MCQ and Summary for हिरोशिमा (Hiroshima) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board
हिरोशिमा - स० ही० वात्स्यायन MCQ and सारांश
Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)
1. 'हिरोशिमा' के कवि कौन हैं ?
(A) रामधारी सिंह 'दिनकर'
(B) कुँवर नारायण
(C) सच्चिदानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'
(D) जीवनानंद दास
उत्तर
(C) सच्चिदानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'
2. 'अज्ञेय' किसका उपनाम है?
(A) सच्चिदानंद वात्स्यायन
(B) रामधानी सिंह
(C) बदरी नारायण चौधरी
(D) वीरेन डंगवाल
उत्तर
(A) सच्चिदानंद वात्स्यायन
3. 'हिरोशिमा' कहाँ है ?
(A) जापान में
(B) म्यांमार में
(C) कोरिया में
(D) चीन में
उत्तर
(A) जापान में
4. 'हिरोशिमा' कविता में सूरज की संज्ञा किसे दी गई है ?
(A) जापान बम को
(B) अणुबम को
(C) हाइड्रोजन बम को
(D) रडार को
उत्तर
(B) अणुबम को
5. 'अज्ञेय' किस काव्य-धारा के कवि हैं ?
(A) रहस्यवाद
(B) छायावाद
(C) नकेनवाद
(D) प्रयोगवाद
उत्तर
(D) प्रयोगवाद
6. किस काव्य-संकलन क प्रकाशन से हिन्दी में नयी हवा के झोंके आए?
(A) तार-सप्तक
(B) हरी घास पर क्षण भर
(C) चक्रवाल
(D) इन दिनों
उत्तर
(A) तार-सप्तक
7. अज्ञेय किस काल के प्रमुख कवि हैं ?
(A) भक्ति
(B) प्राचीन
(C) आधुनिक
(D) स्वर्णकाल
उत्तर
(C) आधुनिक
8. हिरोशिमा में क्या हुआ ?
(A) अणु बम विस्फोट
(B) निर्माण कार्य
(C) उत्थान कार्य
(D) सभी
उत्तर
(A) अणु बम विस्फोट
9. 'हिरोशिमा' कविता में किसका सजीव चित्रण हुआ है ?
(A) बम का
(B) मानवयी विभिषिका का
(C) टैंक का
(D) तलवारों का
उत्तर
(B) मानवयी विभिषिका का
10. 'हिरोशिमा' शीर्षक कविता के रचनाकार हैं?
(A) अज्ञेय
(B) पंत
(C) दिनकर
(D) मीरादेवी
उत्तर
(A) अज्ञेय
11. अणुबम विस्फोट से क्या हुआ ?
(A) अपार जन विकास
(B) अपार जन हानि
(C) (A) एवं (B) दोनों में
(D) सभी गलत है
उत्तर
(B) अपार जन हानि
12. अणुबम किसने बनाया ?
(A) दानवों ने
(B) मानवों ने
(C) महर्षियों ने
(D) जानवरों ने
उत्तर
(B) मानवों ने
13. हिरोशिमा पर बम किसने गिराया ?
(A) कोरिया ने
(B) चीन ने
(C) अमेरिका ने
(D) अफ्रीका ने
उत्तर
(C) अमेरिका ने
14. हिरोशिमा में मानव का साक्षी क्या है ?
(A) मानव द्वारा गिराया गया अणुबम
(B) वहाँ की स्थापत्य कला
(C) शांति स्तूप
(D) परमाणु संयंत्र
उत्तर
(A) मानव द्वारा गिराया गया अणुबम
15. हिरोशिमा में बम गिराये जाने के बाद वातावरण में क्या सुनाई देने लगा?
(A) चीत्कार
(B) कोहराम
(C) चीत्कार और कोहराम
(D) सभी गलत है
उत्तर
(C) चीत्कार और कोहराम
16. बम गिराने के बाद लोग क्या करने लगे ?
(A) सोने लगे
(B) रोने लगे
(C) हँसने लगे
(D) जान-बचाने भागने लगे
उत्तर
(D) जान-बचाने भागने लगे
17. कौन लोक कल्याणकारी भाव रखता है ?
(A) सूर्य
(B) बम
(C) विज्ञान
(D) शिला
उत्तर
(A) सूर्य
18. हिरोशिमा का मूल अस्तित्व किसने मिटा दिया?
