Extra Questions for Class 10 क्षितिज Chapter 12 लखनवी अंदाज़ - यशपाल Hindi
Chapter 12 लखनवी अंदाज़ Kshitij Extra Questions for Class 10 Hindi
प्रश्न 1. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थककर लेट गए। हमें तसलीम में सिर खम कर लेना पड़ा- यह है खानदानी तहज़ीब, नफ़ासत और नज़ाकत ! हम गौर कर रहे थे, खीरा इस्तेमाल करने के इस तरीके को खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से संतुष्ट होने का सूक्ष्म, नफ़ीस या एब्स्ट्रैक्ट तरीका ज़रूर कहा जा सकता है, परंतु क्या ऐसे तरीके से उदर की तृप्ति भी हो सकती है?
नवाब साहब की ओर से भरे पेट के ऊँचे डकार का शब्द सुनाई दिया और नवाब साहब ने हमारी ओर देखकर कह दिया, 'खीरा लज़ीज़ होता है, लेकिन होता है सकील, नामुराद मेदे पर बोझ डाल देता है ।' ज्ञान चक्षु खुल गये ! पहचाना - ये हैं नयी कहानी के लेखक !
(क) नवाब साहब थककर क्यों लेट गए?
(ख) लेखक खीरा इस्तेमाल करने के कौन से तरीके पर गौर कर रहे थे?
(ग) लेखक के ज्ञान - चक्षु किस प्रकार खुल गए ?
उत्तर
(क) नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थक कर लेट गए थे। उन्होंने बहुत यत्न से खीरे को धोया, पौंछा, उसकी फाँकें बनाकर नमक मिर्च छिड़का और उसे खाने योग्य बनाया। इस संपूर्ण प्रक्रिया में वह थक गए थे।
(ख) लेखक नवाब साहब द्वारा खीरा इस्तेमाल करने के विचित्र तरीके पर गौर कर रहे थे । नवाब साहब ने अत्यंत परिश्रम और यत्न से काटे गए खीरे की फाँकों पर नमक मिर्च छिड़का और फाँकों को होठों तक ले जाकर सूँघते हुए पेट भरने या संतुष्टि का अभिनय किया और फिर खीरे की फाँकों
को खिड़की से बाहर फेंक दिया। वे इस बात पर गौर कर रहे थे कि क्या किसी खाने की वस्तु को केवल सूँघकर फेंक देने से उसका स्वाद या आनंद लिया जा सकता है? उनकी नज़र में स्वाद का बोध कराने का काम जिह्वा का है खाने से ही हो सकता है।
(ग) जब लेखक ने नवाब साहब द्वारा खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से संतुष्ट होते देखा तथा पेट भरने व तृप्ति का अनुभव करने का आचरण करते देखा, तो उनके ज्ञान चक्षु खुल गए। उन्हें यह नई बात समझ आई कि अगर खीरे को खाए बिना, सुगंध मात्र से पेट भर सकता है तो बिना विचार, घटना और पात्रों के लेखक की इच्छा मात्र से कहानी भी लिखी जा सकती है।
प्रश्न 1. 'लखनवी अंदाज़' पाठ में खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है। किसी प्रिय खाद्य पदार्थ का रसास्वादन करने के लिए आप जो तैयारी करते हैं, उसका चित्र अपने शब्दों में प्रस्तुत कीजिए ।
उत्तर
किसी भी प्रिय खाद्य पदार्थ का रसास्वादन करने से पहले उसे अच्छी तरह से धोया जाता है और साफ़ कपड़े से पोंछा जाता है। साफ़-सुथरी प्लेट में काटकर उसकी फाँकें रखते हैं तथा आवश्यकतानुसार उस पर नीबू निचोड़ कर काला नमक लगाते हैं। नमकीन रायता, नारियल व पुदीने की चटनी को अलग-अलग कटोरी में रखते हैं। अनार के दाने, सफ़ेद चने व अदरक खाद्य पदार्थ को सजाते हैं। उसके पश्चात् उसके स्वाद का आनंद लेते हैं।
प्रश्न 2. नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, अंततः सूंघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा ?
