NCERT Solutions for Class 11th: पाठ 9 - पर्यावरण और धारणीय विकास (Paryavaran aur Dharniya Vikas) Bhartiya Arthvyavastha Ka Vikash
अभ्यास
पृष्ठ संख्या 182
1. पर्यावरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
पर्यावरण को समस्त भूमंडलीय विरासत और सभी संसाधनों की समग्रता के रूप में परिभाषित किया जाता है| इसमें वे सभी जैविक और अजैविक तत्व आते हैं, जो एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं|
2. जब संसाधन निस्सरण की दर उनके पुनर्जनन की दर से बढ़ जाती है, तो क्या होता है?
उत्तर
जब संसाधन निस्सरण की दर उनके पुनर्जनन की दर से बढ़ जाती है, तो पर्यावरण जीवन पोषण का अपना तीसरा और महत्वपूर्ण कार्य करने में असफल हो जाता है और इससे पर्यावरण संकट पैदा होता है|
3. निम्न को नवीकरणीय और गैर-नवीकरणीय संसाधनों में वर्गीकृत करें|
(क) वृक्ष
(ख) मछली
(ग) पेट्रोलियम
(घ) कोयला
(ङ) लौह-अयस्क
(च) जल
उत्तर
वृक्ष, मछली तथा जल नवीकरणीय संसाधन हैं| पेट्रोलियम, कोयला तथा लौह-अयस्क गैर-नवीकरणीय संसाधन हैं|
4. आजकल विश्व के सामने ....... और ........ की दो प्रमुख पर्यावरण समस्याएँ हैं|
उत्तर
वैश्विक उष्णता और ओजोन क्षय|
5. निम्न कारक भारत में कैसे पर्यावरण संकट में योगदान करते हैं? सरकार के समक्ष वे कौन-सी समस्याएँ पैदा करते हैं:
• बढ़ती जनसंख्या
• वायु-प्रदूषण
• जल-प्रदूषण
• संपन्न उपभोग मानक
• निरक्षरता
• औद्योगीकरण
• शहरीकरण
• वन-क्षेत्र में कमी
• अवैध वन कटाई
• वैश्विक उष्णता
उत्तर
• बढ़ती जनसंख्या: बढ़ती जनसंख्या उपलब्ध संसाधनों पर दबाव बनाता है| नवीकरणीय और गैर-नवीकरणीय संसाधनों के गहन और विस्तृत निष्कर्षण से अनेक महत्वपूर्ण संसाधन विलुप्त हो गए हैं| इसके अलावा, विस्फोटक आबादी के इसके अलावा, विस्फोटक आबादी के आकार ने आवास की अत्यधिक मांग को बढ़ाया है, जिसके परिणामस्वरूप, बड़े पैमाने पर वनों की कटाई और अन्य प्राकृतिक संसाधनों की तेजी से कमी ने पारिस्थितिकी असंतुलन को जन्म देती है| इसलिए, भारत सरकार के लिए जनसंख्या विस्फोट को नियंत्रित करने के लिए प्रतिरक्षात्मक उपाय करने के लिए यह उचित समय है|
• वायु प्रदूषण: भारत में शहरी इलाकों में वायु-प्रदूषण बहुत है जिसमें वाहनों का सर्वाधिक योगदान है| यहां तक कि गाँवों में, जलाऊ लकड़ी और उपले के जलने से वायु प्रदूषण होता है| इससे उच्च रक्तचाप, अस्थमा, श्वसन और हृदय-नसों की समस्याएं पैदा होती हैं| इसलिए, भारत सरकार को वायु प्रदूषण के नियंत्रण के लिए, वनों की कटाई से बचने, स्वास्थ्य निवेश में वृद्धि और सीएनजी जैसे नए वैकल्पिक प्रदूषण मुक्त तकनीक की खोज के लिए विभिन्न कदम उठाने चाहिए|
• जल-प्रदूषण: जल-प्रदूषण मानव जीवन के लिए एक गंभीर खतरा बन गया है| यह दस्त, हेपेटाइटिस, हैजा जैसे सभी घातक रोगों के प्रमुख कारणों में से एक है| यह औद्योगिक अपशिष्ट, कृषि अपशिष्ट और जल निकायों में मल प्रवाह के कारण होता है| इस प्रकार, भारत सरकार को अपशिष्ट जल निकासी की जांच करनी चाहिए| इसके लिए शोधक मशीनों की स्थापना तथा उसके रखरखाव के लिए उच्च पूँजी निवेश की आवश्यकता है|
• संपन्न उपभोग मानक: पश्चिमी प्रभाव और मध्यम वर्ग की क्रय शक्ति में वृद्धि ने संपन्न उपभोग मानकों और विशिष्ट उपभोग के जीवन शैली के साथ अनावश्यक विलासिता को जन्म दिया| इसने संसाधनों की आपूर्ति और अवशेष को समाहित करने के मामले में पर्यावरण पर भारी दबाव डाला| संसाधन विलुप्त हो गए हैं तथा उत्पन्न अवशेष पर्यावरण के लिए संकट का कारण बन रहे हैं|
वैकल्पिक पर्यावरणीय अनुकूल संसाधनों का पता लगाने के लिए सरकार अनुसंधान और विकास पर भारी मात्रा में खर्च करने के लिए मजबूर है| साथ ही, पर्यावरण की गुणवत्ता के उन्नयन पर भारी लागत आएगी|
• निरक्षरता: पर्यावरण के बारे में जागरूकता की कमी और पर्यावरण पर विभिन्न क्रियाओं या उत्पादों के हानिकारक प्रभावों के कारण यह एक सामाजिक समस्या है| ज्ञान और कौशल की कमी से संसाधनों का अत्यधिक निष्कर्षण हो सकता है और इसका दुरुपयोग किया जा सकता है| इस प्रकार, सरकार को विभिन्न कुशल और आर्थिक तरीकों के बारे में लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने और तकनीकी ज्ञान का प्रसार करने के लिए उपाय करना चाहिए|
