दो वरदान बाल राम कथा (Summary of Do Vardan Bal Ramkatha)
राजा दशरथ वृद्ध हो चले थे इसलिए वे राम का राज्याभिषेक करना चाहते थे। उन्होंने राम को राज-काज में शामिल करना शुरू कर दिया। उन्होंने राम को युवराज बनाने और उनके राज्याभिषेक की घोषणा की। राम के राज्याभिषेक के लिए तैयारियाँ होने लगीं। उस समय भरत और शत्रुघ्न ननिहाल में थे।राज्याभिषेक की तैयारी दासी मंथरा ने भी देखी। दासी मंथरा ने कैकेयी से कहा कि तुम्हारे सुखों का अन्त होने वाला है, क्योंकि राजा राम का राज्याभिषेक करने जा रहे हैं और उन्होंने जानबूझकर भरत को ननिहाल भेज दिया है। कैकेयी ने कहा कि इसमें बुरा मानने जैसी कोई बात नहीं है| मंथरा ने कहा कि अगर राम को राज मिल गया तो वे भरत को देश निकाला दे देंगे और दंड भी देंगे। कोई ऐसा उपाय करो कि राजगद्दी भरत को मिले और राम को जंगल भेज दिया जाए। उसकी बातों का कैकेयी पर असर पड़ा। मंथरा ने कैकेयी को उसके दो वरदान याद दिलाए जो दशरथ ने कभी देने का वादा किया था। उसने रानी कैकेयी को कहा कि वो भरत के लिए राजगद्दी और राम के लिए चौदह वर्षों का वनवास माँगे| रानी कैकेयी कोपभवन में चली गई।
दशरथ ने जब उन्हें कोपभवन में देखा तो वह खुद को रोक नहीं पाए| उन्होंने कैकेयी से उनके दुःख का कारण पूछा| कैकेयी ने पहले उनसे अपने वचन पूरा करना का आश्वासन लिया|दशरथ ने हामी भरी। कैकेयी ने उनसे भरत का राज्याभिषेक और राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास माँगा| दशरथ भौचक्के रह गए| कैकेयी ने कहा कि अगर आप वरदान नहीं देंगे तो मैं विष पीकर अपनी जान दे दूंगी और कलंक आपके माथे होगा। वे मूर्च्छित होकर गिर पड़े। राजा दशरथ ने कैकेयी को बहुत समझाया परन्तु वह टस से मस नहीं हुई। सारी रात इसी तरह बीत गई।
शब्दार्थ -
• लोहा मानना - प्रभावित होना
• तुमुल ध्वनि - ज़ोर की आवाज़
• सर्वोपरि - सबसे ऊपर
• अगाध - बहुत अधिक
• आसन्न - निकट
• रनिवास - रानियों के रहने का स्थान
• प्रतिहारी - दासी
• वज्रपात - बिजली गिरना
• कातर भाव - बेचैनी
• टस-से-मस न होना - अपनी बात पर ही अडिग बने रहना।