Extra Questions for Class 10 क्षितिज Chapter 7 छाया मत छूना - गिरिजाकुमार माथुर Hindi
Chapter 7 छाया मत छूना Kshitij Extra Questions for Class 10 Hindi
प्रश्न 1. निम्नलिखित काव्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
जीवन में हैं, सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी,
तन- सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी ।
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण-
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना ।
(क) 'छाया मत छूना' - कवि ने ऐसा क्यों कहा?
(ख) 'छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी' का क्या तात्पर्य है?
(ग) कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी' में कवि को कौन-सी यादें कचोटती हैं?
उत्तर
(क) कवि गिरिजा कुमार माथुर के अनुसार 'छाया' से तात्पर्य भूतकाल के सुखी समय से है। कवि उसे छूने से इसलिए मना करता है क्योंकि वर्तमान समय में बीते सुखों को याद करने से कोई लाभ नहीं होता है। बीता अच्छा समय वर्तमान के दुखों को को दूर करने में असमर्थ होता है। अतः हमें अपने वर्तमान को सुखी बनाने के लिए बीते अच्छे दिनों को याद नहीं करना चाहिए। विगत लौटकर वापस नहीं आता और न ही वह वर्तमान परिस्थितियाँ बदल सकता है।
(ख) कवि गिरिजा कुमार माथुर द्वारा रचित कविता 'छाया मत छूना' की इस पंक्ति का तात्पर्य है कि जीवन में बीते समय की सुगंध फैली रहती है । विगत में प्रिय मिलन की यादें मन को लुभाती हैं और उसकी देह की गंध ही वर्तमान में शेष रह जाती है।
(ग) कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी' में कवि को अपनी प्रेयसी के बालों में लगे सुमन-गुच्छ याद आते हैं, यही यादें चाँदनी बनकर उसके मन को उलझा कर रखती हैं।
प्रश्न 2. निम्नलिखित काव्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन-
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
(क) 'मृगतृष्णा' से क्या अभिप्राय है, यहाँ मृगतृष्णा किसे कहा गया है ?
(ख) 'हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है' इस पंक्ति से कवि किस तथ्य से अवगत करवाना चाहता है ?
(ग) 'छाया' से कवि का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर
(क) मृगतृष्णा अर्थात हिरन की ऐसी प्यास जो पानी की चाह में उसे भगाती रहती है । रेगिस्तान में रेत पर जब सूर्य की तेज़ किरणें पड़ती हैं, तो पानी होने का भ्रम पैदा करती हैं और हिरन उसी को पाने के लिए दौड़ लगाता है।कविता में इसका प्रयोग कवि द्वारा भौतिक वस्तुओं व सुखों के पीछे भागने से है। पूँजी व धन की प्राप्ति उसे भ्रमित करती रही। यश, वैभव व सम्मान पाने के लिए वह भटकता रहा पर इनकी प्राप्ति मृगतृष्णा ही साबित हुई।
(ख) इस पंक्ति द्वारा कवि गिरिजा कुमार माथुर बताना चाहते हैं कि हर चाँदनी रात के दामन में एक काली रात छिपी है। कवि का चाँदनी से अभिप्रायः सुखों से है और काली रात दुखों का प्रतीक है। जीवन सुख-दुख का सागर है। एक के बाद दूसरे का आना निश्चित होता है। अतः दोनों को समान रूप से ग्रहण करना चाहिए।
(ग) 'छाया' से कवि का तात्पर्य विगत समय की बीती हुई सुखद यादों से है । समान मानव के मन-मस्तिक को वर्तमान में भी झिंझोड़ती रहती हैं।
प्रश्न 3. निम्नलिखित काव्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
दुविधा - हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।
दुख है न चाँद खिला शरद रात आने पर,
क्या हुआ जो खिला फूल रस- बसंत जाने पर ?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
छाया मत छूना,
मन, होगा दुख दूना।
(क) 'देह सुखी होने पर भी मन के दुख का अंत नहीं' - कथन का भाव स्पष्ट कीजिए ।
(ख) दुख है न चाँद खिला शरद रात आने पर,
क्या हुआ जो खिला फूल रस - बसंत जाने पर ?
