Extra Questions for Class 10 क्षितिज Chapter 8 कन्यादान - ऋतुराज Hindi

Here, students will find Important Questions for Class 10 Kshitij Chapter 8 Kanyadan by Rituraj Hindi with answers on this page which will increase concentration among students and have edge over classmates. A student should revise on a regular basis so they can retain more information and recall during the precious time. These extra questions for Class 10 Hindi Kshitij play a very important role in a student's life and developing their performance.

Extra Questions for Class 10 क्षितिज Chapter 8 कन्यादान - ऋतुराज Hindi

Chapter 8 कन्यादान Kshitij Extra Questions for Class 10 Hindi

काव्यांश आधारित प्रश्नोत्तर


प्रश्न 1. निम्नलिखित काव्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना ।
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री-जीवन के ।

(क) लड़की का अपने चेहरे पर रीझना हानिकारक क्यों है?

(ख) कविता में 'आग' के माध्यम से समाज की किस समस्या की ओर संकेत किया गया है?

(ग) वस्त्र और आभूषण के प्रति नारी का आकर्षण स्वाभाविक क्यों होता है ?

(घ) माँ ने उन्हें बंधन क्यों माना है?

(ङ) माँ ने बेटी को ये सब सीखें क्यों दीं ?

उत्तर

(क) लड़की का अपने चेहरे पर रीझना इसलिए हानिकारक होता है क्योंकि वह अपने रूप सौंदर्य के प्रति अति उत्साही होकर सुंदर होने का भ्रम पाल लेती है और यही उसकी कमज़ोरी बन जाता है । वह यथार्थ का सामना करने के लिए कठोरता से खड़ी नहीं हो पाती है।

(ख) कविता में आग के माध्यम से लड़की की उस दयनीय अवस्था की तरफ़ संकेत किया है, जिसमें दहेज न लाने या कम लाने के कारण लड़की को कई बार समाज के कुछ लोभी व्यक्ति जला तक डालते हैं।

(ग) वस्त्र और आभूषण लड़की के सौंदर्य को बढ़ाते हैं इसलिए स्वाभाविक रूप से स्त्री इनके मोह में पड़ जाती है।

(घ) माँ ने उन्हें बंधन इसलिए माना है क्योंकि वस्त्र और आभूषण के लोभ में आकर वह इनके प्रति मोह ग्रस्त हो जाती है और अपने अस्तित्व को भूला बैठती है ।

(ङ) माँ ने बेटी को ये सब सीखें इसलिए दी हैं, ताकि वह अपनी पुत्री को विवाहोपरांत होने वाले संघर्षों का सामना करने में सक्षम बना पाए। वह अपनी बेटी को कमज़ोर नहीं बनाना चाहती। वह उसे जीवन की वास्तविकताओं का सामना करने के लिए साहसी बनाना चाहती है।


प्रश्न 2. निम्नलिखित काव्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना ।

(क) माँ बिटिया को किस अवसर पर यह सीख दे रही है और क्यों?

(ख) बिटिया को चेहरे पर रीझने के लिए मना क्यों किया जा रहा है?

(ग) आग के विषय में माँ के कथन का क्या अभिप्राय है?

(घ) माँ ने आभूषणों को स्त्री जीवन के बंधन क्यों कहा है?

(ङ) 'लड़की जैसी दिखाई मत देना' कथन का आशय समझाइए ।

उत्तर

(क) माँ अपनी बटिया को उसके विवाहोपरांत विदा करते समय यह सीख दे रही है क्योंकि वह अपनी पुत्री को आने वाली ज़िम्मेदारियों से अवगत कराते हुए उसे मानसिक रूप से तैयार कर रही है।

(ख) बिटिया को चेहरे पर रीझने के लिए इसलिए मना किया जा रहा क्योंकि सौंदर्य पर रीझना भ्रम है। माँ बेटी को बताना चाहती है कि कोई भी तुम्हारे सौंदर्य के कारण तुम्हारे नखरे नहीं उठाएगा। तुम्हें जीवन की परिस्थितियों का सामना करना ही पड़ेगा ।

