Extra Questions for Class 9 स्पर्श Chapter 7 धर्म की आड़ - गणेशशंकर विद्यार्थी Hindi
Chapter 7 धर्म की आड़ Sparsh Extra Questions for Class 9 Hindi
प्रश्न 1. धर्म क्या है?
उत्तर
धर्म बाहरी उपादानों का नाम नहीं है। शुद्धाचरण व सदाचार ही धर्म के स्पष्ट चिह्न हैं।
प्रश्न 2. भलमनसाहत की कसौटी क्या होगी ?
उत्तर
भलमनसाहट की कसौटी व्यक्ति का आचरण होगा।
प्रश्न 3. देश की स्वाधीनता के विरुद्ध किस काम को समझा जाए?
उत्तर
देश की स्वाधीनता के विरुद्ध वह कार्य है, जो किसी धर्म के मानने वाले को परेशान करता है।
प्रश्न 4. लेखक ने किन धार्मिक नेताओं का उल्लेख किया है?
उत्तर
लेखक ने मौलाना अब्दुलबारी व शंकराचार्य का उल्लेख किया है।
प्रश्न 5. मूर्ख लोगों के कामों से किन्हें लाभ मिलता है?
उत्तर
मूर्ख लोग धर्म की दुहाई देते हैं। वे उसकी रक्षा के लिए जान की बाजी लगाते हैं। इसी कारण उनके कार्यों से धूर्त लोगों की सत्ता पर पकड़ बनती है।
प्रश्न 6. आस्तिक मनुष्यों की क्या विशेषताएँ होती हैं ?
उत्तर
आस्तिक लोग सरल स्वभाव के होते हैं। वे धर्म रक्षा के लिए अपने प्राण त्यागना भी उचित समझते हैं।
प्रश्न 7. धर्म और ईमान क्या हैं?
उत्तर
धर्म और ईमान मन का सौदा हैं। यह ईश्वर और आत्मा के बीच का संबंध है। धर्म आत्मा को शुद्ध करने व ऊँचा उठाने का साधन है।
प्रश्न 8. सबके कल्याण के लिए क्या करना होगा?
उत्तर
सबके कल्याण के लिए मनुष्य को अपने आचरण में सुधार करना पड़ेगा। आचरण को सुधारे बिना नमाज, रोजे, पूजा, गायत्री भी कुछ नहीं कर पाएँगे।
प्रश्न 9. लेखक विद्यार्थी जी ने किस उद्देश्य से असामाजिक व्यक्तियों को बेनकाब किया है? स्पष्ट करें।
उत्तर
लेखक ने धर्म के नाम पर होने वाले दंगों व शोषण को रोकने के लिए असामाजिक व्यक्तियों को बेनकाब किया है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. आपके विचार से धर्म कैसा होना चाहिए? 'धर्म की आड पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए ?
उत्तर
धर्म का संबंध जनकल्याण से है। मेरे विचार में धर्म मानव समाज में व्यक्तियों द्वारा किए गए शुद्ध आचरण से है। धर्म का बोध प्रेम, सहिष्णुता, अहिंसा, परोपकारिता आदि के द्वारा होता है। मनुष्य मात्र के प्रतिप्रेम व सहानुभूति की भावना ही समाज में मानवीय मूल्यों को स्थापित करती है। चालाक व्यक्तियों द्वारा धर्महीन लोगों का शोषण किया जाता है। अतः धर्म का स्वरूप मानव-मानव के बीच प्रेम, भाईचारा, सहिष्णुता आदि भावनाओं को बढ़ावा देने वाला होना चाहिए।
प्रश्न 2. धर्म और ईमान के लिए प्राण तक देना कौन-से लोग उचित मानते हैं और क्यों?
उत्तर
धर्म और ईमान के लिए आम व्यक्ति प्राण देने में भी नहीं हिचकिचाता। वह इस कार्य को उचित मानता है। इन लोगों के दिमाग में इस तरह की बातें बैठा दी गई हैं। वे धर्म का अर्थ नहीं समझते।
प्रश्न 3. ' इस समय देश में धर्म की धूम है' से लेखक का क्या तात्पर्य है?
