NCERT Solutions of Jeev Vigyan for Class 12th: Ch 8 मानव स्वास्थ्य तथा रोग जीव विज्ञान
प्रश्न
पृष्ठ संख्या 177
1. कौन से विभिन्न जन स्वास्थ्य उपाय हैं, जिन्हें आप संक्रामक रोगों के विरूद्ध रक्षा-उपायों के रूप में सुझायेंगे?
उत्तर
संक्रामक रोगों के विरूद्ध रक्षा-उपायों के रूप में निम्नलिखित जन स्वास्थ्य उपाय सुझाए जाने चाहिए:
• व्यक्तिगत तथा जन स्वच्छता बनाए रखना- अनेक संक्रामक रोगों के निरोध और नियंत्रण के लिए यह महत्वपूर्ण उपाय है| व्यक्तिगत स्वच्छता में शरीर को साफ़ रखना, पीने के लिए साफ़ पानी, खाना, शाक-सब्जियों, फल आदि का सेवन शामिल है| जन स्वास्थ्य में अपशिष्ट पदार्थ और मल-मूत्र उत्सर्ग का समुचित निपटान; जलाशयों, कुंडों और मलकुंडों और तालाबों की समय-समय पर सफाई और विसंक्रमण तथा जन खान-पान प्रबंध में स्वच्छता के मानक का पालन करना है|
• अलगाव- न्युमोनिया, टीबी, और सामान्य जुकाम जैसे वायुप्रवाहित रोगों को फैलने से रोकने के लिए, संक्रमित व्यक्तियों के या उनके सामान के निकट संपर्क में आने से बचना, इन संक्रामक रोगों के फैलने की संभावना को कम करने के आवश्यक उपाय हैं|
• टीकाकरण- संचारी रोगों से शरीर की रक्षा के लिए टीकाकरण द्वारा रोगजनक या निष्क्रियित/दुर्बलीकृत रोगजनक (टीका) की प्रतिजनी प्रोटोनों को निर्मित शरीर में प्रवेश कराई जाती है| कई टीके टेटनस, पोलियो, खसरा आदि जैसी कई बीमारियों के लिए उपलब्ध हैं|
• रोगवाहक उन्मूलन- मलेरिया, फाइलेरिया, डेंगू तथा चिकनगुनिया जैसी बीमारियाँ रोगवाहकों द्वारा फैलते हैं| इसलिए स्वच्छ वातावरण प्रदान कर तथा मच्छरों के प्रजनन के रोकथाम द्वारा इन रोगों से बचा जा सकता है| यह लक्ष्य आवासीय क्षेत्रों में और उसके आस-पास पानी को जमा नहीं होने देकर भी प्राप्त किया जा सकता है| घरेलू शीतलयंत्रों की नियमित सफाई, मच्छरदानी का प्रयोग मच्छर के डिंबकों को खाने वाली गंबुजिया जैसी मछलियाँ डालने, खाइयों, जलनिकास क्षेत्रों और अनूप आदि में कीटनाशकों के छिड़काव जैसे उपाय भी अपनाए जा सकते हैं|
2. जैविकी के अध्ययन ने संक्रामक रोगों को नियंत्रित करने में किस प्रकार हमारी सहायता की है?
उत्तर
• जैविकी के विभिन्न क्षेत्रों में हुई प्रगति से हमें अनेक संक्रामक रोगों से निबटने के लिए कारगर हथियार मिल गए हैं|
• जैविकी के विकास से विभिन्न परजीवियों, परपोषियों तथा रोगवाहकों के जीवन चक्र के साथ विभिन्न रोगों के संचरण के तरीकों और उन्हें नियंत्रित करने के उपायों के बारे में जान पाते हैं|
• चेचक, चिकनपॉक्स, टीबी जैसी संक्रमित बीमारियों के लिए टीकाकरण कार्यक्रम इन रोगों को खत्म करने में सहायता करता है|
• जैवप्रौद्योगिकी ने विकसित तथा सुरक्षित दवा और वैक्सीन बनाने में सहायता की है|
• विभिन्न संक्रामक रोगों के उपचार में प्रतिजैविकों मुख्य भूमिका निभाई है|
3. निम्नलिखित रोगों का संचरण कैसे होता है?
