BSEB Solutions for जनतंत्र का जन्म (Jantantra ka Janm) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board
जनतंत्र का जन्म - रामधारी सिंह दिनकर प्रश्नोत्तर
Very Short Questions Answers (अतिलघु उत्तरीय प्रश्न)
प्रश्न 1. दिनकर किस भावधारा के कवि हैं ?
उत्तर
दिनकर प्रवाहमान राष्ट्रीय भावधारा के प्रमुख कवि हैं।
प्रश्न 2. दिनकर ने काव्य के अतिरिक्त और क्या लिखा है ?
उत्तर
दिनकर ने काव्य के अतिरिक्त गद्य रचनाएँ भी की हैं जिनमें निबंध, डायरी आदि शामिल हैं।
प्रश्न 3. “जनतंत्र का जन्म’ कविता में किसका जयघोष है ?
उत्तर
‘जनतंत्र का जन्म’ शीर्षक कविता में भारत में जनतंत्र की स्थापना का जयघोष है।
प्रश्न 4. जनता की भृकुटि टेढ़ी होने पर क्या होता है ?
उत्तर
जनता की भकुटि टेढ़ी होने पर क्रांति होती है, राजसत्ता बदल जाती है।
प्रश्न 5. जनतंत्र में किसका राज्याभिषेक होता है ?
उत्तर
जनतंत्र में जनता का राज्याभिषेक होता है। वही स्वामी होता है।
प्रश्न 6. जनतंत्र के देवता कौन हैं ?
उत्तर
जनतंत्र के देवता हैं, आम लोग, किसान और मजदूर।
प्रश्न 7. दिनकर की काव्य-भाषा कैसी है ?
उत्तर
दिनकर की काव्यभाषा ओजस्वी है।
Short Question Answers (लघु उत्तरीय प्रश्न)
प्रश्न 1. कवि की दृष्टि में समय के रथ का घर्घर-नाद क्या है ? स्पष्ट करें।
उत्तर
पराधीनता की समाप्ति और स्वाधीनता की प्राप्ति कवि की दृष्टि में समय के रथ का घर्घर-नाद है अर्थात् जनता का समय आया अपना जनतंत्र को कायम करने का।
प्रश्न 2. कविता के आरंभ में कवि भारतीय जनता का वर्णन किस रूप में करता है?
उत्तर
कविता के आरंभ में कवि भारतीय जनता का वर्णन अबोध, मूक मिट्टी की मूरत के रूप में किया है जो सब कुछ सहती आ रही है। गहन वेदना में भी जो भूख नहीं खोल पाई।
प्रश्न 3. कवि जनता के स्वप्न का किस तरह चित्र खींचता है?
उत्तर
कवि जनता के स्वप्न का चित्र अजय जो अन्धकार का भी वक्ष-स्थल चीर डाले, इस प्रकार उमड़ता हुआ खींचा है।
प्रश्न 4. विराट जनतंत्र का स्वरूप क्या है? कधि किनके सिर पर धरने की बात करता है और क्यों ?
उत्तर
भारत के विराट जनतंत्र का स्वरूप 33 करोड़ जनता के हित काही कवि 33 करोड़ भारतीय जनता के सिर पर मुकुट धरने की बात करता है क्योकि प्रजातंत्र में प्रजा हो राजा होता है।
प्रश्न 5. कवि की दृष्टि में आज के देवता कौन हैं और वे कहाँ मिलेंगे।
उत्तर
कवि की दृष्टि में आज का देवता जनता है जो सड़क पर गिट्टी तोडते या खेल-खलिहानों में काम करते मिलेंगे
Long Question Answer (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)
प्रश्न 1. कवि के अनुसार किन लोगों की दृष्टि में जनता फूल या दुधमुंही बच्ची की तरह है और क्यों ? कवि क्या कहकर उनका प्रतिवाद करता है?