उत्तर
नवाब सदा से एक विशेष प्रकार की नफ़ासत और नज़ाकत के लिए मशहूर हैं। इसलिए वे सामान्य समाज के तरीकों को न अपनाकर नए-नए तरीके खोजते हैं, जिनसे उनका नवाबपन प्रकट हो सके। पाठ नवाब साहब यत्नपूर्वक खीरा खाने की तैयारी करते हैं । लेखक को अपने सामने देखकर उन्हें अपनी नवाबी दिखाने का सुअवसर मिल गया था। वह खीरा काटकर उस पर नमक-मिर्च लगाते हैं, किंतु बिना खाए ही केवल सूँघकर रसास्वादन कर खिड़की से बाहर फेंक देते हैं और फिर इस प्रकार लेट जाते हैं, जैसे- इस सारी प्रक्रिया में बहुत थक गए हों, वास्तव में ऐसा करके वह लेखक के मन पर अपनी नवाबी की धाक जमाना चाहते थे।
प्रश्न 3. 'लखनवी अंदाज ' पाठ में नवाब साहब की एक सनक का वर्णन किया गया है। क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है? यदि हाँ तो ऐसी सनकों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर
'लखनवी अंदाज ' पाठ में खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। सनक का सकारात्मक रूप भी हो सकता है। सनक को पूर्ण आत्मविश्वास के साथ किसी काम को करने की लगन या धुन के साथ जोड़ा जा सकता है। इतिहास में ऐसी सनकों के अनगिनत उदाहरण मिलते हैं, जैसे - स्वामी विवेकानंद को ज्ञान प्राप्त करने की सनक, महात्मा बुद्ध को जीवन का सत्य खोजने की सनक, चाणक्य को नंद वंश का समूल विनाश करने की सनक, भगतसिंह को देश पर मर मिटने की सनक, महात्मा गाँधी को देश आज़ाद कराने की सनक आदि। ये ऐसे उदाहरण हैं जो उसके सकारात्मक पक्ष को पुष्ट करते हैं।
प्रश्न 4. 'लखनवी अंदाज़' पाठ के नवाब साहब के किन हावभावों से लगता है कि वे बातचीत के लिए उत्सुक नहीं हैं?
उत्तर
लेखक ने जब गाड़ी के सेकंड क्लास के डिब्बे में प्रवेश किया, तो नवाब साहब पालथी मारकर एक बर्थ पर बैठे हुए थे। लेखक का उस डिब्बे में सहसा प्रवेश करना उन्हें अच्छा नहीं लगा । उनके चेहरे पर असंतोष का भाव झलक रहा था। वे अनमने भाव से खिड़की के बाहर झाँकते रहे और उन्हें न देखने का नाटकोय प्रदर्शन करते रहे। उन्होंने किसी भी तरह से लेखक के प्रति कोई रुचि नहीं दिखाई। ऐसे हाव-भावों को देखकर लगता था कि वे लेखक से बातचीत करने के उत्सुक नहीं हैं।
प्रश्न 5. लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ है कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं?
उत्तर
लेखक ने जब सेकंड क्लास के डिब्बे में प्रवेश किया तब उन्होंने एक बर्थ पर नवाबी वेशभूषा पहने हुए एक व्यक्ति को पालथी मारे बैठे देखा । उन्हें डिब्बे में प्रवेश करते देख नवाब साहब की आँखों में असंतोष का भाव दिखाई दिया। ऐसा लगा जैसे लेखक के वहाँ आ जाने से उनके एकांत में बाधा उपस्थित हो गई है। नवाब साहब ने लेखक से कोई बात नहीं की अपितु कुछ देर तक खिड़की के बाहर देखने का नाटक करते रहे। नवाब साहब के हाव-भावों से लेखक को ऐसा महसूस हुआ कि वे उनसे बात करने के लिए कतई उत्सुक नहीं हैं। वे असुविधा एवं संकोच का अनुभाव कर रहे थे।
प्रश्न 6. 'लखनवी अंदाज़' पाठ के नवाब साहब ने अकेले सफ़र काटने के लिए खीरा ख़रीदा था। आप अकेले सफर का वक्त कैसे काटते हैं?
