MCQ and Summary for मछली (Machhali) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board

मछली - विनोद कुमार शुक्ल MCQ and सारांश

Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)

1. 'मछली' किस कहानीकार की रचना है ?
(A) नलिन विलोचन शर्मा
(B) प्रेमचंद
(C) अज्ञेय
(D) विनोद कुमार शुक्ल
उत्तर
(D) विनोद कुमार शुक्ल

2 'मछली' किस प्रकार की रचना है?
(A) सामाजिक
(B) मनोवैज्ञानिक
(C) ऐतिहासिक
(D) वैज्ञानिक
उत्तर
(A) सामाजिक

3. 'महाविद्यालय' पुस्तक से कौन-सी रचना संकलित है ?
(A) विष के दाँत
(B) मछली
(C) नौबतखाने में इबादत
(D) शिक्षा और संस्कृति
उत्तर
(B) मछली

4. 'मछलो' कहानी में किस वर्ग का जीवन वर्णित है ?
(A) उच्च वर्ग
(B) मध्यम वर्ग
(C) निम्न वर्ग
(D) मजदूर वर्ग
उत्तर
(B) मध्यम वर्ग

5. संतू-नरेन आपस में कौन है ?
(A) भाई-भाई
(B) चाचा-भतीजा
(C) भाई-बहन
(D) जीजा-साला
उत्तर
(A) भाई-भाई

6. विनोद कुमार शुक्ल कहानीकार उपन्यासकार के अलावा और क्या है ?
(A) कवि
(B) नाटककार
(C) आलोचक
(D) राजनेता
उत्तर
(D) राजनेता

7. 'जय-हिन्द' शुक्ल जी का क्या है ?
(A) पद्य
(B) काव्य संग्रह
(C) गद्य
(D) गद्य संग्रह
उत्तर
(B) काव्य संग्रह

8. विनोद कुमार शुक्ल कहाँ के निवासी हैं ?
(A) छत्तीसगढ़
(B) उत्तर प्रदेश
(C) मध्य प्रदेश
(D) बिहार
उत्तर
(A) छत्तीसगढ़

9. शुक्लजी के गाँव का क्या नाम है ?
(A) छत्तीसगढ़
(B) राजनाँद गाँव
(C) मसौढ़ा
(D) पटना
उत्तर
(B) राजनाँद गाँव

10. 'पेड़ का कमरा' किसकी रचना है ?
(A) विनोद कुमार शुक्ल
(B) अशोक वाजपेयी
(C) अमरकांत
(D) यतीन्द्र मिश्र
उत्तर
(A) विनोद कुमार शुक्ल


मछली- लेखक परिचय

विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 ई० में राजनांदगाँव, छत्तीसगढ़ में हुआ । । उन्होंने वृत्ति के रूप में प्राध्यापन को अपनाया । वे इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय में एसोसिएट . प्रोफेसर थे । वे दो वर्षों (1994-1996 ई०) तक निराला सृजनपीठ में अतिथि साहित्यकार भी रहे । उनका पहला कविता संग्रह ‘लगभग जयहिंद’ पहचान सीरीज के अंतर्गत 1971 में प्रकाशित हुआ। उनके अन्य कविता संग्रह हैं – ‘वह आदमी नया गरम कोट पहिनकर चला गया विचार की तरह’, ‘सबकुछ होना बचा रहेगा’ और ‘अतिरिक्त नहीं । उनके तीन उपन्यास – ‘नौकर की कमीज’, ‘खिलेगा तो देखेंगे’ और ‘दीवार में एक खिडकी रहती थी’ तथा दो कहानी संग्रह – ‘पेड़ पर कमरा’ और ‘महाविद्यालय’ भी प्रकाशित हो चुके हैं। उनके उपन्यासों का कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। इतालवी भाषा में उनकी कविताओं एवं एक कहानी संग्रह ‘पेड़ पर कमरा’ का अनुवाद हुआ है । ‘नौकर की कमीज’ उपन्यास पर मणि कौल द्वारा फिल्म का भी निर्माण हुआ है । विनोद कुमार शुक्ल को 1992 ई० में रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार, 1997 ई० में दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान और 1990 ई० में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं।

