NCERT Solutions of Jeev Vigyan for Class 12th: Ch 16 पर्यावरण के मुद्दे जीव विज्ञान
प्रश्नपृष्ठ संख्या 311
1. घरेलू वाहित मल के विभिन्न घटक क्या हैं? वाहित मल के नदी में विसर्जन से होने वाले प्रभावों की चर्चा करें|
उत्तर
घरेलू वाहित मल के विभिन्न घटक निम्नलिखित हैं :
• अपमार्जकों से निकले विलीन लवण, जैसे नाइट्राइट, फॉस्फेट आदि|
• पेंट, वार्निश आदि से विषैले धातु आयन|
• रसोई और शौचालय से जैवनिम्नीकरणीय कार्बनिक पदार्थ|
• मलीय पदार्थ में रोगजनक सूक्ष्मजीव|
वाहित मल के नदी में विसर्जन से होने वाले प्रभाव :
जब वाहित मल से कार्बनिक अपशिष्ट जल निकायों में प्रवेश करता है, तो यह शैवाल और जीवाणु जैसे सूक्ष्म जीवों के लिए आहार स्रोत के रूप में कार्य करता है| परिणामस्वरूप, जल निकाय में इन सूक्ष्म जीवों की समष्टि बढ़ जाती है| यहां, वे अपने उपापचय के लिए अधिकतर विलीन ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं| इससे नदियों के जल में जीव रासायनिक ऑक्सीजन आवश्यकता (बीओडी) के स्तर में वृद्धि होती है और परिणामस्वरूप, जलीय जीव मर जाते हैं| इसके अतिरिक्त, जल में पोषक तत्व प्ल्वकीय शैवाल की अतिवृद्धि होती है, जिसके कारण शैवाल प्रस्फुटन होता है| इसके कारण जल की गुणवत्ता घट जाती है और मछलियाँ मर जाती हैं|
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2. आप अपने घर, विद्यालय या अपने अन्य स्थानों के भ्रमण के दौरान जो अपशिष्ट उत्पन्न करते हैं, उनकी सूची बनाएँ| क्या आप उन्हें आसानी से कम कर सकते हैं? कौन से ऐसे अपशिष्ट हैं जिनको कम करना कठिन या असंभव होगा?
उत्तर
• घर में उत्पादित अपशिष्ट कागज, पुराने कपड़े, जूते, बैग, टूटे कांच, पॉलिथीन पैकेजिंग सामग्री, प्लास्टिक की बोतलें, डिब्बे और छोड़े गया या खराब भोजन|
• विद्यालय में मुख्य रूप से पेपर, रिफ़िल, कार्डबोर्ड, थर्मोकॉल, कलम/पेंसिल, विद्यालय कैंटीन में पेपर या प्लास्टिक प्लेट्स और चश्मा, बोतलें, डिब्बे, आइसक्रीम रैपर, छड़ी आदि|
• भ्रमण के दौरान मुख्य रूप से खाद्य-सामग्री पैकेट, प्लास्टिक/पेपर प्लेट, नैपकिन आदि|
हाँ, उपरोक्त सामग्री के विवेकपूर्ण उपयोग से अपशिष्ट को आसानी से कम किया जा सकता है| कागज की बर्बादी उसके दोनों किनारों पर लिखकर और पुनश्चक्रित कागज का उपयोग करके कम किया जा सकता है| प्लास्टिक और कांच के अपशिष्ट को पुनश्चक्रण और पुनरूपयोग के द्वारा भी कम किया जा सकता है| साथ ही, प्लास्टिक बैग के स्थान पर जैवनिम्नीकरणीय जूट बैग का उपयोग घर, स्कूल, या भ्रमण के दौरान उत्पन्न अपशिष्टों को कम किया जा सकता है| नहाने, खाना पकाने और अन्य घरेलू गतिविधियों के दौरान जल का कम उपयोग करके घरेलू वाहितमल को कम किया जा सकता है|
अजैव निम्निकरणीय अपशिष्ट जैसे प्लास्टिक, धातु, टूटे कांच का अपघटन कठिन होता है, क्योंकि सूक्ष्म जीवों में उन्हें विघटित करने की क्षमता नहीं होती है|
3. वैश्विक उष्णता में वृद्धि के कारणों और प्रभावों की चर्चा करें| वैश्विक उष्णता वृद्धि को नियंत्रित करने वाले उपाय क्या हैं?
