Extra Questions for Class 10 क्षितिज Chapter 17 संस्कृति - भदंत आनंद कौसल्यायन Hindi
Chapter 17 संस्कृति Kshitij Extra Questions for Class 10 Hindi
प्रश्न 1. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और पूछे गए प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए-
आग के आविष्कार में कदाचित् पेट की ज्वाला की प्रेरणा एक कारण रही। सुई-धागे के आविष्कार में शायद शीतोष्ण से बचने तथा शरीर को सजाने की प्रवृत्ति का विशेष हाथ रहा। अब कल्पना कीजिए उस आदमी की जिसका पेट भरा है, जिसका तन ढँका है, लेकिन जब वह खुले आकाश के नीचे सोया हुआ रात के जगमगाते तारों को देखता है, तो उसको केवल इसलिए नींद नहीं आती क्योंकि वह यह जानने के लिए परेशान है कि आख़िर यह मोती-भरा थाल क्या है? पेट भरने और तन ढकने की इच्छा मनुष्य की संस्कृति की जननी नहीं। पेट भरा और तन ढँका होने पर भी ऐसा मानव जो वास्तव में संस्कृत है, निठल्ला नहीं बैठ सकता। हमारी सभ्यता का एक बड़ा अंश हमें ऐसे संस्कृत आदमियों से ही मिला है, जिनकी चेतना पर स्थूल भौतिक कारणों का प्रभाव प्रधान रहा है, किंतु उसका कुछ हिस्सा हमें मनीषियों से भी मिला है, जिन्होंने तथ्य - विशेष को किसी भौतिक प्रेरणा के वशीभूत होकर नहीं, बल्कि उनके अपने अंदर ही सहज संस्कृति के ही कारण प्राप्त किया है। रात के तारों को देखकर न सो सकने वाला मनीषी हमारे आज के ज्ञान का ऐसा ही प्रथम पुरस्कर्ता था।
(क) संस्कृति के आविष्कार में एक भौतिक कारण है-
(i) आकाश के नीचे सोना
(ii) तारों को देखना
(iii) पेट की आग बुझाना
(iv) नींद न आना
(ख) संस्कृति के आविष्कार में मूल कारण रहा है-
(i) अध्ययन करना
(ii) अपनी बात समझा देना
(iii) जिज्ञासा का भाव
(iv) लोगों का मनोविज्ञान
(ग) 'मोती -भरा थाल' किसे कहा है?
(i) धरती को जो शैया बनी है।
(ii) आकाश को जो तारों से भरा है।
(iii) मनीषी को जो विचारों से भरा है ।
(iv) उस आग को जो भूख बुझाने के काम आई है।
(घ) 'मनीषी' से तात्पर्य है-
(i) मननशील
(ii) विद्वान
(iii) मनस्वी
(iv) यशस्वी
(ङ) निठल्ला कौन नहीं बैठ सकता?
(i) सभ्य व्यक्ति
(ii) मनीषी
(iii) जिज्ञासु
(iv) तन ढकने वाला
उत्तर
(क) (iii) पेट की आग बुझाना
(ख) (iii) जिज्ञासा का भाव
(ग) (ii) आकाश को जो तारों से भरा है।
(घ) (ii) विद्वान
(ङ) (i) सभ्य व्यक्ति
प्रश्न 2. निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के सही विकल्प चुनकर लिखिए-
हमारी समझ में मानव-संस्कृति की जो योग्यता आग व सुई-धागे का आविष्कार कराती है, वह भी संस्कृति है; जो योग्यता तारों की जानकारी कराती है, वह भी है; और जो योग्यता किसी महामानव से सर्वस्व त्याग कराती है, वह भी संस्कृति है । और सभ्यता ? सभ्यता है संस्कृति का परिणाम । हमारे खाने-पीने के तरीके, हमारे ओढ़ने-पहनने के तरीके हमारे गमनागमन के साधन, हमारे परस्पर कट मरने के तरीके; सब हमारी सभ्यता हैं। मानव की जो योग्यता उससे आत्म-विनाश के साधनों का आविष्कार कराती है, हम उसे संस्कृति कहें या असंस्कृति ? और जिन साधनों के बल पर वह दिन-रात आत्म-विनाश में जुटा हुआ है, उसे हम उसकी सभ्यता समझें या असभ्यता ? संस्कृति का यदि कल्याण की भावना से नाता टूट जाएगा तो वह असंस्कृति होकर ही रहेगी।
(क) लेखक के अनुसार संस्कृति का स्वरूप क्या नहीं है?
(i) नई वस्तुओं की खोज
(ii) खोज की गई वस्तुओं के प्रयोग का तरीका
(iii) विनाश के साधनों को जुटाने की प्रेरणा
(iv) भूखों को भोजन खिलाने की प्रेरणा
(ख) लेखक ने सभ्यता किसको कहा है?
(i) संस्कृति को
(ii) संस्कृति के परिणामों को
(iii) वैज्ञानिक साधनों की जानकारी न होने को
(iv) आविष्कृत विनाशक उपकरणों को
(ग) संस्कृति असंस्कृति कब कहलाती है?
