BSEB Solutions for अति सूधो सनेह को मारग है, मो अँसुवानिहिं लै बरसौ (Ati Sadho Sneh Ko Marag Hai, Mo Asuvanihi Lai Barso) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

अति सूधो सनेह को मारग है, मो अँसुवानिहिं लै बरसौ - घनानंद प्रश्नोत्तर

Very Short Questions Answers (अतिलघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. किस कवि को साक्षात् रसमूर्ति कहा जाता है ?
उत्तर

घनानंद को साक्षात् रसमर्ति कहा जाता है।


प्रश्न 2. घनानंद काव्य-रचना के अतिरिक्त किस कला में प्रवीण थे?
उत्तर

घनानंद काव्य-रचना के अतिरिक्त गायन-कला में प्रवीण थे।


प्रश्न 3. घनानंद किस मुगल बादशाह के मीर मुंशी थे?
उत्तर

घनानंद मुगल बादशाह मुहम्मदशाह रंगीले के मीर मुंशी थे।


प्रश्न 4. घनानंद की मृत्यु कैसे हुई ?
उत्तर

धनानंद को नादिरशाह के सैनिकों ने मार डाला।


प्रश्न 5. घनानंद की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कृति कौन-सी है?
उत्तर

घनानंद की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कृति है-‘सुजान सागर’


प्रश्न 6. घनानंद की भाँति रीति मुक्तधारा के और कौन-कौन कवि हैं ?
उत्तर
घनानंद की तरह रीति मुक्तधारा के अन्य कवि हैं-रसखान एवं भूषण आदि।


प्रश्न 7. कवि सुजान कहकर किसे सम्बोधित करता है ?
उत्तर

कहते हैं कवि घनानंद का ‘सुजान’ नामक नर्तकी से स्नेह था। अत: यह सम्बोधन उसे ही प्रतीत होता है।

Short Question Answers (लघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. द्वितीय छंद किसे संबोधित है और क्यों ?
उत्तर
द्वितीय छंद में मेघ को संबांधित किया गया है क्योंकि परजन्य परोपकार हेत जो जन्म लिया हो कहलाकर मेघ अपने नाम की यथार्थता साबित करने के लिए परोपकार के लिए घूम-घूमकर कर बरसता है।

प्रश्न 2. परहित के लिए ही देह कौन धारण करता है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
परहित के लिए ही देह मेघ धारण करता है। मेघ परोपकारी होता है। घूम-घूमकर लोक हित के लिए बरसता है। इसलिए मेघ का एक नाम "परजन्य" भी है।

प्रश्न 3. कवि कहाँ अपने आँसुओं को पहुँचाना चाहता है और क्यों?
उत्तर
कवि अपने आँसुओं को सज्जन लोगों के आँगन तक पहुँचाना चाहता है क्योंकि सज्जन जन ही कवि की पीड़ा का अनुभव कर सकते हैं, कोई दुष्ट नहीं। इसीलिए कवि की आकांक्षा है कि मेरी पीड़ा सज्जन के आंगन तक पहुँचकर परोपकारी मेघ मेरी पीड़ा को कम करने में मदद देगा।

Long Question Answer (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)


प्रश्न 1. कवि प्रेममार्गको अति सूधो' क्यों कहता है? इस मार्ग की विशेषता गया है?
उत्तर
कवि प्रेम मार्ग को अति सूधो' (अत्यन्त शुद्ध सरल) इसलिए कहा है योकि इस मार्ग पर चलकर मनुष्य बिना खच किये हुए सबका है। इस मार्ग की विशेषता है कि इस मार्ग में सत्य का भी स्वाभिमान जाता है तथा चतुराई का भी इस मार्ग में कोई स्थान नहीं रहता है।

प्रश्न 2. ‘मन लेहु पैदेत टाक नहीं' से काम का क्या अभिप्राय है?
उत्तर
‘मन लेहु पै देहु छटाँक नही’ से कवि घनानंद का अभिप्राय यह है कि "प्रेम मार्ग" ऐसा मार्ग है जिस पर चलने वाले पथिक को कोई खर्च नहीं लेकिन प्राप्ति सब कुछ किया जा सकता है।
यह मन (40 किलो) और छटॉक (कनमा) जो उस समय मन माप सबसे बड़ा और छटाँक सबसे छोटा परिमाण माना जाता था।

