झाँसी की रानी सार वसंत भाग - 1 (Summary of Jhansi ki Rani Vasant)
इस कविता में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की वीरता का बखान किया गया है| यह कविता सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की परिस्थितियों की झलक देता है|
अंग्रेज़ों के बढ़ते अत्याचार के खिलाफ और स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए भारत के राजाओं में हलचल हुई जिससे सिंहासन हिल गए। राजवंश अंग्रेजों पर गुस्सा हो गए। गुलामी के जंजीर में जकड़े जर्जर बूढ़े भारत में फिर से नया जोश का संचार हुआ। सभी राजा अपनी खोई हुई आजादी का मूल्य समझने लगे थे इसलिए उन्होंने फिरंगी यानी अंग्रेज़ो को भारत से भगाने का निश्चय कर लिया था। भारत की पुरानी तलवार सन् 1857 में चमक उठी। झाँसी की रानी उस युद्ध में वीर पुरुषों की भाँति लड़ी। उसकी यह कहानी हमने बुंदेलखण्ड के हरबोलों से सुनी थीं।
लक्ष्मीबाई कानपुर के नाना साहब की मुँहबोली बहन थी जिनका बचपन का नाम छबीली था। वह अपने पिता की अकेली संतान थीं। उनका बचपन नाना साहब के साथ पढ़ते और खेलते बिता था। वह अपने उम्र की लड़कियों को सहेली नहीं बनाकर बरछी, ढाल, कृपाण को वह अपनी सहेली मानती थी। उन्हें शिवाजी जैसे वीरों की कहानियाँ जबानी याद थीं। कवयित्री कहती हैं कि हमने बुंदेले हरबोलों के मुँह से सुना है कि रानी लक्ष्मीबाई वीर पुरुषों की भाँति बहादुरी से लड़ी थीं।
लक्ष्मीबाई को देखकर ऐसा लगता था कि मानो वह वीरता की अवतार लक्ष्मी या दुर्गा हैं| उनकी तलवारों की चोटें देखकर मराठे प्रसन्न होते थे। नकली युद्ध करना, चक्रव्यूह बनाना, खूब शिकार करना, शत्रु की सेना को घेरना, शत्रु के किले तोड़ना उनके प्रिय खेल थे। महाराष्ट्र की कुलदेवी भवानी लक्ष्मीबाई की आराध्य थीं।
वीरांगना छबीली का विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव के साथ हुआ तब वह रानी लक्ष्मीबाई बनकर झाँसी आ गई। राजमहल में बधाई के बाजे बजने लगे। उनके विवाह के अवसर पर झाँसी के राजमहल में बधाइयाँ बजीं और खुशियाँ छा गईं। मानो, वह झाँसी में वीर बुंदेलों की कीर्ति बनकर आ गई हो। ऐसा लगा जैसे चित्रा को वीर अर्जुन मिल गया या शिव से भवानी मिली हो।
रानी के विवाह के बाद झाँसी का सौभाग्य जाग गया। महलों में प्रसन्नता का प्रकाश हो गया, किन्तु समय के साथ दुर्भाग्य के बादल भी घिर आए। दुर्भाग्य को तीर चलाने वाले हाथों का चूड़ियाँ पहनना अच्छा नहीं लगा और हाय रानी लक्ष्मीबाई विधवा हो गई। भाग्य को भी उन पर दया नहीं आई। राजा गंगाधर राव नि:संतान मर गए। रानी शोक में डूब गई।
लक्ष्मीबाई विवाह के बाद जब झाँसी में आई तो वहाँ का सौभाग्य जाग गया| महलों में उजाला छा गया। किंतु हथियार उठाने वाले हाथों को चूड़ियाँ कब शोभा देती हैं? दुर्भाग्य को तीर चलाने वाले हाथों का चूड़ियाँ पहनना अच्छा नहीं लगा| राजा की मृत्यु हो गई और रानी विधवा हो गई। भाग्य को भी उन पर दया नहीं आई। राजा गंगाधर राव नि:संतान मर गए। रानी शोक में डूब गई।
झाँसी का दीपक बुझ जाने पर अर्थात राजा के मर जाने पर अंग्रेज गवर्नर लॉर्ड डलहौजी को बड़ी प्रसन्नता हुई, क्योंकि उसे झाँसी का राज्य हड़पने का अच्छा अवसर मिल गया। उसने तुरन्त अपनी फौजें भेज झाँसी के किले पर अपना झंडा फहरा दिया। इस प्रकार उस वारिस रहित झाँसी के राज्य का वारिस ब्रिटिश राज्य बन गया।रानी ने आँसू भरकर देखा कि झाँसी उजड़ रही थी।
