NCERT Solutions of Jeev Vigyan for Class 12th: Ch 13 जीव और समष्टियाँ जीव विज्ञान
प्रश्नपृष्ठ संख्या 260
1. शीत निष्क्रियता (हाइबर्नेशन) से उपरति (डायपाज) किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर
उपरति (डायपाज), प्रतिकूल परिस्थितियों से निपटने के लिए निलंबित परिवर्धन की एक अवस्था है| प्राणिप्लवक (जूप्लैंकटन) की अनेक जातियाँ उनके विकास के दौरान प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों पर पार पाने के लिए उपरति (डायपाज) का प्रदर्शन करती हैं|
शीत निष्क्रियता (हाइबर्नेशन) आराम की अवस्था होती है, जिसमें जानवर स्वयं को घरों में छिपाकर सर्दी (ठंड) से बचते हैं| वे अपने उपापचय को धीमा करके निष्क्रियता की स्थिति में प्रवेश करके सर्दियों के मौसम में बचते हैं| शीत निष्क्रियता (हाइबर्नेशन) की घटना चमगादड़, गिलहरी और अन्य कृन्तकों में प्रदर्शित होती है|
2. अगर समुद्री मछली को अलवणजल (फ्रेशवाटर) की जलजीवशाला (एक्वेरियम) में रखा जाता है तो क्या वह मछली जीवित रह पाएगी? क्यों और क्यों नहीं?
उत्तर
अगर समुद्री मछली को अलवणजल (फ्रेशवाटर) की जलजीवशाला (एक्वेरियम) में रखा जाता है तो इसके जीवित रहने की संभावना कम हो जाएगी| इसका कारण यह है कि उनके शरीर समुद्री वातावरण के उच्च नमक सांद्रता का आदी है| ताजे पानी की स्थिति में, वे अपने शरीर में प्रवेश करते जल को विनियमित करने में असमर्थ होते हैं (परासरण के द्वारा)| बाहर के अल्पपरासारी पर्यावरण के कारण जल उनके शरीर में प्रवेश करता है| परिणामस्वरूप, शरीर की सूजन बढ़ जाती है, जिसके कारण समुद्री मछली मर जाती है|
3. लक्षण प्ररूपी (फीनोटाइपिक) अनुकूलन की परिभाषा दीजिए| एक उदाहरण दीजिए|
उत्तर
लक्षण प्ररूपी (फीनोटाइपिक) अनुकूलन में आनुवंशिक उत्परिवर्तन या एक निश्चित पर्यावरण में परिवर्तन के कारण एक जीव के शरीर में हुए परिवर्तन को शामिल किया जाता है| किसी जीव में ये समायोजन अपने प्राकृतिक आवास में मौजूद पर्यावरणीय परिस्थितियों से निपटने के लिए उत्पन्न होते हैं| उदाहरण के लिए – मरूस्थलीय पौधों की पत्तियों की सतह पर मोटी उपत्वचा होती है और उनके रंध्र गहरे गर्त में व्यवस्थित होते हैं, ताकि वाष्पोत्सर्जन द्वारा जल की न्यूनतम हानि हो और हाथियों के लंबे कान होते हैं जो ताप-नियमक का कार्य करती हैं|
4. अधिकतर जीवधारी 45° सेंटी. से अधिक तापमान पर जीवित नहीं रह सकते| कुछ सूक्ष्मजीव (माइक्रोव) ऐसे आवास में जहाँ तापमान 100° सेंटी. अधिक है, कैसे जीवित रहते हैं?
