NCERT Solutions for Class 11th: पाठ 6 - भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ भौतिक भूगोल के मूल सिद्धांत (Bhu-Aakritik Prakriyaein) Bhautik Bhugol ke Mool Siddhant
अभ्यास
1. बहुवैकल्पिक प्रश्न
(i) निम्नलिखित में से कौन सी एक अनुक्रमिक प्रक्रिया है?
(क) निक्षेप
(ख) ज्वालामुखीयता
(ग) पटल-निरूपण
(घ) अपरदन
► (घ) अपरदन
(ii) जलयोजन प्रक्रिया निम्नलिखित पदार्थों में से किसे प्रभावित करती है?
(क) ग्रेनाइट
(ख) क्वार्ट्ज
(ग) चीका (क्ले) मिट्टी
(घ) लवण
► (घ) लवण
(iii) मलवा अवधाव को किस श्रेणी में सम्मिलित किया जा सकता है?
(क) भूस्खलन
(ख) तीव्र प्रवाही बृहत् संचलन
(ग) मंद प्रवाही बृहत् संचलन
(घ) अवतलन/धसकन
► (ख) तीव्र प्रवाही बृहत् संचलन
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए:
(i) अपक्षय पृथ्वी पर जैव विविधता के लिए उत्तरदायी है| कैसे?
उत्तर
अपक्षय प्रक्रिया पृथ्वी पर जैव विविधता के लिए उत्तरदायी है| जैव विविधता मूल रूप से वन या वनस्पति के कारण उत्पन्न होती है तथा वन, अपक्षयी प्रावार की गहराई पर निर्भर करता है|
(ii) बृहत् संचलन जो वास्तविक, तीव्र एवं गोचर/अवगम्य (Perceptible) हैं, वे क्या हैं? सूचीबद्ध कीजिए|
उत्तर
बृहत् संचलन के अंतर्गत वे सभी संचलन आते हैं, जिनमें शैलों का बृहत् मलवा गुरूत्वाकर्षण के सीधे प्रभाव के कारण ढाल के अनुरूप स्थानांतरित होता है| कोई भी भू-आकृतिक कारक जैसे- प्रवाहित जल, हिमानी, वायु, लहरें एवं धाराएँ बृहत् संचलन की प्रक्रिया में सीधे रूप से सम्मिलित नहीं होते|
बृहत् संचलन जो वास्तविक, तीव्र एवं गोचर/अवगम्य (Perceptible) हैं:
• मृदा-प्रवाह
• कीचड़ प्रवाह
• भूस्खलन
(iii) विभिन्न गतिशील एवं शक्तिशाली बहिर्जनिक भू-आकृतिक कारक क्या हैं तथा वे क्या प्रधान कार्य संपन्न करते हैं?
उत्तर
विभिन्न गतिशील एवं शक्तिशाली बहिर्जनिक भू-आकृतिक कारक, अपक्षय, बृहत् संचलन, अपरदन, निक्षेपण तथा परिवहन हैं| ये कारक पृथ्वी की सतह पर भू-आकृतिक परिवर्तन लाते हैं|
(iv) क्या मृदा निर्माण में अपक्षय एक आवश्यक अनिवार्यता है?