उत्तर
'लखनवी अंदाज' के पाठ के नवाब साहब ने अकेले सफ़र काटने के लिए खीरा ख़रीदा था। मैं अकेले सफ़र काटने के लिए खाद्य पदार्थ अपने घर से लेकर आता हूँ और भूख लगने पर उनका सेवन करता हूँ। इसके अतिरिक्त किसी प्रिय लेखक की पुस्तक पढ़ता हूँ तथा मनपंसद संगीत भी सुनता हूँ। मोबाइल या लेपटॉप पर अपनी मनपसंद फ़िल्म भी देखता हूँ।
प्रश्न 7. नवाब साहब का कैसा भाव-परिवर्तन लेखक को अच्छा नहीं लगा और क्यों? 'लखनवी अंदाज़' पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर
लेखक जब सेंकड क्लास के डिब्बे में चढ़े, तो उन्होंने एक बर्थ पर नवाबी अंदाज़ में एक सफेदपोश सज्जन को पालथी मारे बैठे देखा। उनके आगे दो चिकने खीरे रखे हुए थे। लेखक का सहसा डिब्बे में प्रवेश कर जाना नवाब साहब को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने लेखक के प्रति कोई रुचि नहीं दिखाई। लेखक ने भी उनका परिचय प्राप्त करने का प्रयास नहीं किया। क्योंकि उन्हें यह लगा कि नवाब साहब शायद अकेले ही सफ़र करना चाहते थे और न ही यह चाहते थे कि कोई उन्हें सेंकड क्लास में सफ़र करते देखे। ऐसी स्थिति में उन्हें खीरा खाने में भी संकोच का अनुभव हो रहा होगा। अचानक नवाब साहब ने लेखक को खीरे का शौक फरमाने को कहा । लेखक को नवाब साहब का यह सहसा भाव परिवर्तन अच्छा नहीं लगा क्योंकि वे शायद अपना नवाबी सभ्य व्यवहार दर्शाना चाहते थे। जबकि वास्तविकता में उनका यह व्यवहार नवाबी संस्कृति का दिखावटीपन ओढ़े हुए था।
प्रश्न 8. नवाब साहब द्वारा सेकण्ड क्लास में यात्रा करने के क्या-क्या कारण हो सकते हैं? अपने अनुमान से लिखिए।
उत्तर
नवाब साहब द्वारा सेकण्ड क्लास में यात्रा करने के कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हो सकते हैं:-
- संभवतः नवाब साहब अब केवल कहने एवं दिखाने के लिए नवाब हों । यथार्थ में उनकी आर्थिक स्थिति वास्तविक नवाबों जैसी न रही हो । आर्थिक स्थिति अनुकूल नहीं रहने के बावजूद अपनी झूठी शान में या दिखावा करने के लिए उन्हें सेकण्ड क्लास में यात्रा करनी पड़ रही हो ।
- संभवतः वे भीड़ से राहत पाने के लिए सच में मानसिक शांति एवं एकांत चाहते हों। चूँकि फर्स्ट क्लास अधिक महँगा पड़ता होगा, इसलिए वे सेकण्ड क्लास में यात्रा कर रहे हों।
- लोगों की भीड़ से बचना और अधिक महँगा टिकट न खरीद पाना- इन दोनों के बीच का मार्ग है, सेकण्ड क्लास में यात्रा करना । संभवतः यही कारण रहा हो।
प्रश्न 9. 'लखनवी अंदाज ' पाठ में नवाब साहब के माध्यम से नवाबी परंपरा पर व्यंग्य है। स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर
'लखनवी अंदाज ' पाठ में लेखक ने नवाब साहब के माध्यम से नवाबी परंपरा की झूठी आन-बान पर व्यंग्य किया है जो वास्तविकता से बेखबर एक बनावटी जीवन शैली के आदी है। आज के समय में भी नवाब साहब के रूप में ऐसी परजीवी संस्कृति को देखा जा सकता है। नवाब साहब का खीरे को मात्र सूँघकर पेट भर जाना, उसे बिना खाए खिड़की से फेंक देना उनकी बनावटी रईसी को दर्शाता है। उनका सेकंड क्लास में यात्रा करना इस बात को प्रमाणित करता है कि नवाब साहब की नवाबी ठसक तो नहीं रही, परंतु फिर भी वे अपने हाव-भाव और क्रिया-कलापों से झूठी शान दिखाते हैं, जिसका कोई महत्त्व नहीं है।
