Extra Questions for Class 10 क्षितिज Chapter 4 आत्मकथ्य - जयशंकर प्रसाद Hindi
Chapter 4 आत्मकथ्य Kshitij Extra Questions for Class 10 Hindi
प्रश्न 1. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म कथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।
(क) कवि अपनी आत्म कथा क्यों नहीं लिखना चाहता?
(ख) कवि ने अपनी आत्म कथा को भोली क्यों कहा है?
(ग) आत्म-कथा सुनाने के संदर्भ में 'अभी समय नहीं है' कवि ऐसा क्यों कहता है ?
(घ) कवि अपनी कथा कहने के बजाय क्या करना चाहता है?
(ङ) 'थकी सोई है मेरी मौन व्यथा' का भावार्थ स्पष्ट कीजिये?
उत्तर
(क) कवि अपनी आत्मकथा इसलिए नहीं लिखना चाहता क्योंकि उसको लगता है कि उसके जीवन की ऐसी कोई महान उपलब्धि नहीं है जिसकी सराहना की जा सके।
(ख) कवि ने अपनी आत्मकथा को भोली इसलिए कहा है क्योंकि उसे अपनी गाथा सरल, साधारण लगती है, जिसकी उसने कभी पूर्व अभिव्यक्ति नहीं की और साथ ही उसे यह भी लगता है कि उसकी आत्मकथा में ऐसा कुछ कहने को नहीं है जो दूसरों का मार्गदर्शन कर सके या प्रेरणा दे सके। उसकी भोली कथा में केवल उसके हृदय की मौन व्यथा छिपी हुई है।
(ग) आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में 'अभी समय नहीं है' कहकर कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि अभी तक उसने अपने जीवन में कोई भी ऐसी उपलब्धि प्राप्त नहीं की है, जो दूसरों की प्रेरणा स्रोत बन सके। वह यह भी कहना चाहता है कि अभी वह उस अवस्था (जीवन के उत्तराद्ध) में नहीं पहुँचा है जिस अवस्था प्रायः आत्मकथा लिखी जाती है।
(घ) कवि अपनी कथा कहने की बजाए मौन रहकर दूसरों की आत्मकथा सुनना चाहता है। उसके जीवन में व्यथा-ही-व्यथा भरी हुई है जिसे वह अपने मन में छुपाए रखना चाहता है, दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता। ऐसी स्थिति में उसे लगता है कि वह औरों की सुनता रहे और स्वयं मौन रहे ।
(ङ) 'थकी सोई है मेरी मौन व्यथा - पंक्ति के द्वारा कवि यह कहना चाहता है कि उसने अपने जीवन में अनेक कष्ट सहन किए हैं। उन कष्टों की अभिव्यक्ति उसने किसी से नहीं की है। उसके हृदय को कटोचने वाली ये व्यथाएँ अभी सुप्तावस्था में हैं। थककर सोई हुई इन व्यथाओं को जागृत करना, उसे उचित प्रतीत नहीं होता। इसलिए वह स्वयं भी मौन रहना चाहता है ।
प्रश्न 2. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की ?
(क) कवि किसकी स्मृति को ताज़ा कर रहा है?
(ख) कवि की प्रेयसी के कपोलों की क्या विशेषता थी?
(ग) कवि शेष जीवन-यात्रा किसके सहारे व्यतीत करना चाहता है?
(घ) पद्मांश में किस बात को सच्चाई के साथ अभिव्यक्त किया गया है?
(ङ) रचना में रचनाकार किसके पक्ष में नहीं है?