प्रश्न 3. मो अँसुवानिहि लै बरसौ। मेरे आँसुओं को ही लेकर बरस जाओ|| काव्यांश का सारांश लिखें।
उत्तर
इस सवैये में कवि घनानंद ने मेघ को परोपकारी बताकर आग्रह का है कि मेरे हृदय की पीड़ा को सज्जन लोगों के घर तक पहुँचा दो।
हे मेघ ! परजन्य नाम तुम्हारा सही है क्योंकि परोपकार के लिए ही देह धारण कर घूमते हो। समुद्र जल को भी तुम अमृत जैसा बनाकर अपने रसयुक्त घनानंद का कहना है कि तुम जीवनदायक हो, कुछ मेरे हृदय की पीड़ा को भी स्पर्श करो। हे विश्वासी किसी भी समय मेरी पीड़ारूपी आँसुओं को लेकर सज्जन लोगों के आँगन में बरस जाओ।

काव्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर

1. अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं।
तहाँ साँचे चलें तजि आपनपौ झझक कपटी जे निसाँक नहीं।
‘घनआनंद’ प्यारे सुजान सुनौ यहाँ एक ते दूसरौ आँक नहीं।
तुम कौन धौं याटी पढ़े हौ कहौ मन लेह पै देह छटाँक नहीं।

प्रश्न.
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद का प्रसंग लिखें।
(ग) पद का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर

(क) कविता- अति सूधो सनेह को मारग है।
कवि- घनानंद।।

(ख) रीति काल के महान प्रेमी कवि घनानंद यहाँ प्रथम छंद में प्रेम के सीधे, सरल और निश्छल मार्ग की प्रस्तावना करता है। प्रेम की विशेषताओं को तथा प्रेममार्ग की प्रवीणता को लाक्षणिक एवं मूर्तिमत्ता के स्वरूप का वर्णन किया है।

(ग) सरलार्थ- प्रस्तुत सवैया में रीतिकालीन काव्य धारा के प्रमुख कवि घनानंद प्रेम की पीड़ा एवं प्रेम की भावना को सरल और स्वाभाविक मार्ग का विवेचन करते हैं। कवि कहते हैं कि प्रेम मार्ग अमृत के समान अति पवित्र है। इस प्रेम, रूपी मार्ग में चतुराई और टेढ़ापन अर्थात् कपटशीलता का कोई स्थान नहीं है। इस प्रेमरूपी मार्ग में जो प्रेमी होते हैं वह अनायास ही सत्य के रास्ते पर चलते हैं तथा उनके अंदर के अहंकार समाप्त हो जाते हैं। यह प्रेम रूपी मार्ग इतना पवित्र है कि इस पर चलने वाले प्रेमी के हृदय में लेशमात्र भी झिझक, कपट और शंका नहीं रहती है। घनानंद अपनी प्रेमिका सुजान को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे सुजान, सुनो ! यहाँ अर्थात् मेरे प्रेम में तुम्हारे सिवा कोई दूसरा चिह्न नहीं है। तुम क्या कोई प्रेम रूपी पुस्तक पढ़े हो? तो कहो, क्योंकि प्रेम रूपी पुस्तक पढ़ने से यही सीख मिलती है कि प्रेम दिया जाता है और उसे देने के बदले एक छटाँक भी कुछ नहीं लिया जाता है।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत छंद में रीति मुक्त धारा के प्रसिद्ध कवि घनानंद प्रेम के मार्ग को अमृत के समान पवित्र बतलाया है। इसमें निष्कपट, निश्छल और अहंकार रहित प्रेम का स्वाभाविक वर्णन किया है। एक प्रेमी ही प्रेम की पवित्रता को समझ सकता है।

