Extra Questions for Class 10 संचयन Chapter 2 सपनों के-से दिन - गुरदयाल सिंह Hindi

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Extra Questions for Class 10 संचयन Chapter 2 सपनों के-से दिन - गुरदयाल सिंह Hindi

Chapter सपनों के-से दिन Sanchayan Extra Questions for Class 10 Hindi

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. 'सपनों के से दिन' पाठ के आधार पर बताइए कि कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं डालती । उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर

कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती। अपनी इस बात को स्पष्ट करने के लिए लेखक श्री गुरदयाल सिंह अपने बचपन की एक घटना की ओर संकेत करते हैं। वे कहते हैं कि बचपन में उनके आधे से अधिक साथी हरियाणा या राजस्थान से व्यापार के लिए आए परिवारों से संबंधित थे। उनके कुछ शब्द सुनकर लेखक व उनके अन्य साथियों को हँसी आ जाती थी। बहुत से शब्द समझ में नहीं आते थे। किंतु जब वे सब मिलकर खेलते थे, तब सभी को एक दूसरे की बात खूब अच्छी तरह समझ में आ जाती थी और खेल में किसी प्रकार की बाधा नहीं आती थी।


प्रश्न 2. लेखक के बचपन में बच्चों के न पढ़ पाने के लिए अभिभावक अधिक जिम्मेदार थे। इससे आप कितना सहमत हैं?

उत्तर

लेखक के बचपन में अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने का प्रयास नहीं करते थे। परचूनिये और आढ़तीये जैसे कारोबारी भी अध्यापक से कहते थे कि मास्टर जी, हमने इसे कौन-सा तहसीलदार लगवाना है। थोड़ा बड़ा हो जाए तो पंडत घनश्याम दास से मुनीमी का काम सिखा देंगे। स्कूल में अभी तक यह कुछ भी नहीं सीख पाया है। इससे स्पष्ट है कि बच्चों की पढ़ाई न हो पाने के लिए अभिभावक अधिक जिम्मेदार थे।


प्रश्न 3. 'सपनों के से दिन' के पाठ में लेखक को कब लगता था कि वह भी एक फौजी है? कारण सहित लिखिए।

उत्तर

'सपनों के से दिन' पाठ में जब लेखक स्कूल में नई वरदी, पॉलिश किए शूज़ तथा मोजे आदि पहनकर जाता तथा पी०टी० साहब के संचालन में परेड करते समय स्काउट की झंडियाँ हाथों में लेकर ठक-ठककर अकड़कर चलता, तो उसे लगता था कि वह भी एक फ़ौजी ही है ।


प्रश्न 4. पी०टी० अध्यापक कैसे स्वभाव के व्यक्ति थे? विद्यालय के कार्यक्रमों में उनकी कैसी रुचि थी? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर

पी०टी० साहब बहुत ही सख़्त व अनुशासनप्रिय व्यक्ति थे । विद्यालय में वे ज़रा-सी गलती होने पर विद्यार्थियों की चमड़ी उधेड़ देते थे । विद्यालय की प्रार्थना सभा में वे बच्चों को पंक्तिबद्ध खड़ा करते थे और यदि कोई बच्चा थोड़ी-सी भी शरारत करता, तो उसकी खाल खींच लेते थे । स्काउट परेड के आयोजन में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती थी। बच्चों को अपने मार्गदर्शन में कुशलतापूर्वक परेड करवाते थे और परेड के समय बच्चों को 'शाबाशी' भी दे देते थे इसलिए बच्चों को उनकी यही 'शाबाशी' फ़ौज के तमगों-सी लगती थी और कुछ समय के लिए उनके मन में पी०टी० साहब के प्रति आदर का भाव जाग जाता था ।


प्रश्न 5. 'सपनों के से दिन' पाठ के आधार पर लिखिए कि बच्चों की रुचि पढ़ाई में क्यों नहीं थी? माँ-बाप को उनकी पढ़ाई व्यर्थ क्यों लगती थी?

उत्तर

'सपनों के से दिन' पाठ के आधार पर बच्चों की रुचि पढ़ाई-लिखाई में इसलिए नहीं थी क्योंकि विद्यालय में उन्हें बुरी तरह दंडित किया जाता था। ज़रा-सी गलती होने पर उनकी चमड़ी उधेड़ दी जाती थी तथा उन्हें नई कक्षा में जाने पर भी पुरानी पुस्तकें व कॉपियाँ दी जाती थीं, जिनसे आती गंध नई कक्षा की सारी उमंग दूर कर देती थी। माँ-बाप पढ़ाई के प्रति जागरूक नहीं थे और सोचते थे कि वे छह महीने में पंडित घनश्याम दास से बच्चे को दुकान का हिसाब रखने की लिपि सिखवा देंगे, इसी कारण उन्हें बच्चों की पढ़ाई व्यर्थ लगती थी ।


प्रश्न 6. पी०टी० साहब की चारित्रिक विशेषताओं और कमियों का उल्लेख अपने शब्दों में कीजिए ।

