BSEB Solutions for मेरे बिना तुम प्रभु(Mere Bina Tum Prabhu) Class 10 Hindi Godhuli Part 2 Bihar Board
मेरे बिना तुम प्रभु - रेनर मारिया रिल्के प्रश्नोत्तर
Very Short Questions Answers (अतिलघु उत्तरीय प्रश्न)
प्रश्न 1. रेनर मारिया रिल्के कहाँ के निवासी थे ?
उत्तर
रेनर मारिया रिल्के जर्मनी के रहनेवाले थे।
प्रश्न 2. रिल्के ने किन क्षेत्रों में यूरोपीय साहित्य को प्रभावित किया?
उत्तर
रिल्के की प्रमुख काव्य-रचनाएँ हैं-‘लाइफ एंड साँग्स’, ‘एडवेन्ट’ और ‘लॉरेंस सेक्रेफाइस’।
प्रश्न 3. रिल्के के उपन्यास का क्या नाम है ?
उत्तर
रिल्के के उपन्यास का नाम है-“द नोटबुक ऑफ माल्टै लॉरिड्स ब्रिजे”।
प्रश्न 4. रिल्के कैसे कवि थे ?
उत्तर
रिल्के मर्मज्ञ ईसाई कवियों जैसी पवित्र आस्था के कवि थे।
प्रश्न 5. रिल्के की कविताएँ कैसी हैं ?
उत्तर
रिल्के की कविताओं में रहस्यवाद के आधुनिक स्वर की झलक मिलती है।
प्रश्न 6. ‘मेरे बिना तुम प्रभु’ कविता का वर्ण्य-विषय क्या है ?
उत्तर
मेरे बिना तुम प्रभु’ कविता का वर्ण्य-विषय है-विराट सत्य और मनुष्य एक-दूसरे पर निर्भर है।
Short Question Answers (लघु उत्तरीय प्रश्न)
प्रश्न 1. कवि अपने को जलपात्र और मदिरा क्यों कहता है ?
उत्तर
जैसे जलपात्र के बिना जल बिखर जाता है अथवा प्याला का मदिरा सूख जाय तो प्याला अस्तित्वहीन हो जाता है। उसी प्रकार भक्त के बिना भगवान बिखर जाते अथवा अस्तित्वहीन हो जाते हैं। यहाँ पर जलपात्र और मदिरा का प्रयोग भक्त के लिए हुआ है। कवि भी भगवान का भक्त है अत: अपने को जलपात्र और मदिरा कहता है।
उत्तर
शानदार लबादा ईश्वर का गिर जायेगा क्योंकि भक्त के नहीं रहने पर ईश्वरत्व ही समाप्त हो जायेगा। अर्थात् भगवान का अस्तित्व की रक्षा भक्त ही करता है।
प्रश्न 3. कवि किसको कैसा सुख देता था ?
उत्तर
कवि ईश्वर की कृपा-दृष्टि को अपने कपोल रूपी नर्म शय्या पर विश्राम देकर तथा दूर चट्टानों की ठंढी गोद में सूर्यास्त के रंगों में घुलने का सुख देता था।
प्रश्न 4. कवि को किस बात की आशंका है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
कवि को इस बात की आशंका है कि वह भक्त के बिना क्या कर पायेगा क्योंकि भक्त के बिना ईश्वर वेशहीन, वृतिहीन, गृहहीन, स्वागत-विहीन और सुखहीन हो जाते हैं वे भक्त के बिना कहाँ और क्या-क्या पा सकते हैं अर्थात् कुछ नहीं।
प्रश्न 5. कविता किसके द्वारा किसे संबोधित है ? आप क्या सोचते हैं ?
उत्तर
Long Question Answer (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न)
प्रश्न 1. मनुष्य के नश्वर जीवन की महिमा और गौरव का यह कविता कैसे बखान करती है ? स्पष्ट कीजिए।उत्तर
मनुष्य को जीवन नश्वर है। इस नश्वर जीवन की महिमा और गौरव भगवान की भक्ति करने से ही होता है। नास्तिक मनुष्य भक्त-कृपा दृष्टि का पात्र नहीं हो सकता। अथवा भगवतत्व की प्राप्ति से ही यह नश्वर जीवन सार्थक हो पाता है।
अतः स्पष्ट है कि यह कविता मनुष्य के नश्वर-जीवन की महिमा और गौरव का बखान करती है।
प्रश्न 2. कविता के आधार पर भक्त और भगवान के बीच के संबंध पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
भक्त और भगवान के बीच अन्योन्याश्रय संबंध है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं जैसे जल और जलपात्र का संबंध है। प्याला और मदिरा का सम्बन्ध है। वही सम्बन्ध भक्त और भगवान के हैं। यदि जल के बिना जलपात्र सूना लगता है तो जलपात्र के बिना जल भी बिखर जाता है।
उसी प्रकार प्याला के बिना मदिरा और मदिरा के बिना प्याला अस्तित्वहीन हो जाता है।
प्रश्न 3. "मेरे बिना तम प्रभू' शीर्षक कविता का सारांश लिखें।
उत्तर
यह कविता महाँन जर्मन रेनर मारिया रिल्के द्वारा रचित कविता का हिन्दी कवि "धर्मवीर भारती" द्वारा भाषांतरित कविता संकलन "देशांतर" से उद्धत किया गया है।
इस कविता में कवि ने भगवान का अस्तित्व मक्त पर स्थापित करते हुए कहा - है कि बिन भक्त के भगवान निरुपाय होते हैं अर्थात् भगवान भक्त पर निर्भर हैं।
हे प्रभु ! जब मेरा (भक्त का) अस्तित्व नहीं रहेगा तो तुम क्या करोगे ?
