Extra Questions for Class 9 क्षितिज Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर - केदारनाथ अग्रवाल Hindi
Chapter 14 चंद्र गहना से लौटती बेर Kshitij Extra Questions for Class 9 Hindi
प्रश्न 1. कवि ने खेत में खड़े हरे चने और अलसी के सौंदर्य का वर्णन किस प्रकार किया है ?
उत्तर
चना एक बीते के बराबर है। उसका रंग हरा तथा कद ठिगना है। वह सिर पर गुलाबी फूल का साफा-सा बाँधे, सजा खड़ा है। अलसी हठीली, शरीर से पतली तथा लचीली है। वह नीले रंग के फूल सिर पर चढ़ाकर यह कह रही है कि जो भी मुझे छुएगा, मैं उसको अपना हृदय दान दे दूँगी।
प्रश्न 2. ‘देखता हूँ मैं: स्वयंवर हो रहा है……..अंचल हिल रहा है’, पंक्तियों के द्वारा कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर
इन पंक्तियों के द्वारा कवि प्रकृति के सौंदर्य का मानवी क्रियाओं का आरोप करने का अनुरागमयी चित्रण करना चाहता है।
प्रश्न 3. कवि ने किस भूमि को प्रेम की सर्वाधिक उपजाऊ भूमि कहा है और क्यों ?
उत्तर
कवि ने व्यापारिक नगरों से दूर ग्राम्य – प्रकृति को (एकांत को) प्रेम की सर्वाधिक उपजाऊ भूमि कहा है। प्रकृति की निश्छल गोद में प्रेम सहज व स्वाभाविक रूप में पनपता है।
प्रश्न 4. इस कविता में ‘एक चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा’ किसके लिए प्रयुक्त किया गया है ?
उत्तर
डूबते सूरज की परछाईं के लिए।
प्रश्न 5. पोखर के सौंदर्य का वर्णन इस कविता के आधार पर कीजिए।
उत्तर
पोखर में लहरें उठ रही हैं। उसके नीले जल के तले भूरी घास उगी हुई है। वह घास भी लहरों के साथ हिल-डुल रही है। उसमें डूबते सूरज परछाई एक खंभे के सदृश आँखों को आकर्षक लगती है। उसके तट पर कई पत्थर पड़े हैं। वे चुपचाप पानी का सेवन कर रहे हैं।
प्रश्न 6.
भाव स्पष्ट कीजिए-
और सरसों की न पूछो-
हो गई सबसे सयानी।
हाथ पीले कर लिए हैं,
ब्याह – मंडल में पधारी।
उत्तर
इस कथन के द्वारा कवि ने सरसों के गदराए हुए रूप का वर्णन किया है। चारों ओर उसका पीलापन अपना प्रभाव दिखा रहा है। उसे देखकर कवि कल्पना करता है मानो कोई युवती हाथ पीले करके ब्याह मंडप में पधार चुकी है।
प्रश्न 7. तालाब में खड़ा बगुला नींद में होने का नाटक क्यों करता है ?
उत्तर
बगुला एक ढोंगी पक्षी है। वह मछलियों को देखते ही नींद में होने का ढोंग करता है। जब मछली निकट आती है तो अवसर मिलते ही वह मछली को चोंच में भरकर निगल जाता है। बगुले के ढोंग के कारण ही मछलियाँ उसके नजदीक जाती हैं और उसका आहार बन जाती हैं। इसलिए बगुला तालाब में नींद में होने का नाटक करता है।
प्रश्न 8. कवि ने चित्रकूट के क्षेत्र की जीवंतता का वर्णन किस प्रकार किया है ?
उत्तर
चित्रकूट की अनगढ़ पहाड़ियों में प्राकृतिक सुंदरता नहीं है। वहाँ की बंजर भूमि पर इधर-उधर रींवा के काँटेदार तथा कुरूप पेड़ दिखाई देते हैं। परंतु जगह-जगह पक्षियों ने सारे क्षेत्र को जीवंत बना रखा है। कवि ने तोते की रस टपकाती टें टें तथा सारस की टिरटों-टिस्टों की आवाज़ों से सारा वन क्षेत्र गूँज रहा है, जिससे वहाँ का वातावरण जीवंत बन गया है।
प्रश्न 9. कवि किसकी प्रेम-कहानी सुनना चाहता है ?
