Extra Questions for Class 10 क्षितिज Chapter 10 नेताजी का चश्मा - स्वयं प्रकाश Hindi
Chapter 10 नेताजी का चश्मा Kshitij Extra Questions for Class 10 Hindi
प्रश्न 1. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी - जवानी जिंदगी सब कुछ होम कर देने वालों पर भी हँसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है। दुखी हो गए। पंद्रह दिन बाद फिर उसी कस्बे से गुज़रे । कस्बे में घुसने से पहले ही खयाल आया कि कस्बे की हृदयस्थली में सुभाष की प्रतिमा अवश्य ही प्रतिष्ठापित होगी, लेकिन सुभाष की आँखों पर चश्मा नहीं होगा।... क्योंकि मास्टर बनाना भूल गया।... और कैप्टन मर गया। सोचा, आज वहाँ रुकेंगे नहीं, पान भी नहीं खाएँगे, मूर्ति की तरफ़ देखेंगे भी नहीं, सीधे निकल जाएँगे। ड्राइवर से कह दिया, चौराहे पर रुकना नहीं, आज बहुत काम है, पान आगे कहीं खा लेंगे।
(क) हालदार साहब के दुखी होने का क्या कारण था ?
(ख) गद्यांश में युवा पीढ़ी के लिए निहित सन्देश स्पष्ट कीजिए ।
(ग) हालदार साहब ने ड्राइवर को क्या आदेश दिया था और क्यों ?
उत्तर
(क) हालदार साहब दुखी थे क्योंकि वह यह देख रहे थे कि आज लोगों के मन में देशभक्तों, शहीदों के प्रति सम्मान की भावना कम होती जा रही है। लोग स्वार्थी एवं मौकापरस्त होते जा रहे हैं। देशभक्ति की भावना प्रायः लुप्त होती जा रही है।
(ख) गद्याश में लेखक ने युवा पीढ़ी को यह संदेश दिया है कि वे देश के लिए अपना सर्वस्व लुटाने वाले, मर-मिट जाने वाले शहीदों के प्रति सम्मान की भावना बनाए रखें एवं स्वयं भी देश लिए अपना सर्वस्व समर्पित करने के लिए तत्पर रहें ।
(ग) हालदार साहब ने ड्राइवर को यह कहकर चौराहे पर गाड़ी न रोकने का आदेश दिया कि आज उन्हें बहुत काम है और वे पान आगे खा लेंगे। जबकि वास्तविकता यह थी कि वे आज कस्बे के चौराहे पर रुकना नहीं चाहते थे क्योंकि वे जानते थे कि चौराहे पर बनी सुभाषचंद्र की मूर्ति पर चश्मा पहनाने वाला कैप्टन मर चुका है और आज उनकी मूर्ति बिना चश्मे की होगी जिसे वह देख नहीं पाएँगे।
प्रश्न 2. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
हालदार साहब को यह सब कुछ बड़ा विचित्र और कौतुकभरा लग रहा था। इन्हीं खयालों में खोए-खोए पान के पैसे चुकाकर, चश्मेवाले की देश भक्ति के समक्ष नतमस्तक होते हुए वह जीप की तरफ चले, फिर रुके, पीछे मुड़े और पानवाले के पास जाकर पूछा, क्या कैप्टन चश्मेवाला नेताजी का साथी है? या आज़ाद हिंद फ़ौज का भूतपूर्व सिपाही ? पानवाला नया पान खा रहा था । पान पकड़े अपने हाथ को मुँह से डेढ़ इंच दूर रोककर उसने हालदार साहब को ध्यान से देखा, फिर अपनी लाल - काली बत्तीसी दिखाई और मुसकराकर बोला- नहीं साब ! वो लँगड़ा क्या जाएगा फ़ौज में पागल है पागल ! वो देखो, वो आ रहा है। आप उसी से बात कर लो। फोटो-वोटो छपवा दो उसका कहीं ।
(क) हालदार साहब किसके सामने नतमस्तक हो गए और कैप्टन के विषय में हालदार साहब क्या सोच रहे थे ?
(ख) पानवाला कैप्टन का क्या कहकर मज़ाक उड़ाता था? उसका मज़ाक उड़ाना आपको कैसा लगता है?