उत्तर

‘सपनों के से दिन' पाठ में पी०टी० साहब अनुशासनप्रिय, पक्षी प्रेमी, निश्चित व बेहद सख़्त अध्यापक के रूप में पाठकों के सामने आते हैं। वे अनुशासनप्रिय थे और चाहते थे कि स्कूल का प्रत्येक बच्चा अनुशासित रहे। वे पक्षियों से बहुत प्रेम करते थे, उन्होंने तोते पाले हुए थे और पूरा दिन वे तोतों को बादाम की गिरियाँ भिगो-भिगोकर खिलाते तथा उनसे बातें करते रहते थे। मुअत्तल होने के बाद भी उनके चेहरे पर ज़रा-सी भी चिंता नहीं दिखाई दी थी। इन सब विशेषताओं के अतिरिक्त उनके चरित्र में बच्चों के प्रति बेहद सख्ती की भावना रखने की कमी दिखाई देती है । वे ज़रा सी ग़लती हो जाने पर बच्चों की चमड़ी उधेड़ देते थे तथा कई बार बच्चों को ठुड्डों तथा बैल्ट के बिल्ले से मारा करते थे ।


प्रश्न 7. मास्टर प्रीतमचंद का विद्यार्थियों को अनुशासित रखने के लिए जो तरीका था, वह आज की शिक्षा-व्यवस्था के जीवन-मूल्यों के अनुसार उचित है या अनुचित ? तर्कसहित स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर

मास्टर प्रीतमचंद का विद्यार्थियों को अनुशासित रखने के लिए बुरी तरह शारीरिक दंड देने का तरीका था, यह तरीका आज की शिक्षा-व्यवस्था के जीवन मूल्यों के अनुसार बिल्कुल भी उचित नहीं है। इससे पुराने ज़माने के समान आज के बच्चों के मन में भी स्कूल के प्रति भय तथा पढ़ाई के प्रति अरुचि का भाव आ सकता है । आज की शिक्षा-व्यवस्था में विद्यार्थियों को अनुशासन जैसा जीवन-मूल्य सिखाने के लिए मनोवैज्ञानिक युक्तियों को अपनाने की व्यवस्था है। आज अध्यापक बच्चों को प्यार-दुलार के सहारे ही अनुशासित बनाने का प्रयास करते हैं ।


प्रश्न 8. 'सपनों के से दिन' कहानी के आधार पर लिखिए कि पी०टी० साहब की 'शाबाश' बच्चों को फौज़ के तमगों-सी क्यों लगती थी ?

उत्तर

पी०टी० साहब की शाबाश बच्चों को फ़ौज के तमगों-सी इसलिए लगती थी क्योंकि बच्चे इसे अपनी बहुत बड़ी उपलब्धि मानते थे । वस्तुतः पी०टी० साहब बड़े क्रोधी स्वभाव के थे और थोड़ी सी ग़लती पर भी वे चमड़ी उधेड़ने की कहावत को सच करके दिखा देते थे। ऐसे कठोर स्वभाव वाले पी०टी० साहब जब बच्चों को शाबाश कहते थे, तो बच्चों को ऐसा लगता था मानो उन्होंने फ़ौज के सारे लोग तमगे जीत लिए हों ।


प्रश्न 9. लेखक के बचपन के समय बच्चे पढ़ाई में रुचि नहीं लेते थे।-स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

अपने बचपन के दिनों में लेखक जिन बच्चों के साथ खेलता था, उनमें अधिकांश तो स्कूल जाते ही न थे और जो कभी गए भी वे पढ़ाई में अरुचि होने के कारण किसी दिन अपना बस्ता तालाब में फेंककर आ गए और फिर स्कूल गए ही नहीं। उनका सारा ध्यान खेलने में रहता था। इससे स्पष्ट है कि लेखक के बचपन के दिनों में बच्चे पढ़ाई में रुचि नहीं लेते थे।


प्रश्न 10. 'सपनों के से दिन' पाठ के लेखक का मन पुरानी किताबों से क्यों उदास हो जाता है ?

उत्तर

लेखक का मूल पुरानी किताबों से इसलिए उदास हो जाता है क्योंकि लेखक को पुरानी किताबों से आती विशेष गंध उसे परेशान करती थी। आर्थिक दृष्टि से कमज़ोर होने के कारण लेखक नई किताब नहीं खरीद पाता था । अन्य विद्यार्थियों की तरह लेखक में भी नई किताबों से पढ़ने की उमंग और उत्साह होता था, परंतु पुरानी किताबों को देखकर वह उदास हो जाता था।


प्रश्न 11. ख़ुशी से जाने की जगह न होने पर भी, लेखक को कब और क्यों स्कूल जाना अच्छा लगने लगा ?

उत्तर

लेखक खुशी से स्कूल जाना नहीं चाहता था । लेखक के लिए वह खुशी से जाने वाला स्थान नहीं था क्योंकि शिक्षकों की डाँट फटकार और पिटाई के कारण लेखक के मन में एक भय सा बैठ गया था इसके बावजूद जब उनके पी०टी० सर स्काउटिंग का अभ्यास करवाते थे, विद्यार्थियों को पढ़ाने-लिखने के बदले उनके हाथों में नीली-पीली झंडियाँ पकड़ा देते थे और विद्यार्थियों से परेड करवाते थे । पी०टी० साहब के संचालन में विद्यार्थी लेफ्ट राइट परेड करते हुए अपने आपको किसी फ़ौजी से कम नहीं समझते। इस दौरान लेखक को स्कूल जाना अच्छा लगता था ।


प्रश्न 12. 'सपनों के से दिन' पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि मारने-पीटने वाले अध्यापकों के प्रति बच्चों की क्या धारणा बन जाती है?