उत्तर
आर्किबैक्टीरिया (थर्मोफिलस) बैक्टीरिया के प्राचीन रूप हैं, जो तप्त झरनों और गहरे समुद्र के उष्णजलीय निकासों में पाए जाते हैं| वे उच्च तापमान में जीवित रहने में सक्षम हैं क्योंकि उनके शरीर ऐसी पर्यावरणीय परिस्थितियों के लिए अनुकूलित हैं| इन जीवों में विशेष ताप-प्रतिरोधक एंजाइम होते हैं, जो उपापचयी क्रियाओं को पूरा करते हैं जिसके कारण वे उच्च तापमान पर भी नष्ट नहीं होते|
5. उन गुणों को बताइए जो व्यष्टियों में तो नहीं पर समष्टियों में होते हैं|
उत्तर
एक समष्टि को किसी सुपरिभाषित भौगोलिक क्षेत्र में एक ही प्रजाति के व्यष्टियों के समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो समान संसाधनों का साझा उपयोग करते हैं अथवा उनके लिए स्पर्धा करते हैं| उदाहरण के लिए, किसी विशेष समय पर किसी विशेष स्थान पर रहने वाले सभी मानव प्रजाति मनुष्यों की समष्टि की रचना करते हैं|
किसी विशेष क्षेत्र में रहने वाले समष्टि की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
• जन्म दर- यह एक क्षेत्र की कुल समष्टि तथा उस क्षेत्र में जन्म का अनुपात होता है| यह समष्टि के सदस्यों के रूप में समष्टि में जोड़े जाने वाले व्यक्तियों की संख्या के रूप में व्यक्त किया जाता है|
• मृत्यु दर- यह एक क्षेत्र की समष्टि के साथ उस क्षेत्र में होने वाली मृत्यु का अनुपात होता है| यह समष्टि के सदस्यों के रूप में व्यक्तियों के नुकसान के रूप में व्यक्त किया जाता है|
• लिंग अनुपात- यह प्रति हजार व्यक्तियों में पुरूषों या महिलाओं की संख्या का अनुपात होता है|
• आयु वितरण- यह दी गई समष्टि में विभिन्न आयु के व्यक्तियों का प्रतिशत होता है| दिए गए किसी भी समय में, समष्टि की रचना व्यक्तियों द्वारा होती है जो विभिन्न आयु समूहों में उपस्थित होते हैं| आयु वितरण पैटर्न आमतौर पर आयु पिरैमिड के माध्यम से प्रदर्शित किया जाता है|
• समष्टि घनत्व- यह दिए गए समय पर प्रति इकाई क्षेत्र में उपस्थित समष्टि के व्यक्तियों की संख्या के रूप में परिभाषित किया जाता है|
6. अगर चरघतांकी रूप से (एक्पोनेन्शियली) बढ़ रही समष्टि 3 वर्ष दोगुने साइज़ की हो जाती है, तो समष्टि की वृद्धि की इंट्रीनिजक दर (r) क्या है?
उत्तर
एक समष्टि चरघतांकी रूप से (एक्पोनेन्शियली) बढ़ती है, यदि पर्याप्त मात्रा में खाद्य संसाधन व्यक्ति के लिए उपलब्ध हैं| चारघतांकी वृद्धि समीकरण के समाकलित रूप द्वारा चरघतांकी वृद्धि की गणना की जा सकती है :
Nt = Noert
जहाँ,
Nt = समय t में समष्टि घनत्व
No = समय शून्य में समष्टि घनत्व
r = प्राकृतिक वृद्धि की इंट्रीनिजक दर
e = प्राकृतिक लघुगणकों का आधार (2.71828)
दिए गए समीकरण द्वारा समष्टि की वृद्धि की इंट्रीनिजक दर (r) की गणना की जा सकती है|
अब प्रश्न के अनुसार,
उपस्थित समष्टि घनत्व = x
दो वर्ष पश्चात् समष्टि घनत्व = 2x
t = 3 वर्ष
इन मानों को समीकरण में रखने पर,