उत्तर
कवि अपने जीवन में पक्षियों से प्रेम-भाव की शिक्षा पाना चाहता है। इसलिए वह सारस पक्षी के साथ उड़कर हरे-भरे खेत में जाना चाहता है जहाँ उनकी जोड़ी रहती है और प्रेम व्यवहार करती है। वह उनकी प्रेम-कहानी को सुनना चाहता है ताकि वह भी अपने जीवन में उन जैसा पवित्र प्रेम-भाव प्राप्त कर सके।
प्रश्न 10.
और सारसों की न पूछो-
हो गई सबसे सयानी,
हाथ पीले कर लिए हैं।
ब्याह – मंडप में पधारी,
फाग गाता मास फागुन
आ गया है आज जैसे।
अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर
कवि ने वसंत ऋतु के आगमन पर खेतों में दूर-दूर तक फैली पीली-पीली सरसों का मानवीकरण करते हुए कहा है कि वह सयानी हो गई है, विवाह के योग्य हो गई है। इसलिए वह प्रकृति के द्वारा सजाए मंडप में पधारी है। फागुन का महीना फाग गाने लगा है। कवि की भाषा सरल और सरस है जिसमें सामान्य बोलचाल के शब्दों की अधिकता है। ‘हाथ पीले करना’ में लाक्षणिकता विद्यमान है। मुक्त छंद में भी लयात्मकता का गुण विद्यमान है। अनुप्रास और मानवीकरण अलंकारों का सुंदर प्रयोग सराहनीय है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द-शक्ति के कथन को सरलता और सरसता प्रदान की है।
अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर
1. देख आया चंद्र गहना
देखता हूँ दृश्य अब मैं
मेड़ पर इस खेत की बैठा अकेला
एक बीते के बराबर
यह हरा ठिगना चना,
बाँधे मुरैठा शीश पर
छोटे गुलाबी फूल का,
सजकर खड़ा है।
प्रश्न :
(क) कवि कहाँ बैठा हुआ था ? उसके साथ कौन था ?
(ख) कवि ने खेत में किसे देखा ?
(ग) चने की शोभा वर्णित कीजिए।
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर
(क) कवि चंद्र गहना से लौटते समय एक खेत की मेड़ पर बैठा हुआ था। उसके साथ कोई नहीं था, वह बिल्कुल अकेला था।
(ख) कवि ने खेत में हरे-भरे चने को देखा था।
(ग) हरा-भरा चना ठिगना है। उसकी शोभा प्रकृति ने सुंदर ढंग से बढ़ाई है। उस पर छोटे-छोटे गुलाबी फूल लगे हैं जो उसके सिर पर गुलाबी पगड़ी के समान प्रतीत होते हैं।
(घ) कवि ने खेत में उगे चने की अद्भुत सुंदरता को प्रकट करते हुए मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किया है। तद्भव और तत्सम शब्दावली का मिला-जुला प्रयोग भाषा को सुंदरता प्रदान करने में सफल हुआ है। चाक्षुक बिंब विद्यमान है। अभिधा शब्द-शक्ति और प्रसाद गुण कथन को सरलता और सहजता प्रदान करने में सहायक हुए हैं। मुक्त छंद का प्रयोग है।
2. पास ही मिलकर उगी है
बीच में अलसी हठीली।
देह की पतली कमर की है लचीली,
नील फूले फूल को सिर पर चढ़ाकर
कह रही है, जो छुए यह,
दूँ हृदय का दान उसको।
प्रश्न :
(क) कवि ने अलसी को कौन-सा विशेषण दिया है ?
(ख) अलसी की सुंदरता का वर्णन कीजिए।
(ग) अलसी क्या कहना चाहती है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर
(क) कवि ने अलसी को ‘हठीली’ विशेषण दिया है।
(ख) अलसी अति सुंदर है। उसकी देह दुबली-पतली है, कमर लचीली है तथा उसके सिर पर नीले रंग के छोटे-छोटे फूल शोभा दे रहे हैं।
(ग) अलसी कहना चाहती है कि जो भी उसके फूलों को छुएगा वह उसे अपना हृदय दान में दे देगी।
(घ) कवि ने खड़ी बोली में खेत में उगी अलसी के कोमल – सुंदर पौधों का सजीव चित्रण किया है। भाषा में चित्रात्मकता का गुण है। अभिधा शब्दशक्ति और प्रसाद गुण ने कथन को सरलता – सरसता प्रदान की है। तद्भव शब्दावली की अधिकता है। मानवीकरण अलंकार का प्रयोग सराहनीय है।
3. और सरसों की न पूछो –
हो गई सबसे सयानी,
हाथ पीले कर लिए हैं
ब्याह मंडप में पधारी,
फाग गाता मास फागुन
आ गया है आज जैसे।
प्रश्न :
(क) कवि की दृष्टि में कौन सयानी हो गई है ?
