NCERT Solutions of Jeev Vigyan for Class 12th: Ch 9 खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति जीव विज्ञान   

प्रश्न 

पृष्ठ संख्या 193

1. मानव कल्याण में पशु पालन की भूमिका की संक्षेप में व्याख्या कीजिए|

उत्तर

• पशुपालन, पशुधन के वैज्ञानिक प्रबंधन से संबंधित है जिसमें पशुधन की जनसंख्या में वृद्धि के लिए उनके भोजन, प्रजनन तथा रोगों के नियंत्रण जैसे विभिन्न पहलुओं को शामिल किया जाता है|

• इसका संबंध पशुधन जैसे- भैंस, गाय, सूअर, घोड़ा, भेंड़, ऊँट, बकरी आदि के प्रजनन तथा उनकी देखभाल से होता है जो मानव के लिए लाभप्रद है|

• इन पशुओं का उपयोग व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण उत्पादों जैसे- दूध, मांस, ऊन, अंडे, रेशम, शहद आदि के उत्पादन के लिए किया जाता है|

• मानव आबादी में वृद्धि के कारण पशुधन उत्पादों के माँग में वृद्धि होती है| इसलिए पशुधन के प्रबंधन में सुधार करना आवश्यक है|

2. यदि आपके परिवार के पास एक डेरी फार्म है तब आप दुग्ध उत्पादन में उसकी गुणवत्ता तथा मात्रा में सुधार लाने के लिए कौन-कौन से उपाय करेंगे?

उत्तर

(i) डेरी फार्म प्रबंधन में उन संसाधनों तथा तंत्रों के विषय में अध्ययन किया जाता है जिनसे दुग्ध की गुणवत्ता में सुधार तथा उसका उत्पादन बढ़ता है| दुग्ध उत्पादन मूल रूप से उच्च उत्पादन वाली अच्छी नस्ल का चयन, पशुओं की अच्छी देखभाल, भोजन प्रदान करने का वैज्ञानिक ढंग, उनके रहने का अच्छा घर, पर्याप्त जल तथा रोमुक्त वातावरण पर निर्भर करता है|

(ii) उन्नत प्रजनित पशु नस्ल पशु प्रबंधन का एक महत्वपूर्ण कारक है| बेहतर उत्पादकता के लिए संकर पशु नस्ल का प्रयोग किया जाता है| इस प्रकार यह महत्वपूर्ण है कि संकर पशु नस्लों के वांछनीय जीनों का संयोजन होना चाहिए जैसे- उच्च दुग्ध उत्पादन और रोगों के प्रति उच्च प्रतिरोध|

(iii) पशुओं को उच्च गुणवत्ता और पौष्टिक चारा प्रदान करना चाहिए, जिसमें रेशेदार, उच्च प्रोटीन तथा अन्य पोषक तत्व शामिल हैं|

(iv) पशुओं के रहने का अच्छा घर होना चाहिए तथा वातानुकूलित छत के नीचे रखना चाहिए ताकि उन्हें गर्मी, ठंड, और बारिश जैसी बुरे जलवायु परिस्थितियों में बचाया जा सके|

(v) रोगों के नियंत्रण के लिए नियमित स्नान तथा उचित सफाई सुनिश्चित किया जाना चाहिए| इसके अतिरिक्त, विभिन्न रोगों के लक्षणों की नियमित जाँच पशु चिकित्सक द्वारा की जानी चाहिए|

3. ‘नस्ल’ शब्द से आप क्या समझते हैं? पशु प्रजनन के क्या उद्देश्य हैं?

उत्तर

पशुओं का वह समूह जो वंश तथा सामान्य लक्षणों जैसे, सामान्य दिखावट, आकृति, आकार, संरूपण आदि में समान हों, एक नस्ल के कहलाते हैं|

उदाहरण- जर्सी तथा ब्राउन स्विस पशुओं के विदेशी नस्ल हैं| पशुओं की इन दो किस्मों में प्रचुर मात्रा में दुग्ध उत्पादन की क्षमता होती है, जिसमें उच्च प्रोटीन अंश होने के कारण पौष्टिक होता है|

पशु प्रजनन के उद्देश्य

• पशु उत्पादन के वांछनीय गुणवत्ता में सुधार करने के लिए|
• पशुओं के उत्पादन में वृद्धि के लिए|
• पशुओं के रोग प्रतिरोधी किस्मों का उत्पादन करने के लिए|

4. पशु प्रजनन के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली विधियों के नाम बताएँ| आपके अनुसार कौन सी विधि सर्वोत्तम है? क्यों?