जब अंग्रेजों ने झाँसी को अपने राज्य में मिलाया, तब रानी ने उनसे अनेक तरह से विनम्र प्रार्थना की परन्तु सब बेकार रहा। अंग्रेज़ जब भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के रूप में आए तो वे साधारण व्यापारी थे। उस समय वे यहाँ के राजाओं की दया चाहते थे। डलहौजी ने धीरे-धीरे अंग्रेजी शासन का विस्तार किया और धीरे-धीरे परिस्थितियाँ उनके पक्ष में आ गईं| जिन राजाओं और नवाबों से वे तब दया माँगते थे, उन्हीं को अंग्रेजों ने पैरों से ठुकराया है। अब अंग्रेज़ी राज्य की दासी थी और दासी के समान रहने वाली अंग्रेज़ी शासन की विक्टोरिया अब हमारे देश की महारानी बन गई थी यानी अंग्रेजी साम्राज्य पूरे भारत में फ़ैल गया।
अंग्रेजों ने दिल्ली छीन ली और उस पर अपना अधिकार कर लिया। लखनऊ को भी उन्होंने जीत लिया। बिठूर के पेशवा बाजीराव को बंदी बना लिया गया तथा नागपुर पर भी घातक हमला हुआ। इसी प्रकार उदयपुर, तंजौर, सतारा, कर्नाटक आदि भी अंग्रेजों के सामने न ठहर सके। सिंध, पंजाब, म्यांमार (बर्मा) आदि का भी पतन हो गया। यही हालत बंगाल और मद्रास (चेन्नई) की भी हुई।
जिन राजाओं के राजपाट छिने उनकी रानियाँ रनिवासों में रो रही थीं और जिन नवाबों की रियासत छिनी उनकी बेगमें भी बहुत दुखी थीं। उनके बहुमूल्य कपड़े और गहने कलकत्ता के बाजार में बिक रहे थे। अंग्रेजी अखबार नीलामी की खबरें सबके बीच पहुँचा रहे थे। नागपुर के जेवरों और लखनऊ के प्रसिद्ध नौलखे हार बाजारों में बिक रहे थे। वे गहने जो औरतों तथा रानियों की शोभा थे, पर्दे की इज्जत थे, दूसरों के हाथों बिक रहे थे।
हम अन्य प्रदेशों की बातें छोड़कर झाँसी के मैदानों का दृश्य देखते हैं, जहाँ लक्ष्मीबाई मर्दो में मर्द बनी खड़ी है अर्थात् मर्दो से बढ़कर वीर योद्धा के रूप में लड़ रही थीं। अंग्रेजों की ओर से लेफ्टिनेंट वॉकर ने अपने जवानों के साथ झाँसी पर हमला किया। रानी ने भी उसका विरोध करने के लिए तलवार खींच ली अर्थात युद्ध की घोषणा कर दी थी। दोनों में भीषण युद्ध हुआ। धूल से आकाश ढक गया। अंग्रेज सेनापति घायल होकर भाग गया। उसे रानी की वीरता देखकर बहुत आश्चर्य हुआ।
रानी झाँसी लगातार सौ मील की यात्रा करके कालपी आ गई। इतना सफ़र करने के कारण उनका घोड़ा थककर धरती पर गिर पड़ा और तुरन्त मर गया। वहाँ यमुना के किनारे फिर अंग्रेज़ रानी से हार गए। कालपी जीतकर रानी फिर आगे बढ़ी और उसने ग्वालियर पर अधिकार कर लिया। ग्वालियर का राजा सिंधिया अंग्रेज़ों का मित्र था। उसे रानी से पराजित होकर राजधानी छोड़नी पड़ी।
रानी की जीत हुई पर फिर से अंग्रेजों की सेना रानी को घेरती हुई आ पहुँची। इस बार सामने से आ रही टुकड़ी का नेतृत्व जनरल स्मिथ कर रहा था। उधर रानी के साथ उसकी दो सहेलियाँ काना और मंदरा भी आई थीं और उन्होंने युद्ध में बहुतसे शत्रुओं को मारा| परंतु तभी पीछे से यूरोज ने आकर आक्रमण कर दिया। इस प्रकार रानी दोनों ओर से घिर गई|