बीसवीं शती के सातवें-आठवें दशक में विनोद कुमार शुक्ल एक कवि के रूप में सामने आए थे। कुछ ही समय बाद उसी दौर में उनकी दो-एक कहानियाँ भी सामने आई थीं । धारा और प्रवाह से बिल्कुल अलग, देखने में सरल किंतु बनावट में जटिल अपने न्यारेपन के कारण . उन्होंने सुधीजन का ध्यान आकृष्ट किया था । यह खूबी भाषा या तकनीक पर निर्भर नहीं थी। इसकी जड़ें संवेदना और अनुभूति में थीं और यह भीतर से पैदा हुई खासियत थी । तब से लेकर आज तक वह अद्वितीय मौलिकता अधिक स्फुट, विपुल और बहुमुखी होकर उनकी कविता, उपन्यास और कहानियों में उजागर होती आयी है।।

प्रस्तुत कहानी कहानियों के उनके संकलन ‘महाविद्यालय’ से ली गयी है । कहानी बचपन की स्मृति के भाषा-शिल्प में रची गयी है और इसमें एक किशोर की वयःसंधिकालीन स्मृतियाँ, दृष्टिकोण और समस्याएँ हैं । कहानी एक छोटे शहर के निम्न मध्यवर्गीय परिवार के भीतर के वातावरण, जीवन यथार्थ और संबंधों को आलोकित करती हुई लिंग-भेद की समस्या को भी स्पर्श करती है। घटनाएँ, जीवन प्रसंग आदि के विवरण एक बच्चे की आँखों देखे हुए और उसी के मितकथन से उपजी सादी भाषा में हैं । कहानी का समन्वित प्रभाव गहरा और संवेदनात्मक है। कहानी अपनी प्रतीकात्मकता के कारण मन पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ती है।


मछली- पाठ परिचय

प्रस्तुत पाठ ’मछली’ कहानी संकलन ’महाविद्यालय’ से ली गई है। इस कहानी में एक छोटे शहर के निम्न मध्यमवर्गीय परिवार के भीतर के वातावरण, जीवन यर्थाथ तथा संबंधों को आलोकित करती हुई लिंग-भेद को भी स्पर्श करती है।


मछली का सारांश (Summary)

