MCQ and Summary for लौटकर आऊँगा फिर (Laut aaunga Fir) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board
लौटकर आऊँगा फिर - जीवनानंद दास MCQ and सारांश
Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)
1. जीवनानंद दास बांग्ला के किस काल के प्रमुख कवि है?
(A) आदिकाल
(B) मध्यकाल
(C) रवीन्द्रनाथ काल
(D) रवीन्द्रोत्तर काल
उत्तर
(D) रवीन्द्रोत्तर काल
2. कौन सी कविता के रचयिता जीवनानंद दास है ?
(A) अक्षर ज्ञान
(B) लौटकर आऊँगा फिर
(C) हमारी नीद
(D) भारतमाता
उत्तर
(B) लौटकर आऊँगा फिर
3. 'लौटकर आऊँगा फिर' कविता में कवि का कौन सा भाव प्रकट होता है ?
(A) मातृभूमि-प्रेम
(B) धर्म-भाव
(C) संसार की नश्वरता
(D) मातृ-भाव
उत्तर
(A) मातृभूमि-प्रेम
4. "वनलता सेन" किस कवि की श्रेष्द रचना है?
(A) रवीन्द्रनाथ ठाकुर
(B) जीवनानंद दास
(C) नजरूल इस्लाम
(D) जीवानंद
उत्तर
(B) जीवनानंद दास
5. 'लौटकर आऊँगा फिर' का प्रमुख वर्ण्य-विषय क्या है ?
(A) बंगाल की प्रकृति
(B) बंगाल की संस्कृति
(C) बंग संगीत
(D) बंग-भंग
उत्तर
(A) बंगाल की प्रकृति
6. जीवनानंद दास कैसे कवि है ?
(A) रीतिवादी
(B) प्रगतिवादी
(C) यथार्थवादी
(D) आधुनिक
उत्तर
(C) यथार्थवादी
7. रविंद्रनाथ ठाकुर कौन थे?
(A) बंगाल के चर्चित कवि
(B) बंगाल के मुख्यमंत्री
(C) बंगाल के राज्यपाल
(D) बंगाल के शासक
उत्तर
(A) बंगाल के चर्चित कवि
8. जीवनानंद की कौन-सी कविता रवीन्द्रोलर युग की श्रेष्ठ कविता मानी जाती है?
(A) बनलता सेन
(B) वनलता प्रेम
(C) आलोक पृथ्वी
(D) झरा पालक
उत्तर
(A) बनलता सेन
9. कवि ने फटे पाल से क्या दर्शाने की कोशिश की है?
(A) नावों की स्थिति
(B) मछली मारने की विवशता
(C) मल्लाहो की गरीबी
(D) बंगाल को फटेहालो
उत्तर
(D) बंगाल को फटेहालो
10. जमीन पर चावल फेंकने से कवि का क्या तात्पर्य है ?
(A) बंपाल चावल का कटोर है
(B) बंगाल में आवश्यकता से अधिक चावल उपजता है
(C) बंगाल में पशु-पक्षी सभी के लिए चावल उपलब्ध है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर
(A) बंपाल चावल का कटोर है
11. 'लौटकर फिर आऊँगा' कविता में किस काल का वर्णन है ?
(A) प्रात:काल का
(B) ब्रह्म बेला का
(C) भोर समय का
(D) संध्या समय का
उत्तर
(D) संध्या समय का
12. बंगाल से किसे बेपनाह लगाव है ?
(A) जीवनानंद को
(B) फसलों को
(C) धान की फसल को
(D) मछलियों को
उत्तर
(A) जीवनानंद को
13. जीवनानंद दास बंगाल की धरती पर क्यों लौटकर आना चाहते हैं?
(A) बंगाल की आबोहवा उन्हें अच्छी लगती है
(B) बंगाल की धरती उनकी मातृभूमि है
(C) बंगाल में उन्हें नींद अच्छी आती है
(D) वे सिर्फ बंग्ला भाषा समझ एवं बोल पाते है
उत्तर
(B) बंगाल की धरती उनकी मातृभूमि है
14. कवि कहाँ लौटना चाहता है ?
(A) बिहार में
(B) स्वर्ग में
(C) नरक में
(D) बंगाल की धरती पर
उत्तर
(D) बंगाल की धरती पर
15. जीवनानंद दास की किस कविता को प्रवुद्ध आलोचकों द्वारा रवींद्रोत्तर युग की श्रेष्ठतम प्रेम कविता की
संज्ञा दी गई है ?