उत्तर
पृथ्वी की सतह के तापमान में दीर्घकालिक वृद्धि को वैश्विक उष्णता कहा जाता है|
कारण :
जीवाश्म ईंधन के व्यापक दहन के कारण वायुमंडलीय गैसों (कार्बन डाइऑक्साइड, मेथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, आदि) के स्तर में वृद्धि होती है| उच्च सांद्रता इन गैसों के संग्रहण के कारण पृथ्वी की ऊष्मा बाहरी वायुमंडल में नहीं निकल पाती है, जिससे इसके सतह के तापमान में वृद्धि होती है|
वैश्विक उष्णता के प्रभाव : वैश्विक उष्णता को पृथ्वी की सतह के औसत तापमान में वृद्धि के रूप में परिभाषित किया जाता है| गत शताब्दी में पृथ्वी के तापमान में 0.6 डिग्री सेंटीग्रेड वृद्धि हुई है| परिणामस्वरूप, प्राकृतिक जलीय चक्र बिगड़ गया है जिसके कारण जलवृष्टि के स्वरुप में परिवर्तन होते हैं| यह जलवृष्टि की मात्रा में भी परिवर्तन होता है| साथ ही, यह ध्रुवीय हिमपात और पर्वतीय हिमनदों के पिघलने का कारण है, जो समुद्र-तल के स्तर में वृद्धि करता है और जिसके कारण तटीय क्षेत्रों के जल में बढ़ोतरी होती है|
वैश्विक उष्णता वृद्धि को नियंत्रित करने के उपाय :
• जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को कम करना|
• जैव ईंधन का प्रयोग|
• ऊर्जा क्षमता में सुधार|
• ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत का उपयोग, जैसे- CNG आदि|
• पुनर्वनीकरण ; पौधों का रोपण|
• पदार्थों का पुनश्चक्रण|
4. कॉलम अ और ब में दिए गए मदों का मिलान करें
कॉलम अ
|
कॉलम ब
|
(क)उत्प्रेरक परिवर्तक
| 1. कणकीय पदार्थ |
(ख) स्थिर वैद्युत अवक्षेपित्र (इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रेसिपिटेटर) | 2. कार्बन मोनो ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड |
(ग) कर्णमफ (इयर मफ्स) | 3. उच्च शोर स्तर |
(घ) लैंडफिल | 4. ठोस अपशिष्ट |
उत्तर
कॉलम अ
|
कॉलम ब
|
(क) उत्प्रेरक परिवर्तक | 2. कार्बन मोनो ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड |
(ख) स्थिर वैद्युत अवक्षेपित्र (इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रेसिपिटेटर) | 1. कणकीय पदार्थ |
(ग) कर्णमफ (इयर मफ्स) | 3. उच्च शोर स्तर |
(घ) लैंडफिल | 4. ठोस अपशिष्ट |
5. निम्नलिखित पर आलोचनात्मक टिप्पणी लिखें
(क) सुपोषण (यूट्रोफिकेशन)
(ख) जैव आवर्धन (बायोलॉजिकल मैग्निफिकेशन)