उत्तर

यह सत्य है कि मारने-पीटने वाले अध्यापकों के प्रति बच्चों के मन में एक भय बैठ जाता है। बच्चों के मन में विद्यालय के प्रति अरुचि उत्पन्न हो जाती है और पढ़ाई छोड़ देने की भावना भी पनपने लगती है। उनके मन में शिक्षक के प्रति घृणा का भाव भी उत्पन्न होने लगता। 


प्रश्न 13. 'सपनो के से दिन' पाठ के लेखक गुरुदयाल सिंह एवं उनके साथियों को पीटी साहब की 'शाबाश' फ़ौज के तमग़ों जैसी क्यों लगती थी ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

पी०टी० साहब की शाबाश बच्चों को फ़ौज की तमगों-सी इसलिए लगती थी कि बच्चे इसे अपनी बहुत बड़ी उपलब्धि मानते थे। वस्तुतः पी०टी० साहब बड़े क्रोधी स्वभाव के थे और थोड़ी-सी गलती पर भी वे चमड़ी उधेड़ने की कहावत को सच करके दिखा देते थे। ऐसे कठोर स्वभाव वाले पी०टी० साहब जब बच्चों को शाबाश कहते थे तो बच्चों को ऐसा लगता था मानो उन्होंने फ़ौज के सारे तमगे जीत लिए हों ।


प्रश्न 14. 'सपनों के से दिन' कहानी के आधार पर लिखिए कि स्काउट परेड करते समय लेखक स्वयं को 'महत्त्वपूर्ण आदमी' फ़ौजी जवान क्यों समझता था ?

उत्तर

परेड करना बच्चों को बहुत अच्छा लगता था । मास्टर प्रीतमचंद लेखक जैसे स्काउटों को परेड करवाते थे तो इन बच्चों को बहुत अच्छा लगता था । जब प्रीतमचंद सीटी बजाते हुए बच्चों को मार्च करवाते थे, राइट टर्न, लेफ्ट टर्न या अबाउट टर्न कहते थे। तब बच्चे छोटे-छोटे बूटों की एड़ियों पर दाएँ-बाएँ करते हुए ठक-ठककर अकड़कर चलते थे, तो उन्हें ऐसा लगता था मानो वे विद्यार्थी नहीं, बल्कि फ़ौजी जवान हों । धुली वर्दी, पॉलिश किए बूट और जुर्राबों को पहनकर बच्चे फ़ौजी जैसा महसूस करते थे।


प्रश्न 15. गरमी की छुट्टियों के पहले और आखिरी दिनों में लेखक ने क्या अंतर बताया है?

उत्तर

लेखक ने बताया है कि तब गरमी की छुट्टियाँ डेढ़-दो महीने की हुआ करती थीं। छुट्टियों के शुरू के दो-तीन सप्ताह तक बच्चे खूब खेल-कूद किया करते थे। वे सारा समय खेलने में बिताया करते थे। छुट्टियों के आखिरी पंद्रह-बीस दिनों में अध्यापकों द्वारा दिए गए कार्य को पूरा करने का हिसाब लगाते थे और कार्य पूरा करने की योजना बनाते हुए उन छुट्टियों को भी खेलकूद में बिता देते थे।


प्रश्न 16. फ़ारसी की घंटी बजते ही बच्चे डर से क्यों काँप उठते थे? 'सपनों के से दिन' पाठ के आधार पर लिखिए ।

उत्तर

चौथी श्रेणी में मास्टर प्रीतमचंद बच्चों को फ़ारसी पढ़ाते थे । वे स्वभाव से काफ़ी सख्त थे। अगर बच्चे उनकी आशाओं पर पूरे नहीं उतरते थे, तो वे बच्चों को कड़ी सजा देते थे। बच्चों के मन में जो उनका भय समाया हुआ था उसके कारण फ़ारसी की घंटी बजते ही बच्चे काँप उठते थे। फ़ारसी की घंटी बजते ही बच्चे डर से इसलिए काँप उठते थे क्योंकि मास्टर प्रीतमचंद ने फ़ारसी का शब्द रूप याद करके न लाने पर उनकी बुरी तरह पिटाई की थी, जबकि यह देखकर हेडमास्टर शर्मा जी ने उन्हें मुअत्तल भी कर दिया था, फिर भी बच्चों के मन में डर होने के कारण वे सोचते थे कि मुअत्तल होने के बावजूद कहीं मास्टर प्रीतमचंद उन्हें पढ़ाने के लिए न आ जाएँ। उनका यह डर तब समाप्त होता था जब मास्टर नौहरिया राम जी या फिर हेडमास्टर जी कक्षा में आ जाते थे।


प्रश्न 17. 'सपनों के से दिन' कहानी के आधार पर मास्टर प्रीतमचंद के व्यवहार की उन बातों का उल्लेख कीजिए, जिनके कारण विद्यार्थी उनसे नफ़रत करते थे।

