Notes of Science in Hindi for Class 9th: Ch 12 ध्वनि विज्ञान 

विषय-सूची

  • ध्वनि
  • ध्वनि का उत्पादन
  • ध्वनि का संचरण
  • ध्वनि संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है
  • अनुदैर्ध्य तरंगें
  • ध्वनि तरंग के अभिलक्षण
  • विभिन्न माध्यमों में ध्वनि की चाल
  • ध्वनि का परावर्तन
  • प्रतिध्वनि
  • अनुरणन
  • परावर्तन के अनुप्रयोग
  • श्रव्यता का परिसर
  • पराध्वनि के अनुप्रयोग
  • सोनार
  • मानव कर्ण की संरचना

ध्वनि

ध्वनि हमारे कानों में श्रवण का संवेदन उत्पन्न करती है| यह ऊर्जा का एक रूप है जिसे हम सुन सकते हैं| ऊर्जा संरक्षण का नियम ध्वनि पर भी लागू होता है| ध्वनि का संचरण तरंगों के रूप में होता है|

ध्वनि का उत्पादन

ध्वनि तब पैदा होती है जब वस्तु कंपन करती है या कम्पमान वस्तुओं से ध्वनि पैदा होती है| किसी वस्तु को कम्पित करके ध्वनि पैदा करने के लिए आवश्यक ऊर्जा किसी बाह्य स्रोत द्वारा उपलब्ध करायी जाती है|

उदाहरण

प्रयोगशाला में कंपमान स्वरित्र द्विभुज से ध्वनि उत्पन्न करते हैं| इसको दिखाने के लिए एक छोटी टेनिस (प्लास्टिक) की गेंद को धागे की सहायता से किसी आधार पर लटकाकर कंपमान स्वरित्र द्विभुज से स्पर्श कराते हैं| गेंद एक बड़े बल के द्वारा दूर धकेल दी जाती है|
निम्नलिखित तरीकों से ध्वनि पैदा होती है:

(i) कंपन करते तंतु से (सितार)
(ii) कंपन करती वायु से (बाँसुरी)
(iii) कंपन करती तनित झिल्ली से (तबला, ड्रम)
(iv) कंपन करती प्लेटों से (साइकिल की घंटी)
(v) वस्तुओं से घर्षण द्वारा
(vi) वस्तुओं को खुरचकर या रगड़कर 

ध्वनि का संचरण

• वह पदार्थ जिसमें होकर ध्वनि संचरित होती है, माध्यम कहलाता है|

• माध्यम ठोस, द्रव या गैस हो सकता है|

जब एक वस्तु कंपन करती है, तब इसके आस-पास के वायु के कण भी बिलकुल वस्तु की तरह कंपन करते हैं और अपनी संतुलित अवस्था से विस्थापित हो जाते हैं| 

ये कंपमान वायु के कण अपने आस-पास के वायु कणों पर लगाते हैं| अतः वे कण भी अपनी विरामावस्था से विस्थापित होकर कंपन करने लगते हैं|

यह प्रक्रिया माध्यम में तब तक चलती रहती है जब तक ध्वनि हमारे कानों में नहीं पहुँच जाती है|

ध्वनि द्वारा उत्पन्न विक्षोभ माध्यम माध्यम से होकर गति करता है| (माध्यम के कण गति नहीं करते हैं)

तरंग एक विक्षोभ है जो माध्यम में गति करता है तथा एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ऊर्जा ले जाता है जबकि दोनों बिंदुओं में सीधा संपर्क नहीं होता है|

ध्वनि यांत्रिक तरंगों के द्वारा संचरित होती है| 

ध्वनि तरंगें अनुदैर्ध्य तरंगें हैं| जब एक वस्तु कंपन करती है तब अपने आस-पास की वायु को संपीडित करती है| इस प्रकार एक उच्च घनत्व या दाब का क्षेत्र बनता है जिसे संपीडन कहते हैं| 

जब कंपमान वस्तु पीछे की ओर कंपन करती है तब एक निम्न दाब का क्षेत्र बनता है जिसे विरलन कहते हैं| 

जब वस्तु आगे-पीछे तेजी से कंपन करती है तब हवा में संपीडन और विरलन की श्रेणी बनकर ध्वनि तरंग बनाती है|