(क) अमीबता
(ख) मलेरिया
(ग) एस्केरिसता
(घ) न्युमोनिया
उत्तर
(क) अमीबता- मानव की वृहत् आंत्र में पाए जाने वाले एंटअमीबा हिस्टोलिटिका नामक प्रोटोजोन परजीवी से अमीबता या अमीबी अतिसार होता है| इस रोग की वाहक घरेलू मक्खियाँ होती हैं और परजीवी को संक्रमित व्यक्ति के मल से खाद्य और खाद्य पदार्थों तक ले जाकर उन्हें संदूषित कर देती हैं|
(ख) मलेरिया- यह बीमारी मादा ऐनोफेलीज मच्छर के काटने से फैलता है| मादा ऐनोफेलीज रोगवाहक अर्थात् रोग का संचरण करती है|
(ग) एस्केरिसता- आंत्र परजीवी ऐस्कारिस से एस्केरिसता नामक रोग होता है| स्वस्थ व्यक्ति में यह संक्रमण संदूषित पानी, शाक-सब्जियों, फलों आदि के सेवन से हो जाता है|
(घ) न्युमोनिया- स्ट्रेप्टोकोकस न्युमोनी और हीमोफिल्स इंफ्लुएंजी जैसे जीवाणु मानव में न्युमोनिया रोग के लिए उत्तरदायी हैं|
4. जल-वाहित रोगों की रोकथाम के लिए आप क्या उपाय अपनायेंगे?
उत्तर
जल-वाहित रोग जैसे- हैजा, टाइफॉइड, हेपेटाइटिस बी आदि संदूषित पानी पीने से फैलते हैं|
• अपशिष्ट पदार्थ और मल-मूत्र उत्सर्ग का समुचित निपटान, नियमित सफाई द्वारा जल-वाहित रोगों की रोकथाम की जा सकती है|
• सामुदायिक जलाशयों में कीटनाशकों का छिड़काव, उबले हुए पेयजल का प्रयोग|
5. डी एन ए वैक्सीन के संदर्भ में ‘उपयुक्त जीन’ के अर्थ के बारे में अपने अध्याय से चर्चा कीजिए|
उत्तर
वैक्सीन स्मृति बी और टी-कोशिकाएँ भी बनाते हैं जो परिवर्ती प्रभावन होने पर रोगजनक को जल्दी से पहचान लेती हैं| ये शरीर में प्रतिरक्षियों के भारी उत्पादन से रोगाणुओं को हरा देती है| पुनर्योगज डीएनए प्रौद्योगिकी से जीवाणु या खमीर में रोगजनक की प्रतिजनी पॉलीपेप्टाइड का उत्पादन होने लगा है| इसे ही ‘उपयुक्त जीन’ कहा जाता है| इस विधि से टीकों का बड़े पैमाने पर उत्पादन होने लगा है और इसीलिए प्रतिरक्षीकरण हेतु उन टीकों की उपलब्धता खूब बढ़ी है| जैसे- खमीर से बनने वाला यकृतशोथ बी टीका|
6. प्राथमिक और द्वितीयक लसीकाओं के अंगों के नाम बताइए|
उत्तर
• प्राथमिक लसीकाभ अंगों में अस्थिमज्जा और थाइमस आते हैं|
• द्वितीयक लसीकाभ अंगों में प्लीहा, लसीका ग्रंथि, टांसिल, क्षुदांत्र के पेयर पैच और परिशेषिका आते हैं|
7. इस अध्याय में निम्नलिखित सुप्रसिद्ध संकेताक्षर इस्तेमाल किए गए हैं| इनका पूरा रूप बताइए-
(क) एमएएलटी
(ख) सीएमआई
(ग) एड्स
(घ) एनएसीओ
(ङ) एचआईवी
उत्तर
(क) एमएएलटी- म्यूकोसल एसोसिएटेड लिम्फॉयड टिशू
(ख) सीएमआई- सेल मेडिएटेड इम्युनिटी
