Notes for Chapter 2 भारत में राष्ट्रवाद (Bharat Me Rashtravaad) Class 10 History Hindi Medium
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भारत में राष्ट्रवाद Class 10 इतिहास नोट्स
- आधुनिक राष्ट्रवाद के साथ ही राष्ट्र-राज्यों का उदय हुआ था।
- भारत में आधुनिक राष्ट्रवाद का विकास कई अन्य उपनिवेशों की तरह उपनिवेश विरोधी आंदोलन से जुड़ा हुआ था?
पहला विश्व युद्ध, खिलाफत और असहयोग
प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) ने एक नयी राजनीतिक और आर्थिक स्थिति पैदा कर दी थी।
भारत को युद्ध के दौरान विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ा था।
- रक्षा खर्चे में वृद्धि।
- युद्ध के दौरान कीमतों में वृद्धि हुई।
- ग्रामीण क्षेत्रों में सिपाहियों को जबरन भर्ती किया गया।
1918-19 और 1920-21 के दौरान भारत के कई हिस्सों में फसल खराब हो गई।
युद्ध खत्म होने के बाद भी मुश्किलें कम नहीं हुईं।
सत्याग्रह का विचार
- सत्याग्रह भारत में औपनिवेशिक शासन से लड़ने का एक नया तरीका है।
यह अत्याचार और अन्याय के खिलाफ एक गैर-आक्रामक और शांतिपूर्ण जन आंदोलन है। - सत्याग्रह का अर्थ है सत्य को स्वीकार करने के लिए आग्रह करना।
- यह एक नैतिक चेतना है न कि निष्क्रिय प्रतिरोध।
- महात्मा गांधी जनवरी 1915 में भारत लौट आए।
- गांधीजी ने बिहार के चंपारण ज़िले में (1916), गुजरात के खेड़ा जिले में (1917) और अहमदाबाद में कपास मिल श्रमिकों (1918) के बीच सत्याग्रह आंदोलन किए।
रौलट एक्ट (1919)
इस अधिनियम से सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को कुचलने और राजनीतिक कैदियों को दो साल तक बिना मुकदमा चलाऐ जेल में बंद रखने का अधिकार मिल गया था।
जलियांवाला बाग हत्याकांड
- 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग के मैदान में भारी भीड़ एकत्रित हुई थी।
- जनरल डायर हथियारबंद सैनिकों के साथ वहाँ पहुँचा और बाहर निकलने के सारे रास्ते बंद कर दिए। इसके बाद डायर ने भीड़ पर गोलियाँ चलाने के आदेश दे दिया जिससे सैकड़ों लोग मारे गए।
- खबर फैलते ही उत्तर भारत में हड़तालें होने लगी, लोग पुलिस से मोर्चा लेने लगे, और सरकारी इमारतों पर हमला करने लगे।
- सरकार ने इसका जबाब क्रूरता के साथ दिया।
खिलाफत आंदोलन
- खिलाफत आंदोलन का नेतृत्व दो भाइयों शौकत अली और मुहम्मद अली ने किया था।
- खलीफा की तात्कालिक शक्तियों की रक्षा के लिए मार्च 1919 में बॉम्बे में खिलाफत समिति का गठन किया गया था।
- गांधीजी ने कांग्रेस को खिलाफत आंदोलन का समर्थन और स्वराज के लिए एक असहयोग अभियान शुरू करने के लिए राजी कर लिया।
- दिसंबर 1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में असहयोग कार्यक्रम पर स्वीकृति की मुहर लगा दी गई।
आंदोलन के भीतर अलग-अलग धाराएँ
असहयोग-खिलाफत आंदोलन जनवरी 1921 में शुरू हुआ।शहरों में आंदोलन
- आंदोलन की शुरुआत शहरी मध्यवर्ग की हिस्सेदारी के साथ हुई।
- विद्यार्थियों ने स्कूल -कॉलेज , शिक्षकों ने अपनी नौकरी तथा वकीलों ने मुकदमा लड़ने का वहिष्कार किया और आंदोलन में शामिल हो गए।