ध्वनि तरंग का संचरण घनत्व परिवर्तन का संचरण है|  

ध्वनि संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है

ध्वनि तरंगें यांत्रिक तरंगें हैं, इनके संचरण के लिए माध्यम (हवा, पानी, स्टील) की आवश्यकता होती है|

यह निर्वात में संचरित नहीं हो सकती है|

उदाहरण

एक विद्युत घंटी को वायुरूद्ध बेलजार में लटकाकर बेलजार को निर्वात पम्प से जोड़ते हैं| जब बेलाजार वायु से भरा होता है, तब ध्वनि सुनाई देती है| लेकिन जब निर्वात पम्प को चलाकर वायु को बेलजार से निकालकर घंटी बजाते हैं, तब ध्वनि सुनाई नहीं देती है|
ध्वनि निर्वात में संचरित नहीं हो सकती (प्रयोग)

ध्वनि तरंगें अनुदैर्ध्य तरंगें हैं

(i) वह तरंग जिसमें माध्यम के कण आगे-पीछे उसी दिशा में कंपन करते हैं जिस दिशा में तरंग गति करती है, अनुदैर्ध्य तरंग कहलाती है|

जब एक स्लिंकी को धक्का देते तथा खींचते हैं तब संपीडन तथा विरलन बनते हैं|

जब तरंग स्लिंकी में गति करती है तब इसकी प्रत्येक कुंडली तरंग की दिशा में आगे-पीछे एक छोटी दूरी तय 
करती है| अतः अनुदैर्ध्य तरंग है|

कणों के कंपन की दिशा तरंग की दिशा के समान्तर होती है|
जब स्लिंकी के एक सिरे को आधार से स्थिर करके दूसरे सिरे को ऊपर निचे तेजी से हिलाते हैं तब यह अनुप्रस्थ तरंगें उत्पन्न करती हैं|

ध्वनि तरंगों के अभिलक्षण

• ध्वनि तरंग के अभिलक्षण हैं- तरंग दैर्ध्य, आवृत्ति, आयाम, आवर्तकाल तथा तरंग वेग|

(i) तरंग दैर्ध्य

ध्वनि तरंग में एक संपीडन तथा एक सटे हुए विरलन की कुल लंबाई को तरंग दैर्ध्य कहते हैं|

दो क्रमागत संपीडनों या दो क्रमागत विरलनों के मध्य बिंदुओं के बीच की दूरी को तरंग दैर्ध्य कहते हैं|
तरंग दैर्ध्य को ग्रीक अक्षर लैम्डा (λ) से निरूपित करते हैं| इसका S.I. मात्रक मीटर (m) है| 

(ii) आवृत्ति

एक सेकंड में उत्पन्न पूर्ण तरंगों की संख्या या एक सेकंड में कुल दोलनों की संख्या को आवृत्ति कहते हैं|

एक सेकंड में गुजरने वाले संपीडनों तथा विरलनों की संख्या को भी आवृत्ति कहते हैं|

• किसी आवृत्ति उस तरंग को उत्पन्न करने वाली कम्पित वस्तु की आवृत्ति के बराबर होती है| आवृत्ति का S.I. मात्रक हर्ट्ज (Hz) है| आवृत्ति को ग्रीक अक्षर v (न्यू) से प्रदर्शित करते हैं| 

(iii) आवर्त काल

एक कंपन या दोलन को पूरा करने में लिए गए समय को आवर्त काल कहते हैं| 
• दो क्रमागत संपीडन या विरलन को एक निश्चित बिंदु से गुजरने में लगे समय को आवर्त काल कहते हैं|

• आवर्त काल का S.I. मात्रक सेकेण्ड (S) है| इसको T से निरूपित करते हैं| किसी तरंग की आवृत्ति आवर्त काल का व्युत्क्रमानुपाती होता है| 
 r = 1/T

आयाम

• किसी माध्यम के कणों के उनकी मूल स्थिति के दोनों और अधिकतम विस्थापन को तरंग का आयाम कहते हैं| 