(A) मनविंहगम
(B) वनलता सेन
(C) रूपसी बंगला
(D) झरा पालक
उत्तर
(B) वनलता सेन
16. 'लौटकर आऊँगा फिर' कविता किस कवि द्वारा भाषांतरित की गई है ?
(A) जीवनानंद दास
(B) विनोद कुमार शुक्ल
(C) प्रयाग शुक्ल
(D) कुँवर नारायण
उत्तर
(C) प्रयाग शुक्ल
लौटकर आऊँग फिर कवि परिचय
बाँग्ला के सर्वाधिक सम्मानित एवं चर्चित कवियों में से एक जीवनानंद दास का जन्म 1899 ई० में हुआ था । रवीन्द्रनाथ के बाद बाँग्ला साहित्य में आधुनिक काव्यांदोलन को जिन लोगों ने योग्य नेतृत्व प्रदान किया था, उनमें सबसे अधिक प्रभावशाली एवं मौलिक कवि जीवनानंद दास ही हैं । इन कवियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती के रूप में था रवीन्द्रनाथ का स्वच्छंदतावादी काव्य । स्वच्छंदतावाद से अलग हटकर कविता की नई यथार्थवादी भूमि तलाश करना सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य था । इस कार्य में अग्रणी भूमिका जीवनानंद दास की रही । उन्होंने बंगाल के जीवन में रच-बसकर उसकी जड़ों को पहचाना और उसे अपनी कविता में स्वर दिया। उन्होंने भाषा, भाव एवं दृष्टिकोण में नई शैली, सोचं एवं जीवनदृष्टि को प्रतिष्ठित किया ।
सिर्फ पचपन साल की उम्र में जीवनानंद दास का निधन एक मर्मांतक दुर्घटना में हुआ, सन् 1954 में । तब तक उनके सिर्फ छह काव्य संकलन प्रकाशित हुए थे – ‘झरा पालक’, ‘धूसर पांडुलिपि’, ‘वनलता सेन’, ‘महापृथिवी’: ‘सातटि तागर तिमिर’ और ‘जीवनानंद दासेर श्रेष्ठ कचिता’ ! उनके अन्य काव्य संकलन ‘रूपसी बांग्ला’,’बला अबेला कालबेला’, ‘मनविहंगम’ और ‘आलोक पृथिवी’ निधन के बाद प्रकाशित हुए । उनके निधन के बाद लगभग एक सौ कहानियाँ और तेरह उपन्यास भी प्रकाशित किए गये ।
‘वनलता संन’ काव्यग्रंथ की ‘वनलता सेन’ शीर्षक कविता को प्रबुद्ध आलोचकों द्वारा रवींद्रोत्तर युग की श्रेष्ठतम प्रेम कविता की संज्ञा दी गयी है । वस्तुतः यह कविता बहुआयामी भाव-व्यंजना का उत्कृष्ट उदाहरण है । निखिल बंग रवींद्र साहित्य सम्मेलन के द्वारा ‘वनलता सेन’ को 1952 ई० में श्रेष्ठ काव्यग्रंथ का पुरस्कार दिया गया था ।
यहाँ समकालीन हिंदी कवि प्रयाग शक्ल द्वारा भाषांतरित जीवनानंद दास की कविता प्रस्तुत है। यह कवि की अत्यंत लोकप्रिय और बहुप्रचारित कविता है । कविता में कवि का अपनी मातृभूमि तथा परिवेश से उत्कट प्रेम अभिव्यक्त होता है। बंगाल अपने नैसर्गिक सम्मोहन के साथ चुनिंदा चित्रों में सांकेतिक रूप से कविता में विन्यस्त है । इस नश्वर जीवन के बाद भी इसी बंगाल में एक बार फिर आने की लालसा मातृभूमि के प्रति कवि के प्रेम की एक मोहक भंगिमा के रूप में सामने आती है।
लौटकर आऊँगा फिर का सारांश (Summary)
प्रस्तुत कविता ‘लौटकर आऊँगा फिर‘ कवि प्रयाग शुक्ल द्वारा भाषांतरित जीवनानंद दास की कविता है। इसमें कवि का अपनी मातृभूमि तथा परिवेश का उत्कट प्रेम अभिव्यक्त है। कवि ने इस कविता में एक बार फिर जन्म लेने की लालसा प्रकट कर अपनी मातृभूमि के प्रति श्रद्धा प्रकट की है।
खेत हैं जहाँ धान के, बहती नदी
के किनारे फिर आऊँगा लौटकर
एक दिन बंगाल में; नहीं शायद
होऊँगा मनुष्य तब, होऊँगा अबाबील
कवि कहता है कि धान के खेत वाले बंगाल में, बहती नदी के किनारे, मैं एक दिन लौटूँगा। हो सकता है मनुष्य बनकर न लौटूँ । अबाबील होकर
या फिर कौवा उस भोर का-फुटेगा नयी
धान की फसल पर जो
कुहरे के पालने से कटहल की छाया तक
भरता पेंग, आऊँगा एक दिन!