(A) सूरज ने
(B) अणु बम ने
(C) वैज्ञानिकों ने
(D) प्रगति ने
उत्तर
(C) वैज्ञानिकों ने
19. अज्ञेय का जन्म कब हुआ ?
(A) 1910 ई.
(B) 1911 ई.
(C) 1912 ई०
(D) 1913 ई०
उत्तर
(B) 1911 ई.
20. 'हिरोशिमा' कविता किसका चित्रण करती है ?
(A) प्राचीन सभ्यता की खुशहाली का
(B) आधुनिक सभ्यता के विकास का
(C) प्राचीन सभ्यता की मानवीय विभीषिका का
(D) आधुनिक सभ्यता की दुर्दात मानवीय विभीषिका का
उत्तर
(D) आधुनिक सभ्यता की दुर्दात मानवीय विभीषिका का
हिरोशिमा कवि परिचय
अज्ञेय का जन्म 7 मार्च 1911 ई० में कसेया, कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) में हुआ, किंतु उनका मूल निवास कर्तारपुर (पंजाब) था। अज्ञेय की माता व्यंती देवी थीं और पिता डॉ० हीरानंद शास्त्री एक प्रख्यात पुरातत्त्वेत्ता थे । अज्ञेय की प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ में घर पर हुई। उन्होंने मैट्रिक 1925 ई० में पंजाब विश्वविद्यालय से, इंटर 1927 ई० में मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से, बी० एससी० 1929 ई० में फोरमन कॉलेज, लाहौर से और एम० ए० (अंग्रेजी) लाहौर से किया ।
अज्ञेय बहुभाषाविद् थे। उन्हें संस्कृत, अंग्रेजी, हिन्दी, फारसी, तमिल आदि अनेक भाषाओं का ज्ञान था । वे आधुनिक हिंदी साहित्य के एक प्रमुख कवि, कथाकार, विचारक एवं पत्रकार थे । उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं – काव्य : भग्नदूत’, ‘चिंता’, ‘इत्यलम’, ‘हरी घास पर क्षण भर’, ‘बावरा अहेरी’, ‘आँगन के पार द्वार’, ‘कितनी नावों में कितनी बार’, ‘सदानीरा’ आदि; कहानी संग्रह : ‘विपथगा’, ‘जयदोल’, ‘ये तेरे प्रतिरूप’, ‘छोड़ा हुआ रास्ता’, ‘लौटती पगडडियाँ’ आदि; उपन्यास : ‘शेखर : एक जीवनी’, ‘नदी के द्वीप’, ‘अपने-अपने अजनबी’, यात्रा-साहित्यः अरे यायावर रहेगा याद’, ‘एक बूँद सहसा उछली’; निबंध : ‘त्रिशंकु’, ‘आत्मनेपद’, ‘अद्यतन’, ‘भवंती’, ‘अंतरा’, ‘शाश्वती’ आदि; नाटक : ‘उत्तर प्रियदर्शी’; संपादित ग्रंथ : ‘तार सप्तक’, ‘दूसरा सप्तक’, ‘तीसरा सप्तक’, ‘चौथा सप्तक’, ‘पुष्करिणी’, ‘रूपांबरा’ आदि । अज्ञेय ने अंग्रेजी में भी मौलिक रचनाएँ की और अनेक ग्रंथों के अनुवाद भी किए । वे देश-विदेश के अनेक विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफेसर रहे । उन्हें साहित्य अकादमी, ज्ञानपीठ, नुगा (युगोस्लाविया) का अंतरराष्ट्रीय स्वर्णमाल आदि अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए । 4 अप्रैल 1987 ई० में उनका देहांत हो गया ।
अज्ञेय हिंदी के आधुनिक साहित्य में एक प्रमुख प्रतिभा थे। उन्होंने हिंदी कविता में प्रयोगवाद का सूत्रपात किया । सात कवियों का चयन कर उन्होंने ‘तार सप्तक’ को पेश किया और बताया कि कैसे प्रयोगधर्मिता के द्वारा बासीपन से मुक्त हुआ जा सकता है । उनमें वस्तु, भाव, भाषा, शिल्प आदि के धरातल पर प्रयोगों और नवाचरों की बहुलता है।
