BSEB Solutions for राम नाम बिन बिरथे जगि जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै (Ram Naam bin Birthe Jagi Janma, Jo Nar me Dukh me Dukh Nahi Maane) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

राम नाम बिन बिरथे जगि जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै - गुरु नानक प्रश्नोत्तर

Very Short Questions Answers (अतिलघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. गुरु नानक का जन्म कहाँ हुआ था? .
उत्तर

गुरु नानक का जन्म तलवंडी नामक गाँव जिला-लाहौर में हुआ था जो फिलहाल पाकिस्तान में है। उस स्थान को अब नानकाना साहब कहते हैं।


प्रश्न 2. गुरु नानक किस युग के कवि थे?
उत्तर

गुरु नानक मध्य युग के संत कवि थे।


प्रश्न 3. ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ किनका पवित्र ग्रंथ है ?
उत्तर

गुरु ग्रंथ साहिब’ सिखों का पवित्र ग्रंथ है। इसमें गुरु नानक एवं कुछ अन्य संतों की । रचनाएँ संकलित हैं।


प्रश्न 4. कवि किससे बिना जगत में यह जन्म व्यर्थ मानता है?
उत्तर

कवि राम नाम के बिना जगत् में यह जन्म व्यर्थ मानता है।


प्रश्न 5. वाणी कब विष के समान हो जाती है ?
उत्तर

जिस वाणी से राम नाम का उच्चारण नहीं होता है अर्थात् भगवत् नाम के बिना वाणी विष के समान हो जाती है।


Short Question Answers (लघु उत्तरीय प्रश्न)

प्रश्न 1. कवि किसके बिना जगत् में यह जन्म व्यर्थ मानता है ?
उत्तर
कवि नानक राम नाम के स्मरण के बिना जगत में जन्म व्यथ मानता है। अर्थात उसी का जन्म लेना सफल है जो हरि के नामों का कात्तन करता है।

प्रश्न 2. वाणी कब विष के समान हो जाती है ?
उत्तर
जब मनुष्य राम के नाम का अपनी वाणी से नहीं बोलता तो उसका वाणी भी विष के समान हो जाती है।

प्रश्न 3. प्रथम पद के आधार पर बताएँ कि कवि ने अपने युग में धर्म-साधना के कैसे-कैसे रूप देखे थे ?
उत्तर
प्रथम पद के अनुकूल कवि ने अपने युग में धर्म-साधन के दो रूप देखे थे-गुरु उपदेशों का अनुकरण करना तथा हरि के नामों का जपना अथवा कीर्तन करना।

प्रश्न 4. हरिरस से कवि का अभिप्राय क्या है ?
उत्तर
हरि रस से कवि का अभिप्राय हरि भक्ति है।

प्रश्न 5. कवि की दृष्टि में ब्रह्म का निवास कहाँ है ?
उत्तर
कवि की दृष्टि में ब्रह्म का निवास प्राणी के शरीर (आत्मा) में ही है।

प्रश्न 6. गुरु की कृपा से किस युक्ति की पहचान हो पाती है ?
उत्तर
गुरु की कृपा से ईश्वर भक्ति तथा संसार सागर से पार होने की युक्ति की पहचान हो पाती है।

Long Question Answer (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)


प्रश्न 1. आधुनिक जीवन में उपासना के प्रचलित रूपों को देखते हुए नानक के इन पदों की क्या प्रासंगिकता है? अपने शब्दों में विचार करें।
उत्तर
आधुनिक जीवन में उपासना के जो भी प्रचलित रूप हैं वे सभी कर्मकाण्ड से सम्बन्ध रखते हैं। आज के भाग-दौड़ के जीवन में कर्म काण्ड पर आधारित उपासना के उपाय में सभी लोगों को सफल होना कठिन है। आज ईश्वर की उपासना खर्चीला है क्योंकि धन से धर्म किया जाता है जो जन साधारण के वश की बात नहीं है।
ऐसे समय में गुरु नानक द्वारा रचित पद में जो उपासना के रूप को बताया गया है। उसी की प्रासंगिकता है। गुरु के उपदेशों का अनुकरण कर हरि के नाम कीर्तन सभी व्यक्ति से सम्भव है। इसके लिए न समय सीमा का विचार है और नहीं खर्च की बात है। अतः हमारे विचार से गुरु नानक जी के बताएँ मार्ग से ईश्वर की उपासना सबों के लिए सरल और युक्तिसंगत है।