में तुम्हारा जलपात्र टूटकर बिखर जाऊँगा, अथवा मैं तुम्हारी मदिश सूख जाऊँगा । या स्वादहीन हो जाऊँगा तो तुम क्या करोगा हे प्रभु ! मैं तुम्हारा वंश (आधार) हूँ, तुम्हारी वृति हूँ। मुझे खोकर तुम अपना अर्थ ही खो बैठोगे।
हे प्रभु ! मेरे बिना तुम गृहहीन, निर्वासित और स्वागत विहीन हो जाओगे। मैं तुम्हारी पादुका (खड़ाऊँ) हूँ मेरे बिना तुम्हारे चरणों में छाले पड़ जाएँगे, वे लहुलुहान । होकर भटकेंगे।
हे प्रभु ! तुम्हारा शानदार लबादा (चांगा) उतर जायेगा मेरे बिना।
हे प्रभु ! तुम्हारी कृपा दृष्टि जो कभी मेरे कपोलों (ललाटो) की नर्म शव्या (बिछावन) पर विश्राम करती थी, निराश होकर वह सुख खोजेगी। दुर की चट्टानों की ठंडी गोद में सूर्यास्त के रंगों घुलने का सुख जो मैं देता था वह कहाँ मिलेगा। है प्रभु ! मुझे आशंका होती है मेरे बिना तुम क्या करोगे |
काव्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर
1. जब मेरा अस्तित्व न रहेगा, प्रभु, तब तुम क्या करोगे?
जब मैं – तुम्हारा जलपात्र, टूटकर बिखर जाऊँगा?
जब मैं तुम्हारी मदिरा सूख जाऊंगा या स्वादहीन हो जाऊँगा?
मैं तुम्हारा वेश हूँ, तुम्हारी वृत्ति हूँ
मुझे खोकर तुम अपना अर्थ खो बैठोगे?
मेरे बिना तुम गृहहीन निर्वासित होगे, स्वागत-विहीन
मैं तुम्हारी पादुका हूँ, मेरे बिना तुम्हारे
चरणों में छाले पड़ जाएँगे, वे भटकेंगे लहूलुहान !
प्रश्न.
(क) कवि और कविता का नाम लिखें।
(ख) पद का प्रसंग लिखें।
(ग) पद का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर
(क.) कविता- मेरे बिना तुम प्रभु।
कवि-रेनर मारिया रिल्के।
(ख) प्रस्तुत पद्यांश में कवि नश्वर मनुष्य की महत्ता को बताते हुए भक्त और भगवान के संबंध को प्रकाशित किया है। कवि अपने को भक्त मानते हुए कहते हैं कि मैं भगवान के लिए सब कुछ हूँ। भगवान का जलपात्र एवं मदिरा मैं ही हूँ। इस पद में कवि कहते हैं कि भक्त भगवान का निवास स्थान है। उनके पैरों की पादुका है जो उनके पैर में छाले पड़ने से बचाता है। भक्त के बिना प्रभु को कैसे रहेंगे यह आशंका से कवि ग्रसित है।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश में कवि कहते हैं कि हे प्रभु ! मैं तुम्हें अपने अन्तरात्मा में रखने वाला भक्त हूँ और तुम्हारे लिए मेरी अति महत्ता है। अगर मेरा अस्तित्व नहीं रहेगा तो तुम्हारा भी अस्तित्व उजागर नहीं रहेगा। तुम अदृश्य हो और तुम्हारी सत्ता को साकार करने में तुम्हारी सत्ता को जग जाहिर करने में मेरी ही अहम भूमिका है।
अगर मैं नहीं रहूँगा तो तुम कहाँ रहोगे। मैं तुम्हारा जलपात्र हूँ मैं तुम्हारी मदिरा हूँ और यह जलपात्र अगर टूटकर बिखर जाएगा, मदिरा स्वादहीन हो जाएगा तो तुम बेचैन हो जाओगे, उस अवस्था तुम कहाँ कैसे रहोगे यह मेरे लिए चिन्ता का विषय है। आगे कहते हैं कि हे प्रभु ! मैं तुम्हारा वेश, वृत्ति, गृह, पादुका सबकुछ हूँ। मेरे बिना तुम गृहहीन हो जाओगे। मैं नहीं रहूँगा तो तुम्हारा स्वागत कौन करेगा। मैं पादुका बनकर तुम्हारे पैर की रक्षा करता हूँ। इसके बिना तुम्हारे पैर में छाले पड़ जाएंगे। अर्थात् भगवान भक्त वत्सल है और भक्त के बिना नहीं रह सकते। भगवान का भक्त उनका अभिन्न अंग है।
