Notes of Science in Hindi for Class 9th: Ch 14 प्राकृतिक संपदा विज्ञान 

विषय-सूची

  • जैवमंडल के घटक
  • सजीव- जैविक घटक
  • निर्जीव- अजैव घटक
  • प्रदूषण
  • वायु प्रदूषण
  • जल प्रदूषण
  • भूमि प्रदूषण
  • जैव रासायनिक चक्रण
  • जलीय चक्र
  • नाइट्रोजन चक्र
  • कार्बन चक्र
  • ग्रीन हाउस प्रभाव
  • ऑक्सीजन चक्र
  • ओजोन परत

पृथ्वी पर संपदा

• पृथ्वी की सबसे बाहरी परत को स्थलमंडल कहते हैं, पृथ्वी की सतह से लगभग 75% भाग पर पानी है| यह भूमिगत रूप में भी पाया जाता है|

• यह समुद्र, नदियों, झीलों, तालाबों आदि के रूप में है| इन सब को मिलाकर जलमंडल कहते हैं| वायु जो पृथ्वी पर एक कम्बल की तरह कार्य करता है, वायुमंडल कहलाता है|


जैवमंडल

• जीवन का भरण-पोषण करने वाला पृथ्वी का क्षेत्र, जहाँ वायुमंडल, जलमंडल और स्थलमंडल एक-दूसरे से मिलकर जीवन को सम्भव बनाते हैं, उसे जैवमंडल कहते हैं| 

यह दो प्रकार के घटकों से मिलकर बनता है:
(i) जैविक घटक- पौधे एवं जंतु
(ii) अजैविक घटक- हवा, पानी और मिट्टी|

जीवन की श्वास- वायु

• वायु कई गैसों जैसे- नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड और जलवाष्प का मिश्रण है| वायु में नाइट्रोजन 78% और ऑक्सीजन 21% होते हैं| कार्बन डाइऑक्साइड बहुत कम मात्रा में वायु में होती है| 

• हीलियम, नियान, ऑर्गन और क्रिप्टान जैसे उत्कृष्ट गैसें अल्प मात्रा में होती है|

वायुमंडल की भूमिका

• वायु ऊष्मा की कुचालक है- वायुमंडल दिन के समय और वर्ष भर पृथ्वी के औसत तापमान को लगभग नियत रखता है|

• यह दिन के समय तापमान में अचानक वृद्धि को रोकता है और रात के समय ऊष्मा को बाहरी अन्तरिक्ष में जाने की दर को कम करता है जिससे रात अत्यधिक ठंडी नहीं हो पाती|

वायु की गति- पवनें

• दिन के समय हवा की दिशा समुद्र से स्थल की ओर होती है क्योंकि स्थल के ऊपर की हवा जल्दी गर्म हो जाती है और ऊपर उठने लगती है|

• रात के समय हवा की दिशा स्थल से समुद्र की ओर होती है क्योंकि रात के समय स्थल और समुद्र ठंडे होने लगते हैं| 

• एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में हवा की गति पवनों का निर्माण करती है|

वर्षा क्या है?

• दिन के समय जब जलाशयों का पानी लगातार सूर्य किरणों के द्वारा गर्म होता है और जल वाष्पित होता रहता है| वायु जलवाष्प को ऊपर ले जाती है जहाँ यह फैलती और ठंडी होती है| 

• ठंडी होकर जलवाष्प जल की बूँदों के रूप में संघनित हो जाती है| जब बूँदें आकार में बढ़ जाती है तो नीचे गिरने लगती है| इसे वर्षा कहते हैं| 

वायु प्रदूषण

• वायु में स्थित हानिकारक पदार्थों की वृद्धि, जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर के ऑक्साइड, नाइट्रोजन, फ्लोराइड, सीसा, धूल के कण वायु प्रदूषण कहलाता है| 

• इससे मनुष्यों में श्वसन और गुर्दे की बीमारी, उच्च रक्तचाप, आँखों में जलन, कैंसर तथा पौधों में कम वृद्धि, क्लोरोफिल की गिरावट, पत्तियों पर रंग के धब्बे जैसे प्रभाव दिखाई पड़ते हैं| 

अम्लीय वर्षा

• जीवाश्मी ईंधन जब जलते हैं यह ऑक्सीकृत होकर सल्फ़र-डाइऑक्साइड (SO2) और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड गैसें बनती हैं| ये गैसें वायुमंडल में मिल जाती हैं|

वर्षा के समय यह गैसें पानी में घुलकर सल्फ्यूरिक अम्ल और नाइट्रिक अम्ल बनाती हैं, जो वर्षा के साथ पृथ्वी पर आता है, जिसे अम्लीय वर्षा कहते हैं| 

जल की आवश्यकता

पृथ्वी की सतह के लगभग 75% भाग पर पानी विद्यमान है| यह भूमि के अंदर भूमिगत जल के रूप में भी पाया जाता है| जल के स्रोत हैं- सागर, नदियाँ, झरने एवं झील|