उत्तर

पी०टी० साहब की शाबाश बच्चों को फ़ौज की तमगों सी इसलिए लगती थी कि बच्चे इसे अपनी बहुत बड़ी उपलब्धि मानते थे । वस्तुतः पी०टी० साहब बड़े क्रोधी स्वभाव के थे और थोड़ी-सी गलती पर भी वे चमड़ी उधेड़ने की कहावत को सच करके दिखा देते थे। ऐसे कठोर स्वभाव वाले पी०टी० साहब जब बच्चों को शाबाश कहते थे, तो बच्चों को ऐसा लगता था मानो उन्होंने किसी फ़ौज के सारे तमगे जीत लिए हैं ।


प्रश्न 18. 'सपनों के से दिन' कहानी के आधार पर लिखिए कि छुट्टियों में लेखक कहाँ जाया करता था और वहाँ उसकी दिनचर्या क्या रहती थी।

उत्तर

अपने स्कूल की छुट्टियों में लेखक अपनी नानी के घर जाया करता था । लेखक की नानी उसे बहुत प्यार करती थी। वह ननिहाल के छोटे से तालाब में जाकर दोपहर तक नहाया करता था । नानी के घर दूध, घी खूब खाने को मिलता था। वहाँ दिन भर खेलना, खाना और नहाने के सिवा और कोई काम मक्खन, न होता था ।


प्रश्न 19. छात्रों के नेता ओमा के सिर की क्या विशेषता थी? 'सपनों के से दिन' के आधार पर बताइए ।

उत्तर

ओमा लेखक के बचपन का मित्र था । वे दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे । ओमा बहुत शरारती छात्र था। वह दूसरे विद्यार्थियों को मारता पीटता था और वह गंदी-गंदी गालियाँ भी दिया करता था । वह अत्यंत अनुशासनहीन छात्र था। वह बहुत ताकतवर भी था । वह चंचल स्वभाव का बालक था, जिसे पढ़ना-लिखना अच्छा नहीं लगता था। कक्षा में शिक्षक द्वारा दिए गए काम को ओमा कभी पूरा नहीं कर पाता था । शिक्षक के द्वारा पिटाई खाने को वह आसान समझता था । उनकी पिटाई का उस पर कोई असर नहीं पड़ता था क्योंकि उसका शरीर बहुत मज़बूत था, उसका 'सिर' भी बहुत बड़ा था । वह लड़ाई में 'सिर' से ही वार करता था इसलिए बच्चे 'ओमा' को 'रेल - बंबा' कहकर पुकारते थे।


प्रश्न 20. पीटी मास्टर प्रीतमचंद को देखकर बच्चे क्यों डरते थे?

उत्तर

पीटी मास्टर प्रीतमचंद को स्कूल के समय में कभी भी हमने मुसकराते या हँसते न देखा था। उनका ठिगना कद, दुबला पतला परंतु गठीला शरीर, माता के दागों से भरा चेहरा और बाज-सी तेज आँखें, खाकी वरदी, चमड़े के चौड़े पंजों वाले बूट-सभी कुछ ही भयभीत करने वाला हुआ करता। उनका ऐसा व्यक्तित्व बच्चों के मन में भय पैदा करता और वे डरते थे।


प्रश्न 21. हेडमास्टर ने प्रीतमचंद के विरुद्ध क्या कार्यवाही की?

उत्तर

हेडमास्टर शर्मा जी ने देखा कि प्रीतमचंद ने छात्रों को मुरगा बनवाकर शारीरिक दंड दे रहे हैं तो वे क्रोधित हो उठे। उन्होंने इसे तुरंत रोकने का आदेश दिया। उन्होंने प्रीतमचंद के निलंबन का आदेश रियासत की राजधानी नाभा भेज दिया। वहाँ के शिक्षा विभाग के डायरेक्टर हरजीलाल के आदेश की मंजूरी मिलना आवश्यक था। तब तक प्रीतमचंद स्कूल नहीं आ सकते थे।


प्रश्न 22. हेडमास्टर शर्मा जी का छात्रों के साथ कैसा व्यवहार था ?

उत्तर

हेडमास्टर शर्मा जी अनुशासन प्रिय परंतु विनम्र व्यक्ति थे। वे बच्चों को मारने-पीटने में विश्वास नहीं रखते थे। वे बहुत प्रेम से छात्रों को पढ़ाते थे और नाराज़गी भी आँखों से ही प्रकट करते थे। बहुत गुस्सा होने पर गाल पर हल्की-सी चपत लगाकर बच्चों को सुधार देते थे । वे क्रूरता से कोसों दूर थे और इसी कारण मास्टर प्रीतमचंद की बर्बरता वे सहन नहीं कर सके और उन्होंने तुरंत प्रभाव से विद्यालय से निकलवा दिया। वे एक अच्छे प्रशासक, गुरु तथा उदारमना थे।


प्रश्न 23. ग़रीब घरों के लड़कों का स्कूल जाना क्यों कठिन था ? 'सपनों के से दिन' पाठ के आधार पर लिखिए ।

उत्तर

ग़रीब घरों के लड़कों का स्कूल जाना इसलिए कठिन था क्योंकि एक तो निर्धनता ही सबसे बड़ी बाधा थी। शुल्क, गणवेश आदि खरीदने के लिए ऐसे परिवार पैसे व्यय नहीं करते थे। दूसरे बच्चों को ही पढ़ाई में रुचि नहीं थी और न ही परिवार वाले पढ़ाई की अनिवार्यता मानते और समझते थे। बच्चों के थोड़ा बड़ा होने पर उन्हें किसी पारिवारिक व्यवसाय, कहीं हिसाब-किताब लिखने आदि में झोंक दिया जाता था।


प्रश्न 24. तोतों के प्रति प्रीतमचंद के मधुर व्यवहार से उनके व्यक्तित्व की कौन-सी विशेषता के बारे में पता चलता है?