उत्तर
हाँ, मृदा निर्माण में अपक्षय एक आवश्यक अनिवार्यता है| अपक्षय प्रक्रियाएँ शैलों को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ने तथा न केवल आवरण प्रस्तर एवं मृदा निर्माण के लिए मार्ग प्रशस्त करते हैं अपितु अपरदन एवं वृहत् संचलन के लिए भी उत्तरदायी होते हैं|
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3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए|
(i) “हमारी पृथ्वी भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के दो विरोधात्मक (Opposing) वर्गों के खेल का मैदान है|” व्याख्या कीजिए|
उत्तर
सर्वप्रथम भू-पर्पटी गत्यात्मक है| यह क्षैतिज तथा उर्ध्वाधर दिशाओं में संचलित होती रहती है| भू-पर्पटी का निर्माण करने वाले पृथ्वी के भीतर सक्रिय आंतरिक बलों में पाया जाने वाला अंतर ही पृथ्वी के बाह्य सतह में अंतर के लिए उत्तरदायी है| मूलतः, धरातल सूर्य से प्राप्त ऊर्जा द्वारा प्रेरित बाह्य बलों से अनवरत प्रभावित होता रहता है| निश्चित रूप से आंतरिक बल अभी भी सक्रिय है, यद्यपि उनकी तीव्रता में अंतर है| इसका तात्पर्य है कि धरातल पृथ्वी के अंतर्गत उत्पन्न हुए बाह्य बलों एवं पृथ्वी के अंदर उद्भूत आंतरिक बलों से अनवरत प्रभावित होता है तथा यह सर्वदा परिवर्तनशील है| बाह्य बलों को बहिर्जनिक तथा आंतरिक बलों को अंतर्जनित बल कहते हैं| बहिर्जनिक बलों की क्रियाओं का परिणाम होता है- उभरी हुई भू-आकृतियों का विघर्षण तथा बेसिन/निम्न क्षेत्रों/गतों का भराव (अधिवृद्धि/तल्लोचन| धरातल पर अपरदन के माध्यम सै उच्चावच के मध्य अंतर के कम होने को तल संतुलन कहते हैं| अंतर्जनित शक्तियाँ निरंतर धरातल के भागों को उपर उठाती हैं या उनका निर्माण करती हैं तथा इस प्रकार बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ उच्चावच में भिन्नता को सम (बराबर) करने में असफल रहती हैं| अतएव भिन्नता तब तक बनी रहती है जब तक बहिर्जनिक एवं अन्तर्जनित बलों के विरोधात्मक कार्य चलते रहते हैं| सामान्यत: अंतर्जनित बल मूल रूप से भू-आकृति निर्माण करने वाले बल हैं तथा बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ मुख्य रूप से भूमि विघर्षण बल होती हैं|
(ii) ‘बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ अपनी अंतिम ऊर्जा सूर्य की गर्मी से प्राप्त करती हैं|’ व्याख्या कीजिए|
उत्तर
बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ अपनी ऊर्जा ‘सूर्य द्वारा निर्धारित वायुमंडलीय ऊर्जा एवं अंतर्जनित शक्तियों से नियंत्रित विवर्तनिक कारकों से उत्पन्न प्रवणता से प्राप्त करती हैं| सभी बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं को एक सामान्य शब्दावली अनाच्छादन के अंतर्गत रखा जा सकता है| अपक्षय, वृहत् क्षरण, संचलन, अपरदन, परिवहन आदि सभी इसमें सम्मिलित किए जाते हैं|
• अपक्षय: अपक्षय के अंतर्गत वायुमंडलीय तत्वों की धरातल के पदार्थों पर की गई क्रिया सम्मिलित होती है| मौसम और जलवायु के घटकों में तापमान, दबाव, हवाएं, आर्द्रता और वर्षा होती है| इन सभी घटकों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सूर्य से ऊर्जा प्राप्त होती है|
• बृहत् संचलन: इसके अंतर्गत वे सभी संचलन आते हैं, जिनमें शैलों का बृहत् मलवा गुरूत्वाकर्षण के सीधे प्रभाव करने के कारण ढाल के अनुरूप स्थानांतरित होता है| यद्यपि बृहत् संचलन के लिए अपक्षय अनिवार्य नहीं है, परंतु यह इसे बढ़ावा देता है|
