अवधपुरी में राम बाल राम कथा (Summary of Awadhpuri me Ram Bal Ramkatha)
अयोध्या सरयू नदी के किनारे एक सुन्दर नगर था। यह कोसल राज्य की राजधानी थी| इसकी इमारतें भव्य थीं। इसकी सड़कें चौड़ी व सुन्दर बाग-बगीचे थे। यहाँ कोई दु:ख या विपन्नता नहीं थी। दशरथ यहाँ के राजा थे| ये महाराज अज के पुत्र तथा महराज रघु के उत्तराधिकारी थे| राजा दशरथ न्यायप्रिय, सदाचारी मर्यादाओं का पालन करने वाले शासक थे। उनके पास सभी प्रकार का सुख था| उन्हें एक ही दुःख था कि उनके कोई संतान नहीं थी|
उन्होंने अपने उत्तराधिकारों की चिंता के सम्बन्ध में मुनि वशिष्ठ से चर्चा की। उन्होंने महाराज दशरथ को पुत्रेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी। यज्ञ तपस्वी ऋष्यशृंग की देखरेख में हुआ। अग्नि देवता ने महाराज दशरथ को आशीर्वाद दिया। तीनों रानियाँ पुत्रवती हुईं। बड़ी रानी (कौशल्या) ने चैत्र नवमी के दिन राम को, मंझली रानी (सुमित्रा) ने दो पुत्रों लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न को तथा छोटी रानी (कैकेयी) ने भरत को जन्म दिया। राजमहल में खुशी छा गई।
चारों राजकुमार धीरे-धीरे बड़े हुए। चारों अत्यन्त सुन्दर थे तथा उनमें आपस में बहुत प्रेम था। उन्होंने कुशल और अपनी विद्या में दक्ष गुरूजनों से ज्ञान अर्जित किया तथा शस्त्र विद्या सीखी। राजा दशरथ को राम सबसे प्रिय थे क्योंकि उनमें विवेक, शालीनता और न्यायप्रियता थी। राजकुमार भी विवाह योग्य हो गए। राजा दशरथ भी अपनी संतानों के लिए सुयोग्य बहुएँ चाहते थे।
एक दिन जब राजकुमारों के विवाह के बारे में मंत्रणा चल रही थी उसी समय महर्षि विश्वामित्र वहाँ पधारे। दशरथ ने उन्हें ऊँचा आसान दिया और उनके आने का कारण पूछा| उन्होंने राजा दशरथ से कहा कि मैं सिद्धि के लिए यज्ञ कर रहा हूँ। उस यज्ञ में राक्षस आकर बाधा डाल रहे हैं। उन राक्षसों को आपका ज्येष्ठ पुत्र राम मार सकता है। इसलिए यज्ञ की रक्षा के लिए अपने ज्येष्ठ पुत्र राम को मुझे दे दें ताकि यज्ञ पूरा हो सके। राजा दशरथ ने कहा मेरा राम तो अभी सोलह वर्ष का ही है वह राक्षसों से कैसे लड़ेगा? वह अपने प्रिय पुत्र राम को नहीं अपने से दूर नहीं भेजना चाहते थे| ऋषि ने दशरथ से कहा कि वे रघुकुल की रीति तोड़ रहे हैं। वचन देकर पीछे हट रहे हैं। यह कुल के विनाश का सूचक है।
ऐसा होता देख मुनि वशिष्ठ आगे आए। उन्होंने कहा महर्षि विश्वामित्र सिद्ध पुरुष हैं। अनेक गुप्त विद्याओं के जानकार हैं। राम भी उनसे अनेक विद्याएँ सीख सकेंगे। दशरथ ने दुःखी मन से यह बात स्वीकार कर ली परन्तु उन्होंने राम के साथ लक्ष्मण को भी ले जाने का आग्रह किया। विश्वामित्र ने दशरथ की बात को मान लिया| दशरथ ने राम-लक्ष्मण को दरबार में बुलाकर अपने निर्णय के बारे में बताया। दोनों भाइयों ने आदर सहित सिर झुका दिया।
