Summary of एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! Class 10th Kritika Notes
'एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!' पाठ के लेखक शिवप्रसाद मिश्र 'रुद्र' हैं । इस पाठ के माध्यम से लेखक ने गाने-बजाने वाले समाज के देश के प्रति असीम प्रेम, विदेशी शासन के प्रति क्षोभ और पराधीनता की जंजीरों को उतार फेंकने की तीव्र लालसा का वर्णन किया है।
एक गाँव में दुलारी नाम की नाच-गाने का पेशा करने वाली स्त्री रहती थी। दुलारी का शरीर पहलवानों की तरह कसरती था। वह मराठी महिलाओं की तरह धोती लपेटकर कसरत करने के बाद प्याज और हरी मिर्च के साथ चने खाती थी। वह दुक्कड़ नामक बाजे पर गीत गाने के लिए प्रसिद्ध थी। उसके कजली गायन का सब लोग सम्मान करते थे। गाने में ही सवाल-जवाब करने में वह बहुत कुशल थी।
एक बार खोजवाँ दल की तरफ से गीतों में सवाल-जवाब करते हुए दुलारी की मुलाकात टुन्नू नाम के एक ब्राह्मण लड़के से हुई। बजरडीहा वालों की तरफ से मधुर कंठ में टुन्नू ने उसके साथ पहली बार सवाल-जवाब किए। मुकाबले में टुन्नू के मुँह से दुलारी की तारीफ़ सुनकर सुंदर के मालिक' फेंकू सरदार ने टुन्नू पर लाठी से वार किया। दुलारी ने टुन्नू को उस मार से बचाया था। दुलारी ने तब अपने प्रति उसके प्रेम को अनुभव किया था।
दुलारी के घर आकर भी टुन्नू चुप रहता। कभी प्रेम को प्रकट नहीं करता था। होली के एक दिन पहले टुन्नू दुलारी के घर आया। उसने खादी आश्रम की बुनी साड़ी दुलारी को दी। दुलारी ने उसे बहुत डाँटा और साड़ी फेंक दी। टुन्नू अपमानित होकर रोने लगा। उसके आँसू दुलारी के द्वारा फेंकी साड़ी पर टपकने लगे। उसने अपना प्रेम पहली बार प्रकट किया और कहा कि उसका मन रूप और उम्र की सीमा में नहीं बँधा है।
टुन्नू के जाने के बाद दुलारी ने साड़ी पर पड़े आँसुओं के धब्बों को चूम लिया। दुलारी छह महीने पहले टुन्नू से मिली थी। उसने अपनी ढलती उम्र में प्रेम को पहली बार इतने करीब से महसूस किया था। टुन्नू की लाई साड़ी को उसने अपने कपड़ों में सबसे नीचे रख लिया। टुन्नू और अपने प्रेम को आत्मा का प्रेम समझते हुए भी दुलारी चिंतित थी।
उसी समय फेंकू सरदार धोतियों का बंडल लेकर दुलारी की कोठरी में आया। फेंकू सरदार ने उसे तीज पर बनारसी साड़ी दिलवाने का वायदा किया। जब दुलारी और फेंकू सरदार बातचीत कर रहे थे, उसी समय उसकी गली में से विदेशी वस्त्रों की होली जलाने वाली टोली निकली। चार लोगों ने एक चादर पकड़ रखी थी जिसमें लोग धोती, कमीज़, कुरता, टोपी आदि डाल रहे थे। दुलारी ने भी फेंकू सरदार का दिया मँचेस्टर तथा लंका-शायर की मिलों की बनी बारीक सूत की मखमली किनारेवाली धोतियों का बंडल फैली चादर में डाल दिया। अधिकतर लोग जलाने के लिए पुराने कपड़े फेंक रहे थे। दुलारी की खिड़की से नया बंडल फेंकने पर सबकी नजर उस तरफ़ उठ गई। जुलूस के पीछे चल रही खुफ़िया पुलिस के रिपोर्टर अली सगीर ने भी दुलारी को देख लिया था। दुलारी ने फेंकू सरदार को उसकी किसी बात पर झाड़ू से पीटकर घर से बाहर निकाल दिया। जैसे ही फेंकू दुलारी के घर से निकला, उसे पुलिस रिपोर्टर मिल गया जिसे देखकर वह झेंप गया।
