Extra Questions for Class 10 क्षितिज Chapter 11 बालगोबिन भगत - रामवृक्ष बेनीपुरी Hindi
Chapter 11 बालगोबिन भगत Kshitij Extra Questions for Class 10 Hindi
प्रश्न 1. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
बालगोबिन भगत की मौत उन्हीं के अनुरूप हुई। वह हर वर्ष गंगा स्नान करने जाते। स्नान पर उतनी आस्था नहीं रखते, जितना संत समागम और लोक दर्शन पर। पैदल ही जाते। करीब तीस कोस पर गंगा थी। साधु को संबल लेने का क्या हक ? और गृहस्थ किसी से भिक्षा क्यों माँगे? अतः घर से खाकर चलते, तो फिर घर पर ही लौट कर खाते। रास्ते भर खँजड़ी बजाते, गाते, जहाँ प्यास लगती, पानी पी लेते। चार-पाँच दिन आने-जाने में लगते; किन्तु इस लंबे उपवास में भी वही मस्ती ! अब बुढ़ापा आ गया था, किंतु टेक वही जवानी वाली।
(क) 'बालगोबिन भगत की मौत उन्हीं के अनुरूप हुई'- कथन का आशय समझाइए।
(ख) 'संबल' शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए और बताइए कि भगत को संबल लेने का हक क्यों नहीं था ?
(ग) आशय स्पष्ट कीजिए- 'बुढ़ापा आ गया था किंतु टेक वही जवानी वाली' ।
उत्तर
(क) 'बालगोबिन भगत की मौत उन्हीं के अनुरूप हुई' - पंक्ति का आशय यह है कि बालगोबिन भगत मौत को दुःख का कारण नहीं, उत्सव का दिन मानते थे। मौत उनके लिए आत्मा का परमात्मा से मिलन की अवस्था है उनके मन में मृत्यु के प्रति भय नहीं था और न ही अपने बुढ़ापे को लेकर ही वे चिंतित थे। बुढ़ापे में भी वे अपना नित-नियम स्नान-संध्या सब पूर्ववत करते रहे। ईश्वर भक्ति में लीन मस्त होकर कबीर के पद गाते रहे। अंतिम दिन भी सायं को पद गाए और प्रातः होने पर शरीर छोड़कर चले गए। मृत्यु ने उन्हें कभी भी विचलित नहीं किया। उनकी मृत्यु उनके अनुरूप ही हुई।
(ख) 'संबल' का अर्थ है- आश्रय, सहारा। भगत जी को संबल लेने का कोई हक नहीं था इसका कारण यह था कि वह यह मानते थे कि साधु को संबल लेने का कोई हक नहीं है। वे स्वाभिमान और विनम्रता को साधुता का प्रमुख गुण मानते थे। किसी से कुछ माँगना अथवा हाथ फैलाना उन्हें गवारा नहीं था। वे गंगा स्नान के लिए पैदल जाते थे। बीच में माँगकर खाना उनकी प्रवृत्ति के विरुद्ध था। वे घर से भोजन करके जाते थे और घर आकर ही भोजन करते थे। यह उनका स्वाभिमान था। न जवानी में उन्होंने किसी से सहायता ली और न बुढ़ापे में उन्होंने किसी का आश्रय लिया। यही उनके व्यक्तित्व की विशिष्टता थी।
(ग) 'बुढ़ापा आ गया था किंतु टेक वही जवानी वाली पंक्ति के द्वारा बालगोबिन भगत के व्यक्तित्व को स्पष्ट किया गया है। बालगोबिन वृद्ध हो गए थे, परंतु उनके नित-नियम में किसी भी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं आया था। वे हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी (जीवन के अंतिम क्षणों में) गंगा स्नान करने गए थे। संत समागम इस स्नान का मुख्य उद्देश्य था । वृद्धावस्था में पहुँचकर भी उन्हें किसी का आश्रय लेना मंजूर नहीं था। रास्ते भर खँजड़ी बजाना, भजन गाना उनका ध्येय था। गंगा तक पहुँचने के लिए चार-पाँच दिन का लंबा रास्ता था। इस बीच वे उपवास रखतं थे। किसी से कोई सहायता नहीं लेते थे। जवानी से लेकर जीवन के अंतिम क्षण तक यह क्रम चलता रहा। यही आदर्श व्यक्तित्व उनका जीवन भर रहा।
