पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और सार - पाठ 6 - स्पीति में बारिश (Spiti me Baarish) आरोह भाग - 1 NCERT Class 11th Hindi Notes
सारांश
स्पीति हिमाचल प्रदेश के लाहुल-स्पीति जिले की तहसील है| उल्लेखनीय घटनाओं तथा मानवीय गतिविधियों के अभाव के कारण इसका इतिहास में कोई जिक्र नहीं किया गया है| यहाँ के ऊँचे-ऊँचे दर्रे तथा कठिन रास्ते पर्यटकों को आकर्षित करने में असमर्थ हैं| यहाँ संचार तथा परिवहन के आधुनिक सुविधाओं का अभी तक विकास नहीं हुआ है| यहाँ के लोग शेष दुनिया से कटे हुए हैं|
स्पीति की भौगोलिक स्थिति कुछ इस प्रकार है कि प्राचीन काल से लेकर मध्यकाल में ब्रिटिश शासन तक यह स्वतंत्र रही है| स्पीति में जनसंख्या लाहुल से भी कम है| यहाँ की जनसंख्या प्रति वर्गमील चार से भी कम है| अंग्रेजों के शासन काल में स्पीति का शासन एक नोनो द्वारा चलाया जाता था| नोनो वहाँ के स्थानीय शासक को कहा जाता था| इसका अधिकार-क्षेत्र केवल द्वितीय दर्जे के मजिस्ट्रेट के बराबर था, लेकिन स्पीति के लोग इसे ही अपना राजा मानते थे| राजा के न होने पर वे दमयंती जी को रानी मानते हैं| 1873 में पास हुए स्पीति रेगुलेशन के तहत लाहुल और स्पीति को विशेष दर्जा दिया गया| ब्रिटिश भारत के अन्य कानून यहाँ नहीं लागू होते थे| रेगुलेशन के अधीन प्रशासन के अधिकार नोनो को दिए गए जिसमें मालगुजारी इकट्ठा करना और छोटे-छोटे फौजदारी के मुकदमों का फैसला करना भी शामिल था| उसके उपर के मामले वह कमिश्नर के पास भेज देता था|
स्पीति 31.42 और 31.59 अक्षांश उत्तर और 77.26 और 78.42 पूर्व देशांतर के बीच स्थित है| यह चारों और से ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों का कैदी है| इन पहाड़ों की औसत ऊँचाई 18,1100 फीट है| यह पहाड़ उसे पूरब में तिब्बत, पश्चिम में लाहुल है, दक्षिण में किन्नौर और उत्तर में लद्दाख से अलग करते हैं| इसकी मुख्य घाटी इसी नाम की स्पीति नदी की घाटी है| स्पीति पश्चिम हिमालय में लगभग 16,1100 फीट को ऊँचाई से निकल कर पूरब में तिब्बत में जाती है, वहाँ से स्पीति में आती है|
स्पीति में आठ-नौ महीने बर्फ पड़ती रहती है जिसके कारण यहाँ के लोग शेष दुनिया से कटे हुए रहते हैं| अधिक ऊँचाई वाले चोटियों से घिरे रहने के कारण मानसून यहाँ नहीं पहुँचता, जिससे वर्षा न के बराबर होती है| यहाँ मुख्यतः दो ऋतुएँ होती हैं; वसंत तथा शीत ऋतु| वसंत ऋतु कम दिनों का होता है| इस ऋतु में न तो यहाँ फूल खिलते हैं और न ही हरियाली आती है| दिसंबर से मई तक यहाँ ठंड का मौसम होता है| इस समय यहाँ के नदी-नाले सब जम जाते हैं और हवाएँ तेज चलती हैं| लकड़ी की कमी के कारण घर को गरम रख पाना मुश्किल होता है| साल में एक ही फसल की खेती होती है| जौ, गेहूँ, मटर तथा सरसों यहाँ उपजाई जाने वाली मुख्य फसलें हैं| वर्षा की कमी के कारण फल नहीं उगाये जाते|
स्पीति में माने श्रेणी की ऊँचाई 21,646 फीट बताई गई है| इन श्रेणियों में बौद्ध लामा मंत्रों का जाप किया करते हैं| यह तो इस श्रेणी की किसी चोटी की ऊँचाई होगी| पूरी श्रेणी की ऊँचाई तो एक नहीं होगी| इसमें जो छोटी-छोटी चोटियाँ हैं, उनकी ऊँचाई भी 17,000 फीट से अधिक है| कई गाँव समुद्र की सतह से 13,000 फीट से ऊँचे बसे हैं| एक या दो 14,000 फीट की ऊँचाई पर है| यह मध्य हिमालय है, जहाँ स्पीति स्थित है| इन श्रेणियों में बौद्ध लामा मंत्रों का जाप किया करते थे|
