BSEB Solutions for भारतमाता (Bharatmata) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

भारतमाता - सुमित्रानंदन पंत प्रश्नोत्तर

Very Short Questions Answers (अतिलघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. पंतजी ने अपनी कविताओं में प्रकृति के किस पक्ष का उद्घाटन किया है ?
उत्तर

पंतजी ने अपनी कविताओं में प्रकृति के सुकोमल पक्ष का उद्घाटन किया है।


प्रश्न 2. ‘भारत माता’ कविता पर किस विचारधारा का प्रभाव है ?
उत्तर

भारत माता’ कविता पर प्रगतिवाद का प्रभाव है।


प्रश्न 3. कवि पंत के ‘भारत माता’ कविता में किस काल के भारत का चित्रण है ?
उत्तर

कवि पंत के ‘भारत माता’ कविता में भारत के पराधीन काल का चित्रण है।


प्रश्न 4. ‘भारत माता’ कविता में भारत के किस रूप का उल्लेख है ?
उत्तर

‘भारत माता’ कविता में भारत के दीन-हीन का उल्लेख है।


प्रश्न 5. ‘भारत माता’ कविता में कैसी शब्दावली का प्रयोग किया गया है ?
उत्तर

‘भारत माता’ कविता में तत्सम शब्दावली का प्रयोग किया गया है।


Short Question Answers (लघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. कविता के प्रथम अनुच्छेद में कवि भारतमाता का कैसा चित्र प्रस्तुत करता है ?
उत्तर

कविता के प्रथम अनुच्छेद में कवि भारत माता को ग्रामवासिनी रूप में चित्र प्रस्तुत किया है। जिसमें भारत माता का वर्ण खेत की हरितिमा के सादृश श्यामल है। धूल धूसरित भारत माता का आँचल है। गंगा-यमुना ये दो आँखें हैं तथा उसका जल भारत माता के अश्रु-जल (आँसू) हैं। भारत माता मिट्टी की मूर्ति जैसी उदासिनी हैं।

प्रश्न 2. भारतमाता का ह्रास भी राहुग्रसित क्यों दिखाई पड़ता है ?
उत्तर

भारत माता का स्वर्णिम फसल विदेशियों के पैर तले रौंदा जा रहा है। धरती जैसी सहनशील होकर भी भारत माता का मन कुंठित (गतिहीन) दिख रही है। रूलाई से काँपता हुआ मौन मुस्कान वाली भारत माता का ह्रास भी राहु ग्रसित लग रही है।

प्रश्न 3. कवि भारतमाता को गीता प्रकाशिनी मानकर भी ज्ञानमूढ़ क्यों कहता है ?
उत्तर

भारत माता के भौंह चिह्न युक्त दिख रही है। दिशाएँ अँधकार से ढंके हैं। गुलामी के कारण आँखें झुकी हैं, आकाश वाष्प से अच्छादित है। भारत माता के मुख-मंडल की शोभा कलंकित चन्द्रमा से उपमा देने योग्य है। इसीलिए गीता प्रकाशिनी भारत माता को कवि ने ज्ञान मूढ कहा है।

प्रश्न 4. कवि की दृष्टि में आज भारतमाता का तप-संयम क्यों सफल है ?
उत्तर

भारत माता अपनी संतानों (भारतवासियों) को अहिंसा रूपी दूध अपने स्तन से पिलाई है जो (अहिंसा) जन के मन का भय दूर करता है तथा संसार वालों की अज्ञानता और भ्रम को दूर करने वाली है। भारत अहिंसा को प्राप्त कर स्वतंत्रता प्राप्ति की ओर अग्रसर हो रहा है। इसलिए कवि की दृष्टि में आज भारत माता का तप-संयम सफल हो रहा है।


Long Question Answer (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. कवि भारतमाता को गीता प्रकाशिनी मानकर भी ज्ञान समूह क्यों कहता है?
उत्तर