उत्तर

पशु प्रजनन के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली विधियाँ निम्नलिखित हैं :

(i) एक ही नस्ल के पशुओं के मध्य जब प्रजनन होता है तो वह अंतःप्रजनन कहलाता है जबकि भिन्न-भिन्न नस्लों के मध्य प्रजनन कराया जाए वह बहिःप्रजनन कहलाता है|

पशुओं के बहिःप्रजनन के तीन प्रकार होते हैं :

बहिःसंकरण- एक ही नस्ल के भीतर पशुओं के संगम की यह बहिःसंकरण कहलाती है परंतु इसमें 4-6 पीढ़ियों तक दोनों ओर की किसी भी वंशावली में उभय पूर्वज नहीं होना चाहिए|

संकरण- इस विधि में एक नस्ल के श्रेष्ठ नर का दूसरे नस्ल की श्रेष्ठ मादा के साथ संगम कराया जाता है| संकरण दो विभिन्न नस्लों के वांछनीय गुणों के संयोजन में सहायक होता है|

अंतःविशिष्ट संकरण- इस विधि में दो विभिन्न प्रजातियों के नर तथा मादा पशुओं के मध्य संगम कराया जाता है| कुछ मामलों में संतति में दोनों जनकों के वांछनीय गुण सम्मिलित हो जाते हैं तथा इस संतति का पर्याप्त आर्थिक महत्त्व होता है, जैसे- खच्चर|

(ii) प्रजनन के कृत्रिम विधियों में प्रजनन की आधुनिक तकनीकें शामिल हैं| इसमें नियंत्रित प्रजनन प्रयोगों को शामिल किया जाता है, जो दो प्रकार के होते हैं-

कृत्रिम वीर्यसेचन : इस प्रक्रिया में जिस नर का चयन एक जनक के रूप में किया गया हो, उसका वीर्य एकत्रित करके प्रजनक द्वारा चयनित मादा के जनन पथ में अंतक्षेप कर दिया जाता है| सामान्य संगम से उत्पन्न अनेक समस्याएँ कृत्रिम वीर्यसेचन की प्रक्रिया से दूर हो जाती है|

मल्टीपिल औवियूलेशन, ऐम्ब्रयो ट्रांसफर (भ्रूण अंतरण) तकनीक : इस विधि में एक पशु में पुटक परिपक्वन तथा उच्च अंडोत्सर्ग को प्रेरित करने के लिए हॉर्मोन इंजेक्शन दिया जाता है| 8-32 कोशिका अवस्थाओं वाले निषेचित अंडे को बिना शल्य चिकित्सा से प्राप्त कर प्रतिनियुक्त मादा में स्थानांतरित कर दिया जाता है आनुवांशिक मादा उच्च अंडोत्सर्ग के दूसरी पारी के लिए उपलब्ध हो जाती है|

पशु प्रजनन की विधियों में कृत्रिम प्रजनन सर्वोत्तम विधि मानी जाती है, जिसमें कृत्रिम वीर्यसेचन तथा MOET तकनीक आते हैं| इन तकनीकों की प्रकृति वैज्ञानिक होती है| वे सामान्य संगम से उत्पन्न समस्याओं को कम करने में मदद करते हैं तथा परिपक्व नर एवं मादा के बीच संकरण की उच्च सफलता दर प्राप्त होती है| साथ ही, यह वांछित गुणवत्ता के साथ संकर के उत्पादन को सुनिश्चित करता है| यह विधि आर्थिक रूप से लाभप्रद है क्योंकि नर से प्राप्त वीर्य की बहुत कम मात्रा को अधिक संख्या में पशुओं के निषेचन के लिए प्रयोग किया जा सकता है क्योंकि वीर्य नष्ट नहीं होता है|

5. मौन (मधुमक्खी) पालन से आप क्या समझते हैं? हमारे जीवन में इसका क्या महत्त्व है?

उत्तर

शहद के उत्पादन के लिए मधुमक्खियों के छत्तों का रखरखाव ही मधुमक्खी पालन कहलाता है|

हमारे जीवन में इसका बहुत ही महत्त्व है :

• शहद उच्च पोषक तत्त्व का एक आहार है तथा औषधियों की देशी प्रणाली में भी इसका प्रयोग किया जाता है|

• यह सर्दी, फ्लू और पेचिश जैसे कई रोगों के उपचार में उपयोगी है|

• मधुमक्खियाँ मोम भी पैदा करती हैं जिसका कांतिवर्द्धक वस्तुओं की तैयारी तथा विभिन्न प्रकार के पालिश वाले उद्योगों में प्रयोग किया जाता है|