(i) जब राक्षसी प्रवृत्तियाँ पनपने लगती है ।
(ii) जब कल्याणकारी नहीं रहती
(iii) जब दूसरी संस्कृतियों से टकराव होता है ।
(iv) जब मनुष्य अपनी संस्कृति को श्रेष्ठ मानने लगता है ।
(घ) सभ्यता और संस्कृति-
(i) अलग-अलग हैं।
(ii) एक ही हैं।
(iii) परस्पर मित्र हैं ।
(iv) परस्पर संबद्ध हैं।
(ङ) 'मानव की जो योग्यता उससे आत्म-विनाश के साधनों का आविष्कार कराती है, हम उसे उसकी संस्कृति कहें या असंस्कृति ? यह वाक्य निम्नलिखित में से किस प्रकार का है?
(i) साधारण वाक्य
(ii) मिश्र वाक्य
(iii) संयुक्त वाक्य
(iv) क्रिया-विशेषण उपवाक्य
उत्तर
(क) (iv) भूखों को भोजन खिलाने की प्रेरणा
(ख) (ii) संस्कृति के परिणामों को
(ग) (ii) जब कल्याणकारी नहीं रहती
(घ) (iv) परस्पर संबद्ध हैं
(ङ) (ii) मिश्र वाक्य
प्रश्न 3. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
जिस योग्यता, प्रवृत्ति अथवा प्रेरणा के बल पर आग का व सुई-धागे का आविष्कार हुआ, वह है, व्यक्ति विशेष की संस्कृति; और उस संस्कृति द्वारा जो आविष्कार हुआ, जो चीज़ उसने अपने तथा दूसरों के लिए आविष्कृत की उसका नाम है- सभ्यता । जिस व्यक्ति में पहली चीज़, जितनी अधिक व जैसी परिष्कृत मात्रा में होगी, वह व्यक्ति उतना ही अधिक व वैसा ही परिष्कृत आविष्कर्ता होगा।
(क) आग और सुई-धागे के आविष्कार के प्रेरक कारण क्या माने गए हैं?
(ख) लेखक संस्कृति और सभ्यता की क्या पहचान बताता है?
(ग) परिष्कृत आविष्कर्ता में कौन-सा गुण अपेक्षित है और क्यों?
उत्तर
(क) आग और सुई के आविष्कार का प्रेरक कारण मुख्य रूप से मनुष्य की आवश्यकता रहा है क्योंकि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। भोजन को पकाकर खाना, शीतोष्ण से बचना आदि आग के आविष्कार के प्रेरक कारण रहे हैं। इसी क्रम में तन को ढकने और शरीर को सजाने की प्रवृत्ति ने सुई-धागे का आविष्कार किया और उसके प्रेरक कारण बने ।
(ख) व्यक्ति की योग्यता, प्रवृत्ति अथवा प्रेरणा संस्कृति है, जिसके बल पर वह आविष्कार करता है, जबकि उसके द्वारा अपने लिए तथा दूसरों के लिए किया गया आविष्कार सभ्यता है। आग व सुई-धागे का आविष्कार व्यक्ति विशेष की संस्कृति है और जो चीज़ उसने अपने तथा दूसरों के लिए आविष्कृत की है, उसका नाम सभ्यता है ।
(ग) परिष्कृत आविष्कर्ता में सुसंस्कृत होने का गुण अपेक्षित है क्योंकि जो चीज़ जितनी परिष्कृत होगी, अच्छी होगी। उतना ही आविष्कार करने वाले सुसंस्कृत होंगे।
प्रश्न 4. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लीखिए-
हमारी समझ में मानव-संस्कृति की जो योग्यता आग व सुई-धागे के आविष्कार कराती है, वह भी संस्कृति है, जो योग्यता तारों की जानकारी कराती है, वह भी है; और जो योग्यता किसी महामानव से सर्वस्व त्याग कराती है, वह भी संस्कृति है । और सभ्यता ? सभ्यता है संस्कृति का परिणाम । हमारे खाने-पीने के तरीके, सब हमारी सभ्यता है। मानव की जो योग्यता उससे आत्मविनाश के साधनों का आविष्कार कराती है, हम उसे संस्कृति कहें या असंस्कृति ? और जिन साधनों के बल पर वह दिन-रात आत्म-विनाश में जुटा हुआ है, उन्हें हम उसकी सभ्यता समझें या असभ्यता ? संस्कृति का यदि कल्याण की भावना से नाता टूट जाएगा तो वह असंस्कृति होकर ही रहेगी और ऐसी संस्कृति का अवश्यंभावी परिणाम असभ्यता के अतिरिक्त दूसरा क्या होगा ?
(क) लेखक ने योग्यता के किन-किन रूपों को संस्कृति माना है?
(ख) सभ्यता के विषय में लेखक की धारणा क्या है? वह किसे असभ्यता मानता है?
(ग) लेखक की दृष्टि में संस्कृति का मूल आधार क्या है? उसके अभाव में वह क्या कहलाती है?