(ग) भौमजल (भूजल) का अवक्षय और इसकी पुनपूर्ति के तरीके
उत्तर
(क) सुपोषण (यूट्रोफिकेशन)- यह झील का प्राकृतिक काल-प्रभावन दर्शाता है यानि झील अधिक उम्र की हो जाती है| यह इसके जल की जैव समृद्धि के कारण होता है| समय के साथ-साथ सरिता के जल के साथ पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन और फ़ॉसफोरस आते रहते हैं जिसके कारण जलीय जीवों में वृद्धि होती रहती है| परिणामस्वरूप, प्ल्वकीय शैवाल की अतिवृद्धि होती है, जिसके कारण शैवाल प्रस्फुटन होता है| बाद में, इन शैवालों का अपघटन ऑक्सीजन की आपूर्ति कम कर देता है, जिसके कारण अन्य जलीय जीव मरने लगते हैं|
(ख) जैव आवर्धन (बायोलॉजिकल मैग्निफिकेशन)- इसका तात्पर्य है, क्रमिक पोषण स्तर पर अविषाक्त की सांद्रता में वृद्धि का होना| इसका कारण है कि जीव द्वारा संग्रहित अविषालु पदार्थ उपापचयित या उत्सर्जित नहीं हो सकता और इस प्रकार यह अगले उच्चस्तर पोषण स्तर पर पहुँच जाता है| यह पक्षियों में कैल्शियम उपापचय को नुकसान पहुँचाती है, जिसके कारण अंड-कवच पतला हो जाता है और यह समय से पहले फट जाता है जो अंततः पक्षि-समष्टि में कमी का कारण बनती है|
(ग) भौमजल (भूजल) का अवक्षय और इसकी पुनपूर्ति के तरीके- हाल के वर्षों में भूजल के स्तर में कमी आई है| जनसंख्या और जल प्रदूषण में वृद्धि के कारण जलापूर्ति का स्रोत प्रतिवर्ष तेजी से कम हो रहा है| जल की माँग की पूर्ति के लिए तालाबों, नदियों आदि जैसे जल निकायों से पानी निकाला जाता है| परिणामस्वरूप, भौमजल स्रोत का अवक्षय हो रहा है| इसका कारण यह है कि मानव उपयोग के लिए भौमजल की मात्रा जलवृष्टि द्वारा उपलब्ध जल की मात्रा से अधिक है| वनस्पतिकरण के अभाव में भूमि के अंदर बहुत कम मात्रा में जल का अवशोषण होता है| भूजल की उपलब्धता कम होने का एक प्रमुख कारण जल प्रदूषण भी है|
पुनपूर्ति :
(i) जलवृष्टि का संग्रहण पानी के जाल को बनाये रखता है ताकि वर्षा का पानी नालियों से नीचे नहीं जाता बल्कि बड़े गड्ढों द्वारा भूमिगत हो जाता है|
(ii) कृषि और औद्योगिक अपवाह से जल निकासी के पानी को निकालने के लिए निकासी कुएं बनाए जा सकते हैं| भूमिगत जल के रिसाव होने से पहले विषाक्त पदार्थों को हटाने के लिए इसका उपचार किया जा सकता है|
6. एंटार्कटिका के ऊपर ओजोन छिद्र क्यों बनते हैं? पराबैंगनी विकिरण के बढ़ने से हमारे ऊपर किस प्रकार प्रभाव पड़ेंगे?