(ख) शादी के मंडप में कौन पधारी है ?
(ग) फागुन का महीना क्या गा रहा है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर
(क) कवि की दृष्टि में सरसों अब सयानी हो गई है।
(ख) शादी के मंडप में सरसों पधारी है।
(ग) फागुन का महीना फाग गा रहा है जो होली के अवसर पर गाया जाता है।
(घ) कवि ने वसंत ऋतु के आगमन पर खेतों में दूर-दूर तक फैली पीली-पीली सरसों का मानवीकरण करते हुए माना है कि वह सयानी हो गई है, विवाह के योग्य हो गई है इसलिए वह प्रकृति के द्वारा सजाए – सँवारे मंडप में पधारी है। फागुन का महीना फाग गाने लगा है। कवि की भाषा सरल और सरस है जिसमें सामान्य बोलचाल के शब्दों की अधिकता है। ‘हाथ पीले करना’ में लाक्षणिकता विद्यमान है। मुक्त छंद में भी लयात्मकता का गुण विद्यमान है। अनुप्रास और मानवीकरण अलंकारों का सुंदर प्रयोगं सराहनीय है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द-शक्ति ने कथन को सरलता और सरसता प्रदान की है।
4. देखता हूं मैं: स्वयंवर हो रहा है,
प्रकृति का अनुराग – अंचल हिल रहा है
इस विजन में,
दूर व्यापारिक नगर से,
प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है।
प्रश्न :
(क) किसका स्वयंवर हो रहा है ?
(ख) कवि ने किसके आँचल हिलने का वर्णन किया है ?
(ग) कवि की दृष्टि में नगरीय जीवन कैसा है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर
(क) कवि ने माना है कि ग्रामीण शोभा रूपी आँचल में सरसों का स्वयंवर हो रहा है।
(ख) कवि ने प्रकृति रूपी नायिका के प्रेमपूर्ण आँचल हिलने का वर्णन किया है।
(ग) कवि की दृष्टि में नगरीय जीवन पाखंडपूर्ण, स्वार्थमय और व्यापारिक है।
(घ) कवि ने अवतरण में खेतों का चित्रात्मक और अनुरागमयी रूप अंकित किया है। अतुकांत छंद में रचित पंक्तियों में लयात्मकता विद्यमान है। तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है। मानवीकरण और अनुप्रास अलंकारों का स्वाभाविक रूप सराहनीय है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द-शक्ति के कथन को सरलता – सरसता प्रदान की है।
5. और पैरों के तले है एक पोखर,
उठ रहीं इसमें लहरियाँ,
नील तल में जो उगी है घास भूरी
ले रही वह भी लहरियाँ।
प्रश्न :
(क) कवि के पैरों के पास क्या है ?
(ख) पोखर की गहराई में क्या उगा हुआ है ?
(ग) तल में घास किस प्रकार का व्यवहार कर रही है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर
(क) कवि के पैरों के पास एक पोखर है जो पानी से भरा हुआ है।
(ख) पोखर की गहराई में घास उगी हुई है जो भूरे रंग की है।
(ग) पोखर के जल के हिलने से घास भी लहरियाँ लेती हुई प्रतीत होती हैं।
(घ) अवतरण में पोखर का सजीव चित्रण किया गया है। तल में उगी हुई घास भी जल के हिलने से लहरियाँ लेने लगती है। चित्रात्मकता विद्यमान है। अनुप्रास का सहज प्रयोग किया गया है। अतुकांत छंद का प्रयोग है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द- शक्ति विद्यमान है।
6. एक चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा
आँख को है चकमकाता।
हैं कई पत्थर किनारे
पी रहे चुपचाप पानी,
प्यास जाने कब बुझेगी!
प्रश्न :
(क) कवि ने चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा किसे कहा है ?
(ख) पत्थर कहाँ पड़े हैं ?