• आयाम को ‘A’ से निरूपित कहते हैं तथा इसका S.I. मात्रक मीटर ‘m’ है|
ध्वनि से तारत्व, प्रबलता तथा गुणता जैसे अभिलक्षण पाए जाते हैं| 

तारत्व

• किसी उत्सर्जित ध्वनि की आवृत्ति को मस्तिष्क किस प्रकार अनुभव करता है, उसे तारत्व कहते हैं| किसी स्रोत का कंपन जितनी शीघ्रता से होता है, आवृत्ति उतनी ही अधिक होती है और उसका तारत्व भी अधिक होता है| इसी प्रकार जिस ध्वनि का तारत्व कम होता है उसकी आवृत्ति भी कम होती है|
प्रबलता

• ध्वनि की प्रबलता ध्वनि तरंगों के आयाम पर निर्भर होती है| कानों में प्रति सेकंड पहुँचने वाली ध्वनि ऊर्जा के मापन को प्रबलता कहते हैं| 

• मृदु ध्वनि का आयाम कम होता है तथा प्रबल ध्वनि का आयाम अधिक होता है| प्रबलता को डेसिबल (db) में मापा जाता है|

गुणता

• किसी ध्वनि की गुणता उस ध्वनि द्वारा उत्पन्न तरंग की आकृति पर निर्भर करती है| यह हमें समान तारत्व तथा प्रबलता की ध्वनियों में अंतर करने में सहायता करता है| एकल आवृत्ति की ध्वनि को टोन कहते हैं| 

• अनेक ध्वनियों के मिश्रण को स्वर कहते हैं| शोर कर्णप्रिय नहीं होता है जबकि संगीत सुनने में सुखद होता है| 

तरंग वेग

एक तरंग द्वारा एक सेकंड में तय की गई दूरी को तरंग का वेग कहते हैं| इसका S.I. मात्रक मीटर/सेकंड (ms-1) है|
वेग = चली गई दूरी/लिया गया समय
V = λ/T 
λ ध्वनि की तरंगदैर्ध्य है और यह T समय में चली गई है|

अतः V = λv (1/T = 𝜈)

वेग = तरंगदैर्ध्य × आवृत्ति

प्रश्न- एक ध्वनि तरंग का आवर्तकाल 0.053 है| इसकी आवृत्ति क्या होगी?

उत्तर

आवृत्ति r = 1/T 
दिया गया है T = 0.05 S
V = 1/0.05 = 100/5 = 20 Hz
ध्वनि तरंग की आवृत्ति 20 Hz है|

विभिन्न माध्यमों में ध्वनि की चाल

ध्वनि की चाल पदार्थ (माध्यम) के गुणों पर निर्भर करती है, जिसमें यह संचरित होती है| यह गैसों में सबसे कम द्रवों में ज्यादा तथा ठोसों में सबसे तेज होती है|

ध्वनि की चाल तापमान बढ़ने के साथ बढ़ती है|
हवा में आर्द्रता बढ़ने के साथ ध्वनि की चाल बढ़ती है| 
प्रकाश की चाल ध्वनि की चाल से अधिक है|
• वायु में ध्वनि की चाल 22°C पर 344 ms-1 है|

ध्वनि का परावर्तन

• प्रकाश की तरह ध्वनि भी जब किसी कठोर सतह से टकराती है तब वापस लौटती है| यह ध्वनि का परावर्तन कहलाता है| ध्वनि भी परावर्तन के समय प्रकाश के परावर्तन के नियमों का पालन करती है-

• आपतित ध्वनि तरंग, परावर्तित ध्वनि तरंग तथा आयतन बिंदु पर खींचा गया अभिलंब एक ही तल में होते हैं|

ध्वनि का आपतन कोण हमेशा ध्वनि के परावर्तन कोण के बराबर होता है|

ध्वनि का परावर्तन

प्रतिध्वनि

• ध्वनि तरंग के परावर्तन के कारण ध्वनि के दोहराव को प्रतिध्वनि कहते हैं| 

• हम प्रतिध्वनि तभी सुन सकते हैं जब मूल्य ध्वनि तथा प्रतिध्वनि के बीच 0.1 सेकंड का समय अंतराल हो| 

• प्रतिध्वनि तब पैदा होती है जब ध्वनि किसी कठोर सतह से परावर्तित होती है| मुलायम सतह ध्वनि को अवशोषित करते हैं|