(ग) उपरोक्त गद्यांश के पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर
(क) हालदार साहब एक देशभक्त थे और देशभक्तों के प्रति सम्मान की भावना रखते थे । वे चश्मेवाले द्वारा नेताजी सुभाषचंद्र बोस के प्रति सम्मान रखने की भावना एवं उसकी देशभक्ति को देखकर नतमस्तक हो गए। कैप्टन के बारे में हालदार साहब ने सोचा कि वह कोई लंबा-तगड़ा, हट्टा-कट्टा सैनिक होगा या फिर नेताजी की आज़ाद हिंद फौज का सिपाही रहा होगा।
(ख) कैप्टन के प्रति पानवाले की सोच बहुत ही संकीर्ण थी । वह उसे लँगड़ा तथा पागल कहकर मज़ाक उड़ाया करता था। जबकि कैप्टन शारीरिक रूप 'अशक्त होते हुए भी देशभक्ति की भावना रखता था। वह सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति पर चश्मा लगाकर उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करता था। पानवाले द्वारा उसका मज़ाक उड़ाना उचित नहीं है। इससे पानवाले का अभद्र व्यवहार सामने आता है। हमें लगता है वह सभ्य नहीं है, जबकि कैप्टन के प्रति उसका व्यवहार सम्मान एवं सहानुभूति होना चाहिए ।
(ग) पाठ का नाम - नेताजी का चश्मा
लेखक - स्वयं प्रकाश
प्रश्न 3. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी - जवानी जिंदगी सब कुछ होम देने वालों पर हँसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है। दुखी हो गए। पंद्रह दिन बाद फिर उसी कस्बे से गुज़रे । कस्बे में घुसने से पहले ही खयाल आया कि कस्बे की हृदयस्थली में सुभाष की प्रतिमा अवश्य ही प्रतिष्ठापित होगी, लेकिन सुभाष की आँखों पर चश्मा नहीं होगा ।... क्योंकि मास्टर बनाना भूल गया ।... और कैप्टन मर गया। सोचा आज वहाँ रुकेंगे नहीं, पान भी नहीं खाएँगे, मूर्ति की तरफ़ देखेंगे भी नहीं, सीधे निकल जाएँगे। ड्राइवर से कह दिया, चौराहे पर रुकना नहीं, आज बहुत काम है, पान आगे कहीं खा लेंगे।
(क) बार-बार सोचने वाला कौन है? वह किस कौम के बारे में क्या सोच रहा है?
(ख) 'अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है'- कथन का निहित भाव स्पष्ट कीजिए ।
(ग) आज उस कस्बे में न रुकने और पान भी न खाने के पीछे क्या कारण था ?
उत्तर
(क) बार- बार सोचने वाले हालदार साहब थे। वे उस कौम के लोगों के बारे में सोच रहे थे, जिनके मन में आज शहीदों के प्रति सम्मान की भावना एवं देशभक्ति का गौरव समाप्त हो गया है। जो स्वार्थी हो गए हैं और अवसरवादिता के पक्षधर बनते जा रहे हैं।
(ख) 'अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है' - पंक्ति के द्वारा हालदार साहब उन लोगों के बारे में सोचकर दुखी हो रहे हैं, जिनमें देशभक्ति की भावना कम हो गई है। जो उन लोगों पर उपहास करते हैं जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन देश के लिए बलिदान कर दिया। ऐसे लोग स्वार्थ को अधिक महत्त्व देने लगे हैं। और स्वार्थ के वशीभूत होकर अपनी संपूर्ण मर्यादा त्यागने के लिए तत्पर हैं। वे उन देशभक्तों को भूल गए हैं जिन्होंने देश की खातिर अपना घर-परिवार, जवानी, जिंदगी सब बलिदान कर दी थी।
(ग) हालदार साहब उस कस्बे में रुकना नहीं चाहते थे और पान भी नहीं खाना चाहते थे क्योंकि वे सोच रहे थे कि इस कस्बे के चौराहे पर सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा तो होगी, परंतु आज उस मूर्ति पर चश्मा नहीं होगा। क्योंकि मूर्ति बनाने वाला मास्टर सुभाष चंद्र बोस का चश्मा बनाना भूल गया था और प्रतिदिन मूर्ति पर नया चश्मा बदलने वाला कैप्टन मर गया था।
प्रश्न 4. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी - जवानी जिंदगी सब कुछ होम कर देने वालों पर भी हँसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है।
(क) हालदार को किस बात का अफ़सोस है और क्यों?