उक्त पंक्तियों में कवि क्या कहना चाहता है ?
(ग) कवि छाया छूने से मना क्यों कर रहा है?
उत्तर
(क) 'देह सुखी होने पर भी मन के दुख का अंत नहीं' कथन के द्वारा कवि हमें अतीत की यादों से मिलने वाली पीड़ा की ओर ध्यान दिलवाना चाहते हैं। उनका मानना है कि अतीत की सुखद यादों से मन को पीड़ा मिलती है और व्यक्ति के पास सुख-सुविधाएँ होने पर भी केवल शारीरिक सुख तो प्राप्त हो जाता है, किंतु मन में अतीत की सुखद स्मृतियाँ पीड़ा बनकर चुभती रहती हैं, जिनका अंत दिखाई नहीं देता ।
(ख) उपर्युक्त पंक्तियों में कवि यह कहना चाहता है कि जिस प्रकार शरद पूर्णिमा की रात को चाँद न निकले, तो शरद पूर्णिमा का संपूर्ण सौंदर्य अधूरा प्रतीत होता है, उसी प्रकार मनुष्य को जीवन में अपेक्षित सुख न मिलने पर उसका दुख उसे जीवन भर सताता है। जैसे वसंत ऋतु में फूल न खिले तो वह सुखदायी प्रतीत नहीं होती, वैसे ही मनुष्य अपने अतीत में जो चाहे और वह उसे न मिले तो उदासी उसके जीवन को घेर लेती । अतीत की यादों से मिली यह उदासी वर्तमान का सुख भी छीन लेती है। इसलिए जीवन में सच्चे सुख के लिए अतीत की यादों को बिसराना ही बेहतर है।
(ग) 'छाया' शब्द से तात्पर्य अतीत की मधुर स्मृतियों से है, जो वर्तमान एवं भविष्य दोनों को प्रभावित कर देती हैं। ये मन में पीड़ा बनकर चुभती रहती हैं। इनका कहीं अंत दिखाई नहीं देता इसलिए इनमें उलझकर व्यक्ति सुख-संपत्ति के होते हुए भी मानसिक शांति से दूर हो जाता । अतः दुविधाओं से दूर एक अच्छा व सुखी जीवन व्यतीत करने के लिए कवि छाया छूने से मना कर रहा ।
प्रश्न 4. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़ कर उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना॥
जीवन में है सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र - गंध फैली मनभावनी;
तन सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
(क) कविता में 'छवि' शब्द किस अर्थ के लिए प्रयुक्त हुआ है ?
(ख) कवि के जीवन की सुरंग सुधियाँ क्या हैं?
(ग) ' कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी' - आशय समझाइए ।
उत्तर
(क) कविता में 'छवि' शब्द मनुष्य के बीते सुखमय दिनों की स्मृतियाँ हैं, जो मानस पटल पर गहराई से अंकित हैं। ये वे रंगीन यादें हैं, जो जाने-अनजाने में वर्तमान को महका जाती हैं। उन मधुर क्षणों की स्मृति 'छवि' के समान हृदय पर छा जाती हैं और सुखमय क्षणों का आनंद भर जाती हैं।
(ख) कवि के जीवन की सुरंग सुधियाँ वे रंगीन यादें हैं, जिन्हें याद कर कवि आनंद का अनुभव कर रहा है। ये वे रंग-बिरंगी स्मृतियाँ हैं, जिनका मोहक, आकर्षक रूप जीवन को महका जाता है।
(ग) कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी' पंक्ति का आशय है- कवि को चाँदनी को देखकर अपनी प्रिया की याद आ जाती है। जिसके बालों में सजे फूल सौंदर्य की सृष्टि करते थे । परंतु अब मधुर यादें ही शेष हैं, जो बार-बार उसके स्मृति पटल पर अंकित होती हैं एवं उसे कचोटती रहती हैं।
प्रश्न 5. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लीखिए-
यश है या न वैभव है, मान है, न सरमाया;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
प्रभुता का शरण-बिम्ब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन-
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना॥
(क) कवि को सांसारिक उपलब्धि और समृद्धि से विरक्ति क्यों हो गई है ?
