Extra Questions for Class 10 क्षितिज Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्य चमक - सर्वेश्वर दयाल सक्सेना Hindi
Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्य चमक Kshitij Extra Questions for Class 10 Hindi
प्रश्न 1. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
फ़ादर की देह पहले कब्र के ऊपर लिटाई गई। मसीही विधि से अंतिम संस्कार शुरू हुआ। रांची के फ़ादर पास्कल तोयना के द्वारा । उन्होंने हिंदी में मसीही विधि से प्रार्थना की फिर सेंट जेवियर्स के रेक्टर फ़ादर पास्कल ने उनके जीवन और कर्म पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा, 'फादर बुल्के धरती में जा रहे हैं। इस धरती से ऐसे रत्न और पैदा हों'। डॉ. सत्यप्रकाश ने भी अपनी श्रद्धांजलि में उनके अनुकरणीय जीवन को नमन किया। फिर देह कब्र में उतार दी गई। मैं नहीं जानता इस संन्यासी ने कभी सोचा था या नहीं कि उसकी मृत्यु पर कोई रोएगा। लेकिन उस क्षण रोने वालों की कमी नहीं थी। (नम आंखों को गिनना स्याही फैलाना है)
(क) फ़ादर का अंतिम संस्कार किस विधि करवाया गया और उसकी मुख्य बात क्या थी?
(ख) सेंट जेवियर्स के रेक्टर फ़ादर पास्कल ने फ़ादर बुल्के को किन शब्दों में श्रद्धांजलि अर्पित की?
(ग) फ़ादर की मृत्यु पर रोने बालों की कमी क्यों नहीं थी ।
उत्तर
(क) फ़ादर का अंतिम संस्कार मसीही विधि ' करवाया गया। उसकी मुख्य बात यह थी कि फ़ादर पास्कल तोयना ने हिंदी में मसीही विधि से प्रार्थना की।
(ख) सेंट जेवियर्स के रेक्टर फ़ादर पास्कल ने फ़ादर बुल्के को श्रदांजलि देते हुए कहा कि फ़ादर बुल्के धरती में जा रहे हैं। उनकी यह प्रार्थना हैं कि उनके जैसे रत्न और इस धरती पर जन्म लें।
(ग) फादर कामिल बुल्के की मृत्यु पर रोने वालों की कमी नहीं थी क्योंकि उनका सभी के प्रति मित्रवत् व्यवहार था, सभी के लिए दया व सहयोग की भावना थी व अपने हृदय में सभी के प्रति कल्याण की भावना रखते थे। उनका यह सहृदय एवं मानवीय करुणा से परिपूर्ण व्यक्तित्व अनगिनत लोगों के हृदय में उनके प्रति प्रेम की भावना को संजोए हुए था। यही कारण है कि जब उनकी मृत्यु हुई तो असंख्य लोगों की आँखों में आँसू थे।
प्रश्न 2. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
मैं नहीं जानता इस संन्यासी ने कभी सोचा था या नहीं कि उसकी मृत्यु पर कोई रोएगा। लेकिन उस क्षण रोने वालों की कमी नहीं थी। (नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है।) इस तरह हमारे बीच से वह चला गया जो हममें से सबसे अधिक छायादार, फल-फूल गंध से भरा और सबसे अलग, सबका होकर, सबसे ऊँचाई पर, मानवीय करुणा की दिव्य चमक में लहलहाता खड़ा था। जिसकी स्मृति हम सबके मन में जो उनके निकट थे किसी यज्ञ की पवित्र आग की आँच की तरह आजीवन बनी रहेगी। मैं उस पवित्र ज्योति की याद में श्रद्धानत हूँ।
(क) अर्थ स्पष्ट कीजिए- 'नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है'।
(ख) 'सबसे अधिक छायादार, फल-फूल गंध से भरा ... ' किसे और क्यों कहा गया है?
(ग) यज्ञ की आग की क्या विशेषता होती है? संन्यासी की स्मृति की तुलना इस आग की 'आँच' से क्यों की गई है?