उत्तर
(क) लेखक ने आवश्यकताजन्य आविष्कार करने की योग्यता को, सुदूर स्थित तारों तथा अन्य खगोलीय पिंडों के बारे में जानकारी प्राप्त करने की योग्यता को तथा परार्थ सर्वस्व त्याग कर सकने की योग्यता को संस्कृति माना है।
(ख) लेखक संस्कृति के परिणाम को ही सभ्यता मानता है जिसमें हमारे समस्त तौर-तरीके तथा व्यवहार आदि सम्मिलित रहते हैं । लेखक की दृष्टि में अपनी क्षमता का अनुचित उपयोग करना तथा मानव मात्र का हित नहीं, बल्कि अहित सोचना और करना ही असभ्यता है ।
(ग) संस्कृति का मूल आधार मानव जाति का कल्याण और विकास है। इन धारणाओं के अभाव में संस्कृति, असंस्कृति अथवा असभ्यता कहलाती है ।
प्रश्न 5. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
संस्कृति के नाम से जिस कूड़े-करकट के ढेर का बोध होता है, वह न संस्कृति है न रक्षणीय वस्तु । क्षण-क्षण परिवर्तन होने वाले संसार में किसी भी चीज़ को पकड़कर बैठा नहीं जा सकता। मानव ने जब-जब प्रज्ञा और मैत्री भाव से किसी नए तथ्य का दर्शन किया है तो उसने कोई वस्तु नहीं देखी है, जिसकी रक्षा के लिए दलबंदियों की ज़रूरत है। मानव संस्कृति एक अविभाज्य वस्तु है और उसमें जितना अंश कल्याण का है, वह अकल्याणकर की अपेक्षा श्रेष्ठ ही नहीं स्थायी भी है।
(क) लेखक ने किस संस्कृति को संस्कृति नहीं माना है और क्यों ?
(ख) प्रज्ञा और मैत्री भाव किस नए तथ्य के दर्शन करवा सकता है और उसकी क्या विशेषता है।
(ग) मानव संस्कृति की विशेषता लिखिए ।
उत्तर
(क) आजकल संस्कृति के नाम पर जिस कूड़े-करकट के ढेर का बोध होता है उसे लेखक ने संस्कृति नहीं माना है क्योंकि संस्कृति एक अविभाज्य वस्तु है और इसमें कल्याण का अंश है, जबकि आजकल की संस्कृति अकल्याणकारी व दलबंदियों पर टिकी है I
(ख) प्रज्ञा और मैत्री भाव किसी नए तथ्य का दर्शन करा सकता है, जिसने ऐसी कोई वस्तु नहीं देखी है, जिसकी रक्षा के लिए दलबंदियों की ज़रूरत हो । प्रज्ञा जिस संस्कृति के दर्शन कराती है, वह अविभाज्य है।
(ग) मानव संस्कृति एक अविभाज्य वस्तु है वह अकल्याणकर की अपेक्षा श्रेष्ठ ही नहीं स्थायी भी है।
प्रश्न 6. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
पेट भरने और तन ढँकने की इच्छा मनुष्य की संस्कृति की जननी नहीं है। पेट भरा और तन ढँका हो पर भी ऐसा मानव जो वास्तव में संस्कृत है, निठल्ला नहीं बैठ सकता। हमारी सभ्यता का एक बड़ा अंश हमें ऐसे संस्कृत आदमियों से ही मिला है, जिनकी चेतना पर स्थूल भौतिक कारणों का प्रभाव प्रधान रहा है, किंतु उसका कुछ हिस्सा हमें मनीषियों से भी मिला है, जिन्होंने तथ्य - विशेष को किसी भौतिक प्रेरणा के वशीभूत होकर नहीं, बल्कि उनके अपने अंदर की सहज संस्कृति के ही कारण प्राप्त किया है। रात के तारों को देखकर न सो सकने वाला मनीषी हमारे आज के ज्ञान का ऐसा ही प्रथम पुरस्कर्ता था।
(क) संस्कृत व्यक्ति की कौन-सी विशेषताएँ बताई गई हैं?
(ख) रात के तारों को देखकर न सो सकने वाले मनीषी को प्रथम पुरस्कर्ता क्यों कहा गया है ?
(ग) पेट भरना या तन ढँकना मनुष्य की संस्कृति की जननी क्यों नहीं है?