प्रश्न 2. नाम-कीर्तन के आगे कवि किन कर्मों की व्यर्थता सिद्ध करता है ?
उत्तर
हरि नाम कीर्तन के आगे कवि पुस्तकों का अध्ययन, व्याकरण का मनन, संध्या-गायत्री कर्म करना, दंड-कमण्डल ग्रहण करना, जनेऊ धारण करना, धोती पहनना, तीर्थ करना, जटा धारण, पगड़ी धारण, भस्म लेपना और वस्त्र का त्याग कर दिगम्बर बनना आदि सभी कर्मों को व्यर्थ सिद्ध करता है।

प्रश्न 3. 'राम नाम बिनु' पद के आधार पर बताएँ कि कवि ने अपने युग में धर्म साधना के कैसे-कैसे रूप देखे थे ?
उत्तर
गुरु नानक का जन्म मध्य-युग में हुआ था। उन दिनों यद्यपि भक्ति आन्दोलन जोरों पर जारी था, किन्तु धर्म-साधना के अनेक रूप थे। लोग टीका-चंदन लगाते थे। संध्योपासना प्रचलित थी। इनके अलावा कुछ साधु अपनी साधुता का प्रतीक चिह्न, कमंडल लेकर चलते, जटा-जूट रखते, कोई मोटी शिखा रखते थे तो कोई भभूत लगाए नंग-धडंग घूमते-फिरते नजर आते थे। उन दिनों धर्म- साधना के ये रूप आम तौर से प्रचलित थे।

प्रश्न 4. 'राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा' शीर्षक कविता का सारांश लिखें।
उत्तर
राम नाम के बिना जग में जन्म लेना ही बेकार है। जो व्यक्ति हरिनाम नहीं लेता उसका किया भोजन विष के समान, उसकी बोली विष के समान हो जाती है तथा जो ईश्वर का नाम नहीं लेता उसका जीवन निष्फल तथा बुद्धि भ्रमित हो जाती है। पुस्तक का पाठ करना, व्याकरण की व्याख्या करना संध्या-कर्म आदि सब निष्फल हो जाता है। वह गुरु उपदेश के अनुकरण किये बिना मुक्ति नहीं मिलती है तथा राम नाम के जप बिना प्राणी इस मोह युक्त संसार रूपी जाल में उलझकर मर जाता है। दंड-कमंडल धारण, शिखा बढ़ाना, जनेऊ पहनना, धोती पहनना या तीर्थ भ्रमण करना सब बेकार हो जाता है यदि व्यक्ति नाम का जप नहीं करता है। राम नाम के जप के बिना शांति भी नहीं मिलता है तथा जो हरि का नाम स्मरण करता है उसी का बेड़ा पार होता है। जटा धारण, भस्म लगाना, दिगम्बर हो जाना सब बेकार है हरि नाम के बिना।
इस पृथ्वी पर जितने जीव-जन्तु जल-थल में हैं उन्हीं की कृपा से जीवित है। जिसने गुरु उपदेश को ग्रहण कर लिया है मानो वह हरि भक्ति का रस-पान कर लिया।

प्रश्न 5. 'जो नर दुख में दुख नहिं मान' शीर्षक कविता का सारांश लिखें।
उत्तर
जो मनुष्य अपने दुख से दु:खी नहीं होता है। सुख-स्नेह और भय भी जिसको प्रभावित नहीं करता है, जो दूसरे के धन को माटी मानता है, जिसे निन्दा, प्रशंसा, लोभ, मोह और अभिमान प्रभावित नहीं करता है जिसको हर्ष या शोक प्रभावित नहीं करता है, जो मान अपमान नहीं समझता है, जो मन से आशा, तष्णा आदि सब कुछ त्यागकर देता है तथा जो सांसारिक माया से मुक्त रहता है जिसको काम क्रोध आदि स्पर्श भी नहीं करता है। ऐसे व्यक्ति के ही हृदय में ईश्वर का निवास होता है। जिस व्यक्ति पर गुरु की कृपा हो जाती है वही व्यक्ति इस रहस्य को जान सकता है। गुरु नानक कहते हैं ईश्वर भक्ति में इस प्रकार लीन हो जाओ जैसे नदी का पानी समुद्र के पानी में मिलकर लीन हो जाता है।