(ख) “ अपने लिए बिकने के अवसर ढूँढ़ते हैं” का तात्पर्य स्पष्ट कीजिए।
(ग) हालदार का अफ़सोस कैसे दूर हो सकता है? तीन-चार पंक्तियों में उत्तर दीजिए।
उत्तर
(क) हालदार साहब को इस बात का अफ़सोस था कि आज लोग उन देश भक्तों के बलिदान को भूल चुके हैं जिन्होंने देश के लिए अपना यौवन, घर-गृहस्थी व जीवन बलिदान कर दिया। कुछ लोग कृतघ्न हैं जो ऐसे देशभक्तों का उपहास करते हैं जिन्होंने देश भक्ति को सर्वोपरि मानकर अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया।
(ख) जो देशभक्तों का सम्मान नहीं करते, उनका उद्देश्य केवल अपने स्वार्थ की पूर्ति है । ऐसे लोग अवसरवादी हैं। उनका स्वाभिमान मर चुका है ये बिकने के लिए भी तैयार हैं क्योंकि भ्रष्टाचार व रिश्वत खोरी इनके महत्त्वपूर्ण हथियार हैं।
(ग) हालदार साहब का अफ़सोस तभी हो सकता है जब लोग देशभक्तों का सम्मान करें। उनके बताए आदर्शों का पालन करें व उनके प्रति कृतज्ञता का भाव रखें। आने वाली पीढ़ी में देश-भक्ति की भावना विकसित हो। भावी पीढ़ी का कोई भी व्यक्ति देशभक्तों का मज़ाक न बनाए।
प्रश्न 5. नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
लेकिन आदत से मजबूर आँखें चौराहा आते ही मूर्ति की तरफ़ उठ गईं। कुछ ऐसा देखा कि चीखे, रोको! जीप स्पीड में थी, ड्राइवर ने ज़ोर से ब्रेक मारे। रास्ता चलते लोग देखने लगे। जीप रुकते न रुकते हालदार साहब जीप से कूदकर तेज़ तेज़ कदमों से मूर्ति की तरफ़ लपके और उसके ठीक सामने जाकर अटेंशन खड़े हो गए। मूर्ति की आँखों पर सरकंडे से बना छोटा-सा चश्मा रखा हुआ था, जैसा बच्चे बना लेते हैं। हालदार साहब भावुक हैं। इतनी सी बात पर उनकी आँखें भर आईं।
(क) हालदार साहब किस आदत से मज़बूर थे? वे क्यों चीखे ?
(ख) 'इतनी-सी बात पर' से क्या अभिप्राय था? हालदार साहब की आँखें क्यों भर आईं ?
(ग) मूर्ति के प्रति हालदार के भावनात्मक लगाव को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर
(क) हालदार साहब की आदत थी कि जब भी चौराहा आता उनकी निगाहें नेता जी की मूर्ति की ओर उठ जाती क्योंकि उनके मन में देशभक्तों के प्रति सम्मान की भावना थी जो नेताजी की मूर्ति को लिए चीखे । देखकर प्रबल हो उठती थीं। इस कारण वह नेताजी की मूर्ति को निहारते। वह जीप को रोकने के लिए चीखे।
(ख) सुभाषचंद्र जी की मूर्ति पर चश्मा देखकर हालदार साहब ठीक मूर्ति के सामने जाकर खड़े हो गए। मूर्ति की आँखों पर सरकंडे का छोटा-सा चश्मा था, जैसे बच्चे बना लेते हैं। इतनी सी बात पर उनकी आँखों में आँसू इसलिए आ गए क्योंकि उन्हें एहसास हुआ कि आने वाली पीढ़ी में भी देशभक्ति की भावना है।
(ग) हालदार साहब जब भी काम के सिलसिले में कस्बे से गुजरते तो संगमरमर की बनी नेताजी की मूर्ति को देखते। पत्थर की मूर्ति पर वास्तविक चश्मे को देखकर उनके चेहरे पर मुसकान फैल जाती। कैप्टन की मृत्यु के बाद भी कस्बे के चौराहे से जाते समय उनकी आँखें अनायास नेता जी की मूर्ति की ओर उठ जाती हैं।
प्रश्न 6. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
अगली बार भी मूर्ति की आँखों पर चश्मा नहीं था। हालदार साहब ने पान खाया और धीरे से पान वाले से पूछा- क्यों भाई, क्या बात है? आज तुम्हारे नेता जी की आँखों पर चश्मा नहीं है? पान वाला उदास हो गया। उसने पीछे मुड़कर मुँह का पान नीचे थूका और सिर झुका कर धोती के सिरे से आँखें पोंछता हुआ बोला- साहब! कैप्टन मर गया। और कुछ नहीं पूछ पाए हालदार साहब। कुछ पल चुपचाप खड़े रहे, फिर पान के पैसे चुका कर जीप में आ बैठे और रवाना हो गए।
(क) मूर्ति किसकी थी? उसकी आँखों पर चश्मा क्यों नहीं था ?