• औद्योगीकरण: एक ओर, यह हमारे जीवन स्तर को बढ़ाता है, लेकिन दूसरी ओर, यह वनों की कटाई, प्राकृतिक संसाधनों की कमी का कारण बनता है| औद्योगीकरण की प्रक्रिया को अपनाने के क्रम में, प्राकृतिक संसाधनों का तेजी से शोषण किया जाता है| अधिक पेड़ काटे जा रहे हैं, विषाक्त पदार्थों की मात्रा बढ़ रही है और औद्योगिक अपशिष्ट जल निकायों में प्रवाहित कर दिया जाता है| ये सभी पारिस्थितिक असंतुलन पैदा कर सतत आर्थिक विकास के मार्ग में बाधक बनते हैं| इस प्रकार, पारिस्थितिक संतुलन बहाल करने के लिए सरकार को अनुचित और अनावश्यक औद्योगिक विकास की जांच के लिए उपाय करना चाहिए|
• शहरीकरण: एक तरफ, यह जीवन शैली के आधुनिकीकरण को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर, यह वनों की कटाई को बढ़ावा देता है| आवास की बढ़ती माँग के कारण पेड़ों को काटा जाता है जिसके कारण भूमि प्रति व्यक्ति अनुपात कम होता है| तेजी से शहरीकरण प्राकृतिक संसाधनों पर अत्यधिक बोझ डालता है, जो उसके कमी का कारण है| शहरीकरण के कारण कृषि योग्य भूमि की उपलब्धता कम हो जाती है और उत्पादन में कमी आती है| इसलिए, सरकार को लघु और कुटीर ग्रामीण उद्योगों तथा ग्रामीण आधारभूत संरचना के विकास को बढ़ावा देकर शहरीकरण के प्रभाव को कम करने के लिए उपाय करना चाहिए, जिससे ग्रामीण-शहरी प्रवास को कम किया जा सके| इसके अलावा, सरकार को वनीकरण को बढ़ावा देना चाहिए और सबसे महत्वपूर्ण बात, जनसंख्या विस्फोट को कम करने के उपायों को अपनाना चाहिए|
• वन-क्षेत्र में कमी: भूमि, लकड़ी तथा नदी घाटी परियोजनाओं की बढ़ती माँग और बढ़ती जनसंख्या के कारण वन-क्षेत्र में कमी आती है| वन्य-कटाव के कारण वायु में ऑक्सीजन के स्तर में कमी, मृदा-क्षरण, जलवायु-परिवर्तन, तथा वैश्विक उष्णता के कारण कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में वृद्धि होती है| इस प्रकार, वृक्षारोपण को बढ़ावा देने के लिए अभयारण्यों और जिम कार्बेट नेशनल पार्क जैसे राष्ट्रीय उद्यान जैसे उपायों को अपनाने की आवश्यकता है|
• अवैध वन कटाई: वनों की अवैध कटाई ने पर्यावरण को काफी नुकसान पहुँचाया है| वन विभाग के कुछ अधिकारीयों के लापरवाही तथा भू-माफियाओं ने इसे बढ़ावा दिया है| इसके कारण जहाँ एक मानवीय जीवन प्रभावित होती है वहीँ दूसरी ओर असंतुलित मौसम के कारण पर्यावरण प्रभावित होता है| इसलिए,सरकार को वनों को बढ़ाने के कई योजनाएँ अपनाने की जरूरत है|
• वैश्विक उष्णता: वैश्विक उष्णता पृथ्वी और समुद्र के वातावरण के औसत तापमान में वृद्धि को कहते हैं| यह मानव द्वारा वन-विनाश तथा जीवाश्म ईंधन के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीन हाउस गैसों की वृद्धि के कारण होता है| वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन गैस तथा दूसरी गैसें वातावरण में मिलने से हमारे भूमंडल की सतह गर्म होती जाएगी| वैश्विक उष्णता के कारण ध्रुवीय हिम के पिघलने से समुद्र स्तर में वृद्धि हुई है| इस प्रकार, कई प्राकृतिक आपदाओं के कारण पारिस्थितिक असंतुलन पैदा होती है तथा मानव जीवन खतरे में आ जाता है|
6. पर्यावरण के क्या कार्य होते हैं?
उत्तर
पर्यावरण में निम्नलिखित कार्य हैं:
• यह संसाधनों की आपूर्ति करता है|
• यह अवशेष को समाहित कर लेता है|
• यह जननिक और जैविक विविधता प्रदान करके जीवन का पोषण करता है|
• यह सौंदर्य विषयक सेवाएँ भी प्रदान करता है, जैसे कि कोई सुंदर दृश्य|
7. भारत में भू-क्षय के लिए उत्तरदायी छह कारकों की पहचान करें|
उत्तर
भारत में भू-क्षय के लिए उत्तरदायी छह कारक निम्नलिखित हैं:
• वन विनाश के फलस्वरूप वनस्पति की हानि|
• अधारणीय जलाऊ लकड़ी और चारे का निष्कर्षण|
• खेती-बारी|
• वन-भूमि का अतिक्रमण|
• वनों में आग और अत्यधिक चराई|
• भू-संरक्षण हेतु समुचित उपायों को न अपनाया जाना|
8. समझाएँ कि नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों की अवसर लागत उच्च क्यों होती है?