• शहद की बढ़ती हुई माँग ने मधुमक्खियों को बड़े पैमाने पर पालने के लिए बाध्य किया है| यह उद्योग चाहे लघु अथवा वृहत् पैमाने का ही क्यों न हों, एक आय जनक व्यवसाय बन चुका है|

6. खाद्य उत्पादन को बढ़ाने में मत्स्यकी की भूमिका की विवेचना करें|

उत्तर

• मत्स्यकी एक प्रकार का उद्योग है जिसका संबंध मछली अथवा अन्य जलीय जीव को पकड़ना, प्रसंस्करण तथा उन्हें बेचने से है, जिसका बहुत अधिक आर्थिक महत्त्व होता है|

• व्यावसायिक रूप से महत्त्वपूर्ण कुछ जलीय जीव झींगा, केकड़ा, लॉबस्टर, खाद्य आयस्टर आदि हैं|

• भारतीय अर्थव्यवस्था में मत्स्यकी का महत्त्वपूर्ण स्थान है| हमारी जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग आहार के रूप में मछली, मछली उत्पादों तथा अन्य जलीय जंतुओं पर आश्रित है|

• यह तटीय राज्यों में विशेषकर लाखों मछुआरों तथा किसानों को आय तथा रोजगार प्रदान करती है| बहुत से लोगों के लिए यह जीविका का एकमात्र साधन है|

7. पादप प्रजनन में भाग लेने वाले विभिन्न चरणों का संक्षेप में वर्णन करें|

उत्तर

पादप प्रजनन पादप प्रजातियों का एक उद्देश्यपूर्ण परिचालन है, ताकि वांछित पादप किस्में तैयार हो सकें| यह किस्में खेती के लिए अधिक उपयोगी, अच्छा उत्पादन करने वाली एवं रोग प्रतिरोधी होती हैं|

पादप प्रजनन में भाग लेने वाले विभिन्न चरण निम्नलिखित हैं :

(i) परिवर्तनशीलता का संग्रहण- आनुवांशिक परिवर्तनशीलता किसी भी प्रजनन कार्यक्रम का मूलाधार है| बहुत सी शस्यों (फसलों) में पूर्ववर्ती आनुवांशिक परिवर्तनशीलता उन्हें अपनी जंगली प्रजातियों से प्राप्त होती है| किसी फसल में पाए जाने वाले सभी जीनों के विविध अलील का समस्त संग्रहण (पादप/बीजों) को उसका जननद्रव्य संग्रहण कहते हैं|

(ii) जनकों का मूल्यांकन तथा चयन- जननद्रव्य मूल्यांकित किए जाते हैं, ताकि पादपों को उनके लक्षणों के वांछनीय संयोजनों के साथ अभिनिर्धारित किया जा सके| चयनित पादपों को बहुगुणित कर उनका प्रयोग संकरण की प्रक्रिया में किया जाता है|

(iii) चयनित जनकों के बीच पर संकरण- वांछित लक्षणों को बहुधा दो भिन्न पादपों (जनकों) से प्राप्त कर संयोजित किया जाता है| यह परसंकरण द्वारा संभव है कि दो जनक ऐसे संकर पैदा करें, जिससे आनुवांशिक वांछित लक्षणों का संगम एक पौधों में हो सके| वांछित पौधे का परागकण का संग्रहण जिसे नर जनक के रूप में चुना गया है तथा उसे मादा पौधे के वर्तिकाग्र पर डालना जिसे मादा जनक के रूप में चुना गया है|

(iv) श्रेष्ठ पुनर्योगज का चयन तथा परीक्षण- इसके अंतर्गत संकरों की संतति के बीच से पादप का चयन किया जाता है जिनमें वांछित लक्षण संयोजित हो| इसमें संतति के वैज्ञानिक मूल्यांकन की आवश्यकता होती है| ये कई पीढ़ियों तक स्वपरागण तब तक करते हैं जब तक कि समरूपता की अवस्था नहीं आ जाती (समयुग्मजता)|

(v) नए कंषणों का परीक्षण, निर्मुक्त होना तथा व्यापारीकरण-  नव चयनित वंशक्रम का उनके उत्पादन तथा अन्य गुणवत्ता वाली शस्य विशेषकों, रोगप्रतिरोधकता आदि गुणों के आधार पर मूल्यांकित किया जाता है| अनुसंधानिक खेत में मूल्यांकन के बाद पौधों का परीक्षण देश भर में किसानों के खेत में कई स्थानों पर, कम से कम तीन ऋतुओं तक किया जाता है| उपरोक्त विधि से उत्पन्न शस्य की तुलना सर्वोत्तम उपलब्ध स्थानीय शस्य कंषण से करने के बाद मूल्यांकित करना चाहिए|