आधुनिक सभ्यता की दुर्दात मानवीय विभीषिका का चित्रण करनेवाली यह कविता एक अनिवार्य प्रासंगिक चेतावनी भी है । कविता अतीत की भीषणतम मानवीय दुर्घटना का ही साक्ष्य नहीं है, बल्कि आणविक आयुधों की होड़ में फंसी आज की वैश्विक राजनीति से उपजते संकट की आशंकाओं से भी जुड़ी हुई है । आधुनिक कवि अज्ञेय की प्रस्तुत कविता उनकी समग्र कविताओं के संग्रह ‘सदानीरा’ से यहाँ संकलित है ।
हिरोशिमा का सारांश (Summary)
रस्तुत कविता में आधुनिक सभ्यता की मानवीय विभीषिका का चित्रण किया गया है। यह कविता ‘अज्ञेय‘ की ‘सदानीरा‘ कविता संग्रह से संकलित है।
एक दिन सहसा
सुरज निकला
अरे क्षितिज पर नहीं,
नगर के चौकः
धूप बरसी
पर अंतरिक्ष से नहीं,
फटी मिट्टी से
कवि कहता है कि एक दिन सबेरे प्रकाश दिखाई पड़ा। यह प्रकाश क्षितिज से निकलते सूरज का नहीं, बल्कि शहर के मध्य में अमेरिका द्वारा गिराए गए बम का था। लोग गर्मी से जलने लगे। यह धूप की गर्मी नहीं थी। यह गर्मी बम विस्फोट से उत्सर्जित किरणों की थी। गर्मी फटी धरती की थी।
छायाएँ मानव-जन की
दिशाहीन
सब ओर पड़ी-वह सुरज
नहीं उगा था पूरब में, वह
बरसा सहसा
बीचो-बीच नगर के :
काल-सूर्य के रथ के
पहियों के ज्यों अरे टुटकर
बिखर गये हो
दशों दिशा में।
कवि कहता है कि मनुष्य की छायाएँ दिशाहिन हो गई। प्रकाश छिटने लगा, लेकिन यह प्रकाश सूर्य का नहीं, बल्कि मानव के नृशंसता का था, जिसमें मानवता झुलस रही थी। कवि कहता है कि यह नगर के मध्य में मृत्यु रूपी सूर्य के टुटे हुए अरे का प्रकाश था। अतः बम फटते हि विध्वंसक पदार्थ मौत बनकर दशों दिशाओं में नाचने लगे।
कुछ छन का वह उदय-अस्त
केवल एक प्रज्वलित छन की
दृश्य सोख लेने वाली दो पहरी
फिर ?
छायाएँ मानव-जन की
नहीं मिटी लंबी हो-हो कर :
मानव ही सब भाप हो गये।
छायाएँ तो अभी लिखी हैं।
झुलसे हुए पत्थरों पर
उजड़ी सड़कों की गच पर।
कवि कहता है कि बम गिरने के बाद कुछ छन में ही विनाशलीला का दृश्य मन्द पड़ने लगा। दोपहर तक सारी लीला खत्म हो गई तथा मानव शरीर भाप बनकर वातावरण में मिल गया, परन्तु यह दुर्घटना आज भी झुलसे हुए पत्थरों और उजड़ी हुई सडकों पर के रूप में निशानी है।
मानव का रचा हुआ सुरज
मानव को भाप बनाकर सोख गया।
पत्थर पर लिखी हुई यह
जली हुई छाया
मानव की साखी है।
मानव के द्वारा बनाया गया बम मानव को ही भाप में बदलकर मिटा दिया। पत्थर पर लिखी हुई वह जलती छाया अर्थात् विकृत रूप मानव के नृशंसता का गवाह है।
हिरोशिमा - व्याख्या
एक दिन सहसा
सूरज निकला
अरे क्षितिज पर नहीं,
नगर के चौक
धूप बरसी
पर अन्तरिक्ष से नहीं,
फटी मिट्टी से।
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘हिरोशिमा’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग हिरोशिमा पर गिराये गये बम से हैं।
कवि कहता है कि अचानक एक दिन चौक पर सूरज का विस्फोट हुआ। उस सूरज ने क्षितिज पर नहीं, पूरब में नहीं बल्कि चौक पर अपनी तीखी धूप से जन-जीवन को तहस-नहस कर दिया।