• अपरदन एवं निक्षेपण: अपरदन के अंतर्गत शैलों के मलवे की अवाप्ति एवं उनके परिवहन को सम्मिलित किया जाता है| धरातल के पदार्थों का क्षरण और परिवहन प्रवाहित जल, हिमानी, वायु, लहरें एवं धाराओं के द्वारा होता है| इनमें से, पहले तीन कारक जलवायु परिस्थितियों द्वारा नियंत्रित होते हैं, जबकि जलवायु सूर्य की ऊर्जा से तय होती है|
इस प्रकार, सभी बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ अपनी अंतिम ऊर्जा सूर्य की गर्मी से प्राप्त करती हैं| हालांकि, पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल सभी बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं में सहायता करता है क्योंकि गुरुत्वाकर्षण गतिशीलता संभव बनाता है|
(iii) क्या भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ एक दूसरे से स्वतंत्र हैं? यदि नहीं तो क्यों? सोदाहरण व्याख्या कीजिए|
उत्तर
भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ एक दूसरे से स्वतंत्र हैं| भौतिक या यांत्रिक अपक्षय प्रक्रियाएँ कुछ अनुप्रयुक्त बलों पर निर्भर करती हैं| ये अनुप्रयुक्त बल निम्नलिखित हो सकते हैं: (i) गुरूत्वाकर्षण बल, जैसे अत्यधिक ऊपर भार दबाव, एवं अपरूपण प्रतिबल, (ii) तापक्रम में परिवर्तन, क्रिस्टल रवों में वृद्धि एवं पशुओं के क्रियाकलापों के कारण उत्पन्न विस्तारण बल, (iii) शुष्कन एवं आर्द्रन चक्रों से नियंत्रित जल का दबाव| जबकि रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाओं में विलयन, कार्बोनेटीकरण, जलयोजन, ऑक्सीकरण तथा न्यूनीकरण का कार्य करते हैं, जो कि रासायनिक क्रिया द्वारा सूक्ष्म अवस्था में परिवर्तित हो जाती हैं| ऑक्सीजन, धरातलीय जल, मृदा जल एवं अन्य अम्लों की प्रक्रिया द्वारा चट्टानों का न्यूनीकरण होता है|
रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ भौतिक अपक्षय प्रक्रियाओं के कार्य पर निर्भर होती हैं| भौतिक अपक्षय के घटक जैसे कि तापमान में परिवर्तन तथा जमे हुए शैलों को तोड़ना जैसे कार्य रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाओं के लिए मार्ग प्रशस्त करते हैं| रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ शैलों को विघटित करती हैं जिसके कारण भौतिक अपक्षय प्रक्रियाओं द्वारा ये आसानी से टूट सकते हैं|
(iv) आप किस प्रकार मृदा निर्माण प्रक्रियाओं तथा मृदा निर्माण कारकों के बीच अंतर ज्ञात करते हैं? जलवायु एवं जैविक क्रियाओं की मृदा निर्माण में दो महत्वपूर्ण कारकों के रूप में क्या भूमिका है?
उत्तर
मृदा निर्माण की प्रक्रिया अपक्षय से शुरू होती है| यह अपक्षयी प्रावार ही मृदा निर्माण का मूल निवेश होता है| सर्वप्रथम अपक्षयित प्रावार या लाए गए पदार्थों का निक्षेप, बैक्टेरिया या अन्य निकृष्ट पौधे जैसे काई एवं लाइकेन द्वारा उपनिवेशित किए जाते हैं| प्रावार एवं निक्षेप के अंदर कई गौण जीव भी आश्रय प्राप्त कर लेते हैं| जीव एवं पौधों के मृत्त अवशेष ह्यूमस के एकत्रीकरण में सहायक होते हैं| प्रारंभ में गौण घास एवं फर्न्स की वृद्धि हो सकती है बाद में पक्षियों एवं वायु द्वारा लाए गए बीजों से वृक्ष एवं झाड़ियों में वृद्धि होने लगती है| पौधों की जड़ें नीचे तक घुस जाती है| बिल बनाने वाले, जानवर कणों को ऊपर लाते हैं, जिससे पदार्थों का पुंज छिद्रमय एवं स्पंज की तरह हो जाता है| इस प्रकार जल-धारण की क्षमता, वायु के प्रवेश आदि के कारण अंततः परिपक्व, खनिज एवं जीव-उत्पाद युक्त मृदा का निर्माण होता है|