8. जैव प्रबलीकरण का क्या अर्थ है? व्याख्या कीजिए|

उत्तर

जैव प्रबलीकरण विटामिन तथा खनिज के उच्च स्तर वाली अथवा उच्च प्रोटीन तथा स्वास्थ्यवर्धक वसा वाली प्रजनित फसलें जन स्वास्थ्य को सुधारने के अत्यंत महत्त्वपूर्ण प्रायोगिक माध्यम हैं| पहले से विद्यमान संकर मक्का की तुलना में, 2000 में विमुक्त संकर मक्का में अमीनो एसिड, लायसिन तथा ट्रिप्टोफैन की दुगुनी मात्रा विकसित की गई| गेहूँ की किस्म जिसमें उच्च प्रोटीन अंश हो, एटलस 66 कृष्य गेहूँ की ऐसी उन्नतशील किस्म तैयार करने के लिए दाता की तरह से प्रयोग किया गया है| साथ ही बहुत-सी ऐसी सब्जियों की फसलों का मोचन किया गया है जिनमें विटामिन तथा खनिज प्रचुर मात्रा में होते हैं, जैसे-गाजर, पालक, कद्दू में विटामिन ए; करेला, बथुआ, सरसों, टमाटर में विटामिन सी; पालक तथा बथुआ जिसमें आयरन तथा ब्रॉड बींस, लबलब, फ्रैंच तथा गार्डन मटर में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाई जाती है|

9. विषाणु मुक्त पादप तैयार करने के लिए पादप का कौन-सा भाग सबसे अधिक उपयुक्त है तथा क्यों?

उत्तर

विषाणु मुक्त पादप तैयार करने के लिए पादप का विभज्योतक (शीर्ष तथा कक्षीय) सबसे अधिक उपयुक्त है| रोग ग्रसित पादपों में पौधों के अन्य भागों की तुलना में यह भाग विषाणु से अप्रभावित रहता है| इसलिए वैज्ञानिक रोग ग्रसित पादपों के विभज्योतक (मेरेस्टेम) को अलग कर उसे विट्रो में उगाते हैं ताकि विषाणु मुक्त पादप तैयार हो सकें| उन्हें केला, गन्ना, आलू आदि संवर्धित विभज्योतक तैयार करने में काफी सफलता मिली है|

10. सूक्ष्मप्रवर्धन द्वारा पादपों के उत्पादन के मुख्य लाभ क्या हैं?

उत्तर

ऊतक संवर्धन द्वारा हजारों की संख्या में पादपों को उत्पन्न करने की विधि सूक्ष्मप्रवर्धन कहलाती है|

सूक्ष्मप्रवर्धन द्वारा पादपों के उत्पादन के मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं :

• सूक्ष्मप्रवर्धन द्वारा कम समय में बड़ी संख्या में पादपों के विस्तार में सहायता मिलती है|

• इनमें प्रत्येक पादप आनुवांशिक रूप से मूलपादप के समान होते हैं, जहाँ से वह पैदा हुए हैं|

• इससे स्वस्थ पादपों का उत्पादन होता है जो बेहतर रोग प्रतिरोधी क्षमताओं का प्रदर्शन करते हैं|

11. पत्ती में कर्तोतक पादप के प्रवर्धन में जिस माध्यम का प्रयोग किया गया है, उसमें विभिन्न घटकों का पता लगाओ|

उत्तर

पत्ती में कर्तोतक पादप के प्रवर्धन में जिस माध्यम का प्रयोग किया गया है उसके विभिन्न घटकों में कार्बन स्रोत जैसे स्युक्रोज तथा अकार्बनिक लवण, विटामिन, अमीनो अम्ल तथा वृद्धि नियंत्रक जैसे ऑक्सिन, सायटोकाइनिन आते हैं|

12. शस्य पादपों के किन्हीं पाँच संकर किस्मों के नाम बताएँ, जिनका विकास भारतवर्ष में हुआ है|

उत्तर

शस्य पादपों के पाँच संकर किस्मों के नाम, जिनका विकास भारतवर्ष में हुआ है, वे हैं :

शस्य पादप
संकर किस्में
गेहूँहिमगिरी|
चावलजया तथा रत्ना 
फूलगोभीपूसा शुभ्रा, पूसा स्नोबॉल K-1
लोबियापूसा कोमल
सरसोंपूसा स्वर्णिम

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