उत्तर
अवसर लागत का अर्थ किसी विकल्प का चुनाव अथवा निर्णय लेने में लगे लागत है| नवीकरणीय तथा गैर- नवीकरणीय संसाधनों के गहन और विस्तृत निष्कर्षण से अनेक महत्वपूर्ण संसाधन विलुप्त हो गए हैं और हम नए संसाधनों की खोज में प्रौद्योगिकी व अनुसन्धान पर विशाल राशि व्यय करने के लिए मजबूर हैं| इसके साथ जुड़ी है पर्यावरण की अपक्षय की गुणवत्ता की स्वास्थ्य लागत| जल और वायु की गुणवत्ता की गिरावट से साँस और जल-संक्रामक रोगों की घटनाएँ बढ़ी हैं| परिणामस्वरूप, व्यय भी बढ़ता जा रहा है| वैश्विक पर्यावरण मुद्दों जैसे, वैश्विक उष्णता और ओजोन क्षय ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है, जिसके कारण सरकार को अधिक व्यय करना पड़ा| इस प्रकार, नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों की अवसर लागत उच्च होती है|
9. भारत में धारणीय विकास की प्राप्ति के लिए उपयुक्त उपायों की रूपरेखा प्रस्तुत करें|
उत्तर
भारत में धारणीय विकास की प्राप्ति के लिए उपयुक्त उपायों की रूपरेखा निम्नलिखित हैं:
• ऊर्जा के गैर पारंपरिक स्रोतों का उपयोग: ऊर्जा के गैर पारंपरिक स्रोतों का प्रयोग प्रभावशाली रूप से थर्मल और हाइड्रो शक्ति के स्थान पर किया जा सकता है| इस प्रकार, ऊर्जा के गैर पारंपरिक स्रोतों का उपयोग धारणीय विकास की प्राप्ति में सहायक है|
• ग्रामीण क्षेत्रों में एल.पी.जी. गोबर गैस: ग्रामीण क्षेत्रों में एल.पी.जी. तथा गोबर गैस का उपयोग लकड़ी तथा जलाऊ ईंधन के निष्कर्षण को कम करेगा| इस प्रकार, यह वायु प्रदूषण और वन्य कटाव को कम करने में मदद करेगा|
• शहरी क्षेत्रों में उच्चदाब प्राकृतिक गैस (CNG): दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में उच्चदाब प्राकृतिक गैस (CNG) के ईंधन के रूप में प्रयोग से वायु प्रदूषण बड़े पैमाने पर कम हुआ है|
• वायु शक्ति: पवन शक्ति ऊर्जा का नवीकरणीय स्रोत है और इसे उपलब्ध प्रौद्योगिकी के साथ उपयोग किया जा सकता है| भारत में अनेक स्थानों पर पवन चक्की से बिजली प्राप्त की जाती है|
• फोटोवोल्टीय सेल द्वारा सौर शक्ति: कई शहरों में ट्रैफिक लाइट और होर्डिंगों के लिए सौर पैनल का उपयोग किया जाता है| सौर सेलों का उपयोग वाटर हीटर तथा विद्युत् प्रयोजनों में किया जाता है|
• लघु जलीय प्लांट: लघु जलीय प्लांट पर्वतीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त हो सकते हैं, जहाँ लगभग सभी जगहों पर झरने मिलते हैं| मिनीहाइडल प्लांट के द्वारा दूरदराज के क्षेत्रों में बिजली की आपूर्ति तथा संचरण की हानि को रोका जा सकता है|
10. भारत में प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता है- इस कथन के समर्थन में तर्क दें|
उत्तर
भूमि की उच्च गुणवता, नदियाँ व उपनदियों, हरे- भरे वन, भूमि के सतह के नीचे बहुतायत में उपलब्ध खनिज-पदार्थ, हिन्द महासागर का विस्तृत क्षेत्र. पहाड़ों की श्रृंखला आदि के रूप में भारत के पास पर्याप्त प्राकृतिक संसाधन हैं| दक्षिण के पठार की काली मिट्टी विशिष्ट रूप से कपास को खेती के लिए उपयुक्त है| इसके कारण ही इस क्षेत्र में कपड़ा उद्योग केन्द्रित है| अरब सागर से बंगाल की खाड़ी तक गंगा का मैदान है, जो कि विश्व के अत्यधिक उर्वर क्षेत्रों में से एक है और विश्व में सबसे गहन खेती और घनत्व जनसंख्या वाला क्षेत्र है| भारतीय वन वैसे तो असमान रूप से वितरित हैं, फिर भी वे उसकी अधिकांश जनसंख्या को हरियाली और उसके वन्य-जीवन को प्राकृतिक आवरण प्रदान करते हैं| देश में लौह- अयस्क , कोयला और प्राकृतिक गैस के भारी भंडार हैं केवल भारत में ही विश्व के समस्त लौह-अयस्क भंडार का 20 प्रतिशत उपलब्ध है| हमारे देश के विभिन्न भागों में बॉक्साइट, तांबा, क्रोमेट, हीरा, सोना, सीसा, भूरा कोयला, मैंगनीज, जिंक, युरेनियम इत्यादि भी मिलते हैं|
11. क्या पर्यावरण संकट एक नवीन परिघटना है? यदि हाँ, तो क्यों?
उत्तर
हाँ, पर्यावरण संकट एक नवीन परिघटना है| औद्योगिक क्रांति से पहले, संसाधनों का निष्कर्षण दर बहुत कम था और यह दर उनके नवीनीकरण से भी कम था| लेकिन औद्योगिक क्रांति और बाद के विकास के वर्षों में, संसाधनों का निष्कर्षण दर की दर कई गुना बढ़ गया है| परिणामस्वरूप, कई देशों में संसाधनों में कमी आई है। इसके साथ ही पर्यावरण प्रदूषण के स्तर में भी वृद्धि हुई है| इस प्रकार, पर्यावरण संकट एक नवीन परिघटना है|
12. इनके दो उदाहरण दें-
(क) पर्यावरणीय संसाधनों का अति प्रयोग|
(ख) पर्यावरणीय संसाधनों का दुरूपयोग|
उत्तर
(क) पर्यावरणीय संसाधनों का अति प्रयोग
• बढ़ती सिंचाई तथा बाढ़ भंडारण जलाशयों के निर्माण नदियों के सूखने का कारण हैं|
• बढ़ती आबादी और उनकी बढ़ती मांग के परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर वनों की कटाई होती है। इससे मिट्टी की कटाव बढ़ जाता है तथा मिट्टी अनुपजाऊ हो जाती है|
(ख) पर्यावरणीय संसाधनों का दुरूपयोग
• डीजल और पेट्रोल के अतिरिक्त उपयोग ऊर्जा के गैर-नवीकरणीय स्रोतों को कम कर रहे हैं|
• वृक्षों से लकड़ी प्राप्त की जाती है| खाना पकाने जैसे कार्यों के लिए पर्यावरण के अनुकूल वैकल्पिक ईंधन के बजाय लकड़ी का उपयोग करना वनों की कटाई को बढ़ावा देता है|
13. पर्यावरण की चार प्रमुख क्रियाओं का वर्णन कीजिए| महत्वपूर्ण मुद्दों की व्याख्या कीजिए| पर्यावरणीय हानि की भरपाई की अवसर लागतें भी होती हैं? व्याख्या कीजिए|
उत्तर
पर्यावरण की चार प्रमुख क्रियाएँ हैं- वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण वन्य-कटाव तथा मृदा क्षरण|
