ज्योतिबा फुले - पठन सामग्री और सार NCERT Class 11th Hindi
सुधा अरोड़ा द्वारा रचित यह निबंध 'ज्योतिबा फुले' के बारे में है| इस पाठ में ज्योतिबा और उनकी पत्नी सावित्रीबाई द्वारा किए गए शिक्षा और सुधार संबंधी कार्यों का वर्णन किया है। उन्होंने समाज और धर्म में व्याप्त पारंपरिक और अनीतिपूर्ण रूढ़ियों का विरोध किया। महिलाओं के शिक्षा और अधिकारों के लड़ाई लड़ी जिसके कारण उन्हें परिवार और समाज के विरोध का सामना भी करना पड़ा|
भारत के सामाजिक विकास और व्यवस्था में बदलाव लानेवाले पाँच सुधारकों की सूची में महात्मा ज्योतिबा फुले का नाम नहीं है, इसका कारण यह है कि उन्होंने ब्राह्मण होते हुए भी ब्राह्मणवाद और पूँजीपति समाज का डटकर विरोध किया। वर्ण, जाति और वर्ग व्यवस्था में निहित शोषण प्रक्रिया को एक दूसरे का पूरक बताया। महात्मा ज्योतिबा फुले के विचार 'गुलाम गिरी', 'शेतकर यांचा आसूड', 'सार्वजनिक सत्यधर्म' आदि पुस्तकों में मिलते हैं। उनकी सोच समय से आगे की थी| वे अपने समय से आगे की सोच रखते थे। आधुनिक शिक्षा के लिए वे कहते थे यदि विशेष वर्गों को शिक्षा का अधिकार नहीं है ऐसी शिक्षा का क्या लाभ है उनसे ही 'कर' के रूप में पैसा इकट्ठा करके ऊँची जाति के बच्चों की शिक्षा पर खर्च करना कहाँ तक उचित है।
ज्योतिबा फुले के अनुसार जिस परिवार में पिता बौद्ध, माता ईसाई, बेटी मुसलमान और बेटा सत्य धर्मी हो वह परिवार आदर्श परिवार है। महात्मा ज्योतिबा फुले ने स्त्री शिक्षा पर बल देते हुए लिखा कि स्त्री-शिक्षा के दरवाजे पुरुषों ने इसलिये बन्द कर रखे हैं ताकि वह पुरुषों के समान स्वतन्त्रता न ले सकें। ज्योतिबा फुले ने स्त्री-समानता को प्रतिष्ठित करने वाली नई विवाह-विधि की रचना की। उन्होंने अपनी इस नई विधि से ब्राह्मण का स्थान ही हटा दिया। उन्होंने पुरुषप्रधान संस्कृति समर्थक और स्त्री की गुलामगिरी सिद्ध करने वाले सारे मन्त्र हटा दिये।
1888 में ज्योतिबा फुले ने 'महात्मा' की उपाधि को लेने से यह कहकर इन्कार कर दिया कि इससे मेरे संघर्ष का कार्य बाधित होगा। वह एक साधारण व्यक्ति के समान ही कार्य करना चाहते हैं। वे कथनी और करनी में विश्वास करते थे। स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार मिलना चाहिए, इसके लिए सबसे पहले अपनी पत्नी सावित्री बाई को शिक्षित किया। सावित्री बाई को भी बचपन से शिक्षा में रुचि थी लेकिन उनके पिता ने उन्हें नहीं पढ़ाया। उनके अनुसार स्त्रियाँ पढ़ने से बिगड़ जाती हैं।
14 जनवरी, 1848 को पुणे में भारत की सबसे पहली कन्या पाठशाला खुली। इसके बाद उन्होंने पिछड़े वर्गों और लड़कियों के लिए पाठशाला खोलनी आरंभ कर दी। इस काम में प्रतिष्ठित समाज ने दोनों का कड़ा विरोध किया। उन्हें ब्राह्मण समाज से बाहर निकाल दिया। ज्योतिबा के पिता ने भी उसे पुरोहितों और रिश्तेदारों से डरकर अपने घर से निकाल दिया। सावित्री को तरह-तरह से अपमानित किया जाता था। पर उन्होंने 1840-1890 तक पचास वर्षों तक एक प्रण होकर अपना मिशन पूरा किया। उन्होंने मिशनरी महिलाओं की तरह किसानों और अछूतों की झुग्गी-झोपड़ी में जाकर काम किया। ज्योतिबा फुले ने अपने घर की पानी की टंकी सभी जातियों के लिए खोल दी। ज्योतिबा फुले और सावित्री देवी ने सभी काम डंके की चोट पर किए। पिछड़े वर्गों और स्त्रियों को पारंपरिक रूढ़ियों से बाहर निकाला। आज के आधुनिक समाज में पढ़े-लिखे प्रतिष्ठित लोग कई साल तक साथ रहकर अलग हो जाते हैं| ज्योतिबा और सावित्री देवी का एक-दूसरे के प्रति समर्पित जीवन भाव की भावना अन्य दंपतियों के लिए एक आदर्श है।