उत्तर
(क) 'नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है' - पंक्ति के द्वारा लेखक यह स्पष्ट करना चाहता है कि फ़ादर बुल्के की जब मृत्यु हुई, उस समय वहाँ उपस्थित लोगों की संख्या इतनी अधिक थी जिसकी गिनती नहीं की जा सकती। उन लोगों में उनके परिचित, मित्र, साहित्यकार इतनी अधिक संख्या में थे कि उनकी गणना करके लिखना अत्यंत कठिन कार्य था। उनकी मृत्यु पर आँसू बहाने वालों की अपार भीड़ थी, जिसके बारे में लिखना व्यर्थ स्याही फैलाने जैसा है।
(ख) 'सबसे अधिक छायादार, फल-फूल गंध से भरा ...' फ़ादर बुल्के को कहा गया है। वह एक ऐसे विशाल वृक्ष की भाँति थे जो सर्वाधिक छायादार, फल-फूल एवं सुगंध से युक्त था। उन्हें ऐसा इसलिए कहा गया क्योंकि फ़ादर बुल्के मानवीय करूणा के दिव्य अवतार थे। प्रेम, करुणा, वात्सल्य, अपनत्व, ममता एवं सहृदयता उनमें कूट-कूट कर भरी हुई थी। उनके हृदय में अपने प्रियजनों के प्रति असीम स्नेह एवं ममत्व का भाव था। अपने आशीर्वादों से वे लोगों को लबालब कर देते थे। उनके मन में सबके प्रति कल्याण की भावना थी। इस रूप में उनका व्यक्तित्व अलौकिक छवि को लिए हुए था।
(ग) यज्ञ की आग की विशेषता यह होती है कि वह पवित्र होती है। संन्यासी अर्थात् फ़ादर बुल्के की स्मृति की तुलना लेखक ने इस आग की 'आँच' से इसलिए की है जिस तरह यज्ञ की आँच सबके लिए पवित्र एवं कल्याणकारी होती है उसी तरह फ़ादर बुल्के का व्यक्तितव भी सदैव सबके लिए कल्याणकारी था। उनका हृदय सदैव दूसरों के लिए कल्याण की पवित्र भावना से ओत-प्रोत रहता था। प्रेम, वात्सल्य और ममत्व का पवित्र रूप सदैव सबके प्रति आत्मीयता से परिपूर्ण रहता था। यही कारण है कि वे 'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' के रूप में उभर कर सामने आए। उनका उज्ज्वल व्यक्तित्व सदा सभी को अविस्मरणीय रहेगा।
प्रश्न 3. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
फ़ादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है। उनको देखना करुणा के निर्मल जल में स्नान करने जैसा था और उनसे बात करना कर्म के संकल्प से भरना था। मुझे 'परिमल' के वे दिन याद आते हैं जब हम सब एक पारिवारिक रिश्ते में बँधे - जैसे थे जिसके बड़े फ़ादर बुल्के थे। हमारे हँसी-मज़ाक में वह निर्लिप्त शामिल रहते, हमारी गोष्ठियों में वह गंभीर बहस करते, हमारी रचनाओं पर बेबाक राय और सुझाव देते और हमारे घरों के किसी भी उत्सव और संस्कार में वह बड़े भाई और पुरोहित जैसे खड़े हो हमें अपने आशीषों से भर देते।
(क) फ़ादर को याद करना, देखना और उनसे बातें करना किन अनुभूतियों को जगाने वाला होता था ?
(ख) 'परिमल' की गोष्ठियों से जुड़ी फ़ादर की किन स्मृतियों को लेखक याद कर रहा है?
(ग) घर के उत्सवों में फ़ादर की भूमिका को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर
(क) फ़ादर बुल्के को याद करना एक शांत, उदास संगीत को सुनने के समान प्रतीत होता है। उनको देखने से करुणा के निर्मल जल में स्नान करने जैसी अनुभूति प्राप्त होती है और उनसे बातें करने से अपने मन को कर्म के संकल्प से भरने की गहन अनुभूति का अनुभव प्राप्त होता है।
(ख) 'परिमल' की गोष्ठियों से जुड़ी फ़ादर की वो स्मृतियाँ लेखक को याद आती है, जब सभी साहित्यकार पारिवारिक संबंधों में बंधे अनुभव करते थे और उस परिवार के बड़े व्यक्ति फ़ादर बुल्के हुआ करते थे। सभी के बीच हँसी-मजाक चलता था, गंभीरता से परिपूर्ण बहस होती थी और निडर और निष्पक्ष होकर एक दूसरी की रचनाओं से संबंधित राय दी जाती थी।
(ग) घर के उत्सवों में फ़ादर बड़े भाई और पुरोहित की भूमिका को निभाते थे। सभी के साथ नेहाशीष दैत थे। बड़े भाई के समान सभी के साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार और पुरोहित के समान आशीर्वाद देते हुए वे देवदार वृक्ष के समान प्रतीत होते थे जो सबको शांति और शीतलता प्रदान करता है।
प्रश्न 4. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
फ़ादर बुल्के संकल्प से संन्यासी थे। कभी-कभी लगता है वह मन से संन्यासी नहीं थे। रिश्ता बनाते थे तो तोड़ते नहीं थे। दसियों साल बाद मिलने के बाद भी उसकी गंध महसूस होती थी । वह जब भी दिल्ली आते ज़रूर मिलते-खोजकर, समय निकालकर, गर्मी, सर्दी, बरसात झेलकर मिलते, चाहे दो मिनट के लिए ही सही। यह कौन संन्यासी करता है?
