गूँगे - पठन सामग्री और सार NCERT Class 11th Hindi
गूँगे खानी रांगेय राघव द्वारा लिखी एक मार्मिक कहानी है जिसमें एक गूँगा और बहरा बालक का एक शोषित रूप को दिखाया गया है| हालाँकि इस पाठ के माध्यम से लेखक उन सभी को गूँगा बताते हैं जो अत्याचार को देखते हुए भी उसके विरुद्ध कदम नहीं उठाते|
एक गूँगा बालक महिलाओं को अपने विषय में बताने की भरसक कोशिश कर रहा है। वह जन्म से बहरा होने के कारण गूंगा है। वह सुख-दुख जो कुछ भी अनुभव करता है, उसे इशारों के माध्यम से प्रकट करता है। वह बहुत प्रयत्न करता है परंतु बोल नहीं पाता। वह इशारों से बताता है कि उसकी माँ घूँघट काढ़ती थी जो उसे छोड़ कर चली गई क्योंकि बाप मर गया। उसका पालन-पोषण किसने किया यह तो किसी की समझ में नहीं आया। लेकिन उसके इशारों से इतना अवश्य स्पष्ट हो गया कि जिन्होंने उसे पाला, वे मारते बहुत थे। वह बोलने की बड़ी कोशिश करता है, लेकिन उसके मुख से कठोर तथा कर्णकटु काँय-काँय की आवाज़ों के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं निकलता है। जिसे देखकर उपस्थित महिलाएं उसके प्रति दया से भर उठती हैं।
सुशीला गूंगे को मुँह खोलने के लिए कहती है। गूंगे के मुँह में कुछ नहीं था। किसी ने बचपन में गला साफ़ करने की कोशिश में काट दिया और वह ऐसे बोलता है, जैसे घायल पशु कराह उठता है। खाने-पीने के विषय में पूछने पर बताता है-हलवाई के यहाँ रातभर लड्डू बनाए हैं, कड़ाही माँजी है, नौकरी की है, कपड़े धोए हैं। सीने पर हाथ मारकर इशारा किया कि हाथ फैलाकर उसने कभी नहीं माँगा। वह भीख नहीं लेता। भुजाओं पर हाथ रखकर बताया कि वह मेहनत का खाता है। चमेली के हृदय में अनाथ बच्चों के लिए दया थी। लेकिन वह इस गूंगे को घर में नौकर रखकर क्या करेगी? लेकिन गूंगे ने इशारे से स्पष्ट किया कि वह सब कुछ समझता है। केवल इशारों की ज़रूरत है।
चमेली उसे चार रुपए वेतन और खाना देने का वादा कर घर में नौकर रख लेती है। गूंगा अपने घर वापस नहीं जाना चाहता। उसे बुआ और फूफा ने पाला अवश्य था पर वे मारते बहुत थे। वे चाहते थे कि गूंगा कुछ काम करे और उन्हें कमा कर दे और बदले में बाजरे तथा चने की रोटियों पर निर्वाह करे।
चमेली उसे चार रुपए वेतन और खाना देने का वादा कर घर में नौकर रख लेती है। गूंगा अपने घर वापस नहीं जाना चाहता। उसे बुआ और फूफा ने पाला अवश्य था पर वे मारते बहुत थे। वे चाहते थे कि गूंगा कुछ काम करे और उन्हें कमा कर दे और बदले में बाजरे तथा चने की रोटियों पर निर्वाह करे।
गूँगा चमेली के घर छोटे-मोटे काम करता था। एक दिन गूंगा बिना बताए कहीं चला गया। चमेली ने उसे बहुत ढूँढा पर उसका कुछ भी पता नहीं चला। चमेली के पति ने कहा कि भाग गया होगा। वह सोचती रही कि वह सचमुच भाग हो गया है पर यह नहीं समझ पा रही थी क्यों भाग गया। तब उसने कहा कि गूँगा नाली के कीड़े के समान है, उसे जितना भी बेहतर जीवन दे दो मगर वह गंदगी को ही पसंद करेगा।
घर के सब लोग जब खाना खा चुके तो वह अचानक दरवाज़े पर दिखाई दिया और इशारे से बताया कि वह भूखा है। चमेली ने उसकी तरफ़ रोटियाँ फेंक दी और पूछा कहाँ गया था। गूंगा अपराधी की भाँति खड़ा था। चमेली ने एक चिमटा उसकी पीठ पर जड़ दिया पर गूंगा रोया नहीं। चमेली की आँखों से आँसू गिरने लगे। वह देखकर गूंगा भी रोने लगा।
घर के सब लोग जब खाना खा चुके तो वह अचानक दरवाज़े पर दिखाई दिया और इशारे से बताया कि वह भूखा है। चमेली ने उसकी तरफ़ रोटियाँ फेंक दी और पूछा कहाँ गया था। गूंगा अपराधी की भाँति खड़ा था। चमेली ने एक चिमटा उसकी पीठ पर जड़ दिया पर गूंगा रोया नहीं। चमेली की आँखों से आँसू गिरने लगे। वह देखकर गूंगा भी रोने लगा।
अब गूँगा कभी भाग जाता और कभी लौटकर फिर आ जाता। जगह-जगह नौकरी करके भाग जाना उसकी आदत बन गई थी।