(ग) पत्थर क्या करते प्रतीत हो रहे हैं ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर
(क) कवि ने चाँदी का बड़ा-सा गोल खंभा सूर्य के प्रतिबिंब को कहा है जो पोखर के जल में बिंबित हो रहा है। पानी के हिलने के कारण वह निरंतर हिलकर लंबे खंभे-सा प्रतीत हो रहा है।
(ख) पत्थर पोखर के किनारे पड़े हैं जो जल को स्पर्श कर रहे हैं।
(ग) कवि को प्रतीत होता है कि वे पत्थर पोखर के पानी को पीकर अपनी प्यास बुझा रहे हैं।
(घ) कवि ने कल्पना की है कि पोखर के जल में आँख को चकमकाता सूर्य का प्रतिबिंब बड़े से गोल खंभे के रूप में दिखाई दे रहा है और किनारे पर पड़े पत्थर ऐसे लगते हैं जैसे पोखर के जल को पीकर अपनी प्यास को बुझाना चाह रहे हों। पता नहीं उनकी प्यास कभी बुझेगी भी या नहीं। शब्द अति सरल हैं। अभिधा शब्द – शक्ति, प्रसाद गुण और चित्रात्मकता ने कवि के भावों को सजीवता प्रदान की है। उपमा, स्वाभावोक्ति और अनुप्रास अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया गया है।
7. चुप खड़ा बगुला डुबाए टाँग जल में,
देखते ही मीन चंचल
ध्यान – निद्रा त्यागता है,
चट दबाकर चोंच में
नीचे गले के डालता है !
प्रश्न :
(क) पोखर के जल में एक टाँग पर कौन खड़ा है ?
(ख) बगुला अपनी नींद को कब त्यागता प्रतीत होता है ?
(ग) तालाब में खड़ा बगुला क्या वास्तव में ही नींद में होता है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर
(क) पोखर के जल में एक टाँग पर बगुला खड़ा है।
(ख) बगुला अपनी नींद को तब त्यागता प्रतीत होता है, जब कोई चंचल मछली जल में उसके निकट से गुज़रती है।
(ग) बगुला वास्तव में नींद में नहीं होता। वह बिना हिले-डुले मछलियों को यह अहसास कराता है कि जल में ऐसा कोई खतरा नहीं जो उन्हें क्षति पहुँचा सके। किसी प्रकार के संकट की संभावना न होने के कारण ही मछलियाँ तैरती हुई बगुले के निकट आ जाती हैं।
(घ) कवि ने बगुले की ढोंगी वृत्ति का चित्रण है। वस्तुतः बगुला भोला – सा बनकर सरोवर के तट पर खड़ा हो जाता है। ऐसा लगता है जैसे यह किसी को हानि नहीं पहुँचाना चाहता, पर अवसर मिलते ही वह मछली को चोंच में भरकर निगल जाता है। बगुले के माध्यम से यहाँ ढोंगी व्यक्ति के स्वभाव का चित्रण हुआ है।
8. एक काले माथे वाली चतुर चिड़िया
श्वेत पंखों के झपाटे मार फौरन।
टूट पड़ती है भरे जल के हृदय पर,
एक उजली चटुल मछली
चोंच पीली में दबाकर
दूर उड़ती है गगन में !
प्रश्न :
(क) चिड़िया का रूप कैसा है ?
(ख) कवि ने चिड़िया को चतुर क्यों कहा है ?
(ग) चिड़िया उड़ कर कहाँ जाती है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर
(क) चिड़िया सफेद पंखों वाली है जिसके माथे का काला रंग है। वह तेजी से झपटने की क्षमता रखती है। उसकी चोंच पीली है।
(ख) कवि ने चिड़िया को चतुर कहा है क्योंकि वह जल की गहराई से ही अपनी पीली चोंच में मछली को झपटकर ले जाती है और पल-भर में ही आकाश की ऊँचाई में दूर उड़ जाती है।
(ग) चिड़िया उड़कर आकाश में चली जाती है।
(घ) कवि ने काले माथे, पीली चोंच और सफेद रंग की चिड़िया की निपुणता और चपलता का वर्णन किया है। गतिशील बिंब – योजना और सुंदर रंग- योजना ने सहज रूप से चित्रात्मकता को प्रकट किया है। अनुप्रास का सहज स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। प्रसाद गुण और अभिधा शब्द – शक्ति ने कवि के कथन को सरलता और सहजता प्रदान की है।
9. औ यहीं से
भूमि ऊँची है जहाँ से-
रेल की पटरी गई है।
ट्रेन का टाइम नहीं है।
मैं यहाँ स्वच्छंद हूँ जाना नहीं है।
चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी,
कम ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ।
दूर दिशाओं तक फैली हैं।
बाँझ भूमि पर
इधर-उधर रींवा के पेड़,
काँटेदार कुरूप खड़े हैं।
प्रश्न :
(क) कवि उस स्थान पर स्वयं को स्वच्छंद क्यों मानता है ?