उत्तर
(क) कवि अपने प्रिय (अदृष्ट, अलौकिक) की स्मृति को ताज़ा कर रहा है।
(ख) कवि की प्रेयसी के कपोल अरुणिम हैं। उसके कपोलों की आभा ऐसी लग रही है जैसे उषा काल
की अरुणिमा ने अनुराग युक्त अपना सौंदर्य प्रदान कर दिया हो ।
(ग) कवि शेष जीवन - यात्रा अपने प्रिय के साथ व्यतीत किए सुखद क्षणों की स्मृति के आधार पर बिताना चाहता है।
(घ) कवि ने अतीत में कुछ पल अपनी प्रेयसी के संयोग में सुखद एवं आनंदपूर्ण ढंग से बिताए हैं। इस बात को सच्चाई के साथ व्यक्त किया है।
(ङ) रचना में रचनाकार आत्मकथा लिखने पक्ष में नहीं है क्योंकि वह अपने अतीत को कुरेद कर फिर से व्यथित होना नहीं चाहता।
प्रश्न 3. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की ?
छोटे से जीवन की कैसी बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथा ?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा ।
(क) कवि ने किसको पाथेय माना है?
(ख) कंथा किसे कहते हैं?
(ग) कवि के जीवन में ऐसा क्या घटा? जिसे वह कहने में असमर्थ है।
(घ) 'उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की पंक्ति का आशय है?
(ङ) कवि ऐसा क्यों कहता है कि मेरी भोली आत्मकथा सुनकर क्या करोगे?
(च) 'कंथा' शब्द का प्रयोग किसके लिए हुआ है?
(छ) स्मृति को 'पाथेय' बनाने से कवि का क्या आशय है?
(ज) थका पथिक किसे कहा गया है और क्यों?
(झ) ' अभी समय नहीं' में किस बात का समय नहीं है?
उत्तर
(क) कवि ने स्वप्न में देखे गए सुख की स्मृति को 'पाथेय' माना है ।
(ख) 'कथा' का अर्थ है - अंतर्मन अथवा गुदड़ी। कवि आत्मकथा लिखने के लिए प्रेरित करने वालों को यह कहना चाहता है कि उसके जीवन की गुदड़ी की सीवन उधेड़कर देखोगे, तो दर्द के अतिरिक्त जीवन में और कुछ भी विशेष दिखाई नहीं देगा। उनके अंतर्मन में व्यथा के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है ।
(ग) कवि का जीवन असीम दुखों से भरा है। परंतु उसके जीवन में कुछ ऐसे भी क्षण आए जब उसे अरुण - कपोलों वाली प्रेयसी के सान्निध्य का सुख प्राप्त हुआ। उसी सुख के आलिंगन की कामना में वह बाँहें फैलाए रहा, परंतु सुख मुस्कराहट बिखेर कर पीछे हट गया। क्षणिक सुख उसके जीवन का आधार रहा, जिसे कहने वह असमर्थ है।
(घ) 'उसकी स्मृति पाथेय बनी है, थके पथिक की पंथा की पंक्ति के द्वारा कवि यह कहना चाहता है कि उसका अधिकांश जीवन पीड़ा में व्यतीत हुआ है। उसके जीवन में केवल कुछ ही क्षण आनंद के आए थे जो उसने अपने प्रिया के साथ बिताए थे। अब उन क्षणों की स्मृतियाँ ही शेष हैं जो थके हुए पथिक के लिए संबल रूपी पाथेय बनी हुई हैं। वही अब उसके जीवन का आधार है ।
(ङ) कवि आत्मकथा को सरल, भोली और साधारण कह रहा है। उसे लगता है कि उसकी आत्मकथा को 'सुनकर क्या करोगे क्योंकि उसके जीवन में ऐसा कुछ विशेष नहीं है जिसे जानकर किसी को प्रेरणा मिले या किसी भी प्रकार से दूसरों का भला हो सके।
