MCQ and Summary for आविन्यों (Aavinyo) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board
आविन्यों - अशोक वाजपेयी MCQ and सारांश
Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)
1. 'आविन्यों' पाठ का लेखक कौन हैं ?
(A) नलिन विलोचन शर्मा
(B) रामविलास शर्मा
(C) अशोक वाजपेयी
(D) यतीन्द्र मिश्र
उत्तर
(C) अशोक वाजपेयी
2. 'आविन्यों' पाठ गद्य की कौन-सी विद्या है ?
(A) कहानी
(B) यात्रा-वृत्तांत
(C) उपन्यास
(D) रेखा चित्र
उत्तर
(B) यात्रा-वृत्तांत
3. 'आविन्यों' किस नदी के किनारे बसा है ?
(A) गंगा
(B) नील
(C) दोन
(D) रोन
उत्तर
(D) रोन
4. 'ला शत्रूज' क्या है ?
(A) नगर
(B) गाँव
(C) ईसाई पाठ
(D) महाविद्यालय
उत्तर
(C) ईसाई पाठ
5. पिकासो क्या थे?
(A) कवि
(B) चित्रकार
(C) नाटककार
(D) उपन्यासकार
उत्तर
(B) चित्रकार
6. 'आविन्यों' की ख्याति किस रूप में हैं ?
(A) कला केन्द्र
(B) सिनेमाघर
(C) रंगमंच
(D) नदी
उत्तर
(C) रंगमंच
7. वाजपेयी ने 'ऑफिसर ऑफ द ऑर्डर ऑफ क्रॉस' सम्मान किस साल प्राप्त किया ?
(A) 1904
(B) 1924
(C) 2004
(D) 2016
उत्तर
(C) 2004
8. अशोक वाजपेयी का मूल निवास कहाँ है ?
(A) उत्तर प्रदेश
(B) बिहार
(C) झारखंड
(D) छत्तीसगढ़
उत्तर
(D) छत्तीसगढ़
9. 16 जनवरी, 1941 को अशोक वाजपेयी का जन्म छत्तीसगढ़ के किस स्थान में हुआ था ?
(A) सागर
(B) दुर्ग
(C) सतना
(D) कटनी
उत्तर
(B) दुर्ग
10. आविन्यों में उन्नीस दिनों के प्रवास के दौरान लेखक ने कितने गद्य की रचना की ?
(A) 27
(B) 28
(C) 29
(D) 30
उत्तर
(A) 27
11. 'ल मादामोजेल द आविन्यों' किसकी कृति है ?
(A) लियानार्दो द विंची
(B) पिकासो
(C) रवीन्द्रनाथ टैगोर
(D) विन्सेंट वैन गो
उत्तर
(B) पिकासो
12 ‘ला शत्रुज' का धार्मिक उपयोग कब से कब तक
(A) ग्यारहवीं सदी से फ्रेंच क्रांति तक
(B) बारहवीं सदी से फ्रेंच क्रांति तक
(C) तेरहवीं सदी से फ्रेंच क्रांति तक
(D) चौदहवीं सदी से फ्रेंच क्रांति तक
उत्तर
(D) चौदहवीं सदी से फ्रेंच क्रांति तक
आविन्यों- लेखक परिचय
अशोक वाजपेयी का जन्म 16 जनवरी 1941 ई० में दुर्ग, छत्तीसगढ़ में हुआ, किंतु उनका ‘ मूल निवास सागर, मध्यप्रदेश है । उनकी माता का नाम निर्मला देवी और पिता का नाम परमानंद वाजपेयी है । उनकी प्रारंभिक शिक्षा गवर्नमेंट हायर सेकेंड्री स्कूल, सागर से हुई । फिर सागर विश्वविद्यालय से उन्होंने बी० ए० और सेंट स्टीफेंस कॉलेज, दिल्ली से अंग्रेजी में एम० ए० किया। उन्होंने वृत्ति के रूप में भारतीय प्रशासनिक सेवा को अपनाया । वे भारतीय प्रशासनिक सेवा के कई पदों पर रहे और महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति पद से सेवानिवृत्त हुए । संप्रति, वे दिल्ली में भारत सरकार की कला अकादमी के निदेशक हैं।