(ग) माँ 'आग' के कथन के माध्यम से समझाना चाहती है कि ससुराल वाले कई बार लड़की को आग में जला डालते हैं। तुम सावधान रहना और कमज़ोर मत पड़ना। हर परिस्थिति का डटकर सामना करना। आग सिर्फ़ रोटियाँ सेंकने के लिए है। तुम इससे बचकर रहना।

(घ) माँ ने आभूषणों को स्त्री जीवन के बंधन इसलिए कहा है क्योंकि स्त्रियाँ आभूषणों की चमक-दमक से प्रभावित होकर अपना अस्तित्व ही भूल जाती हैं और इन्हें पाने की लालसा में अत्याचार सहती रहती हैं।

(ङ) 'लड़की जैसी दिखाई मत देना' कथन का आशय है कि माँ अपनी पुत्री को अबला व कमज़ोर न बनने की सीख दे रही है। लड़की के समान गुण रखने के बावजूद व्यवहार में कमज़ोरी नहीं दिखाने की सीख माँ देती है।


प्रश्न 3. निम्नलिखित काव्य-पंक्तियाँ पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की |

(क) कवि क्यों कहता है कि लड़की सयानी नहीं थी ?

(ख) 'दुख बाँचना नहीं आता था' से क्या अभिप्राय है?

(ग) धुँधले प्रकाश की पाठिका' से कवि क्या कहना चाहता है ?

उत्तर

(क) लड़की भोली और सरल थी। उसे दुनिया छल-प्रपंचों की जानकारी नहीं थी। माँ की स्नेहपूर्ण छत्र-छाया में रहकर, परिवार से हटकर वह लोगों के कटु व्यवहार से अपरिचित थी। दुनियादारी का उसे बोध न था इसलिए कवि ने कहा कि लड़की अभी सयानी नहीं थी।

(ख) 'दुःख बाँचना नहीं आता था' का अभिप्राय यह है कि लड़की जीवन की आनेवाली ज़िम्मेदारियों और कष्टों से भली-भाँति परिचित नहीं थी । स्नेहपूर्ण भावों को तो वह समझती थी, परंतु छल-छद्मों से अपरिचित थी। माँ के हृदय में यह भय था कि उसकी बेटी ससुराल में विकट स्थितियों का समाना कैसे कर पाएगी।

(ग) धुँधले प्रकाश की पाठिका से कवि यह कहना चाहता है कि लड़की को उसके आने वाले वैवाहिक जीवन का एक धुँधला-सा अहसास था, परंतु वह उस जीवन की सभी बातों से अपरिचित थी । उसे केवल आने वाले सुख का अहसास था । वास्तविकता से वह अनभिज्ञ थी। ससुराल उसके लिए सुखमय कल्पना के समान थी । उसका अपरिपक्व व्यक्तित्व किसी के भी मनोभावों को समझने में सक्षम नहीं था।


प्रश्न 4. निम्नलिखित काव्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

माँ ने कहा- पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना ।

(क) 'पानी में झाँककर अपने चेहरे पर मत रीझना' कथन का क्या अभिप्राय है? माँ बेटी को चेहरे पर रीझने के लिए मना क्यों कर रही है?

(ख) 'आग... जलने के लिए नहीं' - कथन समाज की किस समस्या की ओर संकेत करता है? वस्त्र और आभूषणों को नारी जीवन का बंधन क्यों कहा गया है?

(ग) 'लड़की होना पर लड़की जैसी दिखाई न देना' - कथन का आशय स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर

(क) 'पानी में झाँककर अपने चेहरे पर मत रीझना' का अभिप्राय है कि पानी में दिखाई देने वाली छाया स्थिर नहीं होती, उसी प्रकार सुंदरता की प्रशंसा भी क्षणिक है। उस पर प्रसन्न होने की आवश्यकता नहीं है। सुंदरता भी पानी में बने अक्स की भाँति अस्थिर है । गुण रूप से अधिक मूल्यवान है।

(ख) इस कथन के द्वारा समाज की इस विडंबना को दर्शाया गया है कि दहेज के कारण प्रताड़ित होने पर कई कन्याएँ स्वयं को आग की भेंट कर देती हैं अथवा उनके ससुराल वाले ही उन्हें जला डालते हैं। वस्त्राभूषण नारी जीवन का बंधन तब बन जाते हैं जब उनके कारण हम अपनी आज़ादी दूसरों के हाथों सौंप देते हैं।

