रहीम के दोहे सार वसंत भाग - 1 (Summary of Rahim ke Dohe Vasant)

कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
बिपति कसौटी जे कसे, तेई साँचे मीत।।

अर्थ - रहीम कहते हैं कि जब हमारे पास धन-संपत्ति होती है तो हमारे बहुत से मित्र और संबंधी बन जाते हैं परन्तु जो व्यक्ति संकट के समय सहायता करता है वही सच्चा मित्र होता है।

जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छाँड़ति छोह॥

अर्थ - इस दोहे में कवि ने जल के प्रति मछली के गहरे प्रेम के बारे में बताया है। मछली जल से प्रेम करती है पर जल मछली से प्रेम नहीं करता। रहीम कहते हैं कि जब मछली पकड़ने के लिए जाल को जल में डाला जाता है तो मछलियों के प्रति मोह को छोड़कर जल शीघ्र ही जाल से बह जाता है लेकिन मछलियाँ जल के प्रति अपने प्रेम को नहीं खत्म कर पातीं। वे जल से अलग होते ही तड़प-तड़प कर मर जाती हैं।

तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियत न पान। 
कहि रहीम परकाज हित, संपति-संचहि सुजान॥

अर्थ - वे कहते हैं कि जिस प्रकार वृक्ष स्वयं फल नहीं खाते हैं, सरोवर स्वयं पानी नहीं पीते ठीक उसी प्रकार सज्जन व्यक्ति धन का संचय खुद के लिए न करके परोपकार के लिए करते हैं।

थोथे बादर क्वार के, ज्यों रहीम घहरात।
धनी पुरुष निर्धन भए, करें पाछिली बात॥

अर्थ - इस दोहे में कवि ने क्वार मास के बादलों का वर्णन किया है। रहीम कहते हैं कि क्वार मास में आकाश में बिना पानी के खाली बादल केवल गरजते हैं बरसते नहीं ठीक उसी प्रकार धनी पुरुष गरीब हो जाने पर भी अपने सुख के दिनों की बातें याद करके घमंड भरी बातें बोलते रहते हैं।

धरती की-सी रीत है, सीत घाम औ मेह। 
जैसी परे सो सहि रहे, त्यों रहीम यह देह॥

अर्थ - रहीम कहते हैं कि शरीर की झेलने की रीति धरती के समान होनी चाहिए। जिस प्रकार धरती सर्दी, गर्मी और वर्षा की विपरीत स्थितियों को सहन कर लेती है उसी प्रकार मनुष्य का शरीर भी ऐसा होना चाहिए जो जीवन में आने वाले सुख-दुःख की जैसी भी परिस्थितियाँ हों, उन्हें सहन कर ले।

कठिन शब्दों के अर्थ -

• संपति - धन
• सगे-संगे - संबंधी
• बनत - बनना
• बहुत - अनेक
• रीत - प्रकार
• विपत्ति - संकट
• कसौटी - परखने का पत्थर
• जे - जो
• कसे - घिसने पर
• तेई - वही
• साँचे - सच्चे
• मति - मित्र
• परे - पड़ने पर
• जात बहि - बाहर निकलना
• तजि - त्यागना
• मीनन - मछलियाँ
• मोह - लगाव
• नीर - पानी
• तऊ - तब भी
• छाँड़ति - छोड़ती है
• छोह - मोह
• तरुवर - पेड़
• नहिं - नहीं
• सरवर - तालाब
• पियत - पीना
• पान - पानी
• परकाज - दूसरों के कार्य
• हित - भलाई
• सचहिं - संचय करना
• सुजान - सज्जन व्यक्ति
• थोथे - जलरहित
• बादर - बादल
• घहरात - गड़गड़ाना
• भए - होना
• पाछिली - पिछली
• रीत - व्यवहार
• सीत - ठंड
• घाम - धूप
• औ - और
• मेह - बारिश
• जैसी परे - जैसी परिस्थिति
• सो - वह
• सहि - सहना
• देह - शरीर


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