उत्तर

बालकों के प्रति अत्यंत कठोर हृदय रखने वाले मास्टर प्रीतमचंद अपने पालतू तोतों के प्रति मधुर व्यवहार रखते थे। इससे उनके व्यवहार में छिपी हुई ममता का तो आभास होता ही है साथ ही ऐसा भी प्रतीत होता है कि मानो वे किसी पूर्वाग्रह से पीड़ित थे । वे उदार, सहानुभूतिपूर्ण मीठे शब्दों का प्रयोग करते थे, लेकिन केवल अपने पालतू तोतों के लिए, स्कूल के बच्चे उनकी सहानुभूति का पात्र न बन सके।


प्रश्न 25. लेखक ने सातवीं कक्षा तक की जो पढ़ाई की उसमें स्कूल के हेडमास्टर शर्मा जी का योगदान अधिक था। स्पष्ट कीजिए।

अथवा
लेखक की पढ़ाई में हेडमास्टर शर्मा जी का योगदान स्पष्ट कीजिए।

उत्तर

लेखक को याद है कि उस समय पूरे साल की किताबें एक या दो रुपए में आ जाती थीं फिर भी अभिभावक पैसों की कमी के कारण नहीं दिला पाते थे। ऐसी स्थिति में उसकी पढ़ाई भी तीसरी-चौथी में छूट जाती, परंतु स्कूल के हेडमास्टर जो किसी अमीर परिवार के बच्चे को पढ़ाने जाते थे, वे उसकी पुरानी किताबें प्रतिवर्ष लेखक को दे दिया करते थे। इससे लेखक ने सातवीं तक की पढ़ाई कर ली। इस तरह उसकी पढ़ाई में स्कूल के हेडमास्टर शर्मा जी का विशेष योगदान था।


दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. 'सपनों के से दिन' पाठ में हेडमास्टर शर्मा जी की बच्चों को मारने-पीटने वाले अध्यापकों के प्रति क्या धारणा थी? जीवन-मूल्यों के संदर्भ में उसके औचित्य पर अपने विचार लिखिए ।

उत्तर

'सपनों के से दिन' पाठ में हेडमास्टर शर्मा जी बच्चों को मारने-पीटने वाले अध्यापकों को अच्छा नहीं समझते थे। उनके अनुसार बच्चों को शारीरिक या मानसिक दंड देकर कोई भी अध्यापक छात्रों पर अनुशासन की लगाम नहीं लगा सकता और न ही उनके मन में अपने लिए सम्मान स्थापित कर सकता है। मारने-पीटने या अन्य किसी भी प्रकार से प्रताड़ित करने से छात्रों में अनुशासनहीनता, रोष, तनाव व बदले की भावना ही पनपती है। इसके विपरीत अध्यापक यदि विद्यार्थियों की बातों को सुनकर प्यार से उनकी छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान करके उनमें स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का भाव जगाए तथा उनमें स्वानुशासन का विकास करें, तो न केवल विद्यार्थियों को सही दिशा देने में कामयाब हो सकते हैं वरन उनके मन में अपने लिए एक सम्माननीय स्थान बनाने में भी सफल हो सकते हैं। एक स्वस्थ समाज की नींव रखकर अपने दायित्व का निर्वाह कर सकते हैं।


प्रश्न 2. मास्टर प्रीतमचंद को स्कूल से क्यों निलंबित कर दिया गया? निलंबन के औचित्य और उस घटना से उभरने वाले जीवन-मूल्यों पर विचार कीजिए।

उत्तर

मास्टर प्रीतमचंद सख्त अध्यापक थे। वे छात्रों की जरा-सी गलती देखते ही उनकी पिटाई कर देते थे। वे छात्रों को फ़ारसी पढ़ाते थे। छात्रों को पढ़ाते हुए अभी एक सप्ताह भी न बीता था कि प्रीतमचंद ने उन्हें शब्द रूप याद करके आने को कहा। अगले दिन जब कोई भी छात्र शब्द रूप न सुना सका तो उन्होंने सभी को मुरगा बनवा दिया और पीठ ऊँची करके खड़े होने के लिए कहा। इसी समय हेडमास्टर साहब वहाँ आ गए। उन्होंने प्रीतमचंद को ऐसा करने से तुरंत रोकने के लिए कहा और उन्हें निलंबित कर दिया।