काव्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर

1. राम नाम बिनु बिरथे जबह जनमा।
– बिखु खावै बिखु बोलै बिनु नावै निहफलु मटि भ्रमना॥
पुस्तक पाठ व्याकरण बखारौं संधिआ करम निकाल करै।
बिनु गुरसबद मुकति कहा प्राणी राम नाम बिनु अरुझि मरै॥
ठंड कमंडल सिखा सूत धोती तीरथ गवनु अति भ्रमनु करे।
समनाम बिनु सांति न आवै जपि हरिहरि नाम सुपारि घरै।
जटा मुकुट तन भसम लगायी वसन छोड़ि तन नगन भया।
जेते जी अजंत जल थल महोअल जत्र तत्र तू सरब जीआ॥
गुरु परसादि राखिले जन कोउ हरिरस नामक झोलि पीआ।

प्रश्न.
(क) कविता और कवि का नाम लिखें।
(ख) पद का प्रसंग लिखें।
(ग) पद का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य सौन्दर्य स्पष्ट करें।

उत्तर

(क) कवि- गुरुनानक
कविता- राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा।

(ख) प्रस्तुत कविता में संत कवि गुरुनानक बाहरी वेश-भूषा, पूजा-पाठ, तीर्थ स्नान और कर्मकाण्ड के स्थान पर सरल सच्चे हृदय से राम नाम की भक्ति करने पर बल दिया है।

(ग) नानक कहते हैं कि राम नाम के बिना इस संसार में जन्म लेना व्यर्थ है। बिना राम की भक्ति के भोजन, बोली, भ्रमण बुद्धि ये सभी विष बन जाते हैं, कार्य भी निष्फल हो जाते हैं। पुस्तक पढ़ना, शब्द-ज्ञान के लिये व्याकरण का अध्ययन करना यहाँ तक कि संध्या उपासना करना ये सभी राम की भक्ति के बिना निरर्थक होते हैं।
कवि गुरु की महिमा का बखान करते हुये कहते हैं कि बिना गुरु की कृपा के मुक्ति नहीं मिल सकती है। साथ ही राम नाम की भक्ति के बिना इंस सांसारिक मोह-माया से मानव उलझकर मर जाता है। दण्ड, कमंडल, सिखा बजाकर, जनेऊ धारण कर, रंगीन धोती पहनकर तथा इधर-उधर तीर्थों में भटककर मनुष्य अपना समय व्यर्थ बर्बाद करता है। ये सभी तो बाह्याडम्बर हैं। इन आडम्बरों से ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती है, राम नाम के बिना शांति नहीं मिल सकती है। अतः राम-नाम जपने से ही मनुष्य इस संसार-रूपी भव सागर से पार उतरकर मोक्ष प्राप्ति कर सकता है। पुनः नानक कहते हैं कि हे मानव जटारूपी मुकुट पहन कर शरीर में भस्म लगाकर वस्त्रहीन होकर तथा नंगे बदन होकर भ्रमण करने से ईश्वरीय भक्ति प्राप्त नहीं किया जा सकता है। नानक कहते हैं कि जिस प्राणी पर गुरु की कृपा होती है चाहे वह जल में रहता हो, धरती पर रहता हो या सभी जगह रहता हो, उसी प्राणी को ईश्वर की भक्ति रूपी रस. पीने के लिये मिलता है अर्थात् ईश्वर भक्ति की अलौकिक आनंद की अनुभूति उसी प्राणी को प्राप्त होती है।

(घ) इस कविता में निर्गुणवादी विचारधारा प्रकट हुयी है। इसमें कवि बाहरी वेश-भूषा, तीर्थाटन कर्मकाण्ड के विरोध करते हुये सच्चे हृदय से भक्ति-भावना पर प्रकाश डालते हैं। कवि का मानना है कि परमात्मा की भक्ति बाह्य दिखाने से नहीं हो सकती है। परमात्मा की भक्ति रूपी सरस का अलौकिक पान करने के लिये सच्चे हृदय और ज्ञान की आवश्यकता है।