(क) फ़ादर बुल्के को संकल्प से संन्यासी क्यों कहा गया है? वे मन से संन्यासी क्यों नहीं लगते थे?
(ख) फ़ादर रिश्ते बनाकर उनका निर्वाह कैसे करते थे ?
(ग) फ़ादर बुल्के का कौन-सा व्यवहार संन्यासियों के स्वभाव के अनुकूल नहीं लगता?
उत्तर
(क) फ़ादर बुल्के में संन्यास लेने की भावना थी। उन्होंने इस कार्य के लिए संकल्प भी लिया, लेकिन अपने इस संकल्प को वह निभा नहीं पाए। जो व्यक्ति संन्यास लेता है वह सांसारिक रिश्तों से दूर हो जाता है, लेकिन फ़ादर बुल्के का स्वभाव इसके विपरीत था। वह जिसके साथ मन से जुड़ जाते थे उससे उन्हें गहरा लगाव हो जाता था। वह उस रिश्ते को अंत तक निभाते थे। जब भी दिल्ली आते वह लेखक से मिले बिना नहीं जाते थे। मन से, अपनत्व से, बंधने के कारण लेखक ने कहा है कि वह मन से संन्यासी नहीं थे।
(ख) फ़ादर बुल्के जिससे रिश्ता बना लेते उससे आजीवन निभाते थे । लेखक के साथ उनका गहरा स्नेह संबंध था। वह जब भी दिल्ली आते उनसे मिले बिना कभी वापिस नहीं जाते थे। किसी भी स्थिति में उनकी अपने स्नेह - पात्र से आत्मीयता कम नहीं होती थी।
(ग) संन्यासी सांसारिक मोह-माया, संबंधों से नाता तोड़ लेता है। उसका जीवन आध्यात्मिक क्षेत्र तक ही सीमित रह जाता है, लेकिन फ़ादर बुल्के का व्यवहार संन्यासियों से विपरीत था । वह देश व समाज की प्रक्रियाओं से जुड़े हुए थे। उन्हें हिंदी की उपेक्षा देखकर दुख होता था । वह हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहते थे। इसके अतिरिक्त उन्हें सांसारिक रिश्तों से गहरा लगाव था। उनका यह स्वभाव संन्यासियों के प्रतिकूल था ।
प्रश्न 5. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
फादर को ज़हरबाद से नहीं मरना चाहिए था। जिसकी रगों में दूसरों के लिए मिठास भरे अमृत के अतिरिक्त और कुछ नहीं था उसके लिए इस ज़हर का विधान क्यों हो? यह सवाल किस ईश्वर से पूछें? प्रभु की आस्था ही जिसका अस्तित्व था, वह देह की इस यातना की परीक्षा उम्र की आखिरी देहरी पर क्यों दे?
(क) लेखक ऐसा क्यों कहता है कि फ़ादर को ज़हरबाद से नहीं मरना चाहिए था?
(ख) 'प्रभु की आस्था ही जिसका अस्तित्व था' वाक्य से फ़ादर के व्यक्तित्व की किस विशेषता का परिचय प्राप्त होता है।
(ग) 'उम्र की आखिरी देहरी' कथन से लेखक का क्या अभिप्राय है?