प्रीतमचंद का निलंबन उचित ही था, क्योंकि बच्चों को इस तरह फ़ारसी क्या कोई भी विषय नहीं पढ़ाया जा सकता है। शारीरिक दंड देने से बच्चों को ज्ञान नहीं दिया जा सकता है। इससे बच्चे दब्बू हो जाते हैं। उनके मन में अध्यापकों और शिक्षा के प्रति भय समा जाता है। इससे पढ़ाई में उनकी रुचि समाप्त हो जाती है।

 

प्रश्न 3. 'सपनों के से दिन' पाठ के आधार पर लिखिए कि अभिभावकों को बच्चों की पढ़ाई में रुचि क्यों नहीं थी? पढ़ाई को व्यर्थ समझने में उनके क्या तर्क थे? स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर

'सपनों के से दिन' पाठ में लेखक ने बताया कि उस समय अधिकांश अभिभावकों को बच्चों की पढ़ाई में कोई विशेष रुचि नहीं थी क्योंकि ज़्यादातर परिवार आर्थिक दृष्टि से विपन्न थे । वे पढ़ाई पर ज़्यादा खर्च नहीं कर सकते थे। उस समय में कॉपियों, पैंसिलों, होल्डरों और स्याही पर साल भर में एक-दो रुपए खर्च होते थे, लेकिन एक रुपए में एक सेर घी या एक मन गंदम (गेहूँ) आ जाता था इसलिए गरीब घरों के लोग पढ़ाई के स्थान पर बच्चों को अपने साथ काम करवाने लग जाते थे। साथ ही वे लोग यह भी सोचते थे कि स्कूल की पढ़ाई धीमी है और जीवन में किसी काम नहीं आएगी। इस पढ़ाई से तो अच्छा यही होगा कि वे अपने बच्चों को हिसाब-किताब सिखाकर मुनीमगिरी करवाएँ या फिर बच्चे खेती या दुकान में उनका हाथ बँटवाएँ।


प्रश्न 4. लेखक ने अपने विद्यालय को हरा-भरा बनाने के लिए किए गए प्रयासों का वर्णन किया है। इससे आपको क्या प्रेरणा मिलती है?

उत्तर

लेखक के विद्यालय में अंदर जाने के रास्ते के दोनों ओर अलियार के बडे ढंग से कटे-छाँटे झाड उगे थे। उसे उनके नीम जैसे पत्तों की गंध अच्छी लगती थी। इसके अलावा उन दिनों क्यारियों में कई तरह के फूल उगाए जाते थे। इनमें गुलाब, गेंदा और मोतिया की दूध-सी कलियाँ होती थीं जिनकी महक बच्चों को आकर्षित करती थी। ये फूलदार पौधे विद्यालय की सुंदरता में वृद्धि करते थे। इससे हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हमें भी अपने विद्यालय को स्वच्छ बनाते हुए हरा-भरा बनाने का प्रयास करना चाहिए। हमें तरह-तरह के पौधे लगाकर उनकी देखभाल करना चाहिए और विद्यालय को हरा-भरा बनाने में अपना योगदान देना चाहिए।

 

प्रश्न 5. आज की शिक्षा-व्यवस्था में विद्यार्थियों को अनुशासित बनाए रखने के लिए क्या तरीके निर्धारित हैं? 'सपनों के से दिन' पाठ में अपनाई गई विधियाँ आज के संदर्भ में कहाँ तक उचित लगती हैं? जीवन-मूल्यों के आलोक में अपने विचार प्रस्तुत कीजिए ।

उत्तर

'सपनों के से दिन' पाठ के अनुसार विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए उन्हें डराया जाता था। छात्र पी०टी० के अध्यापक से बहुत डरते थे । वे छात्रों को बुरी तरह मारते-पीटते थे उनकी डाँट सुनकर छात्र थर-थर काँपते थे । उनके व्यवहार को दिखाने के लिए पाठ में 'खाल खींचने' जैसे मुहावरे का प्रयोग किया गया है उस समय की शिक्षा पद्धति में डाँट फटकार की बहुत अहमियत थी । शिक्षा भय की वस्तु समझी जाती थी । मुर्गा बनाना, थप्पड़ मारना, झिड़कना और डंडे मारना, उस समय ऐसे कठोर दंड थे कि जिनसे बालकों को न केवल शारीरिक कष्ट होता था, बल्कि उन्हें मानसिक यंत्रणा भी दी जाती थी ।

इन सबसे हटकर वर्तमान शिक्षा प्रणाली में इस प्रकार के दंड का कोई प्रावधान नहीं है। अब छात्रों को मारना या पीटना कानूनी अपराध है । आजकल बच्चों को सुधारने के लिए मनोवैज्ञानिक तरीके अपनाए जाते हैं। इन तरीकों से उनके अंदर अनुशासन, आदर-भाव, सहयोग, परस्पर प्रेम, कर्मनिष्ठा आदि गुणों का विकास होता है । उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले बच्चों को पुरस्कार दिए जाते हैं। जो अपने आप में शिक्षा के क्षेत्र में उठाया गया एक उत्तम कदम है। यूँ भी मारने-पीटने से बच्चों के मन में शिक्षा के प्रति अरुचि ही पैदा होती है। तनाव मुक्त एवं शांत सौहार्दपूर्ण वातावरण में दी गई शिक्षा अधिक जीवनोपयोगी सिद्ध होगी।


प्रश्न 6. लेखक और उसके साथियों द्वारा गरमी की छुट्टियाँ बिताने का ढंग आजकल के बच्चों द्वारा बिताई जाने वाली छुट्टियों से किस तरह अलग होता था?