⇒ 2x = xe3r
⇒ 2 = e3r
दोनों तरफ log रखने पर,
⇒ log 2 = 3r log e
इस प्रकार, उपरोक्त सचित्र समष्टि की वृद्धि की इंट्रीनिजक दर (r) 0.2311 है|
7. पादपों में शाकाहारिता (हर्बिवोरी) के विरूद्ध रक्षा करने की महत्त्वपूर्ण विधियाँ बताइए|
उत्तर
कुछ पादपों ने शाकाहारिता (हर्बिवोरी) के विरूद्ध आकारिकीय और रासायनिक विविध रक्षाविधियाँ विकसित की हैं|
(i) आकारिकीय रक्षाविधि साधन :
(a) शाकाहारियों को रोकने के लिए एकेशिया के पत्तियों के साथ तेज काँटे मौजूद होते हैं|
(b) कैक्टस की पत्तियों में तेज काँटों में परिवर्तित हो जाते हैं ताकि शकाह्रियों द्वारा खाने से बच सकें|
(c) कुछ पौधों के पत्तों में तेज किनारे होते हैं जो शाकाहारियों को खाने से रोकते हैं|
(ii) रासायनिक रक्षाविधि साधन :
(a) निकोटीन, कैफीन, क्विनिन और अफीम जैसे रासायनिक पदार्थों को आत्मरक्षा के रूप में पौधों द्वारा उत्पादित किया जाता है|
(b) कैलोट्रोपिस खरपतवार का पौधा अत्यधिक विषैला हृदय ग्लाइकोसाइड उत्पन्न करता है, जो शाकाहारियों द्वारा खाए जाने पर जानलेवा साबित हो सकते हैं|
8. ऑर्किड पौधा, आम के पेड़ की शाखा पर उग रहा है| ऑर्किड और आम के पेड़ के बीच पारस्परिक क्रिया का वर्णन आप कैसे करेंगे?
उत्तर
आम की शाखा पर उगने वाला एक ऑर्किड का पौधा अधिपादप होता है| अधिपादप वे पौधे होते हैं, जो किसी अन्य पौधे पर वृद्धि करते हैं लेकिन उनसे पोषण प्राप्त नहीं करते| इसलिए, आम के पेड़ और एक ऑर्किड के पौधे के बीच की पारस्परिक क्रिया सहभोजिता का एक उदाहरण है, जहाँ एक जाति को लाभ होता है, जबकि दूसरा इससे अप्रभावित रहता है| यहां, ऑर्किड के पौधे को लाभ होता है क्योंकि इसे आम के पेड़ का सहारा मिलता है, जबकि आम का पेड़ को कोई लाभ नहीं होता|
9. कीट पीड़कों (पेस्ट/इन्सेक्ट) के प्रबंध के लिए जैव-नियंत्रण विधि के पीछे क्या पारिस्थितिक सिद्धांत है?
उत्तर
विभिन्न जैव-नियंत्रण विधियों का आधार परभक्षण की अवधारणा पर आधारित है| परभक्षण परभक्षी तथा शिकार के बीच एक जैविक पारस्परिक क्रिया है, जहाँ परभक्षी शिकार का भोजन करता है| परभक्षी एक आवास में शिकार की समष्टि को नियंत्रित करता है और कीट पीड़कों के प्रबंधन में मदद करता है|
10. निम्नलिखित के बीच अंतर कीजिए-
(क) शीत निष्क्रियता और ग्रीष्म निष्क्रियता (हाइबर्नेशन एंड एस्टीवेशन)
(ख) बाह्योष्मी और आंतरोष्मी (एक्टोथर्मिक एंड एडोथर्मिक)
उत्तर
(क) शीत निष्क्रियता और ग्रीष्म निष्क्रियता (हाइबर्नेशन एंड एस्टीवेशन)
शीत निष्क्रियता
|
ग्रीष्म निष्क्रियता
|
शीत निष्क्रियता, ठंड सर्द परिस्थिति से बचने के लिए कुछ जीवों में कम गतिविधि की एक अवस्था है|
|
ग्रीष्म निष्क्रियता, ग्रीष्म ऋतु से संबंधित ताप तथा जलशुष्कन जैसी समस्याओं से बचने के लिए कुछ जीवों में कम गतिविधि की एक अवस्था है| |
