है कि ‘मालूम होता है, अब बारिश नहीं होगी|’ इस बात पर मुंशी जी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी| लेकिन इस बात का संबंध कहानी से है, क्योंकि यदि वर्षा नहीं होगी तो अगले साल फिर से अन्न की कमी होगी और गरीबी में ही जीवन व्यतीत करना होगा| जब मुंशी जी कहते हैं कि मक्खियाँ बहुत हो गई है तो इसका अर्थ यह है कि वह घर की वास्तविकता से अच्छी तरह परिचित हैं| भूख और गरीबी ने परिवार को निराशा के दलदल में धकेल दिया है| इस प्रकार उनकी बातें कहानी से संबद्ध हैं|
8. ‘दोपहर का भोजन’ शीर्षक किन दृष्टियों से पूर्णतया सार्थक है?
उत्तर
‘दोपहर का भोजन’ कहानी की नायिका सिद्धेश्वरी दोपहर का खाना बनाकर अपने परिवारवालों का इंतजार करती है| सबसे पहले उसका बड़ा बेटा रामचंद्र भोजन करने आता है और अनमने मन से भोजन करके चला जाता है| इसके बाद उसका मँझला बेटा और फिर उसका पति आता है| घर में भोजन के अभाव के कारण सभी कम खाने में ही पेट भरने का बहाना बना कर चले जाते हैं| अंत में सिद्धेश्वरी भी आधी रोटी खाकर ही अपना पेट भरने का प्रयास करती है| इस प्रकार पूरी कहानी में दोपहर के भोजन से संबंधित दृश्य को दर्शाया गया है| इस दृष्टि से ‘दोपहर का भोजन’ शीर्षक पूर्णतया सार्थक है|
9. आपके अनुसार सिद्धेश्वरी के झूठ सौ सत्यों से भारी कैसे हैं? अपने शब्दों में उत्तर दीजिए|
उत्तर
सिद्धेश्वरी के झूठ सौ सत्यों से भारी हैं क्योंकि वह अपने परिवारवालों को एक दूसरे की सच्चाई बताकर दुखी नहीं करना चाहती है| यदि वह अपने बड़े बेटे से यह कहती कि मोहन कहीं बाहर घूमने गया है तो दोनों भाइयों के बीच लड़ाई हो जाती| वह परिवार की आर्थिक स्थिति से अच्छी तरह परिचित थी| उसका बड़ा बेटा रामचंद्र छोटी-मोटी नौकरी कर किसी तरह परिवार का गुजारा कर रहा था| इसलिए वह उससे झूठ बोलती है कि मोहन अपने मित्र के यहाँ पढ़ने गया है| अपने पति से भी वह अपने बड़े बेटे के बारे में झूठ बोलती है ताकि पिता-बेटे के बीच प्रेम बना रहे| इस प्रकार वह झूठ बोलकर सभी सदस्यों को प्रसन्न रखना चाहती है|
10. आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) वह मतवाले की तरह उठी और गगरे से लोटा भर पानी लेकर गट-गट चढ़ा गई|
उत्तर
सिद्धेश्वरी दोपहर का भोजन तैयार करने में लगी हुई है| खाना खाने का समय हो गया है और वह भूख से व्याकुल है| लेकिन वह खाना नहीं खा सकती क्योंकि घर में भोजन का अभाव है और किसी ने अभी तक खाया भी नहीं| यही सोचकर वह अपनी भूख मिटाने के लिए अचानक उठती है और एक लोटा भरकर पानी पी लेती है|
(ख) यह कहकर उसने अपने मँझले लड़के की ओर इस तरह देखा, जैसे उसने कोई चोरी की हो|
उत्तर
सिद्धेश्वरी अपने मँझले बेटे से झूठ बोलती है कि उसका बड़ा भाई उसकी प्रशंसा कर रहा था कि वह पढ़ने-लिखने में होशियार है| मोहन यह बात जानता था की उसकी माँ झूठ बोल रही है| यह सोचकर कि कहीं उसका झूठ पकड़ा न जाए, सिद्धेश्वरी उसकी तरफ ऐसे देखती है जैसे उसने कोई चोरी की हो|
(ग) मुंशी जी ने चने के दाने की ओर इस दिलचस्पी से दृष्टिपात किया, जैसे उनसे बातचीत करनेवाले हों|
उत्तर
मुंशी जी को चुपचाप खाना खाते देख सिद्धेश्वरी उनसे प्रश्न पूछती है| वह उनसे फूफाजी की तबीयत के बारे में भी पूछती है| लेकिन मुंशी जी उसकी बातों को अनसुना कर अपनी भूख मिटाने में लगे हुए थे| इसलिए वह सिद्धेश्वरी की बातों पर ध्यान न देकर अपनी थाली में बचे चने के दालों पर इस प्रकार दृष्टि जमाए हुए थे, जैसे उनसे बात कर रहे हों|
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7. मुंशी जी तथा सिद्धेश्वरी की असंबद्ध बातें कहानी से कैसे संबद्ध हैं?
