MCQ and Summary for अक्षर-ज्ञान (Akshar Gyan) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board
अक्षर-ज्ञान - अनामिका MCQ and सारांश
Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)
1. 'अक्षर ज्ञान' किस कवि की रचना है ?
(A) सुमित्रानंदन पंत
(B) रामधारी सिंह 'दिनकर'
(C) रेनर मारिया रिल्के
(D) अनामिका
उत्तर
(D) अनामिका
2. अनामिका किस काल की कवियित्री हैं ?
(A) रीतिकाल
(B) भक्तिकाल
(C) समकालीन
(D) आदिकाल
उत्तर
(C) समकालीन
3. चौखट में बेटे का क्या नहीं अँटता ?
(A) क
(B) ख
(C) ग
(D) घ
उत्तर
(A) क
4. बच्चा कहाँ आकर थमक जाता है ?
(A) 'ख' पर
(B) 'ग' पर
(C) 'घ' पर
(D) 'ङ' पर
उत्तर
(D) 'ङ' पर
5. कवियित्री अनामिका के अनुसार सृष्टि की विकास-कथा के प्रथमाक्षर क्या है?
(A) सफलता की खुशी में
(B) विफलता के आँसू
(C) मुक्ति की खोज
(D) सुख की प्राप्ति
उत्तर
(B) विफलता के आँसू
6. काव्य-रचना के अलावा अनामिका किन विधाओं में सक्रिय हैं ?
(A) गद्य लेखन और आलोचना
(B) नाट्य-लेखन
(C) पत्रकारिता
(D) उपन्यास-लेखन
उत्तर
(A) गद्य लेखन और आलोचना
7. बेटे ने किसकी पहल पर अक्षर ज्ञान को प्रारंभ किया ?
(A) गुरु की
(B) पिता की
(C) माता की
(D) दादा की
उत्तर
(C) माता की
8. हमारी सृष्टि का स्वरूप कैसा है ?
(A) अत्यंत लघु
(B) सूक्ष्म
(C) दीर्घ
(D) अत्यंत विराट
उत्तर
(D) अत्यंत विराट
9. मां ने बेटे को अक्षर ज्ञान किसपर कराया ?
(A) कॉपी पर
(B) किताब पर
(C) स्लेट पर
(D) ब्लैक बोर्ड पर
उत्तर
(C) स्लेट पर
10. 'गिरिजा कुमार माथुर' पुरस्कार किसे मिला है ?
(A) अजित डोभाल
(B) हरिशंकर परसाई
(C) अनामिका
(D) शरतचंद्र
उत्तर
(C) अनामिका
11. कवियित्री ने विकास कथा का प्रथमाक्षर किसे माना है ?
(A) विफलता के आँसू को
(B) सफलता की मुस्कुराहट को
(C) शांति को
(D) उल्लास को
उत्तर
(A) विफलता के आँसू को
12. बच्चे की आँखों से आँसू क्यों निकलते हैं?
(A) अज्ञानता से
(B) डर से
(C) विद्यालय से
(D) 'ङ' न लिखने की विफलता से
उत्तर
(D) 'ङ' न लिखने की विफलता से
13. अनामिका की रचनाओं में कैसा बोध होता है ?
(A) प्राचीन
(B) आधुनिक
(C) प्राक्
(D) समसामयिक
उत्तर
(D) समसामयिक
14. अनामिका की कविता किस लिए जानी जाती हैं ?
(A) वंचितों की सहानुभूति हेतु
(B) ओज के लिए
(C) दया के लिए
(D) क्षमा के लिए
उत्तर
(A) वंचितों की सहानुभूति हेतु
15. अनामिका का जन्म किस स्थान में हुआ ?
(A) मुजफ्फरपुर (बिहार)
(B) मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश)
(C) मुजफ्फराबाद (पाकिस्तान)
(D) मुजफ्फरनगर (मेरठ)
उत्तर
(A) मुजफ्फरपुर (बिहार)
16. 'शायद' अव्यय का प्रयोग अनामिका जी ने किस अर्थ में किया है ?
(A) कदाचित
(B) संभवतः
(C) (A) एवं (B) दोनों
(D) सभी गलत है
उत्तर
(A) कदाचित
17. खालिस बेचैनी किसकी है ?