(ख) 'प्रभुता का शरण - बिम्ब केवल मृगतृष्णा है' काव्यांश का आशय समझाइए ।
(ग) ' चंद्रिका' और 'रात कृष्णा' किस अर्थ के व्यंजक हैं ?
उत्तर
(क) कवि को सांसारिक उपलब्धि और समृद्धि से विरक्ति इसलिए हो गई है क्योंकि ये सब मिथ्या हैं और इन सब के पीछे कोई-न-कोई दुख छुपा हुआ है । अतः कवि यथार्थ को पूजने को कहता है न कि इन मृगतृष्णाओं के पीछे भागने को ।
(ख) 'प्रभुता ' अर्थात स्वामित्व पाकर भी सब व्यर्थ है क्योंकि यह भी मृग मरीचिका की भाँति केवल भ्रमित करती हैं। इसमें भी सत्य का अभाव है और सच्चा सुख नहीं है। अधिकार पाकर भी व्यक्ति का जीवन तो रिक्त ही रहता है।
(ग) ‘चंद्रिका' अर्थात चाँदनी सुख का व्यंजक है। 'रात कृष्णा' काली रात अथवा दुख का व्यंजक है । चंद्रिका और रात कृष्णा सुख-दुख के भी प्रतीक हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. 'छाया मत छूना' कविता की पंक्ति 'जितना ही दौड़ा तू, उतना ही भरमाया' का क्या आशय है ?
उत्तर
कविता 'छाया मत छूना' में कवि 'गिरिजा कुमार माथुर' द्वारा रचित ये पंक्ति 'जितना ही दौड़ा तू, उतना जितना ही अधिक धन, दौलत, सुख-ऐश्वर्य व मान-सम्मान पाने के लिए भाग-दौड़ करता है अर्थात प्रयत्न करता है उतना ही अधिक ये चीज़े उसे भरमाती हैं । मृगतृष्णा के समान उससे दूर भागती रहती हैं। ये मानव को जीवन पर्यंत छलती रहती हैं । कभी व्यक्ति इन्हें पाने के लिए दुखी रहता है और कभी इनके न मिलने पर दुखी रहता है। ये चीजें मानव को जीवन भर अपने पीछे दौड़ाती रहती हैं।
प्रश्न 2. कवि ने 'छाया मत छूना' कविता में कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों की है ?
उत्तर
कवि गिरिजा कुमार माथुर ने कविता 'छाया मत छूना' में यथार्थ को पूजने की बात इसलिए कही है क्योंकि वर्तमान समय में वास्तविकताओं का सामना करके ही हम अपने जीवन को सफल बना सकते हैं। विगत स्मृतियों से चिपके रहना व्यर्थ है और वर्तमान से पलायन करके हम सुखी नहीं हो सकते। अतः वर्तमान समय में आने वाले कठोर यथार्थ का डटकर सामना करना ही हमारे जीवन की प्राथमिकता होनी चाहिए। यथार्थ को पूजकर ही हम सच्चाई का सामना कर सकते हैं और जीवन को बेहतर बना सकते हैं।
प्रश्न 3. 'मृगतृष्णा' किसे कहते हैं? ‘छाया मत छूना' कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है ?