उत्तर
(क) संस्कृत व्यक्ति कभी खाली नहीं बैठता। वह सदा अपनी बुद्धि व विवेक के द्वारा नए अनुसंधान व खोजों में लगा रहता है। अपनी योग्यता के बल पर वह नई खोजों का आविष्कार कर संस्कृत व्यक्ति कहलाता है।
(ख) रात के तारों को देखकर न सो सकने वाले मनीषी को प्रथम पुरस्कर्ता इसलिए कहा गया है क्योंकि पेट भरा व तन ढँका होने के बाद भी वह निठल्ला नहीं बैठा और तारों भरे मोती के थाल के रहस्य को जानने में लगा रहा अर्थात नए आविष्कारों के अनुसंधान में लगा रहा।
(ग) पेट भरना या तन ढँकना मनुष्य की संस्कृति की जननी नहीं है क्योंकि यह ज्ञान तो मनुष्य को अपने पूर्वजों से मिला है, जबकि संस्कृत व्यक्ति तो किसी नए ज्ञान की खोज करता है।
प्रश्न 7. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
और सभ्यता? सभ्यता है संस्कृति का परिणाम । हमारे खाने-पीने के तरीके, हमारे ओढ़ने-पहनने के तरीके, हमारे गमनागमन के साधन, हमारे परस्पर कट-मरने के तरीके: सब हमारी सभ्यता हैं। मानव की जो योग्यता उससे आत्म-विनाश के साधनों का आविष्कार कराती है, हम उसे उसकी संस्कृति कहें या असंस्कृति? और जिन साधनों के बल पर वह दिन-रात आत्म-विनाश में जुटा हुआ है, उन्हें हम उसकी सभ्यता समझें या असभ्यता ? संस्कृति का यदि कल्याण की भावना से नाता टूट जाएगा तो वह असंस्कृति होकर ही रहेगी और ऐसी संस्कृति का अवश्यंभावी परिणाम असभ्यता के अतिरिक्त दूसरा क्या होगा ?
(क) सभ्यता को संस्कृति का परिणाम क्यों कहा गया है ?
(ख) आत्म-विनाश के साधनों का आविष्कार कराने की मानव की योग्यता को हम उसकी संस्कृति कहें या असंस्कृति और क्यों ?
(ग) कल्याण - भाव से रहित संस्कृति का क्या परिणाम होगा?
उत्तर
(क) सभ्यता को संस्कृति का परिणाम इसलिए कहा है क्योंकि सभ्यता संस्कृति से उत्पन्न होती है । संस्कृति आविष्कार कर मानव कल्याण करती है और सभ्यता संस्कृति से खान-पान, व्यवहार व जीवन जीने की कला सीखती है ।
(ख) जब मानव का ज्ञान आत्मविनाश के साधनों का आविष्कार करने लगता है, तब वह संस्कृति न रहकर असंस्कृति बन जाता है क्योंकि संस्कृति मानव कल्याण से जुड़ी है और जो आविष्कार मानव का अहित करें व संस्कृति नहीं हो सकता ।
(ग) कल्याण-भाव से रहित संस्कृति विनाशकारी सभ्यता को जन्म देगी और असंस्कृति कहलाएगी, जिससे मानवता ख़तरे में पड़ जाएगी।
प्रश्न 8. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनकर लिखिए-
हमारी समझ में मानव संस्कृति की जो योग्यता आग व सुईं-धागे का आविष्कार कराती है; वह भी संस्कृति है जो योग्यता तारों की जानकारी कराती है, वह भी है; और जो योग्यता किसी महामानव से सर्वस्व त्याग कराती है; वह भी संस्कृति है । और सभ्यता? सभ्यता है संस्कृति का परिणाम । हमारे खाने-पीने के तरीके, हमारे ओढ़ने- पहनने के तरीके, हमारे गमना-गमन के साधन, हमारे परस्पर कट-मरने के तरीके; सब हमारी सभ्यता हैं। मानव की जो योग्यता उससे आत्म-विनाश के साधनों का आविष्कार कराती है, हम उसे उसकी संस्कृति कहें या असंस्कृति ? और जिन साधनों के बल पर वह दिन-रात आत्म-विनाश में जुटा हुआ है, उन्हें हम उसकी सभ्यता समझें या असभ्यता? संस्कृति का यदि कल्याण की भावना से नाता टूट जाएगा तो वह असंस्कृति होकर ही रहेगी और ऐसी संस्कृति का अवश्यंभावी परिणाम असभ्यता के अतिरिक्त दूसरा क्या होगा ?
(क) मानव की कौन-सी योग्यता संस्कृति की जननी है ?
(i) सुई-धागे की आविष्कारक
(ii) नक्षत्रों की सैर करने वाली
(iii) संहारक अस्त्र-शस्त्रों को बनाने वाली
(iv) मानव की त्यागमयी भावना
(ख) 'सभ्यता' के बारे में कौन-सा कथन सत्य नहीं है?