ठंडे क्षेत्रों में रहने वाले भालू और गिलहरी ऐसे जानवरों के उदाहरण हैं, जो शीतऋतु के दौरान शीत निष्क्रियता में रहते हैं| | मछलियाँ और घोंघे ग्रीष्मकाल के दौरान ग्रीष्म निष्क्रिय जीवों के उदाहरण हैं| |
(ख) बाह्योष्मी और आंतरोष्मी (एक्टोथर्मिक एंड एडोथर्मिक)
बाह्योष्मी
|
आंतरोष्मी
|
बाह्योष्मी ठंडे रक्त वाले जानवर होते हैं| | आंतरोष्मी गर्म रक्त वाले जानवर होते हैं| |
उनका तापमान उनके परिवेश के साथ बदलता रहता है| | वे शरीर का तापमान स्थिर बनाए रखते हैं| |
मछली, उभयचर, और सरीसृप बाह्योष्मी जानवर हैं| | पक्षी और स्तनधारी आंतरोष्मी जानवर हैं| |
11. निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी (नोट) लिखिए-
(क) मरुस्थल पादपों और प्राणियों का अनुकूलन
(ख) जल की कमी के प्रति पादपों का अनुकूलन
(ग) प्राणियों में व्यावहारिक (बिहेवियोरल) अनुकूलन
(घ) पादपों के लिए प्रकाश का महत्त्व
(ङ) तापमान और पानी की कमी का प्रभाव तथा प्राणियों का अनुकूलन
उत्तर
(क) मरुस्थल पादपों और प्राणियों का अनुकूलन
• मरुस्थल पादपों का अनुकूलन
मरुस्थल में पाए जाने वाले पौधे जल की कमी और तेज गर्मी जैसे कठोर मरुस्थलीय परिस्थिति से निपटने के लिए अनुकूलित होते हैं| इन पौधों की पत्तियों की सतह पर मोटी उपत्वचा होती है और उनके रन्ध्र गहरे गर्त में व्यवस्थित होते हैं, ताकि वाष्पोत्सर्जन द्वारा जल की न्यूनतम हानि न हो|
उनके प्रकाश संश्लेषी मार्ग भी विशेष प्रकार के होते हैं जिसके कारण वे अपने रन्ध्र दिन के समय बंद रख सकते हैं| कुछ मरुस्थली पादपों जैसे नागफनी, कैक्टस आदि में पत्तियाँ नहीं होती बल्कि वे कांटे में रूपांतरित हो जाती हैं और प्रकाश संश्लेषण का प्रकार्य चपटे तनों द्वारा होता है|
• मरुस्थल प्राणियों का अनुकूलन
मरुस्थल में पाए जाने वाले जानवर, जैसे- मरुस्थलीय कंगारू-चूहा, छिपकली, सांप आदि को अपने आवास के प्रति अनुकूलित होते हैं| एरिजोना के मरुस्थल में पाया जाने वाला कंगारू चूहा अपने पूरे जीवन में कभी पानी नहीं पीता है| जल को संरक्षित करने के लिए इसमें अपने मूत्र को सांद्रित करने की क्षमता होती है| ये अनुकूलन पानी की कमी को रोकने के लिए मरुस्थलीय जानवरों में होते हैं|
(ख) जल की कमी के प्रति पादपों का अनुकूलन
मरुस्थल में पाए जाने वाले पौधे जल की कमी और तेज गर्मी जैसे कठोर मरुस्थलीय परिस्थिति से निपटने के लिए अनुकूलित होते हैं| इन पौधों की पत्तियों की सतह पर मोटी उपत्वचा होती है और उनके रन्ध्र गहरे गर्त में व्यवस्थित होते हैं, ताकि वाष्पोत्सर्जन द्वारा जल की न्यूनतम हानि न हो|
उनके प्रकाश संश्लेषी मार्ग भी विशेष प्रकार के होते हैं जिसके कारण वे अपने रन्ध्र दिन के समय बंद रख सकते हैं| कुछ मरुस्थली पादपों जैसे नागफनी, कैक्टस आदि में पत्तियाँ नहीं होती बल्कि वे कांटे में रूपांतरित हो जाती हैं और प्रकाश संश्लेषण का प्रकार्य चपटे तनों द्वारा होता है|
(ग) प्राणियों में व्यावहारिक (बिहेवियोरल) अनुकूलन