(A) 'क' लिखने की
(B) 'ख' लिखने की
(C) 'ग' लिखने की
(D) 'ङ' लिखने की
उत्तर
(A) 'क' लिखने की
18. कवियित्री अनामिका का जन्म कब हुआ?
(A) 1961 ई.
(B) 1962 ई.
(C) 1963 ई.
(D) 1965 ई.
उत्तर
(A) 1961 ई.
19. सृष्टि की विकास-कथा का प्रथमाक्षर क्या है ?
(A) सफलता की पहली मुस्कान
(B) विफलता के परिणामस्वरूप उत्पन्न क्रोध
(C) विफलता पर छलके आँसू
(D) सफलता पर उमड़ा उत्साह
उत्तर
(C) विफलता पर छलके आँसू
अक्षर-ज्ञान कवियित्री परिचय
समकालीन हिंदी कविता में अपनी एक अलग पहचान रखनेवाली कवयित्री अनामिका का जन्म 17 अगस्त 1961 ई० में मुजफ्फरपुर, बिहार में हुआ । उनके पिता श्यामनंदन किशोर हिंदी के गीतकार और बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष थे । अनामिका ने दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम० ए० किया और वहीं से पीएच० डी० की उपाधि पायी। सम्प्रति, वे सत्यवती कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में प्राध्यापिका हैं।
अनामिका कविता और गद्य लेखन में एकसाथ सक्रिय हैं । वे हिंदी और अंग्रेजी दोनों में लिखती – हैं। उनकी रचनाएँ हैं – काव्य संकलन : ‘गलत पते की चिट्ठी’, ‘बीजाक्षर’, ‘अनुष्टुप’ आदि आलोचना : ‘पोस्ट-एलिएट पोएट्री’, ‘स्त्रीत्व का मानचित्र’ आदि । संपादन : ‘कहती हैं औरतें’ ‘(काव्य संकलन) । अनामिका को राष्ट्रभाषा परिषद् पुरस्कार, भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, गिरिजा कुमार माथुर पुरस्कार ऋतुराज साहित्यकार सम्मान आदि प्राप्त हो चुके हैं।
एक कवयित्री और लेखिका के रूप में अनामिका अपने वस्तुपरक समसामयिक बोध और संघर्षशील वंचित जन के प्रति रचनात्मक सहानुभूति के लिए जानी जाती हैं । स्त्री विमर्श में सार्थक हस्तक्षेप करने वाली अनामिका अपनी टिप्पणियों के लिए भी उल्लेखनीय हैं।
प्रस्तुत कविता समसामयिक कवियों की चुनी गई कविताओं की चर्चित शृंखला ‘कवि ने कहा’ से यहाँ ली गयी है । प्रस्तुत कविता में बच्चों के अक्षर-ज्ञान की प्रारंभिक शिक्षण-प्रक्रिया के कौतुकपूर्ण वर्णन-चित्रण द्वारा कवयित्री गंभीर आशय व्यक्त कर देती हैं।
अक्षर-ज्ञान का सारांश (Summary)
प्रस्तुत कविता समसामयिक कवियों की चुनी गई कविताओं की चर्चित श्रृंखला ‘कवि ने कहा‘ से संकलित है। इसमें बच्चों के अक्षर-ज्ञान की प्रारंभिक शिक्षण-प्रक्रिया के कौतुकपूर्ण वर्णन चित्रण द्वारा कवियित्री गंभीर आशय व्यक्त करती है।
चौखटे में नहीं अँटता
बेटे का ‘क‘
कबुतर ही है न-
फुदक जाता है जरा-सा !
कवियित्री अनामिका बच्चों के अक्षरज्ञान के बारे में कहती है कि जब माता-पिता बच्चों के अक्षर सिखाना आरंभ करते हैं तब बाल्यावस्था के कारण बच्चा बड़ी कठिनाई से ‘क‘ वर्ण का उच्चारण कर पाता है।
पंक्ति से उतर जाता है
उसका ‘ख‘
खरगोस की खालिस बेचैनी में !