• यह शरीर का ताप नियंत्रित करता है|
• जल मानव शरीर की कोशिकाओं, कोशिका-संरचनाओं तथा ऊतकों में उपस्थित जीव द्रव्य का महत्वपूर्ण संघटक है|
• यह जंतु/पौधे हेतु आवास का कार्य करता है|
• सभी कोशिकीय प्रक्रियाएँ जल माध्यम में होती है|

जल प्रदूषण

जब पानी पीने योग्य नहीं होता तथा पानी को अन्य उपयोग में लाते हैं, उसे जल प्रदूषण कहते हैं| (जल में अवांछनीय अतिरिक्त पदार्थों का मिलना जल प्रदूषण है)

कारण

• जलाशयों में उद्योगों का कचरा डालना|
• जलाशयों के नजदीक कपड़े धोना|
• जलाशयों के अवांछित पदार्थ डालना|

भूमि प्रदूषण

मृदा

भूमि की ऊपरी सतह पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर है| इसमें कार्बनिक पदार्थ एवं वायु प्रचुर मात्रा में उपस्थित रहती है| यह सतह मृदा कहलाती है|

मिट्टी का निर्माण : निम्नलिखित कारक मृदा बनाती है

(i) सूर्य- दिन के समय सूर्य चट्टानों को गर्म करता है और वे फैलती हैं| रात को ठंडी होने से चट्टानें सिकुड़ती हैं और फैलने-सिकुड़ने से उनमें दरारें पड़ जाती हैं| इस प्रकार बड़ी-बड़ी चट्टानें छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाती हैं|

(ii) पानी- तेजी से बहता पानी भी चट्टानों को तोड़-फोड़कर टुकड़े-टुकड़े कर देता है, जो आपस में टकराकर छोटे-छोटे कणों में बदल जाते हैं, जिनसे मृदा बनती है|

(iii) वायु- तेज हवाएँ भी चट्टानों को काटती हैं और मृदा बनाने के लिए रेत को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है|

(iv) जीवित जीव- लाइकेन औए मॉस चट्टानों की सतह पर उगती है और उनको कमजोर बनाकर महीन कणों में बदल देते हैं|

मृदा-अपरदन

मृदा की ऊपरी सतह वायु, जल, बर्फ एवं अन्य भौगोलिक कारकों द्वारा लगातार हटाई जाती है| भूमि की ऊपरी सतह या मृदा का हटाना, मृदा का अपरदन कहलाता है|

कारण

• भूमि को पशुओं द्वारा अधिक मात्रा में चराना|
• तेज हवाओं तथा पानी की वजह से मिट्टी की ऊपरी सतह का हटना|
• पेड़ों की कमी होने के कारण भी मिट्टी की ऊपरी परत का हटना|

जैव रासायनिक चक्रण

• जीवमंडल के जैव और अजैव घटकों में लगातार अंतःक्रिया होती रहती है|

• पौधों को C, N, O, P, S आदि तत्व और इनके खनिज की आवश्यकता होती है| ये खनिज जल, भूमि या वायु से पौधों में प्रवेश करते हैं और दूसरे स्तरों से होते हुए अपने मुख्य स्रोत में स्थानांतरित होते रहते हैं| इस प्रक्रम को जैव रासायनिक चक्र कहते हैं|

• जलीय-चक्र- वह प्रक्रिया जिसके द्वारा जल, जलवाष्प बनता है और वर्षा के रूप में सतह पर गिरता है और फिर नदियों के द्वारा समुद्र में पहुँच जाता है, जलीय चक्र कहते हैं|

• महासगरों, समुद्रों, झीलों तथा जलाशयों का जल सूर्य की ऊष्मा के कारण वाष्पित होता रहता है| 

• पौधे मिट्टी से पानी को अवशोषित करते हैं और प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया के दौरान इस्तेमाल करते हैं|

• जंतुओं में श्वसन तथा जंतुओं के शरीर द्वारा वाष्पीकरण की क्रिया से जलवाष्प वातावरण में जाती है|

• जलाशयों से होने वाले जल का वाष्पीकरण तथा संघनन हमें वर्षा प्रदान करती है| 

• जल, जो वर्षा के रूप में जमीन पर गिरता है, तुरंत ही समुद्र में नहीं बह जाता है| इसमें से कुछ जमीन के अंदर चला जाता है और भूजल का भाग बन जाता है|

• पौधे भूजल का उपयोग बार-बार करते हैं और यह प्रक्रिया चलती रहती है|


जलीय-चक्र

नाइट्रोजन-चक्र- इस प्रक्रिया में वायुमंडल की नाइट्रोजन सरल अणुओं के रूप में मृदा और पानी में आ जाती है| ये सरल अणु जटिल अणुओं में बदल जाते हैं और जीवधारियों से फिर सरल अणुओं के रूप में वायुमंडल में वापस चले जाते हैं| इस पूरी प्रक्रिया को नाइट्रोजन-चक्र कहते हैं|