दुलारी के आँगन में रहने वाली सभी स्त्रियाँ इकट्ठी हो जाती हैं। सभी मिलकर दुलारी को शांत करती हैं। सब इस बात से हैरान थीं कि फेंकू सरदार ने दुलारी पर अपना सबकुछ न्योछावर कर रखा था, फिर आज उसने उसे क्यों मारा। दुलारी कहती है कि यदि फेंक ने उसे रानी बनाकर रखा था, तो उसने भी अपनी इज्जत, अपना सम्मान उसके नाम कर दिया था। एक नारी के सम्मान की कीमत कुछ नहीं है।
सभी स्त्रियाँ बैठी बातें कर रही थीं कि झींगुर ने आकर बताया कि टुनू महाराज को गोरे सिपाहियों ने मार दिया और वे लोग लाशें उठाकर भी ले गए। टुन्नू के मारे जाने का समाचार सुनकर दुलारी की आँखों से अविरल आँसुओं की धारा बह निकली। उसकी पड़ोसिनें भी दुलारी का हाल देखकर हैरान थीं। उसने टुन्न की दी साधारण खद्दर की धोती पहन ली। वह झींगुर से टुन्नू के शहीदी स्थल का पता पूछकर वहाँ जाने के लिए घर से बाहर निकली। घर से बाहर निकलते ही थाने के मुंशी और फेंकू सरदार ने उसे थाने चलकर अमन सभा के समारोह में गाने के लिए कहा।
प्रधान संवाददाता ने शर्मा जी की लाई हुई रिपोर्ट को मेज़ पर पटकते हुए डाँटा और अखबार की रिपोर्टरी छोड़कर चाय की दुकान खोलने के लिए कहा। उनके द्वारा लाई रिपोर्ट को उसने अलिफ लैला की कहानी कहते हैं, जिसे प्रकाशित करना वह उचित नहीं समझते। इस पर संपादक ने शर्मा जी को रिपोर्ट पढ़ने के लिए कहा।
शर्मा जी ने अपनी रिपोर्ट का शीर्षक 'एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा' रखा था। उनकी रिपोर्ट के अनुसार 'कल छह अप्रैल को नेताओं की अपील पर नगर में पूर्ण हड़ताल रही। खोमचेवाले भी हड़ताल पर थे। सुबह से ही विदेशी वस्त्रों का संग्रह करके उनकी होली जलाने वालों के जुलूस निकलते रहे। उनके साथ प्रसिद्ध कजली गायक टुन्नू भी था। जुलूस टाउन हॉल पहुँचकर समाप्त हो गया। सब जाने लगे तो पुलिस के जमादार अली सगीर ने टुन्नू को गालियाँ दी। टुन्नू के प्रतिवाद करने पर उसे जमादार ने बूट से ठोकर मारी। इससे उसकी पसली में चोट लगी। वह गिर पड़ा और उसके मुँह से खून निकल पड़ा। गोरे सैनिकों ने उसे उठाकर गाड़ी में डालकर अस्पताल ले जाने के स्थान पर वरुणा में प्रवाहित कर दिया, जिसे संवाददाता ने भी देखा था। इस टुन्न का दुलारी नाम की गौनहारिन से संबंध था।