(ग) एड्स- एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिसिएंसी सिंड्रोम
(घ) एनएसीओ- नेशनल एड्स कंट्रोल आर्गेनाइजेशन
(ङ) एचआईवी- ह्यूमन इम्यूनो डिफिसिएंसी वायरस
8. निम्नलिखित में भेद कीजिए और प्रत्येक के उदाहरण दीजिए|
(क) सहज (जन्मजात) और उपर्जित प्रतिरक्षा
(ख) सक्रिय और निष्क्रिय प्रतिरक्षा
उत्तर
(क) सहज (जन्मजात) और उपर्जित प्रतिरक्षा
सहज (जन्मजात) प्रतिरक्षा
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उपर्जित प्रतिरक्षा
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सहज प्रतिरक्षा एक प्रकार की अविशिष्ट रक्षा है| | उपर्जित प्रतिरक्षा रोगजनक विशिष्ट है| |
यह जन्म के समय से मौजूद होती है| | इसका अभिलक्षण स्मृति है| |
यह प्रतिरक्षा हमारे शरीर में बाह्य कारकों के प्रवेश के सामने विभिन्न प्रकार के रोध खड़ा करने से हासिल होती है| | हमारे शरीर का जब पहली बार किसी रोगजनक से सामना होता है तो यह एक अनुक्रिया करता है जिसे निम्न तीव्रता की प्राथमिक अनुक्रिया कहते हैं| बाद में उसी रोगजनक से सामना होने पर बहुत ही उच्च तीव्रता की द्वितीयक या पूर्ववृत्तीय अनुक्रिया होती है| |
उदाहरण के लिए, अमाशय में अम्ल, मुँह के आँसू रोगाणीय वृद्धि को रोकते हैं| | उदाहरण के लिए चेचक, टिटनेस, पोलियो आदि रोगों के लिए प्रतिरक्षा| |
(ख) सक्रिय और निष्क्रिय प्रतिरक्षा
सक्रिय प्रतिरक्षा
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निष्क्रिय प्रतिरक्षा
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जब परपोषी प्रतिजनों का सामना करता है तो उसके शरीर में प्रतिरक्षी स्वयं ही पैदा होते हैं, जो सक्रिय प्रतिरक्षा कहलाते हैं| ये प्रतिजन जीवित या मृत रोगाणु या अन्य प्रोटीनों के रूप में हो सकते हैं| | जब शरीर की रक्षा के लिए बने बनाए प्रतिरक्षी सीधे ही दूसरे शरीर को दिए जाते हैं तो यह निष्क्रिय प्रतिरक्षा कहलाती है| जैसे- नवजात शिशु के लिए माँ का दूध, जिससे स्रावित पीले से तरल ‘पीयूष’ में प्रतिरक्षियों की प्रचुरता होती है जो शिशु की रक्षा करता है| |
सक्रिय प्रतिरक्षा धीमी गति से कार्य करता है| | यह तुरंत क्रियाशील होती है| |
यह चिरस्थायी होता है| | यह स्थायी नहीं होता है| |
9. प्रतिरक्षी (प्रतिपिंड) अणु का अच्छी तरह नामांकित चित्र बनाइए|
उत्तर
10. वे कौन से विभिन्न रास्ते हैं जिनके द्वारा मानव प्रतिरक्षान्यूनता विषाणु (एच आई वी) का संचारण होता है?