मृदा निर्माण पाँच मूल कारकों द्वारा नियंत्रित होता है| ये कारक हैं- (i) मूल पदार्थ (शैलें) (ii) स्थलाकृति (iii) जलवायु (iv) जैविक क्रियाएँ (v) समय| वस्तुतः मृदा निर्माण कारक संयुक्त रूप से कार्यरत होते हैं एवं एक दूसरे के कार्य को प्रभावित करते हैं|
जलवायु एवं जैविक क्रियाएँ मृदा निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं| मृदा के विकास में संलग्न जलवायवी तत्त्वों में प्रमुख हैं: प्रवणता, वर्षा, एवं वाष्पीकरण की बारंबारता व अवधि तथा आर्दता और तापक्रम में मौसमी एवं दैनिक भिन्नता| वर्षा से मिट्टी की नमी बनी रहती है जो रासायनिक और जैविक गतिविधियों को संभव बनाता है| पानी की अधिकता मृदा के माध्यम से मृदा घटकों के नीचे की ओर परिवहन में मदद करती है| तापमान दो तरह से कार्य करता है- रासायनिक और जैविक गतिविधि को बढ़ाना या घटाना| उच्च तापमान में रासायनिक गतिविधि बढ़ जाती है| कूलर, तापमान में कमी (कार्बोनेनेटीकरण के अपवाद के साथ) और ठंड की स्थिति में बंद हो जाता है|
वनस्पति आवरण एवं जीव जो मूल पदार्थों पर प्रारंभ तथा बाद में भी विद्यमान रहते हैं मृदा में जैव पदार्थ, नमी धारण की क्षमता तथा नाइट्रोजन इत्यादि जोड़ने में सहायक होते हैं| मृत पौधे मृदा को सूक्ष्म विभाजित जैव पदार्थ-ह्यूमस प्रदान करते हैं| तापमान में वृद्धि के साथ जैविक क्रियाओं में वृद्धि होती है| आर्द्र, उष्ण एवं भूमध्य रेखीय जलवायु में बैक्टेरियल वृद्धि एवं क्रियाएँ सघन होती हैं|
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3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए|
(i) “हमारी पृथ्वी भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के दो विरोधात्मक (Opposing) वर्गों के खेल का मैदान है|” व्याख्या कीजिए|
उत्तर
सर्वप्रथम भू-पर्पटी गत्यात्मक है| यह क्षैतिज तथा उर्ध्वाधर दिशाओं में संचलित होती रहती है| भू-पर्पटी का निर्माण करने वाले पृथ्वी के भीतर सक्रिय आंतरिक बलों में पाया जाने वाला अंतर ही पृथ्वी के बाह्य सतह में अंतर के लिए उत्तरदायी है| मूलतः, धरातल सूर्य से प्राप्त ऊर्जा द्वारा प्रेरित बाह्य बलों से अनवरत प्रभावित होता रहता है| निश्चित रूप से आंतरिक बल अभी भी सक्रिय है, यद्यपि उनकी तीव्रता में अंतर है| इसका तात्पर्य है कि धरातल पृथ्वी के अंतर्गत उत्पन्न हुए बाह्य बलों एवं पृथ्वी के अंदर उद्भूत आंतरिक बलों से अनवरत प्रभावित होता है तथा यह सर्वदा परिवर्तनशील है| बाह्य बलों को बहिर्जनिक तथा आंतरिक बलों को अंतर्जनित बल कहते हैं| बहिर्जनिक बलों की क्रियाओं का परिणाम होता है- उभरी हुई भू-आकृतियों का विघर्षण तथा बेसिन/निम्न क्षेत्रों/गतों का भराव (अधिवृद्धि/तल्लोचन| धरातल पर अपरदन के माध्यम सै उच्चावच के मध्य अंतर के कम होने को तल संतुलन कहते हैं| अंतर्जनित शक्तियाँ निरंतर धरातल के भागों को उपर उठाती हैं या उनका निर्माण करती हैं तथा इस प्रकार बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ उच्चावच में भिन्नता को सम (बराबर) करने में असफल रहती हैं| अतएव भिन्नता तब तक बनी रहती है जब तक बहिर्जनिक एवं अन्तर्जनित बलों के विरोधात्मक कार्य चलते रहते हैं| सामान्यत: अंतर्जनित बल मूल रूप से भू-आकृति निर्माण करने वाले बल हैं तथा बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ मुख्य रूप से भूमि विघर्षण बल होती हैं|
(ii) ‘बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ अपनी अंतिम ऊर्जा सूर्य की गर्मी से प्राप्त करती हैं|’ व्याख्या कीजिए|
उत्तर
बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ अपनी ऊर्जा ‘सूर्य द्वारा निर्धारित वायुमंडलीय ऊर्जा एवं अंतर्जनित शक्तियों से नियंत्रित विवर्तनिक कारकों से उत्पन्न प्रवणता से प्राप्त करती हैं| सभी बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं को एक सामान्य शब्दावली अनाच्छादन के अंतर्गत रखा जा सकता है| अपक्षय, वृहत् क्षरण, संचलन, अपरदन, परिवहन आदि सभी इसमें सम्मिलित किए जाते हैं|
• अपक्षय: अपक्षय के अंतर्गत वायुमंडलीय तत्वों की धरातल के पदार्थों पर की गई क्रिया सम्मिलित होती है| मौसम और जलवायु के घटकों में तापमान, दबाव, हवाएं, आर्द्रता और वर्षा होती है| इन सभी घटकों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सूर्य से ऊर्जा प्राप्त होती है|
• बृहत् संचलन: इसके अंतर्गत वे सभी संचलन आते हैं, जिनमें शैलों का बृहत् मलवा गुरूत्वाकर्षण के सीधे प्रभाव करने के कारण ढाल के अनुरूप स्थानांतरित होता है| यद्यपि बृहत् संचलन के लिए अपक्षय अनिवार्य नहीं है, परंतु यह इसे बढ़ावा देता है|
• अपरदन एवं निक्षेपण: अपरदन के अंतर्गत शैलों के मलवे की अवाप्ति एवं उनके परिवहन को सम्मिलित किया जाता है| धरातल के पदार्थों का क्षरण और परिवहन प्रवाहित जल, हिमानी, वायु, लहरें एवं धाराओं के द्वारा होता है| इनमें से, पहले तीन कारक जलवायु परिस्थितियों द्वारा नियंत्रित होते हैं, जबकि जलवायु सूर्य की ऊर्जा से तय होती है|
इस प्रकार, सभी बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ अपनी अंतिम ऊर्जा सूर्य की गर्मी से प्राप्त करती हैं| हालांकि, पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल सभी बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं में सहायता करता है क्योंकि गुरुत्वाकर्षण गतिशीलता संभव बनाता है|
(iii) क्या भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ एक दूसरे से स्वतंत्र हैं? यदि नहीं तो क्यों? सोदाहरण व्याख्या कीजिए|
उत्तर
भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ एक दूसरे से स्वतंत्र हैं| भौतिक या यांत्रिक अपक्षय प्रक्रियाएँ कुछ अनुप्रयुक्त बलों पर निर्भर करती हैं| ये अनुप्रयुक्त बल निम्नलिखित हो सकते हैं: (i) गुरूत्वाकर्षण बल, जैसे अत्यधिक ऊपर भार दबाव, एवं अपरूपण प्रतिबल, (ii) तापक्रम में परिवर्तन, क्रिस्टल रवों में वृद्धि एवं पशुओं के क्रियाकलापों के कारण उत्पन्न विस्तारण बल, (iii) शुष्कन एवं आर्द्रन चक्रों से नियंत्रित जल का दबाव| जबकि रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाओं में विलयन, कार्बोनेटीकरण, जलयोजन, ऑक्सीकरण तथा न्यूनीकरण का कार्य करते हैं, जो कि रासायनिक क्रिया द्वारा सूक्ष्म अवस्था में परिवर्तित हो जाती हैं| ऑक्सीजन, धरातलीय जल, मृदा जल एवं अन्य अम्लों की प्रक्रिया द्वारा चट्टानों का न्यूनीकरण होता है|
रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ भौतिक अपक्षय प्रक्रियाओं के कार्य पर निर्भर होती हैं| भौतिक अपक्षय के घटक जैसे कि तापमान में परिवर्तन तथा जमे हुए शैलों को तोड़ना जैसे कार्य रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाओं के लिए मार्ग प्रशस्त करते हैं| रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ शैलों को विघटित करती हैं जिसके कारण भौतिक अपक्षय प्रक्रियाओं द्वारा ये आसानी से टूट सकते हैं|
(iv) आप किस प्रकार मृदा निर्माण प्रक्रियाओं तथा मृदा निर्माण कारकों के बीच अंतर ज्ञात करते हैं? जलवायु एवं जैविक क्रियाओं की मृदा निर्माण में दो महत्वपूर्ण कारकों के रूप में क्या भूमिका है?