उत्तर
लेखक कहता है कि इस समय देश में अनेक धर्मों के पूजा-स्थल व अनुयायी मिल जाते हैं। वे धर्म का वास्तविक अर्थ नहीं समझते, परंतु धर्म के नाम पर उत्पात करने को तैयार हो जाते हैं। वह व्यंग्य कर रहा है।
प्रश्न 4. किसका फायदा कौन और क्यों उठा रहा है?
उत्तर
आम जनता की अबौद्धधिकता व जानकारी के अभाव का फायदा चालाक लोग उठा रहे हैं, क्योंकि आम जनता दूसरे के बताए रास्ते पर चलना अपना धर्म समझती है।
प्रश्न 5. साम्यवाद और बोल्शेविज्म के जन्म के क्या कारण हैं?
उत्तर
पश्चिमी देशों में अमीर वर्ग का आधार गरीबों का शोषण है। इनकी कमाई पर ही वे अमीर बनते हैं। वे यह प्रयास करते हैं कि गरीब सदा चूसे जाते रहें। इन परिस्थितियों के कारण लोगों में रोष होता है तथा साम्यवाद जैसी क्रांतियाँ होती हैं।
प्रश्न 6. देश की आज़ादी के संग्राम में किसको नए रूप में पेश किया गया तथा उसका क्या परिणाम हुआ?
उत्तर
देश की आज़ादी की लड़ाई में मौलाना अब्दुल बारी और शंकराचार्य को देश के सामने दूसरे रूप में प्रस्तुत किया गया। इस कारण वे शक्तिशाली बन गए। इसका परिणाम यह हुआ कि ये लोग देश की जड़ उखाड़ने तथा देश में मज़हबी पागलपन, प्रपंच और उत्पात का राज्य स्थापित कर रहे हैं।
प्रश्न 7. 'धर्म की आड़' पाठ में जिन मुद्दों को उठाया गया है, वे मुद्दे आज भी हैं। क्या आप इससे सहमत हैं?
उत्तर
‘धर्म की आड़' पाठ में धर्म के नाम पर संघर्ष, उत्सर्ग की भावना, शोषण आदि को उठाया गया है, जो कमोबेश आज भी उसी रूप में विद्यमान हैं। चालाक व धूर्त व्यक्ति धर्म के नाम पर हिंसा, शोषण करके अपनी सत्ता बनाए रखते हैं।
प्रश्न 8. यथार्थ दोषी कौन है और क्यों?
उत्तर
यथार्थ दोषी वे लोग हैं, जो शिक्षित होकर अपने हितों के लिए मूर्ख व्यक्तियों की शक्ति व उत्साह का दुरुपयोग करते हैं। ये लोग धर्म के नाम पर दंगे भड़काते हैं।
प्रश्न 9. 'धन की मार' और 'बुद्धि पर मार' में क्या अंतर है?
उत्तर
'धन की मार' का अर्थ है - गरीबी । यहाँ सम्पन्न वर्ग कमजोर वर्ग का आर्थिक शोषण करता है। 'बुद्धि पर मार' से तात्पर्य है–व्यक्ति के विवेक को कुंठित कर देना। धर्म के ठेकेदार आम व्यक्ति की चिंतन क्षमता को कुंद कर देते हैं।
प्रश्न 10. स्वाधीनता संग्राम में हमने क्या गलती की?