प्रश्न 2. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
किंतु, बालगोबिन भगत गाए जा रहे हैं! हाँ, गाते-गाते कभी-कभी पतोहू के नज़दीक भी जाते और उसे रोने के बदले उत्सव मनाने को कहते। आत्मा परमात्मा के पास चली गई, विरहिनी अपने प्रेमी से जा मिली, भला इससे बढ़कर आनंद की कौन बात? मैं कभी-कभी सोचता, यह पागल तो नहीं हो गए। किंतु नहीं, वह जो कुछ कह रहे थे, उसमें उनका विश्वास बोल रहा था - वह चरम विश्वास जो हमेशा ही मृत्यु पर विजयी होता आया है।
(क) पुत्र के शव के निकट बैठकर बालगोबिन भगत लगातार क्यों गाए जा रहे थे और रोती हुई पतोहू उत्सव मनाने के लिए क्यों कह रहे थे?
(ख) पुत्र की मृत्यु भी भगत के विचार से आनन्द की बात क्यों थी ?
(ग) उनका कौन-सा विश्वास सांसारिक प्राणी को मृत्यु के प्रति निडर होने की प्रेरणा देता है?
उत्तर
(क) पुत्र के शव के निकट बैठकर बालगोबिन भगत इसलिए गाए जा रहे थे क्योंकि वह आत्मा-परमात्मा का बहुत घनिष्ठ संबंध मानते थे। आत्मा परमात्मा का ही एक अंश है जो अपने परम पिता से मिलने के लिए सदैव व्याकुल रहती है। 'मृत्यु' रुदन का नहीं अपितु 'उत्सव' मनाने का समय है क्योंकि परमात्मा से बिछुड़ा अंश अपने उद्गम स्रोत में समा जाता है इसलिए बालगोबिन भगत अपनी पतोहू को भी उत्सव मनाने के लिए कह रहे थे।
(ख) पुत्र की मृत्यु भी भगत के विचार से आनंद की बात थी क्योंकि विरहणी आत्मा का परमात्मा से मिलन हो गया था। विरहणी अपने प्रियतम से मिल गई थी। जीव व ईश्वर का मिलन आनंद प्रदान करने वाला अवसर है, शोक मनाने का नहीं।
(ग) मृत्यु का दिन एक ऐसा पावन अवसर है जब आत्मा सारे सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर परमात्मा में समा जाती है और सारे विषादों से मुक्त जाती है। लेखक का यह विश्वास सांसारिक प्राणी को मृत्यु के प्रति निडर होने की प्रेरणा देता है।
प्रश्न 3. अधोलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
बेटे के क्रिया-कर्म में तूल नहीं किया; पतोहू 'आग दिलाई उसकी। किंतु ज्योंही श्राद्ध की अवधि पूरी हो गई, पतोहू के भाई को बुलाकर उसके साथ कर दिया, यह आदेश देते हुए कि इसकी दूसरी शादी कर देना। इधर पतोहू रो-रोकर कहती- मैं चली जाऊँगी तो बुढ़ापे में कौन आपके लिए भोजन बनाएगा? बीमार पड़े, तो कौन एक चुल्लू पानी भी देगा? मैं पैर पड़ती हूँ, मुझे चरणों से अलग नहीं कीजिए।
(क) भगत ने बेटे के क्रिया-कर्म में तूल क्यों नहीं किया?
(ख) भगत पतोहू की दूसरी शादी क्यों कराना चाहते थे ?
(ग) पतोहू भगत के चरणों में ही क्यों रहना चाहती थी ?