यह सर्वविदित है कि प्राचीन काल से ही भारत जगत गुरु कहा है | वेद वेदांग दर्शन, ज्ञान विज्ञान की शोध स्थली भारत विश्व को ज्ञान देते रहा है | 'गीता' जो मानव को कर्मण्यता का पाठ पढाता है जिसमें मानवीय जीवन के गूढ़ रहस्य छिपे हैं, यही सृजित किया जाता है। लेकिन परतंत्र भारत की ऐसी दुर्दशा हुई कि यहाँ के लोग खुद दिशाविहीन हो गये, दासता में बँधकर अपने अस्मिता को खो दिये। आत्मनिर्भरता समाप्त हो गया। परावलम्बी जीवन निकृष्ट, नीरस, अज्ञानी नियन एवं असभ्य हो गया। इसलिए कवि कहता है कि भारतमाता गीता प्रकाशिनी है फिर भी आज जान मूद बनी हुई है।

प्रश्न 2, 'स्वर्ण शस्य पर पद तल लुंठित, धरती-सा सहिष्णु मन कुंठित की व्याख्या करें।
उत्तर

प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य के सुमित्रानंदनपंत रचित 'भारतमाता' पाठ से उद्धत है। इसमें कवि न परतंत्र भारत का साकार चित्रण किया है। भारतीय ग्राम के खेतों में उगे हुए फसल को भारतमाता का श्यामला शरीर मानते हुए कवि ने कहा है कि भारत की धरती पर सुनहरा फसल सुशोभित है और वह दूसरे के पैरों तले रौंद दिया गया है।
प्रस्तुत व्याख्येय में कवि ने कहा है कि भारत पर अंग्रेजी हुकमत हो गयी है। यहाँ के लोग अपने ही घर में अधिकार विहीन हो गये हैं। पराधीनता के चलते यहाँ की प्राकृतिक शोभा भी उदासीन प्रतीत हो रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ कवि की स्वर्णिम फसल पैरों तले रौंद दी गयी है और भारत माता का मन सहनशील बनकर कुठित हो रही है। इसमें कवि ने पराधीन भारत की कल्पना को मूर्त रूप दिया है।

प्रश्न 3. 'चितित भृकुटि क्षितिज तिमिरांकित, नमित नयन नभ वाध्याच्छादित की व्याख्या करें।
उत्तर

प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य के 'भारतमाता' पाठ से उद्धृत है जो सुमित्रानन्दन पंत द्वारा रचित है। इसमें कवि ने भारत का मानवीकरण करते हुए पराधीनता से प्रभावित भारतमाता के उदासीन, दु:खी एवं चिन्तित रूप को दर्शाया है।
प्रस्तुत व्याख्येय में कवि ने चित्रित किया है कि गुलामी में जकड़ी भारतमाता चिन्तित है, उनकी भृकुटि से चिन्ता प्रकट किया है कि गुलामी रूपी अंधकार की छाया पड़ रही है, माता की आँखें अश्रुपूर्ण हैं और आँसू वाष्प बनकर आकार को आच्छादित कर लिया है। इसके माध्यम से परतंत्रता की दु:खद स्थिति का दर्शन कराया गया है। पराधीन भारत माता उदासीन है इसका बोध कराने का पूर्ण प्रयास किया है।


काव्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर

1. भारतमाता ग्रामवासिनी
खेतों में फैला है श्यामल
धूल-भरा मैला-सा आँचल
गंगा-यमुना में आँस-जल
मिट्टी की प्रतिमा
उदासिनी !
दैन्य जड़ित अपलक नत चितवन,
अधरों में चिर नीरव रोदन,
युग-युग के तप से विषण्ण मन
वह अपने घर में
प्रवासिनी!