उत्तर
(क) फ़ादर बुल्के के मन में दूसरों के प्रति तनिक सी भी ईष्यां दुद्वेष की भावना नहीं थी। उनके जीवन का उद्देश्य मात्र मानव-कल्याण था । उन्होंने अपने प्रियजनों को सदैव अपनत्व दिया। ऐसे महान व्यक्ति की मृत्यु ज़हराबाद के कारण कठिन यातना सहते हुए नहीं होनी चाहिए थी । लेखक के अनुसार मानवीय करुणा की साक्षात् मूर्ति को ज़हरबाद से नहीं मरना चाहिए था।
(ख) फ़ादर बुल्के की अध्यात्म के प्रति गहरी रुचि थी । प्रभु के प्रति अटूट आस्था व निष्ठा ही उनके जीवन का उद्देश्य था । जो ईश्वर के प्रति आस्था रखता है वही स्नेह, करुणा, वात्सल्य जैसे- गुणों का आगार बन सकता है, वहीं मानव से ही प्रेम कर सकता है, वही मानवीय करुणा की फ़सल लहलहा सकता है तथा छायादार वृक्ष की तरह सबके लिए सुखकारी हो सकता है।
(ग) फ़ादर बुल्के की मृत्यु ज़हराबाद के कारण कठिन यातना सहते हुए हुई थी। जिस व्यक्ति ने सदैव अपने व्यवहार से दूसरे के जीवन में प्रेम का रंग भरा, उसे उम्र की आखिरी - देहरी अर्थात् जीवन के अंतिम पड़ाव पर निर्मम यातना को झेलना पड़ा।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. 'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' नामक पाठ से हमें क्या प्रेरणा मिलती है ?
उत्तर
'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' पाठ से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि फ़ादर जैसे अनुकरणीय चरित्र को अपने जीवन में लागू करना चाहिए। दया, करुणा, ममता, सहयोग, सद्भावना जैसे मानवीय मूल्यों को अपने भीतर विकसित करना चाहिए। हमें भारतीयता की महानता, अपनी मातृभाषा हिंदी के प्रति दायित्व और गौरव को जन-जन में जागृत करना चाहिए। हिंदी के प्रसार एवं विकास में अपना भरपूर योगदान देना चाहिए।
प्रश्न 2. 'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' पाठ के आधार पर फादर कामिल बुल्के की जो छवि उभरती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए ।
उत्तर
फादर बुल्के मानवीय गुणों का जीवंत मूर्तिमान रूप थे। परहित, दया, ममता, करुणा, अपनत्व उनके स्वाभाविक गुण थे। वह जिससे मानसिक रूप से जुड़ जाते थे, पूरा जीवन उसके साथ स्नेह संबंध निभाते थे। विकट परिस्थितियाँ भी उन्हें उनके आत्मीय से दूर नहीं कर पाती थीं । संकटकालीन पलों में वह स्वयं के दुखों को भूलकर दूसरों के दुखों को दूर करने का प्रयास करते थे ।
प्रश्न 3. फ़ादर बुल्के की जन्म भूमि कहाँ थी और उनके अपनी जन्म भूमि के प्रति क्या भाव थे?
उत्तर
फ़ादर बुल्के की जन्मभूमि थी- रेम्सचैपल। उनकी अपनी जन्मभूमि के प्रति अगाध श्रद्धा थी एवं अपार प्रेम था। यद्यपि वे अपने देश में अधिक समय तक नहीं रहे, परंतु फिर भी उनके मन में अपने देश की याद निरंतर बनी रही। वे अपनी जन्मभूमि को अत्यंत सुंदर मानते थे। अपनी जन्मभूमि उन्हें अत्यंत प्रिय थी।
प्रश्न 4. रेम्सचैपल में फादर के परिवार में कौन-कौन था? उनके संबंध उनसे कैसे थे?
उत्तर
रेम्सचैपल में फ़ादर का भरा-पूरा परिवार था। परिवार में माता-पिता, दो भाई और एक बहिन थे। पिता और भाइयों के प्रति उन्हें बहुत लगाव नहीं था। पिता व्यवसायी थे। एक भाई पादरी था और दूसरा भाई काम करता था। उनकी बहिन सख्त एवं जिद्दी थी, जिसकी बहुत देर से शादी हुई थी। उन्हें अपने परिवार में केवल माँ की बहुत याद आती थी और अक्सर उनके पत्र उन्हें आते रहते थे।
प्रश्न 5. फादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी क्यों लगती थी ?