(ख) पान वाला उदास क्यों हो गया ?
(ग) हालदार साहब और पान वाले के स्वभाव में क्या समानता दिखाई पड़ती है?
उत्तर
(क) मूर्ति नेताजी सुभाषचंद्र बोस की थी। उसकी आँखों पर चश्मा इसलिए नहीं था क्योंकि शिल्पकार बनाना भूल गया था।
(ख) पानवाला इसलिए उदास था क्योंकि नेता जी की आँखों पर चश्मा लगाने वाले कैप्टन की मृत्यु हो गई थी।
(ग) पानवाला व हालदार दोनों ही कैप्टन की मृत्यु पर भावुक हो उठे। उनकी आँखों में आँसू आ गये। दोनों ही सहृदय व संवेदनशील थे।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. सेनानी या फ़ौजी न होते हुए भी चश्मे वाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे ?
उत्तर
सेनानी या फ़ौजी न होते हुए भी चश्मे वाले को लोग कैप्टन इसलिए कहते थे क्योंकि उसका मन देश भक्ति से ओत-प्रोत था। वह नेताजी सुभाषचंद्र बोस के व्यक्तित्व से अधिक प्रभावित था। देश के प्रति उनकी कर्तव्यनिष्ठा के कारण वह उनका अधिक सम्मान करता था। बिना चश्मे की उनकी मूर्ति से उसका मन आहत होता था इसलिए वह बार-बार मूर्ति को चश्मा पहनाता था। देश, समाज के प्रति व स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वालों का सम्मान करने के कारण लोग उसे कैप्टन कहते थे।
प्रश्न 2. हालदार साहब को हर पंद्रहवें दिन कस्बे से क्यों गुज़रना पड़ता था? वे कस्बे के चौराहे पर किस लिए रुकते थे ?
उत्तर
हालदार साहब को हर पंद्रहवें दिन कंपनी के काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुज़रना पड़ता था । जिसके मुख्य बाज़ार के मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की एक संगमरमर की दो फुट! ऊँची सुंदर मूर्ति लगी हुई थी। वे कस्बे के चौराहे पर पान खाने के लिए रुकते थे और साथ ही उनका ध्यान बिना चश्मेवाली नेताजी की मूर्ति पर चला जाता था जो उनके आकर्षण का केंद्र थी।
प्रश्न 3. सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे?
उत्तर
सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टन इसलिए कहते थे क्योंकि उसके अंदर देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। उसके हृदय में स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वाले सेनानियों के प्रति विशिष्ट सम्मान था। वह नेताजी सुभाषचंद्र बोस का बहुत सम्मान करता था। नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति पर चश्मा न होने से वह दुखी था। वह नेताजी की मूर्ति पर चश्मा लगाकर चश्मे की कमी की पूर्ति किया करता था । वह चश्मे बेचता था । अतः कोई न कोई चश्मा नेताजी की आँखों पर लगा देता था। बार-बार मूर्ति पर नया चश्मा पहनाकर वह उनके प्रति एवं देश के प्रति श्रद्धा का भाव प्रकट करता था।
प्रश्न 4. “पानवाले के लिए यह एक मज़ेदार बात थी, लेकिन हालदार साहब के लिए चकित और द्रवित करने वाली"। इस पंक्ति में किस बात की ओर संकेत किया गया है?