उत्तर
एंटार्कटिका में काफी बड़े क्षेत्र में ओजोन छिद्र बनते हैं| वायुमंडल में क्लोरीन की बढ़ती सांद्रता के कारण यह बनता है| शीतलन के लिए क्लोरोफ्लुरोकार्बन के अधिक उपयोग से क्लोरीन मुक्त होता है|
(i) जब यह समतापमंडल में मोचित होता है, तब ये पदार्थ ध्रुव की ओर प्रवाहित होते हैं तथा उच्च अक्षांश पर हिम बादलों के रूप में संग्रहित होने लगते हैं|
(ii) इन क्लोरीन परमाणु ओजोन का अपघटन होता है जिसके परिणामस्वरूप ओजोन परत और अधिक पतला होता जाता है| आम तौर पर, ओजोन परत हानिकारक यूवी विकिरणों को अवशोषित करके एक सुरक्षात्मक भूमिका निभाता है, लेकिन इसकी मोटाई में कमी होने के कारण यूवी किरण पृथ्वी की सतह तक पहुँच जाता है|
पराबैंगनी विकिरण का हमारे ऊपर प्रभाव :
• त्वचा में बुढ़ापे के लक्षण|
• विविध प्रकार के त्वचा कैंसर होने का खतरा|
• हिम अंधता या मोतियाबिंद|
• कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली|
7. वनों के संरक्षण और सुरक्षा में महिलाओं और समुदायों की भूमिका की चर्चा करें|
उत्तर
वनों के संरक्षण तथा सुरक्षा में समुदाय ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है :
• बिश्नोई समुदाय की महिलाओं और कई अन्य ने वृक्ष की रक्षा के लिए अपने प्राण गंवा दिए| राजस्थान में बिश्नोई समुदाय स्वभाव से ही शांतिपूर्वक जीने की अवधारणा में विश्वास करते थे| 1731 में, जोधपुर के राजा ने अपने मंत्रियों को अपने नए महल के निर्माण के लिए लकड़ी का इंतजाम करने का आदेश दिया| इस काम के लिए मंत्री और कर्मी बिश्नोई गांव गए| वहाँ अपनी बेटी के साथ अमृता देवी नाम की एक बिश्नोई महिला और सैकड़ों अन्य बिश्नोई ने आगे बढ़ने और उन्हें वृक्षों को काटने से रोकने का साहस दिखाया| वे पेड़ों से चिपक गए और राजा के सैनिकों के हाथों अपनी जान गंवा दी| गांव के लोगों द्वारा इस प्रतिरोध ने राजा को पेड़ों को काटने के विचार को त्यागने पर मजबूर किया|
• चिपको आंदोलन : 1974 में हिमालय के गढ़वाल क्षेत्र में चिपको आंदोलन शुरू किया गया था| इस आंदोलन में, ठेकेदारों द्वारा काटे जा रहे वृक्षों की रक्षा के लिए गांव की महिलाओं ने इससे चिपक कर पेड़ों को काटने से रोक दिया| चमोली जिले के गांवेश्वर गांव के गौरा देवी ने एक आंदोलन का नेतृत्व किया था, जहां गांव के लोगों ने वृक्षों से चिपक कर उन्हें काटने से बचा लिया| चंडी प्रसाद और सुंदर लाल बहुगुणा के नेतृत्व में विभिन्न गांवों में कई अन्य लोगों ने इसी तरह के आंदोलन में भाग लिया|
बाद में इस तरह के आंदोलन का दक्षिण भारत में भी प्रसार हुआ| अब, गाँव और आदिवासी समुदायों को क्षतिग्रस्त वन क्षेत्र के विकास और संरक्षण में शामिल किया जा रहा है|
8. पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए एक व्यक्ति के रूप में आप क्या उपाय करेंगे?