उत्तर
गर्मियों में प्यास से व्याकुल मृग को रेगिस्तान में थोड़ी दूरी पर पानी होने का भ्रम होता है, किंतु पास जाने पर केवल रेत -ही-रेत दिखाई देता है और फिर वहाँ से आगे पानी होने का भ्रम होने लगता है। वह पानी के इस भ्रम को वास्तविक पानी समझकर उसे पाने के लिए भागता रहता है। उसकी इस स्थिति को ही 'मृगमरीचिका' या 'मृगतृष्णा' कहा जाता है। इस प्रकार प्रतीकात्मक अर्थ में 'मृगतृष्णा' मिथ्या भ्रम अथवा छलावे की स्थिति को कहा जा सकता है। 'छाया मत छूना' कविता में कवि कहना चाहता है कि जीवन में प्रभुता यानी बड़प्पन की अनुभूति भी एक प्रकार से भ्रम ही है क्योंकि व्यक्ति इसे पाने के लिए मान-सम्मान, धन-संपत्ति, पद-प्रतिष्ठा के लिए भागता रहता है और इसी भ्रम में वह 'जीवन छला जाता है और यह भ्रम उसे सुख नहीं, बल्कि दुख ही देता है।
प्रश्न 4. 'क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर ?'- का क्या भाव है?
उत्तर
'क्या हुआ जो खिला फूल रस- बसंत जाने पर पंक्ति का भाव यह है कि जिस प्रकार बसंत ऋतु में फूल न खिले तो वह सुखदायी प्रतीत नहीं होती, वैसे ही मनुष्य अपने अतीत में जो चाहे और वह उसे न मिले तो उदासी उसके जीवन को घेर लेती है। अतीत की मधुरिम यादों से मिली यह उदासी वर्तमान व भविष्य का सुख भी छीन लेती है। इसलिए जीवन में सच्चे सुख के लिए अतीत की यादों को बिसराना ही उचित होता है।
प्रश्न 5. मनुष्य अतीत में खोए रहने के कारण दुखी रहता है। आपके विचार में दुख के और क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर
अतीत में खोए रहने के कारण दुखी रहना मानव प्रकृति है जो कि उचित नहीं है। उससे हम अपने वर्तमान व भविष्य को भी नहीं सँवार पाते। मानव के दुखी रहने के अन्य कारण भी हैं; जैसे-
- कठिन परिश्रम करने पर भी फल की प्राप्ति न होने पर मानव दुखी हो जाता है।
- समय बीत जाने पर वस्तुओं की प्राप्ति भी मानव को दुखी कर देती है ।
- जब संकट के समय मित्र और रिश्तेदार साथ न निभाएँ ।
- प्रियजन के बिछड़ जाने पर भी मानव दुखी हो जाता है 1
प्रश्न 6. 'छाया मत छूना' का कवि यथार्थ के पूजन की बात क्यों कहता है? उसकी दृष्टि में यथार्थ का स्वरूप क्या है ?
उत्तर
कविता ‘छाया मत छूना' में कवि 'गिरिजा कुमार' यथार्थ के पूजन की बात इसलिए कहते हैं क्योंकि वर्तमान में यथार्थ का सामना करने से ही जीवन चलता है। अतीत की स्मृतियों में खोए रहने से जीवन में संघर्षों का सामना नहीं किया जा सकता। वर्तमान की समस्याओं का कठोरता और सत्यता से सामना करना चाहिए, न कि उनसे पलायन कर विगत में खोए रहना चाहिए। कवि की दृष्टि में कठिन यथार्थ से रूबरू होना ही जीवन की सच्चाई है। खुशी के साथ वर्तमान के सुख-दुख को अपनाना ही यथार्थ है। अतः अतीत को भूलकर वर्तमान व भविष्य को सुखद बनाने के लिए सामने आने वाली परिस्थितियों का सामना करना चाहिए।