उत्तर
दोपहर के भोजन के समय सिद्धेश्वरी तथा मुंशी जी के द्वारा की गई असंबद्ध बातें किसी-न-किसी तरह से कहानी से संबद्ध हैं| मुंशी जी चुपचाप दुबके हुए खा रहे थे, जैसे पिछले दो दिनों से मौन व्रत धारण कर रखा हो और उसको आज तोड़ने वाले हों| तभी सिद्धेश्वरी कहती है कि ‘मालूम होता है, अब बारिश नहीं होगी|’ इस बात पर मुंशी जी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी| लेकिन इस बात का संबंध कहानी से है, क्योंकि यदि वर्षा नहीं होगी तो अगले साल फिर से अन्न की कमी होगी और गरीबी में ही जीवन व्यतीत करना होगा| जब मुंशी जी कहते हैं कि मक्खियाँ बहुत हो गई है तो इसका अर्थ यह है कि वह घर की वास्तविकता से अच्छी तरह परिचित हैं| भूख और गरीबी ने परिवार को निराशा के दलदल में धकेल दिया है| इस प्रकार उनकी बातें कहानी से संबद्ध हैं|
8. ‘दोपहर का भोजन’ शीर्षक किन दृष्टियों से पूर्णतया सार्थक है?
उत्तर
‘दोपहर का भोजन’ कहानी की नायिका सिद्धेश्वरी दोपहर का खाना बनाकर अपने परिवारवालों का इंतजार करती है| सबसे पहले उसका बड़ा बेटा रामचंद्र भोजन करने आता है और अनमने मन से भोजन करके चला जाता है| इसके बाद उसका मँझला बेटा और फिर उसका पति आता है| घर में भोजन के अभाव के कारण सभी कम खाने में ही पेट भरने का बहाना बना कर चले जाते हैं| अंत में सिद्धेश्वरी भी आधी रोटी खाकर ही अपना पेट भरने का प्रयास करती है| इस प्रकार पूरी कहानी में दोपहर के भोजन से संबंधित दृश्य को दर्शाया गया है| इस दृष्टि से ‘दोपहर का भोजन’ शीर्षक पूर्णतया सार्थक है|
9. आपके अनुसार सिद्धेश्वरी के झूठ सौ सत्यों से भारी कैसे हैं? अपने शब्दों में उत्तर दीजिए|
उत्तर
सिद्धेश्वरी के झूठ सौ सत्यों से भारी हैं क्योंकि वह अपने परिवारवालों को एक दूसरे की सच्चाई बताकर दुखी नहीं करना चाहती है| यदि वह अपने बड़े बेटे से यह कहती कि मोहन कहीं बाहर घूमने गया है तो दोनों भाइयों के बीच लड़ाई हो जाती| वह परिवार की आर्थिक स्थिति से अच्छी तरह परिचित थी| उसका बड़ा बेटा रामचंद्र छोटी-मोटी नौकरी कर किसी तरह परिवार का गुजारा कर रहा था| इसलिए वह उससे झूठ बोलती है कि मोहन अपने मित्र के यहाँ पढ़ने गया है| अपने पति से भी वह अपने बड़े बेटे के बारे में झूठ बोलती है ताकि पिता-बेटे के बीच प्रेम बना रहे| इस प्रकार वह झूठ बोलकर सभी सदस्यों को प्रसन्न रखना चाहती है|
10. आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) वह मतवाले की तरह उठी और गगरे से लोटा भर पानी लेकर गट-गट चढ़ा गई|
उत्तर
सिद्धेश्वरी दोपहर का भोजन तैयार करने में लगी हुई है| खाना खाने का समय हो गया है और वह भूख से व्याकुल है| लेकिन वह खाना नहीं खा सकती क्योंकि घर में भोजन का अभाव है और किसी ने अभी तक खाया भी नहीं| यही सोचकर वह अपनी भूख मिटाने के लिए अचानक उठती है और एक लोटा भरकर पानी पी लेती है|
(ख) यह कहकर उसने अपने मँझले लड़के की ओर इस तरह देखा, जैसे उसने कोई चोरी की हो|
उत्तर
सिद्धेश्वरी अपने मँझले बेटे से झूठ बोलती है कि उसका बड़ा भाई उसकी प्रशंसा कर रहा था कि वह पढ़ने-लिखने में होशियार है| मोहन यह बात जानता था की उसकी माँ झूठ बोल रही है| यह सोचकर कि कहीं उसका झूठ पकड़ा न जाए, सिद्धेश्वरी उसकी तरफ ऐसे देखती है जैसे उसने कोई चोरी की हो|
(ग) मुंशी जी ने चने के दाने की ओर इस दिलचस्पी से दृष्टिपात किया, जैसे उनसे बातचीत करनेवाले हों|
उत्तर
मुंशी जी को चुपचाप खाना खाते देख सिद्धेश्वरी उनसे प्रश्न पूछती है| वह उनसे फूफाजी की तबीयत के बारे में भी पूछती है| लेकिन मुंशी जी उसकी बातों को अनसुना कर अपनी भूख मिटाने में लगे हुए थे| इसलिए वह सिद्धेश्वरी की बातों पर ध्यान न देकर अपनी थाली में बचे चने के दालों पर इस प्रकार दृष्टि जमाए हुए थे, जैसे उनसे बात कर रहे हों|
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