उत्तर
(क) भगत ने बेटे के क्रिया-कर्म में तूल नहीं किया क्योंकि वह प्रचलित मान्यताओं को उचित नहीं मानते थे। स्त्रियों को श्मशान में नहीं जाने दिया जाता था। उन्होंने इस सामाजिक परंपरा का बहिष्कार किया व अपनी पतोहू से अपने मृतक पुत्र की चिता को अग्नि दिलवाई।
(ख) लोगों का यह विचार था कि विधवा का पुनः विवाह धर्म के विरुद्ध है। भगत जी विधवा-विवाह के समर्थक थे। आजीवन एक स्त्री अपनी इच्छाओं का गला घोंट कर जिए, यह उन्हें स्वीकार नहीं था। इसलिए उन्होंने पतोहू को दूसरी शादी का निर्णय लिया।
(ग) भगत जी वृद्ध थे। पतोहू के सिवा उनके परिवार में उनकी देखभाल के लिए कोई और नहीं था। पतोहू भगत जी की सेवा व उनकी देखभाल करना चाहती थी। वह पुत्र की विधवा के रूप में घर में रहकर भगत जी का सहारा बनना चाहती थी।
प्रश्न 4. अधोलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
खेतीबारी करते, परिवार रखते भी, बालगोबिन भगत साधु थे- साधु की सब परिभाषाओं में खरे उतरने वाले। कबीर को 'साहब' मानते थे, उन्हीं के गीतों को गाते, उन्हीं के आदेशों पर चलते। कभी झूठ नहीं बोलते, खरा व्यवहार रखते। किसी से भी दो टूक बात करने में संकोच नहीं करते, न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते। किसी की चीज़ नहीं छूते, न बिना पूछे व्यवहार में लाते।
(क) गृहस्थधर्मी होते हुए भी बालगोबिन भगत खरे साधु कैसे थे?
(ख) कबीर कौन थे ? भगत कबीर को 'साहब' क्यों मानते थे?
(ग) गद्यांश के आधार पर भगत के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
(क) गृहस्थधर्मी होते हुए भी बालगोबिन भगत साधु थे क्योंकि उन्होंने जीवन में सत्य को अपनाया। उनके मन में स्वार्थ नहीं, अपितु त्याग की भावना थी। उनका कभी किसी से विवाद नहीं हुआ। लोभ की भावना तनिक भी नहीं थी। वह 'कबीर' को अपने जीवन का आदर्श मानते थे तथा आडंबर व पुरानी मान्यताओं में परिवर्तन चाहते थे।
(ख) बालगोबिन भगत कबीर को 'साहब' इसलिए मानते थे क्योंकि कबीर ने सामाजिक व धर्म के नाम पर होने वाले पाखंडों का विरोध किया था। 'कबीर' की उच्च मानसिकता, उनके आदर्शों ने भगत के मन को झकझोर दिया था। कबीर की तरह सादा जीवन व उच्च विचारों को आत्मसात् करने वाले भगत जी के लिए कबीर उनके 'साहब' थे । इस शब्द के द्वारा भगत जी ने 'कबीर' को सम्मान दिया है।
(ग) भगत जी ने सदैव सत्य के मार्ग का अनुसरण किया। भोग की अपेक्षा उन्होंने त्याग वृत्ति अपनाई । अपने विचारों को निःसंकोच प्रकट किया। विवाद की स्थिति कभी पैदा नहीं होने दी। उन्होंने धन व वस्तुओं के प्रति मोह नहीं रखा। सामाजिक रूढ़ियों का सदैव विरोध किया। 'कबीर' के आदर्शों को आत्मसात् किया।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. बालगोबिन भगत की पुत्रवधू की ऐसी कौन-सी इच्छा थी जिसे वे पूरा न कर सके? कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