(ङ) काव्य सौंदर्य-
(i) यह कविता सवैया छंद में रचित है।
(ii) श्रृंगार इसकी परिपक्वता के कारण माधुर्य गुण की झलक प्रशंसनीय है।
(iii) यहाँ स्वाभाविक प्रेम के वर्णन के कारण मनोवैज्ञानिकता का अच्छा दर्शन होता है।
(iv) प्रेम का वर्णन में जो भाव और भाषा होना चाहिए उसका कलात्मक रूप व्यक्त हुआ है।
(v) सवैया छन्द के कारण कविता सम्पूर्ण संगीतमयता का रूप धारण कर ली है।
(vi) अलंकार योजना की दृष्टि से रूपक और अलंकार की छटा प्रशंसनीय है।


2. परकाजहि देह को धारि फिरौ परजन्य जथारथ द्वै दरसौ।
निधि-नरी सुधा की समान करौ सबही बिधि सज्जनता सरसौ।।
‘घनआनंद’ जीवनदायक हासै कळू पेरियौ पीर हिएँ परसौ।
कबहूँ वा बिसासी सुजान के आँगन मौ अँसुवानिहिं लै बरसौ॥

प्रश्न.
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद का प्रसंग लिखिए।
(ग) पद का सरलार्थ लिखिए।
(घ) भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

(क) कविता- मो अँसुवानिहिं लै बरसौ।
कवि-घनानंद।

(ख) प्रसंग- प्रस्तुत सवैये छंद में रीति कालीन काव्य धारा के प्रख्यात कवि घनानंद मेघ की अन्योक्ति के माध्यम से विरह वेदना से भरे अपने हृदय की पीड़ा को अत्यन्त कलात्मक रूप में अभिव्यक्त करते हैं। बादल की उदारता को अपने प्रेम की पीड़ा में सहयोग देने के लिए संबोधनात्मक शैली में वर्णन करते हैं।

(ग) सरलार्थ- प्रस्तुत छंद में कवि बादल को संबोधित करते हुए कहता है कि हे बादल! मेरे आँसूरूपी प्रेम के जल को बरसाओ। हे बादल तुम इतने उदारवादी हो कि तुम्हारा जीवन हमेशा दूसरों के हित के लिए समर्पित रहता है। दूसरों के लिए ही जल बरसाते हो। अपने जीवन के भंडार को अमृत के समान पवित्र करो ओर सभी प्रकार से सज्जनता के गुणों को प्रकट करो। तुम्हारी दृष्टि के जल में मेरे विरह वेदना के आँसू दिखाई पड़े। घनानंद कवि कहते हैं कि हे जीवनदायक तुम प्रेम रूपी बादल बनकर आँसू रूपी वियोग रस को बरसो जिससे मेरी प्रेम वेदना समाप्त होगी। पुनः अपनी प्रेयषी सुजान की ओर संकेत करते हुए अपने विरह वेदना को कलात्मक रूप में व्यक्त करते हुए कहते हैं कि हे बादल तुम मेरे बहुत विश्वासी हो इसलिए मेरे सुजान के आँगन में जाकर मेरे आँसू रूपी जल को निश्चित रूप से बरसाओ।

(घ) भाव सौंदर्य- इस अंश में कवि घनानंद प्रेम के पीर मालूम पड़ते हैं। इसी कारण के लिए बादल को सम्बोधित करते हैं और बादल को उदार कहते हैं।

(ङ) काव्य सौंदर्य-
(i) इसमें सवैया, छंद पूर्ण लाक्षणिकता के साथ व्यक्त हुआ है।
(ii) वियोग का सच्चा वर्णन ब्रजभाषा की कोमलता और सरलतापूर्ण सार्थक है।
(iii) यहाँ कहीं-कहीं तत्सम और तद्भव शब्दों के प्रयोग से कविता का भाव सटीक हो गया है।
(iv) सम्पूर्ण कविता संबोधनात्मक शैली में है।
(v) वियोग का सार्थक वर्णन के कारण प्रसाद गुण इस पद में विद्यमान है।
(vi) अलंकार योजना की दृष्टि से रूपक और अनुप्रास भाव को सार्थक करने में सहायक है।

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