उत्तर
एड्स एक विषाणु रोग है जो मानव में प्रतिरक्षा न्यूनता विषाणु (एच आई वी) के कारण होता है|
इसका संचारण निम्नलिखित तरीकों से होता है:
• संक्रमित व्यक्ति के यौन संपर्क से|
• संदूषित रक्त और रुधिर उत्पादों के आधान से|
• संक्रमित सूइयों के साझा प्रयोग से जैसा कि अंतः शिरा द्वारा ड्रग का कुप्रयोग करने से|
• संक्रमित माँ से अपरा द्वारा उसके बच्चों में|
11. वे कौन सी क्रियाविधि है जिससे एड्स विषाणु संक्रमित व्यक्ति के प्रतिरक्षा तंत्र का ह्रास करता है|
उत्तर
• एड्स एक विषाणु रोग है जो मानव में यौन संपर्क या रुधिर आधान द्वारा प्रतिरक्षा न्यूनता विषाणु (एच आई वी) के कारण होता है|
• व्यक्ति के शरीर में आ जाने के बाद विषाणु वृहतभक्षकाणु में प्रवेश करता है जहाँ उसका आरएनए जीनोम, विलोम ट्रांसक्रिप्टेज प्रकिण्व की सहायता से प्रतिक्रितीयन द्वारा विषाणवीय डी एन ए बनाता है|
• यह विषाणवीय डीएनए परपोषी की कोशिका के डीएनए में समविष्ट होकर संक्रमित कोशिकाओं को विषाणु कण पैदा करने का निर्देश देता है|
• इसके साथ ही एचआईवी सहायक टी-लसीकाणुओं में घुस जाता है, प्रतिकृति बनाता है और संतति विषाणु पैदा करता है|
• रुधिर में छोड़े गए संतति विषाणु दूसरे सहायक टी-लसीकाणुओं पर पर हमला करते हैं|
• यह क्रम बार-बार दोहराया जाता है जिसकी वजह से संक्रमित व्यक्ति के शरीर में सहायक टी-लसीकाणुओं की संख्या में उत्तरोत्तर कमी होती है| इसके कारण रोगी में प्रतिरक्षा न्यूनता हो जाती है|
12. प्रसामान्य कोशिका से कैंसर कोशिका किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर
प्रसामान्य कोशिका
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कैंसर कोशिका
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प्रसामान्य कोशिका संस्पर्श संदमन का गुण दर्शाती है| इसलिए दूसरी कोशिकाओं से उनका संस्पर्श उनकी अनियंत्रित वृद्धि को संदमित करता है| | कैंसर कोशिका में संस्पर्श संदमन के गुण का अभाव होता है| इसके फलस्वरूप कैंसर कोशिकाएँ विभाजित होना जारी रख कोशिकाओं का भंडार खड़ा कर देती है जिसे अर्बुद (ट्यूमर) कहते हैं| |
इनमें विशिष्ट विकास होने के बाद विभेदन होता है| | इनमें विभेदन नहीं होता है| |
ये कोशिकाएँ अपने मूल स्थान तक सीमित रहते हैं| | ये कोशिकाएँ अपने मूल स्थान तक सीमित नहीं रहते हैं, आस-पास के सामान्य उत्तकों पर हमला करके उन्हें क्षति पहुँचाती हैं| |
13. मैटास्टेसिस का क्या मतलब है व्याख्या कीजिए|
उत्तर
मैटास्टेसिस का गुण दुर्दम अर्बुदों में होता है| इसमें अर्बुद कोशिकाएँ सक्रियता से विभाजित और वर्धित होती है जिससे वे अत्यावश्यक पोषकों के लिए सामान्य कोशिकाओं से स्पर्धा करती हैं और उन्हें भूखा मारती हैं| ऐसे अर्बुदों से उतरी हुई कोशिकाएँ रक्त द्वारा दूरदराज स्थलों पर पहुँच जाती हैं और जहाँ भी ये जाती हैं नए अर्बुद बनाना प्रारंभ कर देती हैं|