(i) सभ्यता हमारे रहन-सहन के तौर तरीकों का परिचय देती है ।
(ii) सभ्यता संस्कृति का परिणाम है।
(iii) सभ्यता हमें संपन्न बनाती है।
(iv) सभ्यता के अंतर्गत हमारे मरने कटने के तरीके भी आते हैं।
(ग) लेखक की दृष्टि में असंस्कृति का स्वरूप है-
(i) भौतिक सुख-साधनों का आविष्कार ।
(ii) मानवता के कल्याण हेतु आविष्कृत संसाधन ।
(iii) आत्मविनाश के साधनों का आविष्कार ।
(iv) मानव की मूल आवश्यकताओं की पूरक वस्तुएँ ।
(घ) संस्कृति असभ्यता बन जाती है-
(i) हितकारी मानवीय रूप को दिखाकर ।
(ii) सभ्यता के अभद्र स्वरूप को बढ़ावा देकर ।
(iii) सामाजिक भेद-भाव को बढ़ाकर ।
(iv) मारक अस्त्रों के उपयोग से विनाश के कार्यों में लगकर ।
(ङ) 'योग्यता' का समानार्थक नहीं है-
(i) प्रतिष्ठा
(ii) क्षमता
(iii) समर्थता
(iv) अर्हता
उत्तर
(क) (iv) मानव की त्यागमयी भावना
(ख) (iv) सभ्यता के अंतर्गत हमारे मरने कटने के तरीके भी आते हैं।
(ग) (iii) आत्मविनाश के साधनों का आविष्कार ।
(घ) (iv) मारक अस्त्रों के उपयोग से विनाश के कार्यों में लगकर ।
(ङ) (i) प्रतिष्ठा
प्रश्न 9. निम्नलिखित गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प छाँटकर लिखिए-
जिस योग्यता, प्रवृत्ति अथवा प्रेरणा के बल पर आग का व सुई-धागे का आविष्कार हुआ, वह है व्यक्ति-विशेष आविष्कृत की, उसका नाम है सभ्यता की संस्कृति; और उस संस्कृति द्वारा जो आविष्कार हुआ, जो चीज़ उसने अपने तथा दूसरों के लिए जिस व्यक्ति में पहली चीज़, जितनी अधिक व जैसी परिष्कृत मात्रा में होगी, वह व्यक्ति उतना ही अधिक व वैसा ही परिष्कृत आविष्कर्ता होगा। एक संस्कृत व्यक्ति किसी नई चीज़ की खोज करता है; किंतु उसकी संतान को अपने पूर्वज से अनायास ही प्राप्त हो जाती है। जिस व्यक्ति की बुद्धि ने अथवा उसके विवेक ने किसी भी नए तथ्य का दर्शन किया, वह व्यक्ति ही वास्तविक संस्कृत व्यक्ति है।
(क) लेखक के अनुसार व्यक्ति विशेष की संस्कृति का स्वरूप है-
(i) व्यक्ति विशेष के द्वारा की गई खोज ।
(ii) व्यक्ति-विशेष के द्वारा उपयोगी वस्तुओं का अनुसंधान ।
(iii) व्यक्ति विशेष की उत्कट अभिलाषा जो खोज के लिए प्रेरित करती है ।
(iv) आविष्कार कराने वाली योग्यता और प्रवृत्ति ।
(ख) सभ्यता नाम है, उस वस्तु का-
(i) जो खोजी गई है।
(ii) जो उपयोगी है।
(iii) जो उपयोगी और संस्कृति द्वारा आविष्कृत है।
(iv) जो अपने आप में विशिष्ट है।
(ग) परिष्कृत आविष्कर्ता कौन होता है?
(i) जो उपयोगी वस्तुओं की खोज करे ।
(ii) जो उपयोगी वस्तुओं का निर्माण करता है ।
(iii) जो नई-नई खोजों को प्रस्तुत करे।
(iv) जो पूर्णतः परिष्कृत हो ।
(घ) वास्तविक संस्कृत व्यक्ति कहा जाता है उसको-
(i) जो नई चीज़ की खोज करता है ।
(ii) जो विशिष्ट पदार्थों का अनुसंधान करे ।
(iii) जो पूर्वजों से प्राप्त वस्तुओं का परिष्कार करता।
(iv) जो विवेक के आधार पर किसी नए तथ्य का दर्शन करता है।
(ङ) 'एक संस्कृत व्यक्ति किसी नई चीज़ की खोज करता है; किंतु उसकी संतान को वह अपने पूर्वज से अनायास ही प्राप्त हो जाती है।' प्रस्तुत वाक्य का प्रकार है-
(i) सरल
(ii) संयुक्त
(iii) मिश्र
(iv) योजक
उत्तर
(क) (iv) आविष्कार कराने वाली योग्यता और प्रवृत्ति
(ख) (iii) जो उपयोगी और संस्कृति द्वारा आविष्कृत हैं ।
(ग) (iv) जो पूर्णतः परिष्कृत हो ।
(घ) (iv) जो विवेक के आधार पर किसी नए तथ्य का दर्शन करता है ।
(ङ) (ii) संयुक्त
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. 'संस्कृति' पाठ में 'सभ्यता' किसे माना गया है? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर
'संस्कृति' पाठ के अनुसार सभ्यता का विकास संस्कृत से ही होता है । सभ्यता, संस्कृति का ही परिणाम है। हमारे खाने-पीने के तरीके, ओढ़ने- पहनने के तरीके, हमारे गमन- आगमन के साधन, हमारे परस्पर कट-मरने के तरीके आदि सब हमारी सभ्यता ही है। संस्कृति एक आंतरिक संस्कार है और सभ्यता एक बाहरी संस्कार है। लेखक के अनुसार संस्कृति से ही सभ्यता का जन्म हुआ है।
प्रश्न 2. संस्कृतिक संस्कृति बन जाती है? पाठ के आधार पर लिखिए ।
उत्तर
संस्कृति का अर्थ केवल आविष्कार करना नहीं होता है । यह आविष्कार जब मानव कल्याण की भावना से जुड़ जाता है, तो हम उसे संस्कृति कहते हैं, किंतु जब आविष्कार करने की योग्यता का उपयोग विनाश करने के लिए किया जाता है, तब यह संस्कृति ही असंस्कृति बन जाती है। अतः यह कहना उचित होगा कि संस्कृति मानव के कल्याण के लिए होती है और उसके विकास तथा ज्ञान का मार्ग प्रशस्त करती है, जबकि असंस्कृति का रूप अकल्याणकारी होता है और वह मानवता को विनाश की ओर ले जाती है।
प्रश्न 3. आग की खोज एक बहुत बड़ी खोज क्यों मानी जाती है? इस खोज के पीछे रही प्रेरणा के मुख्य स्रोत क्या रहे होंगे?