(ग) लड़की होना प्रायः कमज़ोरी, सरलता, नम्रता, सुंदरता के मापदंड पर खरा उतरना है। परंतु माँ कहती है भले ही कितना लावण्य, भोलापन और सरलता हो, परंतु शोषण को सहने के लिए लड़की बनी रहने की आवश्यकता नहीं। अपने अधिकारों के लिए आदर्शों की भेंट मत चढ़ना, वरन उनका प्रतिकार करना।


लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. 'बेटी, अभी सयानी नहीं थी' में माँ की चिंता क्या है? 'कन्यादान' कविता के आधार पर लिखिए ।

उत्तर

ऋतुराज जी द्वारा रचित कविता 'कन्यादान' में माँ को यह लगता है कि बेटी अभी सयानी नहीं है अर्थात अभी उसे दुनियादारी की समझ नहीं है। वह अभी तक अपनी मधुर कल्पनाओं में खोई हुई है। वह दुख के बारे में अधिक नहीं जानती है। माँ को अपनी पुत्री शारीरिक व मानसिक रूप से अभी छोटी व भोली-भाती लगती है। माँ को लगता है कि बेटी अभी आने वाली सभी ज़िम्मेदारियों को सँभालने की दृष्टि से सयानी नहीं है ।


प्रश्न 2. 'कन्यादान' कविता में माँ ने बेटी को किस प्रकार सावधान किया? अपने शब्दों में लिखिए ।

उत्तर

'कन्यादान' कविता में माँ ने बेटी को अनेक सीख देकर सावधान किया है। माँ ने उसे यह समझाया है। कि वह कभी अपनी सुंदरता और उसकी प्रशंसा पर न रीझे क्योंकि यही मुग्धता उसके बंधन का कारण बन जाएगी और अपनी सरलता और भोलेपन को इस प्रकार प्रकट न करे कि लोग उसका ग़लत फ़ायदा उठा लें तथा वह घरेलू कार्य तो करे, किंतु किसी के अत्याचारों को सहन न करे। माँ उसे यह कहकर भी सावधान करती है कि नारी की सुंदरता, उसकी प्रशंसा, सुंदर वस्त्र एवं गहने आदि सब नारी को परतंत्र रखने के ढंग हैं, एक नारी को केवल इन्हीं में खोकर अपना व्यक्तित्व नहीं खो देना चाहिए।


प्रश्न 3. 'कन्यादान' कविता में किसके दुख की बात की गई है और क्यों ?

उत्तर

कवि 'ऋतुराज' जी द्वारा रचित कविता 'कन्यादान' में उस माँ के दुख की बात की गई है, जो अपने प्राणों से प्रिय पुत्री का 'कन्यादान' अर्थात विवाह करने जा रही है, अपने से दूर करने जा रही है। बेटी माँ की पूँजी होती है, उसकी सुख-दुख की साथी होती है। उसके चले जाने के बाद माँ एकदम अकेली हो जाती है। इस प्रकार कन्यादान कविता के माध्यम से कवि ने एक दुखी माँ की सीख और उसके दुख को व्यक्त किया है।


प्रश्न 4. 'कन्या' के साथ 'दान' के औचित्य पर अपने विचार लिखिए ।

उत्तर

‘कन्या' के साथ ‘दान' शब्द लगाना मेरी दृष्टि से उचित नहीं है। दान तो वस्तुओं या श्रम का दिया जाता । कन्या तो एक जीती-जागती घर की महत्त्वपूर्ण सदस्या होती है। उसका पृथक व स्वतंत्र व्यक्तित्व होता है। उसके जीवन का दान देना उचित नहीं है । वह स्वयं ही अपने जीवन की कर्ता-धर्ता होनी चाहिए । आज के जीवन में वह स्वयं में समर्थ है। अतः उसके जीवन के फ़ैसले उसी पर निर्भर होने चाहिए।


प्रश्न 5. 'कन्यादान' कविता में किसे दुख बाँचना नहीं आता था और क्यों?