उत्तर
पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं :
वायु प्रदूषण रोकने के उपाय :
• अधिक पेड़ लगाना|
• स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे सीएनजी और जैव-ईंधन का उपयोग|
• जीवाश्म ईंधन के प्रयोग में कमी|
• मोटर वाहनों में उत्प्रेरक परिवर्तक का उपयोग|
जल प्रदूषण रोकने के उपाय :
• पानी का अनुकूलित उपयोग करना|
• बागवानी और अन्य घरेलू कार्यों में रसोई अपशिष्ट जल का उपयोग करना|
ध्वनि प्रदूषण के नियंत्रण के उपाय :
• दिवाली पर पटाखे जलाने से बचें|
• लाउडस्पीकर के लिए ध्वनि-स्तर में कमी|
ठोस अपशिष्ट के संग्रहण को कम करने के उपाय :
• अपशिष्ट का पृथक्करण|
• प्लास्टिक और कागज का पुनाश्चक्रण तथा पुनरुपयोग|
• जैवनिम्निकरणीय रसोई अपशिष्ट से खाद बनाना|
• प्लास्टिक के उपयोग को कम करना|
9. निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में चर्चा करें-
(क) रेडियो सक्रिय अपशिष्ट
(ख) पुराने बेकार जहाज और ई-अपशिष्ट
(ग) नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट
उत्तर
(क) रेडियो सक्रिय अपशिष्ट- न्युक्लीय विकिरण का उत्सर्जन करने वाली किसी भी अपशिष्ट को रेडियो सक्रिय अपशिष्ट कहा जाता है| न्युक्लीय अपशिष्ट से उत्सर्जित विकिरण जीवों के लिए अत्यंत हानिकारक होता है| इसके कारण उत्परिवर्तन उच्च दर से उत्पन्न होता है, जिसके परिणामस्वरूप कैंसर जैसे विभिन्न विकार उत्पन्न होते हैं| अपशिष्ट विकिरण की ज्यादा मात्रा घातक यानी जानलेवा होती है|
(ख) पुराने बेकार जहाज और ई-अपशिष्ट- पुराने बेकार जहाज वे जहाज हैं, जो अब उपयोग में नहीं हैं| ऐसे जहाजों को भारत और पाकिस्तान जैसे देशों में रद्दी धातु के लिए तोड़ दिया जाता है| ये जहाज विभिन्न प्रकार के विषाक्त पदार्थों का स्रोत है जैसे अभ्रक, सीसा, पारा आदि| इसलिए, वे ठोस अपशिष्टों में योगदान करते हैं जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होते हैं| ई-अपशिष्ट या इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्टों में आमतौर पर कंप्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक सामान शामिल होते हैं| इस प्रकार के अपशिष्ट धातु जैसे तांबा, लोहा, सिलिकॉन, सोना आदि प्रचुर मात्रा में होते हैं| ये धातु अत्यधिक विषैले होते हैं और इसके कारण गंभीर स्वास्थ्य संबंधी खतरे उत्पन्न होते हैं| विकासशील देशों के लोग इन धातुओं के पुनश्चक्रण प्रक्रिया में शामिल होते हैं और इन अपशिष्टों में मौजूद विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आते हैं|
(ग) नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट- नगरपालिका अपशिष्ट में घर, कार्यालय, विद्यालय, अस्पताल आदि के अपशिष्ट शामिल किए जाते हैं| यह नगरपालिका द्वारा इकट्ठा किया जाता है और उनका निपटान किया जाता है| ये प्रायः कागज, चमड़े के वस्त्र, रबड़, ग्लास आदि होते हैं| इन अपशिष्टों को नष्ट करने के लिए सैनिटरी लैंडफिल का उपयोग किया जाता है|
10. दिल्ली में वाहनों से होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने के लिए क्या प्रयास किए गए? क्या दिल्ली में वायु की गुणवत्ता में सुधार हुआ?