उत्तर
कवि के अनुसार राजनायक लोगों की दृष्टि में जन फूल या दुधमुंही बच्ची की तरह है। क्योंकि अब तक राजनायक सोचते आ रहे थे कि जनता पर राजा का अधिकार होता है। जब चाहो उससे अपना राजसिंहासन सजा लो। अथवा दुधमुंही बच्ची की तरह जनता को कुछ देकर उनका मन बहलाकर राज्य का उपभोग कर लो। जिसका प्रतिवाद कवि ने जनता को भगवान कहकर किया है जो सडक पर पत्थर तोड़ते या खेतों में काम करते मिलेंगे।
प्रश्न 2. 'जनतन्त्र का जन्म' कविता का सारांश लिखें।
उत्तर
सदियों से गुलाम भारत स्वतंत्र हो गया। जो भारतीय तुच्छ माने जाते थे वे अब ताज पहनने को तैयार हैं। उन्हें राह दो, समय के रथ के पहिए की आवाज सुनो और सिंहासन खाली करो अब सिंहासन पर आरूढ़ होने के लिए जनता स्वयं आ रही है।
जनता जिसको अबोध, मूक मिट्टी की मूरतें माना जा रहा था, जो सब कुछ सहने वाली, भयंकर तकलीफ काल में भी मुख नहीं खोलने वाली वही जनता तैयार है। जिसने बड़ी-बड़ी वेदना सहती रही है। सब ठीक है जनता सहती आ रही है लेकिन जनमत का भी कुछ अर्थ होता है।
जनता को राजनायक लोग फूल मानते आ रहे थे जब चाहो सजा लो या जब चाहे उतार दो। जनता को दूध मुंही बच्ची की तरह राजनायक लोग समझते आ रहे थे जिसे बहलाने के लिए कुछ देकर बहला दिया जाता था।
लेकिन जनता जब कोप से व्याकुल होकर भौंह चढ़ाती है तो धरती डोलने लगती है। आँधी आ जाती है। अब समय जनता का आ गया है उन्हें रास्ता दो, समय की चक्र को घूमने की आवाज सुनो, सिंहासन खाली करो, जनता अब स्वयं राज्य सत्ता संभालने आ रही है।
जनता की हुंकार से महलों की नींव भी उखड़ जाती है। जनता की साँस (आह) में ताज भी उड़ जाता है। जनता की राह कोई नहीं रोक सकता है। समय में भी वह शक्ति नहीं है। जनता जिधर जाती है समय भी उधर चल पड़ती है।
वर्षों, सदियों या हजारों साल की पराधीनता का अन्धकार समाप्त हो गया। आकाश का द्वार भी दहक जाता है जब जनता स्वतंत्रता का स्वप्न देखता है तो अन्धकार का भी वक्ष चीर देता है।
भारत में विराट जनतंत्र की स्थापना हो गई है। 33 करोड़ जनता को सिंहासन मिलने वाला है जो जनता के हित में होगा। आज प्रजा का अभिषेक होगा। तैंतीस करोड जनता भारत का राजा बनेगा।
कवि कहता है आज का देवता जनता होता है। जो मंदिर, राजमहल, तहखाना आदि में नहीं मिलते हैं वे रास्ते पर गिट्टी तोड़ते या खेत-खेलिहानों में मिलेगा। - कुदाल और हल का शासन पर अधिकार होने वाला है जो धूसरित सोने से शृंगार सजा लेती है। जनतंत्र का समय आ गया। जनता को राह दो, समय के रथ पर घर्घर की आवाज सुनो, सिंहासन खाली करो क्योंकि अब जनता स्वयं अपना सत्ता संभालने आ रही है।
काव्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर
1. सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
जनता? हाँ, मिट्टी की अबोध मूरतें वही,
जाड़े-पाले की कसक सदा सहनेवाली,
जब अंग-अंग में लगे साँप हो चूस रहे,
तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहने वाली।
जनता ? हाँ, लम्बी-बड़ी जीभ की वही कसम,
“जनता, सचमुच ही, बड़ी वेदना सहती है।”
“सो ठीक, मगर, आखिर, इस पर जनमत क्या है?”
“है प्रश्न गूढ़; जनता इस पर क्या कहती है ?”
मानो, जनता हो फूल जिसे एहसास नहीं,
जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में;
अथवा कोई दुधमुंही जिसे बहलाने के
जन्तर-मन्तर सीमित हों चार खिलौनों में।
लेकिन, होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढ़ाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
प्रश्न.