उत्तर
आग की खोज मानव द्वारा की गई एक बड़ी खोज मानी जाती है, क्योंकि इस खोज से उसके जीवन में आमूल परिवर्तन आया और उसके जीवन जीने का ढंग बदल गया। अभी तक वह अग्नि के स्वरूप से अनभिज्ञ था। परंतु जैसे ही उसने अग्नि का आविष्कार किया, वैसे ही उसके द्वारा की गई यह खोज उसके लिए एक विशिष्ट प्रसन्नता का आधार बनी। भोजन पका कर खाना, सर्दी से बचना, अंधकार से सुरक्षा- ये कुछ कारण उसकी खोज की प्रेरणा के स्रोत रहे होंगे। इसी प्रेरणा के बल पर उसने आग का आविष्कार किया होगा।
प्रश्न 4. आग के आविष्कार के पीछे मानव की कौन-सी प्रेरणा रही होगी? अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर
आग मानव जीवन की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण खोज रही। आग के आविष्कार ने मानव-जीवन और सभ्यता को बदलकर रख दिया। इसके बाद मानव भोजन पकाकर खाने लगा। माँस भूनकर खाया जाने लगा । आग से प्रकाश भी मानव को मिला और कड़कड़ाती शीत में भी आग के ताप ने राहत प्रदान की। आग के आविष्कार के पीछे मानव के पेट की ज्वाला ही प्रेरणा रही होगी। इसके साथ-साथ प्रकाश व ताप पाने की अधीरता ने भी आग के आविष्कार के लिए मानव को प्रेरित किया होगा। आग के आविष्कार ने मानव जीवन को सरल और सुगम व सभ्य बनाया इसलिए आग को ' अग्निदेवता' का दर्जा दिया गया है।
प्रश्न 5. वास्तविक अर्थों में 'सभ्य और संस्कृत व्यक्ति' में क्या अंतर है?
उत्तर
अपनी बुद्धि के बल पर किसी नए तथ्य का दर्शन करने वाला व्यक्ति, वास्तविक अर्थों में 'संस्कृत व्यक्ति' है। एक संस्कृत व्यक्ति किसी नवीन वस्तु की खोज करता है और वह वस्तु उसकी संतान को सहजता से अनायास ही प्राप्त हो जाती है। ऐसी स्थिति में संतान अपने पिता की तरह सभ्य अवश्य ही बन जाए, किंतु अपने पिता की तरह सुसंस्कृत नहीं बन सकती । उदाहरणतया न्यूटन संस्कृत मनुष्य थे क्योंकि उन्होंने अपनी बुद्धि के बल पर गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की खोज की। आज के विद्यार्थी भौतिकी के इस सिद्धांत से न केवल परिचित हैं, अपितु इससे जुड़ी अनेक बातों का ज्ञान रखते हैं। ऐसे विद्यार्थी न्यूटन की अपेक्षा अधिक सभ्य चाहे ही कहे जाएँ, परंतु न्यूटन जितना संस्कृत उन्हें नहीं कहा जा सकता।
प्रश्न 6. 'संस्कृति' पाठ में संस्कृति का मूल तत्त्व किसे माना गया है? उसके अभाव में संस्कृति क्या कहलाती है? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर
पाठ 'संस्कृति' में संस्कृति का मूल तत्व उसमें छिपी मानव-कल्याण की भावना है। यदि संस्कृति से कल्याण की भावना हट जाएगी, तो वह असंस्कृति कहलाएगी। ऐसी असंस्कृति का परिणाम असभ्यता होगी, जबकि संस्कृति से सभ्यता का जन्म व विकास होता है। मानव संस्कृति एक अविभाज्य वस्तु है । इसका बँटवारा नहीं किया जा सकता। इसके मूल में छिपी मानव कल्याण की भावना मनुष्य से त्याग और आविष्कार कराती है, जिससे जन्मी सभ्यता से हमारे रहन-सहन व विकास का पता चलता है । सभ्यता और संस्कृति दो अलग-अलग वस्तुएँ होने पर भी एक-दूसरे से अभिन्न रूप से जुड़ी हैं। इनके मूल में मानव-कल्याण ही निहित है।
प्रश्न 7. वास्तविक अर्थों में 'संस्कृत व्यक्ति' किसे कहा जा सकता है? 'संस्कृति' पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए ।
उत्तर
पाठ संस्कृति के आधार पर 'संस्कृत व्यक्ति' उसे कहा जा सकता है, जिसने अपनी बुद्धि और विवेक के आधार पर किसी नए तथ्य की खोज की हो, नई और उपयोगी वस्तुओं का आविष्कार किया हो। जिसने अपनी योग्यता के बल पर मानव कल्याण हेतु अनुसंधान किए हों, वही व्यक्ति संस्कृत कहलाने योग्य हो सकता है। जैसे- न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत खोजा, वह वास्तव में संस्कृत व्यक्ति था। संस्कृत व्यक्ति पेट भरा होने पर भी निठल्ला नहीं बैठ सकता। वह अपनी योग्यता और विवेक के बल पर अपना सर्वस्व त्यागकर मानव कल्याण के लिए दा नई चीज़ों के आविष्कार में लगा रहता है।
प्रश्न 8. 'संस्कृति' पाठ में लेखक के अनुसार सभ्यता क्या है?