• प्रतिध्वनि सुनने के लिए न्यूनतम दूरी की गणना
चाल = दूरी/समय 
वायु में ध्वनि की चाल = 344 m/s (22°C पर)
समय = 0.1 सेकंड
344 = दूरी/0.15 या दूरी = 344 ms-1 × 0.1 s = 34.4 m

• अतः श्रोता तथा परावर्तक पृष्ठ के बीच की दूरी = 17.2 m (22°C पर)

• बादलों की गड़गड़ाहट, बिजली की आवाज के कई परावर्तक पृष्ठों जैसे बादलों तथा भूमि से बार-बार परावर्तन के कारण होती है|

अनुरणन

• किसी बड़े हॉल में, हॉल की दीवारों, छत तथा फर्श से बार-बार परावर्तन के कारण ध्वनि का स्थायित्व (ध्वनि का बने रहना) अनुरणन कहलाता है| 

• अगर यह स्थायित्व काफी लम्बा हो तब ध्वनि धुंधली, विकृत तथा भ्रामक हो जाती है|
किसी बड़े हॉल या सभागार में अनुरणन को कम करने के तरीके-

• सभा भवन की छत तथा दीवारों पर संपीडित फाइबर बोर्ड से बने पैनल ध्वनि का अवशोषण करने के लिए लगाये जाते हैं|

• खिड़की, दरवाजों पर भारी पर्दे लगाए जाते हैं|

• फर्श पर कालीन बिछाए जाते हैं|

• सीट ध्वनि अवशोषक गुण रखने वाले पदार्थों की बनाई जाती है|

प्रतिध्वनि तथा अनुरणन में अंतर

प्रतिध्वनि
अनुरणन
ध्वनि तरंग के परावर्तन के कारण ध्वनि के दोहराव को प्रतिध्वनि कहते हैं| किसी बड़े हॉल में, हॉल की दीवारों, छत तथा फर्श से बार-बार परावर्तन के कारण ध्वनि का स्थायित्व अनुरणन कहलाता है|
प्रतिध्वनि एक बड़े खाली हॉल में उत्पन्न होता है| ध्वनि का बार-बार परावर्तन नहीं होता है और ध्वनि स्थायी भी नहीं होती है| अनुरणन के ज्यादा लम्बा होने पर ध्वनि धुंधली, विकृत तथा भ्रामक हो जाती है|

ध्वनि के परावर्तन के अनुप्रयोग

(i) मेगाफोन या लाउडस्पीकर, हॉर्न, तूर्य और शहनाई आदि इस प्रकार बनाए जाते हैं कि वे ध्वनि को सभी दिशाओं में फैलाए बिना एक ही दिशा में भेजते हैं| इन सभी यंत्रों में शंक्वाकार भाग ध्वनि तरंगों को बार-बार परावर्तित करके श्रोताओं की ओर भेजता है| इस प्रकार ध्वनि तरंगों का आयाम जुड़ जाने से ध्वनि की प्रबलता बढ़ जाती है|

(ii) स्टेथोस्कोप एक चिकित्सा यंत्र है जो मानव शरीर के अंदर हृदय और फेफड़ों में उत्पन्न ध्वनि को सुनने में काम आता है| हृदय की धड़कन की ध्वनि की रबर की नली में बारम्बार परावर्तित होकर डॉक्टर के कानों में पहुँचती है|

(iii) कंसर्ट हॉल, सम्मेलन कक्षों तथा सिनेमा हॉल की छतें वक्राकार बनाई जाती हैं जिससे कि परावर्तन के पश्चात् ध्वनि हॉल के सभी भागों में पहुँच जाए| कभी-कभी वक्राकार ध्वनि-पट्टों को मंच के पीछे रख दिया जाता है जिससे कि ध्वनि, ध्वनि-पट्ट से परावर्तन के पश्चात् समान रूप से पूरे हॉल में फ़ैल जाए|

श्रव्यता का परिसर

• मनुष्य में श्रव्यता का परिसर 20 Hz से 2000 Hz तक होता है| 5 वर्ष से कम आयु के बच्चे तथा कुत्ते 25 KHz तक की ध्वनि सुन लेते हैं|