उत्तर
स्वाधीनता संग्राम में जिस दिन से मुल्ला मौलवियों, पुरोहितों आदि धर्माचार्यों को स्थान दिया गया, वह बहुत बुरा दिन था। यह हमारी सबसे बड़ी गलती थी।
निबंधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. लेखक चलते-पुरज़े लोगों को यथार्थ दोष क्यों मानता है? धर्म की आड़ पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर
कुछ चालाक पढ़े-लिखे और चलते पुरज़े लोग, अनपढ़-गँवार साधारण लोगों के मन में कट्टर बातें भरकर उन्हें धर्माध बनाते हैं। ये लोग धर्म विरुद्ध कोई बात सुनते ही भड़क उठते हैं, और मरने-मारने को तैयार हो जाते हैं। ये लोग धर्म के विषय में कुछ नहीं जानते यहाँ तक कि धर्म क्या है, यह भी नहीं जानते हैं। सदियों से चली आ रही घिसी-पिटी बातों को धर्म मानकर धार्मिक होने का दम भरते हैं और धर्मक्षीण रक्षा के लिए जान देने को तैयार रहते हैं। चालाक लोग उनके साहस और शक्ति का उपयोग अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए करते हैं। उनके इस दुराचार के लिए लेखक चलते-पुरज़े लोगों का यथार्थ दोष मानता है।
प्रश्न 2. देश में धर्म की धूम है – का आशय धर्म की आड़ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
देश में धर्म की धूम है-का आशय यह है कि देश में धर्म का प्रचार-प्रसार अत्यंत जोर-शोर से किया जा रहा है। इसके लिए गोष्ठियाँ, चर्चाएँ, सम्मेलन, भाषण आदि हो रहे हैं। लोगों को अपने धर्म से जोड़ने के लिए धर्माचार्य विशेषताएँ गिना रहे हैं। वे लोगों में धर्मांधता और कट्टरता भर रहे हैं। इसका परिणाम यह है कि साधारण व्यक्ति आज भी धर्म के सच्चे स्वरूप को नहीं जान-समझ सका है। लोग अपने धर्म को दूसरे से श्रेष्ठ ‘समझने की भूल’ मन में बसाए हैं। ये लोग अपने धर्म के विरुद्ध कोई बात सुनते ही बिना सोच-विचार किए मरने-कटने को तैयार हो जाते हैं। ये लोग दूसरे धर्म की अच्छाइयों को भी सुनने को तैयार नहीं होते हैं और स्वयं को सबसे बड़ा धार्मिक समझते हैं।
प्रश्न 3. ‘अजाँ देने, शंख बजाने, नाक दाबने और नमाज पढ़ने का नाम धर्म नहीं है।' आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
लेखक कहना चाहता है कि बाह्य कर्मकांडों से धर्म का पालन नहीं किया जा सकता। हिंदू या मुसलमान दोनों समुदायों के लोग बाहरी विधान को धर्म का मूल रूप मानते हैं। नमाज पढ़ने, शंख बजाने, नाक दाबने, मस्जिद में अजाँ देने से ईश्वर नहीं मिलता। यह लोगों को बरगलाने का तरीका है। शुद्ध आचरण व सदाचार ही धर्म के स्पष्ट चिह्न है। ढोंग - आडंबरों को धर्म का नाम देना गलत है। ईश्वर को भेंट - पूजा करके सारे दिन गलत कार्य करने को धर्म नहीं माना जाता। धर्म के नाम पर मनुष्य को अपना आचारण सुधारना होगा।
प्रश्न 4. 'धर्म की आड़' निबंध का प्रतिपाद्य बताइए?
उत्तर
निबंध 'धर्म की आड़ में विद्यार्थीजी ने उन लोगों के इरादों और कुटिल चालों को बेनकाब किया है, जो धर्म की आड़ लेकर जनसामान्य को आपस में लड़ाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करने की फ़िराक में रहते हैं। धर्म की आड़ में अपना स्वार्थ सिद्ध करने वाले हमारे ही देश में हों, ऐसा नहीं है। विद्यार्थी ने दूर देशों में भी धर्म की आड़ में हुए तथा अनीतियाँ का खुलासा किया है। इनके अनुसार, धर्म वही है जो आदमी को ठीक ढंग से जीने देता है। जो लोग चाहे नास्तिक हैं, यदि वे मानवीय गुणों से युक्त हैं, वे ही धर्म का पालन करते हैं।