कुछ जीव तापमान में होने वाले परिवर्तन से प्रभावित होते हैं| इन जीवों में अनुकूलन, जैसे कि शीत निष्क्रियता, ग्रीष्म निष्क्रियता, प्रवासीकरण आदि होते हैं, ताकि वे अपने प्राकृतिक आवास के अनुरूप पर्यावरणीय तनाव से बच सकें| एक जीव के व्यवहार में इस अनुकूलन को व्यावहारिक अनुकूलन कहा जाता है|
उदाहरण के लिए बाह्योष्मी और आंतरोष्मी जानवरों में व्यावहारिक अनुकूलन का प्रदर्शन करते हैं|
बाह्योष्मी ठंडे रक्त वाले प्राणी होते हैं, जैसे- मछली, उभयचर, सरीसृप आदि| उनका तापमान उनके परिवेश के साथ बदलता रहता है|
उदाहरण के लिए, जब मरुस्थलीय छिपकली का तापमान सुविधा स्तर से नीचे चला जाता है तब वे धूप सेंककर ऊष्मा अवशोषित करती हैं| लेकिन परिवेश का तापमान बढ़ने लगता है तब वे छाया में चली जाती हैं| अन्य मरुस्थलीय प्राणियों में भूमि से ऊपर की ऊष्मा से बचने के लिए मिट्टी में बिल खोदने की क्षमता होती है| कुछ आंतरोष्मी (गर्म रक्त वाले प्राणी) जैसे कि पक्षी और स्तनपायी ठंड में शीत निष्क्रियता तथा गर्मी में ग्रीष्म निष्क्रियता द्वारा गर्म तथा ठंडी परिस्थिति से बचते हैं| वे तापमान में परिवर्तन से बचाने के लिए स्वयं को आश्रयों में छिपाते हैं जैसे- गुफा, बिल आदि|
(घ) पादपों के लिए प्रकाश का महत्त्व
सूर्य के प्रकाश पौधों के लिए ऊर्जा के अंतिम स्रोत के रूप में कार्य करता है| पौधे स्वपोषी जीव होते हैं, जिन्हें प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के लिए प्रकाश की आवश्यकता होती है| पौधों में उत्पन्न होने वाले दीप्तिकालिक अनुक्रियाओं उत्पत्ति में प्रकाश भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है| पौधे पुष्पन हेतु अपनी दीप्तिकालिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मौसमी विभिन्नताओं के दौरान प्रकाश की तीव्रता में परिवर्तन के प्रति अनुक्रिया करते हैं| समुद्री पादपों के ऊर्ध्वाधर वितरण के लिए जलीय आवासों में भी प्रकाश महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है|
(ङ) तापमान और पानी की कमी का प्रभाव तथा प्राणियों का अनुकूलन
तापमान सबसे महत्वपूर्ण पारिस्थितिक कारक है| पृथ्वी पर औसत तापमान एक स्थान से दूसरे स्थान पर भिन्न होता है| तापमान में यह परिवर्तन पृथ्वी पर प्राणियों के वितरण को प्रभावित करते हैं| कुछ जीव तापमानों के व्यापक परास (चरम) सहन कर सकते हैं और उसमें खूब बढ़ते हैं, ये पृथुताजापी कहलाते हैं| लेकिन उनमें से अधिकांश तापमानों की कम परास में ही रहते हैं ऐसे जीव तनुतापी कहलाते हैं| प्राणी अपने प्राकृतिक आवास के अनुरूप अनुकूलन करते हैं|
उदाहरण के लिए, ठंडे क्षेत्रों में पाए जाने वाले प्राणियों के कान और पाद छोटे होते हैं ताकि ऊष्मा की हानि न्यूनतम हो| इसके अलावा, ध्रुवीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले प्राणियों में उनकी त्वचा के नीचे वसा की मोटी परत होती है जो ऊष्मारोधी का काम करती है और शरीर की ऊष्मा हानि को कम करती है|