उत्तर
'पानवाले के लिए यह एक मज़ेदार बात थी, लेकिन हालदार साहब के लिए चकित और द्रवित करने वाली ' इस पंक्ति में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति के ओरिजिनल चश्मे से संबंधित बात की ओर संकेत किया गया है। नेताजी की मूर्ति पर ओरिजिनल चश्मा न देखकर पानवाले से जब उसके विषय में पूछा कि मूर्ति का ओरिजनल चश्मा कहाँ गया तब पानवाले ने मुसकराते हुए जवाब दिया कि मास्टर बनाना भूल गया । ये बात पानवाले के लिए एक मज़ेदार बात थी, परंतु हालदार साहब को मूर्ति पर चश्मा न बनाने पर हैरानी थी और उन्हें इस बात का भी दुख था कि इतने महान देशभक्त नेता की मूर्ति पर चश्मा न बनाने की भूल कैसे हुई। यद्यपि मूर्ति में और कोई कमी न थी।
प्रश्न 5. जब तक हालदार साहब ने कैप्टन को साक्षात् नहीं देखा था तब तक उनके मानस पटल पर उसका कौन-सा चित्र रहा होगा? अपनी कल्पना के आधार पर लिखिए ।
उत्तर
जब तक हालदार साहब ने कैप्टन को साक्षात नहीं देखा था तब तक उनके मानस पटल पर उसका एक भिन्न ही चित्र था। उन्हें लगता था कि वह या तो नेताजी सुभाषचंद्र बोस का साथी रहा होगा या आज़ाद हिन्द फौज का भूतपूर्व सिपाही । हमारी दृष्टि में हालदार साहब के मानस पटल पर कैप्टन का जो चित्र रहा होगा वह कुछ इस प्रकार होगा- स्वस्थ, लंबा-चौड़ा, हृष्ट-पुष्ट शरीर, फ़ौज की वर्दी पहने सधा हुआ व्यक्तित्व । रिटायर्ड होने के बावजूद भी उसमें जोश, उत्साह और उमंग की लहर चेहरे पर दौड़ती नज़र आती होगी। चश्मा बेचते हुए भी उसकी आँखों में देशभक्ति एवं सम्मान का भाव होगा।
प्रश्न 6. 'नेताजी का चश्मा' पाठ में, पान के पैसे चुकाकर जीप में बैठे हवालदार साहब अपने देशवासियों के विषय में क्या सोच रहे थे?
उत्तर
पान के पैसे चुकाकर जीप में बैठे हालदार साहब अपने देशवासियों के विषय में सोच रहे थे कि देश के लिए सब कुछ न्योछावर कर देने वालों का लोग उपहास करते हैं, उनकी हँसी उड़ाते हैं। ऐसे स्वार्थी व्यक्ति अपना कार्य सिद्ध करने के लिए मर्यादा का त्याग भी कर देते हैं।
प्रश्न 7. चौराहे पर लगी मूर्ति के प्रति आपके एवं दूसरे लोगों के क्या उत्तरदायित्व होने चाहिए?
उत्तर
अपने क्षेत्र में चौराहे पर लगी मूर्ति के प्रति हमारे तथा दूसरे लोगों के कुछ उत्तरदायित्व हैं, जिनका पालन होना अत्यंत आवश्यक है । सर्वप्रथम चौराहे पर लगी मूर्ति के सही रख-रखाव पर हमारा ध्यान रहना चाहिए। वह मूर्ति, जिस भी महापुरुष की है उसके बारे में अन्य लोगों को भी परिचित कराना चाहिए। समय-समय पर विशिष्ट अवसरों पर उस मूर्ति के स्थापना - स्थल पर विविध प्रकार के आयोजन किए जाने चाहिए। ताकि लोग उस महापुरुष के व्यक्तित्त्व एवं महत्त्वपूर्ण कार्यों से परिचित हो सकें। उन्हें सम्मान दें एवं उस मूर्ति के सौंदर्य-बोध के प्रति जागरूक रह कर उसके सौंदर्य को कायम रखें।
प्रश्न 8. पानवाले का चरित्र चित्रण कीजिए ?
उत्तर
पानवाला स्वभाव से बहुत ही खुशमिज़ाज, हँसोड़ और मजाकिया था। बात कहने से पहले हँसता था। माहौल को हँसमुख बनाने का प्रयास करता था। एक तरह से वह खुशमिज़ाज व्यक्ति था । वह बातें बनाने में उस्ताद था। उसकी बोली में हँसी एवं व्यंग्य का पुट बना रहता था। वह एक संवेदनशील व्यक्ति भी था। कैप्टन की मृत्यु पर उसका हृदय कराह उठा था। हालदार द्वारा कैप्टन के बारे में पूछे जाने पर उसकी आँखें डबडबा गई थी। वह एक बहुत ही सहृदय व्यक्ति था।
प्रश्न 9. आप अपने इलाके के चौराहे पर किस व्यक्ति की मूर्ति स्थापित करवाना चाहेंगे और क्यों?