कठिन शब्दों के अर्थ-
• अप्रत्याशित - जो आशा से परे हो
ज्योतिबा फुले के अनुसार जिस परिवार में पिता बौद्ध, माता ईसाई, बेटी मुसलमान और बेटा सत्य धर्मी हो वह परिवार आदर्श परिवार है। महात्मा ज्योतिबा फुले ने स्त्री शिक्षा पर बल देते हुए लिखा कि स्त्री-शिक्षा के दरवाजे पुरुषों ने इसलिये बन्द कर रखे हैं ताकि वह पुरुषों के समान स्वतन्त्रता न ले सकें। ज्योतिबा फुले ने स्त्री-समानता को प्रतिष्ठित करने वाली नई विवाह-विधि की रचना की। उन्होंने अपनी इस नई विधि से ब्राह्मण का स्थान ही हटा दिया। उन्होंने पुरुषप्रधान संस्कृति समर्थक और स्त्री की गुलामगिरी सिद्ध करने वाले सारे मन्त्र हटा दिये।
1888 में ज्योतिबा फुले ने 'महात्मा' की उपाधि को लेने से यह कहकर इन्कार कर दिया कि इससे मेरे संघर्ष का कार्य बाधित होगा। वह एक साधारण व्यक्ति के समान ही कार्य करना चाहते हैं। वे कथनी और करनी में विश्वास करते थे। स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार मिलना चाहिए, इसके लिए सबसे पहले अपनी पत्नी सावित्री बाई को शिक्षित किया। सावित्री बाई को भी बचपन से शिक्षा में रुचि थी लेकिन उनके पिता ने उन्हें नहीं पढ़ाया। उनके अनुसार स्त्रियाँ पढ़ने से बिगड़ जाती हैं।
14 जनवरी, 1848 को पुणे में भारत की सबसे पहली कन्या पाठशाला खुली। इसके बाद उन्होंने पिछड़े वर्गों और लड़कियों के लिए पाठशाला खोलनी आरंभ कर दी। इस काम में प्रतिष्ठित समाज ने दोनों का कड़ा विरोध किया। उन्हें ब्राह्मण समाज से बाहर निकाल दिया। ज्योतिबा के पिता ने भी उसे पुरोहितों और रिश्तेदारों से डरकर अपने घर से निकाल दिया। सावित्री को तरह-तरह से अपमानित किया जाता था। पर उन्होंने 1840-1890 तक पचास वर्षों तक एक प्रण होकर अपना मिशन पूरा किया। उन्होंने मिशनरी महिलाओं की तरह किसानों और अछूतों की झुग्गी-झोपड़ी में जाकर काम किया। ज्योतिबा फुले ने अपने घर की पानी की टंकी सभी जातियों के लिए खोल दी। ज्योतिबा फुले और सावित्री देवी ने सभी काम डंके की चोट पर किए। पिछड़े वर्गों और स्त्रियों को पारंपरिक रूढ़ियों से बाहर निकाला। आज के आधुनिक समाज में पढ़े-लिखे प्रतिष्ठित लोग कई साल तक साथ रहकर अलग हो जाते हैं| ज्योतिबा और सावित्री देवी का एक-दूसरे के प्रति समर्पित जीवन भाव की भावना अन्य दंपतियों के लिए एक आदर्श है।
कठिन शब्दों के अर्थ-
• अप्रत्याशित - जो आशा से परे हो
• शुमार - शामिल
• उच्चवर्णीय - ऊँची जाति के
• पूँजीवादी – जो पूँजी को सर्वाधिक महत्व प्रदान करता है
• संगृहित – एकत्रित करना
• अवधारणा - विचार
• सत्यधर्मी - सत्य धर्म का अचरण करनेवाला
• सर्वांगीण - सब प्रकार से
• संभ्रांत - श्रेष्ठ
• उच्चवर्णीय - ऊँची जाति के
• पूँजीवादी – जो पूँजी को सर्वाधिक महत्व प्रदान करता है
• संगृहित – एकत्रित करना
• अवधारणा - विचार
• सत्यधर्मी - सत्य धर्म का अचरण करनेवाला
• सर्वांगीण - सब प्रकार से
• संभ्रांत - श्रेष्ठ
• पर्दाफाश - उजागर करना
• पक्षपात - भेदभाव
• मठाधीश - किसी मठ का स्वामी
• हाट - बाज़ार
• आग बबूला होना - अत्याधिक क्रोध करना
• कन्याशाला - लड़कियों की पाठशाला
• आमादा - तत्पर
• पक्षपात - भेदभाव
• मठाधीश - किसी मठ का स्वामी
• हाट - बाज़ार
• आग बबूला होना - अत्याधिक क्रोध करना
• कन्याशाला - लड़कियों की पाठशाला
• आमादा - तत्पर