कुछ जीव अपने प्राकृतिक आवास के अनुरूप विभिन्न व्यावहारिक परिवर्तन प्रदर्शित करते हैं| पर्यावरणीय दबाव से बचने के लिए प्राणियों के व्यवहार में उपस्थित इस अनुकूलन को व्यावहारिक अनुकूलन कहा जाता है|
उदाहरण के लिए, मरुस्थलीय छिपकली आंतरोष्मी होते हैं| इसका अर्थ है कि उनमें उच्च तापमान से निबटने के लिए तापमान नियामक तंत्र नहीं होता है, इसलिए जब उनका तापमान सुविधा स्तर से नीचे चला जाता है तब वे धूप सेंककर ऊष्मा अवशोषित करती हैं| लेकिन परिवेश का तापमान बढ़ने लगता है तब वे छाया में चली जाती हैं|
12. अजीवीय (एबायोटिक) पर्यावरणीय कारकों की सूची बनाइए|
उत्तर
पारिस्थितिकी तंत्र के सभी निर्जीव घटक अजीवीय (एबायोटिक) घटक हैं। इसमें तापमान, जल, प्रकाश और मृदा जैसे कारक शामिल हैं|
13. निम्नलिखित का उदाहरण दीजिए|
(क) आतपोद्भिद (हेलियोफाइट)
(ख) छायोद्भिद (स्कियोफाइट)
(ग) सजीवप्रजक (विविपेरस) अंकुरण वाले पादप
(घ) आंतरोष्मी (एंडोथर्मिक) प्राणी
(ङ) बाह्योष्मी (एक्टोथर्मिक) प्राणी
(च) नितलस्थ (बेंथिक) जोन का जीव
उत्तर
(क) आतपोद्भिद (हेलियोफाइट)- रैननकुलस|
(ख) छायोद्भिद (स्कियोफाइट)- फर्न तथा मॉस
(ग) आंतरोष्मी (एंडोथर्मिक) प्राणी- पक्षियों जैसे कौवे, गौरैया, कबूतर, सारस आदि और स्तनधारी जैसे- भालू, गाय, चूहा, खरगोश, आदि आंतरोष्मी (एंडोथर्मिक) प्राणी हैं|
(घ) बाह्योष्मी (एक्टोथर्मिक) प्राणी- मछलियाँ जैसे- शार्क, उभयचर जैसे- मेंढ़क और सरीसृप जैसे- कछुआ, साँप और छिपकली बाह्योष्मी (एक्टोथर्मिक) प्राणी हैं|
(ङ) नितलस्थ (बेंथिक) जोन का जीव- अपघटित बैक्टीरिया नितलस्थ (बेंथिक) जोन के जीव का एक उदाहरण है|
14. समष्टि (पोपुलेशन) और समुदाय (कम्युनिटी) की परिभाषा दीजिए|
उत्तर
एक समष्टि को किसी सुपरिभाषित भौगोलिक क्षेत्र में एक ही प्रजाति के व्यष्टियों के समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो समान संसाधनों का साझा उपयोग करते हैं अथवा उनके लिए स्पर्धा करते हैं| उदाहरण के लिए, एक विशेष समय पर किसी विशेष स्थान पर रहने वाले सभी व्यक्ति मानव समष्टि की रचना करते हैं|
एक समुदाय को विभिन्न जाति के व्यक्तियों के समूह के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में रहते हैं| ऐसे व्यक्ति समान या असमान हो सकते हैं, लेकिन अन्य जाति के सदस्यों के साथ प्रजनन नहीं कर सकते|
15. निम्नलिखित की परिभाषा दीजिए और प्रत्येक का एक-एक उदाहरण दीजिए-
(क) सहभोजिता (कमेंसेलिज्म)
(ख) परजीविता (पैरासिटिज्म)
(ग) छद्मावरण (कैमुफ्लॉज)
(घ) सहोपकारिता (म्युचुऑलिज्म)
(ङ) अंतरजातीय स्पर्धा (इंटरस्पेसिफिक कम्पीटीशन)
उत्तर
(क) सहभोजिता (कमेंसेलिज्म)- यह ऐसी पारस्परिक क्रिया है जिसमें एक जाति को लाभ होता है और दूसरी को न हानि न लाभ होता है| आम की शाखा पर अधिपादप के रूप में उगने वाला ऑर्किड और व्हेल की पीठ पर बैठने वाला बार्नेकल सहभोजिता (कमेंसेलिज्म) का उदाहरण है|
