MCQ and Summary for प्रेम-अयनि श्री राधिका, करील के कुंजन ऊपर वारौं (Prem-Ayani Shree Radhika, karil ke Kunjan Upar Vaaro) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board
प्रेम-अयनि श्री राधिका, करील के कुंजन ऊपर वारौं - रसखान MCQ and सारांश
Multiple Choice Question Solutions (बहुविकल्पी प्रश्न)
1. रसखान किस काल के कवि थे ?
(A) रीति काल
(B) आदि काल
(C) मध्य काल
(D) आधुनिक काल
उत्तर
(A) रीति काल
2. रसखान दिल्ली के बाद कहाँ चले गए ?
(A) बनारस
(B) ब्रजभूमि
(C) महरौली
(D) हस्तिानापुर
उत्तर
(B) ब्रजभूमि
3. रसखान की भक्ति कैसी थी ?
(A) सगुण
(B) निर्गुण
(C) नौगुण
(D) सहस्रगुण
उत्तर
(A) सगुण
4. रसखान ने 'प्रेम-अयनि' किसे कहा है ?
(A) कृष्ण
(B) सरस्वती
(C) राधा
(D) यशोदा
उत्तर
(C) राधा
5. रसखान के "चित्तचोर' कौन है ?
(A) इन्द्र
(B) श्रीकृष्ण
(C) कामदेव
(D) कंचन
उत्तर
(B) श्रीकृष्ण
6. रसखान ब्रज के वन-बागों पर क्या न्योछावर करने को तैयार हैं ?
(A) सैकड़ों स्वर्ण महल
(B) सैकड़ों इन्द्रलोक
(C) तीनों लोक
(D) स्वर्ग लोक
उत्तर
(C) तीनों लोक
7. 'प्रेम-अयनि श्री राधिका' के कवि कौन थे ?
(A) गुरु नानक
(B) गुरु अर्जुनेदव
(C) रसखान
(D) प्रेमधन
उत्तर
(C) रसखान
8. रसखान ने राधिका को क्या कहा है ?
(A) प्रेम पंथ
(B) प्रेम रोग
(C) प्रेम पदार्थ
(D) प्रेम प्रसंग
उत्तर
(A) प्रेम पंथ
9. रसखान के अनुसार प्रेम का खजाना कौन हैं ?
(A) राधा
(B) कृष्ण
(C) गोपियाँ
(D) गाएँ
उत्तर
(A) राधा
10. रसखान ने साक्षात् प्रेम स्वरूप किसे माना है ?
(A) राधा को
(B) कृष्ण को
(C) गोपियों को
(D) ग्वाल बाल को
उत्तर
(B) कृष्ण को
11. रसखान के प्रीतम कौन है?
(A) आनंद
(B) राधा
(C) नंदकिशोर
(D) मोहन पिता
उत्तर
(C) नंदकिशोर
12. रसखान के मन रूपी माणिक को किसने चुरा लिया है ?
(A) राधा ने
(B) श्रीकृष्ण ने
(C) गोपियों ने
(D) ग्वाल बालों ने
उत्तर
(B) श्रीकृष्ण ने
13. रसखान ने किस मार्ग की दीक्षा ली थी ?
(A) संतमार्ग
(B) पुष्टिमार्ग
(C) धर्म मार्ग
(D) शांति मार्ग
उत्तर
(B) पुष्टिमार्ग
14. कावरी का अर्थ है?
(A) लाठी
(B) इंडा
(C) कम्बल
(D) कमर
उत्तर
(C) कम्बल
15. 'प्रेमवाटिका' एवं सुजान रसखान किसकी कृतियाँ है?
(A) तुलसी
(B) मीरा
(C) जयदेव
(D) रसखान
उत्तर
(D) रसखान
16. नन्दलाल का व्यक्तित्व कैसा है ?
(A) लप
(B) सूक्ष्म
(C) विराट
(D) अज्ञात
उत्तर
(C) विराट
17. ब्रजभूमि के प्रति रसखान की क्या धारणा है?