उत्तर
दिल्ली का स्थान विश्व के 41 सर्वाधिक प्रदूषित नगरों में चौथा है| जीवाश्म ईंधन के दहन के कारण दिल्ली में वायु प्रदूषण में वृद्धि हुई है|
दिल्ली में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए कई प्रयास किए गए हैं :
• संपीडित प्राकृतिक गैस (सीएनजी) का प्रयोग : भारत के सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार, दिल्ली में प्रदूषण-स्तर को कम करने के लिए वर्ष 2002 के अंत में सभी बसों सीएनजी संचालित वाहनों में परिवर्तित कर दिया गया| सीएनजी एक स्वच्छ ईंधन है जो बहुत ही कम मात्रा में जलने से बच जाता है|
• पुराने वाहनों को हटाना|
• सीसा रहित पेट्रोल और डीजल का प्रयोग|
• उत्प्रेरक परिवर्तकों का उपयोग|
• वाहनों के लिए कठोर प्रदूषण-स्तर लागू करना|
• यूरो II मानक के अनुसार डीजल और पेट्रोल में गंधक को नियंत्रित करना|
सीएनजी संचालित वाहनों के प्रयोग से दिल्ली के वायु प्रदूषण में सुधार हुआ है, जिससे CO2 तथा SO2 के स्तर में काफी गिरावट आई है| हालांकि, निलंबित कण पदार्थ (एसपीएम) और श्वसन निलंबित कण पदार्थ (आरएसपीएम) की समस्या अभी भी विद्यमान है|
11. निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में चर्चा करें
(क) ग्रीनहाउस गैसें
(ख) उत्प्रेरक परिवर्तक (कैटालिटिक कनवर्टर)
(ग) पराबैंगनी-बी (अल्ट्रावायलेट बी)
उत्तर
(क) ग्रीनहाउस गैसें- ग्रीनहाउस प्रभाव प्राकृतिक रूप से होने वाली परिघटना है जिसके कारण पृथ्वी की सतह और वायुमंडल गर्म हो जाता है| ग्रीनहाउस गैसों में मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और जलवाष्प शामिल किए जाते हैं| जब सौर विकिरण पृथ्वी तक पहुंचते हैं, तो इनमें से कुछ विकिरण अवशोषित हो जाते हैं| ये अवशोषित विकिरण पुनः वायुमंडल में मुक्त हो जाते हैं| ये विकिरण वायुमंडल में उपस्थित ग्रीनहाउस गैसों द्वारा अवशोषित होकर उष्मीय ऊर्जा विकिरित करते हैं| यह हमारे ग्रह को गर्म रखता है और इस प्रकार, यह मानव जीवन में मदद करता है| हालांकि, ग्रीनहाउस गैसों की स्तर में वृद्धि के कारण पृथ्वी के तापमान में अत्यधिक वृद्धि हो सकती है, जिससे वैश्विक उष्णता उत्पन्न होती है|
(ख) उत्प्रेरक परिवर्तक (कैटालिटिक कनवर्टर)- उत्प्रेरक परिवर्तक स्वचलित वाहनों में लगे होते हैं जो विषैले गैसों के उत्सर्जन को कम करते हैं| इसमें कीमती धातु, प्लैटिनम-पैलेडियम और रोडियम लगे होते हैं जो उत्प्रेरक का कार्य करते हैं| जैसे ही निर्वात उत्प्रेरक परिवर्तक से होकर गुजरता है अद्ग्ध हाइड्रोकार्बनडाईऑक्साइड और जल में बदल जाता है और कार्बन मोनोऑक्साइड तथा नाइट्रिक ऑक्साइड क्रमशः कार्बन डाईऑक्साइड और नाइट्रोजन गैस में परिवर्तित हो जाता है| उत्प्रेरक परिवर्तक युक्त मोटर वाहनों में सीसा रहित पेट्रोल का उपयोग करना चाहिए, क्योंकि सीसा युक्त पेट्रोल उत्प्रेरक को अक्रिय करता है|
(ग) पराबैंगनी-बी (अल्ट्रावायलेट बी)- पराबैंगनी-बी 280-320 nm की तरंग दैर्ध्य वाले पराबैंगनी विकिरण का एक हिस्सा है| यह डीएनए को उत्परिवर्तन के कारण नुकसान पहुंचाता है, जिसके परिणाम निम्नलिखित हो सकते हैं :
• त्वचा में बुढ़ापे के लक्षण|
• विविध प्रकार के त्वचा कैंसर होने का खतरा|
• हिम अंधता या मोतियाबिंद|
• कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली|
ओजोन परत पराबैंगनी-बी का 50% अवशोषित करता है और हमें इसके हानिकारक प्रभावों से बचाता है। लेकिन, हाल ही में ओजोन परत के पतले होने के कारण ये प्रभाव अधिक स्पष्ट होते जा रहे हैं|