उत्तर
हम अपने इलाके के चौराहे पर 'कर्नल जगदीश शर्मा' की मूर्ति स्थापित करवाना चाहेंगे, जोकि इसी इलाके के निवासी थे । 'कर्नल जगदीश शर्मा ने कारगिल की लड़ाई में दुश्मनों के साथ लड़ते-लड़ते अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था। वह देश की खातिर शहीद हो गए थे। ऐसे अनगिनत योद्धाओं ने इस लड़ाई में अपने प्राण गँवाए थे । उनका नाम अमर तो हो गया, किंतु उनकी कोई विशिष्ट पहचान सबके सामने न आ पाई। हम 'कर्नल जगदीश शर्मा' की मूर्ति अपने इलाके के बीच स्थापित कर उनके व्यक्तित्व को एक नई पहचान देंगे, ताकि लोग उनको न केवल जान सकें अपितु उनकी मूर्ति के आगे नतमस्तक हों और उन्हें श्रद्धाजंलि दे सकें।
प्रश्न 10. यह क्यों कहा गया कि महत्त्व मूर्ति के रंग-रूप या कद का नहीं, उस भावना का है? पाठ 'नेताजी का चश्मा' के आधार पर बताओ।
उत्तर
'महत्त्व मूर्ति के रंग-रूप या कद का नहीं उस भावना का है, जिस भावना से मूर्ति का निर्माण हुआ था । 'नेताजी का चश्मा' पाठ में शहर के मुख्य बाज़ार के मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र की मूर्ति लगाई गई थी। मूर्ति संगमरमर की थी। दो फुट ऊँची, फ़ौजी वर्दी में नेताजी सुंदर लग रहे थे। मूर्ति को देखते ही 'दिल्ली चलो' और 'तुम मुझे खून दो... याद आने लगते थे'। वास्तव में यह नगरपालिक द्वारा सफल एवं सराहनीय प्रयास था । इस मूर्ति में एक ही कमी थी। नेताजी का चश्मा नहीं बनाया गया था । रियल चश्मा पहनाकर कैप्टन ने इस कमी को भी पूरा कर दिया था । वास्तव में महत्त्व मूर्ति के कद या रंग रूप का नहीं था, उसके पीछे छिपी भावना का था इस मूर्ति के माध्यम से लोगों में देश प्रेम और देशभक्ति की भावना पैदा हो रही थी तथा नेताओं के प्रति श्रद्धा और सम्मान जागृत हो रहा था, वह सबसे अमूल्य एवं महत्त्वपूर्ण था।
प्रश्न 11. कैप्टन के प्रति पानवाले की व्यंग्यात्मक टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया लिखिए ।
उत्तर
कैप्टन के प्रति पानवाले ने टिप्पणी की थी 'वो लंगड़ा क्या जाएगा फ़ौज में पागल है पागल !' - उसकी यह टिप्पणी व्यंग्य भाव से परिपूर्ण है और नैतिक मूल्यों के विरुद्ध है । शारीरिक रूप से चुनौती को स्वीकार किए हुए व्यक्ति पर उड़ाया गया उपहास है, जो सर्वदा अनुचित ही नहीं अभ्रदता का भी प्रतीक है। ऐसी टिप्पणी करना अशोभनीय एवं अनुचित व्यवहार को दर्शाता है। जबकि ऐसे देश-प्रेमी व्यक्तियों के प्र हमारा व्यवहार स्नेह, सहयोग एवं सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए। कैप्टन जैसे अपंग देशभक्त व्यक्ति के प्रति इस तरह का व्यंग्यात्मक कथन निंदनीय है। कैप्टन देशभक्तों का प्रतीक है। उसका उपहास उड़ाना देशभक्तों के सम्मान के विरुद्ध आवाज़ उठाना है। संभवतः पानवाला अपने कथन की गंभीरता से अपरिचित है।
प्रश्न 12. हालदार साहब को पानवाले की कौन सी बात अच्छी नहीं लगी और क्यों ?