• 20 Hz से कम आवृत्ति की ध्वनियों को अवश्रव्य ध्वनि कहते हैं|
कम्पन करता हुआ सरल लोलक अवश्रव्य ध्वनि उत्पन्न करता है|
गैंडे 5 Hz की आवृत्ति की ध्वनि से एक-दूसरे से संपर्क करते हैं|
हाथी तथा व्हेल अवश्रव्य ध्वनि उत्पन्न करते हैं|
भूकम्प प्रघाती तरंगों से पहले अवश्रव्य तरंगें पैदा करते हैं जिन्हें कुछ जंतु सुनकर परेशान हो जाते हैं|

• 20 KHz से अधिक आवृत्ति की ध्वनियों को पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि कहते हैं| कुत्ते, डॉल्फिन, चमगादड़ तथा चूहे पराध्वनि सुन सकते हैं| कुत्ते तथा चूहे पराध्वनि उत्पन्न करते हैं|

श्रवण सहायक युक्ति- यह बैटरी चालित इलेक्ट्रॉनिक मशीन है जो कम सुनने वाले लोगों द्वारा प्रयोग की जाती है| माइक्रोफोन ध्वनि को विद्युत संकेतों में बदलता है जो एंप्लीफायर द्वारा प्रवर्धित हो जाते हैं| ये प्रवर्धित संकेत युक्ति के स्पीकर को भेजे जाते हैं| स्पीकर प्रवर्धित संकेतों को ध्वनि तरंगों में बदलकर कान को भेजता है जिससे साफ़ सुनाई देता है|

पराध्वनि के अनुप्रयोग

• इसका उपयोग उद्योगों में धातु के इलाकों में दरारों या अन्य दोषों का पता लगाने के लिए (बिना उन्हें नुकसान पहुँचाए) किया जाता है|

• यह उद्योगों में वस्तुओं के उन भागों को साफ़ करने में उपयोग की जाती है, जिनका पहुंचना कठिन होता है| जैसे- सर्पिलाकार नली, विषम आकार की मशीन आदि|

• इसका उपयोग मानव शरीर के आंतरिक अंगों, जैसे- यकृत, पित्ताशय, गर्भाशय, गुर्दे और हृदय की जाँच करने में किया जाता है|

• इन तरंगों का उपयोग हृदय की गतिविधियों को दिखाने तथा इसका प्रतिबिंब बनाने में किया जाता है| इसे इकोकार्डियोग्राफी कहते हैं|

• वह तकनीक जो शरीर के आंतरिक अंगों का प्रतिबिंब पराध्वनि तरंगों की प्रतिध्वनियों द्वारा बनाती है| यह अल्ट्रासोनोग्राफी कहलाता है|

• इसका उपयोग गुर्दे की छोटी पथरी को बारीक कणों में तोड़ने के लिए किया जाता है|

सोनार

सोनार शब्द (Sound Navigation and Ranging) से बना है|

कार्यविधि

• सोनार एक युक्ति जो पानी के नीचे पिंडों की दूरी, दिशा तथा चाल नापने के लिए प्रयोग की जाती है|

• सोनार में एक प्रेषित तथा एक संसूचक होती है जो जहाज की तली में लगा होता है|

• प्रेषित्र पराध्वनि तरंगें उत्पन्न करके प्रेषित करता है|


ध्वनि के परावर्तन के अनुप्रयोग

(i) मेगाफोन या लाउडस्पीकर, हॉर्न, तूर्य और शहनाई आदि इस प्रकार बनाए जाते हैं कि वे ध्वनि को सभी दिशाओं में फैलाए बिना एक ही दिशा में भेजते हैं| इन सभी यंत्रों में शंक्वाकार भाग ध्वनि तरंगों को बार-बार परावर्तित करके श्रोताओं की ओर भेजता है| इस प्रकार ध्वनि तरंगों का आयाम जुड़ जाने से ध्वनि की प्रबलता बढ़ जाती है|

(ii) स्टेथोस्कोप एक चिकित्सा यंत्र है जो मानव शरीर के अंदर हृदय और फेफड़ों में उत्पन्न ध्वनि को सुनने में काम आता है| हृदय की धड़कन की ध्वनि की रबर की नली में बारम्बार परावर्तित होकर डॉक्टर के कानों में पहुँचती है|

