विप्लव-गायन सार वसंत भाग - 1 (Summary of Viplav Gayan Vasant)
यह कविता एक क्रांति गीत है जिसके द्वारा कवि से जीवन में परिवर्तन लाना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि संघर्ष करके समाज बदला जा सकता है। इसमें जड़ता के विरुद्ध विकास और गतिशीलता की बात कही गई है।
कवि अपने साथी कविओं को संबोधित करते हुए कहते हैं कि तुम अपनी परिवर्तन संबंधी भावनाओं से कोई ऐसी जोशीली तान सुनाओ, जिसे सुनकर सारे संसार में उथल-पुथल मच जाए, कुछ परिवर्तन आए। कविता को सुनकर आँधी का एक झोंका इधर से आए और दूसरा झोंका उधर से आए जिससे जीवन में बदलाव आए| कवि कहता है कि मेरी वीणा पर अब आग की चिंगारियाँ आ बैठी हैं। अब यह मधुर स्वर उत्पन्न नहीं करेगी। वीणा से मधुर तान उत्पन्न करने वाली मिज़राबें टूट चुकी हैं और वीणा बजाने वाली मेरी दोनों अंगुलियाँ अकड़ गई हैं। अब ये परिवर्तन लाना चाहती हैं।
कवि कहते हैं कि मेरे स्वर को प्रकट करने वाला गला जोश की अधिकता से रुक गया। इससे निकलने वाला विनाश का गीत रुक गया है। परन्तु अब जो परिवर्तन आएगा वह रुक नहीं पाएगा क्योंकि वह आक्रोश हमारे अंतरमन से उठा है जो इन परंपराओं, रूढ़ियों को पूरी तरह से समाप्त कर देगा। मेरे मन के अंदर से उत्पन्न क्रोध भरी तान से युक्त गीत सामान्य गीत नहीं है। यह तान विकास और गतिशीलता की राह में आने वाले सभी रुकावटों को जला नष्ट कर देगा|
कवि कहते हैं कि कि उसकी वाणी के कण-कण में जोश का स्वर भरा हुआ है। उसके शरीर का एक-एक रोम परिवर्तन के स्वर दे रहा है। उसकी ध्वनि से बदलाव की तान ही उत्पन्न होती रहती है। जैसे ज़हर कालकूट को धारण करने वाले नाग के सिर पर चिंतामणि शोभा देती है वैसे ही परिवर्तन लाने वाले का जोश मुझ में शोभा दे रहा है। मैंने जीवन के सभी रहस्यों को समझ लिया है और यही भी समझ चुका हूँ कि समाज में परिवर्तन कैसे लाया जा सकता है। मैंने मृत्यु और विनाश की भृकुटियों में छिपे हुए पोषक सूत्रों को अच्छी तरह से समझ लिया है। मुझे पता है कि विचारों के परिवर्तन से ही महानाश होगा और उसके बाद ही समाज का नवनिर्माण संभव होगा।
कवि अपने साथी कविओं को संबोधित करते हुए कहते हैं कि तुम अपनी परिवर्तन संबंधी भावनाओं से कोई ऐसी जोशीली तान सुनाओ, जिसे सुनकर सारे संसार में उथल-पुथल मच जाए, कुछ परिवर्तन आए। कविता को सुनकर आँधी का एक झोंका इधर से आए और दूसरा झोंका उधर से आए जिससे जीवन में बदलाव आए| कवि कहता है कि मेरी वीणा पर अब आग की चिंगारियाँ आ बैठी हैं। अब यह मधुर स्वर उत्पन्न नहीं करेगी। वीणा से मधुर तान उत्पन्न करने वाली मिज़राबें टूट चुकी हैं और वीणा बजाने वाली मेरी दोनों अंगुलियाँ अकड़ गई हैं। अब ये परिवर्तन लाना चाहती हैं।
कवि कहते हैं कि मेरे स्वर को प्रकट करने वाला गला जोश की अधिकता से रुक गया। इससे निकलने वाला विनाश का गीत रुक गया है। परन्तु अब जो परिवर्तन आएगा वह रुक नहीं पाएगा क्योंकि वह आक्रोश हमारे अंतरमन से उठा है जो इन परंपराओं, रूढ़ियों को पूरी तरह से समाप्त कर देगा। मेरे मन के अंदर से उत्पन्न क्रोध भरी तान से युक्त गीत सामान्य गीत नहीं है। यह तान विकास और गतिशीलता की राह में आने वाले सभी रुकावटों को जला नष्ट कर देगा|
कवि कहते हैं कि कि उसकी वाणी के कण-कण में जोश का स्वर भरा हुआ है। उसके शरीर का एक-एक रोम परिवर्तन के स्वर दे रहा है। उसकी ध्वनि से बदलाव की तान ही उत्पन्न होती रहती है। जैसे ज़हर कालकूट को धारण करने वाले नाग के सिर पर चिंतामणि शोभा देती है वैसे ही परिवर्तन लाने वाले का जोश मुझ में शोभा दे रहा है। मैंने जीवन के सभी रहस्यों को समझ लिया है और यही भी समझ चुका हूँ कि समाज में परिवर्तन कैसे लाया जा सकता है। मैंने मृत्यु और विनाश की भृकुटियों में छिपे हुए पोषक सूत्रों को अच्छी तरह से समझ लिया है। मुझे पता है कि विचारों के परिवर्तन से ही महानाश होगा और उसके बाद ही समाज का नवनिर्माण संभव होगा।
कठिन शब्दों के अर्थ -
• हिलोर - लहर
• मिज़राब - वीणा या सितार को बजाने के लिए अंगुली पर लगाया जाने वाला तार
• आन - आकर
• कंठ - गला
• महानाश – पूर्ण विनाश
• मारक गीत - विनाश का गीत
• क्षण - पल
• दग्ध - जल उठना
• ज्वलंत - जला देने वाले
• क्रुद्ध - क्रोध से भरी
• अंतरतर - हृदय के भीतर से
• व्याप्त - विद्यमान
• कालकूट – भयंकरतम जहर
• फणि - नाग
• राज़ – रहस्य
• भ्रू - भृकुटियाँ
• पोषक सूत्र - पालन करने वाले आधार
• परख - जाँच।
• हिलोर - लहर
• मिज़राब - वीणा या सितार को बजाने के लिए अंगुली पर लगाया जाने वाला तार
• आन - आकर
• कंठ - गला
• महानाश – पूर्ण विनाश
• मारक गीत - विनाश का गीत
• क्षण - पल
• दग्ध - जल उठना
• ज्वलंत - जला देने वाले
• क्रुद्ध - क्रोध से भरी
• अंतरतर - हृदय के भीतर से
• व्याप्त - विद्यमान
• कालकूट – भयंकरतम जहर
• फणि - नाग
• राज़ – रहस्य
• भ्रू - भृकुटियाँ
• पोषक सूत्र - पालन करने वाले आधार
• परख - जाँच।