(ख) परजीविता (पैरासिटिज्म)- यह दो जातियों के बीच की पारस्परिक क्रिया है, जिसमें एक जाति (प्रायः छोटे) सकारात्मक रूप से प्रभावित होती है, जबकि दूसरी जाति (प्रायः बड़े) नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है| इसका एक उदाहरण मानव यकृत पर्णाभ है| मानव यकृत पर्णाभ एक परजीवी है जो परपोषी के शरीर में यकृत में रहता है और उससे पोषण प्राप्त करता है|
इस प्रकार, परजीवी को लाभ होता है क्योंकि यह परपोषी से पोषण प्राप्त करता है| जबकि परपोषी नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है क्योंकि परजीवी परपोषी के तंदुरूस्ती को कम कर देता है, जिससे शरीर कमजोर हो जाता है|
(ग) छद्मावरण (कैमुफ्लॉज)- यह परभक्षियों से बचने के लिए शिकार द्वारा अपनाई गई एक रक्षाविधि है| कुछ जीव गुप्त रूप से रंगीन होते हैं ताकि वे आसानी से अपने परिवेश में मिलकर परभक्षियों से बच सकें| कीटों तथा मेढ़कों की कुछ जातियाँ छद्मावरण में रहते हैं और परभक्षियों से अपना बचाव करते हैं|
(घ) सहोपकारिता (म्युचुऑलिज्म)- इस पारस्परिक क्रिया से परस्पर क्रिया करने वाली दोनों जातियों को लाभ होता है| उदाहरण के लिए, कवक और प्रकाशसंश्लेषी शैवाल या सायनोबैक्टीरिया के बीच घनिष्ठ सहोपकारी संबंध का उदाहरण लाइकेन में देखा जा सकता है|
(ङ) अंतरजातीय स्पर्धा (इंटरस्पेसिफिक कम्पीटीशन)- अंतरजातीय स्पर्धा दो भिन्न जातियों की समष्टियों की पारस्परिक क्रिया से उत्पन्न होती हैं| वे क्रियाएँ दोनों जातियों के लिए हानिकारक होती हैं| उदाहरण के लिए, साझा आहार के लिए दक्षिण अमेरिकी झीलों में फ्लेमिंगो और आवासी मछलियों के बीच प्राणिपल्वक के लिए स्पर्धा|
16. उपयुक्त आरेख (डायग्राम) की सहायता से लॉजिस्टिक समष्टि (पोपुलेशन) वृद्धि का वर्णन कीजिए|
उत्तर
लॉजिस्टिक समष्टि (पोपुलेशन) वृद्धि की अवस्था प्रायः यीस्ट कोशिकाओं में प्रेक्षित की जाती है, जिसकी वृद्धि प्रयोगशाला अवस्था में होती है|
इसमें पाँच चरण शामिल हैं- पश्चता प्रावस्था, सकारात्मक त्वरण अवस्था, चरघतांकी अवस्था, नकारात्मक त्वरण अवस्था, स्थिर अवस्था|
(क) पश्चता प्रावस्था- प्रारंभ में, यीस्ट कोशिका की समष्टि बहुत छोटी होती है| यह किसी आवास में सीमित संसाधनों के कारण होता है|
(ख) सकारात्मक त्वरण अवस्था- इस अवस्था के दौरान, यीस्ट कोशिका नए पर्यावरण के प्रति अनुकूल होती है और इसकी समष्टि वृद्धि करना शुरू कर देती है| हालांकि, इस अवस्था की के आरंभ में कोशिका का विकास बहुत सीमित होता है|
(ग) चरघतांकी अवस्था- इस अवस्था में, तीव्र वृद्धि के कारण यीस्ट कोशिका की समष्टि अचानक बढ़ जाती है| पर्याप्त भोजन संसाधनों की उपलब्धता, स्थिर पर्यावरण तथा किसी भी अंतरजातीय प्रतिस्पर्धा की अनुपस्थिति के कारण समष्टि तेजी से बढ़ती है| परिणामस्वरूप, वक्र ऊपर की तरफ तेजी से उठता है|