14. ऐल्कोहल/ड्रग के द्वारा होने वाले कुप्रयोग के हानिकारक प्रभावों की सूची बनाएँ|
उत्तर
ऐल्कोहल/ड्रग का व्यक्तिगत रूप से, परिवार और समाज पर कई प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है|
(क) ऐल्कोहल का प्रभाव
• व्यक्ति पर प्रभाव: ऐल्कोहल व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है| जब एक व्यक्ति अधिक ऐल्कोहल का सेवन करता है तो उसके तंत्रिका तंत्र और यकृत को क्षति पहुँचती है| परिणामस्वरूप, व्यक्ति में अवसाद, थकावट, आक्रमणशील, भूख और वजन में घट-बढ़ जैसे लक्षण देखे जा सकते हैं| कभी-कभी ऐल्कोहल के अत्यधिक मात्रा से हृद-पात अथवा प्रमस्तिष्क रक्तस्राव के कारण संमूर्च्छा (कोमा) और मृत्यु भी हो सकती है| ऐल्कोहल दुरूपयोग के सबसे सामान्य लक्षण विद्रोही व्यवहार, परिवार और मित्रों से बिगड़ते संबंध आदि हैं| गर्भावस्था के दौरान ऐल्कोहल का उपयोग गर्भ पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है|
• परिवार पर प्रभाव: ऐल्कोहल परिवार या मित्र आदि के लिए भी मानसिक और आर्थिक कष्ट का कारण बन सकता है| यह घरेलू कष्टों जैसे झगड़ा, निराशा, असुरक्षा का भी कारण होता है|
• समाज पर ऐल्कोहल का प्रभाव:
(i) झगड़ालू व्यवहार
(ii) बर्बरता और हिंसा
(iii) सामाजिक गतिविधियों के रुचि में कमी, खाने और सोने की आदतों में परिवर्तन|
(ख) ड्रग का प्रभाव
एक व्यक्ति जो ड्रग का व्यसनी होता है वह न केवल स्वयं के लिए बल्कि अपने परिवार के लिए भी समस्याएँ उत्पन्न करता है|
• व्यसनी व्यक्ति पर प्रभाव: एक व्यक्ति के केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर ड्रग का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है| इससे शरीर के कई अंगों जैसे- वृक्क, यकृत, आदि के दुष्क्रियता की संभावना होती है| एड्स और यकृतशोथ-बी जैसे गंभीर रोगों के विषाणु संक्रमित सूई और सिरिंज के साझा प्रयोग द्वारा ड्रग लेने के कारण स्थानांतरित होते हैं| ड्रग का स्त्री तथा पुरूष दोनों पर दीर्घकालीन कुप्रभाव होता है| इन दुष्प्रभावों में बढ़ी अक्रामकता, भावदशा में उतार-चढ़ाव, और अवसाद शामिल हैं|
• परिवार तथा समाज पर प्रभाव: ड्रग्स का व्यसनी व्यक्ति अपने परिवार तथा समाज के लिए आर्थिक तथा मानसिक कष्ट का कारण बन सकता है| ड्रग्स पर निर्भर व्यक्ति निराश, परेशान और सामाजिक-विरोधी हो जाता है|
15. क्या आप ऐसा सोचते हैं कि मित्रगण किसी को ऐल्कोहल/ड्रग सेवन के लिए प्रभावित कर सकते हैं? यदि हाँ, तो व्यक्ति ऐसे प्रभावों से कैसे अपने आपको बचा सकते हैं?