प्रश्न.
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखें।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) पद्यांश का काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर

(क) कविता- भारतमाता।
कवि- सुमित्रानंदन पंत

(ख) प्रस्तुत पद्यांश में हिन्दी काव्य धारा के प्रख्यात सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत ने भारतमाता का यथार्थ चित्र खींचा है। गुलामी के जंजीर में जकड़ी हुई भारत माता अंत:करण से कितनी व्यथित है इसी का चित्रण कवि यथार्थवादी धरातल पर कर रहे हैं। यहाँ कवि भारतमाता
को ग्रामवासिनी के रूप में चित्रण किया है क्योंकि भारत की अधिकांशतः जनता गाँवों में ही . निवास करती है। साथ ही प्रकृति का अनुपम सौंदर्य ग्रामीण क्षेत्रों में ही देखने को मिलते हैं।

(ग) कवि मुख्यतः मानवतावादी हैं और प्रकृति के पुजारी हैं। इसलिए यहाँ भी ग्रामीण क्षेत्र के प्रकृति का मानवीकरण करते हुए कहते हैं कि हमारी भारतमाता गाँवों में निवास करती हैं। भारत की भोली-भाली जनता गाँवों में रहती है जहाँ प्रकृति भी अनुपम सौंदर्य के साथ निवास करती है। ग्रामीण क्षेत्रों के विस्तृत भू-भाग में जो फसल लहलहाते हैं वे भारत माता के श्यामले शरीर के समान सुशोभित हो रहे हैं। भारत माता का धरती रूपी विशाल आँचल धूल-धूसरित और मटमैला दिखाई पड़ रहा है। गुलामी की जंजीर में जकड़ी हुई भारत माता कराह रही है। अर्थात् भारतीय जनता के क्रन्दन के साथ ऐसा लगता है कि भारत की प्रकृति भी परतंत्रता के कारण काफी व्यथित है। मिट्टी की प्रतिमा के समान निर्जीव और चेतना रहित होकर चुपचाप शांत अवस्था में भारत माता बैठी हुई है और अंत:करण से कराहती हुई गंगा और यमुना के धारा के रूप में आँसू बहा रही है।
यह भारत माता दीनता से जकड़ी हुई है। भारत की परतंत्रता पर अपने आपको आश्रयहीन महसूस कर रही है और जैसे लगता है कि बिना पलक गिराये हुए अपनी दृष्टि को झुकाये हुए कुछ गंभीर चिंता में पड़ी हुई है। हमारी भारत माता अपने ओठों पर बहुत दिनों से क्रंदन की उदासीन भाव रखी हुई है। जैसे लगता है कि बहुत युगों से अंधकार और विषादमय वातावरण में अपने आपको जकड़ी हुई महसूस कर रही है और यह भी प्रतीत हो रहा है कि अपने ही घर में प्रवासिनी बनी हुई है। इसका अभिप्राय यह है कि अंग्रेज शासक खुद भारत में रहकर भारतवासियों को शासन में कर लिया है।

(घ) प्रस्तुत अवतरण में भारतीय परतंत्रतावाद का सजीव चित्रण किया गया है। भारत के प्राकृतिक वातावरण का मानवीकरण किया गया है जिसमें भारत माता को रोती हुई मिट्टी की प्रतिमा बनाकर दर्शाया गया है। मिट्टी की प्रतिमा खेतों में लहलहाते फसल और धूल-धूसरित आँचल के माध्यम से कवि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों के प्रति असीस आस्था और विश्वास व्यक्त किया है। साथ ही पर्यावरण की सुरक्षा में ग्रामीण क्षेत्रों के प्राकृतिक वातावरण की प्राथमिकता देना चाहता है।

(ङ)

  • प्रस्तुत अंश में प्रकृति सौंदर्य का यथार्थवादी और अनूठा चित्र खींचा गया है।
  • प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत की सुकुमारता यहाँ पूर्ण लाव-लश्कर के साथ दिखाई पड़ती है।
  • भाव के अनुसार भाषा का प्रयोग अति प्रशंसनीय है।
  • अलंकार योजना की दृष्टि से मानवीकरण अलंकार का जबर्दस्त प्रभाव है। इसके साथ अनुप्रास, रूपक और उपमा की छटा कविता में जान डाल दी है।
  • कविता में खड़ी बोली का पूर्ण वातावरण दिखाई पड़ता है।
  • शब्द योजना की दृष्टि से तत्सम एवं तद्भव शब्द अपने पूर्ण परिपक्वता में उपस्थित हुए हैं। कविता संगीतमयी हो गयी है।