गमले-सा टूटता हुआ उसका ‘ग‘
घड़े-सा लुढ़कता हुआ उसका ‘घ‘।
इसके बाद ‘ख‘ वर्ण की बारी आती है। इस प्रकार ‘ग‘ तथा ‘घ‘ वर्ण भी सिखता है। लेकिन अबोधता के कारण बच्चा इन वर्णों को क्रम से नहीं बोल पाता। कभी ‘क‘ कहना भूल जाता है तो कभी ‘ख‘। तात्पर्य यह कि व्यक्ति का प्रारंभिक जीवन सही-गलत के बीच झूलता रहता है। जैसे ‘क, ख, ग, घ‘ के सही ज्ञान के लिए बेचैन रहता है।
‘ङ‘ पर आकर थमक जाता है
उससे नहीं सधता है ‘ङ‘ ।
‘ङ‘ के ‘ड‘ को वह समझता है ‘माँ‘
और उसके बगल के बिंदू (.) को मानता है
गोदी में बैठा ‘बेटा‘
कवियित्री कहती है कि अक्षर-ज्ञान की प्रारंभिक शिक्षा पानेवाला बच्चा ‘क‘ वर्ग के पंचमाक्षर वर्ण ‘ङ‘ का ‘ट‘ वर्ग का ‘ड‘ तथा अनुस्वार वर्ण को गोदी में बैठा बेटा मान लेता है। बच्चा को लगता है कि ‘ड‘ वर्ण के आगे अनुस्वार लगने के कारण ‘ङ‘ वर्ण बन गया।
माँ-बेटे सधते नहीं उससे
और उन्हें लिख लेने की
अनवरत कोशिश में
उसके आ जाते हैं आँसु।
पहली विफलता पर छलके आँसु ही
हैं सायद प्रथमाक्षर
सृष्टि की विकास- कथा के।
कवियित्री कहती हैं कि बच्चा ‘ङ‘ वर्ण का सही उच्चारण नहीं कर पाता है। वह बार-बार लिखता है, ताकि वह उसकी सही उच्चारण कर सके, लेकिन अपने को सही उच्चारण करने में असमर्थ जानकर रो पड़ता है। तात्पर्य यह कि अक्षर-ज्ञान जीवन की विकास-कथा का प्रथम सोपान है।
अक्षर-ज्ञान - व्याख्या
चौखटे में नहीं अँटता
बेटे का ‘क’
कबूतर ही है न-
फुदुक जाता है जरा-सा!
पंक्ति से उतर जाता है
उसका ‘ख’
खरगोश की खालिस बेचैनी में !
गमले-सा टूटता हुआ उसका ‘ग’
“घड़े-सा लुढ़कता हुआ उसका ‘घ’
“ड’ पर आकर थमक जाता है
उससे नहीं सधता है ‘ङ’।
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘अक्षर-ज्ञान’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन काव्य पंक्तियों का प्रसंग मनुष्य के बचपन में अक्षर-ज्ञान से है। कवयित्री का कहना है कि बेटा इतना अबोध है कि उसका ‘क’ बनाये गए कोष्ठकों यानी चौखटे में नहीं अँटता है। ‘क’ से कबूतर की संज्ञा देते हुए बच्चा लिखता है बच्चे में और कबूतर में समानता झलकती है। दोनों फुदकने, कूदने, स्वछंद विचरण करने की अवस्था में हैं। दोनों की प्रकृति मिलती-जुलती है। ‘क’ लिखने के क्रम में कोष्ठक से अक्षर इधर-उधर बढ़ जाता है। जिस प्रकार कबूतर स्थिर नहीं सका ठीक उसी प्रकार ‘क’ भी कोष्ठक में नहीं अँटता। कोठे से बाहर इधर-उधर बढ़ जाता है वह कोठे की सीमा-रेखा को लाँघ जाता है। ‘ख’ भी खरगोश की तरह लिखता है ‘ख’ लिखने में भी खरगोश सदृश वह खेसा करता है जिससे ठीक कोई में वह नहीं अँटता।