कल शाम अमन सभा द्वारा टाउन हॉल में आयोजित समारोह में, जहाँ जनता का एक भी प्रतिनिधि उपस्थित नहीं था, दुलारी को नचाया-गवाया गया था। टुन्नू की मृत्यु से दुलारी बहुत उदास थी। उसने खद्दर की साधारण धोती पहन रखी थी। वह उस स्थान पर गाना नहीं चाहती थी, जहाँ आठ घंटे पहले उसके प्रेमी की हत्या कर दी गई थी। फिर भी कुख्यात जमादार अली सगीर के कहने पर उसने दर्दभरे स्वर में 'एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा, कासों मैं पूछू' गाया और जिस स्थान पर टुन्नू गिरा था, उधर ही नज़र जमाए हुए गाती रही। गाते-गाते उसकी आँखों से आँसू बह निकले मानो टुन्नू की लाश को वरुणा में फेंकने से पानी की जो बूंदें छिटकी थीं, वे अब दुलारी की आँखों से बह निकली हैं।' संपादक महोदय को रिपोर्ट तो सत्य लगी, परंतु वे इसे छापने में असमर्थ थे।
कठिन शब्दों के अर्थ -
• झलनी - नाक के नीचे झूलता हुआ पहना जानेवाला एक आभूषण
• कच्छ - धोती के नीचे पहनी जाने वाली काछ
• दंड - व्यायाम का एक प्रकार
• पुतला - आकृति
• अंगोछा - गमछा
• भुजदंड - बाँह में पहना जाने वाला एक प्रकार का आभूषण
• चणक-चर्वन - चने का चबाया जाना
• करीने से - ढंग-से
• विलोल - चंचल
• खद्दर - खादी
• कज्जल मलिन - काजल से काली
• पाषाण-प्रतिमा - पत्थर की मूर्ति
• दंड - व्यायाम का एक प्रकार
• पुतला - आकृति
• अंगोछा - गमछा
• भुजदंड - बाँह में पहना जाने वाला एक प्रकार का आभूषण
• चणक-चर्वन - चने का चबाया जाना
• करीने से - ढंग-से
• विलोल - चंचल
• खद्दर - खादी
• कज्जल मलिन - काजल से काली
• पाषाण-प्रतिमा - पत्थर की मूर्ति
• कायल - सहमत
• कौतुक - उत्सुकता
• महती - बहुत
• कोर दबाना - लिहाज होना
• कजली दंगल - कजली प्रतियोगिता
• टुक्कड़ - शहनाई के साथ बजाया जाने वाला तबले जैसा एक बाजा
• गौनहारियाँ - गाने को प्रस्तुत करने वाली स्त्रियाँ
• दरगोड़े - पैरों से कुचलना या रौंदना
• लोंट - रुपया
• घेवर - गैरे घी और चीनी के योग से बनी एक मिठाई
• अउर - और
• सारी - सभी
• टाँक - टाँकना
• सोनहली - सुनहरी
• कौतुक - उत्सुकता
• महती - बहुत
• कोर दबाना - लिहाज होना
• कजली दंगल - कजली प्रतियोगिता
• टुक्कड़ - शहनाई के साथ बजाया जाने वाला तबले जैसा एक बाजा
• गौनहारियाँ - गाने को प्रस्तुत करने वाली स्त्रियाँ
• दरगोड़े - पैरों से कुचलना या रौंदना
• लोंट - रुपया
• घेवर - गैरे घी और चीनी के योग से बनी एक मिठाई
• अउर - और
• सारी - सभी
• टाँक - टाँकना
• सोनहली - सुनहरी
• गोट - पटी
• बात-बात में तीर-कमान हो जाना - छोटी-छोटी बातों में लड़ने के लिए तैयार हो जाना
• होड़ - स्पर्धा
• यजमानी - जैसे पुरोहित अपने-अपने क्षेत्र में यजमानी करते हैं
• खेना - चलाना।
• चस्का - आदत
• रंग उतारना - उत्साह कम होना
• बात-बात में तीर-कमान हो जाना - छोटी-छोटी बातों में लड़ने के लिए तैयार हो जाना
• होड़ - स्पर्धा
• यजमानी - जैसे पुरोहित अपने-अपने क्षेत्र में यजमानी करते हैं
• खेना - चलाना।
• चस्का - आदत
• रंग उतारना - उत्साह कम होना
• मद-विहूल - कामवासना के वशीभूत
• कोढ़ियल - कोढ़ी
• मुहवै - मुँह
• लेब - लेंगे
• बकोट - मुँह का नोच लिया जाना
• अगोरतन - रखवाली करना
• कौड़ी-कौड़ी - एक-एक पैसा
• बटोलन - बटोरना
• जेतना - जितना