(घ) प्रस्तुत कविता का भाव-सौंदर्य यह है कि भगवान और भक्त दोनों में घनिष्ठ संबंध है। भक्ति में भगवान के अस्तित्व के बिना भक्त का अस्तित्व जिस प्रकार शून्य है उसी प्रकार भक्त बिना भगवान की सत्ता को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। भक्त की उपासना की जटिलता में ईश्वर का साक्षात्कार होना या गौण रूप से भक्ति की महत्ता को दर्शाना एक दूसरे पर आश्रित है। भक्त ही भगवान की सत्ता को स्वीकार करके सम्पूर्ण वातावरण में बिखेरता है।
(ङ) (i) सम्पूर्ण कविता खड़ी बोली में है।
(ii) जर्मन भाषा से हिन्दी भाषा में यह कविता रूपान्तरित है। इसमें तद्भव के साथ तत्सम और अरबी शब्दों का एक अनूठा प्रयोग है।
(ii) भक्ति धारा में प्रवाहित यहाँ शांत रस के साथ प्रसाद गुण की झलक है।
(iv) कविता मुक्त होते हुए भी कहीं-कहीं संगीतमयता रखती है।
(v) भाव के अनुसार भाषा का प्रयोग पूर्ण सार्थक है।
2. तुम्हारा शानदार लबादा गिर जाएगा
तुम्हारी कृपादृष्टि जो कभी मेरे कपोलों की
नर्म शय्या पर विश्राम करती थी
निराश होकर वह सुख खोजेगी
जो मैं उसे देता था
दूर की चट्टानों की ठंढी गोद में
सूर्यास्त के रंगों में घुलने का सुख
प्रभु, प्रभुः मुझे आशंका होती है
मेरे बिना तुम क्या करोगे?
प्रश्न.
(क) कविता और कवि का नाम लिखें।
(ख) दिये गये पद का सरलार्थ लिखें।
(ग) पद का प्रसंग लिखें।
(घ) भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर
(क) कविता-मेरे बिना तुम प्रभु।
कवि-रेनर मारिया रिल्के।
(ख) प्रस्तुत काव्यांश में प्रभु की सत्ता को स्थापित करने का माध्यम भक्त को बताया गया है। भक्त स्वरूप मनुष्य पर भगवान गौरवान्वित होते हैं-भक्त विहीन होने से भगवान का शानदार चोगा (लबादा) गिर जाएगा। भक्त के कपोल भगवान के लिए नरम बिछावन के रूप में उनके कृपा दृष्टि को आश्रय देनेवाले हैं। भक्त अभाव में भगवद्-कृपा दृष्टि आश्रयविहीन हो जाएगा। भक्त से जो सुख भगवान को प्राप्त होता है अगर भक्त नहीं होगा तो सुख के बदले उन्हें निराशा हाथ लगेगी। कवि को आशंका होती है कि भक्त वत्सल भगवान भक्त से बिछुड़कर, भक्त के बिना कैसे रहेंगे? प्रभु और भक्त दोनों एक-दूसरे पर निर्भर हैं।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने नश्वर मनुष्य के जीवन की महिमा और गौरव का वर्णन किया है। यह लघु मानवीय जीवन इतना महत्त्वपूर्ण है कि इस पर भगवान भी गौरव करते हैं। यह ब्रह्म के अस्तित्व को कायम करने का महत्त्वपूर्ण माध्यम है। यह शरीर भगवान का आश्रय है, उनके लिए सुखद है। प्रकृति के सानिध्य में रहनेवाला उनका ही एक स्वरूप है। मनुष्य के बिना, भक्त के बिना भगवान कैसे रहेंगे इसकी चिंता कवि को है और वह इन पंक्तियों के माध्यम से इसे अभिव्यक्त किया है।
(घ) प्रस्तुत काव्यांश में ईश्वर सत्ता की महत्ता को भक्त की भक्ति में जो समर्पण की जो भावना होती है उसी पर आश्रित है। मनुष्य के नश्वर जीवन और भक्ति की गौरव गाथा यहाँ गायी गई है। भगवान और भक्त में अन्योन्याश्रय संबंध है।
(ङ) (i) सम्पूर्ण कविता खड़ी बोली में है।
(i) इसमें तद्भव के साथ तत्सम और अरबी शब्दों का एक अनूठा प्रयोग है।
(iii)यहाँ भावबोध तथा संवेदनात्मक भाषा और शिल्प से काफी प्रभावित किया गया है।
(iv)कविता की शैली गीतात्मक है और भाव बोध में रहस्योन्मुखता व्याप्त है।