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखें।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) पद्यांश का काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर
(क)कविता-जनतंत्र का जन्म।
कवि-रामधारी सिंह दिनकर।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश में ‘जनतंत्र’ की स्थापना के लिए जंगी प्रेरणा को उजागर किया गया है। सदियों से देशी-विदेशी, सत्तालोलुप लोग भारत की राज सत्ता पर अपना वर्चस्व कायम रखकर भारत की जनता को गुमराह रखें। अब क्रांति की घड़ी आ गई है। जनता में जागृति आ गयी है।। यहाँ की सहनशील जनता अपने सामर्थ्य का आभास कर चुकी है। इन्हीं बातों को उजागर करते हुए कवि ने इस पद्यांश में जनतंत्र-स्थापना की बात कही है।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश में कवि कहते हैं कि भारत में सदियों से राजतंत्र रहा है। राज सत्ताधारी भोली-भाली जनता पर राज किये हैं और सुख भोग किये हैं। जनता चुपचाप शासक का अनुगामी बनकर जीवन व्यतीत करती रही है। हमेशा जनता शांत रही है। सत्ताधारी मनमानी करते रहे हैं। लेकिन अब कालचक्र क्रांति का संदेश लेकर आ चुका है। समय बदल चुका है। सोयी हुई जनता जाग उठी है। वह अपनी शक्ति का आभास कर चुकी है। अब राजतंत्र चलनेवाला नहीं है। जनता स्वयं राजेगद्दी पर बैठेगी। अब ऐसी व्यवस्था कायम होने का समय आ गया है जिसमें भारत कीतैंतीस करोड़ जनता राज करेगी कोई एक व्यक्ति राजा नहीं होगा। जनतंत्र स्थापित हेतु समय रूपी रथ आ रहा है जिस पर जनता आरूढ़ होकर आ रही है। नवीन क्रांति का बिगुल बज चुका है।
जनता को सिंहासन पर आसीन करने के लिए सिंहासन को खाली करना होगा। यही समय की पुकार है। जनता अबोध मूरत होती है, सहनशील होती है, जब अंग-अंग को साँप चूसते रहते हैं तब भी मुँह नहीं खोलती है, जनता के मेहनत पर राज करता है। जनता को बहला-फुसलाकर कुछ छोटे-मोटे प्रलोभन देकर स्वयं सत्ता-सुख भोग में लिप्त रहता है। देश की संपत्ति का उपयोग जनता की भलाई में न करके अपनी इच्छाओं, कामनाओं की पूर्ति में लिप्त रहता है। फिर भी जनता चुपचाप सब कुछ सहती रहती है। लेकिन जनता में वह शक्ति है जब वह कोपाकुल होती है, जब जाग जाती है, तब आँधी-तूफान की तरह चल पड़ती है जिसे रोकना मुश्किल है। जनता की जागृति बवंडर लानेवाली होती है जिसका सामना सत्ताधारियों के लिए करना मुश्किल होता है। इसलिए कवि कहते हैं कि अब भारत में समय की पुकार जनतंत्र स्थापना के पक्ष में है। राजतंत्र व्यवस्था समाप्त हो रही है। इसलिए जनता का स्वागत करते हुए राजगद्दी उसे सौंपने की तैयारी किया जाय।
(घ) प्रस्तुत पद्यांश में जनतंत्र की स्थापना की बात कही गयी है। साथ ही जनता की शक्ति का बोध कराया गया है। कवि रामधारी सिंह दिनकर ने ओजस्वी भाव में जनता की महत्ता का बोध कराते हुए उसकी सहनशीलता, धैर्य की बात बड़े ही सहज रूप में कहा है। साथ ही भारत की जनता को अपना अधिकार प्राप्त करने जनतंत्र स्थापित करने, राज सिंहासन पर आरूढ़ होने की प्रेरणा का भाव कवि ने जागृत कर सफल प्रयास किया है। इस पद्यांश में जनता की शक्ति का व्यापक चित्रण किया गया है जो ओज का भाव जगाता है।
(ङ) (i) कविता में खड़ी बोली का प्रयोग है।
(ii) इसमें ओज गुण की प्रधानता है साथ ही रूपक की विधा का प्रयोग है।
(ii) कविता में संगीतमयता विद्यमान है।
2. हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती
माँसों के बल से ताज हवा में उड़ता है;
जनता की रोक राह, समय में ताव कहाँ?