(A) श्रद्धा
(B) अविश्वास
(C) स्वप्न
(D) अगाध श्रद्धा
उत्तर
(C) स्वप्न
18, श्रीकृष्ण की सुविधा के लिए सदा कौन तत्पर रहती हैं ?
(A) आठ सिद्धियाँ
(B) नव मिथियाँ
(C) दोनों
(D) सभी गलत है
उत्तर
(C) दोनों
19. कृष्णा का रंग कैसा है ?
(A) काला
(B) गोरा
(C) प्रेम पूरित
(D) भाव पूरित
उत्तर
(C) प्रेम पूरित
20. कवि ने राधा-कृष्णा की प्रेम वाटिका को क्या माना है ?
(A) माली
(B) मालिन
(C) माली और मालिन
(D) सभी गलत है
उत्तर
(C) माली और मालिन
21. रसखान के रचनाकाल के समय किसका राज्यकाल था ?
(A) अकबर
(B) हुमायूँ
(C) जहाँगीर
(D) औरंगजेब
उत्तर
(C) जहाँगीर
प्रेम-अयनि श्री राधिका, करील के कुंजन ऊपर वारौं- लेखक परिचय
रसखान के जीवन के संबंध में सही सूचनाएँ प्राप्त नहीं होती, परंतु इनके ग्रंथ ‘प्रेमवाटिका’ (1610 ई०) में यह संकेत मिलता है कि ये दिल्ली के पठान राजवंश में उत्पन्न हुए थे और इनका रचनाकाल जहाँगीर का राज्यकाल था । जब दिल्ली पर मुगलों का आधिपत्य हुआ और पठान वंश पराजित हुआ, तब ये दिल्ली से भाग खड़े हुए और ब्रजभूमि में आकर कृष्णभक्ति में तल्लीन हो गए । इनकी रचना से पता चलता है कि वैष्णव धर्म के बड़े गहन संस्कार इनमें थे । यह भी अनुमान किया जाता है कि ये पहले रसिक प्रेमी रहे होंगे, बाद में अलौकिक प्रेम की ओर आकृष्ट होकर भक्त हो गए । ‘दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता’ से यह पता चलता है कि गोस्वामी विट्ठलनाथ ने इन्हें ‘पुष्टिमार्ग’ में दीक्षा दी । इनके दो ग्रंथ मिलते हैं – ‘प्रेमवाटिका और सुजान रसखान’ । प्रमवाटिका में प्रेम-निरूपण संबंधी रचनाएँ हैं और ‘सुजान रसखान’ में कृष्ण की भक्ति संबंधी रचनाएँ ।
रसखान ने कृष्ण का लीलागान पदों में नहीं, सवैयों में किया है । रसखान सवैया छंद में सिद्ध थे। जितने सरस, सहज, प्रवाहमय सवैये रसखान के हैं, उतने शायद ही किसी अन्य हिंदी कवि के हों । रसखान का कोई सवैया ऐसा नहीं मिलता जो उच्च स्तर का न हो । उनके सवैयों की मार्मिकता का आधार दृश्यों और बायांतर स्थितियों की योजना में है । वहीं रसखान के संवैयों के ध्वनि प्रवाह भी अपूर्व माधुरी में है। ब्रजभाषा का ऐसा सहज प्रवाह अन्यत्र दुर्लभ है । रसखान सूफियों का हृदय लेकर कृष्ण की लीला पर काव्य रचते हैं । उनमें उल्लास, मादकता और उत्कटता तीनों का संयोग है । इनकी रचनाओं से मुग्ध होकर भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने कहा था -“इन मुसलमान हरिजनन पै, कोटिन हिन्दू क्यारिखें ।
सम्प्रदायमुक्त कृष्ण भक्त कवि रसखान हिंदी के लोकप्रिय जातीय कवि हैं । यहाँ ‘रसखान रचनावली’ से कुछ छन्द संकलित हैं – दोहे, सोरठा और सवैया । दोहे और सोरठा में राधा-कृष्ण के प्रेममय युगल रूप पर कवि के रसिक हृदय की रीझ व्यक्त होती है और सवैया में कृष्ण और उनके ब्रज पर अपना जीवन सर्वस्व न्योछावर कर देने की भावमयी विदगता मुखरित है।