प्रश्न 7. 'जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी' से ‘छाया मत छूना' कविता के कवि का अभिप्राय जीवन की किन मधुर स्मृतियों से है ? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी' से ‘छाया मत छूना' कविता के कवि का अभिप्राय जीवन में अपनी प्रिया के साथ व्यतीत किए गए सुखद क्षणों से है। स्मृतियों में अपनी प्रेयसी के तन की सुगंध कवि के मन-तन दोनों को ही सराबोर कर देती है। चाँदनी रात में प्रेयसी के बालों में गुथे पुष्पों की मनभावन सुगंध का स्मरण हो आता है। अतीत की ये स्मृतियाँ कभी वास्तव में मधुर रही होंगी, किंतु बिछोह की स्थिति में वर्तमान में पीड़ा भरने का कार्य करती हैं।
प्रश्न 8. 'छाया मत छूना' कविता के आधार पर मन के दुख को बढ़ाने वाले कारणों को अपने शब्दों में प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
कविता 'छाया मत छूना' में मन के दुख को बढ़ाने वाले निम्नलिखित कारण हो सकते हैं-
- जब मानव अतीत की यादों में खोकर वर्तमान से पलायन करता है, तो मन का दुख बढ़ जाता है।
- बीती स्मृतियाँ उसे बार-बार सताती हैं। अपने प्रिय मिलन की मीठी यादें, उसकी देह गंध और केशों के पुष्प गुच्छ याद आ आकर मन को दुखी कर जाते हैं ।
- धन, दौलत और वैभव उसे मृगतृष्णा के समान भरमाते हैं ।
- समय पर सभी सुखों की प्राप्ति न होने से भी मन दुखी रहता है ।
प्रश्न 9. 'हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है' पंक्ति में कवि ने जीवन का कौन-सा यथार्थ प्रस्तुत किया है? व्यक्ति उस यथार्थ को कैसे झेल सकता है?
उत्तर
'हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है' पंक्ति के माध्यम से कवि जीवन के उस यथार्थ को बताना चाहता है कि हर सुख में दुख छिपा है क्योंकि चंद्रिका सुखों का और कृष्णा दुखों का प्रतीक है। जिस प्रकार हर रात के बाद दिन आता है उसी प्रकार जीवन में सुख-दुख बारी-बारी से आते रहते। व्यक्ति जीवन के यथार्थ अर्थात जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना धैर्य व साहस से कर सकता है। यथार्थ का सामना करके, उससे संघर्ष करके ही उसे पस्त किया जा सकता है। बीते दुख के दिनों को याद करने का कोई फायदा नहीं। अतः यथार्थ का डट कर सामना करना चाहिए।
प्रश्न 10. 'छाया मत छूना' कविता में कौन-कौन-सी बातें दुख का कारण बताई गई हैं?
उत्तर
'छाया मत छूना' कविता में दुखों का कारण पुरानी यादों और बड़ी-बड़ी कल्पना वाले स्वप्नों को बताया गया है। पुरानी सुधियाँ हमें बिछुड़े और गए हुए लोगों की याद दिला देती हैं। वे कभी वापस तो नहीं आते, परंतु उनके कारण पुराने घाव हरे हो जाते हैं। हम अवसाद से घिर जाते हैं। स्वप्न भी यदि पूरे न हों, तो दुख का कारण बनते हैं। अतः इनको छूने से बचना चाहिए अर्थात याद नहीं करना चाहिए।
प्रश्न 11. 'छाया मत छूना' में कवि 'छाया' किसे कहता है और क्यों ?
उत्तर
कवि गिरिजा कुमार माथुर 'छाया' विगत समय में बीती हुई स्मृतियों को कहते हैं, जो अनेक बार वर्तमान समय में भी मानव मस्तिष्क में छाईं रहती हैं। ये यादें ठीक परछाईं की तरह मानव का पीछा नहीं छोड़ती हैं। वर्तमान में भी मृग मरीचिका की तरह भ्रमित करती हैं, इसलिए कवि ने इन्हें 'छाया' कहा है। ये स्मृतियाँ छाया की तरह मन में विचरित करती हुई वर्तमान जीवन को भी दुखी कर देती हैं।