उत्तर
फ़ादर बुल्के की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी इसलिए लगती थी क्योंकि फ़ादर बुल्के मानवीय गुणों से सम्पन्न विराट व्यक्तित्व को लिए हुए थे। उनका हृदय विशाल एवं सबके लिए कल्याण करने वाला था। उनमें वात्सल्य एवं ममता कूट-कूट कर भरी हुई थी। अपने प्रियजनों के प्रति अत्यधिक आत्मीयता रखते हुए वे उन पर प्रेम एवं करुणा की निरंतर वर्षा किया करते थे । वे पुरोहित की भाँति आशीर्वाद से लोगों को सराबोर कर देते थे। वे मानवीय करुणा के अवतार थे। उनकी उपस्थिति देवदार की छाया समान विशाल एवं व्यापक थी।
प्रश्न 6. फादर बुल्के को ज़हरबाद से क्यों नहीं मरना चाहिए था? अपने शब्दों में लिखिए ।
उत्तर
फादर बुल्के की मृत्यु ज़हरबाद अर्थात् गैंग्रीन से हुई। उनके शरीर में फोड़े का ज़हर फैल गया था। लेखक ने जब यह समाचार सुना तो वे उदास हो गए। उन्होंने फ़ादर कामिल बुल्के के लिए यह कहा कि उन्हें ज़हरबाद से नहीं मरना चाहिए था क्योंकि फ़ादर की रगों में तो दूसरों के लिए मिठास्त्र भरे अमृत के सिवाय कुछ भी नहीं था। वे आजीवन दूसरों के दुखों को दूर करने का प्रयत्न करते रहे। वे सभी के प्रति सहानुभूति एवं करुणा का भाव रखते थे। उनके लिए ज़हर का विधान होना ही नहीं चाहिए था। उन जैसे परोपकारी, वात्सल्यमय तथा मानवीय करुणा से ओत-प्रोत व्यक्ति को ऐसी कष्टकर मृत्यु नहीं मिलनी चाहिए थी । लेखक इसे फ़ादर बुल्के के प्रति अन्याय मानते हैं।
प्रश्न 7. लेखक ने कामिल बुल्के को 'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' क्यों कहा है?
उत्तर
लेखक ने कामिल बुल्के को मानवीय करुणा की दिव्य चमक इसलिए कहा है क्योंकि वे निष्काम कर्मयोगी थे। उनके मन में सभी के प्रति प्रेम, करुणा, कल्याण का भाव निहित था । वह किसी भी व्यक्ति को दुखी नहीं देख पाते थे। दीन-दुखियों की सहायता करना वे अपना कर्त्तव्य मानते थे । उनके व्यक्तित्व में मानवीय करुणा की दिव्य चमक दिखाई देती थी।
प्रश्न 8. 'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' पाठ के आधार पर फ़ादर कामिल बुल्के की जो छवि उभरती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
फ़ादर कामिल बुल्के एक विदेशी होते हुए भी भारत में आकर बस गए थे। उनका व्यक्तित्व बहुत ही प्रभावपूर्ण था। स्वभाव से वे साधु-गुणों से युक्त थे। वे भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति, यहाँ के ज्ञान समाज से प्रभावित । वास्तव में एक सच्चे निष्काम कर्मयोगी थे। उनका उनका हृदय मानवीय करुणा एवं वात्सल्य की भावना से ओत-प्रोत था। अपने प्रियजनों के प्रति ममता एवं अपनत्व का गहरा भाव था । उनके व्यक्तित्व में मानवीय करुणा की दिव्य चमक थी। उनका सबके प्रति दया और सहयोग का भाव, मित्रवत व्यवहार, सदैव प्रसन्नचित रहना, सभी के कल्याण की भावना रखना और हिंदी को समृद्धशाली बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील रहना - ये विशेषताएँ उनके व्यक्तित्व की छवि को अनुपम रूप प्रदान करती हैं।
प्रश्न 9. 'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि फ़ादर की उपस्थिति में ऐसा क्यों लगता था कि जैसे 'किसी ऊँचाई पर देवदार की छाया में खड़े हों।'
उत्तर
फ़ादर बुल्के मानवीय व नैतिक गुणों से ओत-प्रोत थे । उनके मन में सबके प्रति कल्याण की भावना थी। वे स्नेह, करुणा, वात्सल्य जैसे गुणों से दूसरों का दुख दूर कर देते थे। उन्होंने कभी क्रोध नहीं किया। उनका हृदय ममता व प्यार से भरा रहता था । इन गुणों के कारण फ़ादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी लगती थी।