• मान - मतलब
• गरिआव - गाली देना
• बझाव - बुझाना, शांत करना
• मनक - गहना
• आबखाँ - बहुत बारीक मलमल का कपड़ा
• यत्न से - सँभालकर
• मनोयोग - एकाग्र मन से
• यौवन का अस्ताचल - जवानी की ढलती अवस्था
• उन्माद - पागलपन
• कृशकाय - दुबला
• कोढ़ियल - कोढ़ी
• मुहवै - मुँह
• लेब - लेंगे
• बकोट - मुँह का नोच लिया जाना
• अगोरतन - रखवाली करना
• कौड़ी-कौड़ी - एक-एक पैसा
• बटोलन - बटोरना
• जेतना - जितना
• मान - मतलब
• गरिआव - गाली देना
• बझाव - बुझाना, शांत करना
• मनक - गहना
• आबखाँ - बहुत बारीक मलमल का कपड़ा
• यत्न से - सँभालकर
• मनोयोग - एकाग्र मन से
• यौवन का अस्ताचल - जवानी की ढलती अवस्था
• उन्माद - पागलपन
• कृशकाय - दुबला
• पाँड्मुख - गौरवर्णी
• कृत्रिम - बनावटी
• प्रकृतिस्थ - सामान्य
• उड़ती झलक - हलकी झलक
• तमोली - ताँबे के बर्तन बनाने वाला
• मुखबिर - ऐसा अपराधी जो पुलिस के सामने अपना अपराध स्वीकार करने के कारण माफ़ कर दिया जाए और सरकारी गवाह बन जाए
• उत्कट - अत्यधिक
• आँखों से ज्वाला निकलना - आँखों से अत्यधिक क्रोध का प्रदर्शन होना
• बटलोही- चूल्हे पर चढ़ाकर खाना पकाने का चपटा और गोल मटके के जैसा बर्तन
• आँख न उठाना - किसी की ओर न देखना
• दिल की आग - मन में जगा अत्यधिक क्रोध या विरोधी
• मेघमाला - लगातार बहते आँसू
• स्तब्ध - आश्चर्य और दुख के कारण जड़ हुई स्थिति
• कर्कशा - तेज आवाज में अधिक विचार किए बिना बोलने वाली स्त्री
• बार-वनिता-सुलभ - स्त्री के जैसा
• बूते की बात - बस की बात
• झखना - झुंझलाना
• झेंप - संकोच। खोमचेवाले - फेरी लगाकर बेचने वाले
• विघटित होना - बँटना
• आमोदित - आनंदित
• उद्धांत - परेशान
• ननदिया - पति की बहन
• देवरा - पति का छोटा भाई
• छहर - छोटी बँद के रूप में अचानक निकल कर फैलना
• कृत्रिम - बनावटी
• प्रकृतिस्थ - सामान्य
• उड़ती झलक - हलकी झलक
• तमोली - ताँबे के बर्तन बनाने वाला
• मुखबिर - ऐसा अपराधी जो पुलिस के सामने अपना अपराध स्वीकार करने के कारण माफ़ कर दिया जाए और सरकारी गवाह बन जाए
• उत्कट - अत्यधिक
• आँखों से ज्वाला निकलना - आँखों से अत्यधिक क्रोध का प्रदर्शन होना
• बटलोही- चूल्हे पर चढ़ाकर खाना पकाने का चपटा और गोल मटके के जैसा बर्तन
• आँख न उठाना - किसी की ओर न देखना
• दिल की आग - मन में जगा अत्यधिक क्रोध या विरोधी
• मेघमाला - लगातार बहते आँसू
• स्तब्ध - आश्चर्य और दुख के कारण जड़ हुई स्थिति
• कर्कशा - तेज आवाज में अधिक विचार किए बिना बोलने वाली स्त्री
• बार-वनिता-सुलभ - स्त्री के जैसा
• बूते की बात - बस की बात
• झखना - झुंझलाना
• झेंप - संकोच। खोमचेवाले - फेरी लगाकर बेचने वाले
• विघटित होना - बँटना
• आमोदित - आनंदित
• उद्धांत - परेशान
• ननदिया - पति की बहन
• देवरा - पति का छोटा भाई
• छहर - छोटी बँद के रूप में अचानक निकल कर फैलना
• आविर्भाव - प्रकट होना