(च) कंथा' का अर्थ है - गुदड़ी, अंतर्मन । 'कंथा' का प्रयोग कवि के अंतर्मन से जुड़ी पीड़ा से संबंधित है। कवि यह कहना चाहता है कि उसके जीवन की गुदड़ी की सीवन उधेड़कर देखोगे तो दर्द, पीड़ा के अतिरिक्त जीवन में कुछ भी विशेष दिखाई नहीं देगा। उसका अंतर्मन जीवन के दुखों से भरा हुआ है।
(छ) स्मृति को 'पाथेय' बनाने से कवि का आशय जीवन मार्ग के सहारे से है । कवि ने सुख का जो स्वप्न देखा था वह उसे कभी प्राप्त नहीं हुआ। इसलिए वह स्वयं को थके हुए पथिक की भाँति मानता है। जिस प्रकार 'पाथेय' यात्रा में यात्री को सहारा देता है, आगे बढ़ने की शक्ति देता है । उसी प्रकार स्वप्न में देखे गए सुख की स्मृति भी कवि को जीवन-मार्ग में आगे बढ़ने का सहारा देती है ।
(ज) थका पथिक कवि ने स्वयं को कहा है जो विश्राम करना चाहता है । कवि अपने अतीत के कष्टों से पीड़ित एवं आहत है। उसकी स्थिति उस पथिक की भाँति हो गई है जिसमें आगे बढ़ने की क्षमता नहीं रही है। वह अतीत में अपने आत्मीयजनों द्वारा ठगा गया है। इसलिए वह निराश, दुखी एवं थका हुआ है।
(झ) आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में 'अभी समय नहीं है' कहकर कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि अभी तक उसने अपने जीवन में कोई भी ऐसी उपलब्धि प्राप्त नहीं की है, जो दूसरों की प्रेरणा स्रोत बन सके। वह यह भी कहना चाहता है कि अभी वह उस अवस्था (जीवन के उत्तरार्ध) में नहीं पहुँचा है जिस अवस्था में प्रायः आत्मकथा लिखी जाती है।
प्रश्न 4. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन - इतिहास।
यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य - मलिन उपहास।
तब भी कहते हो - कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे - यह गागर रीती।
(क) 'मधुप' का प्रयोग कवि ने किसके लिए किया है?
(ख) 'अनंत नीलिमा में असंख्य जीवन - इतिहास' का आशय स्पष्ट कीजिए ।
(ग) यह कविता किस युग में लिखी गई है?
(घ) इस काव्यांश में किस प्रकार की भाषा का प्रयोग हुआ है ?
(ङ) कविता में प्रयुक्त किसी एक अलंकार का उल्लेख कीजिए ।
(च) 'मुरझाकर गिर रही पत्तियाँ' किस भाव की व्यंजक है?
(छ) अभावपूर्ण जीवन के लिए काव्यांश में कौन-सा बिम्ब प्रयुक्त हुआ है?
(ज) 'नीलिमा' के लिए प्रयुक्त विशेषणों का सौंदर्य बताइए ।
(झ) कविता की भाषागत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।
(ञ) प्रथम पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर
(क) 'मधुप' का प्रयोग कवि ने अपने मन रूपी भँवरे के लिए किया है ।
(ख) 'अनंत नीलिमा में असंख्य जीवन -इतिहास' - पंक्ति में कवि जीवन के यथार्थ एवं मार्मिक पक्ष की अभिव्यक्ति करते हुए यह स्पष्ट करना चाहता है कि मनुष्य की वेदना का कहीं भी अंत नहीं है। इस गंभीर और अनंत नीले आकाश के नीचे अगणित जीवन के इतिहास बनते-बिगड़ते रहते हैं और यह एक विचित्र स्थिति है कि वे सब अपने आप में अपनी स्थिति पर व्यंग्य करते हैं
(ग) यह कविता आधुनिक काल के छायावादी युग में लिखी गई है।
(घ) इस काव्यांश में संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