लक्ष्मीबाई कानपुर के नाना साहब की मुँहबोली बहन थी जिनका बचपन का नाम छबीली था। वह अपने पिता की अकेली संतान थीं। उनका बचपन नाना साहब के साथ पढ़ते और खेलते बिता था। वह अपने उम्र की लड़कियों को सहेली नहीं बनाकर बरछी, ढाल, कृपाण को वह अपनी सहेली मानती थी। उन्हें शिवाजी जैसे वीरों की कहानियाँ जबानी याद थीं। कवयित्री कहती हैं कि हमने बुंदेले हरबोलों के मुँह से सुना है कि रानी लक्ष्मीबाई वीर पुरुषों की भाँति बहादुरी से लड़ी थीं।
लक्ष्मीबाई को देखकर ऐसा लगता था कि मानो वह वीरता की अवतार लक्ष्मी या दुर्गा हैं| उनकी तलवारों की चोटें देखकर मराठे प्रसन्न होते थे। नकली युद्ध करना, चक्रव्यूह बनाना, खूब शिकार करना, शत्रु की सेना को घेरना, शत्रु के किले तोड़ना उनके प्रिय खेल थे। महाराष्ट्र की कुलदेवी भवानी लक्ष्मीबाई की आराध्य थीं।
वीरांगना छबीली का विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव के साथ हुआ तब वह रानी लक्ष्मीबाई बनकर झाँसी आ गई। राजमहल में बधाई के बाजे बजने लगे। उनके विवाह के अवसर पर झाँसी के राजमहल में बधाइयाँ बजीं और खुशियाँ छा गईं। मानो, वह झाँसी में वीर बुंदेलों की कीर्ति बनकर आ गई हो। ऐसा लगा जैसे चित्रा को वीर अर्जुन मिल गया या शिव से भवानी मिली हो।
रानी के विवाह के बाद झाँसी का सौभाग्य जाग गया। महलों में प्रसन्नता का प्रकाश हो गया, किन्तु समय के साथ दुर्भाग्य के बादल भी घिर आए। दुर्भाग्य को तीर चलाने वाले हाथों का चूड़ियाँ पहनना अच्छा नहीं लगा और हाय रानी लक्ष्मीबाई विधवा हो गई। भाग्य को भी उन पर दया नहीं आई। राजा गंगाधर राव नि:संतान मर गए। रानी शोक में डूब गई।
लक्ष्मीबाई विवाह के बाद जब झाँसी में आई तो वहाँ का सौभाग्य जाग गया| महलों में उजाला छा गया। किंतु हथियार उठाने वाले हाथों को चूड़ियाँ कब शोभा देती हैं? दुर्भाग्य को तीर चलाने वाले हाथों का चूड़ियाँ पहनना अच्छा नहीं लगा| राजा की मृत्यु हो गई और रानी विधवा हो गई। भाग्य को भी उन पर दया नहीं आई। राजा गंगाधर राव नि:संतान मर गए। रानी शोक में डूब गई।
झाँसी का दीपक बुझ जाने पर अर्थात राजा के मर जाने पर अंग्रेज गवर्नर लॉर्ड डलहौजी को बड़ी प्रसन्नता हुई, क्योंकि उसे झाँसी का राज्य हड़पने का अच्छा अवसर मिल गया। उसने तुरन्त अपनी फौजें भेज झाँसी के किले पर अपना झंडा फहरा दिया। इस प्रकार उस वारिस रहित झाँसी के राज्य का वारिस ब्रिटिश राज्य बन गया।रानी ने आँसू भरकर देखा कि झाँसी उजड़ रही थी।
जब अंग्रेजों ने झाँसी को अपने राज्य में मिलाया, तब रानी ने उनसे अनेक तरह से विनम्र प्रार्थना की परन्तु सब बेकार रहा। अंग्रेज़ जब भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के रूप में आए तो वे साधारण व्यापारी थे। उस समय वे यहाँ के राजाओं की दया चाहते थे। डलहौजी ने धीरे-धीरे अंग्रेजी शासन का विस्तार किया और धीरे-धीरे परिस्थितियाँ उनके पक्ष में आ गईं| जिन राजाओं और नवाबों से वे तब दया माँगते थे, उन्हीं को अंग्रेजों ने पैरों से ठुकराया है। अब अंग्रेज़ी राज्य की दासी थी और दासी के समान रहने वाली अंग्रेज़ी शासन की विक्टोरिया अब हमारे देश की महारानी बन गई थी यानी अंग्रेजी साम्राज्य पूरे भारत में फ़ैल गया।