बालगोबिन भगत के एकमात्र पुत्र की मृत्यु हो गई थी। उनकी पुत्रवधू की यह इच्छा थी कि वह अपना शेष जीवन भगत जी की सेवा में बिताए । वह उन्हें अकेला छोड़ना नहीं चाहती थी। उसे लगता था कि बुढ़ापे में कौन भगत के खाने-पीने का ध्यान रखेगा? बीमारी में कौन सहायता करेगा? लेकिन उसकी इस इच्छा को बालगोबिन भगत ने पूरा नहीं किया और बेटे के क्रिया-कर्म के उपरांत उसके भाई को यह आदेश दिया कि वह शीघ्र ही उसका पुनर्विवाह कर दे।
प्रश्न 2. बालगोबिन भगत प्रतिवर्ष गंगा स्नान करने क्यों जाते थे? पाठ के आधार पर लिखिए ।
उत्तर
बालगोबिन भगत प्रतिवर्ष गंगा स्नान के लिए जाते थे। गंगा स्नान के लिए जाने के पीछे स्नान करना उनका मुख्य उद्देश्य या आधार नहीं था। वास्तव में वे ऐसे अवसर पर संतों का सम्पर्क पाना चाहते थे। संत-समागम और लोकदर्शन इस स्नान का मुख्य केंद्र था। संतों के साथ मिलकर सत्संग करना एवं लोगों से मिलने की प्रबल इच्छा उनमें सदैव विद्यमान रहती थी। पैदल चलते हुए, खंजड़ी बजाते हुए, गाते हुए वह निरंतर आगे बढ़ते जाते थे।
प्रश्न 3. बालगोबिन भगत जी ने पुत्र की मृत्यु पर पुत्रवधू को रोने के स्थान पर उत्सव मनाने के लिए क्यों कहा? पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर
बालगोबिन भगत पुत्र की 'मृत्यु पर पुत्रवधू को रोने के स्थान पर उत्सव मनाने को इसलिए कहा क्योंकि उनके अनुसार मृत्यु शोक का कारण नहीं है, अपितु उत्सव का दिन है । यह विरहिनी आत्मा का अपने प्रिय परमात्मा से मिलने का दिन है। इसलिए यह दिन आनंद से मनाना चाहिए। स्वयं भी वे पुत्र की मृत्यु पर शोक न मनाकर संगीत गाते रहे और रोती हुई पुत्रवधु को सांत्वना देते रहे।
प्रश्न 4. ' मोह और प्रेम में अंतर होता है।' बालगोबिन भगत के जीवन की किस घटना के आधार पर आप इस कथन को कैसे सच सिद्ध करेंगे?
उत्तर
मोह और प्रेम में अंतर होता है । 'मोह' में पड़कर व्यक्ति स्वार्थी बन जाता है जबकि 'प्रेम' में पवित्रता एवं सात्विकता का तत्व विद्यमान रहता है । प्रेम में स्वार्थ नहीं 'हित चिंतन' का तत्व मुख्य रहता हैं । बालगोबिन भगत के जीवन की निम्न घटना के आधार पर इस कथन को पुष्ट किया जा सकता है- भगत जी के एकमात्र पुत्र की मृत्यु हो गई थी। वह उसकी मृत्यु पर मोह में पड़कर शोकाकुल नहीं थे अपितु उनका पुत्र सांसरिक बंधनों से मुक्त हो गया ऐसा मानकर गीत गा रहे थे। वह इस आत्मा एवं परमात्मा के मिलन का अवसर मान रहे थे। उन्होंने विलाप करती हुई अपनी पुत्रवधू को भी यह बात समझाई। इस अवसर पर उन्होंने मोह से मुक्त मन से पुत्रवधू के भाई को उसका दूसरा विवाह कराने का निर्देश दिया। वे स्वयं बूढ़े हो गए थे। बुढ़ापे का उनका कोई भी सहारा नहीं था । यदि वे अपनी पुत्रवधू को अपने सुख के लिए अपने पास रख लेते, तो यह उनका मोह होता । पुत्रवधू के भविष्य पर विचार करना उनके मन में 'प्रेम की भावना को दर्शाता है।'
प्रश्न 5. बालगोबिन भगत की मृत्यु के विषय में क्या मान्यता ?