नवीकरणीय और गैर-नवीकरणीय संसाधनों के गहन और विस्तृत निष्कर्षण से अनेक महत्वपूर्ण संसाधन विलुप्त हो गये हैं और हम नए संसाधनों की खोज में प्रौद्योगिकी व अनुसन्धान पर विशाल राशि व्यय करने के लिए मजबूर हैं| इसके साथ जुड़ी है पर्यावरण की अपक्षय की गुणवत्ता की स्वास्थ्य लागत| जल और वायु की गुणवत्ता की गिरावट से साँस और जल-संक्रामक रोगों की घटनाएँ बढ़ी हैं| परिणामस्वरूप, व्यय भी बढ़ता जा रहा है| उदाहरण के लिए, वायु प्रदूषण के नियंत्रण के लिए वाहनों में उत्प्रेरक कन्वर्टर्स लगाने की आवश्यकता है जिससे वाहनों की लागत बढ़ जाती है| इसलिए, पर्यावरणीय हानि की भरपाई की अवसर लागतें भी होती हैं|
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14. पर्यावरणीय संसाधनों की पूर्ति-मांग के उत्क्रमण की व्याख्या कीजिए|
उत्तर
औद्योगिक क्रांति की शुरुआत से पहले प्राकृतिक संसाधनों की आपूर्ति मांग से अधिक थी| लेकिन, जनसंख्या विस्फोट और औद्योगिक क्रांति के साथ आज के परिवेश में, पर्यावरणीय संसाधनों की मांग इसकी आपूर्ति से कहीं ज्यादा है| इसलिए, उपलब्ध संसाधनों का सावधानीपूर्वक उपयोग किया जाना चाहिए मांग और आपूर्ति संबंधों में यह उत्क्रमण पर्यावरण संसाधनों की आपूर्ति-मांग में उत्क्रमण है|
15. वर्तमान पर्यावरण संकट का वर्णन करें|
उत्तर
वर्तमान पर्यावरण संकट हमारे अधारणीय क्रियाओं का परिणाम है| जनसंख्या विस्फोट, प्रचुर मात्रा में उपभोग और उत्पादन ने पर्यावरण पर भारी दबाव डाला है| संसाधन दिन-प्रतिदिन तेजी से समाप्त हो रहे हैं, लेकिन संसाधनों की पुनर्जनन दर सीमित है| इसलिए जब संसाधनों का निष्कर्षण इसके पुनर्जनन की दर से अधिक होती है तो पर्यावरण की धारण क्षमता कम हो जाती है| पर्यावरण जीवन पोषण का अपना महत्वपूर्ण कार्य करने में असफल हो जाता है और पर्यावरण संकट पैदा होता है|
16. भारत में विकास के दो गंभीर नकारात्मक पर्यावरण प्रभावों को उजागर करें| भारत की पर्यावरण समस्याओं में एक विरोधाभास है- एक तो यह निर्धनताजनित है और दूसरे जीवन-स्तर में संपन्नता का कारण भी है| क्या यह सत्य है?
उत्तर
भारत में विकास के दो गंभीर नकारात्मक पर्यावरण प्रभाव भूमि अपक्षय तथा वायु प्रदूषण है|
भूमि अपक्षय: भूमि की उर्वरता की क्रमिक लेकिन लगातार हानि को भूमि अपक्षय कहा जाता है| यह भारत में पर्यावरण संबंधी समस्याओं के संदर्भ में एक गंभीर चिंता के रूप में उभर रहा है| भूमि अपक्षय के लिए उत्तरदायी कुछ प्रमुख कारण मृदा क्षरण, वनों की कटाई, खेती-बारी, अनुचित फसल चक्र आदि हैं|
वायु प्रदूषण: भारत में, शहरी इलाकों में वायु प्रदूषण व्यापक है जिसमें वाहनों का सर्वाधिक योगदान है| अन्य क्षेत्रों में उद्योगों के भारी जमाव और थर्मल पॉवर संयंत्रों के कारण वायु प्रदूषण होता है| वाहन उत्सर्जन चिंता का प्रमुख कारण है क्योंकि यह धरातल पर वायु प्रदूषण का स्रोत है और आम जनता पर अधिकतम प्रभाव डालता है|
भारत की पर्यावरण समस्याओं में एक विरोधाभास है| भारत में वन्य कटाव, जनसंख्या विस्फोट तथा व्यापक गरीबी का परिणाम है| ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब लोगों को अपनी जीविका अर्जन के लिए पेड़ों को काटने के लिए मजबूर किया जाता है| शहरी क्षेत्रों में उत्पादन क्रियाओं में प्राकृतिक संसाधनों की बढ़ती मांग मौजूदा पर्यावरण अधोगति के लिए समान रूप से ज़िम्मेदार है| पर्यावरण संबंधी क्रियाओं के प्रभाव पर दो अलग-अलग मत हैं| पहला मत औद्योगिक उत्पादन द्वारा भारत की समृद्धि का समर्थक है, जबकि दूसरा मत तेजी से बढ़ते हुए औद्योगिक क्षेत्र के कारण प्रदूषण के खतरे पर प्रकाश डालता है| यह समस्या तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण उत्पन्न होती है| वाहनों के आवागमन के विस्तार से शोर और वायु प्रदूषण उत्पन्न होता है|
17. धारणीय विकास क्या है?
उत्तर
सभी की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति और एक अच्छे जीवन की आकांक्षाओं की संतुष्टि के लिए सभी को अवसर प्रदान के रूप में किये गए विकास को धारणीय विकास कहते हैं|
18. अपने आस-पास के क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए धारणीय विकास की चार रणनीतियाँ सुझाइए|
उत्तर
मुझे अपने आस-पास के क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए धारणीय विकास की निम्नलिखित चार रणनीतियाँ उपयोग में लाना चाहिए:
• ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों का प्रयोग करना चाहिए, जैसे- सौर ऊर्जा तथा पवन ऊर्जा|
• हरियाली में आई कमी को सुधारने के लिए वनीकरण को बढ़ावा देना|
• वाहनों में उच्चदाब प्राकृतिक गैस के प्रयोग को बढ़ावा देना|
• बेहतर सार्वजनिक परिवहन सुविधाओं का निर्माण|
19. धारणीय विकास की परिभाषा में वर्तमान और भावी पीढ़ियों के बीच समता के विचार की व्याख्या करें|
उत्तर
धारणीय विकास वास्तविक आर्थिक विकास है जो भावी पीढ़ियों के लिए संसाधनों की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए जनसंख्या की मौजूदा आवश्यकताओं को पूरा करने पर जोर देता है| धारणीय विकास वर्तमान और भावी पीढ़ियों दोनों के कल्याण को अधिकतम करता है| यह विकास आर्थिक विकास की मौजूदा गति को बाधित नहीं करती है| इसका अर्थ केवल संसाधनों का विवेकपूर्ण या इष्टतम उपयोग है जिसमें आर्थिक विकास की गति पीढ़ीगत समता के विचार के साथ कायम है|
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1. पर्यावरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
पर्यावरण को समस्त भूमंडलीय विरासत और सभी संसाधनों की समग्रता के रूप में परिभाषित किया जाता है| इसमें वे सभी जैविक और अजैविक तत्व आते हैं, जो एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं|
2. जब संसाधन निस्सरण की दर उनके पुनर्जनन की दर से बढ़ जाती है, तो क्या होता है?