अंग्रेजों ने दिल्ली छीन ली और उस पर अपना अधिकार कर लिया। लखनऊ को भी उन्होंने जीत लिया। बिठूर के पेशवा बाजीराव को बंदी बना लिया गया तथा नागपुर पर भी घातक हमला हुआ। इसी प्रकार उदयपुर, तंजौर, सतारा, कर्नाटक आदि भी अंग्रेजों के सामने न ठहर सके। सिंध, पंजाब, म्यांमार (बर्मा) आदि का भी पतन हो गया। यही हालत बंगाल और मद्रास (चेन्नई) की भी हुई।
जिन राजाओं के राजपाट छिने उनकी रानियाँ रनिवासों में रो रही थीं और जिन नवाबों की रियासत छिनी उनकी बेगमें भी बहुत दुखी थीं। उनके बहुमूल्य कपड़े और गहने कलकत्ता के बाजार में बिक रहे थे। अंग्रेजी अखबार नीलामी की खबरें सबके बीच पहुँचा रहे थे। नागपुर के जेवरों और लखनऊ के प्रसिद्ध नौलखे हार बाजारों में बिक रहे थे। वे गहने जो औरतों तथा रानियों की शोभा थे, पर्दे की इज्जत थे, दूसरों के हाथों बिक रहे थे।
जब झाँसी पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया तो झाँसी को मुक्त कराने के लिए प्रयास होने लगे। जो कुटिया में रहते थे वे बहुत दुखी थे और महलों में रहने वाले भी अपमानित महसूस कर रहे थे। झाँसी के वीर सैनिकों के मन में अपने वीर पूर्वजों की वीरता का अभिमान भी था। वे अंग्रेजों से बदला लेने के लिए तैयार थे। नाना धुंधूपंत और पेशवा अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध करने के लिए आवश्यक सामान जुटा रहे थे। उनकी बहन छबीली यानी रानी लक्ष्मीबाई ने भी राज्य की स्त्रियों में देवी दुर्गा के रणचंडी रूप को जागृत कर रही थी अर्थात् युद्ध का प्रशिक्षण देकर अपनी सेना में शामिल कर रही थी। इस प्रकार सभी ने स्वतंत्रता रूपी यज्ञ में सोई हुई ज्योति को जगाने का निश्चय कर लिया था।
अंग्रेजों से अपनी आजादी छीन लेने की बात महलों में आग की तरह फैल रहीं थीं तो साथ ही झोपड़ी यानी गरीब वर्ग में भी अंग्रेजों के प्रति गुस्सा था। आजादी प्राप्त करने का यह जोश, जुनून उनके हृदय से निकल रहा था। झाँसी और दिल्ली जाग चुकी थी तो लखनऊ में भी लोग अंग्रेजी सेना के विरुद्ध तैयार खड़े थे। मेरठ, पटना, कानपुर में आजादी प्राप्त करने की बात सबके दिलों में थी। जबलपुर और कोल्हापुर के लोगों में यह बात भरनी थी यानी उनको भी प्रेरित करना था।
जब स्वतंत्रता रूपी महायज्ञ आरंभ हुआ तो अनेक वीर योद्धाओं ने अपना बलिदान दिया। इनमें नाना धुंधूपंत, ताँतिया, अजीमुल्ला-अहमद शाह मौलवी, कुर कुँवर सिंह जैसे वीर सैनिक थे। आजादी के इस महायज्ञ में कई वीरों को अपनी कुर्बानी देनी पड़ी। भारत की स्वतंत्रता के इतिहास रूपी आकाश में इनका नाम सूरज-चाँद की तरह हमेशा अमर रहेगा। उनकी इस कुर्बानी, त्याग और बलिदान को अंग्रेज जुर्म अर्थात् अपराध कहते थे।
हम अन्य प्रदेशों की बातें छोड़कर झाँसी के मैदानों का दृश्य देखते हैं, जहाँ लक्ष्मीबाई मर्दो में मर्द बनी खड़ी है अर्थात् मर्दो से बढ़कर वीर योद्धा के रूप में लड़ रही थीं। अंग्रेजों की ओर से लेफ्टिनेंट वॉकर ने अपने जवानों के साथ झाँसी पर हमला किया। रानी ने भी उसका विरोध करने के लिए तलवार खींच ली अर्थात युद्ध की घोषणा कर दी थी। दोनों में भीषण युद्ध हुआ। धूल से आकाश ढक गया। अंग्रेज सेनापति घायल होकर भाग गया। उसे रानी की वीरता देखकर बहुत आश्चर्य हुआ।