अशोक वाजपेयी की लगभग तीन दर्जन मौलिक और संपादित कृतियाँ प्रकाशित हैं। ‘शहर अब भी संभावना है’, एक पतंग अनंत में’, ‘तत्पुरुष’, ‘कहीं नहीं वहीं’, ‘बहुरि अकेला’, थोड़ी सी जगह’, ‘दुख चिट्ठीरसा है’ आदि उनके कविता संकलन हैं । ‘फिलहाल, ‘कुछ पूर्वग्रह’, ‘समय से बाहर’,’कविता का गल्प’, ‘कवि कह गया है’ आदि उनकी आलोचना की पुस्तकें हैं । उनके द्वारा संपादित पुस्तकों की सूची भी लंबी है – ‘तीसरा साक्ष्य’, ‘साहित्य विनोद’, ‘कला विनोद’, ‘कविता का जनपद’, मुक्तिबोध, शमशेर और अज्ञेय की चुनी हुई कविताओं का संपादन आदि। उन्होंने कई पत्रिकाओं का भी संपादन किया है जिनमें ‘समवेत’, ‘पहचान’, ‘पूर्वग्रह’, ‘बहुवचन’ ‘कविता एशिया’, ‘समास’ आदि प्रमुख हैं । अशोक वाजपेयी को साहित्य अकादमी पुरस्कार दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान, फ्रेंच सरकार का ऑफिसर आव् द आर्डर आव् क्रॉस 2004 सम्मान आदि प्राप्त हो चुके हैं।
सर्जक साहित्यकार अशोक वाजपेयी द्वारा रचित प्रस्तुत पाठ में एक संश्लिष्ट रचनाधर्मिता की अंतरंग झलक है । यह पाठ उनके ‘आविन्यों’ नामक गद्य एवं कविता के सर्जनात्मक संग्रह से संकलित है । इसी नाम के संग्रह में उनकी सर्जनात्मक गद्य की कुछ रचनाएँ और कविताएँ हैं जिनमें से दोनों विधाओं की दो रचनाओं के साथ पुस्तक की भूमिका भी किंचित संपादित रूप में यहाँ प्रस्तुत है । आविन्यों दक्षिणी फ्रांस का एक मध्ययुगीन इसाई मठ है जहाँ लेखक ने बीस-एक दिनों तक एकांत रचनात्मक प्रवास का अवसर पाया था ।
प्रवास के दौरान लगभग प्रतिदिन गद्य और कविताएँ लिखी गईं। इस तरह हिंदी ही नहीं, भारत से भिन्न स्थान और परिवेश के एकांत प्रवास में एक निश्चित स्थान और समय से अनुबद्ध मानस के सर्जनात्मक अनुष्ठान का साक्षी यह पाठ एक वैश्विक जागरूकता और संस्कृतिबोध से परिपूर्ण रचनाकार के मानस की अंतरंग झलक पेश करते हुए यह दिखाता है कि रचनाएँ कैसे रूप-आकार ग्रहण करती हैं। कोई भी रचना महज एक शब्द व्यवस्था भर नहीं होती, उसकी निर्माण प्रक्रिया में रचनाकार की प्रतिभा, उसके जटिल मानस के साथ स्थान और परिवेश की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण होती है।
आविन्यों- पाठ परिचय
प्रस्तुत पाठ ’आविन्यों’ इसी नाम के गद्य एवं कविता के सर्जनात्मक संग्रह से संकलित है। आविन्यों दक्षिण फ्रांस का एक मध्ययुगीन ईसाई मठ हैं जहाँ लेखक ने इक्कीस दिनों तक एकान्त रचनात्मक प्रवास का अवसर पाया था। प्रवास के दौरान प्रतिदिन गद्य एवं कविताएँ लिखी थी।
आविन्यों का सारांश (Summary)