प्रस्तुत पाठ ’मछली’ संवेदना पूर्ण कहानी है। इसमें मछली के माध्यम से लोगों के मनोभाव को व्यक्त किया गया है।
बच्चे अपने पिता के साथ मछली खरीदने बाजार जाते हैं। तीन मछलीयाँ खरीदी जाती है, जिनमें एक खरीदने के वक्त ही मर गई थी। बच्चे झोले में मछलीयों को रखकर गली से होकर घर वापस लौटते हैं। बूंदे पड़ने के कारण बाजार में भीड़ घट रही थी। बच्चे भी इसलिए दौड़ रहे थे कि मछलीयाँ बिना पानी के झोले में ही न मर जाएँ। झोले में रखी तीन मछलीयों में से दो जीवित थी, उनकी तड़प के झटके बच्चे महसुस कर रहे थे।
अचानक जोरों से वर्षा होने लगी। बच्चे झोले के मुँह इसलिए फैला दिए कि मछलीयों में थोड़ा जान आ जाए, क्योंकि उनकी इच्छा थी की उनमें से एक मछली कुएँ मे पाली जाए और उसके साथ खेली जाए।
 वर्षा में दोनों भाई भींगने से थर्र-थर कांपने लगे। स्नानघर का दरवाजा बंद करके तीनों मछलीयों को बाल्टी में डाल दिया। संतू ठंड से कांप रहा था। माँ की मार के भय से दोनों भाई कमीज एवं पेंट निचोड़कर बाल्टी के पास बैठ गये। संतु बड़े प्यार से मछली की ओर देख रहा था।
बड़े भाई ने कहा इसमें से जीवित एक मछली पिताजी से मांग लेंगे। संतू मछली को छूना चाहता था, किंतु काटने के डर से नहीं छूता था। तभी लेखक ने उसे छूने को कहा। उसने सहमते हुए एक मछली को छूआ, लेकिन डर कर अपना हाथ खींच लिया।
लेखक ने बाल्टी से मछली निकाली और पुनः बाल्टी में डाल दी। इस क्रम में मछली उछली तो पानी के छींटे उन पर पड़े। संतु चौककर पीछे हट गया।
लेखक मछली की आँखों में अपना छाया देखना चाहता था क्योंकि दीदी का कहना था कि मरी हुई मछली की आँखों में झाँकने से अपनी परछाई नहीं दिखती। इसलिए पहले संतु का झाँकने को कहा, किंतु उससे कोई जवाब नहीं मिला तो लेखक मछली को अपने चेहरे के समीप लाकर देखा तो उसे उसकी आँख में धुंधली-सी परछाई दिखी, लेकिन ये परछाई थी कि मछली के आँखों का रंग था, यह समझ नहीं पाया। इसके बाद दीदी को बुलाने को कहा, लेकिन दीदी के सोने की बात सुनकर वह आश्चर्य में पड़ गया। माँ को मसाला पीसते हुए देखकर दुःखी हो गया कि मछली आज ही कट जाएगी। संतु भी उदास हो गया।
वर्षा बंद हो गई तब लेखक ने आँगन में जहाँ मछली काटी जाती थी, वहाँ धुला हुआ लकड़ी का तख्ता देखा। पास में थोड़ी चूल्हे की राख थी। स्नानघर का दरवाजा खुला हुआ था। माँ को मछली बनाना अच्छा नहीं लगता था। घर में पिताजी ही केवल मछली खाते थे। भग्गु ही मछली काटता तथा बनाता था। स्नानघर से भग्गु का मछली लाते देखकर लेखक के मन में उदासी छा गई, क्योंकि कुएँ में मछली पालने का उत्साह बुझ-सा रहा था। दीदी ने हम दोनों भाईयों को कपड़े पहनाए, बाल संवारे।
लेखक ने दीदी से कहा- ’दीदी ! आज मछली आई है। तीन हैं। एक शायद मर गयी है। उन्हें अभी भग्गु काटेगा। पहले दीदी चुप रही, फिर कमरे का दरवाजा बन्द करने की बात कहकर सो गई। भग्गु ने मछली के पूरे शरीर में राख मलकर फिर उसकी गर्दन काट डाली। तभी संतु एक मछली लेकर सरपट बाहर भागा।
भग्गु भी संतु से मछली छीनने दौड़ पड़ा। संतु दोनों हाथों से मछली को अपने पेट में छिपाए हुए था और भग्गु उससे मछली छीनने की कोशिश कर रहा था। उसे डर का था कि संतु कहीं मछली कुएँ में न डाल दें। वह पिताजी के डाँट के भय से परेशान था।
एक तरफ घर के अंदर पिताजी जोर-जोर से चिल्ला रहे थे, दूसरी ओर दीदी की सिसकियाँ बढ़ गई थी। पिताजी दहाड़कर कह रहे थे- ’भग्गु! अगर नहान घर में घुसे तो साले के हाथ-पैर तोड़कर बाहर फेंक देना। बाद में जो होगा मैं भुगत लूँगा।
भग्गु चुपचाप सिर हिलाकर चला गया। संतु डर से सहमा हुआ था और उसके कपड़े कीचड़ से गंदे हो गये थे। स्नानघर में ही नहीं, पूरे घर में मछलीयों जैसी गंध आ रही थी।

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