(ङ) 'मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी' - अनुप्रास अलंकार है।
(च) 'मुरझाकर गिर रही पत्तियाँ' असफलताओं और अभावों का प्रतीक है। कवि के सुखद जीवन में खुशियों का पलायन मुरझाकर वृक्ष से झरती हुई पत्तियों के समान है। इस पंक्ति के द्वारा वास्तव में कवि अपने जीवन की घोर निराशा को दर्शाना चाहता है।
(छ) अभावपूर्ण जीवन के लिए काव्यांश में 'गागर रीती' बिंब का प्रयोग किया है। जिसके द्वारा वह यह बताना चाहता है कि उसकी जीवन रूपी गागर खाली है। सुखों का उसमें अभाव है। खोजने वेदना के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलेगा।
(ज) ‘नीलिमा' के लिए कवि ने गंभीर, अनंत विशेषणों का प्रयोग किया है। इन विशेषणों के द्वारा कवि यह कहना चाहता है कि इस गंभीर, विस्तृत, विशाल, अंतहीन आकाश की नीलिमा में न जाने कितने इतिहास लिखे गए होंगे और उनका अस्तित्व भी होगा और न जाने कितने अनगिनत इतिहास इस अनंत नीले आकाश के नीचे बनते बिगड़ते रहे होंगे।
(झ) कविता में संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है । तत्सम शब्दों की अधिकता है। भाषा भावानुकूल, सरस एवं प्रवाहमयी है।
(ञ) प्रथम पंक्ति में 'मधुप' यानि 'मन रूपी भंवरे' में रूपक अलंकार है।
प्रश्न 1. 'आत्मकथ्य' कविता में 'छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथा मैं आज कहूँ' कह कर कवि 'जीवन को छोटा और कथा को बड़ी' क्यों कह रहा है? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर
लेखक अपने जीवन को अत्यंत साधारण मानता है। उसे लगता है कि उसके जीवन की कोई विशिष्ट उपलब्धि नहीं है, जिसे वह लोगों को बता पाए और लोग उससे किसी प्रकार की प्रेरणा ग्रहण कर सकें। सामान्य जीवन की कोई महत्त्वपूर्ण गाथा नहीं। इसलिए कवि ने जीवन को छोटा और कथा को बड़ी कहा है।
प्रश्न 2. कवि को ऐसा क्यों लगता है कि उसकी आत्मकथा को पढ़कर किसी को सुख की अनुभूति नहीं होगी ?
उत्तर
कवि का जीवन दुख एवं अभावों से भरा रहा है। जीवन की यात्रा में वह दुखों का सामना करता रहा है। अब उसके दुख एवं व्यथाएँ थककर मौन हो गईं हैं। आत्मकथा लिखकर वह उन्हें पुनः जीवित नहीं करना चाहता। इसलिए उसे लगता है कि अगर उसने अपनी आत्मकथा लिख भी दी तो उसको पढ़कर किसी को सुख की अनुभूति प्राप्त नहीं होगी ।
प्रश्न 3. 'आत्मकथ्य' या अपनी बात कहने से प्रायः विद्वान लोग किस कारण बचना चाहते हैं? क्या प्रसाद कवि भी इसी कारण टाल देते हैं?
उत्तर
प्रायः विद्वान लोग अपनी निजी अनुभूतियों को सार्वजनिक नहीं करना चाहते हैं। निजी अनुभूतियों की गोपनीयता को बनाए रखने के लिए वे 'आत्मकथा' लिखने से बचना चाहते हैं। कवि प्रसाद जी भी इसी कारण आत्मकथा लिखने के प्रश्न को टाल देते हैं क्योंकि अगर आत्मकथा लेखन में ईमानदारी बरती गई तो कवि या लेखक की अनेक निजी बातें सार्वजनिक हो जाएँगी और यदि आत्मकथा ईमानदारी से नहीं लिखी गई तो यह लेखन के साथ अन्याय होगा ।
प्रश्न 4. कवि अपनी आत्मकथा क्यों नहीं कहना चाहता ?