प्रश्न 10. “बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है।” यशपाल जी के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर
हम लेखक के इस विचार से बिलकुल भी सहमत नहीं है कि बिना विचार, घटना और पात्रों के कहानी लिखी जा सकती है। विचार, घटना तथा पात्र किसी भी कहानी के लिए उसका प्राण तत्व होते हैं। उस कहानी की कथावस्तु और कोई भी कथावस्तु निश्चित रूप से विचार अथवा घटना पर आधारित होती है, जिसे पात्रों के माध्यम से अभिव्यक्त किया जा सकता है। ये पात्र व घटनाएँ काल्पानिक भी हो सकती हैं और वास्तविक भी, किंतु इनके अभाव में कहानी के स्वरूप की कल्पना करना असंभव है । लेखक ने भी यह बात व्यंग्य रूप में ही कही है क्योंकि ऐसा नहीं हो सकता कि बिना विचार, घटना और पात्रों के कहानी लिखी जा सके।
प्रश्न 11. नवाब साहब द्वारा खीरे की तैयारी करने का शब्द चित्र प्रस्तुत कीजिए ।
उत्तर
नवाब साहब बर्थ पर बहुत ही सुविधा से पालथी मार कर बैठे थे। उनके सामने दो ताजे-चिकने खीरे तौलिए पर रखे थे। उन्होंने खीरों के नीचे रखे तौलिये को झाड़कर सामने बिछाया। सीट के नीचे से लोटा उठाकर दोनों खीरों को खिड़की से बाहर धोया और तौलिए से पोंछ लिया । जेब से चाकू निकाला। दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाला। फिर खीरों को बहुत एहतियात से छीलकर फाँकों को करीने से तौलिए पर सजाते गए। इसके पश्चात् नवाब साहब ने बहुत ही करीने से खीरे की फाँकों पर जीरा मिला नमक और लाल मिर्च की सुर्खी बुरक दी। इस प्रक्रिया में उनका मुख खीरे के रसास्वादन की कल्पना से प्लावित हो रहा था।
प्रश्न 12. 'लखनवी अंदाज ' पाठ के लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं?
उत्तर
लेखक ने जैसे ही डिब्बे में प्रवेश किया, उन्हें देखकर नवाब साहब के चेहरे पर असंतोष व नाराज़गी का भाव आ गया । लेखक ने महसूस किया कि नवाब साहब, उनके आने से प्रसन्न नहीं हैं, क्योंकि नवाब साहब ने लेखक के प्रति कोई रुचि नहीं दिखाई और न ही उनका परिचय लेने का प्रयास किया। नवाब साहब डिब्बे में अकेले ही यात्रा करना चाहते थे। कोई उनके एकांतवास में बाधा पहुँचाए, यह उन्हें कतई पसंद न था।
प्रश्न 13. ट्रेन के डिब्बे में नवाब साहब ने लेखक की संगति के लिए उत्साह क्यों नहीं दिखाया होगा ?
उत्तर
लेखक की गाड़ी छूट रही थी अतः वे सेकंड क्लास के एक छोटे डिब्बे को खाली समझकर, ज़रा दौड़कर उसमें चढ़ गए। सामने एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल के एक सफ़ेदपोश सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारकर बैठे हुए थे। लेखक के इस प्रकार सहसा आ जाने से उन सज्जन की आँखों में एकांत चिंतन में विघ्न का असंतोष दिखाई दिया। नवाब साहब ने लेखक की संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया। क्योंकि शायद उन्होंने अकेले यात्रा कर सकने के अनुमान में किफायत के विचार से सेकंड क्लास का टिकट खरीदा होगा और लेखक का डिब्बे में प्रवेश करने से उनकी एकांत स्थिति में विघ्न पड़ गया होगा। इतना ही नहीं उनके हाव-भावों से महसूस हो रहा था कि वे लेखक से बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं।
प्रश्न 14. नवाब साहब द्वारा खीरा खाने के तरीके से क्या उदरपूर्ति संभव है? यदि नहीं, तो इस तरीके को अपनाने में व्यक्ति को किस प्रवृत्ति का आभास होता है ?