प्रश्न 10. फादर कामिल बुल्के के हिंदी प्रेम को प्रकट करने वाले दो प्रसंगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
फादर कामिल बुल्के के हिंदी प्रेम को प्रकट करने वाला पहला प्रसंग उनके धर्माचार की पढ़ाई के बाद हिंदी विषय में आगे की पढ़ाई करने से संबंधित है। धर्माचार की पढ़ाई के बाद उन्होंने कलकत्ता (कोलकाता) से बी०ए० और, इलाहाबाद से एम०ए० किया। अपना शोध प्रबंध प्रयाग विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में रहकर 1950 ई० में पूरा किया- 'रामकथा : उत्पत्ति और विकास' । इसी समय उन्होंने मातरलिंक के प्रसिद्ध नाटक 'ब्लू बर्ड' का 'नील पंछी' नाम से हिंदी रूपांतर भी किया। पढ़ाई के बाद वे सेंट जेवियर्स कॉलेज, राँची में हिंदी एवं संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष हो गए। यहीं उन्होंने अपना प्रसिद्ध अंग्रेजी - हिंदी कोश तैयार किया तथा बाइबिल का अनुवाद भी किया।
इसके अतिरिक्त, अपने हिंदी प्रेम के कारण ही वे 'परिमल' जैसी साहित्यिक संस्था के सक्रिय सदस्य रहे । उन्हें हिंदी की उपेक्षा पर बहुत दुख होता था और हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने में उन्होंने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रश्न 11. लेखक को फ़ादर बुल्के बड़े भाई और पुरोहित जैसे क्यों लगते थे?
उत्तर
फादर बुल्के हर अवसर पर लेखक के पास उपस्थित रहते थे। उनके घरेलू उत्सवों, संस्कारों में फ़ादर बड़े भाई और पुरोहित की भूमिका में होते और अपना स्नेहाशीष देते। दुख और विपदा के समय वे लेखक को संभालते और उन्हें सांत्वना देते थे । लेखक के बच्चे के मुख में पहली बार अन्न भी फ़ादर ने ही डाला था। उनकी आँखों में सदैव लेखक के प्रति वात्सल्य की भावना भरी रहती थी। दुख की कठिन स्थिति में फ़ादर का सहयोग उन्हें शांति प्रदान करता था।
प्रश्न 12. फ़ादर कामिल बुल्के के अभिन्न भारतीय मित्र का नाम पठित पाठ के आधार पर लिखिए तथा बताइए कि उनकी परस्पर अभिन्नता का कौन-सा तथ्य प्रस्तुत पाठ में परिलक्षित हुआ है?
उत्तर
पठित पाठ के आधार पर कहा जा सकता है कि डॉ० रघुवंश फादर कामिल बुल्के के अभिन्न मित्र थे। फ़ादर कामिल बुल्के के पास उनकी माँ की चिट्ठियाँ आती थीं, जिन्हें वे डॉ० रघुवंश को दिखाते थे। इसके अतिरिक्त, उनकी मृत्यु होने के बाद दिल्ली में कश्मीरी गेट के निकलसन कब्रगाह में एक छोटी-सी नीली गाड़ी में से उनका ताबूत कुछ पादरी, रघुवंश जी का बेटा और उनके परिजन राजेश्वर सिंह उतार रहे थे। उनकी मृत्यु पर डॉ० रघुवंश एवं उनका परिवार बहुत अधिक दुखी था।
प्रश्न 13. फादर कामिल बुल्के के बचपन में उनकी माँ ने उनके विषय में क्या भविष्यवाणी की थी? वह सत्य सिद्ध कैसे हुई ? ' मानवीय करुणा की दिव्य चमक' पाठ के आधार पर लिखिए ।
उत्तर
फादर कामिल बुल्के के बचपन में उनकी माँ ने उनके विषय में यह भविष्यवाणी की थी कि यह लड़का तो हाथ से गया। उनकी यह भविष्यवाणी भविष्य सत्य सिद्ध हुई । फादर कामिल बुल्के ने इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में अपनी पढ़ाई छोड़ दी। वे संन्यास लेना चाहते थे । उन्होंने अपने धर्म गुरु के पास पहुँच कर अपनी संन्यास लेने की इच्छा को व्यक्त किया और साथ ही भारत जाने की शर्त भी रखी। उनकी शर्त स्वीकार कर ली गई और वे भारत आ गए।
प्रश्न 14. लेखक ने फ़ादर कामिल बुल्के को 'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' क्यों कहा है?