उत्तर
कवि अपनी आत्मकथा इसलिए नहीं कहना चाहता क्योंकि उसे लगता है कि उसके जीवन की ऐसी महान उपलब्धि नहीं है जिसकी सराहना की जाए । उसका जीवन दुख, पीड़ा और अभावों से परिपूर्ण रहा है, वह अपने जीवन की कमियों व दुर्बलताओं को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं बनाना चाहता।
प्रश्न 5. प्रसाद जी जीवन को कैसा और कितना बड़ा मानते हैं तथा उसके अनुपात में उस जीवन की कथाएँ कैसी हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
प्रसाद जी जीवन को अत्यंत उदात्त एवं व्यापक मानते हैं। वे जीवन को एक व्यापक फलक का मानते हुए इसमें अनंत सुख-दुख के क्षणों को शामिल करते हैं। इसमें भिन्नताओं के अवसर बहुत अधिक मिलते हैं, लेकिन यह दुर्भाग्य है कि प्रसाद जी का जीवन अधिक विस्तृत एवं तरह-तरह की रंगीनियों को समेटे हुए नहीं था। वे अपने जीवन को 'रिक्त गागर' मानते हैं, जिसमें सुख एवं रस की एक बूँद भी नहीं है । वे अपने जीवन में रोमांचक क्षणों का अभाव महसूस करते हैं, जो जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग होना चाहिए था। प्रसाद जी का मानना है कि जीवन के विस्तृत फलक के अनुपात में उनके जीवन की कथाएँ अत्यंत नगण्य हैं और जो हैं, वे अत्यंत नीरस एवं निरर्थक हैं।
प्रश्न 6. कवि प्रसाद ने चाँदनी रात की गाथा को उज्ज्वल क्यों कहा है?
उत्तर
कवि ने चाँदनी रात की गाथा को उज्ज्वल इसीलिए कहा है क्योंकि वे कवि के निजी प्रेम के मधुर एवं अंतरंग क्षण हैं जो कवि ने अपनी प्रेमिका के साथ व्यतीत किए थे। चाँदनी रातों में बिताए गए वे सुखदायक क्षण किसी उज्ज्वल गाथा की तरह पवित्र हैं। यह कवि के प्रेम की नितांत निजी सम्पत्ति है और वह इन क्षणों को किसी के साथ बाँटना नहीं चाहता है ।
प्रश्न 7. कवि किस बात को बिडंबना मानते हैं? इससे उनके किन गुणों का आभास मिलता है ? 'आत्मकथ्य' कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर
कवि 'आत्मकथ्य' लिखने को ही विडंबना मानते हैं क्योंकि ईमानदारी से आत्मकथ्य लिखने का अर्थ है कि दूसरे लोगों के छल कपटपूर्ण व्यवहार का पर्दाफ़ाश करना। इसमें न तो कवि का हित है और न तो दूसरों का हित है। सच्चाई एवं ईमानदारी से अपने जीवन का सार लिखने से उन सभी व्यक्तियों की कलई खुल जाएगी, जिन्होंने छल-कपट एवं विश्वासघात से कवि के जीवन का गागर रिक्त कर दिया और साथ ही दुनिया कवि के भोलेपन, निष्कपट व्यवहार तथा सरल स्वभाव का मजाक भी उड़ाएगी। इससे कवि की अपने कर्तव्य के प्रति ईमानदारी एवं निष्ठा संबंधी गुण का पता चलता है।
प्रश्न 8. 'आत्मकथ्य' कविता में कवि द्वारा प्रस्तुत सुखद स्वप्न को अपने शब्दों में लिखिए ।
उत्तर
'आत्मकथ्य' कविता में कवि ने उस सुखद स्वप्न का वर्णन किया है, जब स्वप्न में उसकी अपनी प्रेयसी से भेंट हुई थी । रक्तिम कपोलों से सुशोभित उसकी प्रेयसी अलौकिक सौंदर्य से परिपूर्ण उनके जीवन में अनुराग बिखेर रही थी । कवि सुख के आलिंगन की कामना करते हुए बाँहें फैलाए ही रह गया। उसे अपनी प्रेयसी के सान्निध्य का सुख प्राप्त नहीं हो पाया। वास्तव में यह सब सुखद स्वप्न की भाँति था, जो सुख का आभास देकर व मुस्कराहट बिखेर कर पीछे हट गया ।
प्रश्न 9. आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में “अभी समय भी नहीं" - कवि ऐसा क्यों कहता है ?