(iii) कंसर्ट हॉल, सम्मेलन कक्षों तथा सिनेमा हॉल की छतें वक्राकार बनाई जाती हैं जिससे कि परावर्तन के पश्चात् ध्वनि हॉल के सभी भागों में पहुँच जाए| कभी-कभी वक्राकार ध्वनि-पट्टों को मंच के पीछे रख दिया जाता है जिससे कि ध्वनि, ध्वनि-पट्ट से परावर्तन के पश्चात् समान रूप से पूरे हॉल में फ़ैल जाए|

श्रव्यता का परिसर

• मनुष्य में श्रव्यता का परिसर 20 Hz से 2000 Hz तक होता है| 5 वर्ष से कम आयु के बच्चे तथा कुत्ते 25 KHz तक की ध्वनि सुन लेते हैं|

20 Hz से कम आवृत्ति की ध्वनियों को अवश्रव्य ध्वनि कहते हैं| 
(i) कम्पन करता हुआ सरल लोलक अवश्रव्य ध्वनि उत्पन्न करता है|
(ii) गैंडे 5 Hz की आवृत्ति की ध्वनि से एक-दूसरे से संपर्क करते हैं|
(iii) हाथी तथा व्हेल अवश्रव्य ध्वनि उत्पन्न करते हैं|
(iv) भूकम्प प्रघाती तरंगों से पहले अवश्रव्य तरंगें पैदा करते हैं जिन्हें कुछ जंतु सुनकर परेशान हो जाते हैं|  

20 KHz से अधिक आवृत्ति की ध्वनियों को पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि कहते हैं| कुत्ते, डॉल्फिन, चमगादड़ तथा चूहे पराध्वनि सुन सकते हैं| कुत्ते तथा चूहे पराध्वनि उत्पन्न करते हैं|

श्रवण सहायक युक्ति- यह बैटरी चालित इलेक्ट्रॉनिक मशीन है जो कम सुनने वाले लोगों द्वारा प्रयोग की जाती है| माइक्रोफोन ध्वनि को विद्युत संकेतों में बदलता है जो एंप्लीफायर द्वारा प्रवर्धित हो जाते हैं| ये प्रवर्धित संकेत युक्ति के स्पीकर को भेजे जाते हैं| स्पीकर प्रवर्धित संकेतों को ध्वनि तरंगों में बदलकर कान को भेजता है जिससे साफ़ सुनाई देता है|

पराध्वनि के अनुप्रयोग

इसका उपयोग उद्योगों में धातु के इलाकों में दरारों या अन्य दोषों का पता लगाने के लिए (बिना उन्हें नुकसान पहुँचाए) किया जाता है|

यह उद्योगों में वस्तुओं के उन भागों को साफ़ करने में उपयोग की जाती है, जिनका पहुंचना कठिन होता है| जैसे- सर्पिलाकार नली, विषम आकार की मशीन आदि|

इसका उपयोग मानव शरीर के आंतरिक अंगों, जैसे- यकृत, पित्ताशय, गर्भाशय, गुर्दे और हृदय की जाँच करने में किया जाता है|

इन तरंगों का उपयोग हृदय की गतिविधियों को दिखाने तथा इसका प्रतिबिंब बनाने में किया जाता है| इसे इकोकार्डियोग्राफी कहते हैं|

• वह तकनीक जो शरीर के आंतरिक अंगों का प्रतिबिंब पराध्वनि तरंगों की प्रतिध्वनियों द्वारा बनाती है| यह अल्ट्रासोनोग्राफी कहलाता है| 

इसका उपयोग गुर्दे की छोटी पथरी को बारीक कणों में तोड़ने के लिए किया जाता है|

सोनार

सोनार शब्द (Sound Navigation and Ranging) से बना है| 

कार्यविधि

सोनार एक युक्ति जो पानी के नीचे पिंडों की दूरी, दिशा तथा चाल नापने के लिए प्रयोग की जाती है|
सोनार में एक प्रेषित तथा एक संसूचक होती है जो जहाज की तली में लगा होता है| 
प्रेषित्र पराध्वनि तरंगें उत्पन्न करके प्रेषित करता है|