2. तीस कोटि सन्तान नग्न तन,
तीस कोटि सन्तान नग्न
अर्ध क्षधित, शोषित, निरस्त्रजन,
मूढ़, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन,
नत मस्तक
तरू-तल निवासिनी !
स्वर्ण शस्य पर-पद-तल लुंठित,
धरती-सा सहिष्णु मन कुंठित
क्रन्दन कंपित अधर मौन स्मित,
राहु ग्रसित
शरदेन्दु हासिनी !

प्रश्न.
(क) कविता एवं कवि का नाम लिखें।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) पद्यांश का काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर

(क) कविता.भारतमाता
कवि- सुमित्रानंदन पंत।

(ख) प्रस्तुत अवतरण में हिन्दी छायावादी विचारधारा के महानतम कवि सुमित्रानंदन पंत भारतवासियों का चित्र खींचा है। यहाँ दलित, अशिक्षित निर्धन, कुंठित, भारतवासी अतीत की गरिमा को भुलाकर वर्तमान की वैभवहीनता प्रणाली में जीवनयापन कर रहे हैं। परतंत्रता की जंजीर भारतवासियों को ऐसां जकड़ लिया है कि उनका जीवन अंधकारमय वातावरण में बिलबिलाता हुआ भटक रहा है।

(ग) कवि प्रस्तुत अंश में भारतवासियों के बारे में कहता है कि भारत के तीस करोड़ जनता अंग्रेजों के द्वारा शोषित होने के कारण वस्त्रहीन हो गये हैं। अर्थात् जिस समय भारत गुलाम था उस समय भारत की जनसंख्या तीस करोड़ थी। गरीबी की मार ऐसी थी कि उनके शरीर पर साबुन कपड़े भी नहीं थे। आधा पेट खाकर शोषित होकर, निहत्थे होकर, अज्ञानी और असभ्य होकर जीवनयापन कर रहे थे। दासता का बंधन समस्त भारतीयों को अशिक्षित और निर्धन बना दिया था। जैसे लगता था कि हमारी भारत माता ग्रामीण वृक्षों के नीचे सिर झुकाये हुए कोई गंभीर
सोच में पड़ी बैठी हुई है।
खेतों में चमकीले सोने के समान लहलहाते हुए फसल किसी दूसरे के पैरों के नीचे रौंदा जा रहा है और हमारी भारत माता धरती के समान सहनशील होकर हृदय में घुटन और क्रंदन . का वातावरण लेकर जीवन जी रही है। मन ही मन रोने के कारण भारतमाता के अधर काँप रहे हैं। उसके मौन मुस्कुराहट भी समाप्त हो गयी है। साथ ही शरद काल में चाँदनी के समान हँसती हुई भारत माता अचानक राहु के द्वारा ग्रसित हो गई है।

(घ) प्रस्तुत अंश में गुलामी से जकड़ा भारतवासियों का बहुत ही दर्दनाक चित्र खींचा गया है। यह चित्र आज भी पूर्ण प्रासंगिक है। इसके माध्यम से कवि समस्त भारतवासियों को अतीत की गहराई में ले जाना चाहते हैं। साथ ही राहुरूपी अंग्रेजों की कट्टरता और संवेदनहीनता का दर्शन करवाते हैं।

(ङ)

  •  प्रस्तुत कविता हिंदी की यथार्थवादी कविता के एक नये उन्मेष की तरह है।
  • यह प्राकृतिक सौंदर्य की छवि को दर्शाती है जिससे यह मनोरम कही जा सकती है।
  • अलंकार योजना की दृष्टि से मानवीकरण अलंकार से अलंकृत है।
  • अनुप्रास, रूपक और उपमा की छटा कविता में जान डाल दी है।
  • कविता संगीतमयी है।