दोनों राजकुमार बिनादेर किए महर्षि के साथ बीहड़ जंगलों की ओर चल पड़े| विश्वामित्र आगे-आगे राम और लक्ष्मण धनुष सँभाले और तरकश बाँधे पीछे चल रहे थे।
शब्दार्थ-
• दर्शनीय-देखने लायक
• विलक्षण -अद्भुत
• सरोवर-तालाब
• सम्पन्न-धनी
• विपन्नता-गरीबी
• पारंगत-निपुण
• वियोग-अलग होना
• संज्ञा-शून्य-अचेतना
• तूणीर-तरकश
उन्होंने अपने उत्तराधिकारों की चिंता के सम्बन्ध में मुनि वशिष्ठ से चर्चा की। उन्होंने महाराज दशरथ को पुत्रेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी। यज्ञ तपस्वी ऋष्यशृंग की देखरेख में हुआ। अग्नि देवता ने महाराज दशरथ को आशीर्वाद दिया। तीनों रानियाँ पुत्रवती हुईं। बड़ी रानी (कौशल्या) ने चैत्र नवमी के दिन राम को, मंझली रानी (सुमित्रा) ने दो पुत्रों लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न को तथा छोटी रानी (कैकेयी) ने भरत को जन्म दिया। राजमहल में खुशी छा गई।
चारों राजकुमार धीरे-धीरे बड़े हुए। चारों अत्यन्त सुन्दर थे तथा उनमें आपस में बहुत प्रेम था। उन्होंने कुशल और अपनी विद्या में दक्ष गुरूजनों से ज्ञान अर्जित किया तथा शस्त्र विद्या सीखी। राजा दशरथ को राम सबसे प्रिय थे क्योंकि उनमें विवेक, शालीनता और न्यायप्रियता थी। राजकुमार भी विवाह योग्य हो गए। राजा दशरथ भी अपनी संतानों के लिए सुयोग्य बहुएँ चाहते थे।
एक दिन जब राजकुमारों के विवाह के बारे में मंत्रणा चल रही थी उसी समय महर्षि विश्वामित्र वहाँ पधारे। दशरथ ने उन्हें ऊँचा आसान दिया और उनके आने का कारण पूछा| उन्होंने राजा दशरथ से कहा कि मैं सिद्धि के लिए यज्ञ कर रहा हूँ। उस यज्ञ में राक्षस आकर बाधा डाल रहे हैं। उन राक्षसों को आपका ज्येष्ठ पुत्र राम मार सकता है। इसलिए यज्ञ की रक्षा के लिए अपने ज्येष्ठ पुत्र राम को मुझे दे दें ताकि यज्ञ पूरा हो सके। राजा दशरथ ने कहा मेरा राम तो अभी सोलह वर्ष का ही है वह राक्षसों से कैसे लड़ेगा? वह अपने प्रिय पुत्र राम को नहीं अपने से दूर नहीं भेजना चाहते थे| ऋषि ने दशरथ से कहा कि वे रघुकुल की रीति तोड़ रहे हैं। वचन देकर पीछे हट रहे हैं। यह कुल के विनाश का सूचक है।
ऐसा होता देख मुनि वशिष्ठ आगे आए। उन्होंने कहा महर्षि विश्वामित्र सिद्ध पुरुष हैं। अनेक गुप्त विद्याओं के जानकार हैं। राम भी उनसे अनेक विद्याएँ सीख सकेंगे। दशरथ ने दुःखी मन से यह बात स्वीकार कर ली परन्तु उन्होंने राम के साथ लक्ष्मण को भी ले जाने का आग्रह किया। विश्वामित्र ने दशरथ की बात को मान लिया| दशरथ ने राम-लक्ष्मण को दरबार में बुलाकर अपने निर्णय के बारे में बताया। दोनों भाइयों ने आदर सहित सिर झुका दिया।
दोनों राजकुमार बिनादेर किए महर्षि के साथ बीहड़ जंगलों की ओर चल पड़े| विश्वामित्र आगे-आगे राम और लक्ष्मण धनुष सँभाले और तरकश बाँधे पीछे चल रहे थे।
शब्दार्थ-
• दर्शनीय-देखने लायक
• विलक्षण -अद्भुत
• सरोवर-तालाब
• सम्पन्न-धनी
• विपन्नता-गरीबी
• पारंगत-निपुण
• वियोग-अलग होना
• संज्ञा-शून्य-अचेतना
• तूणीर-तरकश