उत्तर
जब संसाधन निस्सरण की दर उनके पुनर्जनन की दर से बढ़ जाती है, तो पर्यावरण जीवन पोषण का अपना तीसरा और महत्वपूर्ण कार्य करने में असफल हो जाता है और इससे पर्यावरण संकट पैदा होता है|
3. निम्न को नवीकरणीय और गैर-नवीकरणीय संसाधनों में वर्गीकृत करें|
(क) वृक्ष
(ख) मछली
(ग) पेट्रोलियम
(घ) कोयला
(ङ) लौह-अयस्क
(च) जल
उत्तर
वृक्ष, मछली तथा जल नवीकरणीय संसाधन हैं| पेट्रोलियम, कोयला तथा लौह-अयस्क गैर-नवीकरणीय संसाधन हैं|
4. आजकल विश्व के सामने ....... और ........ की दो प्रमुख पर्यावरण समस्याएँ हैं|
उत्तर
वैश्विक उष्णता और ओजोन क्षय|
5. निम्न कारक भारत में कैसे पर्यावरण संकट में योगदान करते हैं? सरकार के समक्ष वे कौन-सी समस्याएँ पैदा करते हैं:
• बढ़ती जनसंख्या
• वायु-प्रदूषण
• जल-प्रदूषण
• संपन्न उपभोग मानक
• निरक्षरता
• औद्योगीकरण
• शहरीकरण
• वन-क्षेत्र में कमी
• अवैध वन कटाई
• वैश्विक उष्णता
उत्तर
• बढ़ती जनसंख्या: बढ़ती जनसंख्या उपलब्ध संसाधनों पर दबाव बनाता है| नवीकरणीय और गैर-नवीकरणीय संसाधनों के गहन और विस्तृत निष्कर्षण से अनेक महत्वपूर्ण संसाधन विलुप्त हो गए हैं| इसके अलावा, विस्फोटक आबादी के इसके अलावा, विस्फोटक आबादी के आकार ने आवास की अत्यधिक मांग को बढ़ाया है, जिसके परिणामस्वरूप, बड़े पैमाने पर वनों की कटाई और अन्य प्राकृतिक संसाधनों की तेजी से कमी ने पारिस्थितिकी असंतुलन को जन्म देती है| इसलिए, भारत सरकार के लिए जनसंख्या विस्फोट को नियंत्रित करने के लिए प्रतिरक्षात्मक उपाय करने के लिए यह उचित समय है|
• वायु प्रदूषण: भारत में शहरी इलाकों में वायु-प्रदूषण बहुत है जिसमें वाहनों का सर्वाधिक योगदान है| यहां तक कि गाँवों में, जलाऊ लकड़ी और उपले के जलने से वायु प्रदूषण होता है| इससे उच्च रक्तचाप, अस्थमा, श्वसन और हृदय-नसों की समस्याएं पैदा होती हैं| इसलिए, भारत सरकार को वायु प्रदूषण के नियंत्रण के लिए, वनों की कटाई से बचने, स्वास्थ्य निवेश में वृद्धि और सीएनजी जैसे नए वैकल्पिक प्रदूषण मुक्त तकनीक की खोज के लिए विभिन्न कदम उठाने चाहिए|
• जल-प्रदूषण: जल-प्रदूषण मानव जीवन के लिए एक गंभीर खतरा बन गया है| यह दस्त, हेपेटाइटिस, हैजा जैसे सभी घातक रोगों के प्रमुख कारणों में से एक है| यह औद्योगिक अपशिष्ट, कृषि अपशिष्ट और जल निकायों में मल प्रवाह के कारण होता है| इस प्रकार, भारत सरकार को अपशिष्ट जल निकासी की जांच करनी चाहिए| इसके लिए शोधक मशीनों की स्थापना तथा उसके रखरखाव के लिए उच्च पूँजी निवेश की आवश्यकता है|
• संपन्न उपभोग मानक: पश्चिमी प्रभाव और मध्यम वर्ग की क्रय शक्ति में वृद्धि ने संपन्न उपभोग मानकों और विशिष्ट उपभोग के जीवन शैली के साथ अनावश्यक विलासिता को जन्म दिया| इसने संसाधनों की आपूर्ति और अवशेष को समाहित करने के मामले में पर्यावरण पर भारी दबाव डाला| संसाधन विलुप्त हो गए हैं तथा उत्पन्न अवशेष पर्यावरण के लिए संकट का कारण बन रहे हैं|
वैकल्पिक पर्यावरणीय अनुकूल संसाधनों का पता लगाने के लिए सरकार अनुसंधान और विकास पर भारी मात्रा में खर्च करने के लिए मजबूर है| साथ ही, पर्यावरण की गुणवत्ता के उन्नयन पर भारी लागत आएगी|
• निरक्षरता: पर्यावरण के बारे में जागरूकता की कमी और पर्यावरण पर विभिन्न क्रियाओं या उत्पादों के हानिकारक प्रभावों के कारण यह एक सामाजिक समस्या है| ज्ञान और कौशल की कमी से संसाधनों का अत्यधिक निष्कर्षण हो सकता है और इसका दुरुपयोग किया जा सकता है| इस प्रकार, सरकार को विभिन्न कुशल और आर्थिक तरीकों के बारे में लोगों के बीच जागरूकता पैदा करने और तकनीकी ज्ञान का प्रसार करने के लिए उपाय करना चाहिए|