उत्तर
'संस्कृति' पाठ के अनुसार सभ्यता का विकास संस्कृत से ही होता है । सभ्यता, संस्कृति का ही परिणाम है । हमारे खाने-पीने के तरीके, ओढ़ने-पहनने के तरीके, हमारे गमन - आगमन के साधन, हमारे परस्पर कट-मरने के तरीके आदि सब हमारी सभ्यता ही है। संस्कृति एक आंतरिक संस्कार है और सभ्यता एक बाहरी संस्कार है। लेखक के अनुसार संस्कृति से ही सभ्यता का जन्म हुआ है।
प्रश्न 9. संस्कृति के स्वरूप के संदर्भ में लेखक का दृष्टिकोण स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर
संस्कृति के स्वरूप के संदर्भ में लेखक भदंत आनंद जी का दृष्टिकोण यह है कि संस्कृति मानव से नई वस्तु का आविष्कार कराती है और मानव में लोक-कल्याण व सर्वस्व त्याग की भावना का उदय करती है । सभ्यता इसी संस्कृति का परिणाम है। संस्कृति मन के भावों का परिष्कृत रूप है। इसमें परोपकार व धैर्य का समावेश होता है। संस्कृति एक आंतरिक अनुभूति है और सभ्यता एक बाहरी प्रभाव है। संस्कृति एक अविभाज्य तत्व है । जिस व्यक्ति की बुद्धि अथवा विवेक ने किसी भी नए तथ्य का दर्शन किया, वह व्यक्ति ही वास्तविक संस्कृत व्यक्ति है । लेखक ने उदाहरण देते हुए कहा है कि जिस योग्यता, प्रवृत्ति व बल के आधार पर सुई-धागे व आग का आविष्कार हुआ, वह व्यक्ति विशेष की संस्कृति है।
प्रश्न 10. रात के तारों को देखकर न सो सकने वाले मनीषी को प्रथम पुरस्कर्ता क्यों कहा गया है? 'संस्कृति' पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए ।
उत्तर
रात के तारों को देखकर न सो सकने वाले मनीषी को प्रथम पुरस्कर्ता इसलिए कहा गया है क्योंकि उसका पेट भरा होने और तन ढका होने के बावजूद भी वह यह जानने के लिए बेचैन था कि ये मोती भरा थाल आखिर है क्या? ऐसा संस्कृत व्यक्ति कभी खाली नहीं बैठ सकता। वह कोई नई खोज करके ही दम लेता । वह अपनी बुद्धि और विवेक के बल पर अनुसंधान में जुट जाता है । वास्तव में, ऐसा व्यक्ति ही संस्कृत कहलाने का अधिकारी है और वह प्रथम पुरस्कर्ता कहलाता है। वह उन चीज़ों की खोज में नहीं लगता जो उसके जीवित रखने के लिए आवश्यक हैं, बल्कि उन नई वस्तुओं की खोज की तरफ़ अग्रसर होता है जो अपने अंदर की सहज संस्कृति के कारण प्राप्त हुए हैं।
प्रश्न 11. आपके विचार से सुई-धागे का आविष्कार क्यों हुआ होगा?