उत्तर

‘कन्यादान' कविता में दुल्हन के रूप में मायके से ससुराल के लिए विदा हो रही बेटी को दुख बाँचना नहीं आता था क्योंकि जीवन का उसे इतना अनुभव नहीं था । उसने विवाह को लेकर सुखद कल्पनाएँ तो कर ली थीं, किंतु वह उन कठिन परिस्थितियों से अनभिज्ञ थी, जो उसे ससुराल में मिल सकती थीं। इस प्रकार विवाह के सुखमय जीवन की सुखद कल्पना से अभिभूत विदा होती वह बेटी ससुराल में मिलने वाली कठोर सच्चाइयों, अनेक ज़िम्मेदारियों एवं चुनौतियों से बिल्कुल अनजान थी ।


प्रश्न 6. माँ की सीख में समाज की कौन-सी कुरीतियों की ओर संकेत किया गया है?

उत्तर

माँ की सीख में समाज की अनेक कुरीतियों की ओर संकेत किया गया है-

  1. समाज में बेटी को माँ द्वारा समझाया जाना कि 'आग रोटियाँ सेंकने के लिए है, जलने के लिए नहीं' सिद्ध करता है कि ससुराल की प्रताड़ना से त्रस्त होकर युवतियों को आत्महत्या करने के लिए विवश होना पड़ता है।
  2. विवाह के उपरांत ससुराल पक्ष के लोग सरलता व विनम्रता को दुल्हन की कमज़ोरी मानते हुए उसका गलत फायदा उठाते हैं।


प्रश्न 7. लड़की अभी सयानी नहीं थी, कवि ने इस संदर्भ में क्या-क्या कहा है?

उत्तर

'लड़की अभी सयानी नहीं थी' के संदर्भ में कवि ने कहा है कि माँ जिस लड़की का कन्यादान करने जा रही थी वह लड़की अभी शारीरिक व मानसिक रूप से विवाह के योग्य नहीं हुई थी। उसे अभी दुनियादारी की समझ नहीं थी । उसने अभी अपने जीवन में केवल सुखों को भोगा था । विवाहोपरांत आने वाली ज़िम्मेदारियों, संघर्षों व नई भूमिकाओं से वह अनभिज्ञ थी। अभी तो उसके सामने केवल काल्पनिक सुखों का धुंधला प्रकाश था। वह जीवन में आने वाले दुखों को समझने के लिए सयानी नहीं थी।


प्रश्न 8. ‘कन्यादान' कविता में माँ ने लड़की को अपने चेहरे पर रीझने और वस्त्र तथा आभूषणों के प्रति लगाव को मना क्यों किया है?

उत्तर

ऋतुराज जी द्वारा रचित कविता 'कन्यादान' में माँ अपनी पुत्री को अपने चेहरे पर रीझने व वस्त्र तथा आभूषणों के प्रति लगाव रखने से मना करती है क्योंकि वस्त्र व आभूषण स्त्री के लिए माया व मोह के बंधन है, जिनके लोभ में आकर वह अपना अस्तित्व भूल जाती है। अपने सौंदर्य पर रीझने को भी माँ मना करती है । लड़की यह भ्रम पाल लेती है कि उसका रूप व सौंदर्य सभी को अपने वश में कर सकता है, जबकि वास्तविकता इसके विपरीत भी हो सकती है। जीवन सौंदर्य व वस्त्र आभूषणों से न चलकर समझदारी, विवेक, कर्म और दुनियादारी से चलता है।


प्रश्न 9. 'कन्यादान' कविता में लड़की की जो छवि प्रस्तुत की गई है। उसे अपने शब्दों में लिखिए ।

उत्तर

ऋतुराज जी द्वारा रचित कविता 'कन्यादान' में लड़की एक सरल हृदया व भोली-भाली है। उसे जिंदगी के यथार्थ का आभास नहीं है । वह अभी अनुभवहीन है। उसने अभी जिंदगी में केवल सुख-ही-सुख भोगे हैं। दुखों से उसका सामना नहीं हुआ है। वह आने वाले सुखों की कल्पना में खोए रहती है। वह सोचती है कि उसे विवाहोपरांत पति का प्यार, वस्त्र, आभूषण और सभी सुखों की प्राप्ति होगी ।


प्रश्न 10. वस्त्र और आभूषण स्त्री-जीवन के बन्धन क्यों कहे गए हैं?