या फिर कौआ होकर, भोर की फूटती किरण के साथ धान के खेतों पर छाए कुहासे में, कटहल पेड़ की छाया में जरूर आऊँगा।
बन कर शायद हंस मैं किसी किशोरी का;
घुँघरू लाल पैरों में;
तैरता रहुँगा बस दिन-दिन भर पानी में-
गंध जहाँ होगी ही भरी, घास की।
किसी किशोरी का हंस बनकर, घुँघरू जैसे लाल-लाल पैरों में दिन-दिन भर हरी घास की गंध वाली पानी में, तैरता रहुँगा।
आऊँगा मैं। नदियाँ, मैदान बंगाल के बुलायेंगे-
मैं आऊँगा। जिसे नदी धोती ही रहती है पानी
से इसी सजल किनारे पर।
बंगाल की मचलती नदियाँ, बंगाल के हरे भरे मैदान, जिसे नदियाँ धोती हैं, बुलाएँगे और मैं आऊँगा, उन्हीं सजल नदियों के तट पर।
शायद तुम देखोगे शाम की हवा के साथ उड़ते एक उल्लु को
शायद तुम सुनोगे कपास के पेड़ पर उसकी बोली
घासीली जमीन पर फेंकेगा मुट्ठी भर-भर चावल
शायद कोई बच्चा – उबले हुए !
हो सकता है, शाम की हवा में किसी उड़ते हुए उल्लु को देखो या फिर कपास के पेड़ से तुम्हें उसकी बोली सुनाई दें। हो सकता है, तुम किसी बालक को घास वाली जमीन पर मुट्ठी भर उबले चावल फेंकते देखो
देखोगे रूपसा के गंदले-से पानी में
नाव लिए जाते एक लड़के को – उड़ते फटे
पाल की नाव !
लौटते होंगे रंगीन बादलों के बीच, सारस
अँधेरे में होऊँगा मैं उन्हीं के बीच में
देखना !
या फिर रूपसा नदी के मटमैले पानी में किसी लड़के को फटे-उड़ते पाल की नाव तेजी से ले जाते देखो या फिर रंगीन बादलों के मध्य उड़ते सारस को देखो, अंधेरे में मैं उनके बीच ही होऊँगा। तुम देखना मैं आऊँगा जरूर।
लौटकर आऊँगा फिर - व्याख्या
खेत हैं जहाँ धान के, बहती नदी
के किनारें फिर आऊँगा लौटकर
एक दिन बंगाल में; नहीं शायद
होऊँगा मनुष्य तब, होऊँगा अबाबील
या फिर कौवा उस भोर का- फूटेगा नयी
धान की फसल पर जो
कुहरे के पालने से कटहल की छाया तक
भरता पेंग, आऊँगा एक दिन !
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “लौटकर आऊँगा फिर” काव्य पाठ से ली गयी हैं। इन काव्य पंक्तियों का प्रसंग कवि की बंगाल के प्रति अनुरक्ति से है।
उपर्युक्त काव्य पंक्तियों के माध्यम से कवि कहता है कि बंगाल में एक दिन पुनः लोटकर मैं आऊंगा। नदी के किनारे जो धान के खेत हैं, उनका दर्शन करूंगा। संभव है उस समय मैं भले ही मनुष्य के रूप में नहीं, भले ही कौवा या अबाबील के रूप में ही सही बनकर आऊंगा। – उस भोर का मौसम कितना सुखद होगा जब नयी धान की फसल का दर्शन होगा? कुहरे के बीच कटहल की छाया तक कदमों को बढ़ाते हुए अवश्य आऊँगा। एक दिन अवश्य आऊँगा।
अपनी उपर्युक्त कविता में कवि ने बीते दिनों की स्मृति को याद किया है। संभव है—यह कविता बंगला-देश या बंगाल प्रांत बनने के क्रम में लिखी गयी हो। बंगाल में धान की खेती काफी होती है। कवि अतीत के भूले-बिसरे दिनों की यादकर प्रकृति के साथ अपना संबंध स्थापित करना चाहता है। कवि को नदी से प्रेम है, कवि को धान के खेतों से प्रेम है। कवि के भीतर जीवंतता विद्यमान है तभी तो वह कौवा जैसा उड़ना चाहता है। अबाबील बनना चाहता है उसे भोर प्रिय है। उसे नयी धान की फसलों से प्यार है। कुहरे के बीच वह हिम्मत नहीं हारता। कटहल की छाया यानी जीवन के अवसान काल तक भी वह हार नहीं मानना चाहता। बल्कि पेंग भरता, कदम बढ़ाता आने का वचन देता है। वह एक दिन पुनः अवश्य आएगा, मातृभूमि के प्रति प्रेम, प्रकृति के प्रति प्रेम, जीव-जंतुओं के प्रति प्रेमभाव इस कविता में वर्णित है। कवि अतीत के बीते दिनों की याद कर पुनः मातृभूमि का दर्शन करने के लिए आने का वचन देता है।