प्रेम-अयनि श्री राधिका, करील के कुंजन ऊपर वारौं का सारांश (Summary)
प्रस्तुत पाठ में रसखान के दो पद संकलित है। प्रथम पद दोहे और सोरठा छंद में है जिसमें राधा और कृष्ण के प्रेममय युगल रूप का अति हृदयहारी वर्णन है। इसमें राधा-कृष्ण के मनोहर रूप पर कवि के हृदय की आकर्षण व्यक्त हुई है जबकि दुसरे पद में कवि हर स्थिति में ब्रज में जीना चाहता है। इसमें ब्रज के प्रति कवि का भावपूर्ण समर्पण व्यक्त है।
प्रेम- अयनि श्री राधिका
प्रेम-अयनि श्री राधिका, प्रेम-बरन नँदनंद।
प्रेम-बाटिका के दोऊ, माली-मालिन-द्वन्द्व।।
मोहन छबि रसखानि लखि अब दृग अपने नाहिं।
अँचे आवत धनुस से छूटे सर से जाहिं।।
रसखान कवि कहते हैं कि राधा प्रेमस्वरूपा है तो श्रीकृष्ण प्रेमरूप है। ये दोनों प्रेमरूपी वाटिका के माली-मालिन के समान हैं। कवि ने जब से इन दोनों को देखा है, उनकी आँखें उन्हीं दोनों को देखती रहती है। क्षण भर के लिए आते हैं और जैसे धनुष से बाण छूटता है, उसी प्रकार आते-जाते रहते हैं।
मो मन मानिक लै गयो चितै चोर नँदनंद।
अब बे मन मैं का करूँ परी फेर के फंद।।
प्रीतम नन्दकिशोर, जा दिन तै नैननि लग्यौ।
मन पावन चितचोर, पलक ओट नहिं करि सकौं।
श्रीकृष्ण ने उसके मन को चुरा लिया है जिस कारण मन इच्छा रहित हो गए हैं। वह इस प्रेम के जाल में बुरी तरह फँस गए हैं। रसखान अपनी विवशता प्रकट करते हुए कहते हैं कि जिस दिन से उनके दर्शन हुए हैं, उसने मन चुरा लिया है। हर क्षण कृष्ण एवं राधा के रूप सौन्दर्य को अपलक देखते रहते हैं।
करील के कुंजन ऊपर वारौं
या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर की तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि नवोनिधि को सुख नन्द की गाइ चराई बिसारौं।।
कवि रसखान अपने हार्दिक अभिलाषा प्रकट करते हुए कहते हैं कि श्रीकृष्ण की लाठी और कंबल पर तीनों लोक के राज्य का त्याग कर दूँ। नंद बाबा की गाय चराने का अवसर मिल जाए तो आठों प्रकार की सिद्धियों तथा नव-निधियों के सुखों का त्याग करने में मुझे कष्ट महसूस नहीं होगा।
रसखानी कबौं इन आँखिन सौं ब्रज के बनबाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक रौ कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।।
कवि का कहना है कि जब से ब्रज के वनों, निकुंजों, तालाबों तथा करील के सघन कुँजों को अपनी आँखों से देखा हूँ, तब से इच्छा होती है कि ऐसे मनोहर निकुंजों की सुन्दरता के समक्ष करोड़ों सुनहरे महल तुच्छ प्रतीत होतें हैं अर्थात् ऐसे मूल्यवान् महलों को छोड़कर जहाँ कृष्ण रासलीला करते थे, वहीं निवास करूँ।