उत्तर

लेखक और उसके साथी गरमी की छुट्टियाँ खेलकूद कर बिताते थे। वे घर से कुछ दूर तालाब पर चले जाते, कपड़े उतार पानी में कूद जाते और कुछ समय बाद, भागते हुए एक रेतीले टीले पर जाकर, रेत के ऊपर लेटने लगते। गीले शरीर को गरम रेत से खूब लथपथ कर उसी तरह भागते, किसी ऊँची जगह से तालाब में छलाँग लगा देते। रेत को गंदले पानी से साफ़ कर फिर टीले की ओर भाग जाते।

याद नहीं कि ऐसा, पाँच-दस बार करते या पंद्रह-बीस बार करते हुए आनंदित होते। आजकल के बच्चों द्वारा ग्रीष्मावकाश पूरी तरह अलग ढंग से बिताया जाता है। अब तालाब न रहने से वहाँ नहाने का आनंद नहीं लिया जा सकता। बच्चे घर में रहकर लूडो, चेस, वीडियो गेम, कंप्यूटर पर गेम जैसे इंडोर गेम खेलते हैं। वे टीवी पर कार्टून और फ़िल्में देखकर अपना समय बिताते हैं। कुछ बच्चे माता-पिता के साथ ठंडे स्थानों या पर्वतीय स्थानों की सैर के लिए जाते हैं।


प्रश्न 7. 'सपनों के से दिन' पाठ में लेखक को स्कूल जाने के नाम से उदासी क्यों आती थी? फिर भी कब और क्यों उसे स्कूल जाना अच्छा लगने लगा ?

उत्तर

'सपनों के से दिन' पाठ में लेखक गुरदयाल सिंह कहते हैं कि उन्हें और उनके मित्रों को स्कूल जाना कभी अच्छा नहीं लगता था। पहली कच्ची श्रेणी से लेकर चौथी श्रेणी तक केवल कुछ लड़कों को छोड़कर लेखक और उसके साथी रोते-चिल्लाते ही स्कूल जाया करते थे। उनके मन में स्कूल के प्रति एक प्रकार का भय - सा बैठा हुआ था । उन्हें मास्टरों की डाँट फटकार का भय भी सताता रहता था। स्कूल उन्हें नीरस प्रतीत होता था। इसके बावजूद यही स्कूल उन्हें कुछ विशेष अवसरों पर अच्छा भी लगने लगता था । यह अवसर होता था स्काउटिंग के अभ्यास का । तब पीटी साहब अपना कठोर रूप भूलकर लड़कों के हाथों में नीली-पीली झंडियाँ पकड़ा देते थे। वे इन झंडियों को हवा में लहराने को कहते । हवा में लहराती ये झंडिया बड़ी अच्छी लगती थीं। जब पी०टी० साहब 'शाबाश' कहते, तब वे पी०टी० साहब लड़कों को बड़े अच्छे लगते थे। ऐसे अवसर पर लेखक और उनके साथियों को स्कूल जाना अच्छा लगने लगता था।


प्रश्न 8. ‘सपनों के-से दिन’ पाठ के आधार पर बताइए कि बच्चों का खेलकूद में अधिक रुचि लेना अभिभावकों को अप्रिय क्यों लगता था? पढ़ाई के साथ खेलों का छात्र जीवन में क्या महत्त्व है और इससे किन जीवन-मूल्यों की प्रेरणा मिलती है?

उत्तर

‘सपनों के-से दिन’ पाठ में जिस समय का वर्णन हुआ है उस समय अधिकांश अभिभावक अनपढ़ थे। वे निरक्षर होने के कारण शिक्षा के महत्त्व को नहीं समझते थे। इतना ही नहीं वे खेलकूद को समय आँवाने से अधिक कुछ नहीं मानते थे। अपनी इसी सोच के कारण, बच्चे खेलकूद में जब चोटिल हो जाते और कई जगह छिला पाँव लिए आते तो उन पर रहम करने की जगह पिटाई करते। वे शारीरिक विकास और जीवन-मूल्यों के उन्नयन में खेलों की भूमिका को नहीं समझते थे, इसलिए बच्चों को खेलकूद में रुचि लेना उन्हें अप्रिय लगता था।

छात्रों के लिए पढ़ाई के साथ-साथ खेलों का भी विशेष महत्त्व है। ये खेलकूद एक ओर हमारे शारीरिक और मानसिक विकास के लिए आवश्यक हैं, तो दूसरी ओर सहयोग की भावना, पारस्परिकता, सामूहिकता, मेल-जोल रखने की भावना, हार-जीत को समान समझना, त्याग, प्रेम-सद्भाव जैसे जीवन-मूल्यों को उभारते हैं तथा उन्हें मजबूत बनाते हैं। इन्हीं जीवन-मूल्यों को अपना कर व्यक्ति अच्छा इनसान बनता है।

 

प्रश्न 9. मास्टर प्रीतमचंद को स्कूल से निलंबित क्यों कर दिया गया ? निलंबन के औचित्य और उस घटना से उभरने वाले जीवन-मूल्यों पर अपने विचार लिखिए ।