वायुमंडल का 78% भाग नाइट्रोजन गैस है|

प्रोटीन, न्यूक्लीक अम्ल, RNA, DNA, विटामिन का आवश्यक घटक नाइट्रोजन है|

पौधे और जंतु वायुमंडलीय नाइट्रोजन को आसानी से ग्रहण नहीं कर सकते हैं अतः इसका नाइट्रोजन के यौगिकों में बदलना आवश्यक है|

नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करने वाले बैक्टीरिया जैसे राइजोबियम, फलीदार पौधों के जड़ों में मूल ग्रथिका नामक विशेष संरचनाओं में पाए जाते हैं|

वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन को नाइट्रोजन यौगिकों में परिवर्तित करने का प्रक्रम नाइट्रोजन स्थिरीकरण कहलाता है|

बिजली चमकने के समय वायु में पैदा हुआ उच्च ताप तथा दाब नाइट्रोजन को नाइट्रोजन के ऑक्साइड में बदल देता है|

ये ऑक्साइड जल में घुलकर नाइट्रिक तथा नाइट्रस अम्ल बनाते हैं, जो वर्षा के पानी के साथ जमीन पर गिरते हैं|

पौधे नाइट्रेटस और नाइट्राइट्स को ग्रहण करते हैं तथा उन्हें अमीनो अम्ल में बदल देते हैं| जिनका उपयोग प्रोटीन बनाने में होता है|
नाइट्रोजन-चक्र

कार्बन-चक्र

कार्बन-चक्र वायुमंडल में कार्बन तत्व का संतुलन बनाए रखता है|

कार्बन पृथ्वी पर ज्यादा अवस्थाओं में पाया जाता है|

यौगिक के रूप में यह वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में, अलग-अलग प्रकार के खनिजों में कार्बोनेट और हाइड्रोजन कार्बोनेट के रूप में पाया जाता है|

प्रकाश संश्लेषण में पौधे कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करते हैं| 

उत्पादक स्तर (पौधों) से कार्बन उपभोक्ता स्तर (जंतुओं) तक स्थानांतरित होता है| इसका कुछ भाग श्वसन क्रिया द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में वायुमंडल में चला जाता है| 

जीव द्रव्य के अपघटन से कार्बन वायुमंडल में पहुँचता है| 
कार्बन-चक्र

ग्रीन हाउस प्रभाव

• वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, जलवाष्प आदि पृथ्वी से परावर्तित होने वाले अवरक्त किरणों को अवशोषित कर लेते हैं जिससे वायुमंडल का ताप बढ़ जाता है| इसे ही ग्रीन हाउस प्रभाव कहा जाता है|

कार्बन डाइऑक्साइड का प्रतिशत बढ़ने के कारण दुष्प्रभाव

ग्रीन हाउस प्रभाव बढ़ जाता है|
वैश्विक ऊष्मीकरण होता है|
पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि होती है|
चोटियों पर जमी बर्फ ग्रीन हाउस प्रभाव के कारण वर्ष भर पिघलती रहती है| 

ऑक्सीजन-चक्र

ऑक्सीजन का मुख्य स्रोत वायुमंडल है| यह वायुमंडल में लगभग 21% उपस्थित है| यह पानी में घुले हुए रूप में जलाशयों में उपस्थित है और जलीय जीवों की जीवित रहने में सहायता करती है|

वायुमंडल की ऑक्सीजन का उपयोग तीन प्रक्रियाओं में होता है जो श्वसन, दहन और नाइट्रोजन के ऑक्साइड का निर्माण है| 

ऑक्सीजन सब जीवधारियों के श्वसन के लिए अनिवार्य है|

प्रकाश संश्लेषण द्वारा ऑक्सीजन वायुमंडल में मुक्त होती है|


ओजोन परत

ओजोन ऑक्सीजन का एक अपररूप है जिसमें ऑक्सीजन के तीन परमाणु पाए जाते हैं| यह वायुमंडल में 16 किमी. से 60 किमी. की ऊँचाई पर उपस्थित है|

यह सूर्य से आने वाली पराबैंगनी विकिरण को अवशोषित कर लेते हैं| इस प्रकार पृथ्वी पर जीवों के लिए ओजोन परत एक सुरक्षात्मक आवरण के रूप में कार्य करती है|

यह पराबैंगनी विकिरण से हानिकारक विकार जैसे- मोतियाबिंद, त्वचा कैंसर एवं अन्य आनुवांशिक रोगों से बचाती है|

1985 के आस-पास वैज्ञानिकों से अंटार्कटिक भाग के पास ओजोन छिद्र की उपस्थिति ज्ञात की|

ओजोन परत ह्रास होने के कारण

ऐरोसॉल या क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन (CFC) की क्रिया के कारण|

सुपरसोनिक विमानों में ईंधन के दहन से उत्पन्न पदार्थ व नाभिकीय विस्फोट भी ओजोन परत के ह्रास होने के कारण हैं|

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