उत्तर
नवाब साहब द्वारा खीरा खाने के तरीके से उदरपूर्ति नहीं है। नवाब साहब द्वारा खीरे का मानसिक या मनोवैज्ञानिक स्तर पर सेवन किया गया, शारीरिक या भौतिक स्तर पर नहीं। उदरपूर्ति तब तक संभव नहीं है, जब तक भौतिक खाद्य पदार्थ का यथार्थ में सेवन न किया जाए और वह व्यक्ति के उदर में न पहुँचे। नवाब साहब वास्तव में यह दिखलाना चाहते थे कि वे इतने बड़े खानदानी रईस हैं कि खीरे जैसी तुच्छ खाद्य वस्तु उनके उदर में जाने लायक नहीं है। वे तो केवल उसका सुगंध ही लेना चाहते हैं। इसके अलावा, वे अपनी रईसी का झूठा प्रदर्शन करके यह जताना चाहते थे कि उनका पेट तो केवल सुगंध मात्र से ही भर जाता है। उन्होंने तो लेखक के सामने डकार लेकर इस बात का प्रमाण देने की भी कोशिश की। इन सबसे उनके अहंकारी स्वभाव तथा प्रदर्शन या दिखावापन की भावना का पता चलता है।
प्रश्न 15. 'लखनवी अंदाज़' पाठ के नवाब साहब के विषय में पढ़कर आपके मन में कैसे व्यक्ति का चित्र उभरता है?
उत्तर
‘लखनवी अंदाज़' पाठ के नवाब साहब के विषय में पढ़कर एक ऐसे व्यक्ति का चित्र उभर कर सामने आता है जो पतनशील सांमती वर्ग का प्रतिनिधि है । वास्तविकता से बेखबर, बनावटी जीवन जीने का आदी है। नफ़ासत, नज़ाकत और प्रदर्शन - प्रिय है। नवाब साहब वास्तव में पतनशील सांमती वर्ग के जीते-जागते उदाहरण हैं। नवाब साहब खीरा खाने के लिए यत्नपूर्वक तैयारी करते हैं। खीरा काटकर उस पर नमक मिर्च लगाते हैं, किंतु बिना खाए ही केवल सूँघकर रसास्वादन कर खिड़की से बाहर फेंक देते है। वास्तव में इसके द्वारा वे अपनी नवाबी रईसी का गर्व अनुभव करते हैं और साथ ही इसका प्रदर्शन भी करते हैं। नवाब साहब का व्यक्तित्व एक ऐसे व्यक्ति का व्यक्तित्व है जो बनावटी जीवन शैली का अभ्यस्त है।
प्रश्न 16. 'लखनवी अंदाज़' पाठ में नवाब साहब के क्रियाकलाप से हमें उनकी जिस जीवन-शैली का परिचय प्राप्त होता है, क्या आज की बदलती परिस्थितियों में उसका निर्वाह सम्भव है? तर्कसहित उत्तर दीजिए।
उत्तर
'लखनवी अंदाज़' पाठ में नवाब साहब के क्रियाकलापों से हमें उनकी वास्तविकता से बेखबर बनावटी जीवन-शैली का परिचय प्राप्त होता है। नवाब साहब द्वारा अकेले में खीरा खाने का प्रबंध करना और लेखक के आ जाने पर उन खीरों को सूँघकर खिड़की से बाहर फेंककर अपनी नवाबी रईसी का गर्व अनुभव करना इसी दिखावे का प्रतीक है। आज की बदलती परिस्थितियों में ये दिखावटी और बनावटी जीवन शैली में जीवन का निर्वाह संभव नहीं क्योंकि बनावटी और दिखावटी जीवन प्रगति और प्रेरणा का आधार नहीं हो सकता। ऐसे में जीवन में न आनंद हैं, न वास्तविकता और न नहीं जीवंतता । सरल सहज गतिशील जीवन ही आज के समय की माँग है। आज के भौतिकतावादी जीवन में रिश्तों में मधुरता बनाए रखने के लिए इस आडंबरयुक्त जीवन शैली से उन्मुक्त होना अत्यंत आवश्यक है।