उत्तर

'कन्यादान' कविता में वस्त्र और आभूषणों को स्त्री के लिए बंधन इसलिए कहा है क्योंकि इनके मोह में बँधकर स्त्री अपने अस्तित्व को भूल जाती है। इनकी चमक-दमक को पाने के लिए अपने शोषण को भी सह लेती हैं। ये आभूषण बेड़ियाँ बनकर उसे परिवार के दायित्वों में कैद कर लेते हैं। अपने मोहपाश में जकड़कर उसकी स्वतंत्रता उससे छीन लेते हैं। ये वस्त्र आभूषणों के बंधन नारी को उसके परिवार और जिम्मेदारियों में इस कदर बाँध लेते हैं कि वह स्वयं के सुख त्याग कर अपने को स्वाहा कर देती है।


प्रश्न 11. 'कन्यादान' कविता में बेटी को 'अंतिम पूँजी' क्यों कहा गया है?

उत्तर

कविता 'कन्यादान' में बेटी को 'अंतिम पूँजी' इसलिए कहा है क्योंकि माँ उसको ससुराल भेजने के बाद अकेली हो जाएगी। बेटी ही अब तक उसके सुख-दुख की साथी थी, उसके जीवन भर की कमाई थी। उसे उसने बड़े नाज़ों से पाल-पोस कर सभी सुख-दुख सहकर बड़ा किया था और अब अपनी जीवन भर की पूँजी वह दूसरों को सौंपने जा रही थी। उसे विदा करने के बाद वह मानसिक रूप से अकेली होने जा रही थी।


प्रश्न 12. 'कन्यादान' कविता में वस्त्र और आभूषणों को शाब्दिक भ्रम क्यों कहा गया है ?

उत्तर

कवि ऋतुराज द्वारा रचित 'कन्यादान' कविता की इस पंक्ति में माँ अपनी पुत्री का 'कन्यादान' करते समय उसे सीख देती हुई कहती है कि वस्त्र और आभूषणों के शाब्दिक भ्रम में मत फँसना । शाब्दिक भ्रम शब्दों का ऐसा जाल होता है, जहाँ अर्थ उलझ कर रह जाता है। ऐसे ही स्त्री वस्त्र आभूषण पहनकर लोभ में आ जाती है। वास्तव में, ये वस्त्र आभूषण उसके लिए बंधन हैं । इन्हीं के माया जाल में फँस कर वह अपना अस्तित्व तक भुला बैठती है और अपने लक्ष्य से भटक जाती है।


प्रश्न 13. लड़की को दान में देते समय उसकी माँ को सर्वाधिक कष्ट क्यों होता है? वह उसको अतिंम पूँजी क्यों लगती है?

उत्तर

कविता 'कन्यादान' में लड़की को दान में देते समय माँ को सर्वाधिक कष्ट इसलिए होता है क्योंकि उसकी पुत्री जो अभी सयानी भी नहीं हुई, जिसे अभी दुनियादारी की कोई समझ नहीं, जो अभी अपनी कल्पनाओं में ही खोई हुई है, जो उसकी अंतिम पूँजी है, उसे 'दान' करना पड़ रहा है। अपने से दूर करना पड़ रहा है । पराए घर भेजना पड़ रहा है। पुत्री माँ को अपनी अंतिम पूँजी लगती है क्योंकि उसके घर से विदा हो जाने के बाद माँ अकेली हो जाएगी। अभी तक उसकी पुत्री ही उसके दुख-सुख की सहेली थी इसलिए बेटी माँ को बेहद प्यारी थी। वही उसके जीवन भर की पूँजी थी जिसे उसने अब तक नाज़ों से पालकर और सँभालकर रखा था और अब दूसरे के हाथ सौंपकर वह खाली हो जाने वाली थी।


प्रश्न 14. आपकी दृष्टि में कन्या के साथ 'दान' की बात करना कहाँ तक उचित है? क्यों ?