उत्तर
आत्मकथा सुनाने संदर्भ में 'अभी समय भी नहीं' - कवि ने ऐसा कई कारणों से कहा है- सर्वप्रथम उसे ऐसा लगता है कि अभी तक उसे कोई ऐसी विशिष्ट उपलब्धि प्राप्त नहीं हुई है कि जिससे वह दूसरों का प्रेरणा स्रोत बन सके। दूसरा, अभी वह अपने जीवन की उस अवस्था में नहीं पहुँचा, जहाँ पहुँचकर वह अपने विगत जीवन का लंबा परिचय दे सके। इसके अतिरिक्त कवि ने अपने जीवन के अल्पकाल में ही इतनी पीड़ा झेल ली है कि वह उन बीते क्षणों का उल्लेख कर फिर से उस पीड़ा को झेलना नहीं चाहता है।
प्रश्न 10. 'आत्मकथ्य' कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, वह उनकी ईमानदारी और साहस का प्रमाण है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
'आत्मकथ्य' कविता में कवि ने अपनी उन स्थितियों का भी चित्रण किया है जब उन्हें निराशा व विफलता का सामना करना पड़ा। उन्होंने अपनी कमियों, अभावों, संघर्षमय पलों का यथार्थ चित्रण किया है। जिन्हें बताने में लोगों को शर्मिंदगी होती है। प्रसाद ने उन लोगों की भी चर्चा की है जिन्होंने उनके जीवन से आनंद के पल चुराकर उनसे मुख मोड़ लिया। अपनी कमजोरियों को उजागर करना, अभाव व निराशा के पलों को बताना, खुशियों का जीवन से पलायन - ये सब बातें प्रसाद जी की ईमानदारी व साहस का प्रमाण हैं ।
प्रश्न 11. स्मृति को 'पाथेय' बनाने से कवि प्रसाद का क्या आशय है?
उत्तर
स्मृति को ‘पाथेय' बनाने से कवि का आशय जीवन-मार्ग के सहारे से है । कवि ने सुख का जो स्वप्न देखा था वह उसे जीवन में कभी प्राप्त नहीं हुआ इसलिए वह स्वयं को थके हुए पथिक की भाँति मानता है। I जिस तरह 'पाथेय' यात्रा में यात्री को सहारा देता है, उसे आगे बढ़ने की शक्ति देता है । उसी तरह स्वप्न में देखे गए सुख की स्मृति भी कवि को जीवन मार्ग में आगे बढ़ने की क्षमता देती है ।
प्रश्न 12. कवि प्रसाद ने अपनी आत्मकथा के लिए 'भोली' विशेषण का प्रयोग क्यों किया है?
उत्तर
कवि प्रसाद ने अपनी आत्मकथा के लिए 'भोली' विशेषण का प्रयोग किया है क्योंकि उनकी आत्मकथा बहुत ही सरल, साधारण कथा है, जिसे सुनकर कुछ भी प्रेरणा मिलने वाली नहीं है। उनके छोटे से जीवन की यह सरल सामान्य कथा । इसमें कुछ ऐसी विशिष्टता नहीं जो किसी का मार्गदर्शन कर सके।
प्रश्न 13. कवि जयशंकर प्रसाद ने आत्मकथ्य न लिखने के लिए क्या-क्या कारण गिनाए हैं? किन्हीं तीन का उल्लेख करें।
उत्तर
कवि अपनी आत्मकथा नहीं लिखना चाहते थे। क्योंकि -
- वे मानते थे कि उन्होंने जीवन में विशेष रूप से कुछ भी उपलब्ध नहीं किया। उनका जीवन किसी के लिए प्रेरणादायक नहीं बन सकता।
- आलोचक उनकी अभावों से भरी जिंदगी को जानकर उनका उपहास करेंगे।
- आत्मकथा के वर्णन से अतीत के घाव पुनः हरे हो जाते हैं जो पीड़ा देते हैं।