प्रश्न 17. 'लखनवी अंदाज़' पाठ के लेखक को नवाब साहब में खानदानी तहज़ीब, नफ़ासत और नज़ाकत के क्या सबूत दिखाई दिए ? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर
नवाब सदा से एक विशेष प्रकार की नफ़ासत, नज़ाकत और खानदानी तहज़ीब के लिए प्रसिद्ध हैं। 'लखनवी अंदाज' पाठ में भी नवाब साहब की खानदानी तहज़ीब, नफ़ासत और नज़ाकत का उदाहरण मिलता है। नवाब साहब की खानदानी तहज़ीब उस समय नज़र आती है जब वह बहुत ही अदब के साथ लेखक को संबोधित करते हुए कहते हैं- 'आदाब अर्ज़, जनाब, खीरे का शौक फ़रमाएँगे।' यहाँ उनकी विनम्रतापूर्वक आग्रह की प्रवृत्ति भी नज़र आती है। नवाब साहब खीरा खाने के लिए बहुत की यत्नपूर्वक तैयारी करते हैं। खीरों को धोना, पोंछना, एहतियात से छील कर फाँकें करीने से तौलिए पर सजाना उनकी नफ़ासत का बेहतरीन उदाहरण है। खीरों को बिना खाए सूँघकर रसास्वादन कर खिड़की से बाहर फेंकना और फिर लेट जाना- इस प्रक्रिया में उनकी नवाबी नज़ाकत दिखाई देती है।
प्रश्न 18. नवाब साहब ने गर्व से गुलाबी आँखों द्वारा लेखक की तरफ़ क्यों देखा ?
उत्तर
नवाब साहब ने खीरे की फाँकों पर नमक मिर्च छिड़का, सूँघा और फिर एक-एक कर सभी फाँकों को खिड़की से बाहर फेंक दिया। इसके पश्चात् गर्व से गुलाबी आँखों द्वारा लेखक की तरफ़ देखा। वह अपनी इस प्रक्रिया के द्वारा लेखक को अपना खानदानी रईसीपन दर्शाना चाहते थे । वे यह भी बताना चाहते थे कि नवाब लोग खीरे जैसी साधारण वस्तु को इसी तरह से खाते हैं। जबकि इन सबके मूल में उनका दिखावे से परिपूर्ण व्यवहार ही सामने आया।
प्रश्न 19. विचार, घटना और पात्रों के बिना भी क्या कहानी लिखी जा सकती है? यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर
कथावस्तु, पात्र, उद्देश्य, विचार, वातावरण, कथोपकथन, भाषाशैली के बिना कोई भी कहानी नहीं लिखी जा सकती क्योंकि ये सभी कहानी के अनिवार्य तत्व हैं। कहानी के पात्रों के कथोपकथन से ही कहानी आगे बढ़ती है। वातावरण के संपर्क से कथानक अधिक जीवंत व विश्वसनीय हो जाता है। कहानी द्वारा जीवन की व्याख्या होती है इसलिए उद्देश्य की पूर्ति आवश्यक है। कहानी की भाषा, पात्र और परिस्थितियों के अनुकूल होती है। अतः हम लेखक के विचार से सहमत नहीं हैं।
प्रश्न 20. बिना विचार, घटना और पात्रों के भी कहानी लिखी जा सकती है? 'लखनवी अंदाज़' पाठ के लेखक के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए ।
उत्तर
किसी भी कहानी को लिखने के लिए पाँच तत्वों की आवश्यकता पड़ती है- कहानी, पात्र, संवाद, वातावरण, उद्देश्य। पात्रों के संवाद से ही कहानी आगे बढ़ती है। पाठक के मन में सदैव उत्सुकता बनी रहती है कि कहानी में आगे क्या घटित होने वाला है। घटना, विचार के बिना तो कहानी लिखना संभव ही नहीं। अतः लेखक का यह मानना है कि बिना विचार, घटना, और पात्रों के भी कहानी लिखी जा सकती है। हम उनके विचार से कतई सहमत नहीं हैं ।