- प्रांतो में परिषद चुनावों का बहिष्कार किया गया।
- विदेशी सामानों का बहिष्कार किया गया।
- शराब की दुकानों के सामने प्रदर्शन किया गया।
ग्रामीण इलाकों में विद्रोह
किसानों और आदिवासियों का संघर्ष धीरे-धीरे हिंसक हो गया।अवध में किसान आंदोलन
- किसानों का नेतृत्व बाबा रामचंद्र ने जमींदारों और तालुकेदारों के खिलाफ किया था।
- अवध किसान सभा की स्थापना 1920 में जवाहरलाल नेहरू, बाबा रामचंद्र और कुछ अन्य लोगों के नेतृत्व में की गई थी।
- आंध्र प्रदेश के गुडेम पहाड़िओ में अल्लूरी सीताराम राजू के नेतृत्व में उग्र गुरिल्ला आंदोलन फैल गया।
- विद्रोहियों ने पुलिस थानों पर हमलें कियें।
- राजू को 1924 में पकड़ लिया गया और फांसी दे दी गई।
- बागान श्रमिकों के लिए स्वराज का अर्थ था चारदीवारियों से बाहर स्वतंत्र रूप से आवाजाही।
- उन्होंने 1859 के अंतर्देशीय आप्रवासन अधिनियम का विरोध किया, जिसमें उन्हें बिना अनुमति के बागवानों से बाहर जाने से रोका जाता था।
- प्रत्येक समूह ने स्वराज शब्द की व्याख्या अपने तरीके से की।
सविनय अवज्ञा की ओर
- महात्मा गांधी ने फरवरी 1922 में असहयोग आंदोलन वापस लेने का फैसला किया।
- सी. आर. दास और मोतीलाल नेहरू ने परिषद राजनीति में वापस लौटने के लिए कांग्रेस के भीतर ही स्वराज पार्टी का गठन कर डाला।
- जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस जैसे युवा नेताओं ने ज्यादा उग्र जन जनांदोलन और पूर्ण स्वतंत्रता के लिए दबाव डाला।
1920 के बाद भारतीय राजनीति को दिशा निर्धारित वाले कारण
- विश्वव्यापी आर्थिक मंदी
→ 1930 के बाद कृषि उत्पादों की माँग गिरी और निर्यात कम होने लगा जिससे कृषि उत्पादों की कीमतों में भारी गिरावट आयी। - साइमन कमीशन
इस आयोग का गठन ब्रिटेन की टोरी सरकार द्वारा राष्ट्रवादियों की मांगों पर विचार करने और भारत के संवैधानिक व्यवस्था का अध्ययन करने और सुझाव देने के लिए किया था।
→ यह आयोग 1928 में भारत पहुंचा।
→ कांग्रेस ने इस आयोग का विरोध किया। - जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में दिसंबर 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में "पूर्ण स्वराज" की माँग को औपचारिक रूप दे दिया गया।
नमक यात्रा और सविनय अवज्ञा आंदोलन
गांधीजी ने नमक को ऐसे माध्यम के रूप में चुना जो राष्ट्र को एकजुट कर सके क्योंकि नमक समाज के सभी वर्गों द्वारा प्रयोग में लाया जाता है।नमक यात्रा
- नमक या दांडी यात्रा 12 मार्च 1930 को शुरू किया गया।
→ गांधीजी 6 अप्रैल 1930 को गुजरात के एक गाँव दांडी पहुँचे और वहाँ समुंद्र का पानी उबालकर नमक बनाना शुरू कर दिया। इस तरह उसने नमक का कानून तोड़ा।
→ इस प्रकार उसने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया। - यह असहयोग आंदोलन से अलग था क्योंकि लोगों को न केवल अंग्रेजों का सहयोग न करने के लिए बल्कि औपनिवेशिक कानूनों उल्लंघन करने के लिए आह्वान किया गया।
- विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, करों का भुगतान न करना और वन कानूनों को तोड़ना इसकी प्रमुख विशेषताएं थीं।