बनकर शायद हंस मैं किसी किशोरी का,
धुंघरू लाल पैरों में,
तैरता रहूँगा बस दिन-दिन भर पानी में-
गंध जहाँ होगी ही भरी, घास की।
आऊँगा मैं। नदियाँ, मैदान बंगाल के बुलाएँगे
मैं आऊंगा जिसे नदी धोती ही रहती है पानी
से-इसी हरे सजल किनारे पर।
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘लौटकर आऊंगा फिर’ काव्य पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग बंगाल भूमि, वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य से जुड़ा हुआ है।
कवि कहता है कि मैं हंस बनकर बंगाल भूमि पर आऊँगा। वहाँ की किशोरियों के लाल-लाल गुलाबी पैरों में घुघरु की रून-झन आवाज को सुनूँगा, उनका दर्शन करूँगा। दिन-भर वहाँ की नदियों में हंस बनकर तैरूंगा। हरी-भरी घास जडित मैदानों के बीच विचरण करूंगा। वहाँ की धरती की गंध से स्वयं को सुवासित करूंगा। बंगाल की नदियाँ वहाँ के मैदान मुझे अवश्य बुलाएंगे। मैं भी उनका दर्शन करने अवश्य आऊंगा। नदी अपने स्वच्छ और निर्मल पानी से किनारे बसे हुए मैदानों, खेतों, पेड़ों को सींचती रहती है। उनके दु:ख-दर्द को धोती रहती है। नदी के किनारे बसे हुए गांव, वहाँ की सजल आँखों का भी दर्शन करूंगा।
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ बंगाल भूमि के सौंदर्य, नदियों का, निवासियों का, घास के मैदानों का दर्शन करने एक न एक दिन कवि अवश्य आएंगा। कवि बंगाल भूमि के प्रति काफी संवेदना रखता है।
शायद तुम देखोगे शाम की हवा के साथ उड़ते एक उल्लू को
शायद तुम सुनोगे कपास के पेड़ पर उसकी बोली
घासीली जमीन पर फेंकेगा मुट्ठी भर-भर चावल
शायद कोई बच्चा-उबले हुए !
देखोगे, रूपसा के गंदले-से पानी में
नाव लिए जाते एक लड़के को-उड़ते
फटे पाल की नाव!
लौटते होंगे रंगीन बादलों के बीच, सारस
अंधेरे में होऊंगा मैं उन्हीं के बीच में
देखना!
प्रस्तुत काव्य पक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “लौटकर आऊंगा फिर” काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग बंगाल भूमि की प्राकृतिक सुषमाओं से जुड़ा हुआ है। कवि कहता है कि जब तुम बंगाल की भूमि पर उतरोगे तो शाम की हवा में उड़ते हुए उल्लू का दर्शन करोगे। संभव हो, तुम उल्लू की बोली भी कपास के पेड़ पर सुनोगे। वहाँ की घास से ढंकी हुई जमीन पर तब उबले हुए चावल के दाने कोई नन्हा बच्चा फेंकेगा।
कवि अपनी आँखों से देखता है कि उड़ते हुए फटे पाल की नाव के साथ गंदले पानी के रूप-रंग का एक लड़का नाव को नदी के बीच लिए जा रहा है।
कवि पुनः कहता है कि रंगीन बादलों के बीच से संध्याकाल में सारसों के झंड लौटते हुए दिखेंगे। अंधेरा होने को है। उसी बीच मैं भी मिलूंगा। इन काव्य पंक्तियों के द्वारा कवि बंगाल भूमि की, वहाँ के पक्षियों की, बादलों की, हवाओं नाव के गंदे लड़के की चर्चा कर एक ऐसा
दृश्य उपस्थित करता है जो मन को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। कवि प्रकृति प्रेमी है। उसे प्रकृति से अटूट प्रेम है वह प्रकृति के बीच जीना चाहता है। वह प्रकृति की गोद में विचरण करना चाहता है।