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है।
अब्दों, शताब्दियों, सहस्रब्द का अन्धकार बीता;
गवाक्ष अम्बर के दहके जाते हैं;
यह और नहीं कोई, जनता के स्वप्न अजय चीरते तिमिर का वक्ष उमड़ते आते हैं।
सबसे विराट जनतंत्र जगत का आ पहुंचा,
तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तैयार करो;
अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।
आरती लिए तू किसे ढूँढता है मूरख, मन्दिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में ?
देवता कहीं सड़कों पर मिट्टी तोड़ रहे, देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में।
फावड़े और हल राजदंड बनने का हैं,
धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
प्रश्न.
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखें।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) पद्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर
(क) कविता-जनतंत्र का जन्म।
कवि- रामधारी सिंह दिनकर
(ख) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने जनता की शक्ति का आभास कराने का पूर्ण प्रयास किया है। कवि ने कहा है कि राजतंत्र की समाप्ति की बेला आ गई है। अब जनतंत्र का उदय होनेवाला है। समय बदल चुका है। अब राजा का नहीं बल्कि प्रजा का अभिषेक होगा। भारत की मेहनती, खेतों में काम करनेवाली जनता, मजदूरी करनेवाली प्रजा ही राजा बनेगी। यही समय की पुकार है। यह अटल सत्य है।
(ग) प्रस्तुत पद्यांश में कवि रामधारी सिंह दिनकर ने जनता में निहित व्यापक शक्ति को उजागर किया है। इसमें कहा गया है कि जनता जब जाग जाती है, अपने शक्ति बल का अभ्यास करकं जब चल पड़ती है तब समय भी उसकी राह नहीं रोक सकती बल्कि जनता ही जिधर चाहंगी कालचक्र को मोड़ सकती है। युगों-युगों से अंधकारमय वातावरण में जीवन व्यतीत कर रही जनता अब जागृत हो चुकी है।
युगों-युगों का स्वप्न साकार हेतु कदम बढ़ चुके हैं जिसे अब रोका नहीं जा सकता। भारत में सबसे विराट जनतंत्र स्थापित होना तय हो गया है। कवि कहते हैं कि अब इस नवोदित व्यवस्था में राजा नहीं बल्कि प्रजा स्वयं राजगद्दी पर आसीन होगी। भारत की तत्कालीन तैंतीस करोड़ जनता राजा होगी। कवि संकेत करते हैं कि राज्याभिषेक हेतु एक सिंहासन और एक मुकुट नहीं होगा बल्कि तैंतीस करोड़ राजसिंहासन और उतने ही राजमुकुट की तैयारी करनी होगी।
भारत की प्रजा की महत्ता को उजागर करते हुए कवि कहते हैं कि आरती लेकर मन्दिरों और राजमहलों में जाने की आवश्यकता नहीं है बल्कि भारत में मजदूरी करते लोग, खेतों में काम कर रही प्रजा, मजदूर, किसान ही यहाँ के देवता हैं उन्हीं को आरती करने की जरूरत है। अब फावड़े और हल राजदंड होंगे, धूसरता स्वर्ण-शृंगार का रूप लेगा। अर्थात् अब मेहनती, परिश्रमी प्रजा को उसका वास्तविक हक मिलेगा। जनतंत्र की जयघोष होगी। समय की इस पुकार को समझते हुए जनता को आरूढ़ होने के लिए सिंहासन खाली करना होगा।
(घ) प्रस्तुत पद्यांश में जनमत की शक्ति के स्वरूप का प्रदर्शन है। इसमें ओज गुण की प्रधानता है। इसके माध्यम से जनमत की शक्ति का बोध कराया गया है। देश के राज सिंहासन का वास्तविक अधिकारी मेहनती, परिश्रमी, खून पसीना बहानेवाली जनता है। इस पद्यांश में जनता की शक्ति, उसकी महत्ता का यथार्थ चित्रण है। आज वास्तविक देवता, किसान एवं मजदूर है, सिंहासन अधिकारी भी वही हैं। ऐसा भाव इस कवितांश में निहित है।
(ङ) (i) कविता में खड़ी बोली में सहज, सरल एवं सुबोध है।
(ii) इसमें ओज गुण की प्रधानता है।
(iii) कविता में संगीतमयता विद्यमान है।