एक दिन चमेली के बेटे बसंता ने गूंगे को चपत मार दी। गूंगे ने भी उसे मारने के लिए हाथ उठाया पर रुक गया। गूंगा रोने लगा उसका रुदन इतना कर्कश था कि चमेली चूल्हा छोड़कर वहाँ आई। इशारों से पता चला कि खेलते-खेलते बसंता ने उसे मारा था। बसंता ने शिकायत की कि गूंगा उसे मारना चाहता था। गूंगा चमेली की भावभंगिमा से सब कुछ समझ गया था। उसने चमेली का हाथ पकड़ लिया। एक क्षण के लिए चमेली को लगा जैसे उसके पुत्र ने ही उसका हाथ पकड़ रखा है। एकाएक चमेली ने घृणा का भाव व्यक्त करते हुए अपना हाथ छुड़ा लिया।
एक दिन चमेली के बेटे बसंता ने गूंगे को चपत मार दी। गूंगे ने भी उसे मारने के लिए हाथ उठाया पर रुक गया। गूंगा रोने लगा उसका रुदन इतना कर्कश था कि चमेली चूल्हा छोड़कर वहाँ आई। इशारों से पता चला कि खेलते-खेलते बसंता ने उसे मारा था। बसंता ने शिकायत की कि गूंगा उसे मारना चाहता था। गूंगा चमेली की भावभंगिमा से सब कुछ समझ गया था। उसने चमेली का हाथ पकड़ लिया। एक क्षण के लिए चमेली को लगा जैसे उसके पुत्र ने ही उसका हाथ पकड़ रखा है। एकाएक चमेली ने घृणा का भाव व्यक्त करते हुए अपना हाथ छुड़ा लिया।
अपने बेटे का ध्यान आते ही चमेली के हृदय में गूंगे के प्रति दया का भाव भर आया। वह लौटकर चूल्हे के पास चली गयी| वह गूँगे की स्थिति के बारे में सोचती है। उसका ध्यान चूल्हे की आग पर जाता है। वह सोचती है कि इस आग के कारण ही पेट की भूख मिटाने के लिए खाना बनाया जा रहा है। यही खाना उस आग को समाप्त करता है, जो पेट में भूख के रूप में विद्यमान है। इसी भूख रूपी आग के कारण एक आदमी दूसरे आदमी की गुलामी स्वीकार करता है। यदि यह आग न हो, तो एक आदमी दूसरे आदमी की गुलामी कभी स्वीकार न करे। यही आग एक मनुष्य की कमज़ोरी बन उसे झुका देती है।
चमेली की समझ में आ गया कि गूंगा यह समझता है कि बसंता मालिक का बेटा है, इसलिए उसने बसंता पर हाथ नहीं उठाया। थोड़े दिनों में गूंगे पर चोरी का आरोप लगा। चमेली ने उसे घर से निकाल दिया और चिल्लाकर कहा कि उसे नहीं रखना है| गूंगे ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई। चमेली ने उसका हाथ पकड़कर उसे दरवाज़े से बाहर धकेल दिया। गूंगा वहाँ से चला गया। चमेली देखती रही।
लगभग घंटे-भर बाद शकुंतला और बसंता दोनों चिल्ला उठे। चमेली ने नीचे उतर कर देखा गूंगा खून से लथ-पथ था। उसका सिर फट गया था। उसे सड़क के लड़कों ने पीट दिया था क्योंकि गूंगा होने के नाते वह उनसे दबना नहीं चाहता था। दरवाज़े की दहलीज पर सिर रखकर वह कुत्ते को तरह चिल्ला रहा था। चमेली चुपचाप देखती रही|
लगभग घंटे-भर बाद शकुंतला और बसंता दोनों चिल्ला उठे। चमेली ने नीचे उतर कर देखा गूंगा खून से लथ-पथ था। उसका सिर फट गया था। उसे सड़क के लड़कों ने पीट दिया था क्योंकि गूंगा होने के नाते वह उनसे दबना नहीं चाहता था। दरवाज़े की दहलीज पर सिर रखकर वह कुत्ते को तरह चिल्ला रहा था। चमेली चुपचाप देखती रही|
अपने परिस्थिति को देखकर चमेली सोचती है आज के समय में कौन गूँगा नहीं है| लोग अत्याचारों के विरुद्ध आवाज़ तो उठाना चाहते हैं परन्तु हालत के आगे वे मजबूर हैं यानी एक तरह से गूँगे हैं|
कठिन शब्दों के अर्थ-
कठिन शब्दों के अर्थ-
• कर्कश - कठोर
• अस्फुट – अस्पष्ट
• वमन - उगलना
• चीत्कार – चीख
• चीत्कार – चीख
• पल्लेदारी - बोझ उठाने का काम
• रोष - क्रोध
• विस्मय - हैरानी
• पक्षपात - भेदभाव
• विक्षुब्ध - दुखी
• मूक - खामोश
• कृत्रिम - बनावटी
• द्वेष - वैर
• परिणत – बदल
• प्रतिच्छाया - प्रतिबिंब
• भाव-भंगिमा – हाव-भाव
• विक्षोभ - दुख
• तिरस्कार - उपेक्षा
• अवसाद - दीनता
• रोष - क्रोध
• विस्मय - हैरानी
• पक्षपात - भेदभाव
• विक्षुब्ध - दुखी
• मूक - खामोश
• कृत्रिम - बनावटी
• द्वेष - वैर
• परिणत – बदल
• प्रतिच्छाया - प्रतिबिंब
• भाव-भंगिमा – हाव-भाव
• विक्षोभ - दुख
• तिरस्कार - उपेक्षा
• अवसाद - दीनता