हिमालय की बेटियाँ वसंत भाग - 1 (Summary of Himalaya ki Betiyan Vasant)

यह पाठ लेखक नागार्जुन ने लिखा है जिसमें उन्होंने हिमालय और उससे निकलने वाली नदियों के बारे में बताया है| हिमालय से बहने वाली गंगा, यमुना, सतलुज आदि नदियाँ दूर से लेखक को शांत, गंभीर दिखाई देती थीं| लेखक के मन में इनके प्रति श्रद्धा के भाव थे। जब लेखक ने जब इन नदियों को हिमालय के कंधे पर चढ़कर देखा तो उन्हें लगा की ये तो काफी पतली हैं जो समतल मैदानों में विशाल दिखाई देती थीं। 

लेखक को हिमालय की इन बेटियों की बाल-लीलाओं को देखकर आश्चर्य होता है। हिमालय की इन बेटियों का न जाने कौन-सा लक्ष्य है, जो इस प्रकार से बेचैन होकर बह रही हैं। नदियाँ बर्फ की पहाड़ियों में, घाटियों में और चोटियों पर लीलाएँ करती हैं। लेखक को लगता है देवदार, चीड़, सरसों, चिनार आदि के जंगलों में पहुँचकर शायद इन नदियों को अपनी बीती बातें याद आ जाती होंगी। 


सिंधु और ब्रह्मपुत्र दो महानदियाँ हिमालय से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं। हिमालय को ससुर और समुद्र को उसका दामाद कहने में भी लेखक को कोई झिझक नहीं होती। कालिदास के यक्ष ने अपने मेघदूत से कहा था कि बेतवा नदी को प्रेम का विनिमय देते जाना जिससे पता चलता है कि कालिदास जैसे महान कवि को भी नदियों का सजीव रूप पसंद था। 

काका कालेलकर ने भी नदियों को लोकमाता कहा है। लेकिन लेखक इन्हें माता से पहले बेटियों के रूप में देखते हैं। कई कवियों ने इन्हें बहनों के रूप में भी देखा है| लेखक तिब्बत में सतलुज के किनारे पैर लटकाकर बैठने से वे इससे काफी प्रभावित हो गए।

कठिन शब्दों के अर्थ -

• संभ्रांत - सभ्य 
• कौतूहल – जिज्ञासा
• विस्मय - आश्चर्य
• बाललीला - बचपन के खेल 
• प्रेयसी - प्रेमिका बे
• अधित्यकाएँ - पहाड़ के ऊपर की समतल भूमि 
• उपत्यकाएँ - चोटियाँ 
• लीला निकेतन - लीला करने का घर 
• यक्ष – कालिदास के मेघदूत का मुख्य पात्र 
• प्रतिदान - वापस
• सचेतन - सजीव प्रे
• मुदित - खुश 
• खुमारी - नशा
• बलिहारी -कुर्बानी 
• नटी - कोई भूमिका निभाने वाली स्त्री
• अनुपम - जिसकी उपमा न हो


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