(घ) नकारात्मक त्वरण अवस्था- इस अवस्था में, पर्यावरण प्रतिरोधकता बढ़ती है और समष्टि की विकास दर कम हो जाती है| यह आहार और आश्रय के लिए यीस्ट कोशिकाओं के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण होता है|
(ङ) स्थिर अवस्था- इस अवस्था में, समष्टि स्थिर हो जाती है| समष्टि में उत्पादित कोशिकाओं की संख्या मरने वाली कोशिकाओं की संख्या के बराबर होती है| इसके अतिरिक्त, जातियों की समष्टि अपने आवास में प्रकृति की पोषण-क्षमता तक पहुंच गई है|
17. निम्नलिखित कथनों में परजीविता (पैरासिटिज्म) को कौन-सा सबसे अच्छी तरह स्पष्ट करता है-
(क) एक जीव को लाभ कहता है|
(ख) दोनों जीवों को लाभ होता है|
(ग) एक जीव को लाभ होता है दूसरा प्रभावित नहीं होता है|
(घ) एक जीव को लाभ होता है दूसरा प्रभावित होता है|
उत्तर
(घ) एक जीव को लाभ होता है दूसरा प्रभावित होता है|
यह दो जातियों के बीच की पारस्परिक क्रिया है, जिसमें एक जाति (प्रायः छोटे) सकारात्मक रूप से प्रभावित होती है, जबकि दूसरी जाति (प्रायः बड़े) नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है| इसका एक उदाहरण मानव यकृत पर्णाभ है| मानव यकृत पर्णाभ एक परजीवी है जो परपोषी के शरीर में यकृत में रहता है और उससे पोषण प्राप्त करता है| इस प्रकार, परजीवी को लाभ होता है क्योंकि यह परपोषी से पोषण प्राप्त करता है| जबकि परपोषी नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है क्योंकि परजीवी परपोषी के तंदुरूस्ती को कम कर देता है, जिससे शरीर कमजोर हो जाता है|
18. समष्टि (पोपुलेशन) की कोई तीन महत्वपूर्ण विशेषताएँ बताइए और व्याख्या कीजिए|
उत्तर
एक समष्टि को किसी सुपरिभाषित भौगोलिक क्षेत्र में एक ही प्रजाति के व्यष्टियों के समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो समान संसाधनों का साझा उपयोग करते हैं अथवा उनके लिए स्पर्धा करते हैं| उदाहरण के लिए, किसी विशेष समय पर किसी विशेष स्थान पर रहने वाले सभी मानव प्रजाति मनुष्यों की समष्टि की रचना करते हैं|
समष्टि की तीन महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
• जन्म दर- यह एक क्षेत्र की कुल समष्टि तथा उस क्षेत्र में जन्म का अनुपात होता है| यह समष्टि के सदस्यों के रूप में समष्टि में जोड़े जाने वाले व्यक्तियों की संख्या के रूप में व्यक्त किया जाता है|
• मृत्यु दर- यह एक क्षेत्र की समष्टि के साथ उस क्षेत्र में होने वाली मृत्यु का अनुपात होता है| यह समष्टि के सदस्यों के रूप में व्यक्तियों के नुकसान के रूप में व्यक्त किया जाता है|
• आयु वितरण- यह दी गई समष्टि में विभिन्न आयु के व्यक्तियों का प्रतिशत होता है| दिए गए किसी भी समय में, समष्टि की रचना व्यक्तियों द्वारा होती है जो विभिन्न आयु समूहों में उपस्थित होते हैं| आयु वितरण पैटर्न आमतौर पर आयु पिरैमिड के माध्यम से प्रदर्शित किया जाता है|