3. चिंतित भृकटि क्षितिज तिमिरांकित,
नमित नयन नभ वाष्पाच्छादित,
आनन श्री छाया-शशि उपमित,
ज्ञान मूढ़
गीता प्रकाशिनी!
सफल आज उसका तप संयम,
पिता अहिंसा स्तन्य सुधोपम,
हरती जन-मन-भय, भव-तम-भ्रम,
जग-जननी
जीवन-विकासिनी!

प्रश्न.
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखें।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) पद्यांश का काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर

(क) कविता- भारतमाता।
कवि सुमित्रानंदन पंत।

(ख) प्रस्तुत अवतरण में हिन्दी छायावादी के महान प्रवर्तक सुमित्रानंदन पंत परतंत्रतावाद , में भारतवासियों की स्थिति कितनी कठोरतम थी एवं कितना जटिल जीवन था, इसी का वर्णन यथार्थ के धरातल पर करते हैं।

(ग) कवि भारत माता का नाम लेकर सम्पूर्ण भारतीय भाषावाद, जातिवाद, संप्रदायवाद एवं राजनीतिवाद को एकता के सूत्र में पिरोना चाहते हैं। तब तो भारत की तीस करोड़ जनता के मनोभिलाषा को दर्शाते हैं। हमारी भारतमाता की भृकुटी चिंता से ग्रसित है। सम्पूर्ण धरातल, परतंत्रारूपी अंधकार से घिरा हुआ है। सभी भारतवासियों के नेत्र झुके हुए हैं। भारतवासियों का हृदय-रूपी आकाश आँसूरूपी वाष्प से ढंक गया है।
चंद्रमा के समान सुन्दर और प्रसन्न मुख उदासीन होकर कोई घोर चिंता के सागर में डूब गया है जो भारतमाता अज्ञानता को समाप्त करनेवाली गीता उत्पन्न की है वही आज अज्ञानता ‘के वातावरण में भटक रही है।
इतने कठोरतम जीवन के बाद भी हमारी भारतमाता का तप और संयम में कमी नहीं आयी है। अपने समस्त भारतवासियों को अहिंसा का दूध पिलाकर उनके मन के भय अज्ञानता, प्रेमहीनता एवं भ्रमशीलता को दूर करती हुई सम्पूर्ण जगत की जननी होकर जीवन को विकास करनेवाली है।

(घ) प्रस्तुत पद्यांश में पराधीन भारत की दीन हालत की वास्तविक झलक मिलती है। इसमें पराधीनता से चिंतित भारतमाता की उदासीन चेहरा को जीवंत रूप में चिंत्रित किया गया है। नम आँखें, अश्रुरूपी वाष्प, गुलामी की अंधकाररूपी छाया के माध्यम से भारत माता दुखी भाव को जीवंत रूप में दर्शाया गया है। पद्यांश में भारतमाता विशाल छवि की कल्पना करते हुए जग जननी की संज्ञा देकर इसकी महत्ता को उजागर किया है। इस काव्यांश के माध्यम से ज्ञान, अहिंसा, तप, संयम को धारण करनेवाली भारत माता जीवन विकासिनी है ऐसी चेतना विश्व में जगाने का प्रयास किया गया है।

(ङ)

  • यहाँ प्राकृतिक सौंदर्य का प्रकटीकरण है।
  • भाव के अनुसार भाषा का प्रयोग अति प्रशंसनीय है।
  • शब्द योजना की दृष्टि से तत्सम एवं तद्भव शब्द अपने पूर्ण परिपक्वता में उपस्थित हए हैं।
  • अलंकार योजना की दृष्टि से मानवीकरण अलंकार है।
  • इसमें अनुप्रास, रूपक और उपमा की छटा निहित है।
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