उत्तर
बालगोबिन भगत की 'मृत्यु' के विषय में सबसे भिन्न मान्यता थी। उनके अनुसार मौत दुख का कारण न होकर उत्सव का दिन है। यह विरहिनी का अपने प्रिय से मिलन का दिन है। उनके अनुसार मृत्यु वह स्थिति है जब शरीर को छोड़कर आत्मा परमात्मा से मिलती है। इसलिए इस दिन किसी भी प्रकार का शोक नहीं मनाना चाहिए।
प्रश्न 6. बालगोबिन भगत किस संत के अनुयायी थे? उन पर उनका कितना प्रभाव था ?
उत्तर
बालगोबिन भगत संत कबीरदास के अनुयायी थे। कबीरदास पर उनकी अगाध श्रद्धा थी। वे कबीर को अपना साहब मानते थे और उन्हीं की दी गई शिक्षाओं का पालन करते थे। उनका सब कुछ साहब का था। खेत में जो फ़सल होती थी, वे कबीर के दरबार में ले जाते और वहाँ प्रसाद स्वरूप जो कुछ मिलता, उसी में अपना गुजारा चलाते थे। कबीर की ही भाँति वे परमात्मा में विश्वास रखते थे। वास्तव में कबीर के विचारों पर उनकी अगाध श्रद्धा थी।
प्रश्न 7. भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। किस घटना के आधार पर यह सिद्ध होता है?
उत्तर
बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे । इसका सशक्त प्रमाण अपनी पतोहू के पुनर्विवाह से जुड़ी घटना से सिद्ध होता है । उनके पुत्र की आकस्मिक मृत्यु हो गई थी। उसके पश्चात् बालगोबिन भगत ने अपनी पतोहू के पुनर्विवाह के लिए प्रयास शुरू कर दिए थे। उन्होंने उसके भाई को बुलाकर पतोहू के पुनर्विवाह कर देने का सुझाव अत्यंत दृढ़तापूर्वक दिया था, क्योंकि उनका यह मानना था कि बाल विधवा को आजीवन कष्ट भोगने के लिए विवश नहीं करना चाहिए। उसको पुनः जीवन जीने का अवसर देना चाहिए। तभी समाज फैली अनैतिकता पर अंकुश लगाया जा सकता है।
प्रश्न 8. लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी के अनुसार बालगोबिन भगत ने किस प्रकार प्रचलित सामाजिक मान्यताओं का खंडन किया ?
उत्तर
बालगोबिन भगत ने समाज में प्रचलित निम्न सामाजिक मान्यताओं का खंडन किया है-
- उन्होंने अपने मृतक - पुत्र की चिता में अपनी पतोहू द्वारा अग्नि दिलवाकर इस प्रचलित सामाजिक मान्यता का खंडन किया कि स्त्रियाँ श्मशान में नहीं जा सकती और न ही वे अपने किसी संबंधी की चिता को अग्नि दे सकती हैं।
- विधवा स्त्री का पुनर्विवाह सामाजिक मान्यता के विरुद्ध था। उन्होंने दृढ़ता से इस मान्यता का विरोध किया और अपनी पतोहू के पुनर्विवाह के लिए उसके भाई को आदेश दिया।
- इसके अतिरिक्त वे साधुओं द्वारा भिक्षा माँगकर भोजन एकत्रित करने की परंपरा के भी विरोधी थे।
प्रश्न 9. पाठ के आधार पर बताइए कि बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हुई है?