• औद्योगीकरण: एक ओर, यह हमारे जीवन स्तर को बढ़ाता है, लेकिन दूसरी ओर, यह वनों की कटाई, प्राकृतिक संसाधनों की कमी का कारण बनता है| औद्योगीकरण की प्रक्रिया को अपनाने के क्रम में, प्राकृतिक संसाधनों का तेजी से शोषण किया जाता है| अधिक पेड़ काटे जा रहे हैं, विषाक्त पदार्थों की मात्रा बढ़ रही है और औद्योगिक अपशिष्ट जल निकायों में प्रवाहित कर दिया जाता है| ये सभी पारिस्थितिक असंतुलन पैदा कर सतत आर्थिक विकास के मार्ग में बाधक बनते हैं| इस प्रकार, पारिस्थितिक संतुलन बहाल करने के लिए सरकार को अनुचित और अनावश्यक औद्योगिक विकास की जांच के लिए उपाय करना चाहिए|
• शहरीकरण: एक तरफ, यह जीवन शैली के आधुनिकीकरण को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर, यह वनों की कटाई को बढ़ावा देता है| आवास की बढ़ती माँग के कारण पेड़ों को काटा जाता है जिसके कारण भूमि प्रति व्यक्ति अनुपात कम होता है| तेजी से शहरीकरण प्राकृतिक संसाधनों पर अत्यधिक बोझ डालता है, जो उसके कमी का कारण है| शहरीकरण के कारण कृषि योग्य भूमि की उपलब्धता कम हो जाती है और उत्पादन में कमी आती है| इसलिए, सरकार को लघु और कुटीर ग्रामीण उद्योगों तथा ग्रामीण आधारभूत संरचना के विकास को बढ़ावा देकर शहरीकरण के प्रभाव को कम करने के लिए उपाय करना चाहिए, जिससे ग्रामीण-शहरी प्रवास को कम किया जा सके| इसके अलावा, सरकार को वनीकरण को बढ़ावा देना चाहिए और सबसे महत्वपूर्ण बात, जनसंख्या विस्फोट को कम करने के उपायों को अपनाना चाहिए|
• वन-क्षेत्र में कमी: भूमि, लकड़ी तथा नदी घाटी परियोजनाओं की बढ़ती माँग और बढ़ती जनसंख्या के कारण वन-क्षेत्र में कमी आती है| वन्य-कटाव के कारण वायु में ऑक्सीजन के स्तर में कमी, मृदा-क्षरण, जलवायु-परिवर्तन, तथा वैश्विक उष्णता के कारण कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में वृद्धि होती है| इस प्रकार, वृक्षारोपण को बढ़ावा देने के लिए अभयारण्यों और जिम कार्बेट नेशनल पार्क जैसे राष्ट्रीय उद्यान जैसे उपायों को अपनाने की आवश्यकता है|
• अवैध वन कटाई: वनों की अवैध कटाई ने पर्यावरण को काफी नुकसान पहुँचाया है| वन विभाग के कुछ अधिकारीयों के लापरवाही तथा भू-माफियाओं ने इसे बढ़ावा दिया है| इसके कारण जहाँ एक मानवीय जीवन प्रभावित होती है वहीँ दूसरी ओर असंतुलित मौसम के कारण पर्यावरण प्रभावित होता है| इसलिए,सरकार को वनों को बढ़ाने के कई योजनाएँ अपनाने की जरूरत है|
• वैश्विक उष्णता: वैश्विक उष्णता पृथ्वी और समुद्र के वातावरण के औसत तापमान में वृद्धि को कहते हैं| यह मानव द्वारा वन-विनाश तथा जीवाश्म ईंधन के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीन हाउस गैसों की वृद्धि के कारण होता है| वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन गैस तथा दूसरी गैसें वातावरण में मिलने से हमारे भूमंडल की सतह गर्म होती जाएगी| वैश्विक उष्णता के कारण ध्रुवीय हिम के पिघलने से समुद्र स्तर में वृद्धि हुई है| इस प्रकार, कई प्राकृतिक आपदाओं के कारण पारिस्थितिक असंतुलन पैदा होती है तथा मानव जीवन खतरे में आ जाता है|
6. पर्यावरण के क्या कार्य होते हैं?
उत्तर
पर्यावरण में निम्नलिखित कार्य हैं:
• यह संसाधनों की आपूर्ति करता है|
• यह अवशेष को समाहित कर लेता है|
• यह जननिक और जैविक विविधता प्रदान करके जीवन का पोषण करता है|
• यह सौंदर्य विषयक सेवाएँ भी प्रदान करता है, जैसे कि कोई सुंदर दृश्य|
7. भारत में भू-क्षय के लिए उत्तरदायी छह कारकों की पहचान करें|
उत्तर
भारत में भू-क्षय के लिए उत्तरदायी छह कारक निम्नलिखित हैं:
• वन विनाश के फलस्वरूप वनस्पति की हानि|
• अधारणीय जलाऊ लकड़ी और चारे का निष्कर्षण|
• खेती-बारी|
• वन-भूमि का अतिक्रमण|
• वनों में आग और अत्यधिक चराई|
• भू-संरक्षण हेतु समुचित उपायों को न अपनाया जाना|
8. समझाएँ कि नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों की अवसर लागत उच्च क्यों होती है?