- ब्रिटिश सरकार आंदोलन को कुचलने के लिए क्रूर दमन की नीति अपनाया।
- ब्रिटिश सरकार ने गांधीजी और नेहरू सहित सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया।
- गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया।
- गांधीजी ने 5 मार्च 1931 को वायसराय लॉर्ड इरविन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।
- गांधीजी दिसंबर 1931 में दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने लंदन गए लेकिन वार्ता विफल होने के कारण उन्हें निराश होकर लौटना पड़ा।
- गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन दोबारा शुरू किया लेकिन 1934 तक आते -आते इसकी गति मन्द पड़ने लगी।
लोगों ने आंदोलन को कैसे लिया
संपन्न किसान- अंग्रेजों ने जब राजस्व कर कम से इनकार कर दिया तब अमीर किसान समुदाय भी आंदोलन में शामिल हो गए।
- राजस्व दर घटाए बिना आंदोलन वापस ले लिया गया तो इन्हें निराशा हुई। जब आंदोलन दुबारा शुरू हुआ तो बहुतों ने शामिल होने से इनकार कर दिया।
- गरीब किसान चाहते थे उन्हें जमीन का भाड़ा माफ कर दिया जाए।
- अमीर किसानों और जमींदारों की नाराजगी के भय से कांग्रेस “भाड़ा विरोधी” आन्दोलनों का समर्थन करने के लिए तैयार नहीं थी।
- प्रथम विश्व युद्ध के बाद इनके मुनाफें भारी कमी आयी ये विदेशी वस्तुओं के आयात के खिलाफ सुरक्षा चाहते थे।
- उग्रवादी गतिविधियों का प्रसार, लंबे समय तक व्यापारिक व्यवधानों की चिंता और युवा कांग्रेस के बीच समाजवाद के बढ़ते प्रभाव ने इन्हें आंदोलन में शामिल नहीं होने के लिए मजबूर किया।
- महिलाएँ भी जुलूस का हिस्सा बनी ,नमक बनाई, और शराब की दुकानों के सामने धरने में शामिल हुई।
- कांग्रेस महिलाओं को संगठन के भीतर किसी भी प्रकार के महत्वपूर्ण पद देने के पक्ष में नहीं थी।
सविनय अवज्ञा की सीमाएँ
- दलितों या अछूतों ने आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग नहीं लिया उन्होंने सीटों के आरक्षण और अलग निर्वाचन क्षेत्रों की मांग की।
- दलितों के नेता डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने 1930 में एक संस्था बनाई जिसका नाम दमित वर्ग एसोसिएशन रखा।
- गांधीजी का डॉ.बी.आर.अंबेडकर से काफी विवाद हुआ।
- गांधीजी और डॉ. बी.आर.अंबेडकर के बीच 1932 में पूना पैक्ट पर सहमति बनी। प्रांतीय और केंद्रीय परिषदों में आरक्षित सीटें दे दीं गई लेकिन मतदान सामान्य निर्वाचन क्षेत्रों में ही हुआ।
- मुस्लिम लीग के नेता एम ए जिन्ना केंद्रीय सभा में मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटें चाहते थे।
- मुसलमानों के एक बड़े हिस्से ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया।
सामूहिक अपनेपन का भाव
सामूहिक अपनेपन की भावना आंशिक रूप से संयुक्त संघर्षो के चलते पैदा हुई।इतिहास और साहित्य, लोककथाएँ व गीत , चित्र और प्रतीक सभी ने राष्ट्रवाद को साकार करने में अपना योगदान दिया।
1921 तक गांधीजी ने स्वराज का झंडा तैयार कर लिया था। यह एक तिरंगा (लाल, हरा और सफेद) था और जिसके मध्य में गांधीवादी चरखा था।