प्रस्तुत पाठ ‘ आविन्यों ‘ (Aavinyon) में अशोक वाजपेयी ने अपनी यात्रा आविन्यों के क्रम में हुए अनुभवों का वर्णन किया है।
दक्षिण फ्रांस में रोन नदी के किनारे अवस्थित आविन्यों नामक एक पुरानी शहर है, जो कभी पोप की राजधानी थी। अब गर्मियों में फ्रांस तथा यूरोप का एक प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय रंग-समारोह का आयोजन हर वर्ष होता है।
रोन नदी के दूसरी ओर एक नई बस्ती है, जहाँ फ्रेंच शासकों ने पोप की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए एक किला बनवाया था। बाद में, वहाँ ’ला शत्रूज’ काथूसियन सम्प्रदाय का एक ईसाई मठ बना, जिसका धार्मिक उपयोग चौदहवीं शताब्दी से फ्रेंच क्रांति तक होता रहा।
यह सम्प्रदाय मौन में विश्वास करता है, इसलिए सारा स्थापत्य मौन का ही स्थापत्य था। इन इमारतों पर साधारण लोगों ने कब्जा कर लिया था और रहने लगे थे।
यह केन्द्र आजकल रंगमंच और लेखन से जुड़ा हुआ है। वहाँ संगीतकार, अभिनेता तथा नाटककार पुराने-ईसाई चैम्बर्स में रचनात्मक कार्य करते हैं।
सप्ताह के पाँच दिनों में शाम को सबको एक स्थान पर रात का भोजन करने की व्यवस्था है। अन्य दिन नास्ता एवं भोजन खुद बनाकर खाते हैं। यह बेहद शांत स्थान है। लेखक को फ्रेंच सरकार के सौजन्य से ‘ला शत्रूज’ में रहकर कुछ काम करने का मौका मिला था। इसलिए यह अपने साथ हिंदी का एक टाइपराइटर, तीन-चार किताबें तथा कुछ संगीत के टेप्स लेते गये थे।
उन्नीस दिनों के प्रवास में इन्होंने 35 कविताएँ तथा 27 गद्य रचना रचनाएँ लिखी। लेखक को यह स्थान काव्य की दृष्टी से अति उपयुक्त लगा। इसी विशेषता के कारण उसने इतने कम समय में इतने अधिक लिख लिया।
उसने यह अनुभव किया कि यहाँ की हर चीझों में अद्भुत सजीवता है। इसी सजीवता, मनोरमता के फलस्वरूप इतनी कम अवधि में 35 कविताएँ तथा 27 गद्य की रचनाएँ की।
’नदी के किनारे नदी है’ तात्पर्य यह है कि एक तरफ एक छोटा सा गाँव ’वीरनब्ब’ और दूसरी तरफ आविन्यों अपनी सहजता, सुन्दरता, नीरवता तथा संवेदनशीलता पर्यटकों को इस प्रकार भाव-विभोर करते हैं कि रोन नदी का कल-कल, छल-छल धारा स्थिर किंतु किनारा शांतिमान् प्रतित होता है।
लेखक स्वयं स्वीकार करता है कि नदी के समान ही कविता सदियों से हमारे साथ रही है। जिस प्रकार जहाँ-तहाँ से जल आकर नदि में मिलते रहते हैं और सागर में समाहित होते रहते हैं, उसी प्रकार कवि के हृदय में भिन्न-भिन्न प्रकार के भाव उठते रहते हैं और वहीं भाव काव्य रूप में परिणत होते रहते हैं।
निष्कर्षतः न तो नदी रिक्त होती है और न ही कविता शब्द रिक्त होती है । तात्पर्य यह कि सहृदय व्यक्ति प्राकृतिक सुन्दरता के आकर्षण से बच नहीं सकते।