उत्तर
बालगोबिन भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा थी। वे कबीर को अपना साहब मानते थे और उन्हीं की दी हुई शिक्षाओं का पालन करते थे। कबीर उनके आदर्श थे। खेत में जो, फसल होती उसे अपने सिर पर लादकर पहले चार कोस दूर कबीर के दरबार (मठ) में ले जाते और वहाँ प्रसाद स्वरूप जो कुछ मिलता, उसी से अपना गुजारा करते। इतना ही नहीं उनके विचार कबीर की शिक्षाओं से मिलते थे और उसी में उन्हें आनंद मिलता था। भगत जी कबीर की भाँति परमात्मा में विश्वास रखते थे एवं बाह्य आडंबरों का कड़ा विरोध करते थे। कबीर के विचारों पर उनकी अगाध श्रद्धा थी।
प्रश्न 10. 'बालगोबिन भगत' पाठ में चित्रित भगत गृहस्थ होकर भी हर दृष्टि से साधु थे। क्या साधु की पहचान माला, तिलक तथा गेरुए वस्त्रों से होती है या उसके आचार-विचार से? इस विषय में अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
किसी भी साधु की पहचान माला - तिलक तथा गेरुए वस्त्रों से नहीं, अपितु उसके आचार-विचार से होती है। साधु भौतिक वस्तुओं का संचय नहीं करता। अभाव व कष्ट में भी जीवन जीते हुए सुख का अनुभव करता है। परोपकार की भावना उसका जीवन लक्ष्य होता है। भगत गृहस्थ होते हुए भी साधुता की कसौटी पर खरे उतरते थे। वह कृत्रिमता व आडंबरों से कोसों दूर थे। वह त्याग प्रवृत्ति में ही जीवन की सार्थकता मानते थे।
प्रश्न 11. 'बालगोबिन भगत' पाठ में भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त कीं?
उत्तर
बालगोबिन भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाओं को इस प्रकार प्रकट किया- उन्होंने अपने मृतक बेटे को आँगन में एक चटाई पर लिटाकर एक सफ़ेद कपड़े से ढक दिया। उसके ऊपर फूल एवं तुलसीदल डाल दिए एवं सिरहाने एक चिराग जला दिया। मृतक पुत्र के समीप ही ज़मीन पर अपना आसन बिछा कर हमेशा की तरह कबीर के पद गाने लगे। उनकी पुत्रवधू उस समय रो रही थी। ऐसे में भगत जी ने उसे रोने की बजाए खुश होकर उत्सव मनाने को कहा और समझाया कि यह समय आत्मा-परमात्मा के मिलन का है, शोक मनाने का नहीं। वे इसे आनंद की स्थिति मान रहे थे और इस समय बहत ही संयमित थे।
प्रश्न 12. 'बालगोबिन भगत' पाठ के आधार पर बताइए कि बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हुई है?
उत्तर
बालगोबिन भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा थी। वे कबीर को अपना साहब मानते थे। उनके प्रति भगत जी की श्रद्धा निम्न रूपों में प्रकट हुई-
- भगत जी अपने सिर पर कबीर पंथी टोपी पहनते थे, जो कनपटी तक जाती थी।
- उनकी दी हुई शिक्षाओं का पालन करते थे।
- वे उन्हीं के बताए आदर्शों पर चलते थे।
- कबीर के पद उनके संगीत का आधार थे।
- उनके खेत में जो फ़सल होती थी, उसे सिर पर लादकर कबीर के दरबार (मठ) में ले जाते थे और वहाँ प्रसाद रूप में जो कुछ मिलता था, उसी से अपना गुज़ारा करते थे।
- भगत जी कबीर की ही भाँति रूढ़ियों का खंडन करते थे। वह कबीर की भाँति परमात्मा में विश्वास रखते थे । इसलिए कबीर के विचारों पर उनकी अगाध श्रद्धा थी।
प्रश्न 13. 'बालगोबिन भगत' पाठ में भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त कीं?
उत्तर
बालगोबिन भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर दुख प्रकट नहीं किया क्योंकि वह मानते थे कि प्राणी की के आत्मा, परमात्मा का ही अंश है। 'मृत्यु' के वक्त आत्मा परमात्मा में लीन हो जाती है। अतः यह दुख का नहीं उत्सव का समय है क्योंकि आत्मा को मुक्ति मिल जाती है। इसी कारण उन्होंने अपने मृतक पुत्र ऊपर पुष्प व तुलसी के पत्ते बिखेरकर उसके सिरहाने एक दीपक जला दिया।
प्रश्न 14. बालगोबिन भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी ?
