पांडवों का धृतराष्ट्र के प्रति व्यवहार Class 7 Hindi Summary Bal Mahabharat
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पांडवों का अब सारे राज्य पर अधिकार हो गया| राजकाज का भार संभालने के बाद भी उन्हें सुख और संतोष प्राप्त नहीं हो रहा था| युद्ध में मारे गए अपनों का दुःख उन्हें पीड़ा पहुँचाता था। युधिष्ठिर ने अपने भाइयों को धृतराष्ट्र को किसी प्रकार का भी दुःख न पहुँचाने की आज्ञा दे रखी थी। उनकी सुख-सुविधा में पांडव लगे रहते थे। प्रयास यह रहता था कि वृद्ध धृतराष्ट्र को अपने पुत्रों का अभाव न हो। धृताराष्ट्र भी पांडवों से स्नेह करते थे। भीम कभी-कभी उन्हें कटु शब्द कह देता था और धृतराष्ट्र के आदेशों का पालन नहीं होने देता था। धृतराष्ट्र भीम की बातों से आहत हो जाते थे परंतु गांधारी भीम की बातों को चुपचाप सह लेती थी।
धृतराष्ट्र का मन सुख-भोग में नहीं लगता था। संसार से दूर जाने की इच्छा से एक दिन धृतराष्ट्र युधिष्ठिर के भवन में गए और उनसे वन जाने की इच्छा की| धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती संन्यास लेकर वन चले गए। युधिष्ठिर ने कुन्ती को रोकना चाहा किन्तु वह नहीं मानी। उन्होंने तीन वर्ष तक वन में तपस्वियों-सा जीवन व्यतीत किया और एक दिन जंगल में लगी आग में अपने शरीरों की आहुति दे दी। धृतराष्ट्र के साथ संजय भी आए थे, वे जंगल की आग से बचकर हिमालय पर चले गए।
शब्दार्थ-
• एकछत्र - पूरी तरह से
• बिछोह - वियोग
• परिणत - पूरा
• अमित - कभी न मिटने वाली
• खिन्न - दुःखी
• विराग - सांसारिक मोह-माया से विरक्ति
• वल्कल - वृक्षों की छाल के वस्त्र
• अवाक् - मौन