द्रोणाचार्य - पठन सामग्री और सार NCERT Class 7th Hindi बाल महाभारत कथा
सार
आचार्य द्रोण महर्षि भरद्वाज के पुत्र थे। पांचाल के राजा के पुत्र द्रुपद भी द्रोण के साथ ही भरद्वाज के आश्रम शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। दोनों मित्र थे। कभी-कभी उत्साह में आकर राजकुमार द्रुपद द्रोण से कहते थे कि राजा बन जाने पर आधा राज्य उन्हें दे देंगें। शिक्षा समाप्त होने के बाद द्रोणाचार्य ने कृपाचार्य की बहन से ब्याह कर लिया। उन दोनों से एक पुत्र हुआ जिसका नाम अश्वत्थामा रखा।
द्रोण अपने पत्नी और पुत्र के साथ प्रसन्न थे परन्तु वह बहुत गरीब थे। जब उन्हें पता लगा कि परशुराम ब्राह्मणों को अपनी संपत्ति बाँट चुके थे। परशुराम ने द्रोण को देखकर कहा कि अब उनके पास केवल शरीर और धनुर्विद्या बाकी है, वह उनके लिए क्या कर सकते हैं। द्रोण ने परशुराम से धनुर्विद्या सीखी।
कुछ समय बाद राजकुमार द्रुपद के पिता का देहांत हो गया और द्रुपद राजा बन गए। द्रोण को जब यह बात पता चली तो वह द्रुपद से मिलने पहुँचे। परन्तु द्रुपद ने द्रोण को पहचानने से मना कर दिया और कहा दोस्ती केवल बराबरी वालों में होती है। द्रोण ने द्रुपद को सबक सिखाने को निश्चय किया।
द्रोणाचार्य हस्तिनापुर आकर अपनी पत्नी के भाई कृपाचार्य के यहाँ गुप्त रूप से रहने लगे। एक दिन हस्तिनापुर के राजकुमार नगर से बाहर गेंद खेल रहे थे। गेंद एक कुएँ में जा गिरी। युधिष्ठिर गेंद निकालने के प्रयास में अपनी अँगूठी भी गिरा बैठे। द्रोण ने अपनी धनुर्विद्या के करतब से गेंद और अँगूठी दोनों को निकाल दिया। राजकुमारों ने यह बात जाकर जब भीष्म पितामह को बतायी तब उन्होंने द्रोण को बुलाकर राजकुमारों को धनुर्विद्या सिखाने का अनुरोध किया। द्रोण ने राजकुमारों को धनुर्विद्या सिखायी।
जब राजकुमारों की शिक्षा पूरी हुई तब द्रोण ने गुरु-दक्षिणा के रूप में उनसे पांचालराज द्रुपद को कैद कर लाने को कहा। गुरु के कहे अनुसार पहले दुर्योधन और कर्ण ने द्रुपद के राज्य पर हमला किया परन्तु वे असफल रहे। द्रोण ने अर्जुन को भेजा। अर्जुन ने पांचालराज द्रुपद को कैद कर द्रोण के सामने पेश कर दिया। द्रोण को द्रुपद द्वारा कहीं बातें याद थीं। उन्होंने आधा राज्य द्रुपद को वापस कर दिया।
द्रोणाचार्य ने अपने अपमान का बदला पूरा कर लिया। परन्तु द्रोण से बदला लेना द्रुपद का लक्ष्य बन चुका था। द्रुपद के कठोर व्रत और तप से धृष्टधुम्न नाम का पुत्र हुआ और द्रौपदी नाम की पुत्री हुई।द्रुपद के पुत्र ने महाभारत युद्ध में द्रोणाचार्य को मारा।
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द्रोण अपने पत्नी और पुत्र के साथ प्रसन्न थे परन्तु वह बहुत गरीब थे। जब उन्हें पता लगा कि परशुराम ब्राह्मणों को अपनी संपत्ति बाँट चुके थे। परशुराम ने द्रोण को देखकर कहा कि अब उनके पास केवल शरीर और धनुर्विद्या बाकी है, वह उनके लिए क्या कर सकते हैं। द्रोण ने परशुराम से धनुर्विद्या सीखी।
कुछ समय बाद राजकुमार द्रुपद के पिता का देहांत हो गया और द्रुपद राजा बन गए। द्रोण को जब यह बात पता चली तो वह द्रुपद से मिलने पहुँचे। परन्तु द्रुपद ने द्रोण को पहचानने से मना कर दिया और कहा दोस्ती केवल बराबरी वालों में होती है। द्रोण ने द्रुपद को सबक सिखाने को निश्चय किया।
द्रोणाचार्य हस्तिनापुर आकर अपनी पत्नी के भाई कृपाचार्य के यहाँ गुप्त रूप से रहने लगे। एक दिन हस्तिनापुर के राजकुमार नगर से बाहर गेंद खेल रहे थे। गेंद एक कुएँ में जा गिरी। युधिष्ठिर गेंद निकालने के प्रयास में अपनी अँगूठी भी गिरा बैठे। द्रोण ने अपनी धनुर्विद्या के करतब से गेंद और अँगूठी दोनों को निकाल दिया। राजकुमारों ने यह बात जाकर जब भीष्म पितामह को बतायी तब उन्होंने द्रोण को बुलाकर राजकुमारों को धनुर्विद्या सिखाने का अनुरोध किया। द्रोण ने राजकुमारों को धनुर्विद्या सिखायी।
जब राजकुमारों की शिक्षा पूरी हुई तब द्रोण ने गुरु-दक्षिणा के रूप में उनसे पांचालराज द्रुपद को कैद कर लाने को कहा। गुरु के कहे अनुसार पहले दुर्योधन और कर्ण ने द्रुपद के राज्य पर हमला किया परन्तु वे असफल रहे। द्रोण ने अर्जुन को भेजा। अर्जुन ने पांचालराज द्रुपद को कैद कर द्रोण के सामने पेश कर दिया। द्रोण को द्रुपद द्वारा कहीं बातें याद थीं। उन्होंने आधा राज्य द्रुपद को वापस कर दिया।
द्रोणाचार्य ने अपने अपमान का बदला पूरा कर लिया। परन्तु द्रोण से बदला लेना द्रुपद का लक्ष्य बन चुका था। द्रुपद के कठोर व्रत और तप से धृष्टधुम्न नाम का पुत्र हुआ और द्रौपदी नाम की पुत्री हुई।द्रुपद के पुत्र ने महाभारत युद्ध में द्रोणाचार्य को मारा।
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