शाम - एक किसान वसंत भाग - 1 (Summary of Sham - Ek Kisan Vasant)
यह कविता कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना द्वारा लिखी गयी है जिसमें कवि ने जाड़े की शाम के प्राकृतिक दृश्य का चित्रण किया है| शाम के समय पहाड़ एक किसान की तरह बैठा दिखाई दे रहा है| उसके सिर पर आकाश साफ़े के समान बँधा है, पहाड़ के नीचे बहती हुई नदी-घुटनों पर रखी चादर-सी लग रही है, पलाश के पेड़ों पर खिले लाल-लाल फूल-जलती अँगीठी के समान दिखते हैं| दूर पूर्व दिशा में अँधेरा भेड़ों के समूह के समान दुबका बैठा हुआ महसूस होता है|
इस शाम के शांत दृश्य में अचानक मोर बोल पड़ता है। यह आवाज़ सुनकर ऐसा लगा जैसे किसी ने सुनते हो की आवाज लगाई हो। चिलम उलटी हो गई। उसमें से धुआँ उठा। पश्चिम दिशा में सूर्य डूब गया। चारों ओर रात का अँधेरा छा गया।
कठिन शब्दों के अर्थ -
• साफ़ा - सिर पर बाँधने वाली पगड़ी
• चिलम - हुक्के के ऊपर रखने वाली वस्तु
• चादर-सी - चादर के समान।
• दहक रही है - जल रही है
• पलाश - एक प्रकार का वृक्ष जिस पर लाल रंग के फूल लगते हैं।
• सिमटा - दुबका हुआ
• गल्ले-सा - समूह के समान
इस शाम के शांत दृश्य में अचानक मोर बोल पड़ता है। यह आवाज़ सुनकर ऐसा लगा जैसे किसी ने सुनते हो की आवाज लगाई हो। चिलम उलटी हो गई। उसमें से धुआँ उठा। पश्चिम दिशा में सूर्य डूब गया। चारों ओर रात का अँधेरा छा गया।
कठिन शब्दों के अर्थ -
• साफ़ा - सिर पर बाँधने वाली पगड़ी
• चिलम - हुक्के के ऊपर रखने वाली वस्तु
• चादर-सी - चादर के समान।
• दहक रही है - जल रही है
• पलाश - एक प्रकार का वृक्ष जिस पर लाल रंग के फूल लगते हैं।
• सिमटा - दुबका हुआ
• गल्ले-सा - समूह के समान
• औंधी - उलटी