• ये तरंगें पानी में चलती है, समुद्र के तल में पिंडों से टकराकर परावर्तित होकर संसूचक द्वारा ग्रहण कर ली जाती है और विद्युत संकेतों में बदल ली जाती है|

• वह युक्ति पराध्वनि तरंगों द्वारा जहाज से समुद्र तल तक जाने तथा वापस जहाज तक आने में लिए गए समय को नाप लेती है|

• इस समय का आधा समय पराध्वनि तरंगों द्वारा जहाज से समुद्र तल तक जाने में लिया जाता है|

• यदि पराध्वनि के प्रेषण और संसूचन का समय अंतराल t है| समुद्र तल में ध्वनि की चाल v है तब तरंग द्वारा तय की गई दूरी = 2d
2d =  vπt, यह विधि प्रतिध्वनिक परास कहलाती है|

• सोनार का उपयोग समुद्र तल की गहराई नापने, जल के नीचे चट्टानों, घाटियों, पनडुब्बी, हिम शैल तथा डूबे हुए जहाज का पता लगाने में किया जाता है|

चमगादड़ द्वारा शिकार के पकड़ने के लिए पराध्वनि का प्रयोग

• चमगादड़ अंधेरी रात में उच्च तारत्व की पराध्वनि तरंगें उत्सर्जित करते हुए उड़ती है जो अवशेषों या कीटन से परावर्तित होकर चमगादड़ के कानों तक पहुँचते हैं| परावर्तित स्पंदों की प्रकृति से चमगादड़ को पता चलता है कि अवरोध या कीट कहाँ है और किस प्रकृति के हैं|

मानव कर्ण की संरचना

• कान संवेदी अंग है जिनकी सहायता से हम ध्वनि को सुन पाते हैं| मानव कर्ण तीन हिस्सों से बना है- बाह्य कर्ण, मध्य कर्ण, अंतःकर्ण|

बाह्य कर्ण – बाह्य कान को कर्ण पल्लव कहते हैं, जो आस-पास से ध्वनि इकट्ठा करता है| यह ध्वनि श्रवण नलिका से गुजरती है| श्रवण नलिका के अंत पर एक पतली लचीली झिल्ली कर्ण पटह या कर्ण पटह झिल्ली होती है|

मध्य कर्ण- मध्य कर्ण में तीन हड्डियाँ- मुग्दरक, निहाई और वलथक एक दूसरे से जुड़ी होती हैं| मुग्दरक का स्वतंत्र हिस्सा कर्णपट्ट से तथा वलयक का अन्तकर्ण के अंडाकार छिद्र की झिल्ली से जुड़ा होता है|

अंतःकर्ण- अंतःकर्ण में एक मुड़ी हुई नलिका कर्णावर्त होती है जो अंडाकार छिद्र से जुड़ी होती है| कर्णावर्त में एक द्रव भरा होता है जिसमें तंत्रिका कोशिका होती है| कर्णावर्त का दूसरा हिस्सा श्रवण तंत्रिका से जुड़ा होता है जो मस्तिष्क को जाती है| 


कार्यविधि

जब ध्वनि तरंग का संपीडन कर्णपटह पर टकराता है तब कर्णपटह के बाहर का दबाव बढ़ जाता है और कर्णपट्ट को अंदर की ओर दबाता है जबकि विरलन के समय कर्णपट्ट बाहर की तरफ गति करता है| इस प्रकार कर्णपटह अंदर-बाहर कथन करना शुरू कर देता है| 

• ये कम्पन तीन हड्डियों द्वारा कई गुणा बढ़ा दिए जाते हैं| मध्य कर्ण ध्वनि तरंगों से प्राप्त इन प्रवर्धित दाब परिवर्तनों को अंतःकर्ण को भेज देता है| 

अंतःकर्ण में ये दाब परिवर्तन कर्णावर्त के द्वारा विद्युत संकेतों में बदल दिए जाते हैं|

ये विद्युत संकेत श्रवण तंत्रिका के द्वारा मस्तिष्क को भेज दिए जाते हैं और मस्तिष्क इनकी ध्वनि रूप में व्याख्या करता है|

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