रानी झाँसी लगातार सौ मील की यात्रा करके कालपी आ गई। इतना सफ़र करने के कारण उनका घोड़ा थककर धरती पर गिर पड़ा और तुरन्त मर गया। वहाँ यमुना के किनारे फिर अंग्रेज़ रानी से हार गए। कालपी जीतकर रानी फिर आगे बढ़ी और उसने ग्वालियर पर अधिकार कर लिया। ग्वालियर का राजा सिंधिया अंग्रेज़ों का मित्र था। उसे रानी से पराजित होकर राजधानी छोड़नी पड़ी।
रानी की जीत हुई पर फिर से अंग्रेजों की सेना रानी को घेरती हुई आ पहुँची। इस बार सामने से आ रही टुकड़ी का नेतृत्व जनरल स्मिथ कर रहा था। उधर रानी के साथ उसकी दो सहेलियाँ काना और मंदरा भी आई थीं और उन्होंने युद्ध में बहुतसे शत्रुओं को मारा| परंतु तभी पीछे से यूरोज ने आकर आक्रमण कर दिया। इस प्रकार रानी दोनों ओर से घिर गई|
लक्ष्मीबाई दोनों ओर से घिर जाने पर भी मार-काट करती हुई आगे बढ़ गई और सेना को पार करती हुई निकल गई। तभी अचानक सामने एक बहुत बड़ा नाला आ गया। रानी के लिए यह एक भारी संकट था। रानी का नया घोड़ा उसे पार न करने के लिए अड़ गया। इतने में पीछा करते हुए अंग्रेज सैनिक आ गए और दोनों ओर से वार पर वार होते चले गए। शेरनी-सी रानी घायल होकर गिर गई और वीरगति को प्राप्त हुई।
रानी स्वर्ग सिधार गई अब उसकी अनोखी सवारी चिता ही थी। तेज-से-तेज मिल गया अर्थात रानी का आत्मरूपी तेज प्रभु के तेज से मिल गया। वह तेज की सच्ची अधिकारी भी थी। अभी वह केवल तेईस वर्ष की थी और तेईस वर्षों में उन्होंने जो वीरता दिखाई उससे लगता है वह मनुष्य नहीं कोई देवता थीं। वह स्वतंत्रता की देवी बनकर हमें जीवित करने आई थीं। वह हमें बलिदान का मार्ग दिखा गईं और जो सीख देनी थी दे गईं।
कवयित्री कहती है कि रानी लक्ष्मीबाई, तुम तो स्वर्ग को जाओ परन्तु स्वतंत्रता आंदोलन में आपके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। आपका यह बलिदान हमें कभी न नष्ट होने वाली आजादी के प्रति सचेत करता रहेगा। इतिहास चाहे कुछ भी न कहे और सच्चाई का गला घोंट दिया जाए| अंग्रेजों द्वारा विजय प्राप्त कर
भी ली जाए या वे झाँसी को गोलों से नष्ट कर दें पर भारतवासी यह बलिदान नहीं भूल सकेंगे। हे रानी! तू अपना स्मारक स्वयं होगी यानी आप तो अपने आप में ही अपनी याद का चिह्न थी।
• भृकुटी तानना - क्रोध करना
• गुमी हुई - खोई हुई
• फिरंगी - विदेशी (अंग्रेज़)
• मन में ठानना - पक्का इरादा करना
• हरबोले - हर व्यक्ति के मुँह से
• कृपाण - तलवार
• अवतार - विशेष रूप से जन्म लेना
• पुलकित - प्रसन्न
• व्यूह-रचना - मोर्चा बनाना
• दुर्ग तोड़ना – किला तोड़ना
• खिलबाड़ - खेल
• भवानी -पार्वती
• सुमट - अच्छे वीर
• विरुदावलि - प्रशंसा की कहानी
• उदित हुआ - जगा
• मुदित - प्रसन्न
• कालगति - मृत्यु की चाल
• काली घटा घेर लाना - मुसीबतें आना
• अश्रुपूर्ण - आँसुओं से भरे हुए
• बिरानी - पराई
• अनुनय-विनय - प्रार्थना
• विषम - कठिन
• पैर पसारना - विस्तार करना
• काया पलटना - बदलाव आना
• घात - आक्रमण
• कौन बिसात - क्या औकात
• वज्र नियात - करारी चोट
• बेजार - पीड़ित
• सरेआम - सबके सामने
• नौलखा - बहुमूल्य हार
• रणचंडी - दुर्गा का एक रूप
• आह्वान - पुकारना
• अंतरतम - हृदय
• चेती - जाग्रत हो गई
• लपटें छाना - भयंकर रूप से फैल जाना
• उकसाना - प्रेरित करना
• अभिराम - सुन्दर
• मुँह की खाना - हारना,
• वीर गति पाना - युद्ध में शहीद होना
• दिव्य - अलौकिक
• मदमाती - मस्त करने वाली
• अमिट - न मिटने वाली।