उत्तर

एक दिन मास्टर प्रीतमचंद ने चौथी कक्षा के बच्चों को फ़ारसी का शब्द रूप याद करने के लिए दिया था। जब अगले दिन बच्चे उस शब्द-रूप को नहीं सुना पाए, तो प्रीतमचंद ने गुस्से में भरकर उन्हें मुर्गा बना दिया और बर्बरतापूर्वक उनकी पिटाई करने लगे, ऐसा करते हुए उन्हें हेडमास्टर शर्मा जी ने देख लिया। उनसे उनकी यह बर्बरता सहन नहीं हुई और उन्होंने उन्हें निलंबित कर दिया।

मेरे विचार में हेडमास्टर शर्मा जी वैसे बहुत अच्छे इंसान थे, किंतु इस घटना में उन्हें मास्टर प्रीतमचंद को निलंबित न करके इस बात का अहसास करवाना चाहिए था कि बच्चों के साथ इतनी क्रूरता बिलकुल भी उचित नहीं है । विद्यार्थियों के प्रति उनके इस क्रूर व्यवहार के लिए यदि पहले से ही उन्हें समझाया जाता या चेतावनी दी जाती, तो संभवतः वे ऐसा नहीं करते। ऐसा करने से हेडमास्टर शर्मा जी के क्षमाशीलता, सहानुभूति, उदारता जैसे जीवन मूल्यों का पता चलता और हो सकता है कि उनकी चेतावनी से ही मास्टर प्रीतमचंद सुधर जाते तथा उन्हें अपना सच्चा मार्गदर्शक मानने लगते।

 

प्रश्न 10. मास्टर प्रीतमचंद से डरने और नफरत करने के चार कारणों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर

मास्टर प्रीतमचंद से अधिकतर बच्चे डरते थे और कहीं-न-कहीं उनके मन में पी०टी० सर के लिए घृणा की भावना भी थी। उसके बहुत सारे कारण थे। मास्टर प्रीतमचंद का स्वभाव अत्यंत कठोर था । अनुशासन स्थापित करने के नाम पर वे अत्यंत क्रूर हो जाते थे। बच्चों को शारीरिक दंड देना उनके लिए साधारण बात थी । यदि कोई बच्चा हलका सा हिल भी जाए तो मास्टर जी 'चमड़ी उधेड़ देना' वाला मुहावरा सही सिद्ध कर देते थे। पढ़ाते समय भी उनमें सहनशीलता का सर्वथा अभाव रहता था । पाठ याद न कर पाने की स्थिति में प्रायः छात्र उनकी क्रूरता के शिकार बन जाते थे। बच्चों के मन में उनके प्रति भय बैठ गया था। छोटे बच्चे तो उनकी कठोरता को झेल ही नहीं पाते थे । वे बच्चों को यमराज जैसे लगते थे। उनके इसी क्रूरतापूर्ण व्यवहार के कारण हेडमास्टर साहब ने उन्हें नौकरी से भी निकलवा दिया था । उनकी यह स्वभावगत थी कि वे न तो अपनी गलती को मानते थे और न ही उसके लिए क्षमा माँगने जाते थे। बच्चों के प्रति त्रुटि स्नेह और प्रेम का उनमें सर्वथा अभाव था। उनकी शाबाशी भी बस पी०टी० परेड के समय ही मिल पाती थी, अन्यथा वे छात्रों को प्रोत्साहित नहीं करते थे।


प्रश्न 11. ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में हेडमास्टर शर्मा जी की, बच्चों को मारने-पीटने वाले अध्यापकों के प्रति क्या धारणा थी? जीवन-मूल्यों के संदर्भ में उसके औचित्य पर अपने विचार लिखिए।

उत्तर

‘सपनों के-से दिन’ पाठ में वर्णित हेडमास्टर शर्मा जी बच्चों से प्यार करते थे। वे बच्चों को प्रेम, अपनत्व, पुरस्कार आदि के माध्यम से बच्चों को अनुशासित रखते हुए उन्हें पढ़ाने के पक्षधर थे। वे गलती करने वाले छात्र की भी पिटाई करने के पक्षधर न थे। जो अध्यापक बच्चों को मारने-पीटने या शारीरिक दंड देने का तरीका अपनाते थे, उनके प्रति उनकी धारणा अच्छी न थी। ऐसे अध्यापकों के विरुद्ध वे कठोर कदम उठाते थे। ऐसे अध्यापकों को स्कूल में आने से रोकने के लिए वे उनके निलंबन तक की सिफ़ारिश कर देते थे।

हेडमास्टर शर्मा जी का ऐसा करना पूरी तरह उचित था, क्योंकि बच्चों के मन से शिक्षा का भय निकालने के लिए मारपीट जैसे तरीके को बच्चों से कोसों दूर रखा जाना चाहिए। मारपीट के भय से अनेक बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं तो बहुत से डरे-सहमें कक्षा में बैठे रहते हैं और पढ़ाई के नाम पर किसी तरह दिन बिताते हैं। ऐसे बच्चों के मन में अध्यापकों के सम्मान के नाम पर घृणा भर जाती है।

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