(ख) चित्रकूट की पहाड़ियाँ कैसी हैं ?
(ग) काँटेदार कुरूप पौधे कहाँ पर हैं ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर
(क) कवि स्वयं को उस ऊँची भूमि पर स्वच्छंद मानता है क्योंकि उस समय उसके पास करने के लिए कुछ भी नहीं है। वहाँ से गुजरती रेल की पटरी पर भी तब कोई गाड़ी गुजरने वाली नहीं है
(ख) चित्रकूट की पहाड़ियाँ चौड़ी और अनगढ़ हैं। उनकी ऊँचाई अधिक नहीं है और वे दूर-दूर तक फैली हुई हैं।
(ग) चित्रकूट की अनगढ़ पथरीली बाँझ भूमि पर रींवा के काँटेदार कुरूप पेड़ इधर-उधर उगे हुए हैं।
(घ) कवि ने चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी और कम ऊँची पहाड़ियों पर उगे रींवा के काँटेदार कुरूप पेड़ों का वर्णन करने के साथ-साथ अपने अकेलेपन का उल्लेख किया है। कवि ने बोलचाल की सामान्य शब्दावली का प्रयोग अति स्वाभाविक रूप से किया है। ‘रेल’, ‘ट्रेन’, ‘टाइम’ आदि विदेशी शब्दावली के साथ-साथ तद्भव शब्दावली का भी प्रयोग किया गया है। मानवीकरण और अनुप्रास का सहज-स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। अभिधा शब्द-शक्ति और प्रसाद गुण का सुंदर प्रयोग कथन की सरलता का आधार है। मुक्त छंद के प्रयोग में भी लयात्मकता की सृष्टि हुई है।
10. सुन पड़ता है
मीठा-मीठा रस टपकाता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें दें,
सुन पड़ता है
वनस्थली का हृदय चीरता,
उठता-गिरता,
सारस का स्वर
टिरटों टिरटों,
मन होता है
उड़ जाऊँ मैं,
पर फैलाए सारस के संग
जहाँ जुगुल जोड़ी रहती है
हरे खेत में,
सच्ची प्रेम-कहानी सुन लूँ
चुप्पे-चुप्पे।
प्रश्न :
(क) कवि ने किस-किस पक्षी की आवाज़ कविता में सुनाई है ?
(ख) कवि की इच्छा क्या है ?
(ग) कवि किसकी प्रेम कहानी सुनना चाहता है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर
(क) कवि ने तोते की रस टपकाती टें टें टें टें तथा सारस के स्वर टिरटों टिरटों की आवाजें सुनाई हैं जो सारे वनक्षेत्र में गूँज रही हैं।
(ख) कवि की इच्छा है कि वह भी सारस पक्षी के साथ उड़ जाए और स्वच्छंद उड़ान भरे।
(ग) कवि सारस पक्षी के साथ उड़कर उन हरे-भरे खेतों में जाना चाहता है जहाँ उनकी जोड़ी रहती है और प्रेम व्यवहार करती है। वह उनकी प्रेम कहानी को सुनना चाहता है ताकि वह भी अपने जीवन में उन जैसा पवित्र प्रेम-भाव प्राप्त कर सके।
(घ) कवि ने अपने जीवन में पक्षियों से प्रेम-भाव की शिक्षा पाने की कामना की है। उनकी मधुर आवाज़ उनके हृदय के भावों को प्रकट करने में सक्षम है। ‘टें टें टें टें’ तथा ‘टिरटों टिरटों’ से श्रव्य बिंब की सृष्टि हुई है। दृश्य बिंब ने गाँव के सुंदर क्षेत्र को प्रकट करने में सफलता पाई है। अतुकांत छंद के प्रयोग में भी लयात्मकता विद्यमान है। पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास और मानवीकरण अलंकारों का सहज-स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। तद्भव शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है।