उत्तर
अवसर लागत का अर्थ किसी विकल्प का चुनाव अथवा निर्णय लेने में लगे लागत है| नवीकरणीय तथा गैर- नवीकरणीय संसाधनों के गहन और विस्तृत निष्कर्षण से अनेक महत्वपूर्ण संसाधन विलुप्त हो गए हैं और हम नए संसाधनों की खोज में प्रौद्योगिकी व अनुसन्धान पर विशाल राशि व्यय करने के लिए मजबूर हैं| इसके साथ जुड़ी है पर्यावरण की अपक्षय की गुणवत्ता की स्वास्थ्य लागत| जल और वायु की गुणवत्ता की गिरावट से साँस और जल-संक्रामक रोगों की घटनाएँ बढ़ी हैं| परिणामस्वरूप, व्यय भी बढ़ता जा रहा है| वैश्विक पर्यावरण मुद्दों जैसे, वैश्विक उष्णता और ओजोन क्षय ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है, जिसके कारण सरकार को अधिक व्यय करना पड़ा| इस प्रकार, नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों की अवसर लागत उच्च होती है|
9. भारत में धारणीय विकास की प्राप्ति के लिए उपयुक्त उपायों की रूपरेखा प्रस्तुत करें|
उत्तर
भारत में धारणीय विकास की प्राप्ति के लिए उपयुक्त उपायों की रूपरेखा निम्नलिखित हैं:
• ऊर्जा के गैर पारंपरिक स्रोतों का उपयोग: ऊर्जा के गैर पारंपरिक स्रोतों का प्रयोग प्रभावशाली रूप से थर्मल और हाइड्रो शक्ति के स्थान पर किया जा सकता है| इस प्रकार, ऊर्जा के गैर पारंपरिक स्रोतों का उपयोग धारणीय विकास की प्राप्ति में सहायक है|
• ग्रामीण क्षेत्रों में एल.पी.जी. गोबर गैस: ग्रामीण क्षेत्रों में एल.पी.जी. तथा गोबर गैस का उपयोग लकड़ी तथा जलाऊ ईंधन के निष्कर्षण को कम करेगा| इस प्रकार, यह वायु प्रदूषण और वन्य कटाव को कम करने में मदद करेगा|
• शहरी क्षेत्रों में उच्चदाब प्राकृतिक गैस (CNG): दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में उच्चदाब प्राकृतिक गैस (CNG) के ईंधन के रूप में प्रयोग से वायु प्रदूषण बड़े पैमाने पर कम हुआ है|
• वायु शक्ति: पवन शक्ति ऊर्जा का नवीकरणीय स्रोत है और इसे उपलब्ध प्रौद्योगिकी के साथ उपयोग किया जा सकता है| भारत में अनेक स्थानों पर पवन चक्की से बिजली प्राप्त की जाती है|
• फोटोवोल्टीय सेल द्वारा सौर शक्ति: कई शहरों में ट्रैफिक लाइट और होर्डिंगों के लिए सौर पैनल का उपयोग किया जाता है| सौर सेलों का उपयोग वाटर हीटर तथा विद्युत् प्रयोजनों में किया जाता है|
• लघु जलीय प्लांट: लघु जलीय प्लांट पर्वतीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त हो सकते हैं, जहाँ लगभग सभी जगहों पर झरने मिलते हैं| मिनीहाइडल प्लांट के द्वारा दूरदराज के क्षेत्रों में बिजली की आपूर्ति तथा संचरण की हानि को रोका जा सकता है|
10. भारत में प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता है- इस कथन के समर्थन में तर्क दें|
उत्तर
भूमि की उच्च गुणवता, नदियाँ व उपनदियों, हरे- भरे वन, भूमि के सतह के नीचे बहुतायत में उपलब्ध खनिज-पदार्थ, हिन्द महासागर का विस्तृत क्षेत्र. पहाड़ों की श्रृंखला आदि के रूप में भारत के पास पर्याप्त प्राकृतिक संसाधन हैं| दक्षिण के पठार की काली मिट्टी विशिष्ट रूप से कपास को खेती के लिए उपयुक्त है| इसके कारण ही इस क्षेत्र में कपड़ा उद्योग केन्द्रित है| अरब सागर से बंगाल की खाड़ी तक गंगा का मैदान है, जो कि विश्व के अत्यधिक उर्वर क्षेत्रों में से एक है और विश्व में सबसे गहन खेती और घनत्व जनसंख्या वाला क्षेत्र है| भारतीय वन वैसे तो असमान रूप से वितरित हैं, फिर भी वे उसकी अधिकांश जनसंख्या को हरियाली और उसके वन्य-जीवन को प्राकृतिक आवरण प्रदान करते हैं| देश में लौह- अयस्क , कोयला और प्राकृतिक गैस के भारी भंडार हैं केवल भारत में ही विश्व के समस्त लौह-अयस्क भंडार का 20 प्रतिशत उपलब्ध है| हमारे देश के विभिन्न भागों में बॉक्साइट, तांबा, क्रोमेट, हीरा, सोना, सीसा, भूरा कोयला, मैंगनीज, जिंक, युरेनियम इत्यादि भी मिलते हैं|
11. क्या पर्यावरण संकट एक नवीन परिघटना है? यदि हाँ, तो क्यों?
उत्तर
हाँ, पर्यावरण संकट एक नवीन परिघटना है| औद्योगिक क्रांति से पहले, संसाधनों का निष्कर्षण दर बहुत कम था और यह दर उनके नवीनीकरण से भी कम था| लेकिन औद्योगिक क्रांति और बाद के विकास के वर्षों में, संसाधनों का निष्कर्षण दर की दर कई गुना बढ़ गया है| परिणामस्वरूप, कई देशों में संसाधनों में कमी आई है। इसके साथ ही पर्यावरण प्रदूषण के स्तर में भी वृद्धि हुई है| इस प्रकार, पर्यावरण संकट एक नवीन परिघटना है|
12. इनके दो उदाहरण दें-
(क) पर्यावरणीय संसाधनों का अति प्रयोग|
(ख) पर्यावरणीय संसाधनों का दुरूपयोग|
उत्तर
(क) पर्यावरणीय संसाधनों का अति प्रयोग
• बढ़ती सिंचाई तथा बाढ़ भंडारण जलाशयों के निर्माण नदियों के सूखने का कारण हैं|
• बढ़ती आबादी और उनकी बढ़ती मांग के परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर वनों की कटाई होती है। इससे मिट्टी की कटाव बढ़ जाता है तथा मिट्टी अनुपजाऊ हो जाती है|
(ख) पर्यावरणीय संसाधनों का दुरूपयोग
• डीजल और पेट्रोल के अतिरिक्त उपयोग ऊर्जा के गैर-नवीकरणीय स्रोतों को कम कर रहे हैं|
• वृक्षों से लकड़ी प्राप्त की जाती है| खाना पकाने जैसे कार्यों के लिए पर्यावरण के अनुकूल वैकल्पिक ईंधन के बजाय लकड़ी का उपयोग करना वनों की कटाई को बढ़ावा देता है|
13. पर्यावरण की चार प्रमुख क्रियाओं का वर्णन कीजिए| महत्वपूर्ण मुद्दों की व्याख्या कीजिए| पर्यावरणीय हानि की भरपाई की अवसर लागतें भी होती हैं? व्याख्या कीजिए|
उत्तर
पर्यावरण की चार प्रमुख क्रियाएँ हैं- वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण वन्य-कटाव तथा मृदा क्षरण|