(ङ) (i) यहाँ निर्गुण निराकार ईश्वर की सत्ता को स्वीकार किया गया है।
(ii) भाषा की दृष्टि से पंजाबी मिश्रित ब्रजभाषा का प्रयोग लाक्षणिक और व्यञ्जना रूप में किया गया है।
(iii) भाव के अनुसार भाषा का प्रयोग अनायास ही भक्ति भावना की ओर अग्रसर होना पड़ता है।
(iv) कहीं-कहीं तत्सम शब्दों का भी प्रयोग प्रशंसनीय है। भाषा में सरलता और सुबोधता के कारण प्रसाद गुण की अपेक्षा है।
(v) अलंकार की दृष्टि से अनुप्रास उपमा और दृष्टांत मनोभावन है।


2. जो नर दुख में दुख नहिं माने।
सुख सनेह अरु भय नहिं जाके, कंचन माटी जाने।
नहिं निंदा नहिं अस्तुति जाके, लोभ मोह अभिमाना
हरष सोक तें रहै नियारो, नाहि मान अपमाना।
आसा मनसा सकल तयागि कै जय तें रहै निरासा।
काम क्रोध जेहि परसे नाहिन तेहिं घट ब्रह्म निकासा
गुरु किरपा जेहि नर पै कीन्हीं तिन्ह यह जुगति पिलानी
नानक लीन भयो गोबिंद सो ज्यों पानी सँग पानी

प्रश्न.
(क) कविता और कवि का नाम लिखें।
(ख) पद का प्रसंग लिखें।
(ग) पद का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर

(क) कबि-गुरुनानका .
– कविता-जो नर दुख में दुख नहीं माने।

(ख) निर्गण निराकार ईश्वर के उपासक गरुनानक ने प्रस्तुत कविता में सुख-दुख में एक समान उदासीन रहते हुए मानसिक दुर्गुणों से ऊपर उठकर अंत:करण की निर्मलता हासिल करने पर जोर दिया है। संत कवि गुरु की कृपा प्राप्त कर गोविंद से एकाकार होने की प्रेरणा देता है।

(ग) प्रस्तुत कविता में ईश्वर की निर्गुणवादी सत्ता को स्वीकार करते हुए कहते हैं कि जो मनुष्य दुःख को दुःख नहीं समझता है अर्थात् दुःखमय जीवन में भी समान रूप.में रहता है उसी का जीवन सार्थक होता है। जिसके जीवन में सुख, प्यार, भय नहीं आता है अर्थात् इस परिस्थिति में भी तटस्थ रहकर मानसिक दुर्गुणों को दूर करता है, लोभ से रहित सोने को भी माटी के समान समझता है वही प्रभु की कृपा प्राप्त कर सकता है। जो मनुष्य न किसी की निंदा करता है, न किसी की स्तुति करता है लोभ, मोह, अभिमान से दूर रहता है, न सुख में प्रसन्नता जाहिर करता है और . न संकट में शोक उपस्थित करता है तथा मान अपमान से रहित होता है वही ईश्वर भक्ति के सुख को प्राप्त कर सकता है। जो मनुष्य आशा निराशा, बढ़ी-चढ़ी कामनाओं से दूर रहता है, जिस काम और क्रोध विचलित नहीं करता है उसी के हृदय में ब्रह्म का निवास होता है। गुरुनानक कहते हैं कि जिस व्यक्ति पर गुरु की कृपा होती है वही व्यक्ति ईश्वर को पहचान सकता है। यहाँ तक कि ईश्वर के उपासक गुरुनानक भी अपने गुरु के कृपा से ही गोविंद की भक्ति में उसी तरह मिल गये हैं जिस तरह पानी के संग पानी मिल जाता है।

(घ) भाव सौंदर्य-प्रस्तुत कविता का भाव यह है कि जो मनुष्य सुख-दुख में एक समान रहता है, आशा-निराशा से दूर रहता है। निंदा प्रशंसा में भी समान स्थिति में रहता है वही व्यक्ति गुरु की कृपा होती है वही व्यक्ति ईश्वर का आनंद लेता है क्योंकि गुरु कृपा के बिना ईश्वर की पहचान नहीं हो सकता है।

(ङ) काव्य सौंदर्य-
(i) यहाँ भाव के अनुसार ही भाषा का प्रयोग है।
(ii) ईश्वर भक्ति और गुरु भक्ति का सामंजस्य स्थापित हुआ है।
(ii) पंजाबी मिश्रित ब्रजभाषा का प्रयोग सफल कवि का प्रतीक है।
(iv) भाषा में संगीतमयता, सरलता और मोहकता आ गई है।

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