उत्तर
हाँ, मित्रगण किसी को ऐल्कोहल/ड्रग सेवन के लिए प्रभावित कर सकते हैं| एक व्यक्ति ऐसे प्रभावों से इस प्रकार अपने आपको बचा सकता है-
• आवश्यक समकक्षी दबाव से बचकर- प्रत्येक बच्चे की अपनी पसंद और अपना व्यक्तित्व होता है, जिसका शिक्षकों तथा परिवार द्वारा सम्मान करना चाहिए| जिज्ञासा और आनन्द के लिए शराब का प्रयोग नहीं करना चाहिए|
• उन मित्रों की संगति से बचें जो ड्रग्स लेते हैं|
• माता-पिता से मदद लें| बच्चे को उसकी अवसीमा से अधिक करने के लिए अनावश्यक दबाव नहीं डालना चाहिए|
• नशीली दवाओं के दुरुपयोग के बारे में उचित ज्ञान और परामर्श लें| बालक की ऊर्जा को स्वस्थ गतिविधियों की दिशा में लगाना चाहिए|
• अवसाद और निराशा के लक्षण स्पष्ट होने पर उच्च योग्यता प्राप्त मनोवैज्ञानिकों और मनोचिकित्सकों से चिकित्सा सहायता लें|
• पर्याप्त प्रयासों और इच्छाशक्ति द्वारा इस समस्या से छुटकारा पाएं तथा पूर्णरूपेण प्रसामान्य और स्वस्थ जीवन जीएं|
16. ऐसा क्यों है कि जब कोई व्यक्ति ऐल्कोहल या ड्रग लेना शुरू कर देता है तो उस आदत से छुटकारा पाना कठिन होता है? अपने अध्यापक से चर्चा कीजिए|
उत्तर
इस प्रश्न को अपने विषय शिक्षक के साथ चर्चा करें|
17. आपके विचार से किशोरों को ऐल्कोहल या ड्रग के सेवन के लिए क्या प्रेरित करता है और इससे कैसे बचा जा सकता है?
उत्तर
ऐल्कोहल या ड्रग के सेवन के लिए किशोरों को प्रेरित करने के लिए विभिन्न कारक उत्तरदायी हैं :
• जिज्ञासा, जोखिम उठाने और उत्तेजना के प्रति आकर्षण और प्रयोग करने की इच्छा किशोरों को ऐल्कोहल या ड्रग के लिए अभिप्रेरित करते हैं|
• कुछ समय से शैक्षिक क्षेत्र में या परीक्षा में सबसे आगे रहने के दबाव से उत्पन्न तनाव ने भी किशोरों को ऐल्कोहल या ड्रग को आजमाने के लिए फुसलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है|
• इसे बढ़ावा देने में टेलीविज़न, सिनेमा, समाचार पत्र, इंटरनेट ने भी सहायता की है|
• परिवार के ढाँचे में अस्थिरता या एक दूसरे को सहारा देने तथा मित्रों के दबाव का अभाव भी ऐल्कोहल या ड्रग पर निर्भर होने का कारण हो सकता है|
ऐल्कोहल या ड्रग के व्यसन के रोकथाम के उपाय :
• माता-पिता द्वारा प्रेरित किया जाना चाहिए और अपने बच्चे की इच्छाशक्ति बढाने का प्रयास करना चाहिए|
• माता-पिता को अपने बच्चों को के ऐल्कोहल के कुप्रभाव के बारे में शिक्षित करना चाहिए| उन्हें ऐल्कोहल की व्यसन के परिणाम के बारे में उचित ज्ञान और परामर्श देना चाहिए|
• यह माता-पिता का उत्तरदायित्व है कि ऐल्कोहल के प्रयोग करने के लिए बच्चे को हतोत्साहित किया जाए| किशोरों को उन मित्रों की संगति से दूर रखा जाना चाहिए, जो ड्रग का सेवन करते हैं|
• किशोरों की ऊर्जा को मनोरंजक तथा स्वस्थ गतिविधियों की दिशा में लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए|
• बच्चे में अवसाद तथा हताशा के लक्षण देखे जाने पर उचित व्यावसायिक तथा चिकित्सा सहायता प्रदान की जानी चाहिए|