अंतरिक्ष से सूरज नहीं निकला था। बम विस्फोट से धरती दहल गयी थी और उसकी आंतरिक संरचना में उथल-पुथल मच गयी थी। यहाँ कवि ने नये प्रयोगों द्वारा शब्दों के माध्यम से मानवीय क्रूरतम् पक्षों को उद्घाटित किया है। हिरोशिमा पर बम विस्फोट भयंकर मानवीय दुर्घटना थी। आज के आणविक आयुध की होड़ में हम कितने क्रूर हो गए हैं। इस सृष्टि के विनाश में सदैव तत्पर रहते हैं। वैश्विक राजनीति के कारण अनेक संकट की आशंकाएँ बनी रहती हैं। सृष्टि का पालनकर्ता सूर्य नहीं बल्कि सृष्टि का विनाशक सूर्य धरती पर उगा था। कहने का मूल भाव है कि मनुष्य ही आज सबसे खतरनाक जीव हो गया है। वह दिन-रात विध्वंसक कार्यों में संलग्न रहता है।
उसी के काले कारनामों में हिरोशिमा पर बरसाया गया बम भी था जो सृष्टिकाल का भयंकर विस्फोट था। अपार धन-जन और संस्कृति की हानि हुई थी। इन पंक्तियों में सूर्य को प्रतीक रूप में कवि ने प्रयोग किया है। कवि ने मानव के विध्वंसकारी रूप का वर्णन किया है। कैसे हम वैसे विनाशकारी सूर्य की कल्पना और सृजन कर रहे हैं जो सारी सृष्टि का विनाशक सिद्ध हो रहा है।
छायाएँ मानव-जन की
दशाहीन
सब ओर पड़ीं-वह सूरज
नहीं उगा था पूरब में, वह
बरसा सहसा
बीचों-बीच नगर के
काल-सूर्य के रथ के
पहियों के ज्यों अरे टूट कर
बिखर गये हों
दसों दिशा में।
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक हिरोशिमा काव्य-पाठ से ली गयी हैं।
इन पंक्तियों का प्रसंग हिरोशिमा पर बरसाए गए बम और उससे हुए अपार धन-जन के महाविनाश से है। कवि ने अपनी काव्य-पक्तियों में अपने भावों को व्यक्त करते हुए कहा है कि जब बम विस्फोट हुआ था उस समय चारों तरफ अफरा-तफरी मच गयी थी—कुहराम मच गया था। लोग जान बचाने के लिए दिशाहीन होकर जिधर-जिधर भाग रहे थे। अपनी प्राण रक्षा के लिए आकुल-व्याकुल दिख रहे थे। वह सूरज पूरब में उगकर नहीं आया था-धरती पर। वह अचानक शहर के बीचोंबीच में गिरा। लगता था कि कालरूपी सूर्य के रथ के पहिये धूरी के साथ टूटकर बिखर गये हों।
इन पंक्तियों में सूर्य को प्रतीक मानते हुए बम की विध्वंसकारी लीलाओं, उससे हुई अपार धन-जन की हानि, मानवीय पीड़ाओं का यथार्थ और पीडादायी वर्णन हुआ है। यह कवि के जीवन : की सबसे बड़ी दर्दनाक घटना है आज आदमी अपनी क्रूरता की सीमाओं को लाँघ गया है और स्वयं के महाविनाश में लगा हुआ है।
कुछ क्षण का वह उदय-अस्त।
केवल एक प्रज्वलित क्षण की
दृश्य सोख लेनेवाली दोपहरी।
फिर?
छायाएँ मानव जन की
नहीं मिटीं लम्बी हो-होकर;
मानव ही सब भाप हो गए।
छायाएँ तो अभी लिखी हैं
झुलसे हुए पत्थरों पर
उजड़ी सड़कों की गच पर।
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘हिरोशिमा’ नामक काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग हिरोशिमा पर गिराये गए बम से है जिससे अपार धन-जन की हानि हुई थी।
कवि कहता है कि बम विस्फोट काल में कुछ क्षण तक स्तब्धता छा गयी थी। चारों तरफ धुआँ ही धुआँ और विस्फोटक पदार्थों से धरती पट गयी थी। प्रतीत होता था कि यह दोपहरी प्रज्ज्वलित क्षण के दृश्यों को सोख लेगी। कहने का मूल भाव यह है कि दोपहर का सूर्य ज्यादा गरमी वाला होता है। उसने यानी सूर्यरूपी बम ने जन-जन के अस्तित्व को मिटा दिया था क्षणभर के लिए।