पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और सार - पाठ 8 - जामुन का पेड़ (Jamun ka Ped) आरोह भाग - 1 NCERT Class 11th Hindi Notes
सारांश
रात में चले तेज आँधी के कारण जामुन का पेड़ सचिवालय के लॉन में गिर गया, जिसके नीचे एक आदमी दब गया था| माली ने देखा तो यह बात उसने चपरासी को बताई| धीरे-धीरे यह बात पूरे सचिवालय में फ़ैल गई| सभी जामुन के पेड़ के गिरने पर दुःख जता रहे थे, लेकिन दबे हुए आदमी के बारे कोई नहीं सोच रहा था| कुछ मनचले क्लर्कों ने कानून की परवाह किए बिना निश्चय किया कि पेड़ काटकर आदमी को निकाल लिया जाए| लेकिन सुपरिंटेंडेंट ने बताया कि मामला कृषि विभाग का है, इसलिए पेड़ को वे काट नहीं सकते| इस प्रकार मामला व्यापार विभाग से कृषि विभाग तक पहुँच जाता है| कृषि विभाग वाले मामले को हॉर्टीकल्चर विभाग को सौंप देते हैं क्योंकि जामुन का पेड़ फलदार था| तभी सबको पता चलता है कि दबा हुआ व्यक्ति शायर है| इस खबर के फैलते ही लोगों की भीड़ बढ़ने लगी और मामला कल्चरल विभाग में भेज दिया जाता है| दबा हुआ आदमी दर्द से पीड़ित था और अपने निकाले जाने के फैसले के इंतजार में था| फ़ॉरेस्ट विभाग के लोग पेड़ काटने ही वाले थे, तभी पता चला कि जामुन का पेड़ पीटोनिया राज्य के प्रधानमन्त्री ने लगाया था और इसे काटने से दो राज्यों के संबंध बिगड़ जाते| इसलिए आदेश को रोक दिया गया| प्रधानमंत्री दौरे से वापस आए तो उन्होंने इस मामले की अंतर्राष्ट्रीय जिम्मेदारी स्वयं ली| इस प्रकार पेड़ काटने की अनुमति मिल गई| लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी| दबा हुआ आदमी मर चुका था और उसकी जीवन की फाइल बंद हो चुकी थी| इस प्रकार, सरकारी आदेश और उसकी संवेदनहीनता के आगे एक व्यक्ति अपने जीवन-संघर्ष में हार गया था|
कृश्नचंदर
जन्म : सन् 1914, पंजाब के वजीराबाद गाँव (जिला- गुजरांकलां) में
प्रमुख रचनाएँ : उनकी प्रमुख रचनाएँ एक गिरजा-ए-खंदक, युकेलिप्ट्स की डाली (कहानी-संग्रह); शिकस्त, ज़रगाँव की रानी, सड़क वापस जाती है, आसमान रौशन है, एक गधे की आत्मकथा, अन्नदाता, हम वहशी हैं, जब खेत जागे, बावन पत्ते, एक वायलिन समंदर के किनारे, कागज़ की नाव, मेरी यादों के किनारे (उपन्यास)
सम्मान : उन्हें साहित्य अकादमी सहित बहुत से पुरस्कार प्रदान किए गए हैं|
मृत्यु : इनकी मृत्यु सन् 1977 में हुई|
प्रेमचंद के बाद जिन कहानीकारों ने कहानी विधा को नई ऊँचाईयों तक पहुँचाया, उनमें उर्दू कथाकार कृश्नचंदर का नाम महत्वपूर्ण है| प्रगतिशील लेखक संघ से उनका गहरा सबंध था, जिसका असर उनकी रचनाओं में स्पष्ट रूप से झलकता है| कृश्नचंदर ऐसे गिने-चुने लेखकों में आते हैं, जिन्होंने बाद में चलकर लेखन को ही रोजी-रोटी का सहारा बनाया|
कृश्नचंदर की प्राथमिक शिक्षा पुंछ (जम्मू एवं कश्मीर) में हुई| उच्च शिक्षा के लिए वे सन् 1930 में लाहौर आ गए और फॉरमेन क्रिश्चियन कॉलेज में प्रवेश लिया| 1934 में पंजाब विश्वविद्यालय से उन्होंने अंग्रेजी में एम.ए. किया| बाद में उनका जुड़ाव फिल्म जगत से हो गया और अंतिम समय तक वे मुंबई में ही रहे|
यों तो कृश्नचंदर ने उपन्यास, नाटक, रिपोर्ताज और लेख भी बहुत से लिखे हैं, लेकिन उनकी पहचान कहानीकार के रूप में अधिक हुई है| महालक्ष्मी का पुल, आईने के सामने आदि उनकी मशहूर कहानियाँ हैं| उनकी लोकप्रियता इस कारण भी यह है कि वे काव्यात्मक रोमानियत और शैली की विविधता के कारण अलग मुकाम बनाते हैं| कृश्नचंदर उर्दू कथा-साहित्य में अनूठी रचनाशीलता के लिए बहुचर्चित रहे हैं| वे प्रगतिशील और यथार्थवादी नजरिए से लिखे जाने वाले साहित्य के पक्षधर थे|
कठिन शब्दों के अर्थ
• झक्कड़- आँधी
• रुआँसा- रोनी सूरत
• ताज्जुब- आश्चर्य
• हॉर्टीकल्चर- उद्यान कृषि
• एग्रीकल्चर- कृषि
• तग़ाफुल- विलंब, देर, उपेक्षा
NCERT Solutions of पाठ 8 - जामुन का पेड़