उत्तर
बालगोबिन भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले इसलिए नहीं छोड़ना चाहती थी क्योंकि वह जानती थी कि भगत जी संसार में अकेले हैं । उनके इकलौते पुत्र की मृत्यु चुकी है। वे बूढ़े हैं। उन्हें संसार में कोई रुचि नहीं है। अतः वे अपने खाने-पीने और स्वास्थ्य की ओर भी ध्यान नहीं दे पाएँगे। उसे चिंता थी कि यदि वह चली गई, तो उनका भोजन कौन बनाएगा, बीमार पड़ने पर उनकी दवा-दारू कौन करेगा। उन्हें पानी तक देने वाला कोई नहीं है। वह अपने बूढ़े ससुर की सेवा करके वैधव्य के दिन काटना चाहती थी।
प्रश्न 15. ‘बालगोबिन भगत' पाठ में वर्णित कुछ प्रसंगों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि भगत जी अनेक प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे।
उत्तर
भगत जी ने अनेक प्रचलित सामाजिक मान्यताओं का विरोध किया। उस समय स्त्रियों का श्मशान घाट में जाना निषेध था। भगत जी ने उस समय अपने मृतक पुत्र की चिता को अग्नि अपनी पतोहू से लगवाई। विधवा विवाह का समर्थन कर अपनी पतोहू का पुनः विवाह करने का निर्णय लिया। साधु भिक्षा माँग कर भोजन करें - भगज जी ने इस परंपरा का भी विरोध किया।
प्रश्न 16. लड़के के देहांत के बाद बालगोबिन भगत ने पतोहू को किस बात के लिए बाध्य किया? उनका यह व्यवहार उनके किस प्रकार के विचार का प्रमाण है?
उत्तर
अपने इकलौते लड़के के देहांत के बाद बालगोबिन भगत पतोहू को रोने के बदले उत्सव मनाने को कहा । उनका विचार था कि उनके बेटे की आत्मा परमात्मा के पास चली गई है, विरहिनी अपने प्रेमी से जा मिली है। अब इससे बढ़कर और अधिक आनंद की क्या बात हो सकती है? इसके आलावा, अपने प्रगतिशील मत के अनुसार वे विधवा पुनर्विवाह का समर्थन करते थे। उन्होंने अपनी पतोहू को दूसरी शादी के लिए बाध्य करने की खातिर ही उसके भाई को बुलाकर उसके साथ कर दिया। अपनी पतोहू के पुनर्विवाह संबंधी भगत का यह निर्णय अटल था क्योंकि उनका विचार था कि अभी उसकी उम्र संसार देखने एवं उसका आनंद लेने की है। यहाँ रहकर विधवा का जीवन जीते हुए उनकी सेवा करने की नहीं है। उनका यह व्यवहार उनके प्रगतिशील विचार का प्रमाण।
प्रश्न 17. बालगोबिन भगत के व्यक्तित्त्व और वेशभूषा का शब्दचित्र प्रस्तुत कीजिए ।
उत्तर
बालगोबिन भगत का व्यक्तित्व एक साधु के समान था। वे आदर्शवादी थे और कथनी एवं करनी में विश्वास रखते थे। वे किसी दूसरे की चीज़ को व्यवहार में लाना तो दूर छूते भी नहीं थे। उनका व्यक्तित्व राग-द्वेष से बहुत ऊपर उठा हुआ था । वह मँझोले कद के गोरे - चिट्टे आदमी थे। उनकी आयु साठ वर्ष से ऊपर थी। उनके बाल पक गए थे। लंबी दाढ़ी व जटाजूट तो नहीं रखते थे, किंतु हमेशा उनका चेहरा सफेद बालों से जगमगाता रहता था। वे कपड़े बहुत कम पहनते थे। कमर में एक लंगोटी मात्र और सिर पर कबीरपंथियों के समान कनफटी टोपी- यही वह धारण करते थे। सर्दी आने पर शरीर पर एक काली कमली ओढ़ लेते थे। उनके मस्तक पर सदैव रामानंदी चंदन चमकता रहता था, जो नाक के एक छोर से आरम्भ होकर ऊपर मस्तक तक चला जाता था। गले में तुलसी की जड़ों की एक बेडौल माला धारण किए रहते थे। इस रूप में उनका व्यक्तित्व एक साधु से कम नहीं था।