‘ग’ भी वह ऐसा लिखता है मानो टूटे हुए गमले को दिखाता हो ! वह घड़े की तरह लुढ़कते रूप में ‘घ’ लिखता है। कहने का मूल भाव यह है कि बचपन तो बचपन होता है। उसमें अबोधता, अल्पज्ञता और मासूमियत होती है। चंचलता और निर्मलता का भाव होता है। कबूतर, खरगोश और घड़ा, ये ऐसे प्रतीक रूप हैं जिनसे बच्चे का मनोविज्ञान जुड़ा हुआ है। अक्षर-ज्ञान के क्रम में इन पक्षियों, जंतुओं और पात्रों से उसके बाल-मन पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। यहाँ मनोवैज्ञानिक भाव दिखाये गए हैं। बचपन में बच्चा कैसे अक्षर-ज्ञान की ओर उन्मुख होता है और धीरे-धीरे अक्षर-ज्ञान से परिचित होता है। ‘ङ’ पर उसके हाथ रुक जाते हैं। वह ‘ङ’ लिखने में दिक्कतों का अनुभव करता है। बच्चा ङ को माँ और उससे सटं शून्य को बेटा का रूप मानकर अक्षर-ज्ञान सीखता है।
इस अक्षर-ज्ञान द्वारा कवयित्री ने सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक भावों, हमारी सृष्टि की क्षमता का सूक्ष्म चित्रण, सृजन की महत्ता और माँ-बेटे के रिश्ते को ‘ङ’ अक्षर के माध्यम से प्रदर्शित किया है, व्याख्यायित किया है। यहाँ सरल भाव के साथ गूढ़ भावार्थ भी कविता में निहित है। इसमें बचपन से लेकर सृष्टि की सूक्ष्म व्याख्या भी कवयित्री ने अक्षर-ज्ञान के माध्यम से हमें करायी है। इसमें मनोवैज्ञानिक स्थितियों का सूक्ष्म चित्रण भी है।
ङ के ‘ड’ को वह समझता है ‘माँ’
और उसके बगल के बिन्दु (.) को मानता है
गोदी में बैठा ‘बेटा’
माँ-बेटे सधते नहीं उससे
और उन्हें लिख लेने की
अनवरत कोशिश में
उसके आ जाते हैं आँसू।
पहली विफलता पर छलके ये आँसू ही
हैं शायद प्रथमाक्षर
सृष्टि की विकास-कथा के।
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के अक्षर-ज्ञान काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग बच्चे के अक्षर-ज्ञान के साथ सृष्टि की सृजन-प्रक्रिया से भी है। यहाँ अक्षर-ज्ञान का वर्णन तो हुआ ही है—माँ-बेटे के बीच के कोमल संबंधों की सूक्ष्म व्याख्या भी की गयी है। कवयित्री अक्षर-ज्ञान के बहाने बच्चे के उर्वर मस्तिष्क के प्रति भी हमें आकृष्ट करती है। यहाँ ‘ङ’ अक्षर-ज्ञान के सिलसिले में बच्चा को माँ के रूप में देखता है तथा ङ के पेट में जो (.) बिन्दु है उसे बेटा मानता है। कवयित्री की सूक्ष्म एवं पैनी दृष्टि की दाद देनी होगी। बच्चे को अक्षर-ज्ञान के साथ सृष्टि के सृजनकारी रूपों से भी परिचय कराती है। यहाँ एक साथ दो ज्ञान उपलब्ध कराकर सज्ञान बनाना अत्यंत ही चिंतन का विषय है।
माँ-बेटे के कोमल एवं प्राकृतिक संबंधों को एक अक्षर ‘ङ’ के माध्यम से व्यक्त कर कवयित्री ने अपनी काव्य प्रतिभा के साथ तेजस्विता का भी परिचय दिया है। माँ बेटे को बार-बार अक्षर-ज्ञान कराकर उसे सिद्ध रूप में स्थिर कर देना चाहती है लेकिन बच्चा अबोध और चंचल है। बार-बार कोशिश के बावजूद भी वह थक जाता है। कभी रोने लगता है। यह उसकी विफलता के आँसू हैं। लेकिन इन आँसुओं में, प्रथमाक्षर-ज्ञान में सृष्टि की विकास-कथा भी छिपी हुई है। अंध युग से अपनी यात्रा को अबाध गति से ले चलते हुए मनुष्य आज यहाँ तक आया है। उसका बचपन उसकी प्रौढ़ता में ढल चुका है। उसका ‘क’ उसकी कुशलता के रूप में दिखायी पड़ता है।
आज वह धीरे-धीरे चलकर विकास-यात्रा के लक्ष्य शिखर तक पहुँच पाया है। उसको इस यात्रा में अनेक यंत्रणाओं, संघर्षों को झेलना पड़ा है।