नवीकरणीय और गैर-नवीकरणीय संसाधनों के गहन और विस्तृत निष्कर्षण से अनेक महत्वपूर्ण संसाधन विलुप्त हो गये हैं और हम नए संसाधनों की खोज में प्रौद्योगिकी व अनुसन्धान पर विशाल राशि व्यय करने के लिए मजबूर हैं| इसके साथ जुड़ी है पर्यावरण की अपक्षय की गुणवत्ता की स्वास्थ्य लागत| जल और वायु की गुणवत्ता की गिरावट से साँस और जल-संक्रामक रोगों की घटनाएँ बढ़ी हैं| परिणामस्वरूप, व्यय भी बढ़ता जा रहा है| उदाहरण के लिए, वायु प्रदूषण के नियंत्रण के लिए वाहनों में उत्प्रेरक कन्वर्टर्स लगाने की आवश्यकता है जिससे वाहनों की लागत बढ़ जाती है| इसलिए, पर्यावरणीय हानि की भरपाई की अवसर लागतें भी होती हैं|
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14. पर्यावरणीय संसाधनों की पूर्ति-मांग के उत्क्रमण की व्याख्या कीजिए|
उत्तर
औद्योगिक क्रांति की शुरुआत से पहले प्राकृतिक संसाधनों की आपूर्ति मांग से अधिक थी| लेकिन, जनसंख्या विस्फोट और औद्योगिक क्रांति के साथ आज के परिवेश में, पर्यावरणीय संसाधनों की मांग इसकी आपूर्ति से कहीं ज्यादा है| इसलिए, उपलब्ध संसाधनों का सावधानीपूर्वक उपयोग किया जाना चाहिए मांग और आपूर्ति संबंधों में यह उत्क्रमण पर्यावरण संसाधनों की आपूर्ति-मांग में उत्क्रमण है|
15. वर्तमान पर्यावरण संकट का वर्णन करें|
उत्तर
वर्तमान पर्यावरण संकट हमारे अधारणीय क्रियाओं का परिणाम है| जनसंख्या विस्फोट, प्रचुर मात्रा में उपभोग और उत्पादन ने पर्यावरण पर भारी दबाव डाला है| संसाधन दिन-प्रतिदिन तेजी से समाप्त हो रहे हैं, लेकिन संसाधनों की पुनर्जनन दर सीमित है| इसलिए जब संसाधनों का निष्कर्षण इसके पुनर्जनन की दर से अधिक होती है तो पर्यावरण की धारण क्षमता कम हो जाती है| पर्यावरण जीवन पोषण का अपना महत्वपूर्ण कार्य करने में असफल हो जाता है और पर्यावरण संकट पैदा होता है|
16. भारत में विकास के दो गंभीर नकारात्मक पर्यावरण प्रभावों को उजागर करें| भारत की पर्यावरण समस्याओं में एक विरोधाभास है- एक तो यह निर्धनताजनित है और दूसरे जीवन-स्तर में संपन्नता का कारण भी है| क्या यह सत्य है?
उत्तर
भारत में विकास के दो गंभीर नकारात्मक पर्यावरण प्रभाव भूमि अपक्षय तथा वायु प्रदूषण है|
भूमि अपक्षय: भूमि की उर्वरता की क्रमिक लेकिन लगातार हानि को भूमि अपक्षय कहा जाता है| यह भारत में पर्यावरण संबंधी समस्याओं के संदर्भ में एक गंभीर चिंता के रूप में उभर रहा है| भूमि अपक्षय के लिए उत्तरदायी कुछ प्रमुख कारण मृदा क्षरण, वनों की कटाई, खेती-बारी, अनुचित फसल चक्र आदि हैं|
वायु प्रदूषण: भारत में, शहरी इलाकों में वायु प्रदूषण व्यापक है जिसमें वाहनों का सर्वाधिक योगदान है| अन्य क्षेत्रों में उद्योगों के भारी जमाव और थर्मल पॉवर संयंत्रों के कारण वायु प्रदूषण होता है| वाहन उत्सर्जन चिंता का प्रमुख कारण है क्योंकि यह धरातल पर वायु प्रदूषण का स्रोत है और आम जनता पर अधिकतम प्रभाव डालता है|
भारत की पर्यावरण समस्याओं में एक विरोधाभास है| भारत में वन्य कटाव, जनसंख्या विस्फोट तथा व्यापक गरीबी का परिणाम है| ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब लोगों को अपनी जीविका अर्जन के लिए पेड़ों को काटने के लिए मजबूर किया जाता है| शहरी क्षेत्रों में उत्पादन क्रियाओं में प्राकृतिक संसाधनों की बढ़ती मांग मौजूदा पर्यावरण अधोगति के लिए समान रूप से ज़िम्मेदार है| पर्यावरण संबंधी क्रियाओं के प्रभाव पर दो अलग-अलग मत हैं| पहला मत औद्योगिक उत्पादन द्वारा भारत की समृद्धि का समर्थक है, जबकि दूसरा मत तेजी से बढ़ते हुए औद्योगिक क्षेत्र के कारण प्रदूषण के खतरे पर प्रकाश डालता है| यह समस्या तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण उत्पन्न होती है| वाहनों के आवागमन के विस्तार से शोर और वायु प्रदूषण उत्पन्न होता है|
17. धारणीय विकास क्या है?
उत्तर
सभी की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति और एक अच्छे जीवन की आकांक्षाओं की संतुष्टि के लिए सभी को अवसर प्रदान के रूप में किये गए विकास को धारणीय विकास कहते हैं|
18. अपने आस-पास के क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए धारणीय विकास की चार रणनीतियाँ सुझाइए|
उत्तर
मुझे अपने आस-पास के क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए धारणीय विकास की निम्नलिखित चार रणनीतियाँ उपयोग में लाना चाहिए:
• ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों का प्रयोग करना चाहिए, जैसे- सौर ऊर्जा तथा पवन ऊर्जा|
• हरियाली में आई कमी को सुधारने के लिए वनीकरण को बढ़ावा देना|
• वाहनों में उच्चदाब प्राकृतिक गैस के प्रयोग को बढ़ावा देना|
• बेहतर सार्वजनिक परिवहन सुविधाओं का निर्माण|
19. धारणीय विकास की परिभाषा में वर्तमान और भावी पीढ़ियों के बीच समता के विचार की व्याख्या करें|
उत्तर
धारणीय विकास वास्तविक आर्थिक विकास है जो भावी पीढ़ियों के लिए संसाधनों की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए जनसंख्या की मौजूदा आवश्यकताओं को पूरा करने पर जोर देता है| धारणीय विकास वर्तमान और भावी पीढ़ियों दोनों के कल्याण को अधिकतम करता है| यह विकास आर्थिक विकास की मौजूदा गति को बाधित नहीं करती है| इसका अर्थ केवल संसाधनों का विवेकपूर्ण या इष्टतम उपयोग है जिसमें आर्थिक विकास की गति पीढ़ीगत समता के विचार के साथ कायम है|
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