इस प्रकार, स्पीति में बारिश का होना सुखद संयोग माना जाता है| लेखक के यात्रा के दौरान भी एक दिन संयोग से वर्षा होती है तथा वहाँ के निवासी उनकी यात्रा को शुभ मानते हैं| बहुत दिनों के बाद स्पीति में बारिश हुई थी|
कथाकार-परिचय
कृष्णनाथ
जन्म: सन् 1934, वाराणसी
प्रमुख रचनाएँ: लद्दाख में राग-विराग, किन्नर धर्मलोक, स्पीति में बारिश, पृथ्वी-परिक्रमा, हिमाचल यात्रा, अरुणाचल यात्रा, बौद्ध निबंधावली
इन्होनें हिंदी और अंग्रेजी में कई पुस्तकों का भी संपादन किया है| इन्हें लोहिया सम्मान प्रदान किया गया है| कृष्णनाध के व्यक्तित्व के कई पहलू हैं| काशी हिंदू विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम. ए. के बाद उनका झुकाव समाजवादी आन्दोलन और बौद्ध-दर्शन की ओर हो गया| बौद्ध-दर्शन में उनकी गहरी पैठ है| वे अर्थशास्त्र के विद्वान हैं और काशी विद्यापीठ में इसी विषय के प्रोफेसर भी रहे| अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओं पर उनका अधिकार है और दोनों की पत्रकारिता से भी उनका जुड़ाव रहा| हिंदी की साहित्यिक पत्रिका ‘कल्पना’ के संपादक मंडल में वे कई साल रहे और अंग्रेजी के ‘मैनकाइंड’ का कुछ वर्षों तक संपादन भी किया| राजनीति, पत्रकारिता और अध्यापन की प्रक्रिया से गुजरते-गुजरते वे बौद्ध-दर्शन की आंर मुड़े| भारतीय और तिब्बती आचार्यों के साथ बैठकर उन्होंने नागार्जुन के दर्शन और वज्रयानी परंपरा का अध्ययन शुरू किया| बौद्ध-दर्शन पर कृष्णनाथ जी ने काफी कुछ लिखा है|
उन्होंने हिमालय की यात्रा शुरु की और उन स्थानों को खोजना और खंगालना शुरू किया जो बौद्ध-धर्म और भारतीय मिथकों से जुड़े हैं| फिर जब उन्होंने इस यात्रा को शब्दों में बाँधना शुरू किया तो यात्रा-वृत्तांत जैसी विधा अनूठी विलक्षणता से भर गईं| कृष्णनाथ जहाँ की यात्रा करते हैं वहाँ वे सिर्फ पर्यटक नहीं होते बल्कि एक तत्ववेत्ता की तरह वहाँ का अध्ययन करते चलते हैं| पर वे शुष्क अध्ययन नहीं करते बल्कि उस स्थान विशेष से जुड़ी स्मृतियों को उघाड़ते हैं|
कृष्णनाथ के यात्रा-वृत्तांत स्थान विशेष से जुड़े होकर भी भाषा, इतिहास, पुराण का संसार समेटे हुए हैं| पाठक उनके साथ खुद यात्रा करने लगता है| वे लोग, जो इन स्थानों की यात्रा कर चुके होते हैं, वे भी अगर कृष्णनाथ के यात्रा-वृत्तांत को पढ़ेंगे तो उन्हें कुछ नया लगेगा| उन्हें महसूस होगा कि उनकी पुरानी यात्रा अधूरी थी और कृष्णनाथ के यात्रा-वृत्तांत को पढ़कर वह पूरी हुई|
कठिन शब्दों के अर्थ
• अलंध्य- जिसे लाँघा या पार न किया जा सके।
• स्वायत- स्वतंत्र
• अतर्क्य- तर्क न करने योग्य
• आर्तनाद- दर्द भरी ऊँची आवाज़, स्वर में दुख का ज्ञापन या सहायता की पुकार
• पीरपंचाल- एक पर्वत श्रृंखला
• महात्स्य- महिमा, गौरव
• कूवत (फ़ा. कूव्वत)- बल, शक्ति
• षड्ऋतुएँ- छह ऋतुएँ (वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद. शिशिर, हेमन्त)
• तुषार- हिम, बरफ
• दुंगछेन- एक तरह का वाद्ययंत्र, महाशंख जिसे फूँक मारकर बजाया जाता है|