उत्तर
फ़ादर कामिल बुल्के के हृदय में दया करुणा, परहित, वात्सल्य, ममता की भावना कूट-कूट कर भरी थी। जिनके साथ वह प्रेम से जुड़ जाते थे, उनके साथ आजीवन प्रेम संबंध निभाते थे। स्वयं कष्ट सहकर दूसरों के दुखों को दूर करते थे। प्रतिकूल व विषम परिस्थितियों में भी उनका साथ कभी नहीं छोड़ते थे, जिससे वे जुड़ते थे। इसी कारण फ़ादर बुल्के को 'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' कहा जाता था।
प्रश्न 15. फादर बुल्के भारतीयता में पूरी तरह रच-बस गए। ऐसा उनके जीवन में कैसे संभव हुआ होगा? अपने विचार लिखिए।
उत्तर
फ़ादर बुल्के भारतीयता में पूरी तरह से रच-बस गए थे। उनका जन्म रेम्सचैपल (बेल्जियम) में हुआ था परंतु भारत में आकर बस जाने के उपरांत उनमें कोई उनके देश का नाम पूछता, तो वह उसे भारत ही बताते थे। उन्होंने भारत में आकर हिंदी और संस्कृत को केवल पढ़ा ही नहीं, अपितु संस्कृत के कॉलेज में विभागाध्यक्ष भी रहे। उन्होंने प्रसिद्ध अंग्रेज़ी-हिन्दी शब्दकोष भी लिखा। भारतीय संस्कृति के महानायक राम और राम कथा को उन्होंने अपने शोध का विषय चुना तथा 'रामकथा : उत्पत्ति और विकास' पर शोध प्रबंध लिखा। फादर बुल्के हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखने के इच्छुक थे। वास्तव में वह भारतीयता का अभिन्न अंग थे।
प्रश्न 16. 'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' पाठ में किस महापुरुष का वर्णन है? यह विशेषण उनकी किन विशेषताओं को दर्शाता है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' पाठ में हिंदी के प्रसिद्ध विद्वान एवं महापुरुष फादर कामिल बुल्के का वर्णन है । फादर कामिल बुल्के के लिए यह विशेषण उनकी करुणा भरे हृदय की विशालता को दर्शाता है। लेखक ने लिखा है कि “उनको देखना करुणा के निर्मल जल में स्नान करने जैसा था"। वास्तव में, इस साधु में अत्यधिक ममता, अपनत्व अपने हर प्रियजन के लिए उमड़ता रहता था । वे स्वयं कष्ट सहकर भी दूसरों के दुखों को दूर करते थे। प्रतिकूल एवं विषम परिस्थितियों में भी दिल से जुड़े लोगों का साथ कभी नहीं छोड़ते थे। लेखक की पत्नी और पुत्र की मृत्यु पर फ़ादर के मुख से सांत्वना के जादू भरे शब्द इस बात के प्रमाण हैं। उनके अंदर मानवीय करुणा की अपार भावनाओं के मौजूद रहने के कारण ही उनके लिए 'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' विशेषण का प्रयोग किया गया है।
प्रश्न 17. फ़ादर बुल्के एक संन्यासी थे, परन्तु पारंपरिक अर्थ में हम उन्हें संन्यासी क्यों नहीं कह सकते?
उत्तर
फादर बुल्के एक संन्यासी थे, परंतु पारंपरिक अर्थ में हम उन्हें संन्यासी नहीं कह सकते क्योंकि संन्यासी के रूप में उनकी एक नवीन छवि ही हमारे सामने उभरकर सामने आती है। वे परंपरागत ईसाई पादरियों या भारतीय संन्यासियों से भिन्न थे। वे संकल्प से संन्यासी थे, मन से नहीं। उनका जीवन नीरस नहीं था। व्यवहार और कर्म से संन्यासी होते हुए भी अपने परिचितों के साथ गहरा लगाव रखते थे। वे सभी के परिवारों में आते-जाते रहते थे, उत्सवों एवं समारोहों में भाग लेते थे तथा पुरोहित की तरह आशीष देते थे। दुःख की स्थिति में वे लोगों को सांत्वना देते थे, उनके प्रति सहानुभूति प्रकट करते थे । संकट की स्थिति में वे देवदार वृक्ष के समान खड़े रहते थे। वे आत्मनिर्भरता के उद्देश्य से कॉलेज में अध्ययन एवं अध्यापन भी करते थे। इस तरह उनकी छवि परंपरागत संन्यासी की तरह नहीं थी।