उत्तर
हमारे विचार में आवश्यकता आविष्कार की जननी है । जब शीत से बचने के लिए मनुष्य ने अपने शरीर का बचाव करने की बात सोची होगी और अपने शरीर को सजाने के लिए सोचा होगा, तभी उसने सुई-धागे के आविष्कार के लिए प्रयास किया होगा । इसी आविष्कार करने की शक्ति ने मानव को सुई-धागे का आविष्कार करने की प्रेरणा दी। यही योग्यता, प्रवृत्ति और प्रेरणा ही व्यक्ति विशेष की संस्कृति है।
प्रश्न 12. वास्तविक अर्थों में ‘संस्कृत व्यक्ति' किसे कहा जा सकता है? 'संस्कृति' पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर
पाठ संस्कृति के आधार पर 'संस्कृत व्यक्ति' उसे कहा जा सकता है, जिसने अपनी बुद्धि और विवेक के आधार पर किसी नए तथ्य की खोज की हो, नई और उपयोगी वस्तुओं का आविष्कार किया हो। जिसने अपनी योग्यता के बल पर मानव कल्याण हेतु अनुसंधान किए हों, वही व्यक्ति संस्कृत कहलाने योग्य हो सकता है। जैसे- न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत खोजा, वह वास्तव में संस्कृत व्यक्ति था। संस्कृत व्यक्ति पेट भरा होने पर भी निठल्ला नहीं बैठ सकता। वह अपनी योग्यता और विवेक के बल पर अपना सर्वस्व त्यागकर मानव कल्याण के लिए दा नई चीज़ों के आविष्कार में लगा रहता।
प्रश्न 13. 'संस्कृति' पाठ में लेखक ने आग और सुई-धागे के आविष्कारों से क्या स्पष्ट किया है?
उत्तर
पाठ 'संस्कृति' में लेखक भदंत आनंद जी ने आग और सुई-धागे के आविष्कारों से यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि ये दोनों ही आविष्कार मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किए गए। अपने को ठंड से बचाने और भोजन व मांस को पकाकर खाने की प्रेरणा ने इस आविष्कार में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की होगी तथा बाद में अपनी अनेक उपयोगिताओं के कारण अग्नि को देवता माना गया होगा। सुई-धागे के आविष्कार के पीछे भी मानव की अपने को शीत से बचाने के लिए कपड़े सिलने व पहनने की आवश्यकता ही प्रमुख थी। इस आविष्कार से मानव अपने शरीर को कष्टों व मौसम के प्रहार से बचा सका।
प्रश्न 14. 'संस्कृति' पाठ के आधार पर बताइए कि हमें सभ्यता किनसे मिली है और किस तरह?
उत्तर
'संस्कृति' पाठ में लेखक ने बताया है कि संस्कृति जीवन का चिंतन और कलात्मक सृजन से भरा रूप है, जबकि लेखक के अनुसार मनुष्य के रहन-सहन का तरीका सभ्यता के अंतर्गत आता है । इस दृष्टि से सभ्यताको संस्कृति का विकसित रूप कहा जा सकता है। न्यूटन ने अपनी बुद्धि-शक्ति गुरुत्वाकर्षण के रहस्य की खोज की इसलिए उसे संस्कृत मानव कह सकते हैं। आज मनुष्य के पास भले ही इस विषय पर अधिक जानकारी होगी, पर उसमें वह बुद्धि-शक्ति नहीं है, जो न्यूटन के पास थी, वह इस विषय पर तो केवल न्यूटन द्वारा दी गई जानकारी को ही आगे बढ़ा रहा है। इसलिए वह न्यूटन से अधिक सभ्य तो है, किंतु संस्कृत नहीं। इस प्रकार हमें सभ्यता आग और सुई-धागे के गुमनाम आविष्कारकों तथा न्यूटन जैसे संस्कृत मानवों से उनके आविष्कारों या ज्ञान के द्वारा प्राप्त हुई है, जो निरंतर आधुनिक मानवों द्वारा आगे बढ़ रही है।
प्रश्न 15. 'संस्कृति' पाठ का लेखक कल्याण की भावना को ही संस्कृति और सभ्यता का महत्त्वपूर्ण तत्व मानता है'- स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर
संस्कृति से ही सभ्यता का जन्म होता है। संस्कृति मानव से किसी नई वस्तु का आविष्कार कराती है तथा मनुष्य में सब कुछ त्याग देने की भावना का भाव उत्पन्न करती है । यही संस्कृति, सभ्यता को उत्पन्न करती है । मानव संस्कृति एक अविभाज्य तत्व है। इसमें सदा ही लोक-कल्याण का भाव निहित होता है। महात्मा बुद्ध ने मानव-कल्याण के लिए अपना राज- पाठ छोड़कर शांति की प्रतिष्ठा की, ताकि तृषित जनता सुखी रह सके। कार्ल मार्क्स ने भी अपना सारा जीवन कष्टों में व्यतीत किया, ताकि मज़दूर सुखी हो। अतः लोक कल्याण का भाव ही संस्कृति और सभ्यता का महत्त्वपूर्ण तत्व है, जिनके कारण ही भारतीय संस्कृति व सभ्यता अटूट है।
प्रश्न 16. मनुष्य की किन महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए 'आग' और 'सुई-धागे' का आविष्कार हुआ? 'संस्कृति' पाठ को आधार बनाकर उत्तर दीजिए ।
उत्तर
'आग' का आविष्कार मानव की उदर-पूर्ति, ऊष्मा पाने तथा प्रकाश पाने जैसी आवश्यकताओं के लिए किया गया होगा। सुई-धागे वस्त्रों को सिलने के काम आते हैं। वस्त्र मानव की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है। मानव के शरीर के रक्षण के लिए वस्त्र अत्यंत उपयोगी हैं अतः उन्हें सिलने के लिए सुई-धागे का आविष्कार किया गया।