उत्तर
हालदार साहब को पानवाले के द्वारा चश्मे बेचने वाले कैप्टन को 'लँगड़ा' कहना अच्छा नहीं लगा क्योंकि कैप्टन सहानुभूति एवं सम्मान का पात्र था। वह अपनी छोटी-सी फेरी वाली दुकान से देशभक्त सुभाष चंद्र की मूर्ति पर चश्मा लगाकर उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करता था। वह शारीरिक रूप से अपंग होते हुए भी देशभक्ति की भावना रखता था।
प्रश्न 13. बच्चों द्वारा मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा क्या उम्मीद जगाता है?
उत्तर
बच्चों द्वारा मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा यह उम्मीद जगाता है कि भले ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा हो, इससे यह ज्ञात होता है कि लोगों में देशभक्तों के प्रति श्रद्धा की भावना खत्म नहीं हुई है । यद्यपि सरकंडे का चश्मा किसी बच्चे की सोच का परिणाम है, परंतु इससे यह आशा जगती है कि नई पीढ़ी के भीतर देशभक्ति की भावना जीवंत है और वह इस धरोहर को संभालकर रखे हुए हैं। उनके अंदर देशभक्ति और देशभक्तों के प्रति आदर एवं सम्मान कायम है अतः देश का भविष्य सुरक्षित है।
प्रश्न 14. नगरपालिका ने नेता जी की मूर्ति चौराहे पर लगाने की हड़बड़ाहट क्यों दिखाई थी ?
उत्तर
कस्बे के मुख्य चौराहे पर नेताजी की मूर्ति वहाँ की नगरपालिका द्वारा लगवाई गई थी। मूर्ति को देखकर लगता था कि वह काफ़ी हड़बड़ाहट में लगवाई है। देश के अच्छे मूर्तिकारों की जानकारी न होने और मूर्ति की लागत बजट से कहीं बहुत ज़्यादा होने के कारण काफ़ी समय ऊहापोह के पश्चात् वहाँ के स्थानीय कलाकार हाईस्कूल के इकलौते ड्राइंग मास्टर द्वारा मूर्ति बनवाई गई थी। प्रशासनिक बोर्ड की शासनावधि समाप्त होने की घड़ियों में इसे शीघ्रता से कम लागत में बनवाया गया था।
प्रश्न 15. शहरों के चौराहों पर किसी प्रसिद्ध व्यक्ति की मूर्ति लगाने का क्या उदेश्य होता है? उस मूर्ति के प्रति लोगों के क्या कर्तव्य होने चाहिए? 'नेताजी का चश्मा' पाठ को दृष्टि में रखते हुए उत्तर दीजिए।
उत्तर
शहरों के चौराहों पर किसी प्रसिद्ध व्यक्ति की मूर्ति लगाने का मुख्य उदेश्य उस महान व्यक्तित्व से सभी को परिचित कराना है। उसके प्रेरक व्यक्तित्व से सभी को अनुप्रेरित करना व उसके द्वारा किए गए महान कार्यों द्वारा दूसरों को शिक्षा देना है। उस महान व्यक्तित्व के माध्यम से देश की संस्कृति की सुरक्षा करना तथा भावी पीढ़ी को उनके कृत्यों के माध्यम से गौरवान्वित कराना है।
प्रश्न 16. हालदार साहब हमेशा चौराहे पर रुककर नेताजी की मूर्ति को क्यों निहारते थे? 'नेताजी का चश्मा' पाठ के आधार पर उत्तर लिखिए।
उत्तर
हालदार साहब हमेशा चौराहे पर रुकते थे और रुककर नेताजी की मूर्ति को निहारते थे क्योंकि वे एक सच्चे देखभक्त थे। नेता जी सुभाषचंद्र बोस के प्रति उनके हृदय में विशिष्ट सम्मान का भाव था जो उनकी मूर्ति को देखकर और भी प्रबल हो उठता था। उनके हृदय में नेताजी के कार्यों की स्मृति श्रद्धा का भाव जगा देती थी। वे देशभक्तों को सम्मान की दृष्टि से देखते थे। वे स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वालों के प्रति आदर भाव रखते थे और प्रकट भी करते थे। वे मन-ही-मन उनके प्रति नतमस्तक हो उठते थे । नेताजी की मूर्ति को निहार कर उन्हें प्रसन्नता का अनुभव होता था।
प्रश्न 17. जिस किसी ने नेताजी की मूर्ति की आँखों पर सरकंडे से बना चश्मा लगाया होगा, उसे आप किस तरह का व्यक्ति मानते हैं और क्यों?