उत्तर
मृदा निर्माण की प्रक्रिया अपक्षय से शुरू होती है| यह अपक्षयी प्रावार ही मृदा निर्माण का मूल निवेश होता है| सर्वप्रथम अपक्षयित प्रावार या लाए गए पदार्थों का निक्षेप, बैक्टेरिया या अन्य निकृष्ट पौधे जैसे काई एवं लाइकेन द्वारा उपनिवेशित किए जाते हैं| प्रावार एवं निक्षेप के अंदर कई गौण जीव भी आश्रय प्राप्त कर लेते हैं| जीव एवं पौधों के मृत्त अवशेष ह्यूमस के एकत्रीकरण में सहायक होते हैं| प्रारंभ में गौण घास एवं फर्न्स की वृद्धि हो सकती है बाद में पक्षियों एवं वायु द्वारा लाए गए बीजों से वृक्ष एवं झाड़ियों में वृद्धि होने लगती है| पौधों की जड़ें नीचे तक घुस जाती है| बिल बनाने वाले, जानवर कणों को ऊपर लाते हैं, जिससे पदार्थों का पुंज छिद्रमय एवं स्पंज की तरह हो जाता है| इस प्रकार जल-धारण की क्षमता, वायु के प्रवेश आदि के कारण अंततः परिपक्व, खनिज एवं जीव-उत्पाद युक्त मृदा का निर्माण होता है|
मृदा निर्माण पाँच मूल कारकों द्वारा नियंत्रित होता है| ये कारक हैं- (i) मूल पदार्थ (शैलें) (ii) स्थलाकृति (iii) जलवायु (iv) जैविक क्रियाएँ (v) समय| वस्तुतः मृदा निर्माण कारक संयुक्त रूप से कार्यरत होते हैं एवं एक दूसरे के कार्य को प्रभावित करते हैं|
जलवायु एवं जैविक क्रियाएँ मृदा निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं| मृदा के विकास में संलग्न जलवायवी तत्त्वों में प्रमुख हैं: प्रवणता, वर्षा, एवं वाष्पीकरण की बारंबारता व अवधि तथा आर्दता और तापक्रम में मौसमी एवं दैनिक भिन्नता| वर्षा से मिट्टी की नमी बनी रहती है जो रासायनिक और जैविक गतिविधियों को संभव बनाता है| पानी की अधिकता मृदा के माध्यम से मृदा घटकों के नीचे की ओर परिवहन में मदद करती है| तापमान दो तरह से कार्य करता है- रासायनिक और जैविक गतिविधि को बढ़ाना या घटाना| उच्च तापमान में रासायनिक गतिविधि बढ़ जाती है| कूलर, तापमान में कमी (कार्बोनेनेटीकरण के अपवाद के साथ) और ठंड की स्थिति में बंद हो जाता है|
वनस्पति आवरण एवं जीव जो मूल पदार्थों पर प्रारंभ तथा बाद में भी विद्यमान रहते हैं मृदा में जैव पदार्थ, नमी धारण की क्षमता तथा नाइट्रोजन इत्यादि जोड़ने में सहायक होते हैं| मृत पौधे मृदा को सूक्ष्म विभाजित जैव पदार्थ-ह्यूमस प्रदान करते हैं| तापमान में वृद्धि के साथ जैविक क्रियाओं में वृद्धि होती है| आर्द्र, उष्ण एवं भूमध्य रेखीय जलवायु में बैक्टेरियल वृद्धि एवं क्रियाएँ सघन होती हैं|
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