उत्तर

हमारी दृष्टि में कन्या के साथ 'दान' की बात करना बिल्कुल उचित नहीं है क्योंकि कन्या कोई 'वस्तु’ नहीं है, जिसका दान कर दिया जाए। वह एक जीता-जागता व्यक्तित्व है, जिसकी अपनी स्वतंत्र सोच है। दान में दी हुई वस्तु पर तो वस्तु वाले का अधिकार होता है पर एक जीवित प्राणी पर किसी दूसरे का अधिकार होना परतंत्रता की निशानी है । अपनी ही कन्या जिसे लाड़-प्यार से बड़ा किया जाता है उसके साथ 'दान' शब्द लगाना उचित नहीं है।


प्रश्न 15. 'कन्यादान' कविता में माँ ने बेटी को ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी दिखाई मत देना ।

उत्तर

ऋतुराज जी की कविता 'कन्यादान' में माँ बेटी को यह सीख देती है कि लड़की होना पर लड़की जैसी दिखाई न देना अर्थात वह अपनी बेटी को अबला या कमज़ोर न बनने की सीख दे रही है। यह समाज लड़की को दुर्बल मानकर उसका शोषण करने लगता है । उसे सजावट की वस्तु समझ लिया जाता है। अनेक पारिवारिक व सामाजिक रिश्तों की चक्की में कन्या का जीवन पिस कर रह जाता है। अतः माँ उसे सशक्त व मज़बूत बनाना चाहती है । वह चाहती है कि उसकी कन्या अपने अधिकारों के प्रति सचेत रहकर हर ज़िम्मेदारी का सामना करने के लिए सबल बने ।


प्रश्न 16. 'कन्यादान' कविता में माँ के दुख को कवि ने प्रामाणिक क्यों कहा है?

उत्तर

कविता 'कन्यादान' में कवि ने माँ के दुख को प्रामाणिक इसलिए कहा है क्योंकि अभी उसकी बेटी बहुत समझदार और ज़िम्मेदारियाँ सँभालने के काबिल भी नहीं हुई है और उसे उसका कन्यादान करना पड़ रहा है। माँ का दुख स्वाभाविक है क्योंकि उसकी बेटी को पराए घर जाकर जीवन के यथार्थ का सामना करना पड़ेगा इसलिए वह उसे अनेक प्रकार की सीख देती है, ताकि वह जीवन में आने वाली परिस्थितियों का डटकर सामना कर सके। अपनी पुत्री को अपने से दूर करना, जिसे लाड़-प्यार से पाला गया हो उसे जीवन की कड़वी सच्चाइयों का सामना करने के लिए विदा करना माँ का प्रामाणिक दुख है।


प्रश्न 17. 'उसे सुख का आभास तो होता था लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था', 'कन्यादान' कविता के आधार पर भावार्थ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

‘उसे सुख का आभास तो होता था लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था।' इस पंक्ति में बताया गया है कि विवाह के समय बेटी को घर-गृहस्थी के सुखमय पक्ष का आभास तो था, किंतु उसके कठोर पक्ष का ज्ञान नहीं था। वह विवाह के सुखमय जीवन की सुखद कल्पना तो कर सकती थी, किंतु वहाँ पर मिलने वाली कठोर सच्चाइयों, ससुराल में मिलने वाली ज़िम्मेदारियों एवं चुनौतियों से अनभिज्ञ थी।


प्रश्न 18. 'कन्यादान' कविता माँ की पीड़ा को कैसे व्यक्त करती है?

उत्तर

'ऋतुराज जी' द्वारा रचित कविता 'कन्यादान', है। माँ को चिंता है कि अभी उसकी बेटी सयानी नहीं हुई है और उसे पराए घर जाना है। माँ की पीड़ा है कि उसकी पुत्री कहीं वस्त्र आभूषण के जाल में फँसकर अपने अस्तित्व को न भुला बैठे। माँ की पीड़ा यह भी है कि जो आग रोटियाँ सेंकने के लिए है, वह कहीं उसकी कन्या के जीवन को भस्म न कर बैठे। 'माँ' की पीड़ा को प्रत्येक पंक्ति में व्यक्त करती प्रतीत होती। माँ को अपनी अंतिम पूँजी जिसे उसने अब तक सँभाला था जो उसके सुख-दुख की साथी थी, उसे अपने से दूर करना पड़ रहा था। अतः माँ कन्यादान के वक़्त अनेक सीखें देती हुई अपनी कन्या को जीवन के यथार्थ का सामना करने के लिए तैयार करती है।

Previous Post Next Post