उत्तर
जिस किसी ने भी नेताजी की मूर्ति की आँखों पर सरकंडे से बना चश्मा लगाया होगा, वह देश से एवं देश के महान नेताओं से अत्यंत प्रेम करने वाला व्यक्ति होगा । उसमें देशभक्ति की भावना प्रबल रूप से व्याप्त होगी और वह देश के प्रति अपने उत्तरदायित्वों से अच्छी तरह परिचित होगा । मैं मानता हूँ कि वह व्यक्ति गंभीर एवं सच्चा देशभक्त होगा, जो देश एवं देश के महान नेताओं के प्रति अत्यंत प्रेम की भावना रखता है। जब उसे नेताजी की मूर्ति बिना चश्मे के अधूरी लगी होगी, तब उसके अंदर देशप्रेम की भावना उत्पन्न हुई होगी। वह बार-बार चश्मा बदलने की आर्थिक स्थिति में भी नहीं होगा। अतः उसने कम लागत वाली सरकंडे का चश्मा लगनपूर्वक बना कर नेताजी की मूर्ति को पहनाया होगा और उनके व्यक्तित्व के अधूरेपन को समाप्त कर दिया होगा। अधिक संभावना यह है कि ऐसा किसी बच्चे ने किया होगा। हम अपनी ऐसी भावी पीढ़ी पर गर्व कर सकते हैं।
प्रश्न 18. यात्रा के दौरान हालदार साहब को किस बात से प्रफुल्लता प्राप्त होती थी ?
उत्तर
दो साल से हालदार साहब अपने काम से उस कस्बे से गुजरते रहे, जिसके चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोकी मूर्ति बनी हुई थी। उस मूर्ति पर वे अक्सर बदला हुआ चश्मा देखते थे- कभी गोल चश्मा, कभी चौकोर, कभी लाल, कभी काला, कभी धूप का चश्मा, कभी बड़े काँचों वाला गोगो चश्मा, पर कोई न कोई चश्मा होता ज़रूर। यह देखकर उनका मन कुछ क्षणों के लिए प्रफुल्लता से भर जाता।
प्रश्न 19. मूर्तिकार के द्वारा 'बनाकर पटक देने' के पीछे क्या भाव निहित है?
उत्तर
मूर्तिकार द्वारा 'मूर्ति बनाकर पटक देने का भाव यह है कि मूर्ति में सूक्ष्म बारीकियों का ध्यान अधिक नहीं रखा गया था। उसे देखने से लगता है कि इस मूर्ति को बनानेवाला कलाकार बहुत उच्च दर्जे का नहीं था और इसे बनाने के लिए उसे पर्याप्त समय भी नहीं मिला होगा। बहुत जल्दबाजी में उसे काम पूरा करने के लिए पर्याप्त राशि भी नहीं मिली होगी। किसी स्थानीय कलाकार ने ही उसे कम समय में तैयार करने का विश्वास दिलाया होगा। कम पूँजी एवं कम समय के कारण तथा उत्कृष्ट कलाकारिता के अभाव में बिना सूक्ष्म तथ्यों का ध्यान रखे किसी तरह मूर्ति बनाकर वह अपनी जिम्मेंदारी से मुक्त हो गया। मूर्ति बनाकर पटक देने' के पीछे यही भाव निहित है।
प्रश्न 20. अपने दैनिक कार्यों में किसी-न-किसी रूप में हम भी देश-प्रेम की भावना को किस प्रकार प्रकट कर सकते हैं?
उत्तर
देश-प्रेम प्रकट करने के लिए बड़े-बड़े नारों की आवश्यकता नहीं होती और न ही जवान, बलिष्ठ या सैनिक होने की ज़रूरत होती है। देश-प्रेम और देश भक्ति हृदय का भाव है, जिसे हम दैनिक कार्यों व छोटी-छोटी बातों से प्रकट कर सकते हैं। अपने आस-पास के लोगों के साथ प्रेम से रहना, सौहार्द की भावना रखना, परस्पर सहयोग स्थापित करना, अपने आस-पास के वातावरण को स्वच्छ एवं शांतिपूर्ण बनाए रखना । इन सबके द्वारा देश-प्रेम के भाव को स्थापित कर सकते हैं।